Friday, 8 August 2025

नेहरू परिवार

नेहरू - गांधी परिवार एक परिचय - 
नेहरू परिवार का सन् 1927 का चित्र खड़े हुए (बायें से दायें) जवाहरलाल नेहरू, विजयलक्ष्मी पण्डित, कृष्णा हठीसिंह, इंदिरा गांधी और रंजीत पण्डित
बैठे हुएः स्वरूप रानी, मोतीलाल नेहरू और कमला नेहरू

नारू (naroo) गांव बड़गांव कश्मीर
राष्ट्रीय राजमार्ग 1 के निकट स्थित नारू गांव जो राजेंद्र कौल का पुस्तैनी गांव है।

परिचय - 
उद्गमस्थान - नारू गांव, बड़गांव, जम्मू - कश्मीर 
1857 तक - दिल्ली
1857 के बाद - 
भरूच, गुजरात, भारत
प्रयागराज (इलाहाबाद)
1947 के बाद - नई दिल्ली 
सदस्य - 
1. राजेंद्र (राज) कौल - इनके बाद की पीढ़ियां नेहरू कहलाई।
2. गंगाधर नेहरू
3. नन्दलाल नेहरू
4. मोतीलाल नेहरू
5. बृजलाल नेहरू
6. रामेश्वरी नेहरू
7. जवाहरलाल नेहरू
8. विजय लक्ष्मी पंडित
9. उमा नेहरू
10. कृष्णा हठीसिंह
11. इन्दिरा गांधी
12. बृज कुमार नेहरू
13. नयनतारा सेहगल
14. श्याम कुमारी खान
15. फिरोज़ गांधी
16. राजीव गांधी
17. संजय गांधी
18. अरुण नेहरू
19. सोनिया गांधी
20. मेनका गांधी
21. राहुल गांधी
22. प्रियंका वाड्रा
23. रॉबर्ट वाड्रा
24. वरुण गांधी
25. यामिनी राय चौधरी
राज कौल - सामान्य परिचय 
नाम - राजेंद्र कौल
उपनाम - राज कौल
राज कौल-नेहरू
जाति - ब्राह्मण (कश्मीरी पंडित)
पारिवारिक पृष्ठभूमि - पहले शुद्ध सनातन परम्परा वाला परिवार धीरे - धीरे पश्चिमी रंग में ढलने लगा, इसी कारण कमला नेहरू को इस परिवार से समन्वय स्थापित करने में काफी मुश्किलें हुईं।
(आगामी पीढ़ियां नाहरू (गांव का नाम)  शब्द के अपभ्रंश से नेहरू कहलाई पुरानी दिल्ली में यह परिवार एक नहर के किनारे बसा जो नहरू कहलाते थे, से इस परिवार का नाम नेहरू पड़ गया। शशि थरूर के अनुसार जम्मू कश्मीर के बड़गांव क्षेत्र के नारू गांव के नाम से नारू शब्द नेहरू के रूप में प्रचलित हुआ)
मूल निवासी - नाहरू (जम्मू - कश्मीर)
निवास - पुरानी दिल्ली (1716 से)
जन्म - (1683 - 1719)
(मुगल बादशाह फर्रूखशियर का कालखंड)
पेशा - 
पंडित (संस्कृत एवं फारसी के विद्वान)
शिक्षक - पहले कश्मीर फिर दिल्ली में शिक्षक
राजेंद्र (राज) कौल का दिल्ली आना एवं कौल से नेहरू शब्द का प्रचलन - 
नाहरु नामक स्थान के निवासी राज कौल संस्कृत और फ़ारसी विद्वान थे जिन्हें 1716 में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने पुरानी दिल्ली में एक शिक्षक के रूप में भर्ती किया। यह परिवार जहाँ दिल्ली शहर की एक नहर के आस - पास बसे, तब से कौल परिवार नेहरू के नाम से जाना जाने लगा। नेहरू शब्द नहर का अपभ्रंश है। बाद में फिरोज को महात्मा गांधी द्वार गोद लेने पर इंदिरा नेहरू का नाम इंदिरा गांधी हुआ। राजेंद्र कौल नेहरू परिवार के सबसे शुरुआती ज्ञात सदस्य के रूप में जाने जाते हैं। कौल परिवार 1857 की क्रांति के बाद मुगलों के पतन के कारण अंग्रेजों के अत्याचार से बचने हेतु इलाहाबाद (प्रयागराज) आ बसे। इसी परिवार के ब्रज कुमार नेहरू के अनुसार , 1857 में दिल्ली से भागने से पहले नेहरू परिवार के रिकॉर्ड या तो खो गए थे या नष्ट हो गए थे। 
अपनी आत्मकथा में ब्रज कुमार ने कश्मीरी इतिहासकार मोहम्मद यूसुफ तांग के हवाले से बताया कि बादशाह फर्रुखसियर कभी कश्मीर नहीं गए। राजेंद्र कौल उस समय यहां के प्रतिष्ठित शिक्षक थे। दिल्ली के स्थानीय लोगों की मांग के अनुसार उन्हें कश्मीर से दिल्ली शिक्षण कार्य हेतु बुलाया गया। कश्मीर की घाटी पुस्तक के लेखक और कश्मीर के गांवों का अध्ययन करने वाले सर वाल्टर लॉरेंस के हवाले से ब्रज कुमार नेहरू ने लिखा है कि नेहरू नाम कश्मीर घाटी के गांव नाहरू से संदर्भित है। राज कौल को कश्मीरी पंडित के रूप में परिभाषित करने वाली चार पुस्तकों -  
1. द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी 
(लेखक - कैथरीन फ्रैंक)
2. नेहरू - ए कंटेम्पररी एस्टीमेट (1966)
(लेखक - वाल्टर क्रोकर)
3. एन ऑटोबायोग्राफी 
(लेखक - जवाहरलाल नेहरू, स्वयं की आत्मकथा) 
4. द इन्वेंशन ऑफ इंडिया
(लेखक - शशि थरूर 2003)
5. इंदिरा - द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी
(लेखक - कैथरिन प्रैंसक (ब्रिटिश नागरिक) में उद्धृत किया गया है। 
शशि थरूर के अनुसार नेहरू नाम जम्मू - कश्मीर के बडगाम क्षेत्र के नारू गांव से लिया गया है, आज भी अपने क्षेत्र से पलायन करने वाले लोग अपने सरनेम में अपने गांव का नाम जोड़ लेते हैं। ठीक इसी प्रकार ओम प्रकाश चौटाला जाति से सिहाग जाट, गांव चौटाला, मालिक मोहम्मद जायसी (जाति  मीर, निवासी जायस, उत्तर प्रदेश) चूरू पूर्व विधायक मकबूल मंडेलिया जाति से कसाई (खोखर) हैं पर मंडेला के निवासी होने के कारण मंडेलिया कहलाते हैं। 
चूरू के बड़े उद्योगपति गौरी शंकर मंडावेवाला वास्तव में गोयल बनिए हैं, परन्तु मंडावा झुंझुनू से आने के कारण मंडावेवाला कहलाते हैं। इसी प्रकार महनसर झुंझुनू से आने वाले महनसरिया कहलाए। जाटों में कई गोत्र हैं जो गांव के नाम से जानी जाती हैं, जैसे बुढ़ाना झुंझुनू से आने वाले बुडानिया कहलाए, तारानगर विधायक नरेंद्र बुडानिया। तेली मुसलमानों में सीकर से आने वाले तेली सिकरिया कहलाए। इसी प्रकार से नारू से नाहरू और नाहरू से अपभ्रंश शब्द नेहरू बना।
1857 के बाद परिवार बिखर गया कुछ लोग मारे गए, कुछ प्रयागराज (इलाहाबाद) चले गए और कुछ भरूच (गुजरात) में बस गए।
02. गंगाधर नेहरू - 
नाम - गंगाधर नेहरू 
पिता का नाम - 
माता का नाम - 
जन्म - 1827
मृत्यु - 10 फरवरी 1861
पत्नी - जियोरानी देवी
पेशा - 1857 में मुगल काल में दिल्ली के कोतवाल (मुख्य पुलिस अधिकारी) थे। (दिल्ली के अंतिम मुगल कोतवाल)
संतान -  
01. बंशीधर नेहरू भारत में विक्टोरिया का शासन स्थापित होने के बाद तत्कालीन न्याय विभाग में भारत के विभिन्न स्थानों में तैनात रहे।
02. नन्दलाल नेहरू, दस वर्ष राजस्थान की रियासत खेतड़ी के दीवान रहे, बाद में उन्होंने आगरा लौटकर कानून की शिक्षा प्राप्त की और फिर वहीं वकालत करने लगे। उनकी गणना आगरा के सफल वकीलों में की जाती थी। बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय बन जाने के कारण उन्हें मुकदमों के सिलसिले में अपना अधिकांश समय वहीं बिताना पड़ता था इसलिए वे अपने परिवार को लेकर स्थायी रूप से इलाहाबाद आ कर वहीं रहने लगे। इन्होंने प्रयागराज (इलाहाबाद) व कानपुर में वकालत की।
03. मोतीलाल नेहरू (दिल्ली के मशहूर वकील) वे बड़े भाई नन्दलाल नेहरू से अधिक प्रभावित थे। उन्होंने बड़े भाई के सहायक के रूप में कानपुर में ही वकालत आरम्भ की मोतीलाल बाद में प्रसिद्ध वकील बने।
दिल्ली से निर्वासन, आगरा पलायन - 
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बढ़ - चढ़ कर भाग लिया। इसी कारण अंग्रेज उन्हें और उनके परिवार को समाप्त कर देना चाहते थे। वो भेष बदल कर गयासुद्दीन गाजी के नाम से दिल्ली से आगरा पलायन कर गए।

03. मोतीलाल नेहरू - 
नाम - मोतीलाल नेहरू 
जन्म: 6 मई 1861
मृत्यु: 6 फ़रवरी 1931
जन्मस्थान - आनंद भवन, प्रयागराज (इलाहाबाद) 
मृत्यु - प्रयागराज (इलाहाबाद) 
पेशा - 
1. पहले कानपुर बाद में प्रयागराज (इलाहाबाद) में प्रसिद्ध अधिवक्ता 
2. कांग्रेस नेता
3. स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ता
 विशेष - 
जलियांवाला बाग काण्ड के बाद 1919 में अमृतसर में कांग्रेस के पहली बार अध्यक्ष बने और फिर 1928 में कलकत्ता में दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बने।

कमला कौल (बाद में कमला नेहरू)
नाम - कमला कौल
विवाह के बाद - कमला नेहरू
निवासी -  जम्मू कश्मीर 
जाति - कश्मीरी पंडित (कौल)
निवास - पुरानी दिल्ली
पिता का नाम -  पंडित जवाहरलाल मल (दिल्ली के प्रख्यात व्यापारी) 
माता - राजपति कौल 
जन्म - 01 अगस्त 1899 
जन्म स्थान - दिल्ली
सहोदर -
चंदबहादुर कौल (छोटा भाई)
कैलाशनाथ कौल (छोटा भाई)
स्वरूप कौल (काट्जू) (छोटी बहन)
विवाह - 8 फ़रवरी 1916 
पति - जवाहरलाल नेहरू 
स्वतंत्रता आंदोलन में पति का हर कदम साथ देने वाली कमला का 28 फ़रवरी 1936 को स्विट्जरलैंड में टी. बी. रोग का इलाज करवाते हुए हो गई, उनकी मृत्यु के समय जवाहरलाल नेहरू अल्मोड़ा जेल मे थे। 

आनंद भवन प्रयागराज (इलाहाबाद)- 
आनंद भवन, इलाहाबाद में स्थित नेहरू - गाँधी परिवार का पूर्व आवास है जिसका स्वतंत्रता आन्दोलन में विशेष स्थान रहा जो अब संग्रहालय के रूप में स्थापित है। मोती लाल नेहरू ने नए भवन का निर्माण करवा कर पुराने आवास को स्वराज भवन नाम देते हुए कांग्रेस मुख्यालय बना दिया। नेहरू और इंदिरा के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनायें यहीं घटित हुईं। 
आज़ादी से पहले आनंद भवन कांग्रेस मुख्यालय के रूप में रहा और उससे भी पहले राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र।
पंडित नेहरू ने 1928 में पूर्ण स्वराज की घोषणा करने वाला भाषण यहीं लिखा। 8 अगस्त के भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारूप यहीं पर बना, यहीं आजादी के आंदोलन के सभी ऐतिहासिक फैसलों की रूपरेखा बनी।
भूमि का इतिहास - 
1857 के प्रथम विद्रोह में वफ़ादारी के बदले स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन ने शेख़ फ़ैय्याज़ अली को 19 बीघा भूमि का पट्टा दिया जिस पर उसने यह बंगला बनवाया।
इलाहाबाद शहर के बूढ़े-बुज़ुर्गों तथा क़िस्से कहानियों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी किंवदंतियां चलती रहीं कि यह भूमि 1857 के विद्रोह में गद्दारी का इनाम था जिसकी क़ीमत  हज़ारों लोगों ने जान देकर चुकाई। आधा शहर खंडहर हो गया। इसका ज़िक्र जिले के गज़ेटियर में भी मिलता है। सन 1888 यह यह ज़मीन और बंगला जस्टिस सैय्यद महमूद ने खरीदा और फिर 1894 में राजा जयकिशन दास ने क्रय किया। मोतीलाल नेहरू ने 7 अगस्त 1899 में 20 हज़ार रुपए में यह बंगला राजा जयकिशन दास से ख़रीदा जहां यह एक मंज़िला भवन था।
1899 में मोतीलाल नेहरु ने चर्च लेन मोहल्ले में जो अव्यवस्थित इमारत खरीदी उसे थोड़ा ठीक कर आनन्द भवन नाम रखा गया।
इससे पूर्व नेहरू परिवार इलाहाबाद शहर के पुराने मुहल्ले मीरगंज में रहता था, जहां 14 नवंबर 1889 को स्थित कमान में जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ। यह परिवार अब मीरगंज से 9 एल्गिन रोड के बंगले में रहने लगा। 9 एल्गिन रोड़ बंगले में 10 वर्ष रहने के बाद आनंद भवन ख़रीदा गया और पूरा परिवार यहाँ आ गया। शहर के पुराने नक्शे में अब मीरगंज का वह मकान नहीं बचा। 1931 में सफाई अभियान में नगर पालिका ने उसे गिरा दिया। मेरी कहानी में नेहरू लिखते हैं कि पिताजी की कड़ी मेहनत और लगन से वकालत करने के परिणाम स्वरूप धड़ाधड़ मुक़दमें आने लगे और ख़ूब रूपया कमाया। 
मोतीलाल जी ने आनंद भवन में और निर्माण करवाए, पुराना आनंद भवन 1930 में स्वराज भवन बना दिया गया और नेहरू परिवार नए आनंद भवन में आ गया। स्वराज भवन कांग्रेस का घोषित दफ़्तर बन गया। सन 1942 के आंदोलन में ब्रिटिश सरकार ने स्वराज भवन को ज़ब्त कर लिया जो आज़ादी के बाद मुक्त हुआ। सन 1948 में कांग्रेस का मुख्यालय इलाहाबाद से दिल्ली स्थानांतरित हो गया। अब पंडित नेहरू ने स्वराज भवन को अनाथ बच्चों का बाल भवन बना कर अन्य सांस्कृतिक कार्यों हेतु न्यास का गठन किया।
इंदिरा गाँधी का जन्म आनंद भवन में हुआ। इंदिरा गाँधी ने विरासत में मिला आनंद भवन प्रधानमंत्री बनने के बाद एक नवंबर, 1970 को जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि को सौंप दिया। 1971 में आनंद भवन को एक स्मारक संग्रहालय के रूप में दर्शकों के लिए खोला गया। आनंद भवन स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है और रहेगा।
सन 1931 के बाद आनंद भवन का बदलता स्वरूप - 
1931 में पंडित मोतीलाल नेहरु की मृत्यु के बाद जवाहर लाल नेहरु ने एक ट्रस्ट बना कर स्वाराज भवन, जनता के ज्ञान, विकास, स्वास्थ्य, सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान हेतु समर्पित कर दिया। इस इमारत के एक हिस्से में कमला नेहरू अस्पताल खोला गया, शेष भाग अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के उपयोग में लिया जाता रहा। सन 1948 से 1974 तक इस ईमारत का उपयोग बच्चोँ की शैक्षणिक गतिविधियोँ हेतु किया जाता रहा और इसमें बाल भवन की स्थापना की गई। 
बाल भवन में बच्चों को संगीत, विज्ञान एवं खेल आदि सिखाया जाता था। 1974 में इंदिरा गाँधी ने जवाहर लाल मेमोरियल फण्ड बना कर यह इमारत 20 वर्ष के लिए उसे पट्टे पर दे दी। बाल भवन को स्वाराज भवन के ठीक बगल में स्थित एक अन्य मकान स्थापित कर स्वाराज भवन को सग्रहालय के रूप में विकसित किया गया।
स्वाराज भवन में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की यादें संजोई गईं। यहीं पर नेहरु और इंदिरा का बचपन बिता, राजनितिक शिक्षा हुई, स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया। 1916 में कमला नेहरू यहीं ब्याह कर आईं और यहीं 19 नवम्बर 1919 को इंदिरा का जन्म हुआ। यह भवन राजनितिक क्रियाकलापों का मंच रहा। 1917 में उत्तर प्रदेश होम रुम लीग के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु एवं महामंत्री जवाहरलाल नेहरु बने। 1920 में आल इंडिया खिलाफत आंदोलन की रूपरेखा इसी भवन में बनाई गई। 1942 इन्दिरा गाँधी का विवाह इसी भवन में हुआ और 1938 मे जवाहरलाल नेहरु की मां स्वरुप रानी की मृयु भी यहीं हुई।
भारत का संविधान लिखने हेतु आल पार्टी सम्मेलन इसी स्वाराज भवन में हुआ।
वास्तुकला की दृष्टि से यह भवन अपने आप मे अनोखा है। दो मंजिली इमारत आनन्द भवन भारतीय स्वाधीनता संघर्ष की एक ऐतिहासिक यादगार हैं।
गाँधी जी जब भी इलाहाबाद आते यहीं रुकते। आज भी यहाँ बापू की स्मृति की अनेक वस्तुएँ संजो कर रखी गईं हैं। आनन्द भवन मात्र राजनैतिक विचार विमर्श का केन्द्र नहीं रहा, यह सामाजिक के विमर्श एवं बुद्धिमता के विकास का केंद्र भी रहा है। खान अब्दुल खाँ, जेबी कृपलानी, लाल बहादुर शास्त्री, राम मनोहर लोहिया और फिरोज गाँधी जैसे नेताओं को तरासने वाला स्थान यही है। 1970 में इन्दिरा गाँधी ने इस भवन को राष्ट्र को समर्पित कर संग्रहालय का रुप दिया। 
सोमवार के अवकाश के अलावा इस संग्रहालय के खुलने का समय प्रात: 9.30 से सांय 5 बजे तक हैं।
शेष परिवार के बारे में पृथक से लेख लिखे गए हैं।
बैठक स्थल
मोतीलाल नेहरू जी की गाड़ी
स्वराज भवन
बाल भवन
कमला नेहरू अस्पताल 


शमशेर भालू खां सहजूसर 
(जिगर चूरूवी)
9587243963

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