जन्म = भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी विक्रम संवत 1003
राव घन्घराय जी जो कुचेरा इलाके शासक अरिहन्त मुनिजी के पोते थे। जिन्होंने 10वीं सदी के आस पास अपने नाम से स्वतंत्र रियासत घान्घू नामक ठिकाने की स्थापना की। इन्होंने दो शादियाँ की जिसमे दोनों राणियों के नाम व पीहर पक्ष ठिकानों का पता नहीं चलता और दोनो राणियों से उनको छः सन्तान प्राप्त हुई जिनके नाम इस प्रकार हैं।
हर्ष (लोकदेवता)
हरकरण (अल्पायु में मृत्यु)
जीण ( लोकदेवता)
कान्हराज ( घान्घू ठिकाने के नए राजा)
चन्द्रराज ( इनके वंशज हरियाणा क्षेत्र में निवास करने लग गए)
इन्द्रराज ( इनके वंशज साउथ राजस्थान व कुछ उत्तरप्रदेश राज्यों में निवास करते हैं।
राव घान्घराय की मृत्यु के पश्चात कान्हराज स्वयं गद्दी पर बैठ गए
इस कारण जीण और हर्ष दोनों ने गृहत्याग किया। हर्ष व जीण की माता का निधन अल्पायु मे हो चुका था कान्हराज दूसरी रानी का पुत्र था। राजा ने नयी रानी के आसक्त में आकर कान्हराज को पहले से युवराज घोषित कर दिया था। जीण व हर्ष दोनो ने गृहत्याग कर अरावली की काजलसीकर पहाड़ियों में रेवांसा स्थान पर इश्वरीय ध्यानमग्न किया।
कान्हराज के चार पूत्र हुए।
अमरराज (स्वतंत्र रूप ददरेवा नामक ठिकाने की स्थापना की)
अजरराज ( वंशज चाहिल चौहान कहलाए बांगड़ क्षेत्र में राज रहा)
सिद्धराज ( वंशज जोहड़ चौहान कहलाए झून्झूनू क्षेत्र में राज रहा)
बच्छराज ( वंशज मोहिल चौहान कहलाए छापर द्रोणपूर व लाडनूँ के क्षेत्र में शासन किया )
अमरराजजी ने ददरेवा ठिकाने की स्थापना की व घान्घू हमेशा के लिए अपने भाइयों हेतू छोड़ दिया। उनके एक ही पूत्र हुआ।
जेवरचन्द।
जेवरचन्द 980 ई. के आस पास ददरेवा की गद्दी पर बैठे सही समय उपलब्ध नहीं हैं।
जेवरचन्द जी की शादी सिरसा के राव उमर सिंह की पुत्री बाछल दे सें हुई जिनकी कोख से 4 सन्तानो का जन्म हुआ।
गोगाजी
राव बैरसीजी
राव शेष मल
राव धूहड़
जेवरचन्द के पश्चात गोगाजी ददरेवा के राजा बने और उन्होंने साहरणपूर (उत्तरप्रदेश) की सुरियल कंवर से शादी की।
[कुछ इतिहासकारों का मानना है कि पाबूजी राठौड़ की भतीजी केलमदे से गोगाजी की शादी हुई लेकिन इतिहासिक तिथियाँ इसको सही साबित नहीं कर रही है गोगाजी पाबूजी से 250 साल पहले हुए थ]
विक्रम संवत 1003 से लेकर 1024 तक मोहम्मद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। विक्रम संवत 1023 में उन्होंने तारागढ़ अजमेर के राजा अजयराज पर आक्रमण किया कई दिनों तक किले की घेराबन्दी की अन्त में वहाँ से अपना डेरा उठाकर सोमनाथ की तरफ कुच किया।
गोगाजी को जब इस बात की खबर पड़ी तो अपना दल-बल सजाया और सोमनाथ की तरफ निकल चुके थे गोगाजी की आयु उस समय महज 70 साल के आस - पास थी। उन्होंने अपने पूरे परिवार को इसी युद्ध में गंवा दिया। इस लडाई में गोगाजी अपनी पूरी शक्ति के साथ लड़े युद्ध में अपने परिवार के 250 भाई भतीजे सहित वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में गोगाजी का सिर धड़ से अलग हो गया फिर भी मोहम्मद गजनवी को युद्ध से बाहर नहीं जाने दिया तब मोहम्मद गजनवी ने कहा यह गोगाजी नही जाहिरपीर है जिसका अर्थ है साक्षात देवता।
गोगाजी का सिर ददरेवा में गिरा और धड़ भादरा के जंगलो में गिरा इसलिए शिर्षमेडी ददरेवा और धूरमेडी गोगामेड़ी के नाम से जानी जाती हैं। दोनों कब्रें आज भी मौजूद है।
आगे की वंशावली कुछ इस प्रकार हैं :--
राव वैरजी
राव उदैराज जी
राव हरराज जी
राव बीजेराज जी
राव विथोरा जी
राव ललो जी
राव जाजन जी
राव गोपाल दास
राव जैतसी
राव रुपाल जी
राव तहतपाल जी
राव मोटा राय जी
मोटे राव जी चौहान के पूत्रों व कायमखानी कायमखानी समाज के बारे में पहले सें पोस्ट कर चुके हैं।
गोगामेडी मन्दिर निर्माण :-
कायम खाँ चौहान ने अपने क्षत्रिय विचार सदैव प्रबल रखे थे। सैयद नासिर की मृत्यु के बाद कायमखाँ हिंसार के गर्वनर बने थे तब 1363 - 64 इसवी के आस पास बादशाह ठठ्ठा पर विजय प्राप्त करने गए थे तब कायमखाँ को दिल्ली की रक्षा हेतू किलेदार नियुक्त करके गए | बादशाह की अनुपस्थिति का मौका पाकर मंगोलो ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया l कायमखाँ ने डटकर मुकाबला किया और मंगोलो को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। कायमखाँ ने उनसे ढेर सारा खजाना लूटकर बादशाह को सुपूर्द किया। इसी खुशी में तुगलक ने मन्दिर का निर्माण करवाया। महाराजा गंगासिंह के गंगा रिसाला में 33% कायमखानी थे इसलिए मन्दिर को आधुनिक स्वरूप दिया जिर्णोद्वार महाराजा गंगासिंह जी ने दिया।
मोटेराव चौहान का निधन 1350 - से 55 के बीच हो गया था तब कायम खाँ ने अपने बड़े भाई जसवन्त उर्फ जयचन्द व छोटे भाई जबरचन्द को अपने साथ हिंसार ले आए। दोनों भाईयों के साथ इस्लाम धर्म स्वीकार किया। जयचन्द /जैनुदीन खाँ व जबर चन्द / जबरूदीन खाँ बने।
बड़े भाई जैनूदीन खाँ को नारनोल का सुबेदार बनाकर कल्याणपुरा की जागीर बख्शी जिनके वंशज जैनाण गोत्र के कायमखानी कहलाते हैं।
छोटे भाई जबरचन्द उर्फ जबरुदीन खाँ को चरखी दादरी का शासक बनाया।
चायल पुजारी
चायल गोगाजी के दादाजी अमरराज के भाई अजरराज के वंशज हैं। फिरोजशाह तुगलक के समकालिन चायलो के पास 440 गाँवों की जागीरदारी थी यह क्षेत्र भादरा सिद्धमुख तो इधर हाँसी से लेकर डूंगरगढ़ के कुछ इलाकों तक था। यह पूरा का पूरा क्षेत्र चाहिलवाड़ा कहलाता था। बांगड़ का क्षेत्र चायलों के जागीरदारी के बीच में था इसलिए चाहिल लोगों ने शुरू से ही सेवा की।
[अरजन सरजन वाली कहानी बिल्कुल काल्पनिक है]
तस्वीर कायमखानी दिवस 2025 की हैं।
[ अरजन व सरजन की विशेषता काल्पनिक हैं ]
[ काछल व नेवर का काल्पनिक चरित्र है ]
[ केलमदे से शादी करना काल्पनिक चरित्र हैं ]
[ जीण बाईसा और पानी के घड़े की राड़ काल्पनिक ]
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🖌️ अल्लादीन खाँ गौराण
क्षत्रिय मूलनिवासी महासंघ प्रदेश उपाध्यक्ष राजस्थान
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