बेगम हजरत महल
नाना साहेब और मौलवी अहमदुल्लाह शाह फैजाबादी ने भी 1857 की जंग-ए-आजादी में बेगम हजरत महल का साथ दिया था। आलमबाग की जंग के दौरान उन्होंने हाथी पर सवार होकर अपने जाबांज सिपाहियों की खूब हौसला अफजाई की लेकिन जंग में शिकस्त होती देख उन्हें मजबूरन पीछे हटना पड़ा। जिसके बाद वह अवध के देहातों में गईं और वहाँ भी इंक़लाब की चिंगारी सुलगाई। आखिर में जब पुरे अवध पर अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया तब उन्हें अवध छोड़ना पड़ा। उन्हें काठमांडू में शरण मिली बाद की जिंदगी उन्होंने वहीं गुजारी। जिस तरह दीगर शाही घराने आज अपने महलों में शान-ओ-शौकत से रह रहे हैं अगर उस वक्त उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी तस्लीम कर ली होती तो आज उनका भी घराना सलामत होता और वैसे ही शान-ओ-शौकत से रहता।
उनकी वफ़ात के बाद उन्हें काठमांडू में ही दफ़न किया गया था। हालांकि उनकी वफ़ात के बाद मलिका विक्टोरिया की यौम-ए-पैदाइश (1887) के मौके पर ब्रिटिश हुकूमत ने उनके बेटे बिरजिस क़द्र को माफ़ कर दिया था और उन्हें वतन वापस लौटने की इजाज़त दे दी थ
शमशेर भालू खान
जिगर चुरुवी
9587243963
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