Thursday, 24 June 2021

काम जिसे याद कर खुशी मिलती है

समय कितनी तेजी से बीत जाता है।

             (राणासर अध्यापक नियाज खान व समाजसेवक मुमताज खान जमालखानी के साथ चित्र)
सन 2010  की बात है चूरू जिला परिषद में जिला प्रमुख पति इन्द्रचंद पूनिया व हाजी मक़बूल मंडेलिया (तत्कालीन विधायक) के मध्य वार्तालाप सुना।
(मुनखानी परिवार राणासर द्वारा करवाये जा रहे निर्माण कार्य का निरीक्षण किया)

पुनिया जी कह रहे थे 90:10 स्कीम (गुरु गोलवलकर योजना) के अंतर्गत श्मशान भूमि व कब्रिस्तान की चारदीवारी बनवाई जा सकती है जो जागरूकता के अभाव में सफल नहीं हो पा रही है। इस संदर्भ में एक फ़ाइल ग्राम पंचायत पिथिसर के द्वारा लगवाई गई थी जिसकी प्रशासनिक/वित्तिय स्वीकृति निकल चुकि थी।

(27 बीघा जमीन पर एक साथ चार दीवार निर्माण राणासर चूरू )
हम एक बार चूरू तहसील को कवर करना चाहते थे जिसके लिये राणासर,सहजूसर, सहनाली,रिबिया,खंडवा,झारिया व घांघू के साथ लाखलान राजगढ़ हेतु 2 बार की स्वीकृतियों के अंतर्गत लगभग सवा दो करोड़ रुपये बाउंड्री वाल निर्माण बाबत स्वीकृत हुये।
            ( दो मित्र बात करते हुए)
आज जब बिना शिलापट्ट के कार्य देखता हूँ तो दिल को बहुत शुकून मिलता है जो आगे भी जारी रहेगा।
साभार
चूरू की जनता

Tuesday, 22 June 2021

शासन द्वारा एक गांव को समाप्त करने की कहानी

चूरू शहर की बसावट व जल निकासी के लिये बार बार योजनाएं बनी पर कुछ ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई।
यहॉं जिस के जैसे जी में आया अपना घर बना लिया किसी तरह की प्लानिंग नहीं है।
पुराने शहर की गलियां संकड़ी व उबड़-खाबड़ होने के साथ -साथ बहुत ही घुमावदार मोड़ लिये हुये हैं।
300 साल से अधिक समय से बसा यह शहर प्लानिंग के अभाव में हर सुविधा संसाधन से उपेक्षित रहा।
पुराना शहर हाविलियों से अटा पड़ा है जिन में से 90℅ खाली हैं। जिनका कोई उपयोग नहीं हो पा रहा है।


नया शहर
 भूमाफियाओं की बुरी नज़र की भेंट चढ़ गया। कुछ सरकार द्वारा काटी गई कॉलोनी भी हैं जिन का सही सलामत होना बानगी की बात है। लगभग रास्तों को रोक लिया गया है चाहे अवैध निर्माण हो या पेड़ पौधों के नाम पर अतिक्रमण।
अतिक्रमण इस शहर की बड़ी समस्या रही है जिस के बारे में फिर कभी चर्चा होगी।

फिलहाल 2 लाख की आबादी के इस शहर में ड्रेनेज सिस्टम पर चर्चा की जाये।

आज से लगभग 30 साल पहले चूरू इतना बड़ा नहीं था ना ही इतना फैला हुआ।
शहर बढ़ा लोग अलग अलग गांवों से आकर बसने लगे जिस से कई निकटतम गांव इस शहर में समा गये जिन में से खाँसोली, डाबला व गाजसर महत्वपूर्ण हैं। कुछ गांवों का आतित्व 10 साल बाद समाप्त हो जायेगा जिन में रामसरा,देपालसर,घँटेल,सहजूसर श्यामपुरा व  लालसिंहपुरा आदि हैं। 

इतना बड़ा शहर होने पर ड्रेनेज व सीवरेज की समस्या का आन खड़ा होना स्वाभाविक है जिस का समाधान मात्र और मात्र दृढ़ इच्छाशक्ति वाले प्रशासन राजनेताओं व सभ्य जनता ही कर सकती है।
चूरू शहर में चूरू चौपाटी बनाने के नाम पर एक गाँव के अस्तित्व को कैसे समाप्त किया गया यह बहुत बड़ी कहानी अथवा शोध का विषय बन सकता है।
      आबादी विस्तार के कारण सीवरेज-ड्रेनेज वेस्टेज की विकराल व भयावह समस्या को निस्तारित किया जाना एक बड़ी समस्या है जिस के लिये गहन मनन व ईमानदारी से किये गये प्रयास अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। 1998 के आसपास केंद्र सरकार ने चूरू शहर के ड्रेनेज सीवरेज व वेस्टेज सिस्टम को डेवेलोप करने के लिये प्लान तैयार करवाया था जिसे तत्कालीन भैरोसिंह शेखवात सरकार द्वारा नगरपरिषद चूरू को बैंक गारंटी ना देने (तत्कालीन विधायक राजेन्द्र राठौड़ के कारण) प्लान ड्राप हो गया।
सन 2009 में चूरू के विधायक बने हाजी मकबूल मंडेलिया ने प्लान बनवाया व गाजसर गांव के पास स्थित बीहड़ भूमि पर यह प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया गया। तत्कालीन विधायक हाजी साहब की नीयत का तो कहा नही जा सकता पर नगरपालिका/नगरपरिषद की नीयत में खोट था यह इस प्लांट की स्थिति को देख कर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है जिस के लिये तत्कालीन चैयरमेन गोविंद महनारिया के बाद विजय कुमार शर्मा की भूमिका पर संदेह किया जा सकता है।
इस गिनानी को गाजसर गांव से 1 से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित किया गया है जिस ने पहले भी राजकीय माध्यमिक विद्यालय गाजसर को लील लिया था व कई घर डूब गये थे।
आज से 3-4 दिन पहले टूटी गिनानी की दीवार ने पूरे गांव को सकते में डाल दिया व संभव है लगभग लोग गांव छोड़ने को मजबूर हो जायें।
गिनानी की दीवारों का निर्माण घटिया सामग्री से हुआ जिस के लिये वर्तमान/निवर्तमान चैयरमेन, विधायक,अभियंता व प्रशासक के पश्चात ही ठेकेदार जिम्मेदार है।
इन सभी पर हत्या अथवा हत्या का प्रयास अथवा एक गांव की मृत्यु का प्रकरण चलाया जाना चाहिये।


चूरू: शहर में वर्षों से बरकरार है पानी निकासी की समस्या, आम लोग परेशान

चूरू: शहर में वर्षों से बरकरार है पानी निकासी की समस्या, आम लोग परेशान
आरयूआईडीपी के गाजसर गांव के पास बनाए गए स्टोरेज पर कार्यरत कर्मचारियों का कहना है कि इन दोनों स्टोरेज की कैपेसिटी  7 एमएलडी है।
 राजस्थान के कटोरानुमा बनावट वाले चूरू शहर में पानी निकासी की समस्या वर्षों से बनी हुई है. इस दौरान नगर परिषद ने कई बार करोड़ों रुपए की योजना बनाकर पानी निकासी के लिए बड़े नाले भी बनाए. लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है. जिस कारण आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

आपको बता दें कि 2013 में कांग्रेस की पिछली सरकार ने चूरू में 1817 लाख की ड्रेनेज व सीवरेज की योजना बनाई थी. इस योजना के तहत शहर के मध्य जोहरी सागर के पास एक पंप हाउस बनाया गया और गाजसर गांव के पास वन विभाग की भूमि पर गंदे पानी के दो स्टोरेज बनाए गए. इन स्टोरेज की क्षमता कुल 7 एमएलडी की रखी गई।

योजना हो गई धराशाई
लेकिन ड्रेनेज सीवरेज के करोड़ों रुपए की योजना भी धराशाई हो चुकी है. इस दौरान कई जगह लाइन चोक हो चुका है. जिस कारण कई लोगों के घरों में शौचालय में पानी वापस आने लगता है. वहीं, बरसात के दिनों में शहर के पानी की निकासी नहीं होने से शहर के बड़े हिस्से में 3 से 4 फीट पानी भरा रह रहा है।
आरयूआईडीपी के स्टोरेज फेल
आरयूआईडीपी के गाजसर गांव के पास बनाए गए स्टोरेज पर कार्यरत कर्मचारियों का कहना है कि इन दोनों स्टोरेज की कैपेसिटी 7 एमएलडी है. जबकि शहर से आने वाला पानी 11 एमएलडी का है. जिस कारण इन दोनों स्टोरेज में पानी ओवरफ्लो हो जाता है. इस मामले में स्थानीय लोग इस तरह की लापरवाही का कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को बताते हैं।


शेष चूरू की निरीह जनता पर निर्भर।

शमशेरभालु खान

Monday, 21 June 2021

सरकार योजना व जागरूकता

काम सरकार व जागरूकता

                       बात भाजपा शासन काल की है। मेरे मित्र दयानन्द गढ़वाल तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण विभाग चूरु में कार्यक्रम अधिकारी थे ने बताया भारत सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम के अंर्तगत अल्पसंख्यक बहुल ब्लाक में शिक्षा,चिकित्सा व आधारभूत सुविधाऐं विकसित करने हेतु राशि का आवंटन किया जाता है,परन्तु इस हेतु कुछ फॉर्मेलिटीज हैं जो करनी होंगी।
उस समय में कार्यालय जिला परियोजना समन्वयक में कार्यक्रम सहायक के पद पर कार्यरत था।
इस हेतु Zakir Khan  तत्कालीन अल्पसंख्यक जिला अध्यक्ष भाजपा च को शहरी क्षेत्र व जंगशेर खान  पिथिसर तत्कालीन सरपँच को ग्रामीण क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई।
शेष ब्लॉक की जिम्मेदारी मेने स्वयं संभाली जिस का कुछ ही दिनों बाद नतीजा मिल गया।
रिपोर्ट तैयार हो गई जिस के अनुसार सुजानगढ़, सरदारशहर व चूरू ब्लॉक विभागीय शर्तों को पूरी करते थे का प्रस्ताव बना कर भिजवा दिया गया । अल्पसंख्यक कल्याण कार्यालय द्वारा भेजे गये प्रस्ताव को भारत सरकार ने स्वीकार किया और चूरू जिले के
1) सुजानगढ़
2)सरदारशहर
3)चूरू
को अल्पसंख्यक ब्लॉक घोषित कर दिया गया जिस का श्रेय उस समय बहुत से लोगों ने लेने का प्रयास किया था।
इस योजना के अंतर्गत
बागला,पारख व कई विद्यालयों का पुनरुथान हुआ।
कई विद्यालयों के प्रस्ताव एक-एक स्कूल जा कर हम ने तैयार करवाये थे जिस में सुजानगढ़ से dr. gaffar खान , Shakil G. Ahmed ,  shakir khan तत्कालीन RP सुजानगढ़, Rasid khan, तारीफ बल्लू खान तत्कालीन RP सरदारशहर, प्रताप सिंह नाथावत,krishn kumar Krishna Kant Grover तत्कालीन RP चूरू व Bajaranglal saini, Ashok Shekhawat  चूरू का अविष्मरणीय योगदान रहा।
पारख, बागला व अन्य विद्यालयों का श्रेय भी बहुत से लोगों ने लेने का प्रयास किया परन्तु सत्य अपने स्थान पर अडिग है।
आगामी बात यह है इन ब्लॉक में विद्यालय विकास के बाद चिकित्सा व आधारभूत विकास के कार्य होंगे जिसे कोई मंत्री, सन्तरी,नेता या अधिकारी नहीं रोक सकता ।
इतना लिखने का मक़सद-: सरकार किसी की भी हो जागरूकता से आप योजनाओं के माध्यम से कार्य करवा सकते हैं। जागरूक बनिये आगे बढ़िए।

Friday, 18 June 2021

हम हमारा व्यवहार वह करोना

*हम हमारा व्यवहार व कोरोना*
आज चिकित्सीय कार्य हेतु घर से बाहर जाना हुआ। गांव में दुकानों के बाहर समूहों में लोग बैठे थे लगभग सभी के मास्क नहीं थे और एक निर्धारित दूरी भी नहीं बना रखी थी।
छोटे बच्चे इस बात से सावधानी बरत रहे हैं कि कहीं उस का हाथ किसी को छू ना ले। यह देख कर दिल को बहुत तसल्ली हुई कम से कम बड़ों से बच्चे ज्यादा सावधान हैं।

शहर में पहुंचने पर एक गली में 10-12 युवा लूडो खेलते मस्ती कर रहे थे। किसी के मुंह पर मास्क नहीं आगे चलने पर इसी तरह कम से कम 10 जगह यह माहौल देखा।
एक जगह रुक कर पूछा कि भाई आप इतने लोग एक जगह बिना मास्क बैठे हैं क्या महामारी चली गई। जवाब बड़ा सुंदर व मासूम था " भाई जी थे भी इन अफसर,नेता व डॉक्टर की बातों में आ गये। यह एक साजिश है बाकि कोरोना-फोरोन कुछ नहीं।" 
मैं अपराध बोध के साथ आगे बढ़ा कि पुलिस सायरन सुनाई दिया। पीछे मुड़ कर देखा एक भी युवक वहां नहीं था सब के सब घर में घुस गये।

मैं अवाक सन्न रह गया। यह वही युवा हैं जो व्हाट्सएप फ़ेसबुक ट्वीटर के साथ दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पुलिस,डॉक्टर,सरकार व व्यवस्था को पानी पी-पी कर कोसते हैं असल में गलत कौन? 
काफी देर लगी डॉक्टर साहब की लिखी दवा ले कर उसी रास्ते से लौटा युवक वहीं जमे गेम खेल रहे थे। उनको देखकर लग रहा था इस इलाके में कहीं महामारी के लक्षण नहीं हैं इसलिये यह इतने निश्चिंत हैं। मैं भी ढीठता के साथ फिर उनके पास जाकर पूछ बैठा कि भाईयो इस मोहल्ले में शायद कोई पोसिटिव नहीं है इसलिये आप इतने बेफिक्र हैं जवाब सुनकर आश्चर्य हुआ कि इस क्षेत्र में काफी मौत हुई हैं एवं अभी काफी लोग पॉजिटिव हैं। आगे बिना कोई सवाल किये चलना ही बेहतर समझा।

यह हाल है आज के युवाओं के कंटोनमेंट एरिया होने के बावजूद भी घर में अंदर बैठना सजा समझते हैं दोष देते हैं सरकार को।

भारत की आबादी लगभग 130 करोड़ है। खुदानाखास्ता 1% आबादी पॉजिटिव हो जाये और इस तरह घर से बाहर झुंड में बैठने लगे तो आप सोच सकते हैं क्या हाल होगा? 
1% अर्थात एक करोड़ तीस लाख लोग प्रभावित होंगे क्या किसी भी सरकार के लिये स्थिति को संभालना मुमकिन है। और यह 130 लाख लोग औसत 10 लोगों को भी प्रसाद के रुप में बीमारी बांटेंगे तो क्या हाल होंगे। 

पहली व दूसरी लहर से उबरने की हालत में आये ही नहीं कि यह ब्लैक फंगस,व्हाइट फंगस का खतरा आ गया।

मज़ाक अपनी जगह मस्ती,घुमाई,खेलना यह सबको अच्छा लगता है पर किस क़ीमत पर।

तीसरी लहर की तैयारी सरकारों ने शुरू कर दी है इस पर काबू तब ही पाया जा सकता है जब हम खुद पर अंकुश लगायेंगे। 
दूसरा मामला यह है कि व्हाट्सएप फेसबुक अथवा अन्य सोशल मीडिया पर तरह तरह के उपाय बताये जा रहे हैं जिन की घरों में अत्यधिक प्रयोग में लिया जा रहा है। यह खतरनाक है। बहुत ज्यादा मात्रा में काढ़ा आदि का प्रयोग प्राणघातक हो सकता है।

प्रिय साथिया,
   अभी थोड़े दिन के लिये अपने आप को व अपने परिवार को बचाने के लिये घर के अन्दर ही रहें। अगर आपको यह सजा लगे तो सजा ही सही। अपनों को खोने का दुःख क्या होता है जिस पर बीती है उस से पूछें।

हमेशा आपका भला चाहने वाला
आपका अपना
*शमशेर गांधी*
9587243963
8955031025

विपत्ति सरकार और हम

विपत्ति सरकार और हमसदियों पूर्व न जाने कितनी आपदा व महामारी मानव के अस्तित्व को मिटाने का असफल प्रयास कर चुके हैं,परन्तु हम हर एक बाधा को पार करते हुये आगे बढ़े।। इस सदी की भयंकर त्रासदी कोविड महामारी से सरकारी आंकड़ों से अधिक जानें गईं। इसका कारण देश और प्रदेशों की सरकारों के गैरजिम्मेदाराना रवैये, आपदा के समुचित प्रबन्धन में आपसी तालमेल की कमी, आपसी राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप के साथ साथ इसके जिम्मेदार कहीं न कहीं हम सब रहे हैं। आमजन की अज्ञानता और हम सब द्वारा महामारी का सटीक मूल्यांकन नहीं कर पाना भी कारण रहा। इस महामारी ने हमें इस बात का अहसास अवश्य करवा दिया है कि अभी बुराई चाहे कितनी शक्तिशाली हो अच्छाई के मानने वाले हार नहीं मानते। आपदा में अवसर की तलाश करने वाले कालाबाज़ारियों,कफ़न बेचने वालों,मुनाफाखोरों, अंग बेचने वाले जल्लाद डॉक्टरों,शेखी बघारने वाले नेताओं,दोगुने तीन गुने मूल्य पर ऑक्सीजन बेचने वाले लोगों,सो गुना से ज्यादा कीमत वसूल करने वाले केमिस्टों, बीस गुना किराया लेने वाले एम्बुलेंस वालों, अंतिम क्रियाकर्म में लूटने वाली संस्थाओं को आइना दिखाते हुये निस्वार्थ अपने संसाधनों से सेवा करने वाले सेवकों ने मानवता के उच्चतम मूल्यों को स्थापित किया।विपदा की घड़ी में जिन्होंने असमय अपनों को खोया वह दर्द असहनीय है। जिन बच्चों से हमें सहारे की उम्मीद थी उनको कंधा देना पहाड़ उठाने से मुश्किल था। गांव-गांव मोहल्ले-कॉलोनियों में डर के माहौल को शब्दों में वर्णित करना मेरे लिये लगभग असंभव है। हमने देखा जहाँ लोग अपनो को श्मशान/कब्रिस्तान तक पहुँचाने से कतरा रहे थे पर कुछ लोग जीवन की परवाह किये बगैर यह कार्य निकट संबन्धी नहीं होने के बावजूद भी बड़ी दिलेरी से कर रहे थे। मालिक की इच्छा के आगे हम सब नतमस्तक हैं। सरकार के बारे में क्या लिखा जाये कुछ नेताओं को छोड़ कर अधिकांश स्वयं को बचाने में लगे थे। सरकार को रोटी-पानी की व्यवथा करने के स्थान पर मूलभूत सेवा करने में असफल होते देखा। यह अहसास हुआ काश इस सरकार के होने से न होना बेहतर था। कंधों, साइकिल, रिक्शा में परिजन लाशें ढो रहे हैं और सरकार स्वयं अपनी पीठ थपथपा रही है।जब इंसान मर रहे थे नेतागण बड़ी बड़ी सभा बुलाकर आम जन के जीवन को खतरे में डाल कर बड़े गर्व से एलान कर रहे थे "इतनी भीड़ अपने जीवन में कभी नहीं देखी।" जब श्मशान में जलाने के लिये स्थान नहीं मिला तो माँ गंगा जो पवित्रता के साथ पूजी जाती थी के किनारे थोड़ी सी मिट्टी डाल कर शवों से अटा दिये गये। नज़रों को भी तरस आया जब हज़ारों की संख्या में शव नदियों में बहा दिये गये जिनको जंगली सुअर व कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे थे। यह सरकारों के अंतिम क्रियाकर्म का दृश्य था जो आने वाली पीढियां सुनेंगी-पढ़ेंगी तो हम पर थूकेंगी। यदि सरकार ऐसी होती है तो मैं उस युग में जाना पसंद करूँगा जहाँ इस नाम की कोई संस्था न हो।सकारात्मक सहयोग व आपसी मदद के कारण महामारी के संक्रमण दर में अभी कुछ कमी आई है पर पूर्ण समाप्त नहीं हुआ है।अभी कुछ दिन, पहले की तरह सावधानी बरतें संभव हो तो मुसीबत में आये आम इंसान की मदद करें यह वक़्त है निकल जायेगा। काल का ग्रास बने लोगों के परिवारजनों को परमपिता परमेश्वर ये दुःख सहने की ताकत प्रदान करे और दिवंगत आत्माओं को स्वर्ग/जन्नत में स्थान प्रदान करे | आपसे पुनः सावधानी बरतने व सुरक्षित रहने की अपील।
आपका अपनाशमशेर गांधी