हाथी से संबंधित लोकोक्तियां एवं मुहावरे -
1. हाथी - शक्तिशाली
2. हाथी का ओहदा - उच्च पद।
3. हाथी मारना - बड़ा काम करना।
4. हाथी पालना - विलासी जीवन यापन।
5. हाथी को हल जोतना - असंभव को संभव कर दिखाना।
6. हाथी दांत - महंगी वस्तु
7. हाथी के दांत खाने के ओर दिखाने के ओर - कहना कुछ ओर एवं करना कुछ ओर
8. गजानंद - सनातन धर्म के भगवान (गणेश)
9. अंकुश लगाना - रोकना
10. हाथी को डब्बी में बंद करना - नाकामयाब कोशिश।
11. मस्त हाथी की तरह - अपमी मौज में।
12. बातन हाथी पाइए बातन हाथी पांव - बोलचाल से हाथी का ओहदा मिल सकता है और बोलचाल से ही हाथी के पांवों में कुचल कर मारने की सजा मिल सकती है।
13. हाथी कमाना/पाना - अधिक लाभ प्राप्त करना।
14. हाथी वालों से यारी करने पर घर के दरवाजे ऊंचे करने पड़ते हैं - बराबरी करने पर खर्च भी उतना ही करना पड़ता है।
15. सफेद हाथी दान करना - नुकसान करना।
16. सफेद हाथी - आधुनिक नेता
17. सफेद हाथी - दुर्लभ एवं बहुमूल्य वस्तु
हाथी के पर्यायवाची शब्द -
गज, हाथी, नाग (पर्वत), एरावत(पांच सर वाला उड़ने वाला सफेद हाथी), हस्तो, कुंज, कुंजर,
हाथी से संबंधित शब्द -
नर - हाथी
मादा - हथिनी
ओहदा - हाथी पर बैठने की मचान
अंकुश - हाथी को काबू में करने का लोहे का कमानीदार हथियार।
महावत - हाथी पालने वाला
सूंड - हाथी की नाक
हाथीदांत - धनी व्यक्तियों हेतु हाथी के दांत से बने आभूषण।
हाथी - वैज्ञानिक वर्गीकरण -
जगत - पशु (जंतु)
संघ - रज्जुकी (कार्डेटा)
उपसंघ - कशेरुकी जन्तु (वर्टिब्रेटा)
वर्ग - स्तनपायी (मैमलिया)
अधिवर्ग - टेट्रापोडा
उपवर्ग - थेरिया
अध:वर्ग - यूथेरिया
गण - प्रोबोसीडिया
जाति - लॉक्सोडॉण्टा व एलिफस
कुल - एलिफैन्टिडी (हाथी परिवार)
आधुनिक हाथी और उनके विलुप्त पूर्वज टैक्सोनोमिक सुपरफ़ैमिली एलीफ़ेंटोइडिया से संबंधित हैं।
हाथी उत्पत्ति एवं विकास -
इस युग में धरती पर पाया जाना वाला सब से विशाल स्तनधारी पशु हाथी है। धरती पर जीवित सब से विशाल ब्लू व्हेल है जिसका वजन दस हाथियों के बराबर होता है। इस से पूर्व सब से विशाल जानवर डायनासोर थे जिनकी लंबाई 128 फुट एवं ऊंचाई लगभग 25 फूट रही, डायनासोर अब विलुप्त हो गए हैं। हाथियों की उत्पत्ति लगभग 55 करोड़ वर्ष पूर्व उत्तरी अफ़्रीका के मैदानों में हुई। हाथियों के सबसे पुराने पूर्वज एरिथेरियम हैं जो पेलियोसीन युग (66 से 56 मिलियन वर्ष पूर्व विलुप्त) मोरक्को क्षेत्र में निवास करती थी।
आधुनिक हाथी प्रजाति का सबसे पुराना जीवाश्म 4 मिलियन वर्ष पुराना है। एशिया के हाथी अफ़्रीका (केन्या) में लगभग 6.7 से 5.2 मिलियन वर्ष पूर्व पाए गए। अफ़्रीकी तथा एशियाई हाथी समान पूर्वज से क़रीब 73 लाख वर्ष पूर्व विभाजित हो गये थे। हाथी एक शाकाहारी, सामाजिक प्राणी है जो गाय, भेड़िया आदि जानवरों के समान झुंड में रहना पसंद करता है। हाथी को पानी में रहना बहुत पसंद है। इनका नर मादा से बड़ा एवं शक्तिशाली होता है। नर हाथियों में प्रजनन हेतु संघर्ष भी होता है।
एलिफैन्टिडी कुल में तीन जातियां थीं उनमें से केवल दो प्रजातियाँ जीवित हैं -
1. ऍलिफ़स (भारतीय/एशियाई हाथी)
(क) एशियाई हाथी अफ्रीकी हाथियों से छोटे होते हैं।
(ख) इनके सर पर उच्चतम बिंदु होता है।
(ग) इनकी सूंड की नोक उंगली जैसी होती है।
(घ) इनकी पीठ उत्तल (सीधी) होती है।
(च) इनकी औसत ऊंचाई 3 मीटर, लंबाई 5 मीटर के बीच होती है।
(छ) इनका औसत वजन 2,000 से 5,500 किलो के बीच होता है।
(ज) इनमें 19 जोड़े पसलियां होती हैं
(झ) कान गर्दन की ओर मुड़े, चेहरे पर आंखों के पास गड्ढे इनकी खास पहचान है।
(ट) इनका रंग भूरा या काला होता है।
(ठ) इनके दाँत छोटे होते हैं।
(ड) मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं जबकि अफ्रीकी हाथी के नर एवं मादा के दांत होते हैं।
(ढ) इनकी सूँड अफ़्रीकी हाथी से बड़ी जमीन को छूते हुए होती है।
(त) इनके पंजे बड़े व चौड़े होते हैं।
A. श्रीलंकाई हाथी -
एशिया में श्रीलंका में सर्वाधिक हाथी पाए जाते हैं जो एशिया के सब से बड़े जीव हैं। सन 1830 तक यहां इतने हाथी थे कि सरकार को इनके शिकार हेतु प्रोत्साहन दिया जाता था। कभी पूरे लंका क्षेत्र में विचरण करने वाले हाथी वर्तमान में उत्तर, पूर्व और दक्षिण पूर्व में शुष्क क्षेत्र तक सीमित हो गए हैं।
इन हाथियों के संरक्षण हेतु -
1. हाथीवाला राष्ट्रीय उद्यान,
2. याला राष्ट्रीय उद्यान,
3. लुनुगामवेरा राष्ट्रीय उद्यान,
4. विल्पट्टू नेशनल पार्क और
5. मिननेरिया नेशनल पार्क
संरक्षित क्षेत्र घोषित किए गए हैं। वर्तमान में इनकी संख्या लगातार घट रही है। इनकी मुख्य विशेषता इनके सूंड़, कान, मुँह तथा पेट में हल्के ग़ुलाबी रंग के चित्ते पड़े होते हैं। पिन्नावाला, श्री लंका में हाथियों का अनाथाश्रम है जो इनको विलुप्त होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
B. भारतीय हाथी -
भारतीय हाथी, एलिफ़स मैक्सिमस इंडिकस एशियाई हाथी की प्रजाति है जो भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, कंबोडिया, चीन, लाओस, मलेशियाई प्रायद्वीप, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड और वियतनाम में पाए जाते हैं। भारतीय हाथी की औसत लंबाई 6 मीटर, ऊंचाई 3 मीटर, वज़न 800 किलो होता है। इनकी संख्या भी लगातार कम होती जा रही है।
भारतीय हाथी लंबाई 6.4 मीटर तक हो सकती है। यह थाईलैंड के एशियाई हाथी से लंबा व पतला होता है। सबसे लंबा ज्ञात भारतीय हाथी 26 फुट का था। हाथी की पीठ के उभार के स्थान पर इसकी ऊँचाई 3.4 मीटर हो सकती है। अधिकतम वजन छ टन हो सकता है। भारतीय हाथी अफ़्रीकी हाथियों जैसे ही दिखते हैं पर उनके कान और दाँत छोटे होते हैं।
माथा चौड़ा होता है। मादा के हाथीदाँत नहीं होते हैं। नर मादा से ज़्यादा बड़े होते हैं। सूँड अफ़्रीकी हाथी से ज़्यादा बड़ी होती है। पंजे बड़े व चौड़े होते हैं। पैर के नाखून ज़्यादा बड़े नहीं होते हैं। अफ़्रीकी पड़ोसियों के मुकाबले इनका पेट शरीर के वज़न के अनुपात में ही होता है, लेकिन अफ़्रीकी हाथी का सिर के अनुपात में पेट बड़ा होता है। भारतीय हाथी को 1996 में लुप्तप्राय जाति में वर्गीकृत किया गया।
C. बोर्नियो का हाथी -
बोर्नियो द्वीप पर पाए गए इन छोटे हाथियों को वर्ष 2003 में पृथक प्रजाति की मान्यता दी गई। बोर्नियो (बोर्नियो पिग्गी) के हाथी, अन्य सभी जीवित हाथियों से आनुवंशिक रूप से भिन्न हैं। अन्य एशियाई हाथियों की तुलना में यह ज़्यादा छोटा और कम आक्रामक होता है। इसके अपेक्षाकृत बड़े कान और पूँछ होते हैं और इसके हाथीदाँत भी अधिक सीधे होते हैं। यह इंडोनेशिया और मलेशिया में पूर्वोत्तर के बोर्नियो क्षेत्र में रहता है। इसे लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। 18 वीं सदी में बोर्नियो के सुल्लू के सुल्तान ने इनको बंदी बनाने पर रोक लगाकर जंगल में छोड़ दिया था।
D. सुमात्रा का हाथी - (एलिफस मैक्सिमस सुमात्रानस)
यह हाथी केवल सुमात्रा ही में पाया जाता है। यह भारतीय हाथी से छोटा होता है।यह बोर्नियो हाथी की चौथी उप-प्रजाति है। इसके कानों पर ग़ुलाबी धब्बे होते हैं।वयस्क सुमात्राई हाथी 1.7 से 2.6 मीटर ऊंचे तथा वजन में 3000 किलो से कम होते हैं। यह एशियाई तथा अफ़्रीकी हाथियों से छोटा होता है सुमात्रा हाथी तीन उप-प्रजातियों में सबसे दुर्लभ है, जिसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
2. लॉक्सोडॉण्टा (बुश या सवाना हाथी) अफ्रीकी हाथी -
अफ़्रीकी हाथी की दो उप जातियाँ हैं जो 37 अफ़्रीकी देशों में विचरण कर रहे हैं। अफ़्रीकी हाथी, एशियाई हाथी से कई प्रकार से भिन्न होते हैं, जिनमें सबसे स्पष्ट अंतर लचकदार पीठ, बड़े कान एवं आकर में बड़ा होना है। अफ़्रीकी हाथी में नर और मादा दोनों के हाथीदांत होते हैं और उनकी त्वचा में बाल भी कम होते हैं।अफ़्रीकी हाथी का सिर के अनुपात में पेट बड़ा होता है। अफ़्रीकी हाथी को दो उप जातियों में विभाजित किया गया है -
सवाना व बुश हाथी अफ़्रीकी जंगली हाथी, जो लगभग एक जैसे ही हैं,परन्तु DNA परीक्षण के अनुसार दोनों में अंतर है। अलग जातियाँ हो सकती हैं। अफ़्रीकी हाथी की एक तीसरी जाति भी प्रस्तावित की गई है जिसे पश्चिमी हाथी कहा जाता है।
(क) सवाना का हाथी (लोक्सोडोंटा अफ़्रीकन) -
अफ़्रीकी सवाना हाथी अफ़्रीकी हाथी के दो प्रजातियों में से एक है। इसके पैर से कंधे तक की ऊँचाई लगभग 3.96 मीटर, वजन लगभग 10000 किलो तक होता है। यह सवाना घास के मैदानों में पाया जाता है।
इसके नुकीले एवं त्रिकोणीय कान का आकार 2 मीटर × 1.5 मीटर तक हो सकता है। गर्मी से बचाव हेतु यह कानों को जोर से फड़फड़ाता है। इसके मजबूत दाँत बाहर की ओर मुड़े हुए और आगे की ओर निकले हुए होते हैं। इसकी लंबी सूंड दो अंगुलियों के समान नोक वाली होती है। यह उपसहारा के युगांडा, केन्या, तंजानिया, बोत्सवाना, जिम्बाब्वे, नामिबिया, जांबिया, अंगोला एवं रेगिस्तानी माली क्षेत्र में पाया जाता है। वर्तमान में यह लुप्तप्राय की लाल सूची में दर्ज है।
(ख) अफ्रीकी बुश हाथी (Loxodonta africana) -
यह लगभग सवाना जैसा ही होता है। यह सवाना से ऊंचाई में थोड़े कम (3.2 मीटर) होते हैं। इनकी सूंड पर खुरदरी धारियां होती हैं जो कंटीली झाड़ियों से भोजन प्राप्त करने में सहायक है। यह भी संकटग्रस्त प्राणी की सूची में शामिल है।
3. मैमथ - (मैमुथस प्राइमिजीनियस)
मैमथ साइबीरियाई भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है जमीन के नीचे रहने वाले जंतु।प्रागैहसिक काल में मैमथ एक विशालकाय हाथी सदृश जीव था जो हिमयुग में विलुप्त हो गया। इसका जीवाश्म साइबेरिया के टुंड्रा प्रदेश में बर्फ में सुरक्षित दबा मिला है। इसके शरीर पर बड़े बाल, सूंड छोटी, दांत बड़े ऊपर की ओर मुड़े सर्पिल आकार में थे। इनकी खोपड़ी छोटी और ऊँची, कान छोटे तथा मैमथ दंत (tusk) अत्यधिक कमजोर व लंबे (लगभग 14 फुट) लंबे थे। फ्रांस की गुफाओं में पूर्व पाषाण (प्लेयोलिथिक) काल में शिकारी मानव ने इनके भित्ति चित्र बनाए हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि यह जंतु यूरोप से अफ्रीका एवं एशिया की ओर भोजन व अनुकूलन हेतु प्रस्थान कर गए। मैमथ हिम युग के समाप्त होने और बर्फ के खिसकने पर भोजन की खोज में उत्तर की ओर बढ़ा और वहाँ की दलदली भूमि में अपने भारी शरीर के कारण धँस गया और वहीं दलदल के साथ जम गया।एलिफैन्टिडी की शेष सभी जातियां हिमयुग में विलुप्त हो गईं। मैमथ का बौना स्वरूप 2000 ई.पू.(4500 वर्ष पूर्व) तक जीवित रहा।
सफेद हाथी -(थाई भाषा में एल्बिनो)
म्यांमार व थाईलैंड में पाए जाने वाले सफेद हाथी की त्वचा गुलाबी अथवा सिर, धड़ या अगले पैरों पर गुलाबी धब्बे, आँखें पीली, बाल एवं नाखून सफ़ेद होते हैं जिसे एल्बिनो या चांग फुएक कहते हैं। यह हाथी की दुर्लभ जाति है। सफेद हाथी शक्ति का प्रतीक हैं। इसे सफ़ेद हाथी कहा जाता है पर होता गुलाबी है। इसकी त्वचा आमतौर पर नरम लाल-भूरे रंग की होती है, जो गीली होने पर हल्के गुलाबी रंग की हो जाती है। इनकी पलकें और नाखून गोरे होते हैं। पारंपरिक सफ़ेद हाथी को एल्बिनो समझ लिया जाता है। थाई शब्द चांग समखान का अर्थ शुभ हाथी के रूप में किया जाता है, जो शुद्धता का प्रतीक (सफ़ेद) होता है। 2023 तक म्यांमार में दस सफ़ेद हाथी थे। थाईलैंड के राजा भी कई सफ़ेद हाथी रखते हैं।
सफेद हाथी सनातन धर्म में -
पुराणों में भगवान इंद्र व शची( बौद्ध देवताओं में शक्र) का वाहन उड़ने वाला पांच सर वाला सफेद हाथी ऐरावत नामक सफेद हाथी है। ऐरावत का उदय तब हुआ जब ब्रह्मांड का निर्माण राक्षसों और देवताओं द्वारा दूध के सागर के मंथन से हुआ था। परिणामस्वरूप ऐरावत को एक पवित्र सफेद हाथी के रूप में दर्शाया गया है आमतौर पर भारत में चार दाँतों के साथ और कभी-कभी दक्षिण पूर्व एशिया में पाँच सिरों के साथ। सफेद हाथी को दिव्य प्राणी के रूप में पूजा जाता है। इसे श्री गज (लक्ष्मी का हाथी), मेघ (बादल), या गज लक्ष्मी (हाथियों की लक्ष्मी) कहा जाता है।
राजा बिम्बिसार के पास सेचनाक (शब्दार्थ - पानी देने वाला) नामक सफ़ेद हाथी था। यह हाथी पौधों को पानी व अन्य कम करता था। देता था। बाद में उन्होंने इसे अपने बेटे विहल्लकुमार को दे दिया जिससे उनके दूसरे बेटे अजातशत्रु को जलन होने लगी। अजातशत्रु ने इसे कई बार चुराने की कोशिश की, इस कारण दो बार भीषण युद्ध हुए, जिन्हें महा शिलाकंटक व रथ मूसल युद्ध कहा जाता है।
सफेद हाथी बौद्ध धर्म में -
महात्मा बुद्ध के जन्म की कहानी में सफेद हाथी का बड़ा महत्व है। कहानी के अनुसार महात्मा बुद्ध के मां माया के गर्भ में ठहरने के दिन मां माया को सपना आया कि छह सफेद दाँतों वाला सफेद हाथी उसके दाहिने हिस्से में प्रवेश कर गया। सपने के अनुसार ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि यह बच्चा चक्रवर्ती व्यक्ति बनेगा।
दक्षिण पूर्व एशिया के बौद्ध देशों में सफेद हाथी बौद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान से घनिष्ठ रूप से संबंधित था। सफेद हाथी (सक्क/शक्र) का मेरु पर्वत के मुख्य देवता (चक्कवट्टी/चक्रवर्ती) धर्मी राजा (धम्मराज/ धर्मराज) के साथ घनिष्ठ संबंध था। सफेद हाथी दक्षिण पूर्व एशियाई में राजशाही का प्रतीक था। सफेद हाथियों को प्राप्त करने हेतु थाईलैंड और बर्मा के राज्यों में हाथी युद्ध हुए। थे। अयुत्या ने ताउन्गू व कोनबाउंग राज्यों से युद्ध लड़े। अराकानी और बर्मी राजाओं ने सफेद हाथियों के स्वामी की उपाधि धारण की।
मुस्लिम इतिहास में सफेद हाथी -
सासानी राजा खुसरो द्वितीय की सेना में सफ़ेद हाथी थे। अल-तबारी के अनुसार एक सफ़ेद हाथी ने पुल की लड़ाई में अरब कमांडर अबू उबैद अल-थकाफी को मार डाला। सफ़ेद हाथियों को अरबों द्वारा राजसी माना जाता था और खलीफ़ाओं के लिए सवारी के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। पांचवें अब्बासिद खलीफा हारुन रशीद ने अबुल-अब्बास नामक सफ़ेद हाथी शारलेमेन को उपहार में दिया।
सफेद हाथी का ऐतिहासिक महत्व -
राजाओं की स्थिति का मूल्यांकन उनके कब्जे में सफेद हाथियों की संख्या से किया जाता है। दिवंगत राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के पास 21 सफेद हाथी थे जिसके कारण वह थाई इतिहास में सबसे अधिक संख्या में चांग फुएक के मालिक सम्राट बने।
लाओस साम्राज्य की शाही मोहर पर ऐरावत (सक्का पर्वत/हाथी) अंकित था।
म्यांमार में सफेद हाथी को ह्सिन्फ़्युडॉ कहा जाता है। यह अच्छे शगुन, शक्ति और सौभाग्य के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं। प्राचीन काल में सफेद हाथी की खोज करने वाले राजा को अलौकिक राजा माना जाता था। प्राचीन समय में निम्न श्रेणी के सफ़ेद हाथी राजा के मित्रों और सहयोगियों को उपहार के रूप में दिए जाते थे। इनको अत्यधिक देखभाल की ज़रूरत होती थी और पवित्र होने के कारण, उन्हें काम पर नहीं लगाया जा सकता। इसलिए प्राप्तकर्ता पर बहुत ज़्यादा वित्तीय बोझ पड़ता। केवल राजा या धनपति ही उन्हें खरीद सकते थे। राजा द्वारा सफ़ेद हाथियों को कभी-कभी दुश्मन को उपहार के रूप में दिया जाता था। दुश्मन को इससे कोई लाभ नहीं होता और रखरखाव के कारण उसे दिवालियापन और बर्बादी का सामना करना पड़ता। एशिया की तुलना में अफ्रीकी हाथियों में एल्बिनो बहुत दुर्लभ हैं। वे लाल-भूरे या गुलाबी रंग के होते हैं, और सूरज के संपर्क में आने से अंधेपन या त्वचा संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं। थाई राजा भूमिबोल के शासन काल में पाया गया पहला सफेद हाथी पूरे राज्य में सबसे महत्वपूर्ण हाथी माना गया।इसे शाही उपाधि फ्रा सेवेट अदुल्यादेज पाहोल भूमिबोल नवनत्त-परमी दी गई।
हाथियों का क्यान-इन लेखाना (हाथी के दाँत, पीठ, कान, आँख, नाखून, त्वचा एवं पूंछ) के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था। वर्ष 2009 में सैन्य शासन ने 5000 कीमत के म्यांमार क्यात बैंक नोट में सफेद हाथी की फोटो छापी।
24 जुलाई 2022 को, राखीन क्षेत्र के ताउंगुप कस्बे में रथानन्दका नामक सफेद हाथी का जन्म हुआ। वर्ष 2023 के स्वतंत्रता दिवस समारोह की यादगार में विशेष डाक टिकट और सोने के सिक्के जारी किए गए।
वर्तमान में जीवित सफेद हाथियों के नाम -
1. राजगाह सीरिपक्काय गजराज - 20 जनवरी 2000 को खोजा गया 25 वर्षीय नर सफेद हाथी, रखाइन प्रांत के राथेदांग कस्बे में।
2. सिगीमला - 28 जनवरी 2002 को खोजी गई 23 वर्षीय मादा सफेद हाथी। रखाइन के माउंगडॉ कस्बे में।
3. रतिमाला - 18 जुलाई 2002 को खोजी गई 22 वर्षीय मादा सफेद हाथी। रखाइन प्रांत के माउंगडॉ कस्बे में।
4. भद्दावती - 26 जून 2010 को खोजी गई 14 वर्षीय मादा सफेद हाथी। रखाइन प्रांत के माउंगडॉ कस्बे में। भद्दावती शब्द का अर्थ है अच्छाई से भरा)
5. नंदावती - 23 सितंबर 2010 को खोजी गई 14 वर्षीय मादा सफेद हाथी। रखाइन प्रांत के माउंगडॉ कस्बे में।
6. नग्वे सददान - 15 अक्टूबर 2011 को खोजा गया 13 वर्षीय नर सफेद हाथी। रखाइन प्रांत के माउंगडॉ कस्बे में।
7. हेमावती - 25 अक्टूबर 2011 को खोजी गई 13 वर्षीय मादा सफेद हाथी। अयेयारवाडी प्रांत के न्ग्वेसांग कस्बे में।
8. जातकल्य - 27 नवंबर 2011 को खोजी गई 13 वर्षीय मादा सफेद हाथी। नेपीडॉ में।
9. सिरिमला - 27 फरवरी 2015 को खोज की गई 9 वर्षीय मादा सफेद हाथी। अय्यरवाडी प्रांत के पाथेन कस्बे में।
10. रथानंदका - इस नर सफेद हाथी का जन्म 24 जुलाई 2022 में रखाइन प्रांत के ताउंगुप में हुआ। इसका शाब्दिक अर्थ है देश की खुशी।
हाथियों में प्रजनन -
मादा हथिनी में मासिक धर्म चक्र तीन से चार महीनों तक चलता है। भूमि पर स्तनधारी जीवों में हाथी का गर्भ काल (22 महीने) एवं मासिक धर्म चक्र सर्वाधिक होता है। जन्म के समय ही हाथी का बच्चा एक क्विंटल से अधिक होता है। मादा हथनी एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है। यह अपने बच्चे को दो साल तक दूध पिलाती है। झुंड में बच्चे को शेरों का शिकार होने के डर से हथिनी टांगों के नीचे रखती है।
हाथी की आयु -
सामान्य परिस्थितियों में हाथी 50 से 70 वर्ष तक जीवित रह सकता है। कई हाथियों की आयु 80 वर्ष से अधिक हुई है।
हाथी का वजन -
वर्ष 1955 में अंगोला में एक नर का वज़न लगभग 10,900 किलो, ऊँचाई 3.96 मीटर दर्ज की गई जो आज तक का ज्ञात सबसे विशाल हाथी है। यह सामान्य अफ़्रीकी हाथी से लगभग एक मीटर अधिक लंबा है। सबसे छोटे हाथी यूनान के क्रीट द्वीप में पाये जाते थे जो सूअर के आकार के होते थे। वर्तमान में यह लुप्त हो गए हैं।
हाथी और पानी (नहाना) -
नहाने के बाद अपने गीले शरीर में हाथी सूंड से मिट्टी छिड़क लेता है जो सूखकर उसकी त्वचा के ऊपर पपड़ी का रूप ले लेती है और उसकी तेज़ धूप तथा परजीवियों से सुरक्षा करती है। हाथी जन्मजात अच्छा तैराक होता है।
हाथी की सूंड - (ट्रंक)
सूंड हाथी की नाक और उसके ऊपरी होंठ की संधि है। सूंड संचार, भोजन तोड़ने, पानी छिड़क कर उसे ठंडा रखने, भारी सामान उठाने और शिकारियों या अन्य हाथियों के आक्रमण से बचाव करती हैं।
एशियाई हाथियों की सूंड में केवल एक ही उभार होता है जबकि अफ्रीकी हाथी की सूंड में दो उभार होते हैं। हाथी की सूंड इतनी संवेदनशील होती है कि घास का एक तिनका उठा सकती है, दूसरी तरफ़ इतनी मज़बूत होती है कि बड़े पेड़ की टहनियाँ तोड़ लेता। पेड़ पर लगे फल सूंड की पहुँच से परे हों तो हाथी अपनी सूंड को पेड़ के तने या शाखा में लपेटकर ज़ोर से झिंझोड़ता है ताकि फल इत्यादि नीचे टपक जाये या कभी-कभी पूरे का पूरा पेड़ ही उखाड़ देता है। हाथी सूंड का इस्तेमाल पानी पीने के लिए भी करता है। हाथी पहले अपनी सूंड में एक बार में करीब 14 लीटर पानी भर लेता है और फिर उसे अपने मुँह में उड़ेल देता है। नहाने के लिए भी हाथी इसी विधि का इस्तेमाल करता है। सूंड हाथी के सामाजिक कार्यकलापों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। संबन्धी अपनी सूंडें एक दूसरे से लपेटकर अभिवादन करते हैं (मनुष्य के हाथ मिलाने की तरह) इसका इस्तेमाल वह खेल (कुश्ती) में, मिलन से पहले, माँ तथा बच्चे के सम्बन्ध में तथा अन्य कार्यकलापों में भी करते हैं। उठी हुई सूंड चेतावनी या धमकी हो सकती है जबकि सिर नीचे करके झुकी हुई सूंड समर्पण का संकेत होती है। दुश्मन को हाथी अपनी सूंड से लपेटकर फेंक सकता है। हाथी की सूंड में मनुष्य से कई गुणा अधिक घ्राण शक्ति होती है और वह अपनी सूंड ऊपर उठाकर तथा दाहिने बायें समुद्री दूरबीन (पॅरिस्कोप) की तरह लहराकर अपने खाद्य स्रोत, मित्र या शत्रु का पता लगा लेता है। पानी में तैरते समय हाथी अपनी सूंड का इस्तेमाल स्नॉरकॅल की तरह करता है।
हाथी के कान -
हाथी के कान बड़े होते हैं जिनकी सुनने की क्षमता अविश्वसनीय होती है। हाथी मानव के लिए अश्रव्य कई आवृत्तियों (इन्फ्रासोनिक) ध्वनि सुन सकता है। हाथी बहुत तेज़ आवाज़ भी निकाल सकते हैं जिसे चिंघाड़ कहते हैं। कान द्वारा हाथी अपने शरीर पर मक्खी आदि को बैठने से रोकता है व शरीर की ओर हवा का प्रवाह कर उसे शीतलता प्रदान करता है।
हाथी का आकार
नर अफ़्रीकी बुश हाथी के कंधे की ऊंचाई 13 फीट, मादाओं की लंबाई 8 फीट 6 इंच होती है। जीवित हाथी प्रजातियों के बीच आकार में कुछ भिन्नता है, विशेष रूप से अफ़्रीकी एशियाई हाथी से बड़ा होता है।
हाथी के पैर -
हाथी अपने संवेदनशील पैरों से भूकंपीय संकेतों का पता लगा सकते हैं। भूकंपीय गतिविधियों को महसूस करने में उसके कान का आंतरिक भाग भी शामिल है।
हाथी के दांत - (टस्क) -
हाथी के खाने के दांत अंदर और लड़ाई के दांत बाहर होते हैं। यह जीवन भर बढ़ते रहते हैं। हाथी के दांतों की लंबाई से उसकी आयु की गणना की जा सकती है। वयस्क नर के दाँत लगभग 18 सेमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ते रहते हैं। यह बहुत मूल्यवान होता है। हाथी का ज्यादातर शिकार इसके दांतों के कारण ही होता है। हाथी दांत से सेक्स संबंधी दवाइयां, शृंगार प्रसाधन एवं सजावटी सामान बनाया जाता है।
हाथी के दाँत उसके ऊपरी छेदक दाँत होते हैं। हाथी दाँत पानी, लवण तथा मूल खोदने के काम आते हैं। इसके अलावा पेड़ों की छाल छीलने और अपने लिए रास्ता तैयार करने में भी हाथीदाँत का बड़ा योगदान होता है। इसके अलावा हाथी अपना क्षेत्र बताने हेतु दाँत से पेड़ों में निशानदेही करता है। कभी कभार यह हथियार के रूप में इस्तेमाल में लिए जा सकते हैं। हाथी अपने दांतों का उपयोग मनुष्य की तरह (दायाँ या बायाँ हाथ की तरह) दायां या बायाँ दाँत इस्तेमाल करता है। मुख्य दाँत थोड़ा छोटा होता है और उसके छोर अधिक उपयोग के कारण गोल होते हैं। नर और मादा अफ़्रीकी हाथी के लम्बे हाथीदाँत होते हैं जो वयस्क अवस्था में ३ मीटर लम्बे और 45 किलो वज़नी हो सकते हैं। एशियाई हाथियों में सिर्फ़ नर के लम्बे दाँत होते हैं। मादा के बहुत छोटे या नहीं होते हैं। एशियाई नर के अफ़्रीकी नर जितने लम्बे दाँत हो सकते हैं लेकिन वह बहुत पतले और हल्के होते हैं। हाथीदाँत में नक्काशी सरलतापूर्वक हो जाती है अतः कलाकारों ने इसे महत्ता दी।
अन्य स्तनपाइयों की तुलना में हाथी के दाँतों की रचना बिल्कुल अलग होती है जिनकी संख्या 28 होती है।
दो ऊपरी द्वितीय छेदक (टस्क) जिन्हें हाथी दाँत कहते हैं। हाथी के मुंह में पूर्व विकसित दूध के दाँत, 12 अग्र चर्वणक, जबड़े के हर तरफ़ तीन। अन्य स्तनपाइयों के विपरीत, जिनके दूध के दाँत झड़ने के बाद स्थाई दाँत आ जाते हैं, हाथी के दाँत निरन्तर बदली होते रहते हैं। लगभग एक वर्ष की आयु में हाथीदाँत के अग्रगामी दूध के दाँत झड़ जाते हैं और हाथीदाँत उगने लग जाते हैं। किन्तु चबाने वाले दाँत (अग्रचर्वणक तथा चर्वणक) एक हाथी की आयु में क़रीब पाँच बार बदली होते हैं। एक बार में केवल चार चबाने वाले दाँत (अग्रचर्वणक/चर्वणक), एक-एक दोनों जबड़ों के दोनों तरफ़, प्रयोग में लाये जाते हैं (या केवल दो क्योंकि जबड़े के हर हिस्से में दूसरा दाँत पहले को बदली कर रहा होता है)। मानव दाँतों के विपरीत पक्के दाँत दूध के दाँतों को ऊपर की तरफ़ से नहीं धकेलते हैं। नये दाँत मुख के पिछले भाग में उगते हैं तथा पुराने दाँतों को आगे की तरफ़ धकेलते हैं जहाँ पुराने दाँत टूट-टूट कर गिर जाते हैं। अफ़्रीकी हाथियों में जन्म से ही चबाने वाले दाँतों का सेट (अग्रचर्वणक) मौजूद होता है। जब बच्चा दो वर्ष का होता है तो दोनों जबड़ों के दोनों तरफ़ का पहला चबाने वाला दाँत गिर जाता है। यही प्रक्रिया दूसरे चबाने वाले दाँतों के समूह के साथ छः वर्ष की आयु में होती है। 13 से 15 वर्ष की आयु तक तीसरा दाँतों का समूह भी जाता रहता है, तथा चौथा समूह 28 वर्ष की आयु में झड़ जाता है। पाँचवा समूह हाथी की 40 वर्ष की आयु तक चलता है। छठा समूह हाथी के जीवन के अन्त तक चलता है। यदि हाथी 60 वर्ष से अधिक जीवित रहता है तो चर्वणक का आख़िरी समूह भी घिस कर ठूंठ जैसा रह जाता है तथा हाथी भली भांति खा भी नहीं सकता।
हाथी की खाल -
हाथी की चमड़ी 2.5 सेमी मोटी होती है। इसके शरीर का अधिकांश भाग अत्यंत कठोर होता है। मुंह और कान के भीतर के चारों ओर त्वचा पतली होती है। एशियाई हाथी की त्वचा पर अफ्रीकी अफ्रीकी हाथी से अधिक बाल होते हैं। युवा हाथी में यह फ़र्क अधिक नज़र आता है। एशियाई हाथी के बच्चों की त्वचा कत्थई रंग के बालों से ढकी रहती है। उम्र के साथ बाल गाढ़े रंग के होने के साथ-साथ कम होने लगते हैं, पर सर और पूँछ पर सदा रहते हैं।
हाथी लगभग स्लेटी रंग के होते हैं, लेकिन अफ़्रीकी हाथी अलग-अलग रंग की मिट्टी में लोटकर लाल या भूरे रंग के प्रतीत होते हैं। गीली मिट्टी में लोटना हाथी समाज की दिनचर्या का एक अभिन्न अंग है। न केवल लोटना सामाजिकरण के लिए अहम है बल्कि मिट्टी धूपरोधक का काम भी करती है और उसकी त्वचा को पराबैंगनी किरणों से बचाती है। हाथी की त्वचा कठोर होने के बावजूद संवेदनशील होती है। यदि वह नियमित रूप से मिट्टी का स्नान न करे तो उसकी त्वचा को जलने से, कीटदंश से और नमी निकल जाने से काफ़ी नुक़सान हो सकता है। मिट्टी में लोटने से त्वचा को हाथी के शरीर का तापमान नियंत्रित करने में मदद मिलती है। हाथी को अपनी त्वचा से शरीर की गर्मी निकालने में मुश्किल होती है, क्योंकि शरीर के अनुपात में त्वचा बहुत कम होती है। हाथी को टाँग उठाकर पैर के तलुओं को हवा देकर ठण्डा रखने की कोशिश करते देखा गया है।
हाथी के पैर एवं अनुकूलन -
हाथी के पैरों कि बनावट मोटे स्तंभों या खंभों के समान होती है। हाथी को अपनी सीधी टाँगों और बड़े गद्देदार पैरों की वजह से खड़े रहने में मांसपेशियों से कम शक्ति की आवश्यकता होती है। इसी कारण, हाथी बिना थके बहुत लंबे समय तक खड़े रह सकते हैं। अफ़्रीकी हाथियों को शायद ही कभी लेटे हुए देखा गया हो, सामान्यत: वे बीमार या घायल होने पर ही लेटते हैं। इसके विपरीत एशियाई हाथी अक्सर लेटना पसन्द करते हैं। हाथी के पैर लगभग गोल होते हैं। अफ़्रीकी हाथियों के प्रत्येक पिछले पैर पर तीन नाखून और प्रत्येक सामने के पैर पर चार नाखून होते हैं। भारतीय हाथियों के प्रत्येक पिछले पैर पर चार नाखून और प्रत्येक सामने के पैर पर पाँच नाखून होते हैं। पैर की हड्डियों के नीचे एक कड़ा, श्लेषी पदार्थ होता है जो एक गद्दे या शॉकर के रूप में कार्य करता है। हाथी के वज़न से पैर फूल जाता है, लेकिन वज़न हट जाने से यह पहले जैसा हो जाता है। इसी कारण से गीली मिट्टी में गहरा धँस जाने के बावजूद हाथी अपनी टांगों को आसानी से बाहर खींच लेता है।
हाथी के कान -
हाथी के कान की पिन्ना बीच में लगभग 2mm मोटी होती है, जिसका सिरा पतला होता है जो मोटे आधार से जुड़ा होता है। इनमें असंख्य रक्त वाहिकाएं होती हैं जिन्हें केशिकाएं कहा जाता है। गर्म रक्त केशिकाओं में प्रवाहित होता है, जिससे पर्यावरण में अतिरिक्त गर्मी निकल जाती है। कानों को आगे-पीछे फड़फड़ाने से यह प्रभाव बढ़ जाता है। बड़ी कान सतहों में अधिक केशिकाएं होती हैं, और अधिक गर्मी उत्सर्जित की जा सकती है। सभी हाथियों में से अफ्रीकी जंगली हाथी सबसे गर्म जलवायु में रहते हैं और उनके कान सबसे बड़े होते हैं। इनके कर्ण 1kHz तक कि आवर्ती सुनने मे सक्षम होते हैं।
हाथी की आंख -
हाथी की आंख बहुत छोटी होती हैं जिससे उसे सामने वाला अपने से बड़ा दिखाई देता है।
हाथी की बुद्धिमत्ता एवं प्रशिक्षण -
हाथी को बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है। यह स्मरण शक्ति तथा बुद्धिमानी के लिए प्रसिद्ध है। हाथी, डॉल्फ़िन व चिपेंजी से अधिक बुद्धिमान होते हैं। हाथी का शिकार दुष्कर है। मनुष्यों ने जंगली हाथी को पकड़ कर अच्छे प्रशिक्षण द्वारा सवारी, युद्ध, सामान ढोने एवं ऐश्वर्य के प्रदर्शन हेतु काम में लेना शुरू किया। सर्कस में हाथी साइकल चला सकता है, वह नाच सकता है और पोलो खेल में भाग ले सकता है।
हाथी का शिकार -
जंगल में हाथी का शिकार लगभग असंभव है, परन्तु कभी - कभी अकेले कमजोर या बच्चे का शेरों का झुंड मिलकर शिकार कर सकता है। अफ्रीकी आदिवासी बड़ी दावत के लिए हाथी का शिकार करते हैं। अधिक शिकार के कारण हाथी संकटग्रस्त प्राणी की श्रेणी में है। हाथीदाँत के अवैध शिकार तथा हाथी के मांस के लिए उनका धड़ल्ले से शिकार किया जा रहा है।
हाथियों की आबादी -
वर्ष 1995 में हाथीदाँत के व्यापार पर पाबन्दी लगाने के बाद अफ्रीका के जंगलों में इनकी संख्या ढाई गुना (80000 से बढ़कर 200000) हो गई है। दक्षिण अफ़्रीका में इनकी बढ़ती संख्या के कारण जंगल से आबादी क्षेत्रों की ओर आने व हमलावर होने के कारण वर्ष 2008 में यह पाबंदी हटा ली गई। एशियाई हाथियों की वर्तमान आबादी 60000 (43000 जंगली व 17000 पालतू) आंकी गई है जो अफ़्रीकी हाथी से कम है। लगभग एक हज़ार हाथी सर्कस या चिड़ियाघर में बंद हैं।जंगलों पर मानव के पदार्पण अथवा शिकार के कारण एशियाई हाथीयों की संख्या अफ़्रीकी हाथी की तुलना में ज्यादा तेज़ी से गिरी है। श्रीलंकाई हाथियों की संख्या लगभग 4000 बची है।
सुमात्रा के हाथियों की संख्या लगभग 2500 बची है।
वर्तमान में हाथी एक लुप्त होती प्रजाति के रूप में पंजीकृत है।
राजस्थान में हाथी -
राजस्थान की जलवायु हाथी के अनुकूल नहीं है फिर भी यहां हाथी सदियों से पाले जाते हैं। जयपुर में हाथी वालों का मोहल्ला (महावतों का मोहल्ला) बसा हुआ है जिनका पुश्तैनी काम हाथी पालना है। हाथी पालने के लिए बच्चे के पैरों को मजबूत रस्सी से बांध दिया जाता है जिसे तुड़वाने की कोशिश में पैरों पर निशान पड़ जाते हैं। नाकाम रहने के कारण युवा हाथी अब तुड़वाने की कोशिश नहीं करता है। महावत एक पतली सी डोरी से भी हाथी के पैर बांध दे तो वह उसे मोटा रस्सा समझ कर तुड़वाने की कोशिश नहीं करता है। हाथी को काबू में रखने के लिए लौह का बना नुकीला हथियार होता है जिसे अंकुश या अंकश कहते हैं।
अंकुश
जयपुर में हाथियों के लिए हाथी गांव आमेर किले से 3.7 किलोमीटर दूरी पर बसाया गया है जो भारत का प्रथम व विश्व का तीसरा हाथी गांव है। यहां हाथियों के लिए विशेष अनुकूलन व्यवस्था की गई है।
यहां हाथियों को रखने के लिए बड़े-बड़े कमरे एवं तालाब बनाए गए हैं। यहां से जयपुर शहर एवं आमेर किले की सवारी की जा सकती है। पैसे वाले लोग हाथी पर बैठा कर दूल्हे की निकासी निकालते हैं। अधिक खर्च एवं कम आमदनी के कारण महावत लोग धीरे - धीरे हाथी पालन व्यवसाय से निकल रहे हैं।
शमशेर भालू खां
9587243963
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