Saturday, 3 September 2022

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन


डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन
जब राधाकृष्णन एक शिक्षक थे, तब भी वे नियमों के दायरों में नहीं बँधे थे। कक्षा में यह 20 मिनट देरी से आते थे और दस मिनट पूर्व ही चले जाते थे। इनका कहना था कि कक्षा में इन्हें जो व्याख्यान देना होता था, वह 20 मिनट के पर्याप्त समय में सम्पन्न हो जाता था।

आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है।
राधाकृष्णंन दर्शनशास्त्र का ज्ञान रखते थे जिन्होंने भारतीय दर्शनशास्त्र में पश्चिमी सोच की शुरुआत की।राधाकृष्णन नामी शिक्षक थे।
राधाकृष्णन ने सनातन धर्म को भारत और पश्चिम दोनों में फ़ैलाने का प्रयास किया। वे दोनों सभ्यताओं को मिलाना चाहते थे।

विचार -

उनका मानना था कि शिक्षकों का दिमाग देश में सबसे अच्छा होना चाहिये, क्यों कि देश को बनाने में उन्हीं का सबसे बड़ा योगदान होता है।

डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन संक्षिप्त जीवन परिचय
नाम - सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन 
(सर्वपल्ली गांव से 18वीं सदी में तिरुट्टनी आए)
जन्म - 5 सितम्बर 1888
जन्म स्थान - तिरुट्टनी, जिला चित्तूर तमिल नाडु, भारत (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) (वर्तमान में तिरुवुल्लुर जिला)
जाति - तमिल ब्राह्मण 
धर्म - सनातन
भाषा - तेलुगु
मृत्यु - 17 अप्रैल 1975)
शांत स्थान - चेन्नई, तमिल नाडु, भारत
आयु - 73 वर्ष
पिता का नाम - सर्वपल्ली वीरास्वामी
(पिता का व्यवसाय राजस्व विभाग में नौकरी)
माता का नाम - सीताम्मा (गृहणी)
भाई -बहन - पाँच भाई एक बहन
पत्नी का नाम - शिवकामु 
विवाह - राधाकृष्ण की आयु 14 वर्ष पत्नी  की आयु 10 वर्ष ( 8 म‌ई 1903) (राधाकृष्णन की दूर की चचेरी बहन)

संतान -
5 पुत्रियाँ-
1 सुमि‌‌त्रा, (1908)
2 शकुंतला, 
3 रुक्मिणी 
4 कस्तूरी 
5 एक अन्य 
1 पुत्र सर्वपल्ली गोपाल

व्यवसाय :- राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, शिक्षाविद, विचारक

राजनैतिक पार्टी - स्वतन्त्र
स्वभाव - सदाशयता, दृढ़ता और विनोदी एवम नियमो से हटकर चलने वाला स्वभाव।

राधाकृष्ण्न के आदर्श - स्वामी विवेकानन्द 

शिक्षा - 
प्रारंभिक शिक्षा - क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरूपति (1896-1900)
मेट्रिक परीक्षा पास 1902
वेल्लूर (1900 से 1904) 
बी ए 1907 इतिहास,गणित व मनोविज्ञान
उच्च शिक्षा - मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास 
एम ए दर्शनशास्त्र 1909
मद्रास से शिक्षक प्रशिक्षण 1910

शैक्षिक विशेष कार्य शिक्षक के रूप में लगभग 40 वर्ष कार्य किया  :- 
1 मैसुर महाविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक 1909
2 1916 में मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शनशास्त्र के सहायक आचार्य बने।यूरोप व अमेरिका में व्याख्यान
3 1918 मैसूर यूनिवर्सिटी के द्वारा उन्हें दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में चुना गया| ,मैनचेस्टर व लंदन में व्याख्यान माला 1929
4 सन् 1931 से 36 तक आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे।
5 ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय में 1936 से 1952 तक प्राध्यापक रहे।
6  बनारस विश्वविद्यालय में उपकुलपति ।
7 कलकत्ता विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया।
8 सन् 1939 से 48 तक काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय के चांसलर रहे।
9 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्‍वविद्यालय के चांसलर रहे।
10 1946 में युनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

पद - 
1 संविधान निर्माण समिति के सदस्य 1947 से 1949
2 कई विश्वविद्यालयों के चेयरमैन।
2 भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति 13 मई 1952 से 12 मई 1962
3 द्वितीय राष्ट्रपति  प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद शर्मा के बाद 13 मई 1962 से 13 मई 1967

विशेष
1 भारतीय संस्कृति के संवाहक,
2 प्रख्यात शिक्षाविद, 
3 महान दार्शनिक और एक 
4 आस्थावान हिन्दू विचारक 
5 लेखक 
6 विद्यार्थी काल में ट्यूटर
7 सनातन साहित्य का गहन अध्ययन
सम्मान - 
1 सन् 1954 में भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया।
2 डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राधाकृष्ण एवम् उनका दर्शन :- 
सम्पूर्ण विश्व एक विद्यालय अतः इसे एक इकाई मानकर शिक्षा प्रबन्धन करेंं। मानव को एक होना चाहिए। 

लेखन 
(1) 1912 में मनोविज्ञान के आवश्यक तत्व लघु पुस्तक (व्याख्यान संग्रह)
(2) डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन शास्त्र एवं धर्म  पर अनेक किताबे लिखी गौतम बुद्धा,जीवन और दर्शन , धर्म और समाज, भारत और विश्व 
उनका लेखन अक्सर अंग्रेज़ी भाषा में ही है।

जीवन घटना क्रम 
कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने आए जवाहर लाल नेहरू से राधाकृष्णन की प्रथम मुलाक़ात हुई वर्ष था 1928 मौसम शीत ऋतु का। जहां राधाकृष्णन ने राजकीय सेवा में रहते किसी पार्टी की बैठक में उपस्थित रहना अनियमितता की श्रेणी में माना जाता था के बावजूद उन्होंने वहा व्याख्यान दिया। और वहीं से दोनो की दोस्ती हुई। इसी मित्रतांके कारण जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राधाकृष्णन के संभाषण एवं वक्तृत्व प्रतिभा का उपयोग 14 - 15 अगस्त 1947 की रात्रि को उस समय किया जाये जब संविधान सभा का ऐतिहासिक सत्र आयोजित हो। राधाकृष्णन को यह निर्देश दिया गया कि वे अपना सम्बोधन रात्रि के ठीक 12 बजे समाप्त करें जिस की जानकारी सिर्फ इन दोनो को ही थी। क्योंकि उसके पश्चात ही नेहरू जी के नेतृत्व में संवैधानिक संसद द्वारा शपथ ली जानी थी। उन्होंने ऐसा ही किया।
आज़ादी के बाद नेहरू ने राधाकृष्ण को  राजदूत के रूप में सोवियत संघ भेजा। जहां उन्होंने अपने व्यक्तित्व एवम् कृत्त्व से अमित छाप छोड़ी।
राधाकृष्ण गैर राजनयिक व्यक्ति थे। जो मन्त्रणाएँ देर रात्रि होती थीं, वे उनमें रात्रि 10 बजे तक ही भाग लेते थे, क्योंकि उसके बाद उनके शयन का समय हो जाता था। 

उपराष्ट्रपति के रूप में चुनाव :-
सोवियत संघ से लौटने के बाद डॉक्टर राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति निर्वाचित करने के लिए संविधान के अनुसार नया पद सृजित कर उन्हे भारत गणतंत्र का प्रथन उप राष्ट्रपति नेहरू जी चुना l उन्हें राज्यसभा अध्यक्ष का पदभार दिया गया।
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद शर्मा के बाद वे भारत के द्वितीय राष्ट्रपती चुने गए।

राष्ट्रपति के रूप में चुनौतियां :- 
1 भारत पाकिस्तान युद्ध
2 भारत चीन युद्ध
3 जवाहार लाल नेहरू एवम् लाल बहादुर शास्त्री का देहांत।

सम्मान :- 
ब्रिटिश राज द्वारा 1931 में सर ब ऑर्डर ऑफ स्पेरिट का सम्मान दिया गया।
जब वे उपराष्ट्रपति बन गये तो स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद द्वारा 1954 में उन्हें महान दार्शनिक व शैक्षिक उपलब्धियों के लिये देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया गया।
राधाकृष्णन को मरणोपरांत 1975 में अमेंरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे.

विशेष :- 
भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी वीवी लक्ष्मण इनके परिवार से ही हैं।

जिगर चुरुवी
9587243963

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