श्री लाल बहादुर शास्त्री भारत के पूर्व प्रधानमंत्री
जीवन एवं सामान्य परिचय
लाल बहादुर शास्त्री का आत्मीय चित्र
श्री लाल बहादुर शास्त्री पत्नी के साथ
विद्यालयों में लगने वाला चित्र
जीवन परिचय -
नाम - लाल बहादुर
बचपन का नाम - नन्हा
प्रचलित नाम - शास्त्री जी
जाति - ब्राह्मण (चित्रगुप्तवंशी कायस्थ )
गोत्र - श्रीवास्तव
मुजफ्फरपुर में हरिजनों की भलाई के लिए काम शुरू किया और श्रीवास्तव हटा दिया।
जन्म - 2 अक्टूबर 1904
जन्म स्थान - उत्तर प्रदेश (अवध प्रांत) के वाराणसी से सात मील दूर रेलवे टाउन मुगलसराय (अब पं. दीन दयाल उपाध्याय नगर)
मृत्यु - 11 जनवरी 1966 (आयु 61 वर्ष)
ताशकंद उज़्बेक यूएसएसआर (अब उज़्बेकिस्तान)
माता का नाम - रामदुलारी श्रीवास्तव
(पति की मृत्यु के बाद पीहर में रहने लगी)
नाना - मुंशी हजारी लाल
(मुगलसराय में एक रेलवे स्कूल में हेडमास्टर और अंग्रेजी शिक्षक)
पिता का नाम - शरद प्रसाद श्रीवास्तव
लालन - पालन - अप्रैल 1906 में (शास्त्री मुश्किल से 18 महीने के) पिता (डिप्टी तहसीलदार के पद पर पदोन्नत किया गया था) की बुबोनिक प्लेग महामारी से मृत्यु हो गई।
रामदुलारी देवी (उम्र 23 वर्ष) (तीसरी संतान होने वाली थी) दो बच्चों को लेकर रामनगर से मुगलसराय में पिता के घर चली आईं। जुलाई 1906 में बेटी सुंदरी देवी का जन्म हुआ।
शास्त्री जी और उनकी बहनें नाना जी हजारी लाल जी के घर में पले। 1908 में हजारी लालजी की स्ट्रोक से मृत्यु हो गई। इसके बाद परिवार की देखभाल उनके भाई (शास्त्री जी के परदादा) दरबारी लाल ने की जो ग़ाज़ीपुर में अफ़ीम विनियमन विभाग में हेड क्लर्क थे, और बाद में उनके बेटे (रामदुलारी देवी के चचेरे भाई) बिंदेश्वरी प्रसाद जो मुगलसराय के स्कूल शिक्षक थे ने देखभाल की।
सहोदर - दो बहने
1 - कैलाशी देवी बड़ी बहन
2 - सुंदरी देवी छोटी बहन
स्मारक - विजय घाट नई दिल्ली
पिता का व्यवसाय - स्कूल शिक्षक, क्लर्क प्रयागराज राजस्व विभाग
(शास्त्री के पूर्वज बनारस के पास रामनगर के जमींदार के यहां मुंशी का काम करते थे)
पत्नी का नाम - ललिता देवी (मिर्जापुर)
(दहेज के नाम पर एक चरखा एवं हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े थे।)
विवाह - 16 मई 1928
संतान - 6
1 हरिकृष्ण शास्त्री
2 सुमन शास्त्री पुत्री (बेटा सिद्धार्थ नाथ सिंह भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री हैं।)
3 आदर्श शास्त्री (आम आदमी पार्टी के टिकट पर प्रयागराज से 2014 का आम चुनाव लड़ने के लिए ऐप्पल इंक के साथ अपना कॉर्पोरेट करियर छोड़ दिया
कुसुम शास्त्री हैं। चुनाव हार गए। 2015 में दिल्ली विधानसभा सदस्य चुने गए।)
4 अनिल शास्त्री कांग्रेस
5 अशोक शास्त्री व्यवसाई (37 साल की उम्र में निधन,
पत्नी नीरा शास्त्री भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य
शिक्षा दीक्षा -
1 प्रारंभिक शिक्षा ननिहाल में घर पर
2 उच्च माध्यमिक शिक्षा चाचा के पास वाराणसी (दसवीं 1921) (ईस्ट सेंट्रल रेलवे इंटर कॉलेज व हरीश चंद्र हाई स्कूल)
3 शिव प्रसाद गुप्ता, काशी विद्यापीठ वाराणसी से दर्शन शास्त्र प्रथम श्रेणी से पास
4 शिव प्रसाद गुप्ता, काशी विद्यापीठ से नैतिक शास्त्र से शास्त्री की उपाधि
(कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब रास्ते अत्यधिक गर्म हुआ करते थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था रास्ते में एक नदी थी जिसे तैर कर पार करते ।)
वैचारिक आदर्श -
1 स्वामी विवेकानन्द
2 महात्मा गांधी
3 एनी बेसेंट
आंदोलन में भागीदारी -
1 असहयोग आंदोलन - 16 वर्ष की आयु में
2 लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी (लोक सेवक मंडल) के अध्यक्ष के रूप में कार्य
3 जेल यात्रा - सात वर्ष
नारे -
1 मेहनत प्रार्थना करने के समान है।
2 जय जवान जय किसान
राजनीतिक दल - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
राष्ट्रीय सम्मान - भारत रत्न (1966) (मरणोपरांत)
पद -
1 संसदीय सचिव उत्तर प्रदेश
2 गृह मंत्री उतर प्रदेश
3 केंद्रीय मंत्री -
A 1951 से रेल मंत्री - 13 मई 1952 से 7 दिसम्बर 1956
B परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री
C विदेश मंत्री 4 अप्रैल 1961 - 29 अगस्त 1963
D गृह मंत्री 9 जून 1964 - 18 जुलाई 1964
4 भारत के प्रधानमंत्री (दूसरे)1964 से 1966 तक भारत के दूसरेप्रधान मंत्री1961 से 1963 तकछठेगृह मंत्री
रेल्वे स्टेशन का निरीक्षण
रेल मंत्रालय से इस्तीफा -
(एक रेल दुर्घटना में कई लोग मारे गए के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है कि इससे सरकार में एक मिसाल कायम होगी।
रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा -
“शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं है पर मुझे लगता है कि मैं, आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”)
4 - भारत के दूसरे प्रधान मंत्री (9 जून 1964 - 11 जनवरी 1966)
व्यक्तित्व एवं पारिवारिक जीवन -
पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री उन महान भारतीयों में से एक थे जिन्होंने हमारे सामूहिक जीवन पर अमिट छाप छोड़ी है। हमारे सार्वजनिक जीवन में लाल बहादुर शास्त्री का योगदान इस मायने में अद्वितीय था।
भारत में आम आदमी के जीवन के सबसे करीब थे। लाल बहादुर शास्त्री को भारतीय अपने में से एक के रूप में देखते थे जो उनके आदर्शों, आशाओं और आकांक्षाओं को साझा करते थे। उनकी उपलब्धियों को किसी व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि हमारे समाज की सामूहिक उपलब्धियों के रूप में देखा गया।
शास्त्री के नेतृत्व में भारत ने 1965 के पाकिस्तानी आक्रमण का सामना किया और उसे खदेड़ दिया। यह न केवल भारतीय सेना के लिए बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक के लिए गर्व की बात है।
5 फीट 2 इंच लंबे हमेशा धोती पहनते रहते शास्त्री जी ने जीवन में सिर्फ एक अवसर पर पायजामा पहना वाह था 1961 में राष्ट्रपति भवन में यूनाइटेड किंगडम की रानी के सम्मान में रात्रिभोज।
एक बार विदेश दौरे के लिए उनके पास ओवर कोट नहीं था जो नेहरू जी ने दिया। यह आज भी उनके सग्रहालय में सुरक्षित है।
शास्त्री जी 1950 से 14 वर्षों तक कैबिनेट मंत्री रहे लेकिन जब उनकी मृत्यु हुई तब गरीब थे। उनके पास एक पुरानी कार थी जिसे सरकार से किस्तों में खरीदा गया परंतु ऋण नहीं चुका पाए।
वह सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी (जिसमें महात्मा गांधी , लाला लाजपत राय , गोपाल कृष्ण गोखले शामिल थे ) के सदस्य रहे जिसने अपने सभी सदस्यों को निजी संपत्ति का संचय बंद करने और लोगों के सेवक के रूप में सार्वजनिक जीवन में बने रहने पर जोर दिया। शास्त्री जी पहले रेल मंत्री थे जिन्होंने एक बड़ी रेल दुर्घटना के बाद नैतिक जिम्मेदारी महसूस करते हुए पद से इस्तीफा दे दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान , उनकी बेटी बीमार थी और उन्हें जेल से पैरोल पर रिहा किया गया था। वो उसकी जान इसलिए नहीं बचा सके क्योंकि डॉक्टरों ने महंगी दवाएँ लिखी थीं।
वर्ष 1963 में मंत्रिमंडल से हटने के दिन वे अपने घर में अंधेरे में, बिना रोशनी के बैठे थे। जब उनसे कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि चूंकि वह अब मंत्री नहीं हैं इसलिए सभी खर्चों का भुगतान खुद करना होगा और एक सांसद और मंत्री के रूप में उन्होंने जरूरत के समय के लिए बचत करने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं की।
एक बार उनका बेटा अनिल शास्त्री सरकारी गाड़ी ले कर घूमने चला गया। जब शास्त्री जी को पता चला तो बेटे द्वारा तय किए गए किलोमीटर का भुगतान अगले महीने की सैलरी से किया।
एक बार बेटे ने पेंसिल और स्लेट की मांग की तो एडवांस सेलरी के रूप में राशि प्राप्त कर स्लेट पेंसिल दिलवाई।
जीवन वृत्त -
प्रारंभिक वर्ष (1904-1920)
गांधी जी के शिष्य (1921-1945)
श्रीवास्तव परिवार का चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन से कोई संबंध नहीं था, लेकिन हरीश चंद्र हाई स्कूल में उनके शिक्षकों में निश्कामेश्वर प्रसाद मिश्रा शिक्षक ने शास्त्री को अपने बच्चों को पढ़ाने हेतु कार्य आरंभ करवाया जिस से उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो सके। मिश्रा की देशभक्ति से प्रेरित होकर, शास्त्री जी ने स्वतंत्रता संग्राम में गहरी रुचि ली और इसके इतिहास और स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और एनी बेसेंट सहित कई प्रसिद्ध हस्तियों के कार्यों का अध्ययन करना शुरू किया। 1921 में छात्र रहते हुए गांधी और पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा आयोजित बनारस में एक सार्वजनिक बैठक में भाग लिया । छात्रों को सरकारी स्कूलों से हटने और असहयोग आंदोलन में शामिल होने के महात्मा के आह्वान से प्रेरित होकर, शास्त्री ने अगले दिन हरिश्चंद्र हाई स्कूल से नाम वापस ले लिया और एक स्वयंसेवक के रूप में कांग्रेस पार्टी की स्थानीय शाखा में शामिल हो गए।
सक्रिय रूप से धरना और विरोधी गतिविधियों में भाग लिया। सरकार विरोधी प्रदर्शन के कारण गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया बाद में नाबालिग होने के कारण छोड़ दिया गया।
उस समय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षक जेबी (आजादी के संग्राम के कारण नौकरी छोड़ दी) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक और गांधी के सबसे करीबी अनुयायियों में गिने जाते थे।युवा स्वयंसेवकों की शिक्षा जारी रखने हेतु को कृपलानी वीएन शर्मा ने "राष्ट्रवादी शिक्षा" पर केंद्रित एक अनौपचारिक केंद्र (राष्ट्रीय स्तर उच्च शिक्षा केंद्र) शिव प्रसाद गुप्ता, काशी विद्यापीठ का उद्घाटन गांधीजी ने 10 फरवरी 1921 को किया। नए संस्थान के पहले छात्रों में से, शास्त्री ने दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी की डिग्री के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1925 में
लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्या पीठ में शामिल हुए। यहाँ वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए। विद्यापीठ द्वारा उन्हें नैतिक शास्त्र में उन्हें शास्त्री ("विद्वान") प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम शास्त्री था। आगे चलकर इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।
शास्त्री ने खुद को लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी (लोक सेवक मंडल) के आजीवन सदस्य के रूप में जुड़े और मुजफ्फरपुर में गांधी के निर्देशन में हरिजनों की भलाई के लिए काम करना शुरू किया । बाद में वे सोसायटी के अध्यक्ष बने।
बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए।
गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।
1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी।
लाल बहादुर शास्त्री की स्वतंत्रता सक्रियता
1928 में महात्मा गांधी के आह्वान पर शास्त्री भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बन गए। उसे ढाई साल की सज़ा दी गयी थी। बाद में, उन्होंने 1937 में यूपी के संसदीय बोर्ड के संगठन सचिव के रूप में काम किया। 1940 में, स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्तिगत सत्याग्रह को समर्थन देने के लिए उन्हें एक साल के लिए जेल भेज दिया गया था ।
8 अगस्त 1942 को, महात्मा गांधी ने बॉम्बे के गोवालिया टैंक में भारत छोड़ो भाषण जारी किया , जिसमें मांग की गई कि अंग्रेज़ भारत छोड़ दें। शास्त्री, जो अभी एक साल जेल में रहने के बाद बाहर आये थे, ने इलाहाबाद की यात्रा की । एक सप्ताह के लिए, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के घर, आनंद भवन से स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं को निर्देश भेजे। उन्होंने 1937 और 1946 में संयुक्त प्रांत के लिए एक निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया।
लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे।
राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के साथ
राजनीतिक जीवन - 1947 से 1964
भारत की स्वतंत्रता के बाद, शास्त्री को उनके गृह राज्य, उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव नियुक्त किया गया ।
रफी अहमद किदवई के केंद्र में मंत्री बनने के बाद 15 अगस्त 1947 को वह गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्रित्व काल में पुलिस और परिवहन मंत्री बने । परिवहन मंत्री के रूप में, वह महिला कंडक्टरों की नियुक्ति करने वाले पहले व्यक्ति थे । पुलिस विभाग के प्रभारी मंत्री के रूप में, उन्होंने आदेश दिया कि पुलिस अनियंत्रित भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठियों के बजाय पानी की बौछारों का उपयोग करे।
पुलिस मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल (1950 से पहले उन्हें गृह मंत्री कहा जाता था) में 1947 में सांप्रदायिक दंगों, बड़े पैमाने पर प्रवासन और शरणार्थियों के पुनर्वास पर सफलतापूर्वक अंकुश लगाया गया।
कांग्रेस ने सत्ता में आने पर लाल बहादुर शास्त्री को 1946 में उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव बनाया गया और बाद में गृह मंत्री के पद पर भी आसीन हुए। कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई। वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री; परिवहन एवं संचार मंत्री; वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री; गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे। उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही थी।
सितंबर 1956 में महबूबनगर ट्रेन दुर्घटना के लिए राजनीतिक और नैतिक जिम्मेदारी लेना चाहते थे और उन्होंने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को रेल मंत्री के रूप में अपना इस्तीफा देने की पेशकश की लेकिन अस्वीकार कर दिया। 1956 में अरियालुर ट्रेन दुर्घटना के लगभग ढाई महीने बाद शास्त्री ने फिर से अपने इस्तीफे की पेशकश की जो स्वीकार कर लिया गया। 7 दिसंबर 1956 को रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने 1959 में वाणिज्य और उद्योग मंत्री और 1961 में गृह मामलों के मंत्री के रूप में कार्य किया। शास्त्री ने 1964 में बिना पोर्टफोलियो वाले मंत्री के रूप में मैंगलोर बंदरगाह की नींव रखी।
1951 में शास्त्री को जवाहरलाल नेहरू के प्रधान मंत्री रहते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया गया । वह उम्मीदवारों के चयन और प्रचार तथा चुनाव संबंधी गतिविधियों के निर्देशन के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थे। उन्होंने 1952, 1957 और 1962 के भारतीय आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी की शानदार सफलताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1952 में, उन्होंने सोरांव उत्तर सह फूलपुर पश्चिम सीट से यूपी विधानसभा में सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा और 69% से अधिक वोट प्राप्त करके जीत हासिल की। माना जा रहा था कि उन्हें यूपी के गृह मंत्री के रूप में बरकरार रखा जाएगा, लेकिन एक आश्चर्यजनक कदम में नेहरू ने उन्हें केंद्र में मंत्री के रूप में बुला लिया।
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी -
27 मई 1964 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हो गई। तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के कामराज ने 9 जून को शास्त्री को प्रधान मंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शास्त्री, हालांकि सौम्य स्वभाव के और मृदुभाषी थे, एक नेहरूवादी समाजवादी थे और इस प्रकार उन्होंने उन लोगों से अपील की जो रूढ़िवादी दक्षिणपंथी मोरारजी देसाई के उत्थान को रोकना चाहते थे ।
प्रधान मंत्री के रूप में अपने पहले प्रसारण में, 11 जून 1964 को, शास्त्री ने कहा: [33]
प्रधान मंत्री के रूप में, शास्त्री ने आनंद, गुजरात के अमूल दूध सहकारी का समर्थन करके और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाकर श्वेत क्रांति - दूध के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान को बढ़ावा दिया । भारत के खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, शास्त्री ने 1965 में भारत में हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया । इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई, खासकर पंजाब , हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में ।
लखनऊ के प्रतिष्ठित स्कूल बाल विद्या मंदिर की आधारशिला उनके प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान 19 नवंबर 1964 को रखी गई थी। उन्होंने नवंबर 1964 में थरमनी, चेन्नई में केंद्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान परिसर का उद्घाटन किया था। उन्होंने 1965 में ट्रॉम्बे में प्लूटोनियम पुनर्संसाधन संयंत्र का उद्घाटन किया। डॉ. होमी जहांगीर भाभा के सुझाव के अनुसार शास्त्री जी ने परमाणु संयंत्र का विकास करने हेतु अधिकृत किया। भाभा ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु विस्फोटों का अध्ययन (एसएनईपीपी) नामक परमाणु विस्फोटक डिजाइन समूह की स्थापना की। उन्होंने 20 मार्च 1965 को हैदराबाद में आंध्र प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया, जिसका नाम बदलकर 1996 में आचार्य एनजी रंगा कृषि विश्वविद्यालय कर दिया गया और तेलंगाना राज्य के गठन के बाद इसे दो विश्वविद्यालयों में विभाजित कर दिया गया। तेलंगाना में विश्वविद्यालय का नाम जुलाई 2014 में प्रोफेसर जयशंकर कृषि विश्वविद्यालय रखा गया था । शास्त्री ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद का भी उद्घाटन किया । लाल बहादुर शास्त्री ने नवंबर 1964 में चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट के जवाहर डॉक का उद्घाटन किया और वीओ चिदंबरनार पोर्ट अथॉरिटी का निर्माण कार्य शुरू किया । उन्होंने गुजरात राज्य में सैनिक स्कूल बालाचडी का उद्घाटन किया। अलमाटी बांध की आधारशिला रखी।
उन्होंने दूसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान देश का नेतृत्व किया । उनका नारा " जय जवान, जय किसान " युद्ध के दौरान बहुत लोकप्रिय हुआ। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद घोषणा के साथ युद्ध औपचारिक रूप से समाप्त हो गया ।
अगले दिन शास्त्री की मृत्यु हो गई।
विदेश दौरे की फोटो ओवर कोट में
विदेश नीति -
प्रधान मंत्री के रूप में अपने पहले प्रसारण में,11 जून 1964 को शास्त्री ने कहा कि प्रत्येक राष्ट्र के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वह इतिहास के चौराहे पर खड़ा होता है और उसे चुनना होता है कि उसे किस रास्ते पर जाना है। लेकिन हमारे लिए, किसी कठिनाई या झिझक की जरूरत नहीं है, दाएं या बाएं देखने की जरूरत नहीं है। हमारा रास्ता सीधा और स्पष्ट है - सभी के लिए स्वतंत्रता और समृद्धि के साथ घर में समाजवादी लोकतंत्र का निर्माण, और सभी देशों के साथ विश्व शांति और मित्रता बनाए रखना।
लाल बहादुर शास्त्री
शास्त्री ने नेहरू की गुटनिरपेक्षता की नीति को जारी रखा लेकिन सोवियत संघ के साथ भी घनिष्ठ संबंध बनाए । 1962 के भारत-चीन युद्ध और चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य संबंधों के गठन के बाद शास्त्री सरकार ने देश के रक्षा बजट का विस्तार करने का निर्णय लिया। 1964 में भारतीय धरती पर उतरने पर प्रवासियों को आश्रय देने के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने के लिए स्थानीय सरकारों की संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किए। विशेष रूप से मद्रास राज्य में उस समय के मुख्यमंत्री मिंजुर के. भक्तवत्सलम ने लौटने वालों का पुनर्वास।
दिसंबर 1965 में रंगून (बर्मा) की आधिकारिक यात्रा की और देश की जनरल ने विन की सैन्य सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध फिर से स्थापित किए।
प्रधान मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, शास्त्री ने सोवियत संघ , यूगोस्लाविया , इंग्लैंड, कनाडा , नेपाल, मिस्र और बर्मा सहित कई देशों का दौरा किया। अक्टूबर 1964 में काहिरा में गैर गठबंधन सम्मेलन से लौटते समय, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के निमंत्रण पर , उनके साथ दोपहर का भोजन करने के लिए, शास्त्री कुछ घंटों के लिए कराची हवाई अड्डे पर रुके। प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए, अयूब खान ने व्यक्तिगत रूप से हवाई अड्डे पर उनका स्वागत किया और उनके बीच एक अनौपचारिक बैठक हुई।
घरेलू नीतियां -
शास्त्री जी ने नेहरू मंत्रीमंडल के कई सदस्यों को यथावत रखा जेसे टीटी कृष्णामाचारी को भारत के वित्त मंत्री , रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण गुलज़ारीलाल नंदा गृह मंत्री बने रहे। स्वर्ण सिंह को विदेश मंत्री इंदिरा गांधी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया।
तमिलनाडु का हिंदी विरोधी आंदोलन -
लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में 1965 का मद्रास हिंदी विरोधी आंदोलन शुरू हुआ। भारत सरकार ने लंबे समय से हिंदी को भारत की एकमात्र राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। इसका गैर-हिन्दी भाषी राज्यों विशेषकर मद्रास राज्य में विरोध हुआ। शांति स्थापना हेतु शास्त्री जी ने तय किया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी का उपयोग जारी रहेगा। शास्त्री जी के आश्वासन के बाद दंगे शांत हो गए, साथ ही छात्र आंदोलन भी शांत हो गया।
एक सभा को संबोधित करते हुए
वित्तीय नीतियाँ -
18 अप्रैल 1965 को लाल बहादुर शास्त्री द्वारा एमएनआरईसी इलाहाबाद के मुख्य भवन का उद्घाटन किया गया। शास्त्री जी ने केंद्रीय योजना के साथ नेहरू की समाजवादी आर्थिक नीतियों को जारी रखा।उन्होंने आनंद, गुजरात की अमूल दूध सहकारी समिति का समर्थन करके और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाकर श्वेत क्रांति - दूध के उत्पादन और आपूर्ति को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय अभियान - को बढ़ावा दिया। उन्होंने कंजरी में अमूल की पशु चारा फैक्ट्री के उद्घाटन के लिए 31 अक्टूबर 1964 को आनंद का दौरा किया। उन्हें इस सहकारी समिति की सफलता जानने में गहरी दिलचस्पी थी इसलिए वे एक गाँव में किसानों के साथ रात भर रुके और यहाँ तक कि एक किसान परिवार के साथ रात का खाना भी खाया। उन्होंने किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए इस मॉडल को देश के अन्य हिस्सों में दोहराने के लिए कैरा डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (अमूल) के तत्कालीन महाप्रबंधक वर्गीस कुरियन के साथ अपनी इच्छा पर चर्चा की। इस यात्रा के परिणामस्वरूप, 1965 में आनंद में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की गई।
देश भर में भोजन की गंभीर कमी पर बोलते हुए, शास्त्री ने लोगों से स्वेच्छा से एक समय का भोजन छोड़ने का आग्रह किया ताकि बचा हुआ भोजन प्रभावित आबादी को वितरित किया जा सके इस संकल्प को अपने परिवार पर लागू किया। वह अपने देशवासियों से सप्ताह में एक बार भोजन न करने की अपील करने का अनुरोध भी किया जिसकी प्रतिक्रिया ज़बरदस्त थी यहां तक कि रेस्तरां और भोजनालयों के शटर भी सोमवार शाम को बंद हो गए। देश के कई हिस्सों में शास्त्री व्रत मनाया गया। उन्होंने नई दिल्ली में अपने आधिकारिक आवास पर स्वयं लॉन की जुताई करके देश को खाद्यान्न की अधिकतम खेती के लिए प्रेरित किया।
भारत के खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए 1965 में भारत में हरित क्रांति को भी बढ़ावा दिया।] इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई, खासकर पंजाब , हरियाणा और उत्तर प्रदेश में। इस उपक्रम में प्रमुख मील के पत्थर गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों और गेहूं की रोग प्रतिरोधी किस्मों का विकास हुआ।
शास्त्री ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था को रूढ़ प्रकृति का नहीं होना चाहिए उनकी सरकार ने राष्ट्रीय कृषि उत्पाद बोर्ड अधिनियम पारित किया और खाद्य निगम अधिनियम 1964 के तहत भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की।
पाकिस्तान से युद्ध
कच्छ प्रायद्वीप के आधे हिस्से पर दावा करते हुए पाकिस्तानी सेना ने अगस्त 1965 में भारतीय सेना के साथ झड़प की। कच्छ में टकराव पर लोकसभा में अपनी रिपोर्ट में शास्त्री ने कहा
अपने सीमित संसाधनों के उपयोग में हमने हमेशा आर्थिक विकास की योजनाओं और परियोजनाओं को प्राथमिकता दी है। इसलिए, जो कोई भी चीजों को निष्पक्ष रूप से देखने के लिए तैयार है उसके लिए यह स्पष्ट होगा कि सीमा पर घटनाओं को भड़काने या संघर्ष का माहौल बनाने में भारत की कोई संभावित रुचि नहीं हो सकती, इन परिस्थितियों में, सरकार का कर्तव्य बिल्कुल स्पष्ट है और इस कर्तव्य का पूरी तरह और प्रभावी ढंग से निर्वहन किया जाएगा, हम जब तक आवश्यक होगा तब तक गरीबी में रहना पसंद करेंगे लेकिन हम अपनी स्वतंत्रता को नष्ट नहीं होने देंगे।
1 अगस्त 1965 को आतंकवादियों और पाकिस्तानी सैनिकों की बड़ी घुसपैठें शुरू हो गई। भारत ने अपनी सेनाएं युद्ध विराम रेखा (नियंत्रण रेखा ) के पार भेज दीं और सामान्य पैमाने पर युद्ध छिड़ जाने पर लाहौर के पास अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके पाकिस्तान में का पहुंचे। पंजाब में बड़े पैमाने पर टैंकों से युद्ध हुआ और पाकिस्तानी सेना ने उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में बढ़त हासिल की, भारतीय सेना ने कश्मीर में हाजी पीर में प्रमुख चौकी पर कब्जा कर लिया, और पाकिस्तानी शहर लाहौर पहुंच गए।
23 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से युद्ध विराम हुआ। युद्धविराम के दिन राष्ट्र के नाम एक प्रसारण में शास्त्री ने कहा -
दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं के बीच संघर्ष समाप्त हो गया है, संयुक्त राष्ट्र और शांति के लिए खड़े सभी लोगों के लिए अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि गहरे संघर्ष को समाप्त किया जाए, इसे कैसे लाया जा सकता है के बारे में हमारे विचार में एकमात्र उत्तर शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में है। भारत सहअस्तित्व के सिद्धांत पर अडिग रहा है और पूरी दुनिया ने इसका समर्थन किया है। राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सहअस्तित्व संभव है चाहे उनके बीच मतभेद कितने भी गहरे क्यों न हों वे अपनी राजनीतिक और आर्थिक प्रणालियों में कितने भी दूर क्यों न हों चाहे उन्हें विभाजित करने वाले मुद्दे कितने ही तीव्र क्यों न हों।
1965 में पाकिस्तान के साथ युद्धविराम के बाद शास्त्री और अयूब खान ने ताशकंद (पूर्व यूएसएसआर अब उज़्बेकिस्तान) में एलेक्सी कोसिगिन द्वारा आयोजित एक शिखर सम्मेलन में भाग लिया । 10 जनवरी 1966 को शास्त्री और अयूब खान ने ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर किये ।
शास्त्री जी की मृत्यु एक रहस्य -
11 जनवरी 1966 को तासकंद में उनका निधन हो गया। एक रिपोर्ट के अनुसार यह हृदय गति रुकने से हुआ। परंतु आज भी कई विद्वान और विचारक इसे हत्या मान रहे हैं।
दिल्ली पुलिस के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने 29 जुलाई 2009 को अपने उत्तर में कहा, "भारत के पूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु से संबंधित ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। इसलिए संबंधित अपेक्षित जानकारी कृपया शून्य माना जाए। इससे और अधिक संदेह पैदा हो गया है। लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु को भारतीय राजनीति के सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक माना जाता है।
पीएमओ ने आरटीआई आवेदन के केवल दो सवालों का जवाब देते हुए कहा कि उसके पास शास्त्री की मृत्यु से संबंधित केवल एक वर्गीकृत दस्तावेज है, जिसे आरटीआई अधिनियम के तहत प्रकटीकरण से छूट दी गई है। उसने बाकी सवालों का जवाब देने के लिए विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय को भेज दिया।
विदेश मंत्रालय ने कहा कि पूर्ववर्ती सोवियत सरकार का एकमात्र दस्तावेज "पीएम के अटेंडेंस डॉक्टर आरएन चुग और कुछ रूसी डॉक्टरों की एक टीम द्वारा की गई संयुक्त चिकित्सा जांच की रिपोर्ट" है और इसमें कोई पोस्टमार्टम नहीं किया गया था। यूएसएसआर के गृह मंत्रालय ने भारत में शास्त्री के शरीर पर किए गए किसी भी पोस्टमार्टम से संबंधित प्रतिक्रिया के लिए मामले को दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय एजेंसियों से साझा नहीं किया है।
शास्त्री जी की पार्थिव देह
धार्मिक दर्शन -
पूजा पाठ में विश्वास रखने वाले शास्त्री जी पूर्णतया धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे जिन्होंने धर्म को राजनीति से पृथक माना। भारत - पाक युद्ध विराम के कुछ दिन बाद दिल्ली के राम लीला मैदान में आयोजित एक सार्वजनिक बैठक में बीबीसी की एक रिपोर्ट के बारे में शास्त्री जी ने शिकायत की जिसमें दावा किया गया था कि शास्त्री की हिंदू के रूप में पहचान का मतलब है कि वह पाकिस्तान के साथ युद्ध के लिए तैयार थे। बैठक में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि -
"मैं एक हिंदू हूं, इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे मीर मुश्ताक एक मुस्लिम हैं। श्री फ्रैंक एंथोनी जिन्होंने आपको संबोधित किया, ईसाई हैं। यहां सिख और पारसी भी हैं। हमारे देश की अनोखी बात यह है कि यहां हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी और अन्य सभी धर्मों के लोग रहते हैं। हमारे पास मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च हैं। लेकिन हम ये सब राजनीति में नहीं लाते। भारत और पाकिस्तान में यही अंतर है. जबकि पाकिस्तान खुद को इस्लामिक राज्य घोषित करता है और धर्म को एक राजनीतिक कारक के रूप में उपयोग करता है। हम भारतीयों को अपनी पसंद के किसी भी धर्म का पालन करने और अपनी इच्छानुसार किसी भी तरह से पूजा करने की स्वतंत्रता है। जहां तक राजनीति का सवाल है हम में से प्रत्येक उतना ही भारतीय है जितना दूसरा।
लाल बहादुर शास्त्री हाकी टूर्नामेंट
मीडिया जगत में लाल बहादुर शास्त्री -
(1) प्रधानमंत्री 2013 वृत्तचित्र श्रृंखला (एबीपी न्यूज़) प्रसारित हुई में भारतीय प्रधानमंत्रियों की विभिन्न नीतियों और राजनीतिक कार्यकाल का सजीव प्रसारण किया गया जिसके सात एपिसोड लाल बहादुर शास्त्री को देश के नेता के रूप में उनके कार्यकाल के लिए समर्पित रहे जिसमें शास्त्री जी की भूमिका में अखिल मिश्रा ने निभाई।
(2)1965 के भारत - पाक युद्ध पर आधारित मनोज कुमार निर्मित - निर्देशित फिल्म उपकार (1967) शास्त्री को समर्पित थी।
रेजिश मिधिला की 2014 की भारतीय मलयालम भाषा की कॉमेडी फिल्म लाल बहादुर शास्त्री का शीर्षक प्रधान मंत्री के नाम पर रखा गया है, लेकिन उनके जीवन से इसका कोई स्पष्ट संबंध नहीं है।
(3) 2015 की ड्रामा फिल्म जय जवान जय किसान मिलन अजमेरा निर्मित ग्निर्देशित में शास्त्री के जन्म से मृत्यु के जीवन को दर्शाया गया है। शास्त्री जी का किरदार अखिलेश जैन ने निभाया है।
(4)ज्योति कपूर दास की डॉक्यूमेंट्री (2018) में लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के कारण और संभावित साजिश को दर्शाती है। इसमें उनके बेटे सुनील शास्त्री के साक्षात्कार भी शामिल हैं।
(5) विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित द ताशकंद फाइल्स (2019) फिल्म लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के रहस्य के इर्द-गिर्द घूमती है।
(6) लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि स्वरूप एस सुखदेव द्वारा निर्देशित लघु फिल्म (1967)
(7) फिल्म शास्त्री जी (1986) श्रद्धांजलि स्वरूप बनाई गई।
नामकरण - कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा श्रद्धांजलि -
कृतज्ञ राष्ट्र की श्रद्धांजलि
केरल,राजस्थान, उत्तर प्रदेश,हरियाणा, नई दिल्ली, मुंबई ,पुणे, पुडुचेरी, लखनऊ, वारंगल और इलाहाबाद और एर्नाकुलम शहरों में कुछ प्रमुख सड़कों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
हिमाचल प्रदेश के मंडी में एक लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज और
नई दिल्ली, चेन्नई और लखनऊ में शास्त्री भवन हैं। 2005 में भारत सरकार ने दिल्ली विश्वविद्यालय में लोकतंत्र और शासन के क्षेत्र में उनके सम्मान में विंग बनाई।
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (मसूरी, उत्तराखंड)
लाल बहादुर शास्त्री प्रबंधन संस्थान की स्थापना 1995 में लाल बहादुर शास्त्री एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा दिल्ली में की गई थी।
शास्त्री इंडो-कैनेडियन इंस्टीट्यूट का नाम भारत और कनाडा के बीच विद्वानों की गतिविधियों को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका के कारण शास्त्री के नाम पर रखा गया था।
आईआईटी खड़गपुर के निवास हॉल में से एक का नाम उनके नाम पर लाल बहादुर शास्त्री हॉल ऑफ रेजिडेंस रखा गया है।
राजस्थान में शास्त्री सर्किल जोधपुर
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी
वर्ष 2011 में शास्त्री की 45वीं पुण्य तिथि पर उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी के रामनगर में शास्त्री के पैतृक घर के नवीनीकरण की घोषणा की और इसे संग्रहालय में बदलने की योजना की घोषणा की। वाराणसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति केंद्र, और उनके नाम पर एक सड़क के साथ, उज़्बेकिस्तान के ताशकंद शहर में हैं ।
हैदराबाद , तेलंगाना , गुजरात के अहमदाबाद, केरल के कोल्लम, गाज़ियाबाद और ओडिशा के भवानीपटना शहरों में कुछ स्टेडियमों का नाम उनके नाम पर रखा गया है ।
उत्तरी कर्नाटक में कृष्णा नदी पर बने अलमाटी बांध का नाम बदलकर लाल बहादुर शास्त्री सागर कर दिया गया जिसका शिलान्यास उनके द्वारा किया गया था। मालवाहक जहाज एमवी लाल बहादुर शास्त्री का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने उनके जन्म शताब्दी समारोह के दौरान 5 रुपये के मूल्यवर्ग में सिक्के जारी किये।
1991 से हर साल एक अखिल भारतीय लाल बहादुर शास्त्री हॉकी टूर्नामेंट आयोजित किया जाता है।
आंध्र प्रदेश में नागार्जुन सागर बांध की बाईं तट नहर का नाम लाल बहादुर शास्त्री नहर है और इसकी लंबाई 295 किमी है।
शांत स्थल का नामकरण स्मारक विजय घाट किया गया।
विजय घाट नई दिल्ली
संसद भवन के सेंट्रल हॉल में विद्या भूषण द्वारा बनाये गये शास्त्री के चित्र का अनावरण 2 अक्टूबर 1993 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा किया गया था ।
लाल बहादुर शास्त्री स्मारक, नई दिल्ली
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट द्वारा संचालित लाल बहादुर शास्त्री स्मारक 10 जनपथ के बगल में स्थित है (जब वे प्रधान मंत्री थे तब प्रधानमंत्री निवास)।
यहां उनके जीवन की यादें और उपयोग की गई वस्तुएं संजो कर रखी गई हैं।

निजी जीवन की झलकियां
व्यक्तिगत उपयोग के समान

शास्त्री जी की प्रतिमा
शास्त्री जी की कार
जिगर चुरुवी
शमशेर भालू खान
9587243963