Friday, 27 December 2024

सरदार मन मोहन सिंह

पूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह 
            उपलब्धियां एक नजर
1991 में सोना इंग्लैंड में गिरवी रख कर 300 करोड़ के कर्ज से भारत के आर्थिक विकास की गाथा लिखी।

          ।नोट जिनकी कीमत थी।
     राजनीति का एक पड़ाव वो भी था।
प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते हुए
मन मोहन जी की मोहक झलक
राष्ट्रपति कलाम के साथ प्रधानमंत्री सिंह
राहुल गांधी के साथ जयपुर अधिवेशन में
राज्य सभा सदन में सिंह साहब का स्थान
प्रधानमंत्री के रूप में सिंह साहब 

अंतिम दर्शन - अंतिम दर्शन

कुछ फोटो और मनमोहन सिंह 
मनमोहन सिंह छात्र के रूप में सन 1948
    इसरो वैज्ञानिकों से मिलते हुए 1978
1967 में अमेरिका फ़िनी आईलैंड दो बेटियों के साथ।
           1984 RBI ऑफिस में 
      2004 प्रधानमंत्री कार्यालय में 
2007 बॉलीवुड सुपर स्टार देव आनंद साहब के साथ
वर्ष 2008 बचपन के गाह पाकिस्तान से मिलने आए मित्र रजा अली के साथ
2005 पार्थपुर शियाचिन बेस कैंप पर
G - 20 सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के साथ जिसमें बराक ओबामा ने कहा था कि मनमोहन सिंह बोलते हैं तो पूरी दुनिया उनको सुनना पसंद करती है।
07 अगस्त 2023 को राज्य सभा में अंतिम उपस्थिति
दिसंबर 1993 नई दिल्ली ऑटो एक्सपो
पत्नी गुरु शरण कौर के साथ 1958
1991 प्रधानमंत्री p.v. नरसिम्हा राव के साथ
      प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम में
            पत्नी के साथ एक चित्र
        सोनिया गांधी जी के साथ 
           राजीव गांधी जी के साथ
    प्रधानमंत्री कार्यालय में सिंह साहब 
     प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले प्रधानमंत्री
3 जनवरी 2014 को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में100 से ज्यादा पत्रकारों के 62 प्रश्नों के उत्तर दिए।
  विदेश दौरे में मनमोहन सिंह का रुतबा

संक्षिप्त परिचय - 
नाम - मनमोहन सिंह जन्म - 26 सितंबर 1932
मृत्यु - 26 दिसम्बर 2024
काफी दिनों से बीमार चल रहे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो बार बाईपास सर्जरी हो चुकी है। दूसरी बार फ़रवरी 2009 में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इनकी शल्य-चिकित्सा की। काफी दिनों से एम्स में भर्ती सिंह साहब ने AIMS नई दिल्ली में आखिरी सांस ली।
जन्म स्थान - गाँव गाह जिला चकवाल पंजाब (पाकिस्तान)
शांत स्थान - नई दिल्ली 
अंतिम क्रिया - 28 दिसंबर 2024
अंतिम किया पर विवाद - 
कांग्रेस पार्टी सरदार मनमोहन सिंह जी का अंतिम संस्कार विजय घाट पर करना चाहती है परन्तु भारत सरकार का गृह मंत्रालय निगम घाट हेतु अनुमति पत्र जारी कर रहा है। इस हेतु भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने पत्र जारी किया है।
गृह मंत्रालय का पत्र।
पिता का नाम - गुरुमुख सिंह 
माता का नाम - अमृत कौर 
पत्नी - श्रीमती गुरशरण कौर विवाह 1958 में
मनमोहन सिंह जी पत्नी से जुड़ा एक किस्सा - 
प्रधानमंत्री के सम्मान में एक भोज का आयोजन था, उसी भोज में एक साधारण कपड़े पहने एक महिला एक कोने में बैठ भोजन कर रही थी, सभी अधिकारियों की पत्नियों को एक शानदार कार्यक्रम के बीच इतनी साधारण महिला की उपस्थिति कुछ खल रही थी, कुछ ने उनके पास जाकर उनका परिचय चाहा, तो उस महिला ने सहज भाव से कहा - मेरे पति यहाँ काम करते है। अधिकारियों की महिलाओं का शक यकीन में बदलने लगा जरूर किसी छोटे कर्मचारी की पत्नी यहाँ आकर इस शानदार कार्यक्रम की शोभा खत्म कर रही है । एक महिला ने थोड़ा रोब झाड़ते हुवे कहा साफ साफ बताओ तुम्हारे पति किस पद पर कार्य करते है ?
महिला पुनः सहज भाव से बोली जी वे प्रधानमंत्री के पद पर कार्य करते हैं। इस जवाब के बाद उस महिला की थाली में खत्म हुई रोटी लाने के लिए तमाम अधिकारियों की पत्नियों में होड़ मच गई किन्तु श्रीमती मनमोहन सिंह उन्हें धन्यवाद देते हुवे स्वयं अपना खाना लेने चल दी।
सहजता के अनुयायी प्रायः कम ही होते है।
संतान - तीन बेटियों ने पढ़ाई लिखाई के बाद अलग अलग क्षेत्र चुने और वहां उन्होंने अपनी खास जगह बनाई। शिक्षाविद हैं, इतिहासकार हैं, मानवतावादी हैं तो लेखक हैं।
1. सबसे बड़ी बेटी उपिंदर सिंह इतिहासकार और शिक्षाविद हैं,
2. दूसरी बेटी दमन सिंह लेखिका हैं, पिता पर किताब लिख चुकी हैं,
3. तीसरी बेटी अमृत कौर मानवाधिकार मामलों से जुड़ी हुई वकील हैं।
लेखन - 
1. पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है। 
भाषाएं - उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी 
(भाषण की स्क्रिप्ट अधिकांशतः उर्दू में ही लिखवाते थे)
पद - भारत के 13वें प्रधानमन्त्री
कार्यकाल - 22 मई 2004 – 26 मई 2014 तक
भारत के वित्त मंत्री - 
कार्यकाल 21 जून 1991 – 13 मई 1996
भारतीय रिज़र्व बैंक के 14वे गवर्नर
कार्यकाल - 16 सितंबर 1982 – 14 जनवरी 1985
राजनैतिक दल - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
शिक्षा - 
-बी.ए. (ऑनर्स) - पंजाब विश्वविद्यालय। 
-एम.ए. (अर्थशास्त्र) - पंजाब विश्वविद्यालय। 
-डी.फिल. (डॉक्टरेट) - ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (नफील्ड कॉलेज)। 
-कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में अध्ययन किया।

पुस्तकें - 
1. क्वेस्ट फॉर इक्विटी इन डेवलपमेंट-1986 
2. चेंजिंग इंडिया - 2019
3. चिले,इंस्टिट्यूशन्स एंड पॉलिसिस- 2004
4. मेकिंग डेमोक्रेसी वर्क फॉर प्रो पूअर-2003
5. टू द नेशन, फॉर द नेशन - 2006

जीवन परिचय -
देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत आ गया। पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने चले गए, कैंब्रिज से उन्होंने PH. D. की। इसके बाद उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से D. Fil. किया। 
डॉक्टर सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार रहे। 
सन 1978 से 1980 तक जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव रहे। 
वर्ष 1981 में डॉक्टर सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार नियुक्त हुए। 
सन 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्तमंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है।
लोकसभा चुनाव 2009 के बाद कांग्रेस को मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बने, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था।

राजनैतिक जीवन - 
पुस्तक Penguin Random House India से प्रकाशित ए.के. भट्टाचार्य की किताब India’s Finance Ministers- Stumbling into Reforms (1977 to 1998) के अनुसार डॉक्टर मनमोहन सिंह का राजनीति में आने का किस्सा बहुत रोचक है. सिंह साहब को पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव देर रात नींद से उठाकर दिया गया, जिस पर उन्हें यकीन नहीं हुआ और अगली सुबह वे अपने दफ्तर चले गए। जबकि उन्हें शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन जाना था। राजीव गांधी के शासन काल में योजना आयोग के लगातार पांच वर्ष तक उपाध्यक्ष रहे। बाद में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। पी.वी. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ और वो देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कामयाब रहे। सिंह साहब को बिना किसी सदन का सदस्य बने मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया और वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा। बाद में राज्य सभा के सदस्य बने।
वित्त मंत्री के रूप में सिंह साहब ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में बदल कर भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के समक्ष सक्षम किया। डॉक्टर साहब ने आयात और निर्यात को सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की बात हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित कर रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित की। भारत की अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी.वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोगों के कारण घेर रहा था परन्तु राव ने मनमोहन सिंह पर भरोसा रखते हुए मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद कर दिया। उदारीकरण के उत्तम परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर होने लगे।

मनमोहन सिंह और आर्थिक उदारीकरण - 
वर्ष 1991 का वो ऐतिहासिक बजट, जब मनमोहन सिंह ने की बड़ी घोषणा कि आज से लाइसेंस राज खत्म।
वर्ष 1991 से पहले भारत आर्थिक दिवालियापन के कगार पर था। वित्तीय पतन में सुधार हेतु मनमोहन सिंह की नीतियों और सुधार कार्यक्रम ने मुख्य भूमिका निभाई। उनके नाम पर कई उपलब्धियां हैं। जब देश 90 के दशक में बड़े आर्थिक संकट में था, तब वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने ऐसे बड़े फैसले लिए जिससे भारत की अर्थव्यवस्था बदल गई। आर्थिक उदारीकरण में उनका विशेष योगदान रहा। 24 जुलाई, 1991 को जब नेहरू जैकेट और आसमानी पगड़ी पहने हुए मनमोहन सिंह अपना बजट भाषण देने के लिए खड़े हुए तो सारी दुनिया की निगाहें उनके ऊपर थीं। भाषण की शुरुआत में ही उन्होंने स्वीकार किया कि इस समय वो बहुत अकेला महसूस कर रहे हैं क्योंकि राजीव गांधी का मुस्कराता हुआ चेहरा उनके सामने नहीं है। उनके भाषण में उस परिवार का बार बार ज़िक्र किया गया जिसकी नीतियों को वो सिरे से ख़ारिज कर रहे थे। दिलचस्प बात ये थी कि मनमोहन सिंह को बजट बनाने में सहायता देने वाले दो वित्त मंत्रालय के दो चोटी के अधिकारी एस.पी. शुक्ला और दीपक नैय्यर मनमोहन सिंह की विचारधारा से सहमत नहीं थे। सिंह साहब के 18000 शब्दों के बजट भाषण की सबसे ख़ास बात यह थी कि वो बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 8.40 फ़ीसदी से घटाकर 5.90 फ़ीसदी पर ले आए। इसका अर्थ हुआ सरकारी ख़र्चों में लगातार कमी करना। मनमोहन सिंह ने अपने भाषण का अंत विक्टर ह्यूगो के मशहूर उद्धरण से किया, "दुनिया की कोई ताक़त उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ पहुँचा है" महज़ कुछ मिनटों में मनमोहन सिंह ने नेहरु युग के तीन स्तंभ लाइसेंस राज, सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार और विश्व बाज़ार से भारत के अलगाव को समाप्त कर दिया। अमेरिका में भारत के राजदूत आबिद हुसैन ने वाशिंगटन से ईशेर अहलुवालिया को फ़ोन कर कहा कि वो उनकी तरफ़ से मनमोहन सिंह को गले लगा लें और उन्हें जागृति फ़िल्म का वो गाना याद दिलाएं, "दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल" यह गाना महात्मा गांधी के लिए लिखा गया था परन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य में मनमोहन सिंह पर भी लागू हो रहा था। मनमोहन सिंह की सादगी और किफ़ायत के तरीक़े से ज़िंदगी जीने के तरीक़े ने उन्हें उदारवाद की वकालत करने के लिए सशक्त बनाया। उन पर ये आरोप नहीं लग पाया कि उन्होंने उपभोक्तावाद और आलीशान ज़िंदगी के मोह के कारण उदारवाद का समर्थन किया है। सोने पर सुहागा तब हुआ जब जेनेवा में साउथ कमीशन की नौकरी के दौरान कमाए गए डॉलरों की क़ीमत रुपए के अवमूल्यन के कारण बढ़ गई तो उन्होंने सारे अतिरिक्त पैसे जोड़ कर प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा करवा दिए।

गृहित पद - 
सरदार मनमोहन सिंह भारत सरकार की कॉमर्स मिनिस्ट्री में आर्थिक सलाहकार के तौर पर शामिल हुए। 
मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में चीफ इकॉनॉमिक अडवाइज़र बन गए। अन्य जिन पदों पर वह रहे, वे हैं– वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष। 
मनमोहन सिंह पहले आसाम बाद में राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य बने रहे और राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे। मनमोहन सिंह ने प्रथम बार 72 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। इसके बाद लोकसभा के चुनाव हुए और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पुन: विजयी हुआ और सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा,  जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। वर्ष 2009 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को हुआ। 

कड़े कदम - 
26 नवम्बर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने हमला किया। दिल दहला देने वाले इस हमले ने देश को हिलाकर रख दिया। प्रधानमंत्री सिंह ने गृह मंत्री शिवराज पाटिल को पद से हटा कर वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम को गृह मंत्रालय और प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाया।

जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव - 
1. 1957 से 1965 - चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक।
2. 1969 में संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक मां के अधिकारी नियुक्त।
3. 1969 से 1971 - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर।
4. 1973 में - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
5. 1982 से 1985 - भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
6. 1985 से 1987 - योजना आयोग के उपाध्यक्ष
7. 1990 से 1991 - प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार
8. 1991 से 1996 - नरसिंहराव मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री
9. 1991 - असम से राज्यसभा के सदस्य
10. 1995 - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
11. 1996 - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
12. 1999 - दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा, हार गये।
13. 2001 - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
14. 2004 से 2014 भारत के प्रधानमन्त्री
15. इसके अतिरिक्त उन्होंने पहले पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स में प्रोफेसर का पद संभाला। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिये भी काफी महत्वपूर्ण काम किया है।

विवाद - 
मीडिया द्वारा मनमोहन सिंह जी को मौन मोहन सिंह नाम दिया गया।
तत्कालीन भाजपा नेता वर्तमान प्रधानमंत्री ने मनमोहन सिंह जी के प्रति अत्यधिक अनर्गल बयान दिए।
एक बयान के अनुसार बाथ रूम में रैन कोट पहन कर नहाने वाला की संज्ञा दी गई।
टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले के नाम पर आरोप लगे। इस घोटाले को स्वतन्त्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला कहा गया। सरकार ने जेपीसी का गठन किया और जांच की गई। उस घोटाले में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपये का घपला हुआ है। इस घोटाले में विपक्ष के भारी दवाव के चलते मनमोहन सरकार में संचार मन्त्री ए. राजा को पद से हटा दिया गया और  जेल में भी भेजा गया। भारतीय उच्चतम न्यायालय में दायर वाद पर पूरे मामले पर प्रधानमन्त्री की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। इस के जवाब में मनमोहन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जवाब दिया 
"हजारों सवालों से अच्छी है मेरी खामोशी
न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली"

2G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला - 
इसके अतिरिक्त टूजी स्पेक्ट्रम आवण्टन को लेकर संचार मन्त्री A. राजा की नियुक्ति के लिये हुई पैरवी के सम्बन्ध में नीरा राडिया, पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों से बातचीत के बाद सिंह साहब को कटघरे में खड़ा किया गया।

कोयला आबंटन घोटाला - 
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश में कोयला खान आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की लूट की ऐसा आरोप मीडिया और विपक्ष ने लगाया l
तथाकथित घोटाले का राज बताया गया कोयले का कैप्टिव ब्लॉक, जिसमें निजी क्षेत्र को उनकी मर्जी के मुताबिक ब्लॉक आवंटित कर दिया गया। इस कैप्टिव ब्लॉक नीति का फायदा हिंडाल्को, जेपी पावर, जिंदल पावर, जीवीके पावर और एस्सार आदि जैसी कंपनियों ने जोरदार तरीके से उठाया। यह नीति खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दिमाग की उपज थी।
उक्त सभी घोटालों की जांच के बाद सभी आरोप निराधार निकले, और कोर्ट ने सभी केस खारिज कर दिए।

विशेष - 

नोट बंदी पर संसदीय समिति से संबंधित संस्मरण - 
नोटबन्दी के दौरान मोदी सरकार घेरे में आ गई। मामला संसदीय समिति को सौंपा गया। RBI गवर्नर उर्जित पटेल इस मामले का बयान करते हुए Tv पर बच्चों की तरह रोने लगे। हुआ यह कि 18 जनवरी 2017  उर्जित पटेल को संसदीय समिति के समक्ष उपस्थित होना पड़ा। समिति के चेयरमैन कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोइली और सदस्य थे डॉक्टर मनमोहन सिंह। कमेटी ने उर्जित पटेल से सवाल पूछने शुरू' किए। कुछ सवालों के बाद उर्जित पटेल लड़खड़ा गए थे और जवाब देते नहीं बन पा रहा था।
सरदार मनमोहन सिंह ने उर्जित पटेल संभालते हुए कहा, कि आप पर हर सवाल का जवाब देने की पाबंदी नहीं है। आप हमारे सवालों का जवाब देने से मना' करने का हक़ भी रखते हैं। यही रिवाज है और क़ानून है। अर्जित पटेल का पक्ष लेने से विपक्षी सांसद नाराज हो गए। खुद सिंह साहब संसद में नोटबन्दी के ख़िलाफ़ मोदी सरकार को घेर चुके थे। सांसदों की नाराजगी का उत्तर देते हुए सिंह साहब ने कहा - RBI की "इंटीग्रिटी" और RBI गवर्नर की 'इज़्ज़त बहुत बड़ी बात है। मैं ख़ुद RBI का गवर्नर था। किसी अन्य की गलती के कारण, जो RBI का हो या ना हो, RBI की साख को दांव पर नहीं लगने दूंगा।RBI और देश बड़ा है, मोदी जैसे आएंगे जाएंगे पर RBI पर बट्टा लगा तो देश की सारी बैंक बरबाद हो जाएंगी। इस वाक़िए के बाद मोदी और उर्जित पटेल के रिश्ते ख़राब हो गए। पटेल ने वर्ष 2018 में RBI गवर्नर पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
यह थी सिंह साहब की दूरदर्शिता।

असीम अरुण सिंह साहब के सुरक्षा अधिकारी की कलम से -
मैं 2004 से लगभग तीन साल उनका बॉडी गार्ड रहा। एसपीजी में पीएम की सुरक्षा का सबसे अंदरुनी घेरा होता है - क्लोज़ प्रोटेक्शन टीम जिसका नेतृत्व करने का अवसर मुझे मिला था। एआईजी सीपीटी वो व्यक्ति है जो पीएम से कभी भी दूर नहीं रह सकता। यदि एक ही बॉडी गार्ड रह सकता है तो साथ यह बंदा होगा। ऐसे में उनके साथ उनकी परछाई की तरह साथ रहने की जिम्मेदारी थी मेरी। 
डॉक्टर साहब की अपनी एक ही कार थी मारुति 800, जो पीएम हाउस में चमचमाती काली बीएमडब्ल्यू के पीछे खड़ी रहती थी। मनमोहन सिंह जी बार-बार मुझे कहते- असीम, मुझे इस कार में चलना पसंद नहीं, मेरी गड्डी तो यह है (मारुति)। मैं समझाता कि सर यह गाड़ी आपके ऐश्वर्य के लिए नहीं है, इसके सिक्योरिटी फीचर्स ऐसे हैं जिसके लिए एसपीजी ने इसे लिया है। लेकिन जब कारकेड मारुति के सामने से निकलता तो वे हमेशा मन भर उसे देखते। जैसे संकल्प दोहरा रहे हो कि मैं मिडिल क्लास व्यक्ति हूं और आम आदमी की चिंता करना मेरा काम है। करोड़ों की गाड़ी पीएम की है, मेरी तो यह मारुति है।
अस्पताल में अंतिम समय 26.12.2024
              अंतिम दर्शन 
मनमोहन सिंह के विचार
01. एकता और धर्मनिरपेक्षता सरकार का आदर्श वाक्य होगा, हम भारत में विभाजनकारी राजनीति बर्दाश्त नहीं कर सकते।
02. राज्य के मामले में व्यक्ति को भावनाओं से परिपूर्ण रहना पड़ता है, लेकिन कोई व्यक्ति कभी भी भावुक नहीं हो सकता।
03. मेरा हमेशा से मानना रहा है, कि भारत ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपार उद्यमशीलता कौशल वाला देश है।
04. हमारी दृष्टि सिर्फ आर्थिक विकास की नही है, बल्कि एक ऐसे विकास की भी है, जो आम आदमी के जीवन को बेहतर बनाए।
05. पूंजीवाद ऐतिहासिक रूप से एक बहुत ही गतिशील शक्ति रहा है और उस बल के पीछे तकनीकी प्रगति, नवाचार, नए विचार, नए उत्पाद, नई प्रौद्योगिकियां और टीमों के प्रबंधन के नए तरीके हैं।
06. हारने वाला वह है, जिसने अपने सपनों को छोड़ दिया है, जब तक आप कोशिश कर रहे हैं, आप अभी तक हारे नहीं हैं।
07. मैं नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं.... मैं ईमानदारी से मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में अधिक दयालु होगा.... राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए, मैंने वह सर्वश्रेष्ठ किया है जो मैं कर सकता था। मैंने परिस्थितियों के अनुसार जितना कर सकता था, उतना किया है...मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया है, इसका फैसला इतिहास को करना है।
08. हर दिन प्रधानमंत्री भारत के लोगों का 24 घंटे का सेवक होता है।
09. हम सभी जानते हैं, कि आज दुनिया में आतंकवाद का केंद्र पाकिस्तान है। विश्व समुदाय को इस कड़वी सच्चाई से रूबरू होना होगा।

उपलब्धियां - 
01. 1991 के आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। 
02. भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला और उदारीकरण, निजीकरण, तथा वैश्वीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।
3. (LPG) की नीतियों को लागू किया। 
4. लाइसेंस राज समाप्त किया। 
. प्रधानमंत्री काल (2004-2014): 
. प्रथम कार्यकाल (2004-2009) - 
1. मनरेगा योजना की शुरुआत। 
2. सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम लागू। 
3. भारत-अमेरिका परमाणु समझौता। 
. दूसरा कार्यकाल (2009-2014)
4. आर्थिक विकास को आगे बढ़ाया। 
5. आधार कार्ड योजना (UIDAI) की शुरुआत। 
6. खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू।
7. भूमि अधिग्रहण बिल
8. 15 सूत्री कार्यक्रम
9. समस्त किसानों का 72 हजार करोड़ का कर्ज माफ
10. जीडीपी में अप्रत्याशित वृद्धि
11. DBTL (लाभार्थी के खाते में सीधा राशि का हस्तांतरण)
12. सिंह साहब ने प्रधानमंत्री रहते हुए कुल 117 बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
दैनिक भास्कर के अनुसार - 
सरदार मनमोहन सिंह के सम्मान में एक छोटा सा प्रयास

फोटो साभार - गूगल गैलरी
संदर्भ है - विभिन्न पत्रिकाएं 

शमशेर भालू खां 
जिगर चुरूवी 
9587243963

Wednesday, 25 December 2024

भारतीय राष्ट्रीय सेवा दल

सेवा दल प्रचारक नहीं विचारक तैयार करता है।
सेवा दल स्वतंत्रता आंदोलन का युवा झंडा था। यह एक येल्गार था - सामाजिक विषमता के विरुद्ध जोरदार घोषणा, आर्थिक असमानता के विरुद्ध एक चिंगारी। यह समाजवादी लोकतंत्र का सपना था। यह धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्धता थी। सेवा दल सांप्रदायिकता,  असमानता और धार्मिक घृणा के विरुद्ध लड़ने वाली ताकत थी और है।

          सेवा दल प्रतीक चिह्न 

इलाहाबाद सेवा दल अधिवेशन में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सेवादल गणवेश में 

सेवा दल - 
सेवा दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अग्रिम संगठन है जिसकी भारत के सभी राज्यों में जिला एवं ब्लॉक स्तर पर शाखाएँ हैं। 

सेवादल एक परिचय- 
स्थापना - 28 दिसंबर 1923
संस्थापक - डॉक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर (तत्कालीन मुंबई प्रेसीडेंसी, कर्नाटक निवासी)
कार्य - कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के रूप में सेवा कार्य एवं प्रशिक्षण
प्रथम स्थापना स्थल - नागपुर महाराष्ट्र 
सेवा कार्य - गांधीवादी विचारों के अनुसार शांति और अहिंसा को बढ़ावा देना।
वेबसाइट - https://inc.in/congress-seva-dal
गणवेश - सफेद वर्दी और गांधी टोपी
पुराना नाम - हिंदुस्तानी सेवा दल

सेवा दल का इतिहास - 
18 जून 1923 में नागपुर में झंडा सत्याग्रह के पश्चात कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। बहुत से कार्यकर्ता अंग्रेज सरकार के असहनीय अत्याचार के आगे टूट गए और क्षमापत्र लिख कर जेल से बाहर आ गए। 
हुबली कर्नाटक के नारायण सुब्बाराव हार्डिकर ने स्वतंत्रता आंदोलन हेतु हुबली सेवा मंडल की स्थापना की, जिसके सदस्यों ने क्षमापत्र नहीं लिखा और यातना सह कर भी मैदान में डटे रहे।
हुबली सेवा मंडल के इस साहस की चर्चा आस - पास के क्षेत्र में फैल गई जिसका पता कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को चला जो सत्याग्रह में भाग लेने हेतु नागपुर में आए थे। इसी समय कांग्रेस नेताओं ने ब्रिटिश सरकार का मुकाबला करने हेतु स्वयंसेवकों का एक सुदृढ़ संगठन बनाने पर विचार -  विमर्श किया। सन 1923 में कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन में सेवादल की स्थापना हेतु  डॉक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर के नेतृत्व में सेवादल बोर्ड बनाया गया। इस प्रकार 1 जनवरी 1924 को हिंदुस्तानी सेवा मंडल की स्थापना की गई। काकीनाडा अधिवेशन में पारित प्रस्तावानुसार हिंदुस्तानी सेवा मंडल को कांग्रेस पार्टी की कार्यसमिति की देखरेख में संगठन हेतु कार्यकर्ता तैयार करने की जिम्मेदारी तय की गई। जवाहरलाल नेहरू इसके पहले अध्यक्ष बने। 
आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केशव राव बलीराव हेडगेवार भी इस संगठन हिंदुस्तानी सेवा मंडल के सदस्य बने।
जवाहर लाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद शर्मा और सुभाषचंद्र बोस से लेकर क्रांतिकारी राजगुरू तक इसके पदाधिकारी रहे।
हिंदुस्तानी सेवा मंडल को प्रारंभ में कांग्रेस नेताओं विशेषकर सरदार वल्लभ भाई पटेल के विरोध का सामना करना पड़ा जो कांग्रेस में मिलिशिया जैसा संगठन बनाने के विचार के प्रबल विरोधी थे। कुछ नेता इसे नागरिक प्रभुत्व के विचार हेतु शंका की नजर से देखते और अहिंसा के सिद्धांतों के विपरीत मानते थे। एक स्तर तक गांधी जी भी इसके समर्थक नहीं थे।
उमाबाई कुंदापुर सेवा मंडल महिला शाखा की संस्थापक अध्यक्ष बनीं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय विशेष रूप से 1930 के दशक में संगठन से निकटता से जुड़ी थीं। सन 1931 में कराची अधिवेशन में कांग्रेस कार्यसमिति ने हिंदुस्तानी सेवा मंडल का नाम बदल कर कांग्रेस सेवा दल करने का निर्णय पारित किया। जिसके बाद यह संगठन कांग्रेस का केंद्रीय स्वयंसेवी संगठन बन गया। 
सरोजिनी नायडू ने इसका नाम हिंदुस्तानी सेवा दल रखा। उसके बाद, कांग्रेस के हर अधिवेशन में हिंदुस्तानी सेवा दल के युवा सदस्य व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते थे। बेलगाम कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी ने युवाओं से एक अपेक्षा व्यक्त की "वे बिना हिंसा के आंदोलन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हों, गांवों में जाएं, गरीबों की सेवा करें, चरखा चलाएं और कुटीर उद्योग विकसित करें।"
तत्कालिक अंग्रेज सरकार ने 1932 में कांग्रेस महिला सेना की स्थापना करने के कारण कांग्रेस सेवा दल पर प्रतिबंध लगा दिया,  कांग्रेस महिला सेना आज भी प्रतिबंधित संगठन है। प्रतिबंध लगने के बाद सेवा दल ने कई अन्य नामों से काम करना शुरू कर दिया, जैसे उत्तरी प्रांत में कौमी सेवा दल, सिंध प्रांत में हेमू कालानी की स्वराज्य सेना, सरहद प्रांत में सरहद गांधी की खुदाई खिदमतगार और बिहार में जेपी का आज़ाद दस्ता
सन 1938 में स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देने और संगठित करने का काम सेवा दल को सौंपा गया।

सेवा दल शाखाएं - 
कांग्रेस ने संघ की शाखाओं की तरह सेवा दल की शाखाएं लगाना शुरू किया। सेवा दल शाखा संचालन हेतु सवेंतनिक कर्मचारी भर्ती किए गए। शाखा में प्रशिक्षार्थियों को गणवेश (नेकर, कमीज और टोपी) के साथ जलपान निःशुल्क कांग्रेस की ओर से उपलब्ध करवाये जाते थे। थोड़े समय बाद यह शाखाएं बंद हो गईं। सन् 1970 में एक नया संगठन जिसकी 1969 से भूमिका बनाई जा रही थी युवा कांग्रेस के रूप में उभरा और सेवादल दम तोड़ने लगा।
सेवा दल मुख्यालय उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी के कर्नाटक राज्य के हुबली जिले में था। हार्डिकर के नेतृत्व में शारीरिक प्रशिक्षण हेतु यहां एकेडमी की स्थापना की गई और पूरे भारत में कई स्थानों पर प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए गए। 
सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय सेवा दल ने कांग्रेस में नए सदस्यों को शामिल करने, धरनों के आयोजन संबंधी गतिविधियों और पार्टी को संगठित शांतिपूर्ण मिलिशिया से लैस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सविनय अवज्ञा आंदोलन के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस और उसके संगठनों पर से प्रतिबंध हटा दिए।

सेवा दल पुनर्गठन - 
काकीनाडा कांग्रेस से फैजपुर कांग्रेस राष्ट्र सेवा दल के प्रारंभिक इतिहास का एक भाग है। दूसरे भाग में, राजनीतिक भागीदारी के अंतर्गत 1927 का महाड क्रांति संग्राम, 1929 का पार्वती सत्याग्रह शामिल था। एसएम जोशी, नानासाहेब गोरे, शिरूभाऊ लिमये और काका साहेब गाडगिल, जिन्होंने बाबा साहेब अम्बेडकर की ओर से पार्वती सत्याग्रह का आयोजन किया, सुरबा नाना टिपनिस, नाना साहेब पुरोहित, अनंत विनायक चित्रे जैसे लोग जिन्होंने डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर के साथ महाड क्रांति संग्राम में भाग लिया था, और गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे, जिनके हाथों बाबा साहेब ने महाड में मनुस्मृति की एक प्रति जलाई गई।
28 दिसंबर, 1936 को साने गुरुजी द्वारा शुरू किए गए राष्ट्र सेवा दल के रूप में एक नई शुरुआत हुई।
अंग्रेज सरकार के प्रतिबंध के बाद कांग्रेस सेवा दल को पुनर्गठित किया गया।
सेवा दल कार्यकर्ताओं ने न केवल ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध आंदोलन किया अपितु अपने ही देश की विभाजनकारी शक्तियों के विरुद्ध भी संघर्ष किया। यह संघर्ष असमानताओं के विरुद्ध किसान, मजदूर का समाजवादी राज्य स्थापित हेतु संघर्ष था। परन्तु प्रतिबंध के बाद का सेवा दल आंदोलन संगठित नहीं रहा। संगठित और सुदृढ़ संगठन हेतु सेवा दल को 24 मई और 4 जून, 1941 के बीच अपने पुणे शिविर में पुनर्गठित किया गया जिसके परिपेक्ष्य में समकालीन कारण भी थे। काका साहेब गाडगिल के पुत्र विट्ठलराव गाडगिल संघ की शाखा में शामिल हो गए। काका साहेब गाडगिल को गहरा दुःख हुआ कि उनका पूरा परिवार स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा था और उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके परिवार का सदस्य धार्मिक घृणा आधारित शाखा में शामिल होगा। इसलिए उन्होंने शिरुभाऊ लिमये से संपर्क किया। अंततः पूरे भारत में सेवा दल  केंद्र और शाखाएं खोलने का निर्णय लिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शुरुआत से ही अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा पैदा कर मनुस्मृति हेतु समर्थन मांगकर सांप्रदायिक जहर घोलना आरंभ कर दिया। संघ के सदस्यों ने स्वतंत्रता के आंदोलन के खिलाफ खुलकर काम करना शुरू कर दिया। यह कहना अपर्याप्त होगा कि यह सब संघ की स्थापना के साथ शुरू हुआ जो ब्रिटिश शासकों की फूट डालो और राज करो की रणनीति का भाग था। स्वतंत्रता वीर के रूप में अंडमान की सेलुलर जेल में सजा काट रहे विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश शासकों ने छः क्षमापत्रों के आधार पर 1921 में रिहा कर दिया। सावरकर ने गांधी, कांग्रेस और अल्पसंख्यकों का विरोध करने का तत्कालीन सरकार को आश्वासन दिया था। इसके बाद सावरकर रत्नागिरी आए धार्मिक उन्माद की राजनीति ने जोर पकड़ा। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना को मुस्लिम लीग की राजनीति में लाने में सफल रही। गांधी, कांग्रेस और समग्र स्वतंत्रता आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता के आधार पर जोर पकड़ रहा था, तब ब्रिटिश शासकों की फूट डालो और राज करो की रणनीति परवान चढ़ने लगी। युवाओं के जहरीले प्रचार का शिकार होने का खतरा कई गुना बढ़ गया। इस स्थिति ने युवा पीढ़ी के लिए तत्काल विकल्प उपलब्ध कराने की मांग उठने लगी। धार्मिक सौहार्द को सुनिश्चित करने हेतु घृणा पर आधारित राजनीति का विरोध करना और सामाजिक न्याय बाबत सांप्रदायिक वैमनस्य के अलगाव पैदा करना आवश्यक हो गया। इस का एकमात्र विकल्प था, अंग्रेज सरकार द्वारा प्रतिबंधित सेवा दल को पुनः संगठित करना। कांग्रेस के एस.एम. जोशी, जो हाल ही में जेल से बाहर आए, सेवा दल के पहले प्रमुख बने। यहीं से पुनर्गठित सेवा दल का आरंभ होता है।

सेवा दल महिला विंग और आजादी की लड़ाई 
क्रांति सिंह नाना साहेब पाटिल की पुत्री और जीडी बापू लाड के साथ सेवा दल के सिपाही सबसे आगे थे। युवतियाँ भी पीछे नहीं थीं। क्रांति सेना की हौसाबाई पाटिल, भूमिगत रेडियो चलाने वाली उषा मेहता, अगस्त क्रांति मैदान में तिरंगा फहराने वाली अरुणा आसफअली। और भी बहुत से नाम लिए जा सकते हैं - प्रसिद्ध लेखक पीएल देशपांडे की माताजी देशपांडे, शकुंतला परांजवे, मृणाल गोरे। केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु मध्य प्रांत, सिंध और बिहार में भी कई युवतियाँ आगे आईं और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। अप्पा मायदेव मद्रास पहुँचे, जहाँ धन्वंतरि, वसंता, लकिता और प्रमिला उनके साथ शामिल हो गए थे। कमलादेवी चट्टोपाध्याय उनकी मुख्य प्रेरणा थीं।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rss) और कांग्रेस सेवा दल में अंतर
इस वर्ष कांग्रेस सेवा दल अपनी स्थापना के 100वें साल का उत्सव मना रहा है और स्वयंसेवक संघ को एक सौ साल पूरा करने में दो वर्ष शेष हैं। सेवादल की बनिस्बत संघ की व्यापकता अत्यधिक है। सोचने का विषय यह है कि सत्ता के निकट रह कर भी सेवादल की दुर्दशा क्यों हुई और अभावों के बावजूद स्वयं सेवक संघ विशाल वट वृक्ष की भांति क्यों फल - फूल रहा है।

संघ के फलने फूलने के कारण - 
1. धार्मिक जुड़ाव।
2. धर्म विशेष का विरोध।
3. राजनीति में रह कर राजनीति से दूर।
4. औद्योगिक घरानों द्वारा आर्थिक पोषण।
5. पुजारी,पंडित या धर्माधिकारियों से दूरी।
6. शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से एक  
     पीढी को तैयार करना।
7. समय के साथ बदलाव
8. विभिन्न वाहिनियों के माध्यम से पूर्णकालिक प्रचारक।
8. अवैतनिक कार्यकर्ता।
9. दलित विरोध परन्तु छद्म रूप से।
10. धर्म रक्षक के रूप में हर घर में प्रवेश।
11. हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के कारण अल्पसंख्यक समाज को हाशिए पर लाने के प्रलोभन/स्लोगन के कारण आम सनातनी का जुड़ाव।

सेवा दल के हाशिए पर जाने के कारण
1. अपनी ही मातृ संस्था द्वारा घोर उपेक्षा।
2. जबकि सेवा दल सभी धर्मों को समान भाव देते हुए जाति,धर्म,लिंग,क्षेत्र और नस्ल के भेदभाव के बिना केवल राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र सेवा का कार्य करता है। 
3. सेवा दल एक पार्टी (कांग्रेस) के लिए खुल कर काम करता है जबकि Rss छद्म रूप से (छुप कर) भाजपा के लिए काम करता है।
4. कांग्रेस सेवा दल हेतु आर्थिक पोषण केवल पार्टी द्वारा किया जाता है और RSS के लिए आर्थिक पोषण बड़े औद्योगिक घरानों, कंपनियों और घर - घर से चंदे/सहायता के रूप में किया जाता है।
5. संघ द्वारा शिक्षा भारती नामक शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से कार्यकर्ता तैयार किए जाते हैं परंतु कांग्रेस सेवा दल केवल वयस्क सेवकों को पार्टी हेतु काम करने के लिए भर्ती करता है।

RSS और सेवा दल - 
सेवा दल की तर्ज पर दो साल बाद गठित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगातार बढ़ती ताक़त चिंताजनक है। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और डॉक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर एक ही कक्षा में पढ़ते थे। आरंभ में दोनों संगठनात्मक रूप से साथ रहते थे। हार्डिकर पर गांधीजी का प्रभाव था तो हेडगेवार हिंदू राष्ट्र का सपना देख रहे थे।
हेडगेवार ने अपना अलग रास्ता बनाते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गठन किया और हिंदू महासभा से जुड़ गए। 
जनसंघ राजनैतिक और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हिंदू महासभा की यूथ विंग के रूप में काम करता रहा। जबकि सेवा दल ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष करता रहा। 
सेवा दल और संघ की कहानी खरगोश और कछुए की कहानी जैसी है। स्वतंत्रता के पश्चात सेवा दल के पास अपना कोई लक्ष्य नहीं रहा और कांग्रेस में यह उपेक्षित हो गया। जबकि संघ RSS के सहयोग से हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु लगातार कछुआ गति से आगे बढता रहा।
पूर्व गृह मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने स्वयं सेवक संघ पर महात्‍मा गांधी की हत्‍या के बाद 4 फरवरी 1948 को प्रतिबंध लगाया। सरदार पटेल संघ विरोधी नहीं थे लेकिन वो उसकी हिंदू राष्‍ट्र समर्थक और अन्य पंथ विरोधी विचारधारा के हिमायती नहीं रहे। पटेल ने संघ पर लगाए प्रतिबंध पत्र में लिखा "हम मानते हैं कि स्वयं सेवक संघ ने सनातन समाज की सेवा की है। जब-जब समाज को आवश्यकता पड़ी संघ ने आगे बढ़ कर भाग लिया। यद्यपि संघ का एक और चेहरा है, वह अल्पसंख्यक विरोधी है।"
दूसरी ओर कांग्रेस ने सेवा दल को उत्सव मनाने, नेताओं को सलामी देने और कभी कभार मार्च पास्ट करने का साधन बना कर रखा है। हम कह सकते हैं भाजपा में संघ मातृ-संगठन है और भाजपा उसका आनुषांगिक भाग जबकि कांग्रेस में सेवा दल आनुषांगिक भाग है और कांग्रेस मातृ-संस्था है। कांग्रेस के बिना निर्देशों के बिना सेवा दल कोई कार्य नहीं कर सकता।
कांग्रेस ने सेवा दल को महज उत्सव मनाने का साधन बनाकर रख दिया। पार्टी के उत्सवों में वर्दी पहनकर खड़ा होने के अतिरक्त और कोई काम सेवा दल के पास अब नहीं रहा।
यदि सेवा दल को काम करने की छूट मिले तो एक वर्ष के भीतर स्थिति बदल सकती है। कांग्रेस और जनता के बीच सेवादल एक सेतु की तरह है। 
आज भी इसके ज़्यादातर सदस्य मध्यम वर्ग से आते हैं जो हर वर्ग की धरातलीय स्थिति से परिचित हैं, यदि इसमें सिफ़ारिशी नियुक्ति बंद हो जाए और सेवा दल के सुझावों पर कांग्रेस पार्टी अमल करे तो मजबूत संगठन वाली शक्तिशाली एवं मज़बूत पार्टी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

RSS की स्थापना के पीछे की कहानी - 
दिसंबर, 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन से पूर्व यहां के महाविद्यालयों के छात्रों द्वारा सभा कर कांग्रेस अधिवेशन के साथ - साथ अखिल भारतीय महाविद्यालय विद्यार्थी परिषद (आल इंडिया कॉलेज स्टूडेंट्स कांफ्रेंस) का भी आयोजन किये जाने का  निर्णय लिया गया जिसके प्रचार - प्रसार हेतु रामभाऊ गोखले ने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे कर कई स्थानों का भ्रमण किया। रामभाऊ सबसे पहले मुंबई जाकर गांधी जी से मिले और सभी प्रांतों में कांग्रेस के प्रमुख व्यक्तियों के नाम मांगे परन्तु गांधी जी ने मना कर दिया। 
रामभाऊ उदास हो कर नागपुर वापस आ गए जहां डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार से उनकी भेंट हुई। हरिभाऊ ने पूरा घटनाक्रम हेडगेवार को बताया। हेडगेवार ने उन्हें रेशमी साफा भेंट किया और सभी प्रांतों में अपने साथियों के पते सहित नाम दे दिए और एक गुप्त संदेश भी लिख कर दिया। रामभाऊ नई ऊर्जा सहित मिशन पर निकल गए। यहीं से शुरुआत होती है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की। हरिभाऊ ने प्रांत - प्रांत,  शहर - शहर घूम कर एक सनातनी संगठन की नींव रखने हेतु लोगों का सहयोग मांगा। इस बीच हेडगेवार सुब्बाराव हार्डिकर से जुड़े रहे और उनके संगठन के सदस्य भी बने। साथ ही चुपचाप अपना संगठन बनाने हेतु भूमिका बनाते रहे। पृष्ठभूमि तैयार होते ही राष्ट्रीय सेवा मंडल से पृथक हो कर 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की।

सेवा दल एक मिशन - 
सेवा दल कांग्रेस का वह संगठन था जिस से अंग्रेज़ डरा करते थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अनुशासित कार्यकर्ता तैयार करने का काम सेवा दल करता रहा। 
सन 1959 में कांग्रेस के नासिक अघिवेशन में शामिल होने आए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को गेट पर सुरक्षा प्रभारी कमलाकर शर्मा द्वारा इसलिए रोक दिया गया कि उनकी गणवेश पर सेवा दल का बेज नहीं लगा था। मुस्कुरा कर नेहरू जी ने बेज लगाया तब प्रवेश मिला।अधिवेशन स्थल पर कार्यरत कमलाकर शर्मा तब कांग्रेस सेवादल के नायक थे की परीक्षा लेने हेतु नेहरू जी ने जानबूझ कर बेज जेब में डाल लिया था। कमलाकर जी की इस कार्यवाही से समारोह स्थल पर हड़कंप मच गया। शानदार कार्यशैली के कारण कमलाकर शर्मा को मुंबई का चीफ़ ऑर्गेनाइजर बनाया गया।

हार्डिकर और हेडगेवार के बीच पत्राचार
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निरंतर बढ़ते प्रभाव और हिन्दुस्तानी सेवा दल के लगातार पिछड़ने के कारण की खोज हार्डिकर करना चाहते थे। इस हेतु मुंबई से डॉक्टर हर्डीकर ने  RSS की कार्यशैली को समझने हेतु उनके शिविरों के निरीक्षण हेतु अनुमति बाबत 10 दिसंबर, 1934 को डॉक्टर हेडगेवार के नाम पत्र लिखा। हेडगेवार ने प्रत्युत्तर में लिखा कि - 
"महोदय, आपका 10 दिसंबर 1934 का पत्र मिला। पत्र पाकर अति उत्साहित हूं। आप स्वयं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का यहां उपस्थित हो कर अध्ययन करना चाहते हैं, जो संघ के लिए हर्ष का विषय है। देवयोग से इसी अवसर पर संघ के शीत शिविर आयोजित होने वाले हैं, इन शिविरों के अवलोकन का अवसर आपको मिल जायेगा।"

सेवा दल का मुख पत्र - 
सेवा दल द्वारा पत्रिका का भी प्रकाशन होता था जिसे दल समाचार नाम दिया गया। RSS ने इसी की तर्ज पर बाद में पाञ्चजन्य नाम से अपना मुख पत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया।
दल समाचार बाद में बंद हो गया।

संगठन
हर प्रांत में प्रांतीय सेवा दल की कमान संभालने वाला एक प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष होता है।
सेवा दल की महिला विंग महिला सेवा दल के नाम से है।
सेवा दल संगठन ने तीन श्रेणियों के लोगों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया - 
1. बच्चे
2. किशोर
3. वयस्क
सेवा दल के हर सदस्य को शपथ लेना अनिवार्य है जिसमें अन्य बातों के साथ - साथ कांग्रेस में राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने पर बल दिया जाता है।
ऐसे समय में जब कांग्रेस रास्ता खोज रही है, उसे अपने संगठन की ओर देखना चाहिए और उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना चाहिए, जिसे 1969 के बाद लगातार ख़त्म किया जाता रहा है।

नारायण सुब्बाराव हार्डिकर - 
नारायण सुब्बाराव हार्डिकर धारवाड़ हुबली कर्नाटक।
सन् 1920 में एक युवक (हार्डिकर) अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय से स्वराज का सपना लेकर धारवाड़ लौट आया। सौभाग्य से गांधी जी भी धारवाड़ आए हुए थे। गांधीजी के दक्षिण भारत के दौरे ने धारवाड़ की हवा को आजादी के आंदोलन से भर दिया। उसी युवक ने फिर आजादी के सपने को पूरा करने के लिए युवाओं को संगठित करने हेतु “राष्ट्र सेवा दल” की स्थापना की।  
जन्म 7 मई 1889 
मृत्यु  26 अगस्त 1975
भारत के स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हिन्दुस्तान सेवा मंडल की स्थापना की। बंगाल विभाजन के विरोध में नारायण सुब्बाराव ने आर्य बाल सभा का गठन किया। आज़ादी के बाद सन 1952 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य चुना गया। समाज सेवा के क्षेत्र में सन 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।

आज का सेवा दल - 
कभी जिससे अंग्रेज़ डरा करते थे, कांग्रेस का वह सेवा दल अपनी आख़िरी सांसें गिन रहा है।
ऐसे समय में जब कांग्रेस रास्ता खोज रही है, उसे अपने संगठन की ओर देखना चाहिए और उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना चाहिए, जिसे 1969 के बाद लगातार उपेक्षित किया जाता रहा है।
कांग्रेस में सेवा दल को फ़ौजी अनुशासन और जज़्बे के लिए जाना जाता है। जिसका संगठनात्मक ढांचा और संचालन सैन्य रूप में रहा है। एक समय था जब कांग्रेस में शामिल होने से पहले सेवा दल में प्रशिक्षण आवश्यक था। इंदिरा गांधी ने अपने पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी का कांग्रेस में प्रवेश सेवा दल के माध्यम से ही करवाया। जवाहर लाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सब शीर्ष नेता सेवा दल को ‘कांग्रेस का सच्चा सिपाही’ कहते आ रहे हैं।
कांग्रेस के ये सच्चे सिपाही इन दिनों पार्टी की दुर्दशा व अपनी उपेक्षा से उदास और खिन्न हैं। ये बहुत कुछ करना चाहते हैं पर कर नहीं पा रहे हैं। 
ऐसे समय जब यह महसूस किया जा रहा है कि कांग्रेस अपनी जड़ों से उखड़ गई है और अन्य पार्टियां भी यह महसूस कर रही हैं कि संघ के जैसा ही कैडर आधारित संगठन मुक़ाबले के लिए ज़रूरी है, सेवा दल का इतिहास उसे रास्ता दिखा सकता है। इस संगठन को कांग्रेस पार्टी गंभीरता से ले तो अटूट जन समर्थन और मजबूत कार्यकर्ता के साथ पार्टी के लिए वफादार नेता तैयार किए जा सकते हैं। यह संगठन हर ब्लाक/प्रखंड और गांव में मौजूद है, मजबूत है। संपूर्ण भारत में इसके सदस्य हैं जो निःस्वार्थ भाव से केवल भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। सेवा दल कार्यकर्ता केवल सत्ता हेतु संगठन में नहीं आए हैं, परन्तु कांग्रेस में निर्णायक पदों पर बैठे लोग यही समझते हैं कि ये तो सिर्फ़ सेवा करने वाले लोग हैं,  इनका काम कांग्रेस के कार्यक्रमों में केवल मार्च पास्ट और सेल्यूट करना है।
सेवादल की बंद हो चुकी पत्रिका दल समाचार को पुनः नई व्यवस्था अनुसार प्रारंभ किया जावे।

कांग्रेस से ज़्यादा सेवा दल से घबराते थे अंग्रेज़
ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के संगठन लाल कुर्ती उत्तरी प्रांत में कौमी सेवा दल, सिंध प्रांत में हेमू कालानी की स्वराज्य सेना, सरहद प्रांत में सरहद गांधी की खुदाई खिदमतगार और बिहार में जेपी का आज़ाद दस्ता सभी छोटे संगठनों का विलय सेवा दल में कर दिया गया। आज़ादी के आंदोलन में सेवा दल की भूमिका का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 1931 में सेवा दल का स्वतंत्र स्वरूप समाप्त करते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल की अनुशंसा पर इसे कांग्रेस का भाग बना दिया गय़ा।
पटेल ने गांधीजी से कहा कि यदि सेवादल को स्वतंत्र छोड़ दिया गया तो वह हम सबको लील जाएगा। इसके एक साल बाद ही अंग्रेज़ों ने 1932 में कांग्रेस और सेवा दल पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में कांग्रेस से तो प्रतिबंध हटा पर हिंदुस्तानी सेवा दल से नहीं हटाया गया।

करोना काल में सेवा दल की जनसेवा - 
संपूर्ण विश्व जब कोरोना जैसी महामारी की चपेट में था तब सेवा दल मानव सेवा का माध्यम बना।
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के आह्वान पर जिला व ब्लॉक स्तर पर सेवा दल सेवा समूह गठित कर आवास, चिकित्सा और परिवहन की सुविधाएं उपलब्ध करवाई। सेवा योद्धाओं ने कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना से मरे लोगों के शवों को जिनको परिजन लेने नही आए उनका दाह संस्कार, सनातन रीति रिवाज से कराया व मुस्लिम शवों को मुस्लिम रीति रिवाज से दफन करवाया। जगह - जगह भंडारे खोले गए और आवास एवं चिकित्सा के प्रबंध किए गए।

वर्तमान संगठन
राष्ट्रीय संगठक 
 लालजी देसाई राष्ट्रीय संगठक/राष्ट्रीय अध्यक्ष नई दिल्ली 

राज्य संगठक
राजस्थान मुख्य संगठक/प्रदेश अध्यक्ष 
हेम सिंह शेखावत निवासी जयपुर

शमशेर भालू खां, सचिव राजस्थान सेवा दल निवासी चूरू

शमशेर भालू खां (जिगर चुरूवी)
सचिव राजस्थान सेवा दल 
9587243963
Sambhalu36@gmail.com

स्त्रोत 
विभिन्न पत्रिकाएं
फोटो - गूगल के साभार