भेड़
दुनिया की सबसे महंगी भेड़ -
डबल डायमंड टेक्सेल नस्ल भेड़ है जो स्कॉटलैंड में नीलामी में लगभग 490,000 डॉलर में बेचा गया।
1.भेड़ - साधारण/सीधा आदमी
2. भेड़ को कुत्ता दिखाना - डराना
3. भेड़ चाल - बिना सोचे समझे अंध भक्ति
4. चलता फिरता ATM - कभी भी धन प्राप्त कर सकते हैं।
5. भेड़ की खाल में भेड़िया - विश्वासघाती
6. धोलिया धन - यह व्यंग्यात्मक शब्द जाट समाज के लिए काम में लिया जाता है।
7. काली भेड़ - बदनाम व्यक्ति
8. कानी भेड़ का राड़ा अलग - अलगाववादी, लोगों से अलग - थलग रहने वाला।
8. भेड़ भेली भेड़ - एक समान होना (नकारात्मक)
9. भोला ब्राह्मण भेड़ खाई फिर से खाए तो राम दुहाई - गलत काम का दोराहन नहीं करने का निश्चय।
10. गई भेड़ कुएं में (रेवड़ की एक भेड़ कुएं में गिरे तो शेष कितनी बची - संपूर्ण हानि।
विभिन्न नाम -
भेड़ शब्द का प्रयोग मध्य अंग्रेजी में पुराने अंग्रेजी शब्द scēap की व्युत्पत्ति के रूप में हुआ । भेड़ों के समूह को झुंड कहा जाता है। भेड़ों के विभिन्न जीवन चरणों के लिए कई अन्य विशिष्ट शब्द हैं, जो भेड़ के बच्चे, बाल काटने और उम्र से संबंधित हैं।
छोटा बच्चा -
नर - उरनिया हिंदी में मेमना
मादा - उरणती
जवान -
नर - मिंडा
मादा - मेंडी
बूढ़ी -
नर - लरड़ा
मादा - लरड़ी
बधिया किया गया नर - वेदर
अंग्रेजी - Sheep 🐑
अरबी - गनम
भेड़ों का झुंड - रेवड़
बकी - वह मेमना जिसे समय पर बधिया नहीं किया गया हो।
गमर्स - गलत ढंग से बधिया किया गया बूढ़ा मेंढ़ा।
वेदर - बधियाकृत भेड़
भेड़ - (ओविस एरीज़) पालतू ,जुगाली करने वाला स्तनधारी आर्टियोडैक्टाइला (सम-पंजे वाले खुरधारी जीव) वर्ग के मवेशी है। भेड़ शब्द ओविस वंश की अन्य नस्लों के लिए भी प्रयोग होता है। यह शब्द अधिकांश पालतू भेड़ों को इंगित करता है। हैं। एक अरब से थोड़ी अधिक संख्या वाली भेड़ों की अनेक प्रजातियाँ हैं। भेड़ें आमतौर पर अपने सौम्य स्वभाव के लिए जानी जाती हैं। भेड़- बकरी, हरिण, कस्तूरी बैल के करीबी नातेदार हैं। भेड़ों की कुछ विशेषताएँ इसे अपने वर्ग से अलग करती हैं। स्तनधारी जीवों का पेट चार भाग में बंटा होता हैं।
1. रूमेन (सबसे बड़ा भाग)
2. रेटिकुलम
3. ओमासम
4. एबोमासम
भेड़ों की उत्पत्ति -
इनकी उत्पत्ति यूरोप और एशिया में हुई। जानवरों को पालतू बनाने के क्रम में भेड़ कुत्ते के बाद दूसरा जीव था। यह सब से पहले ईरान (मध्य एशिया) में पालतू बनाया गया। भेड़ को ऊन, मांस और दूध हेतु पाला गया। घरेलू भेड़ों के बाल (ऊन) मुड़े हुए होते हैं और उनकी पूँछ छोटी होती है। वर्तमान में विश्व में एक अरब से ज़्यादा भेड़ें हैं।
कोलंबस 1493 में नई दुनिया की दूसरी यात्रा के समय भेड़ क्यूबा लेकर आया। सन 1500 की शुरुआत में, कॉर्टेस भेड़ों को मेक्सिको और पश्चिमी अमेरिका लेकर आय। एक मान्यता के अनुसार नवाजो चुरो अमेरिका में भेड़ों की सबसे पुरानी नस्ल है। भेड़ का जीवन काल 10 से 12 साल होता है।
भेड़ पालन -
विश्व के अधिकांश भागों में कई सभ्यता काल में किया जाता रहा है। आधुनिक युग में, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिणी और मध्य दक्षिण अमेरिकी राष्ट्र और ब्रिटिश द्वीप भेड़ उत्पादन क्षेत्र हैं। खेती की शुरुआत से पहले भेड़ का मानव से संबंध है। जंगली से पालतू भेड़ तक की वंशावली सुस्पष्ट नहीं है। जंगली भेड़ ओविस एरीज़ एशियाई मफ्लॉन (ओ. गमेलिनी) की प्रजाति की वंशज है। यूरोपीय मफ्लॉन (ओविस एरीज़ मुसिमन ) इसी की वंशज है। भारत में सिंधु घाटी के मेहरगढ़ में लगभग 7000 ईसा पूर्व भेड़ों का पालन शुरू हुआ यहां से दक्षिण-पश्चिम एशिया व पश्चिमी यूरोप में भेड़ पालन शुरू हुआ। 6000 ईसा पूर्व में, प्रागितिहास के नवपाषाण काल के दौरान, फ्रांस के दक्षिण में वर्तमान मार्सिले के पास शैटेयूनेफ-लेस-मार्टिग्स के आसपास रहने वाले कास्टेलनोवियन लोग, घरेलू भेड़ रखने वाले यूरोप के पहले मानव थे। यूनानी सभ्यता भेड़ पालन पर निर्भर थी, और यहां भेड़ों के नाम रखे जाते थे। प्लिनी द एल्डर ने अपने नेचुरल हिस्ट्री ( नेचुरलिस हिस्टोरिया ) में भेड़ और ऊन के बारे में विस्तार से चर्चा की है। भेड़ों के समूह को रेवड़ी कहा जाता है। भेड़ पालक अपनी भेड़ों की पहचान हेतु गेरू या अन्य रंग से विशिष्ट अंकन करते हैं।
भेड़ का वैज्ञानिक वर्गीकरण
मुख्य समूह - यूकेरियोटा
संघ - कोर्डेटा
वर्ग - स्तनीय जन्तु
उप क्रम - आिटर्योडैक्टाइला
परिवार - बोविडे
उप परिवार - कैप्रिने
जाति - कैप्रिनी
जीनस - ओविस
प्रजाति - मेष
द्विपद नाम - ओविस एरीज़
भेड़ और धर्म प्रवर्तक -
प्राचीन समय में भेड़ों से जुड़े प्रतीकवाद प्राचीन निकट पूर्व , मध्य पूर्व और भूमध्यसागरीय क्षेत्र के धर्मों में दिखाई देते हैं। कैटलहोयुक, प्राचीन मिस्र का धर्म, कनानी और फोनीशियन परंपरा, यहूदी, ग्रीक, ईसाई और इस्लाम धर्म में भेड़ से जुड़े धार्मिक अनुष्ठानों के विवरण मिलते हैं। 8000 ईसा पूर्व बैल के साथ के साथ भेड़ की खोपड़ियां मिली हैं। प्राचीन मिस्र के धर्म में यह खनम, हेरीशाफ और अमुन (प्रजनन के देवता के रूप में उनके अवतार) का प्रतीक था। पहले मेडागास्कर में भेड़ों को नहीं खाया जाता था क्योंकि उन्हें पूर्वजों की आत्माओं का अवतार माना जाता था। भेड़ ग्रीक संदर्भ में - क्रिसोमालोस (सुनहरे ऊन वाले मेढ़े) का जिसे रूप बताया गया है। ज्योतिष में इसे मेष कहा जाता है जो ग्रीक राशि चक्र का पहला संकेत है। चीनी कैलेंडर में यह आठवां संकेत है। चीनी परंपरा अनुसार होउजी ने भेड़ों की बलि दी थी। मंगोलिया में शागाई भेड़ की हड्डियों से बना पासा होता है जिसका उपयोग भाग्य बताने हेतु किया जाता था। भेड़ की इब्राहमि धर्मों में महत्वपूर्ण भूमिका है; अब्राहम, इसहाक, जैकब, मूसा, दाऊद (डेविड),ईसा (जिसस) और मोहम्मद साहब सभी चरवाहे थे। यूनानी और रोमन धार्मिक प्रथा में नियमित रूप से भेड़ों की बलि दी जाती थी।
भेड़ की विशेषताएं -
जन्म के समय भेड़ के 20 दांत निकलते हैं और परिपक्व भेड़ के 32 दांत होते हैं। भेड़ों की आयु उनके दांतों की संख्या के आधार पर जानी जा सकती है। हर साल दूध के एक जोड़े के दांतों की जगह बड़े वयस्क दांत आ जाते हैं। आठ वयस्क सामने के दांतों का जोड़ा चार साल की उम्र में पूरा हो जाता है। भेड़ की उम्र बढ़ने के साथ-साथ सामने के दांत धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं,भेड़ सींग विहीन होती हैं परंतु कई भेड़ों के सींग हो सकते हैं। इनके सींग कान के पास से घुमावदार होते हैं। इसके कृन्तक और दाढ़ों के बीच एक बड़ा डायस्टेमा होता है। भेड़ों की सुनने की क्षमता अच्छी होती है और यह छूने पर व शोर के प्रति संवेदनशील होती हैं। भेड़ों की पुतलियाँ क्षैतिज रूप से कटी हुई होती हैं और परिधीय दृष्टि उत्कृष्ट होती है। लगभग 270° से 320° के दृश्य क्षेत्र के साथ, भेड़ें अपना सिर घुमाए बिना पीछे देख सकती हैं। कई भेड़ों के चेहरे पर केवल छोटे बाल होते हैं और कुछ के चेहरे पर बाल पोल और मेन्डिबुलर कोण के क्षेत्र तक ही सीमित होते हैं। भेड़ों में गहराई का सही मापन नहीं कर पाती। यह नीचे की बजाय सामने देख कर समूह के पीछे एक ही दिशा में चलती हैं। भेड़ काला, लाल, भूरा, हरा, पीला और सफेद पहचान सकती हैं। भेड़ों में गंध की भी बहुत अच्छी समझ होती है और अपनी प्रजाति की सभी प्रजातियों की तरह, उनकी आँखों के ठीक सामने और पैरों पर इंटरडिजिटल रूप से गंध ग्रंथियाँ होती हैं। भेड़ चेहरे पर मौजूद ग्रंथियों का उपयोग प्रजनन व्यवहार में करती है। भेड़ पैर की ग्रंथियों से स्राव कर खोई हुई भेड़ों को उनके झुंड तक पहुंचने हेतु मदद करने के लिए गंध के निशान छोड़ती हैं। अलग - थलग पड़ी भेड़ें या रेवड़ से अलग हुई भेड़ें सर नीचे झुकाकर अवसाद के लक्षण प्रकट करती हैं। भेड़ें विभिन्न चेहरे के भावों को भी पहचान सकती हैं, तथा वे चेहरे पर मुस्कान को अधिक पसंद करती हैं। अन्य जानवरों की तरह, भेड़ें भी भय, क्रोध, खुशी और ऊब जैसी विभिन्न भावनाओं को व्यक्त करने के लिए ध्वनियों का उपयोग करती हैं। भेड़ें नांद की बजाय बहता पानी पीना पसंद करती हैं।
भेड़ और बकरी में अंतर -
भेड़ और बकरियांकैप्रीनी उप परिवार में निकट संबंधी पृथक प्रजातियां हैं। इनका संकरण नहीं किया जा सकता। भेड़ और हरिण के संकरण से को जीप की उत्पत्ति हुई।
भेड़ और बकरियों में अंतर -
1. बकरी के गल थन होते हैं पर भेड़ के नहीं।
2. भेड़ ऊपरी होंठ और बकरी के ऊपरी होंठ अलग होते हैं।
3. भेड़ की पूंछ भी नीचे लटकती है जबकि बकरियों की छोटी पूंछ ऊपर की तरफ होती है।
4. भेड़ के बाल नर्म होते हैं जबकि बकरी के बाल कठोर होते हैं।
भेड़ दर्द के प्रति असंवेदनशील होती है परंतु बकरी नहीं।
5. भेड़ की नस्लों परागित होती हैं जबकि बकरियां नहीं होती।
6. बकरी गुणों में हरिन से अधिक निकट होती हैं।
7. भेड़ के मांस का रंग व गंध बकरी के मांस से अलग होती है।
भेड़ की नस्लें -
भेड़ों की नस्लों की संख्या स्पष्ट नहीं है परन्तु वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा इसकी 200 से अधिक नस्लें रजिस्टर की हैं। विश्व में वर्ष 2006 तक 1229 नस्लें गिनी गई हैं। भेड़ों का नस्लीय वर्गीकरण ऊन, मांस, दूध व खाल के आधार पर किया जाता है। इसके अलावा वर्गीकरण का आधार सींग, पूंछ की लंबाई व भेड़ की ऊंचाई भी होता है। स्थानीय आधार पर अपलैंड (पहाड़ी या पर्वत) या तराई की नस्लों के रूप में वर्णित किया जाता है। मोटी पूंछ वाली भेड़ है अफ्रीका और एशिया में मिलती हैं।
नस्लों को अक्सर उनके ऊन के प्रकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। महीन ऊन (वस्त्र निर्माण हेतु उत्तम) वाली नस्ल का ऊन सिकुड़न और घनत्व वाला होता है। नस्ल के आधार पर, भेड़ें ऊंचाई और वजन में भिन्न हो सकती हैं। मोटे बाल वाली भेड़ों की ऊन से कालीन बनाए जाते हैं। वर्तमान में कृत्रिम रेशे के कारण ऊन वाली भेड़ों की मांग कम हो रही है। जैकब
मेरिनो, रोमनी, कोट्सवोल्ड और रैम्बौइलेट नस्लें ऊन के अच्छे स्रोत माने जाते हैं। डोर्पर, हैम्पशायर, साउथडाउन, सफ़ोक और चेविओट नस्लें मांस उत्पादन के लिए पाली जाती हैं।
डेयरी उत्पादन के लिए, सबसे अच्छी भेड़ नस्ल ईस्ट फ्रीजियन, फिनिश लैंड्रेस और पॉलीपे हैं। जंगली भेड़ों की सबसे बड़ी नस्ल अर्गाली (ओविस अम्मोन) है, जो मध्य एशिया की मूल निवासी हैं। परिपक्व भेड़ों की ऊंचाई 125 सेमी और वजन 140 किलोग्राम से अधिक होता है।
भेड़ की सबसे छोटी नस्ल ओवेसेंट है । एक पूर्ण विकसित मेढ़े के कंधे की ऊंचाई लगभग 45 सेमी होती है।
सबसे अधिक भेड़ पालक देश चीन, ऑस्ट्रेलिया, भारत, नाइजीरिया और सूडान हैं।
भेड़ों की विदेशी नस्लें -
1. ईव्स नस्ल -
इसका वजन आमतौर पर 45 से 160 किलो के बीच होता है।
2. मेरिनो नस्ल -
मेरिनो का सर मध्यम आकार का ऊन से ढका रहता है। गर्दन एवं कंधे की त्वचा पर सलवटे एवं झुर्रियां दिखाई देती हैं।
मेरिनो मादा सींग रहित एवं नर घुमावदार पेंचनुमा सींग वाले होते हैं। विपरीत परिस्थितियों में जीवन में कुशल यह भेड़ विश्व मे सबसे महीन उत्तम श्रेणी का ऊन देने वाली नस्ल है। इससे सर्वाधिक कुल ऊन का 80 % उत्पादन होता है। एक भेड़ वार्षिक 4 से 5 किलो ऊन देती है। नर का वजन 90 किलो व मादा का वजन 70 किलो तक होता है। ऑस्ट्रेलिया की मेरिनो की ऊन सर्वोत्तम एवं सर्वाधिक होती है।
3. डाउन्स
इस नस्ल में ऊन की मात्रा अधिक होती है।
4. राम नस्ल -
काले चेहरे वाली इस नस्ल में मांस तेजी से बढ़ता है।
5. कोरिडेल -
यह नस्ल लंबी और महीन ऊन वाली नस्लों का संकरण है। इनकी लंबी ऊन और विकास की दर धीमी होती है। लंबी ऊन वाली भेड़ें अन्य भेड़ के गुणों को बेहतर बनाने के लिए क्रॉसब्रीडिंग हेतु अधिक मूल्यवान होती हैं।
डॉर्पर -
ऊन और बाल वाली नस्लों के बीच क्रॉस से यह नस्ल उत्पन्न होती हैं। मांस और खाल उत्पादन हेतु बाल वाली भेड़ें पालना सस्ता पड़ता है, क्योंकि उन्हें कतरने की ज़रूरत नहीं होती। यह परजीवि और गर्म मौसम के प्रति प्रतिरोधी होती हैं।
फिनशीप नस्ल -
फ़िनिश लैंड्रेस , फ़िन या फ़िनशीप फ़िनलैंड की घरेलू भेड़ों की एक नस्ल है । यह उत्तरी यूरोप की कई छोटी पूंछ वाली भेड़ों की नस्लों में से एक है। यह भेड़ एक बार में तीन से पाँच मेमने पैदा करती है।
सोय नस्ल -
हिर्टा द्वीप पर रहने वाली सोय भेड़ों की आबादी का उपयोग प्रजनन के लिए शरीर के आकार और रंग के संबंध का पता लगाने के लिए किया गया है। सोय भेड़ कई रंगों की होती हैं।
अर्गाली नस्ल -
भेड़ों की सबसे बड़ी प्रजाति है जो 1.2 मीटर लंबी हो सकती है। शिकारियों से खुद को बचाने हेरु इसके सींग लंबे होते हैं।
ओवेसेंट नस्ल -
भेड़ों का आहार -
भेड़ एक स्थान पर टिक कर चरने की बजाय चलते हुए चरना पसंद करती हैं। भेड़ के होंठ घास के जमीन में लगे भाग को उठा कर चरने में माहिर होते हैं।
भेड़ें शाकाहारी होती जो डंठल के स्थान पर छोटे तंतु एवं पत्तियां खाना अधिक पसंद करती हैं। भेड़ और बकरियाँ दोनों ही अपने होठों और जीभ का इस्तेमाल पौधे के उन हिस्सों को चुनने के लिए करती हैं जिन्हें पचाना आसान होता है या जिनमें पोषण अधिक होता है। भेड़ों, बकरी,गाय,भैंस,ऊंट आदि के पेट का पाचन संयंत्र तनों, पत्तियों और बीज के छिलकों में से सेल्यूलोज को सरल कार्बोहाइड्रेट में बदल देता है। यह वनस्पति को चबाकर तरल बोलस में बदल देती हैं, जिसे फिर रेटिकुलम के माध्यम से रूमेन में भेज दिया जाता है जहां पहले से मौजूद बैक्टीरिया, कवक और प्रोटोजोआ इसका किण्वन करते हैं। यहां मौजूद आर्किया जीवाणु कार्बन डाइऑक्साइड से मीथेन का उत्पादन करता है। बोलस को समय-समय पर अतिरिक्त चबाने और लार हेतु जुगाली के रूप में मुंह में वापस लाया जाता है। इस प्रक्रिया में अनाज या बीज पूरी तरह से रूमेन को बायपास कर देते हैं। पहले तीन कक्षों के बाद, भोजन आंतों द्वारा प्रसंस्करण से पहले अंतिम पाचन के लिए अंतिम कक्ष एबोमासम में चला जाता है। कुछ भेड़ों के आहार में खनिज भी शामिल होते हैं।भेड़ों में स्वाद सबसे महत्वपूर्ण इंद्रिय है, जो चारे की पसंद निर्धारित करती है, मीठे और खट्टे पौधों को प्राथमिकता दी जाती है। स्पर्श और दृष्टि पौधों की विशेषताओं को पहचानने में मदद करते हैं। बीमार होने पर भेड़ें विशिष्ट पौधे खाकर स्वयं दवा ले कर इलाज कर सकती हैं, जिससे उन्हें ठीक होने में मदद मिलेगी।
भेड़ों की चक्रीय चराई -
भेड़ों को दिया जाने वाला चारा विशेष रूप से तैयार किया जाना चाहिए, चारे में तांबे के तत्व भेड़ों के लिए घातक होते हैं।
चक्रीय चराई से किसानों को अतिचारण से बचने में मदद मिलती है । भेड़ें दिन भर की गतिविधियों का पालन करती हैं, सुबह से शाम तक भोजन करती हैं, बीच-बीच में आराम करने और जुगाली करने के लिए रुकती हैं। चेरी, ओक और एकोर्न, टमाटर, यू , रूबर्ब, आलू और रोडोडेंड्रोन भेड़ के लिए हानिकारक हैं। भेड़ चारे को ऊपर से खाने के बजाय जमीन की तह तक खाती हैं, इस कारण से, कई चरवाहे प्रबंधित चक्रीय चराई प्रणाली का उपयोग करते हैं। इस से चरे गए क्षेत्र में पौधों को फिर से उगने का मौका मिल जाता है। इसी को चक्रीय चराई कहते हैं।
भेड़ों का व्यवहार -
भेड़ें झुंड (रेवड़) के जानवर हैं जो अकेले होने पर तनावग्रस्त हो जाती हैं। यह अत्यधिक मिलनसार होती हैं। भेड़ों के प्रभुत्व पदानुक्रम और नेता का अनुसरण करने की उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति देखने योग्य है। सभी भेड़ों में झुंड के अन्य सदस्यों के करीब इकट्ठा होने की प्रवृत्ति होती है, यह सर से सर जोड़ कर खड़ी हो जाती हैं।हमला होने के संदेह पर कोने में खड़ी भेड़ें हमलावर पर खुर व ठोकर से आक्रमण कर सकती हैं। यह विशेष रूप से नवजात मेमनों की रक्षा हेतु अधिक आक्रामक होती हैं। भेड़ पालक किसान बिना बाड़ वाले चरागाहों पर एक साथ रखने और उन्हें आसानी से लाने- ले जाने में झुंड के व्यवहार का लाभ उठाते हैं। भेड़ अपने मालिक और मेमने की पहचान रखती हैं। अकेली भेड़ को दर्पण दिखाने पर शांत हो जाती है।
भेड़ों की लड़ाई -
भेड़ें लड़ाई, धमकियों और प्रतिस्पर्धा के माध्यम से अपना प्रभुत्व स्थापित करती हैं। प्रभुत्वशाली भेड़ ठाण में पहले चरती हैं। मेढ़ों में लड़ाई के समय तब तक लड़ते रहते हैं जब तक एक परास्त नहीं हो जाता। कभी - कभी इस लड़ाई में एक की मृत्यु भी हो जाती है। पहले के समय में मेढ़ों की लड़ाई मनोरंजन का साधन था।
प्रशिक्षण एवं सीखने की क्षमता -
भेड़ों को बुद्धिहीन एवं डरपोक जानवर माना जाता है। खतरा दिखने पर यह भागने लगते हैं और झुंड बिखर जाता है। टेम्पोरल और फ्रंटल लोब में समान विशेष तंत्रिका तंत्र भेड़ें अलग-अलग भेड़ों और मनुष्यों को उनके चेहरों से पहचानती हैं और उनकी ओर आकर्षित होती हैं। भेड़ 50 अन्य भेड़ों के चेहरों को 2 साल से अधिक समय तक याद रख सकती हैं। व्यक्तियों के चेहरे की दीर्घकालिक पहचान के अलावा, भेड़ें चेहरे की विशेषताओं के माध्यम से भावनात्मक अवस्थाओं में भी अंतर कर सकती हैं। भेड़ों द्वारा की जाने वाली ध्वनियों में मिमियाना, घुरघुराना, गड़गड़ाहट और सूंघना शामिल हैं। मिमियाना (बिंग) का प्रयोग संपर्क साधने हेतु किया जाता है। भेड़ों की मिमियाहट विशिष्ट होती है, जिससे भेड़ और उसके मेमनों को एक-दूसरे की ध्वनियों को पहचानने में मदद मिलती है। भेड़ों की उम्र और परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न प्रकार की मिमियाहटें सुनी जा सकती हैं। संपर्क संचार के अलावा, मिमियाना संकट, हताशा या अधीरता का संकेत हो सकता है। दर्द होने पर भेड़ें पर चुप रहती हैं। कतरते समय कटने पर भी यह हिलती नहीं है। कहते हैं शिकारी पीछे से भेड़ को खाता रहता है और यह चरती रहती है। मेमने के पास खतरा होने की स्थिति में भेड़ गड़गड़ाहट की आवाज़ें निकालती हैं।नासिका के माध्यम से विस्फोटक साँस छोड़ना आक्रामकता या चेतावनी का संकेत होता है। दृष्टि भेड़ों में आपसी संपर्क का महत्वपूर्ण भाग है, चरते समय, वे एक-दूसरे के साथ दृश्य संपर्क बनाए रखते हैं। यह झुंड में अन्य भेड़ों की स्थिति की जाँच करने के लिए अपना सिर ऊपर उठाती हैं। यह निरंतर निगरानी शायद भेड़ों को झुंड में चरते समय साथ-साथ चलने में सहायता करता है।
भेड़ों में प्रजनन -
मेढ़े प्रणय-प्रसंग के दौरान गड़गड़ाहट जैसी आवाज निकालते हैं। भेड़ों का संभोग काल शरद ऋतु में होता है। भेड़ें रेवड़ में समान प्रजनन रणनीति का पालन करती हैं। आम तौर पर भेड़ियों के समूह का संभोग एक अकेले मेढ़े द्वारा किया जाता है। मेंढ़ों में संसर्ग हेतु जबरदस्त लड़ाई होती है और विजेता को संसर्ग का उपहार मिलता है। मेढ़ा अपने वोमेरोनासल अंग का उपयोग भेड़ों के फेरोमोन को महसूस करने और उनके संसर्ग इच्छा जानने हेतु करता है। मादा नवजात की शुरुआती पहचान के लिए अपने वोमेरोनासल अंग का उपयोग करती है। अधिकांश भेड़ें मौसमी प्रजनक होती हैं। मादा छह से आठ महीने की उम्र में यौन परिपक्वता तक पहुंच जाती हैं और नर चार से छह महीने में। मेरिनो भेड़ें 18 से 20 महीने में यौवन तक पहुँच जाती हैं। भेड़ में लगभग हर 17 दिन के अंतराल में संसर्ग चक्र होता है। प्रजनन काल में मिलनसार मेढ़े भी हार्मोन के स्तर में वृद्धि के कारण आक्रामक हो जाते हैं।
संभोग के बाद, भेड़ों की गर्भधारण अवधि लगभग पाँच महीने की होती है और सामान्य प्रसव में एक से तीन घंटे लगते हैं। भेड़ एक बार में अपवाद को छोड़ कर एक ही मेमने को जन्म देती है। प्रसव के बाद, भेड़ एमनियोटिक थैली को तोड़ देती हैं और मेमने को चाटकर साफ करना शुरू कर देती हैं। मेमने जन्म के एक घंटे के भीतर खड़े हो कर दूध पीना शुरू कर देते हैं। भेड़ों को प्रसव से 3 सप्ताह पहले प्रतिवर्ष टीका लगाया जाता है जिससे मेमने के जन्म के समय कोलोस्ट्रम में उच्च एंटीबॉडी क्षमता बनी रहे।
समलिंगी व्यवहार -
भेड़ें मनुष्यों के अलावा एकमात्र स्तनपायी प्रजाति हैं जो समलैंगिक व्यवहार प्रदर्शित करती है। 10% मेढ़े विपरीत लिंग के स्थान पर समलिंगी यौन संबंध स्थापित करते हैं।
कुछ मादाएं जो गर्भाशय में नर भ्रूण के साथ थीं फ्रीमार्टिन (मादा जानवर जो व्यवहार में मर्दाना हैं और जिनमें कार्यशील अंडाशय की कमी है) मादा के साथ संसर्ग के प्रयास करती हैं।
भेड़ के बच्चे (मेमने) का संरक्षण -
मेमने के जन्म के बाद उसका चिह्निकरण (कान पर टैग लगाना, डॉकिंग, म्यूलिंग और बधियाकरण एवं टीकाकरण) किया जाता है। कुछ पशु पालक अपनी विशेष पहचान हेतु कान को विशेष आकार में काट कर निशान बनाते हैं। डॉकिंग और बधियाकरण 24 घंटे के बाद किया जाता है। पहला टीकाकरण एंटी-क्लोस्ट्रीडियल 10 से 12 सप्ताह में किया जाता है। उच्च गुणवत्ता वाले मांस या प्रजनन प्रयोजनार्थ अलग किए गए मेमने को बधिया नहीं किया जाता है।
भेड़ों में बीमारियां एवं उनके उपचार -
भेड़ें जहरिली वनस्पति, संक्रामक रोगों और शारीरिक चोटों का शिकार हो सकती हैं। भेड़ का शरीर बीमारी के स्पष्ट लक्षणों को छिपाने, शिकारियों द्वारा लक्षित होने से बचने के लिए अनुकूलित होता है। खराब स्वास्थ्य के कुछ लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं जैसे बीमार भेड़ें कम खाती हैं, अत्यधिक बोलती हैं, और आम तौर पर सुस्त होती हैं। भेड़ की चिकित्सा हेतु होम्योपैथी , हर्बलिज्म और पारंपरिक देसी चिकित्सा उपचार अपनाए जाते हैं। भेड़ को स्वस्थ रखने के दो मूल उपाय हैं -
1. अच्छा पोषण
2. भेड़ों में तनाव कम करना।
भेड़ एक भावनात्मक जीव है जो संयम, अलगाव, तेज़ आवाज़, नई परिस्थितियाँ, दर्द, गर्मी, ठंड, थकान और अन्य तनाव के कारण कोर्टिसोल (एक हार्मोन) का स्राव करता है जो उसकी तबियत को बिगाड़ देता है। अत्यधिक तनाव प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर शिपिंग फीवर (न्यूमोनिक मैनहेमियोसिस) जिसे पहले पेस्टुरेलोसिस कहा जाता था से ग्रस्त हो जाती हैं। दर्द, डर और कई अन्य तनाव के कारण एपिनेफ्रीन (एड्रेनालाईन) के स्राव होता है जिससे मांस में ग्लाइकोजेनोलिसिस की मात्रा बढ़ जाती है। इससे मांस की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। मांस में वध के बाद इसी कारण अम्ल तत्व बढ़ जाते हैं जिससे बैक्टीरिया को फैलने में आसानी हो जाती है। भेड़ों के लिए निवारक दवा के सामान्य रूप परजीवियों के लिए टीकाकरण और उपचार हैं। बाहरी और आंतरिक दोनों परजीवी भेड़ों में सबसे प्रचलित रोग हैं जो घातक हैं। यह रेवड़ के रेवड को खत्म कर सकता है। चरते समय भेड़ कीड़े भी साथ में निगल लेती हैं और पाचन तंत्र के माध्यम से निष्कासित होते हैं। इससे पतले दस्त शुरू हो जाते हैं। बचाव हेतु मौखिक एंटी-पैरासिटिक दवाएं (ड्रेंच) दी जानी चाहिए। परजीवियों से बचाव हेतु चक्रीय चारागाह पद्धति उपयोगी है। भेड़ों में जूँ, पिस्सु, मैगॉट्स बॉट फ्लाई एवं ब्लो-फ्लाई बाहरी परजीवी हैं जिससे लूसिलिया सेरीकाटा या एल. क्यूप्रिना रोग हो जाते हैं। मक्खियां घाव या ऊन में अण्डे देती हैं और अंडे से निकले जीव (मैगॉट्स) भेड़ के मांस को खाना शुरू कर देते हैं और उपचार के अभाव में मृत्यु का कारण बनते हैं। इसका उपचार बैसाखी (भेड़ की दुम से ऊन काटना) है। कुछ पशु पालक म्यूल्सिंग (मेमना अवस्था में भेड़ की दुम से त्वचा को हटाना) करते हैं। नोज़ बॉट मक्खी के लार्वा (भेड़ के श्वसन नलिका में रहने वाले बाहरी परजीवि) को बैकलाइनर्स स्प्रे या इमर्सिव शीप डिप्स द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
भेड़ों में कई प्रकार के जीवाणु और विषाणु जनित रोग होते हैं। खुर के रोग (फुट रॉट और फुट स्कैल्ड) का उपचार फुटबाथ (पैरों को परजीवी नाशक दवा से धोना) के माध्यम से किया जा सकता है। फुट राक से भेड़ में लंगड़ेपन के कारण चरने में बाधा आती है। ओवाइन जॉन रोग भेड़ को कमजोर करने वाला रोग है जो युवा भेड़ों को अधिक प्रभावित करता है। ब्लूटंग रोग एक कीट जनित बीमारी है जो बुखार और श्लेष्म झिल्ली की सूजन का कारण बनती है। ओवाइन रिंडरपेस्ट (पेस्टे डेस पेटिट्स रुमिनेंट्स ) संक्रामक एवं घातक वायरल रोग है। भेड़ें अत्यधिक प्रकाश एवं ध्वनि के प्रति संवेदनशील होती हैं जो इन्हे बीमार कर सकता है।
भेड़ों की कुछ बीमारियाँ मनुष्यों के संक्रमण से होती हैं। ओर्फ़ (स्कैबी माउथ, एक्टीमा या सोरमाउथ) त्वचा संक्रमण रोग है जिससे बैक्टीरिया घाव घाव बनाते हैं। क्यूटेनियस एंथ्रेक्स (वूलसॉर्टर) रोग के विषाणु भेड़ की ऊन में संचारित होते हैं जो (एनज़ूटिक) गर्भपात का कारण बन सकते हैं (गर्भवती में आसानी से संचारित हो सकते हैं। इसके अलावा चिंता का विषय प्रियन, स्क्रैपी और खुरपका-मुँहपका (एफएमडी) वायरस जनित रोग हैं। यह रोग रेवड़ को तबाह कर सकते हैं। यह रोग कभी - कभी महामारी का रूप ले लेते हैं।
भेड़ शिकारियों के निशाने पर -
भेड़ एक अंतर्मुखी और डरपोक जानवर है। यह दर्द को सहन करने की अद्भुत क्षमता रखती है। जंगल में भेड़ शेर,बाघ, चीता, लकड़बग्घा (जिनावर), भेड़िए और अन्य मांसाहारी जानवरों का आसानी से शिकार बन जाती हैं। गांवों में इसके सब से बड़े शत्रु कुत्ते हैं जो अकेले भेड़ देख कर उसे फाड़ डालते हैं। अन्य प्रजातियों की तुलना में भेड़ों में खुद का बचाव करने की बहुत कम क्षमता होती है। हमले के कारण भेड़ें बच भी जाती हैं, तो घबराहट से मर सकती हैं। बाड़े में सुरक्षित रख कर रक्षक कुत्तों की सहायता से भेड़ों का बचाव किया जा सकता है।
भेड़ पालन का अर्थव्यवस्था में महत्व -
भेड़ पालन कृषि के साथ - साथ अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण भाग है। चीन, ऑस्ट्रेलिया, भारत और ईरान में यह रेवड़ के रूप में रखी जाती है। इनके ऊन, मटन, खाल और दूध का स्थानीय उपयोग कर शेष का निर्यात किया जाता है। भेड़ के मांस और ऊन निर्यात में ऑस्ट्रेलिया का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके बाद न्यूजीलैंड ने भेड़ उत्पाद निर्यात के कारण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रभाव बना रखा है।
भेड़ का ऊन -
ऊन पहले वस्त्रों में से एक था, हालांकि 20वीं सदी तक अति मूल्यवान वस्तु था जो अब सिंथेटिक कपड़ों की लोकप्रियता और सस्ते दामों के कारण उपेक्षित है। ऊन के मूल्य में बड़ी गिरावट आई है जिससे ऊन कतरने की लागत निकलना भी मुश्किल हो गया है। इसका उपयोग कपड़ों और बिस्तर के साथ-साथ फर्नीचर बनाने और घरों को इन्सुलेट करने के लिए भी किया जाता है। ऊन रोगाणुरोधी है, आग और झुर्रियों से प्रतिरोधी है। यह बायोडिग्रेडेबल भी है।
ऊनी कपड़े सूती या रेशमी कपड़ों से ज़्यादा समय तक चलते हैं। ऊनी कपड़े 20,000 मोड़ों के बाद टूट जाते हैं, जबकि सूती कपड़े सिर्फ़ 3,000 मोड़ों के बाद टूट जाते हैं। एक भेड़ प्रति वर्ष 12 किलो ऊन दे सकती है।
ऊन उत्पादन -
बेबीलोन को ऊन की भूमि के नाम से भी जाना जाता था। बेबीलोन में 4,000 ईसा पूर्व में ऊन से बने कपड़े पहने जाते थे। जंगली भेड़ों का ऊन भूरा होता है, जबकि घरेलू भेड़ों का ऊन सफ़ेद या हल्का भूरा होता है। कई भेड़ों की ऊन में धब्बे होते हैं।
ऊन उद्योग का विकास लगभग 6,000 ईसा पूर्व ईरान और अन्य फ़ारसी देशों में हुआ था। फारसी भाषा में सफ पहनने वाले को सूफी कहा जाता था। सफ भेड़ की ऊन से बना कपड़ा कहलाता है।
सन 1600 में ऊनी कपड़ों के उत्पादन में वर्चस्व हासिल करने हेतु इंग्लैंड ने अमेरिका में भेड़ों का आयात करना अवैध घोषित कर दिया। इस कानून का उल्लंघन करने वाले के हाथ काटने की सजा तय की गई। तस्करी के कारण अमेरिका में 1664 तक भेड़ों की संख्या 10,000 हो गई। सन 1600 के अंत में अमेरिका ने ऊनी वस्तुओं का निर्यात करना शुरू कर दिया, जिससे इंग्लैंड नाराज़ हो गया। स्टैम्प एक्ट के कारण अमेरिकी से इंग्लैंड का क्रांतिकारी युद्ध हुआ। सर्वोत्तम ऊन मेरिनो (ऑस्ट्रेलिया) भेड़ की होती है।
भेड़ का मांस - (लैंब/मटन)
शब्द मटन फ्रांसीसी शब्द मोटन से लिया गया है जो एंग्लो-नॉर्मन द्वारा भेड़ के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द था। विश्व में हर वर्ष लगभग 540 मिलियन भेड़ों का वध का वध किया जाता है
अंग्रेजी में स्केप जीवित भेड़ को कहते हैं। दो वर्ष आयु की भेड़ का मांस मटन और एक वर्ष से कम भेड़ का लैम्ब कहलाता है।
भेड़ का मांस और दूध शिकार और संग्रहण से कृषि में कार्य की शुरुआत तक मानव सभ्यता द्वारा खाए जाने वाले मुख्य प्रोटीन में से एक रहा है। भेड़ का मांस फ्रांस, अफ्रीका, अरब, कैरिबियन, शेष मध्य पूर्व, भारत और चीन में लोकप्रिय है।
बकरी का मांस भेड़ के मांस से अधिक स्वादिष्ट,पौष्टिक और लम्बा टिकने वाला है जिससे भेड़ के मांस की खपत कम होती जा रही है। भेड़ के अंडकोष (एनिमेल्स/ लैम्ब फ्राई) पूरी दुनिया के कई हिस्सों में चाव से खाया जाता है। चिकन, बीफ एवं पोर्क जैसे सस्ते मांस के कारण मटन की खपत में कमी आई है। बकरी के मांस से भेड़ का मांस सस्ता होता है।
भेड़ की चमड़ी (खाल)
भेड़ की खाल (लैम्बस्किन/शियरलिंग) को इसे मुलायम चमड़े में बदलने हेतु टैनिंग प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
भेड़ की खाल का चमड़ा पर्स, बैग, जूते, बेल्ट, जैकेट, तथा सोफे और कार सीट कवर एवं कालीन बनाने के काम आती है।
भेड़ का दूध -
भेड़ का दूध ताजा रूप में सीधा कम पिया जाता है। इसका उपयोग पनीर और दही बनाने में अधिक किया जाता है। भेड़ के दो थन होते हैं जिससे अन्य पशुओं की तुलना में कम दूध उत्पादन होता ह। भेड़ के दूध में गाय की तुलना में अत्यधिक वसा, ठोस पदार्थ और खनिज होते हैं जो पनीर हेतु सर्वोत्तम है। यह अपने उच्च कैल्शियम सामग्री के कारण ठंडा करने के दौरान संदूषण को बेहतर ढंग से रोकता है। भेड़ के दूध से बने प्रसिद्ध चीज़ों में बुल्गारिया और ग्रीस का फ़ेटा , फ्रांस का रोकेफोर्ट, स्पेन का मंचेगो, पेकोरिनो रोमानो और इटली का रिकोटा शामिल हैं। दही भेड़ के दूध में 4.8% लैक्टोज होता है। भेड़ के दूध में प्रोटीन अधिक होता है, जिससे यह गाय और बकरी के दूध की तुलना में अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है। भेड़ का दूध क्षारीय होता है। क्षारीय भोजन शरीर की पोषक तत्वों को तेजी से अवशोषित करने में मदद करता है जिससे प्रतिरक्षा को बढ़ावा मिलता है। भेड़ के दूध में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम और जिंक जैसे खनिज, तथा विटामिन बी6, विटामिन बी12 और विटामिन डी जैसे विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसमें अमीनो एसिड और लिनोलिक एसिड भी प्रचुर मात्रा में होता है। भेड़ के दूध में वसा की छोटी-छोटी कणिकाएं होती हैं, जिससे इसे पचाना आसान हो जाता है।
भेड़ की चर्बी -
भेड़ों के वध से प्राप्त उपोत्पाद भी मूल्यवान होते हैं: भेड़ की चर्बी का उपयोग मोमबत्ती और साबुन बनाने में किया जाता है।
भेड़ की हड्डी -
भेड़ की हड्डी और उपास्थि का उपयोग नक्काशीदार वस्तुओं जैसे पासा और बटन के साथ-साथ गोंद और जिलेटिन को सजाने के लिए किया जाता है।
भेड़ की आंत -
भेड़ की आंत से सॉसेज केसिंग बनाई जा सकती है और मेमने की आंत से सर्जिकल टांके बनाए जाते हैं। संगीत वाद्ययंत्र और टेनिस रैकेट हेतु तार बनाए जाते हैं।
भेड़ का मल -
भेड़ की मिंगनी जिसमें सेल्यूलोज की मात्रा अधिक होती है, को कागज बनाने हेतु लुगदी के साथ मिलाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे जलावन एवं खाद के रूप में काम में लिया जाता है।
भेड़ का ऊन उपउत्पाद, (लैनोलिन) -
लैनोलिन (ऊन मोम) भेड़ के ऊन का एक उपोत्पाद है। यह लिपस्टिक, मस्कारा और शैम्पू जैसे सौंदर्य प्रसाधनों में एक आम घटक है। निर्माता टेप, प्रिंटिंग स्याही और मोटर तेल बनाने के लिए भी लैनोलिन का उपयोग करते हैं।
भेड़ों पर मानव हित में अनुसंधान -
भेड़ों का उपयोग कभी-कभी चिकित्सा अनुसंधान में किया जाता है खासकर उच्च रक्तचाप और दिल की विफलता के अध्ययन हेतु। इसका अनुसंधान कार्डियोवैस्कुलर फिजियोलॉजी में शोध किया जाता है। गर्भवती भेड़ें मानव गर्भावस्था हेतु उपयोगी मॉडल हैं और इसका उपयोग कुपोषण और हाइपोक्सिया के भ्रूण के विकास पर प्रभावों की जांच के लिए किया जाता है। व्यवहार विज्ञान में भेड़ों पर अलग-अलग मामलों में चेहरे की पहचान हेतु अध्ययन के लिए किया जाता है। भेड़ की पहचान करने की शक्ति मनुष्यों के समान है। ऊनी प्रोटीन का उपयोग नैनो प्रौद्योगिकी की सहायता से घाव की ड्रेसिंग, अस्थि प्रत्यारोपण और चिकित्सा टांके बनाने के लिए किया जाता है। भेड़ का खून बैक्टीरिया संवर्धन और स्टेम सेल अनुसंधान हेतु आदर्श है।
भेड़ एवं वर्तमान बाजार -
वर्तमान में इसके विकल्प रूप में कृत्रिम उत्पाद आ गए हैं जो टिकाऊ, सस्ते एवं असंक्रमित होते हैं। इस कारण बाज़ार में भेड़ उत्पादों की मांग और मूल्य में भारी कमी आई है।
अन्य पशु की तुलना में भेड़ पालन सस्ता कार्य है। भेड़ों को अधिक लागत वा बाड़े की आवश्यकता नहीं होती है। एक गाय पालने के मूल्य में छः भेड़ पाली जा सकती हैं। पशुपालक के लिए 50 भेड़ों से छोटे रेवड़ लाभदायक नहीं होते हैं।
भेड़ का क्लोन डोली, पोली और मोली-
विज्ञान ने बहुत विकास किया है। विशेष रूप से स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग के रोसलिन संस्थान ने आनुवंशिकी अनुसंधान हेतु भेड़ों पर प्रयोग किया जिसके अभूतपूर्व परिणाम सामने आए। 1995 में सर इयान विल्मुट के नेतृत्व में मेगन और मोराग नाम की दो भेड़ों की कोशिकाओं से क्लोन की गई पहली स्तनधारी थीं, जिन्हें गाइनोमेरोगनी कहा जाता है। जुलाई 1996 में रोसलिन इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा वयस्क कोशिका से क्लोन किया गया पहला जानवर डॉली भेड़ था। एक साल बाद, डॉली नाम की एक फिनिश डोरसेट भेड़ की कोशिका से क्लोन की जाने वाली पहली स्तनधारी थी। इसके बाद, पोली और मौली एक साथ क्लोन और ट्रांसजेनिक होने वाले पहले स्तनधारी थे।
वर्ष 2008 तक भेड़ के जीनोम को पूरी तरह से अनुक्रमित नहीं किया गया था। अन्य स्तनधारियों के जीनोम द्वारा दी गई जानकारी का उपयोग करके भेड़ के डीएनए अनुक्रमों को इकट्ठा करके पूर्ण जीनोम का संस्करण तैयार किया गया। पेंग - पेंग नामक ट्रांसजेनिक भेड़ का चीनी वैज्ञानिकों द्वारा क्लोन में नाम से बनाया गया।
वर्तमान में भेड़ों की स्थिति -
भेड़ बड़ा दुष्कर एवं मेहनत वाला कार्य है। कॉर्पोरेट कृषि व्यवसाय, कृत्रिम रेशे और बकरी की उन्नत नस्ल के कारण भेड़ पालन कम होता जा रहा है। एक समय था जब हर गांव में लगभग सभी घरों में रेवड़ हुआ करते थे। खुद मेरे परिवार में हजारों भेड़ थीं जो आज कल बेच - बाच कर निवृत हैं। इसका एक कारण चरागाहों की कमी भी है। भेड़ों की कई नस्लें विलुप्त होने के कगार पर हैं। इंग्लैंड के रियर ब्रीड्स सर्वाइवल ट्रस्ट ने भेड़ की 22 नस्लों और द लाइवस्टॉक कंज़र्वेंसी ने 14 नस्लों को संकटग्रस्त विलुप्ति की ओर की श्रेणी में पंजीबद्ध किया है। अधिक मांस देने वाली भेड़ की नस्लों ने देसी नस्लों को हाशिये पर धकेल दिया है। सरकार जगह - जगह भेड़ अनुसंधान केंद्र खोल कर संरक्षण एवं संवर्धन के प्रयास कर रही है।
राजस्थान में भेड़ -
भारत मे सर्वाधिक भेड़े तेलंगाना में पाली जाती हैं, राजस्थान का स्थान चौथा है। भारत मे भेड़ की सबसे ऊंची नस्ल – नेल्लोर है। भारत मे सबसे ज्यादा ऊन देने वाली भेड़ की नस्ल – हिसार डेल है। यहां सर्वाधिक उन उत्पादन होता है। एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी व केंद्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला बीकानेर स्थापित की गई। वर्ष 1987 में भारतीय ऊन विकास बोर्ड जोधपुर में स्थापित किया गया।
जयपुर में भेड़ एवं ऊन प्रशिक्षण संस्थान व
सन 1973 में फतेहपुर सीकर में भेड़ प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया। राजस्थान के कोटा में विदेशी ऊन आयात निर्यात केंद्र स्थापित किया गया है।
राजस्थान को भेड़ो का घर कहा जाता है भारत मे भेड़ की 44 नस्ले है जिनमे
दूध उत्पादन हेतु उत्तम भेड़ नस्ल–
गद्दी
इस भेड़ का उत्पत्ति स्थान भदवाह, जम्मू कश्मीर है। नर के लंबे बड़े सींग एवं मादा सींग रहित होती है। पहाड़ियों में चरने हेतु यह सबसे चुस्त नस्ल है जो 10 से 13 cm लंबे रेशे वाला 1 से 1.5 kg ऊन वार्षिक देती है। इस ऊन से कपड़े बनाये जाते हैं।
कूका
नुरेज
गुरेज
लोही
खोरवासी
मांस हेतु उत्तम भेड़ नस्ल –
मांडिया
नेल्लोर
नीलगिरी
बलुचा
मद्रास रेड
हस्तनागरी
शाहबाद
दायरी
ऊन उत्पादन हेतु उत्तम भेड़ नस्ल –
चौकला -
हिरण जैसी चौकला भेड़ के अन्य नाम शेखावाटी व छापर नस्ल भी हैं। शेखावाटी में जन्मी इस भेड़ का मुँह सींग रहित गहरा भूरा रोमन नाक वाला होता है। यह वर्ष में 02 बार ब्याति है और प्रतिवर्ष 1.5 से 2.5 किलो ऊन देती है जो ऊन उत्तम श्रेणी की ऊन होती है इससे जर्सी एवं कालीन बनाई जाती हैं। इस भेड़ के मेमने की मृत्यु दर अधिक होती है। राजस्थान में चौकला भेड़ प्रजनन एवं अनुसंधान केंद्र बीकानेर के कोडमदेसर में स्थापित किया गया है।
बीकानेरी -
मारवाड़ी -
राजस्थान की इस नस्ल की उत्पति मारवाड़ क्षेत्र में हुई। सींग रहित काला चेहरा, कान छोटे व अंदर की ओर मुड़े हुए, ठंड/गर्मी के प्रति सहनशील, फुर्तीली, लंबी दूरी तय करने योग्य, स्वस्थ भेड़ है। इसकी ऊन को (यूरोप में) जोरिया कहा जाता है। यह वार्षिक 1.5 से 2.3 kg ऊन देती है। मारवाड़ी नस्ल रोग प्रतिरोधक जिसकी रेवड़ में जीवित दर 90 % से अधिक है।
सोनारी
नाली
मगरा
मालपुरा
काठियावाड़ी
हिसार डेल
कधानी
रक्षानी
थाल
भदरवा
दक्कनी
अविवस्त्र
अविकालीन
राजस्थान में 8 नस्ले -
मारवाडी
जैसलमेरी -
इसे डेजर्ट ब्रीड ( रेगिस्तानी नस्ल) भी कहते हैं जिसका उत्पत्ति स्थान जैसलमेर है। सींग रहित इस भेड़ का सर बड़ा, नाक रोमन,कान- लंबे,लटकते हुए खम्भेदार होते हैं। यह विपरीत परिस्थितियों के प्रति सहनशील होती है जो 3 से 4 दिन बिना पानी के रह सकती है। जैसलमेरी नस्ल प्रतिवर्ष 1.8 से 3.2 kg ऊन प्राप्त दे है।इससे अधिक मांस प्राप्त होता है। संकरण हेतु उपयुक्त नस्ल यह भेड़ जापान भेजी गई है।
सोनाड़ी -
दूध,मांस एवं ऊन उत्पादन हेतु आदर्श इस भेड़ का उत्पाति स्थान मेवाड़ है। राजस्थान की सर्वाधिक भार वाली इस नस्ल के कान चरते समय जमीन को छूते है इसलिए इसे चरणोथर भी कहा जाता है। यह भेड़ की त्रिकाजी नस्ल है यह एक दिन में 1 से 1.5 किलो दूध देती है। वार्षिक ऊन 1.5 से 2 किलो होता है।
मालपुरा -
सींग रहित इस भेड़ का उत्पति स्थान मालपुरा टोंक है जिसके कान छोटे एवं अंदर की ओर मुड़े होते हैं। यह अधिक मांस देने वाली भेड़ है। इससे प्रतिवर्ष 1 से 1.6 किलो ऊन प्राप्त होती जो मोटी एवं निम्न श्रेणी की है जिससे नमदे एवं गलीचे बनाये जाते हैं।
नाली -
इसका उत्पत्ति स्थान बीकानेर - हनुमान - गंगानगर का नाली क्षेत्र है। चेहरे पर भूरे रंग के धब्बे वाली इस भेड़ के कान लबे एवं पत्ती की तरह मुड़े हुए होते हैं जो 1.5 से 3 किलो ऊन वार्षिक देती है।
पूंगल
इस भेड़ का उत्पत्ति क्षेत्र बीकानेर (पूंगल) है। इसकी आंख व नाक के दोनों ओर भूरे रंग की धारियां होती हैं एवं निचला जबडा सफेद होता है। वार्षिक ऊन उत्पादन 1.5 से 3 किलो होता है जिससे मोटी होने के कारण कालीनें एवं नमदे बनाए जाते हैं।
मगरा -
बीकानेर - नागौर का मगरा क्षेत्र इसका उत्पत्ति स्थल है जिसे बीकानेरी चौकला नाम से भी जाना जाता है। सींग रहित इस भेड़ की आंखों पर भूरे रंग का घेरा बना होता है एवं कान छोटे एवं मुड़े हुए होते हैं।
लंबी दूरी तय करने में सक्षम यह भेड़ प्रतिवर्ष 2 किलो तक ऊन देती है।
शमशेर भालू खां
9587243963
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