Tuesday, 21 March 2023

उस्ताद बिमिल्लाह खान

      उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

           जीवन एवं व्यक्तित्व
शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जी एक बार अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में संगीत सिखाने गए। उनके सामने प्रस्ताव रखा गया कि आप यहीं पर रुक जाइए, यहां आपको बनारस जैसा माहौल दिया जाएगा। जवाब में उस्ताद ने कहा, ‘ये तो सब कर लोगे मियां! लेकिन मेरी गंगा कहां से लाओगे?’

वे कहते थे कि "दुनिया में बनारस जैसी दूसरी जगह नहीं है- गंगा में स्नान, मस्जिद में इबादत और बालाजी मंदिर में रियाज।" पांच वक्त के नमाजी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हमेशा शहनाई बजाने के पहले मां सरस्वती को याद करते थे। उनकी शहनाई के सुर गंगा के तट और बनारस के मंदिरों से लेकर मोहर्रम के जुलूसों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और लाल किले तक गूंजे। 

देश आजाद हुआ तो पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की इच्छा थी कि जब लाल किले पर आजाद भारत का पहला ध्वजारोहण हो तो उस्ताद की शहनाई भी गूंजे। उन्हें काशी से बुलवाया गया। नेहरू जी चाहते थे कि पहले तिरंगा फहराया जाए, उसके बाद शहनाई वादन हो, लेकिन उस्ताद अड़ गए। बोले- पहले मैं शहनाई बजाऊंगा, उसके बीच आप झंडा फहराएं। उन्होंने राग काफी बजाई और शहनाई की सुरलहरियों के बीच वह ऐतिहासिक झंडारोहण हुआ। इसके बाद हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से उस्ताद की शहनाई गूंजने लगी। 

बनारसी कजरी, चैती, ठुमरी और बनारस की भाषाई ठसक एवं लोकरस को उन्होंने  शास्त्रीय संगीत की संगत देकर अमर कर दिया। अपने विचारों और शहनाई के सुरों के जरिये हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब को बुलंदियां देने वाले भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।

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