#मजदूरों_को_शीर्ष_पर_लाने_वाले_मार्क्स
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मानव सभ्यता के कोई 8-10 हजार वर्ष के लिखित इतिहास में कार्ल मार्क्स पहले दार्शनिक थे जिन्होंने मजदूरों को मान दिया, गरिमा दी, अभिमान दिया बल्कि और आगे जाकर उसे पूरी दुनिया का नायकत्व प्रदान किया । उसे भावी और बेहतर दुनिया का कर्णधार बताया । इसके लिए अपने दोस्त लासाल सहित तब तक के सभी स्थापित विचारों से पंगा लिया ।
● 1848 में एंगेल्स के साथ मिलकर लिखे कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र में 'दुनिया के मजदूरो एक हो' का नारा गुंजा कर उन्होंने सारी दुनिया को चौंका दिया था ।
● इसी घोषणापत्र में उन्होंने इसकी वजह स्पष्ट करते हुये उन्होंने कहा था कि "पूंजीपति वर्ग के मुकाबले में आज जितने भी वर्ग खड़े हैं उन सबमे सर्वहारा ही वास्तव में क्रांतिकारी वर्ग है । दूसरे वर्ग आधुनिक उद्योग के समक्ष ह्रासोन्मुख होकर अंततः विलुप्त हो जाते हैं ; सर्वहारा वर्ग ही उसकी मौलिक और विशिष्ट उपज है ।"
●मार्क्स अपने सिध्दांतों को गाइड टू एक्शन कहते थे । इसलिये वे सिर्फ विचार ही नहीं देते थे, उसे आकार देने के लिए स्वयं भी सक्रिय होते थे । मजदूरों के अंतर्राष्ट्रीय संगठन - इंटरनेशनल वर्किंगमैन्स एसोसिएशन- को संगठित, पुनर्संगठित करने में उन्होंने अपनी पूरी शक्ति झोंक दी ।
● इसी के चलते उन्हें अपने देश जर्मनी से देशनिकाला मिला। वे पेरिस, ब्रुसेल्स पहुँच कर काम करते रहे । वहां से भी निकलना पड़ा तो आखिर में लन्दन में रहकर संगठन का काम किया ।
● मजदूरों के फौरी मसलों को लेकर मार्क्स ने पर्चे लिखे, गेट मीटिंग्स में भाषण दिए ।
● वे कितने सही थे यह उनके निधन के मात्र 34 साल बाद मजदूर ने अपना राज कायम करके प्रमाणित भी कर दिखाया । एक ऐसा समाज रच दिखाया जिसका पहले कभी सपना ही देखा जाता था । दुनिया बदल कर रख दी ।
● मार्क्स मानते थे कि मजदूर ऑटोमेटिकली इस काम को अंजाम नहीं दे सकता । अपनी इस ऐतिहासिक भूमिका को निबाहने के लिए उसे पहले स्तर, ट्रेडयूनियन के नाते, कुछ काम करने होंगे । ये काम थे ;
1- मजदूरों के दैनिक हितों की रक्षा का काम ट्रेड यूनियनों को जारी रखना चाहिए, 2- लेकिन साथ ही उन्हें मजदूर वर्ग की मुक्ति लिए सचेत संगठन-केंद्र के रूप में भी कार्य करना चाहिए, 3- इस मक़सद से, इस दिशा में 'प्रवृत्त' हर सामाजिक व आर्थिक आंदोलन की मदद की जानी चाहिए, 4- ट्रेड यूनियनें पूरे वर्ग की पैरोकार हैं और इसलिये उनको मात्र अपने सदस्यों का बन्द समूह नहीं बनना चाहिए, जिसके दरवाजे गैर सदस्यों के लिए बन्द हों, 5- उनका कर्तव्य है कि जो स्वयं को आसानी से संगठित नहीं कर सकते उन्हें संगठित करें और सबसे कम मेहनताना पाने वालों, जैसे खेतिहर मजदूरों, के हितों की रक्षा करें, 6- अपने कार्यों द्वारा उन्हें दिखलाना चाहिए कि वे अपनी संगठित शक्ति का उपयोग मात्र अपने हितों की रक्षा के लिए नहीं करती बल्कि सभी कुचली हुयी करोड़ों जनता की मुक्ति के लिए कर रहे है ।
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