Monday, 10 February 2025

✅खच्चर

खच्चर एवं बेसर - 
खच्चर - 
खच्चर पैदा करने के लिए जैक को अक्सर मादा घोड़ी के साथ जोड़ा जाता है। नर घोड़े (स्टैलियन) और जेनी का आम संकरण हिनी है। 
खच्चर, यह बेसर के समान है जिसका जन्म एक घोड़ी और गधे के मिलन से होता है। घोड़ा और गधा पृथक प्रजाति हैं और इनमें गुणसूत्रों की संख्या भी भिन्न होती है। जहाँ गधे में 62 गुणसूत्र होते हैं वहीं घोड़ों में इनकी संख्या 64 होती है। खच्चर को आमतौर पर बोझा ढोने के काम में लाया जाता है। औद्योगीकरण से पहले खच्चर सामान को लाने ले जाने में बड़ी भूमिका निभाया करते थे। सभी नर खच्चर बंध्य होते हैं, जबकि मादा खच्चर अपवाद में गर्भधारण कर सकती हैं। खच्चर का आकार इसको जन्म देने वाली घोड़ी के आकार पर निर्भर करता है। यह घोड़े और गधे दोनों के गुणों से भरपूर होते हैं और कठिन परिस्थितियों में भी कुशलता से काम करते हैं।
खच्चरों का शरीर घोड़े जैसा कान गधे जैसे लंबे, सर बड़ा, बाल और रंग घोड़ों और गधों की तरह अलग-अलग हो सकते हैं।

खच्चर से संबंधित लोकोक्तियां व मुहावरे -
खच्चर गधी दाम दे पहले खाए अब दे - पूर्व में किए गए बुरे कामों की भरपाई करना।

खच्चर के पर्यायवाची शब्द -
दुम्बरा, कच्छप, जैक, खचरी

खच्चर का वैज्ञानिक वर्गीकरण -

वैज्ञानिक वर्गीकरण
पशु - पालतू
जगत - जंतु
संघ - रज्जुकी (कार्डेटा)
वर्ग - स्तनधारी
गण - पेरिसोडक्टाइला
कुल - ऐकवेडी
वंश - ऐकव्स
जाति - ऐकव्स एशिनस x ऐकव्स कैलेबस
द्विपद नाम - कोई नहीं
ऐकव्स म्यूलस

खच्चर का इतिहास - 
खच्चर, घोड़ी और नर गधे के मिलन से पैदा होने वाली संकर नस्ल है जो प्राचीन काल से ही मानव समाज का हिस्सा रहे हैं।
इनका प्रजनन 3000 ईसा पूर्व तुर्की व मिस्र में शुरू किया गया। इनका मुख्य काम बोझ ढोना रहा है। खच्चरों को माता-पिता दोनों की सर्वोत्तम विशेषताओं को सामने लाने के लिए पाला जाता है. 
खच्चर बांझ संकर होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे अपने माता-पिता दोनों से विशेषताएं प्राप्त करते हैं, लेकिन प्रजनन करने में असमर्थ होते हैं। युद्ध में जटिल क्षेत्रों में खच्चरों द्वारा रसद व आयुध सामग्री पहुंचाई जाती रही है। मशीनीकरण ने खच्चरों और उनकी उपलब्धियों को ग्रहण लगा दिया।

बेसर -
बेसर घोड़े और गधी के मिलन से उत्पन्न संकर संतान है। यह खच्चर के समान है जिसका जन्म एक गधी और घोड़े के मिलन के परिणामस्वरूप होता है। खच्चर के बनिस्बत किसी बेसर का जन्म एक दुर्लभ घटना होती है। सभी नर बेसर बंध्य होते हैं, जबकि मादा बेसर अपवाद स्वरूप गर्भधारण कर सकती हैं। बेसर का मुंह घोड़े जैसा एवं शरीर गधे जैसा होता है।

बेसर से संबंधित लोकोक्तियां व मुहावरे -

बेसर के पर्यायवाची शब्द -

बेसर का वैज्ञानिक वर्गीकरण -
जगत - जंतु
संघ - रज्जुकी (कार्डेटा)
वर्ग - स्तनधारी
गण - पेरिसोडेक्टाइला
कुल - इक्विडी
वंश - ऐकव्स
जाति - ऐकव्स कैलेबस x ऐकव्स एशिनस
द्विपद नाम - कोई नहीं
ऐकव्स म्यूलस

वर्तमान स्थिति - 
भारत में हर छह साल में पशुओं की गणना होती है। पशुगणना 2019 में के अनुसार 5 लाख 40 हज़ार अश्व (घोड़े, टट्टू,गधे और खच्चर) थे, जिनकी संख्या पशुगणना 2012 में 11 लाख 40 हजार थी अर्थात्  सात वर्ष में इनकी संख्या में 51.9% (छः लाख) की गिरावट दर्ज की गई।
बढ़ते मशीनीकरण, आधुनिक वाहन और ईट-भट्ठों में काम न मिलने के कारण लोगों ने इन्हें पालना कम कर दिया। इसका एक कारण चीन को गधों की तस्करी भी है जहां इनकी खाल की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिसका उपयोग दवा बनाने में किया जाता है। आंकड़ों के मुताबिक खच्चरों की संख्या में जम्मू कश्मीर में 54 फीसदी, उतराखंड में 2 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 12 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 59 फीसदी गिरावट आई है। 
21वीं पशु गणना का कार्य अभी अक्टूबर से चल रहा है जिसमें पोल्ट्री से लेकर सभी प्रकार के 219 नस्ल के पशुओं की गणना की जा रही है।

पशु मेले और कम होता व्यापार - 
भारत के कई राज्यों में पशु मेले लगते हैं, जिसमें लगातार घोड़े, गधे और खच्चरों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के देवा व राजस्थान के पुष्कर (अजमेर) के मेलों में इनकी घटती संख्या का नजारा साफ देखा गया। अब यहां गाय व भैंस ही अधिक आते हैं।
बाराबंकी जिले के देवा में हाजी वारिस अली शाह के पिता कुर्बान अली शाह की याद में प्रति वर्ष मेला लगता है। इस मेले के शुरू होने के एक हफ्ते पहले ही यहां घोड‍़े, गधे और खच्चरों दूर - दूर से आए व्यापारियों के पशुओं से बाजार सज जाता था जहां अब वो रौनक नहीं रही।
ट्रेक्टर ट्राली, पिक - अप, ऑटो, कैम्पर ने इनकी जगह ले कर उपयोगिता नगण्य कर दी। इसके साथ ही लगातार घट रही चरागाह भूमि व महंगे चारे के कारण अब लोग इनको पालने से कतराने लगे हैं। खेतों में ब्लेड एवं करंट वाले तारों के कारण  चरते - चरते पशु घायल हो जाते है। बाजार में भूसा, चोकर महंगा हो गया है। पहाड़ी क्षेत्रों में टट्टू और खच्चरों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अब धीरे-धीरे वहां भी संख्या घट रही है। मेरे गांव में पहले लगभग हर घर में ऊंट या बैल हुआ करते थे परंतु आज 1000 घरों में केवल 5 ऊंट बचे हैं। घोड़े, खच्चर एवं गधे जो सैकड़ों में थे आज शून्य हो गए हैं।
   मेले में बिकवाली हेतु लाए गए पशु

संरक्षण प्रयास - 
इन पशुओं को विलुप्त होती प्रजाति में शामिल किया गया है। भारत से इनके निर्यात पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया गया है। इन पशुओं की तस्करी को अवैध घोषित कर दंडनीय किया गया है। 
उत्तर प्रदेश में ब्रुक संस्था यह कार्य कर रही है।

शमशेर भालू खां
9587243963

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