हृदय रामायण
प्रातः काल बेला पक्षी गा रहे थे।
विशिष्ट जन धरा पर आ रहे थे।।1
राजा दशरथ के घर हलचल बढ़ी।
राघवी जल निर्मल की कलकल बढ़ी।।2
कौशल्या प्रसव पीड़ा सहला रही थी।
अप्सरायें उनका मन बहला रही थी।।3
दसरथ मन की अधीरता बढ़ती गई।
ज्योँ-ज्योँ सूर्य किरणें चढ़ती गई।।4
दिन नवमी का मास चैत्र का।
प्रफुल्लित हर पुष्प हर उस क्षेत्र का।।5
अयोध्या नगरी ख़ुशी से झूम रही थी।
रवि किरणे कौशल्या के पग चूम रही थी।।6
कैकई सुमित्रा भी अधीर थी।
घड़ी प्रतीक्षा की गम्भीर थी।।7
उमड़ कर मेघ घने आने लगे ।
आकर इंद्र धनुष सजाने लगे।।8
नाचे मोर कोयल मधुर गाती है।
बाल क्रंदन की ध्वनि सुनाती है।।9
जैसे दसरथ ने की यात्रा चार धाम की।
देववाणी ने कहा बोलो जय श्री राम की।।10
कौशल्या फुले नहीं समाती थी।
रघुकुल वंश को आगे बढ़ाती थी।।11
सुख दे रही बाल अठखेलियाँ।
बधाई हो रानी को बोली सहेलियाँ।।12
मन्थरा ने वक्र नयन से निहारा।
नृप नहीं बनेगा यह सूत तिहारा।।13
ममता हर्षित बाल राम खिलाती है।
पैजनियाँ। छम-छम सुख दिलाती है।।14
भिन्न रूप दिखाये भगवन करतार।
कभू बालक कभू विष्णु अवतार।।15
उठाते कभी परसुराम के कमण्डल को।
मुख में दिखाये सम्पूर्ण तारामण्डल को।।16
चारों भ्राता बाल से किशोर वय जाने लगे।
गुरु युद्ध कौशल शस्त्र विद्या सिखाने लगे।।17
शास्त्र ज्ञान रण भेद प्रखर।
सीख रहे क्षण-क्षण जाते निखर।।18
युवा हो रहे किशोर थे बालक।
धीर, वीर, गम्भीर प्रजापालक।।19
चारों भाइयों में है प्रेम अगाढ़।
एक माँ की संतान से संबन्ध प्रगाढ़।।20
सुयोग्य कन्या संग राम का हल्दहाथ हो।
लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का भी साथ हो।।21
पुत्र विवाह की चिंता में लीन थे।
भेजे निमंत्रण जो घराने कुलीन थे।।22
जनक नंदिनी ने स्वयंवर रचाया।
जनक मिथिलानरेश का निमंत्रण आया।।23
धरती की बेटी सुनयना की सुता।
खेत में हल के फल से निकली थी सीता।।24
कलश में मिली मिथिला नरेश को।
फाग बसन्त समझती सब परिवेश को।।25
ऋषि याज्ञवल्क्य से पूर्ण ज्ञान लिया।
सुख दुःख एक समान संज्ञान लिया।।26
अन्नपूर्णा सुंदर शुशील मोहिनी सीता।
ब्याह उसी से रचाये जो स्वयंवर जीता।।27
पहुँचे राम लक्ष्मण। लांघकर नदी- दीव।
प्रणय हेतु उठाने धनुष गाण्डीव।।28
उद्घोषणा में यह वचन गये सुनाये।
है कोई वीर जो शिव धनुष उठाये।।29
मल्ल बलिष्ठ राजपुत्र सब हारे।
नहीं उठा धनुष विवश काहू निहारे।।30
उठा कर धनुष प्रत्यंचा को उत्कर्ष किया।
टूटे गाण्डीव ने राम चरण स्पर्श किया।।31
सुनकर धनुष टूटने का कोहराम।
क्रोधित दौड़े आये परशुराम।।32
कौन दुष्ट इस कार्य का कारक।
जानता नहीं मैं हूँ क्षत्रिय संहारक।।33
लक्ष्मण परशुराम से हुये मुँह जोर।
बोले राम दोषी मैं, नहीं कोई ओर।।34
ऋषि विनय स्वीकारें चरण वंदन राम का।
पुराना धनुष टूटा था किस काम का।।35
परिस्थिति को शालीनता ने जोह लिया।
राम ने परशुराम का मन मोह लिया।।36
गुरु वशिष्ठ सब देख आनंद विभोर हुये।
राजा बनने के समर्थवान किशोर हुये।।37
वीर भाइयों की सर्वगुण सम्पन्न जोड़ी।
निर्मला संग लक्ष्मण सा वर ढूंढे करोड़ी।।38
बहन निर्मला को लक्ष्मण संग ब्याहा।
होता वही है जो नियति ने चाहा।।39
जनक कहे राम के आजीवन संग रहे।
परिस्थितियां हों जो सीता कुछ न कहे।।40
जानकी संग निर्मला का शुभ स्वागतं।
कुल लक्ष्मी अयोध्या सुआगतं सुआगतं।।41
जीवन सुखमय बीत रहा प्रेम सुधा अपार।
विधाता के लेख पर हम सब लाचार।।42
राज सभा में राम राज तिलक की तैयारी।
खुश कौशल्या जा रही पुत्र पर बलिहारी।।43
कैकयी की दासी मन्थरा को नहीं सुहाया।
भरत बने राजा कैसे यह जाल बिछाया।।44
मैं हूँ दासी मेरा राज से क्या काम।
बनना था भरत पर राजा बनेगा राम।।45
कौशल्या राज माता बने हमको का लेना।
तेरा क्या होगा कैकेयी सोच लेना।।46
रण क्षेत्र में दसरथ ने रथ चलाया था।
दे कर अँगुली पहिये में तूने उसे बचाया था।।47
वचन राजा के तू ने रखे हैं बचाकर।
भरत राजा बने कह दो उनसे जाकर।।48
कैकेयी भरत समान राम से अनुरागी।
मन्थरा के कथन से पुत्र प्रीति जागी।।49
ले आटी-पाटी कोप भवन में सो गई।
पुत्र मोह में आज कोमला पत्थर हो गई।।50
राजा ने मनाया ले लो धन लाख करोर।
बोली कैकेयी राजा भरत न हीं कोई ओर।।51
राजा हो तो वचन निभाओ नहीं तो जाने दो।
मेरा क्या दासी सम दासी ही मर जाने दो।।52
विवशता पूर्वक राजा ने हामी भर दी।
राज तिलक घोषणा भरत नामी कर दी।53
राजा भरत। राम को 14 साल बनवास।
स्वीकृति दसरथ की मय उच्छ्वास।।54
सुनकर सूचना कौशल्या फूटकर रोई।
हे राजन, बताओ मेरे राम का का होई।।55
बोली सीता मत रो माता राम मतिहारी।
छाया बनकर रहूँ राम की मैं दासी तिहारी।।56
सुमित्रा ने कौशल्या को धीरज बंधाया।
लक्ष्मण सदा रहे राम संग मेरा जाया।।57
युवराज ने जब गेरुये वस्त्र धारण किये।
देवों ने भी राम नाम उच्चारण किये।।58
चले राम पैदल ही जंगल को निहारे।
संग चले सब नागरिक साथ तिहारे।।59
मत रो माता तेरा आशिर्वाद साथ रहे।
राम जा रहा शरीर से आत्मा तेरे साथ रहे।।60
चले जा। रहे राम पथ नगर रोया सारा ।
बेटे बहु बिन राज महल लगे खारा।।61
पुत्र संग ज्योति गई गये वैभव सारे।
बन में भटके दसरथ राम राम पुकारे।।62
भटकते राजा को राम नाम का जाप था।
शिकार खेलते मरे श्रवण का अभिशाप था।63
सुंदर कुटिया से सुसज्जित सारा जंगल था।
जहाँ बिराजे राम वहॉं मंगल ही मंगल था।।64
मिलने आये भरत गले लगाया राम ने।
जीवन है अग्निपथ यह बताया राम ने।।65
जिद पर अड़े भाई को पादुका थमाई।
ऋणी भरत ने वो सिंहासन पर बिठाई।।66
केवट ने जब राम को सरयू पार उतारा।
नहीं भेंट देने को केवट उपकार तुम्हारा।।67
सबरी ने प्रेम से जूठे बेर खिलाये।
हर्षित खाय रामचंद्र मंद-मंद मुस्काये।।68
घायल जटायु की सेवा का किया जतन।
समय पर बदला देने का उसने दिया वचन।।69
कन्द मूल खा वन वासी सुखी रहने लगे।
बहुत बीते कुछ शेष बरस कहने लगे।।70
विधि के विधान अटल टल सकते नहीं।
प्रयास करें पर भाग्य बदल सकते नहीं।।71
सर्प नखा लक्ष्मण पर मोहित हुई।
कटे कान नाक तो क्रोधित हुई।।72
भाई रावण को बताई उसने पूरी बात।
लो लक्ष्मण से बदला तुम आज के आज।।73
मारिच मृग बनकर सुंदर वन में आया।
सीता को उछल-उछल कर खूब लुभाया।।74
स्वर्ण मृग की खाल के वस्त्र पहनूँगी राम।
जाओ! मेरे लिये यह ले कर आओ राम।।75
रखवाला लक्ष्मण को छोड़ चले मृग लाने।
मारिच का भ्रम फैलाया लगा काम आने।।76
राम की। आवाज़ में लक्ष्मण को पुकारे।
जाओ रक्षा करने विपत्ति में भ्राता तुम्हारे।।77
कहा लक्ष्मण ने यह राक्षसी उपक्रम है।
राम सलामत हैं भाभी, यह तुम्हारा भ्रम है।।78
सीता ने क्रोध से कटु कहि कछु बात।
रोते लक्ष्मण के लगा हॄदय पर आघात।।79
जाता हूँ पर ध्यान रखना मेरी मन व्यथा को।
आये कोई मत लाँघना लक्ष्मण रेखा को।।80
विवश लक्ष्मण को वहाँ से पड़ा जान।
साधु के वेष में रावण खड़ा आन।।81
उड़न खटोले में बैठा सीता हरने आया।
खूब लड़ा जटायु नहीं रोक पाया।।82
व्याकुल थे भाई सीता का वियोग।
होनी हो सो होय विधि का संयोग।।83
बलात हरण नारी का भूल बड़ी भारी।
छूना नहीं दुष्ट मुझे मै पतिव्रता नारी।।84
भटकते हुये राम को सीता के निशान मिले।
भाग्य हुआ प्रबल वहीं हनुमान मिले।।85
बाली सुग्रीव के झगड़े को निपटाया।
वध कर बाली का सुग्रीव को नृप बनाया।।86
दे निशानी राम ने लंका भेजा हनुमान को।
उड़कर पहुँचे हनुमन्त लंका स्थान को।।87
बंदिनी कुटिया में सीता को जगाया।
श्री राम ने भेजा मुझे बलवीर ने बताया।।88
राम निशान देख कर सीता खूब रोई।
कैसे हैं प्रियतम दर्शन कबहु होई।।89
समझा कर सीता को लौटे मार्ग आकाश।
कैसी है जानकी डाला स्थिति पर प्रकाश।।90
लंका जाने के बीच समुद्र बना बाधा।
ध्येय अटल के आगे टिकी कौनसी बाधा।।91
वानर सेना ने मिलकर सागर पथ बनाया।
राम नाम लिखकर पत्थर को तैराया।।92
संग सेना के रघुपत पहुँचे लंका धाम।
विभीषण को गले लगाते नहीं अघाये राम।।93
भीषण युद्ध में अनुज लक्ष्मण मूर्छा आई।
सहित पर्वत बजरंग ले आये दवाई।।94
दशानन की अमरता का राज खास था।
अमृत कुण्ड उसकी नाभि के पास था।।95
राम का तीर रावण नाभि पार हुआ।
लंकापति प्रकांड पंडित का उद्धार हुआ।।96
विशाल रूप ले बजरंग ने पूंछ बढ़ाई।
उसी पूंछ की आग से सारी लंका जलाई।।97
विजय निश्चित मीत जिसके हनुमान से।
लौटे अयोध्या राम पुष्पक विमान से।।98
जले दीप नगर में आल्हाद उमड़ पड़ा।
सीता चरित्र पर प्रश्न धोबी ने किया खड़ा।।99
धोबी के वचनों से अग्निपरीक्षा सीता की।
धरती में समाई यही दीक्षा सीता की।100
लव कुश सन्तान बलिष्ठ और गुणवान थी।
सीता का हृदय कृपा राम महान की।।101
कौन सुखी जगत में भ्रम किसकी माया।
सुखी भव में जिस मन में राम समाया।।102
जो चढ़ा वैतरणी पार उतरना होगा।
जीवन अमर नहीं सदा मरना होगा।।103
राम के नाम पाप कदापि क्षम्य नहीं।
राम अनादि पुरूष वह नगण्य नहीं।।104
ऋषि राजा नर में नरोत्तम हुये।
मर्यादित थे वो मर्यादा पुरुषोत्तम हुये।।105
मुझ में तुझ में सब में बसे राम।
द्वापर त्रेता कलयुग को रचे राम।।106
द्वेष भाव त्याग राम बनो।
बाँट-बाँट अनुराग श्री राम बनो।।107
भालू खां के पुत्र शमशेर का प्रणाम सा।
राम राम सा राम राम सा।।108
जिगर चूरूवी
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