सेवा दल प्रचारक नहीं विचारक तैयार करता है।
सेवा दल स्वतंत्रता आंदोलन का युवा झंडा था। यह एक येल्गार था - सामाजिक विषमता के विरुद्ध जोरदार घोषणा, आर्थिक असमानता के विरुद्ध एक चिंगारी। यह समाजवादी लोकतंत्र का सपना था। यह धर्मनिरपेक्षता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रति प्रतिबद्धता थी। सेवा दल सांप्रदायिकता, असमानता और धार्मिक घृणा के विरुद्ध लड़ने वाली ताकत थी और है।
सेवा दल -
सेवा दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अग्रिम संगठन है जिसकी भारत के सभी राज्यों में जिला एवं ब्लॉक स्तर पर शाखाएँ हैं। सेवादल एक परिचय-
स्थापना - 28 दिसंबर 1923
संस्थापक - डॉक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर (तत्कालीन मुंबई प्रेसीडेंसी, कर्नाटक निवासी)
कार्य - कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के रूप में सेवा कार्य एवं प्रशिक्षण
प्रथम स्थापना स्थल - नागपुर महाराष्ट्र
सेवा कार्य - गांधीवादी विचारों के अनुसार शांति और अहिंसा को बढ़ावा देना।
वेबसाइट - https://inc.in/congress-seva-dal
गणवेश - सफेद वर्दी और गांधी टोपी
सेवा दल का इतिहास -
18 जून 1923 में नागपुर में झंडा सत्याग्रह के पश्चात कांग्रेस के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। बहुत से कार्यकर्ता अंग्रेज सरकार के असहनीय अत्याचार के आगे टूट गए और क्षमापत्र लिख कर जेल से बाहर आ गए।
हुबली कर्नाटक के नारायण सुब्बाराव हार्डिकर ने स्वतंत्रता आंदोलन हेतु हुबली सेवा मंडल की स्थापना की, जिसके सदस्यों ने क्षमापत्र नहीं लिखा और यातना सह कर भी मैदान में डटे रहे।
हुबली सेवा मंडल के इस साहस की चर्चा आस - पास के क्षेत्र में फैल गई जिसका पता कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को चला जो सत्याग्रह में भाग लेने हेतु नागपुर में आए थे। इसी समय कांग्रेस नेताओं ने ब्रिटिश सरकार का मुकाबला करने हेतु स्वयंसेवकों का एक सुदृढ़ संगठन बनाने पर विचार - विमर्श किया। सन 1923 में कांग्रेस के काकीनाडा अधिवेशन में सेवादल की स्थापना हेतु डॉक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर के नेतृत्व में सेवादल बोर्ड बनाया गया। इस प्रकार 1 जनवरी 1924 को हिंदुस्तानी सेवा मंडल की स्थापना की गई। काकीनाडा अधिवेशन में पारित प्रस्तावानुसार हिंदुस्तानी सेवा मंडल को कांग्रेस पार्टी की कार्यसमिति की देखरेख में संगठन हेतु कार्यकर्ता तैयार करने की जिम्मेदारी तय की गई। जवाहरलाल नेहरू इसके पहले अध्यक्ष बने।
आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर केशव राव बलीराव हेडगेवार भी इस संगठन हिंदुस्तानी सेवा मंडल के सदस्य बने।
जवाहर लाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद शर्मा और सुभाषचंद्र बोस से लेकर क्रांतिकारी राजगुरू तक इसके पदाधिकारी रहे।
हिंदुस्तानी सेवा मंडल को प्रारंभ में कांग्रेस नेताओं विशेषकर सरदार वल्लभ भाई पटेल के विरोध का सामना करना पड़ा जो कांग्रेस में मिलिशिया जैसा संगठन बनाने के विचार के प्रबल विरोधी थे। कुछ नेता इसे नागरिक प्रभुत्व के विचार हेतु शंका की नजर से देखते और अहिंसा के सिद्धांतों के विपरीत मानते थे। एक स्तर तक गांधी जी भी इसके समर्थक नहीं थे।
उमाबाई कुंदापुर सेवा मंडल महिला शाखा की संस्थापक अध्यक्ष बनीं। कमलादेवी चट्टोपाध्याय विशेष रूप से 1930 के दशक में संगठन से निकटता से जुड़ी थीं। सन 1931 में कराची अधिवेशन में कांग्रेस कार्यसमिति ने हिंदुस्तानी सेवा मंडल का नाम बदल कर कांग्रेस सेवा दल करने का निर्णय पारित किया। जिसके बाद यह संगठन कांग्रेस का केंद्रीय स्वयंसेवी संगठन बन गया।
सरोजिनी नायडू ने इसका नाम हिंदुस्तानी सेवा दल रखा। उसके बाद, कांग्रेस के हर अधिवेशन में हिंदुस्तानी सेवा दल के युवा सदस्य व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालते थे। बेलगाम कांग्रेस अधिवेशन में गांधीजी ने युवाओं से एक अपेक्षा व्यक्त की "वे बिना हिंसा के आंदोलन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हों, गांवों में जाएं, गरीबों की सेवा करें, चरखा चलाएं और कुटीर उद्योग विकसित करें।"
तत्कालिक अंग्रेज सरकार ने 1932 में कांग्रेस महिला सेना की स्थापना करने के कारण कांग्रेस सेवा दल पर प्रतिबंध लगा दिया, कांग्रेस महिला सेना आज भी प्रतिबंधित संगठन है। प्रतिबंध लगने के बाद सेवा दल ने कई अन्य नामों से काम करना शुरू कर दिया, जैसे उत्तरी प्रांत में कौमी सेवा दल, सिंध प्रांत में हेमू कालानी की स्वराज्य सेना, सरहद प्रांत में सरहद गांधी की खुदाई खिदमतगार और बिहार में जेपी का आज़ाद दस्ता।
सन 1938 में स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण देने और संगठित करने का काम सेवा दल को सौंपा गया।
सेवा दल शाखाएं -
कांग्रेस ने संघ की शाखाओं की तरह सेवा दल की शाखाएं लगाना शुरू किया। सेवा दल शाखा संचालन हेतु सवेंतनिक कर्मचारी भर्ती किए गए। शाखा में प्रशिक्षार्थियों को गणवेश (नेकर, कमीज और टोपी) के साथ जलपान निःशुल्क कांग्रेस की ओर से उपलब्ध करवाये जाते थे। थोड़े समय बाद यह शाखाएं बंद हो गईं। सन् 1970 में एक नया संगठन जिसकी 1969 से भूमिका बनाई जा रही थी युवा कांग्रेस के रूप में उभरा और सेवादल दम तोड़ने लगा।
सेवा दल मुख्यालय उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी के कर्नाटक राज्य के हुबली जिले में था। हार्डिकर के नेतृत्व में शारीरिक प्रशिक्षण हेतु यहां एकेडमी की स्थापना की गई और पूरे भारत में कई स्थानों पर प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए गए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय सेवा दल ने कांग्रेस में नए सदस्यों को शामिल करने, धरनों के आयोजन संबंधी गतिविधियों और पार्टी को संगठित शांतिपूर्ण मिलिशिया से लैस करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सविनय अवज्ञा आंदोलन के पश्चात ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस और उसके संगठनों पर से प्रतिबंध हटा दिए।
सेवा दल पुनर्गठन -
काकीनाडा कांग्रेस से फैजपुर कांग्रेस राष्ट्र सेवा दल के प्रारंभिक इतिहास का एक भाग है। दूसरे भाग में, राजनीतिक भागीदारी के अंतर्गत 1927 का महाड क्रांति संग्राम, 1929 का पार्वती सत्याग्रह शामिल था। एसएम जोशी, नानासाहेब गोरे, शिरूभाऊ लिमये और काका साहेब गाडगिल, जिन्होंने बाबा साहेब अम्बेडकर की ओर से पार्वती सत्याग्रह का आयोजन किया, सुरबा नाना टिपनिस, नाना साहेब पुरोहित, अनंत विनायक चित्रे जैसे लोग जिन्होंने डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर के साथ महाड क्रांति संग्राम में भाग लिया था, और गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे, जिनके हाथों बाबा साहेब ने महाड में मनुस्मृति की एक प्रति जलाई गई।
28 दिसंबर, 1936 को साने गुरुजी द्वारा शुरू किए गए राष्ट्र सेवा दल के रूप में एक नई शुरुआत हुई।
अंग्रेज सरकार के प्रतिबंध के बाद कांग्रेस सेवा दल को पुनर्गठित किया गया।
सेवा दल कार्यकर्ताओं ने न केवल ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध आंदोलन किया अपितु अपने ही देश की विभाजनकारी शक्तियों के विरुद्ध भी संघर्ष किया। यह संघर्ष असमानताओं के विरुद्ध किसान, मजदूर का समाजवादी राज्य स्थापित हेतु संघर्ष था। परन्तु प्रतिबंध के बाद का सेवा दल आंदोलन संगठित नहीं रहा। संगठित और सुदृढ़ संगठन हेतु सेवा दल को 24 मई और 4 जून, 1941 के बीच अपने पुणे शिविर में पुनर्गठित किया गया जिसके परिपेक्ष्य में समकालीन कारण भी थे। काका साहेब गाडगिल के पुत्र विट्ठलराव गाडगिल संघ की शाखा में शामिल हो गए। काका साहेब गाडगिल को गहरा दुःख हुआ कि उनका पूरा परिवार स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा था और उन्हें उम्मीद नहीं थी कि उनके परिवार का सदस्य धार्मिक घृणा आधारित शाखा में शामिल होगा। इसलिए उन्होंने शिरुभाऊ लिमये से संपर्क किया। अंततः पूरे भारत में सेवा दल केंद्र और शाखाएं खोलने का निर्णय लिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शुरुआत से ही अल्पसंख्यकों के विरुद्ध घृणा पैदा कर मनुस्मृति हेतु समर्थन मांगकर सांप्रदायिक जहर घोलना आरंभ कर दिया। संघ के सदस्यों ने स्वतंत्रता के आंदोलन के खिलाफ खुलकर काम करना शुरू कर दिया। यह कहना अपर्याप्त होगा कि यह सब संघ की स्थापना के साथ शुरू हुआ जो ब्रिटिश शासकों की फूट डालो और राज करो की रणनीति का भाग था। स्वतंत्रता वीर के रूप में अंडमान की सेलुलर जेल में सजा काट रहे विनायक दामोदर सावरकर को ब्रिटिश शासकों ने छः क्षमापत्रों के आधार पर 1921 में रिहा कर दिया। सावरकर ने गांधी, कांग्रेस और अल्पसंख्यकों का विरोध करने का तत्कालीन सरकार को आश्वासन दिया था। इसके बाद सावरकर रत्नागिरी आए धार्मिक उन्माद की राजनीति ने जोर पकड़ा। इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार बैरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना को मुस्लिम लीग की राजनीति में लाने में सफल रही। गांधी, कांग्रेस और समग्र स्वतंत्रता आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता के आधार पर जोर पकड़ रहा था, तब ब्रिटिश शासकों की फूट डालो और राज करो की रणनीति परवान चढ़ने लगी। युवाओं के जहरीले प्रचार का शिकार होने का खतरा कई गुना बढ़ गया। इस स्थिति ने युवा पीढ़ी के लिए तत्काल विकल्प उपलब्ध कराने की मांग उठने लगी। धार्मिक सौहार्द को सुनिश्चित करने हेतु घृणा पर आधारित राजनीति का विरोध करना और सामाजिक न्याय बाबत सांप्रदायिक वैमनस्य के अलगाव पैदा करना आवश्यक हो गया। इस का एकमात्र विकल्प था, अंग्रेज सरकार द्वारा प्रतिबंधित सेवा दल को पुनः संगठित करना। कांग्रेस के एस.एम. जोशी, जो हाल ही में जेल से बाहर आए, सेवा दल के पहले प्रमुख बने। यहीं से पुनर्गठित सेवा दल का आरंभ होता है।
सेवा दल महिला विंग और आजादी की लड़ाई
क्रांति सिंह नाना साहेब पाटिल की पुत्री और जीडी बापू लाड के साथ सेवा दल के सिपाही सबसे आगे थे। युवतियाँ भी पीछे नहीं थीं। क्रांति सेना की हौसाबाई पाटिल, भूमिगत रेडियो चलाने वाली उषा मेहता, अगस्त क्रांति मैदान में तिरंगा फहराने वाली अरुणा आसफअली। और भी बहुत से नाम लिए जा सकते हैं - प्रसिद्ध लेखक पीएल देशपांडे की माताजी देशपांडे, शकुंतला परांजवे, मृणाल गोरे। केवल महाराष्ट्र में ही नहीं, अपितु मध्य प्रांत, सिंध और बिहार में भी कई युवतियाँ आगे आईं और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। अप्पा मायदेव मद्रास पहुँचे, जहाँ धन्वंतरि, वसंता, लकिता और प्रमिला उनके साथ शामिल हो गए थे। कमलादेवी चट्टोपाध्याय उनकी मुख्य प्रेरणा थीं।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rss) और कांग्रेस सेवा दल में अंतर
इस वर्ष कांग्रेस सेवा दल अपनी स्थापना के 100वें साल का उत्सव मना रहा है और स्वयंसेवक संघ को एक सौ साल पूरा करने में दो वर्ष शेष हैं। सेवादल की बनिस्बत संघ की व्यापकता अत्यधिक है। सोचने का विषय यह है कि सत्ता के निकट रह कर भी सेवादल की दुर्दशा क्यों हुई और अभावों के बावजूद स्वयं सेवक संघ विशाल वट वृक्ष की भांति क्यों फल - फूल रहा है।
संघ के फलने फूलने के कारण -
1. धार्मिक जुड़ाव।
2. धर्म विशेष का विरोध।
3. राजनीति में रह कर राजनीति से दूर।
4. औद्योगिक घरानों द्वारा आर्थिक पोषण।
5. पुजारी,पंडित या धर्माधिकारियों से दूरी।
6. शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से एक
पीढी को तैयार करना।
7. समय के साथ बदलाव
8. विभिन्न वाहिनियों के माध्यम से पूर्णकालिक प्रचारक।
8. अवैतनिक कार्यकर्ता।
9. दलित विरोध परन्तु छद्म रूप से।
10. धर्म रक्षक के रूप में हर घर में प्रवेश।
11. हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के कारण अल्पसंख्यक समाज को हाशिए पर लाने के प्रलोभन/स्लोगन के कारण आम सनातनी का जुड़ाव।
सेवा दल के हाशिए पर जाने के कारण
1. अपनी ही मातृ संस्था द्वारा घोर उपेक्षा।
2. जबकि सेवा दल सभी धर्मों को समान भाव देते हुए जाति,धर्म,लिंग,क्षेत्र और नस्ल के भेदभाव के बिना केवल राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र सेवा का कार्य करता है।
3. सेवा दल एक पार्टी (कांग्रेस) के लिए खुल कर काम करता है जबकि Rss छद्म रूप से (छुप कर) भाजपा के लिए काम करता है।
4. कांग्रेस सेवा दल हेतु आर्थिक पोषण केवल पार्टी द्वारा किया जाता है और RSS के लिए आर्थिक पोषण बड़े औद्योगिक घरानों, कंपनियों और घर - घर से चंदे/सहायता के रूप में किया जाता है।
5. संघ द्वारा शिक्षा भारती नामक शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से कार्यकर्ता तैयार किए जाते हैं परंतु कांग्रेस सेवा दल केवल वयस्क सेवकों को पार्टी हेतु काम करने के लिए भर्ती करता है।
RSS और सेवा दल -
सेवा दल की तर्ज पर दो साल बाद गठित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लगातार बढ़ती ताक़त चिंताजनक है। डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और डॉक्टर नारायण सुब्बाराव हार्डिकर एक ही कक्षा में पढ़ते थे। आरंभ में दोनों संगठनात्मक रूप से साथ रहते थे। हार्डिकर पर गांधीजी का प्रभाव था तो हेडगेवार हिंदू राष्ट्र का सपना देख रहे थे।
हेडगेवार ने अपना अलग रास्ता बनाते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गठन किया और हिंदू महासभा से जुड़ गए।
जनसंघ राजनैतिक और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ हिंदू महासभा की यूथ विंग के रूप में काम करता रहा। जबकि सेवा दल ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष करता रहा।
सेवा दल और संघ की कहानी खरगोश और कछुए की कहानी जैसी है। स्वतंत्रता के पश्चात सेवा दल के पास अपना कोई लक्ष्य नहीं रहा और कांग्रेस में यह उपेक्षित हो गया। जबकि संघ RSS के सहयोग से हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु लगातार कछुआ गति से आगे बढता रहा।
पूर्व गृह मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने स्वयं सेवक संघ पर महात्मा गांधी की हत्या के बाद 4 फरवरी 1948 को प्रतिबंध लगाया। सरदार पटेल संघ विरोधी नहीं थे लेकिन वो उसकी हिंदू राष्ट्र समर्थक और अन्य पंथ विरोधी विचारधारा के हिमायती नहीं रहे। पटेल ने संघ पर लगाए प्रतिबंध पत्र में लिखा "हम मानते हैं कि स्वयं सेवक संघ ने सनातन समाज की सेवा की है। जब-जब समाज को आवश्यकता पड़ी संघ ने आगे बढ़ कर भाग लिया। यद्यपि संघ का एक और चेहरा है, वह अल्पसंख्यक विरोधी है।"
दूसरी ओर कांग्रेस ने सेवा दल को उत्सव मनाने, नेताओं को सलामी देने और कभी कभार मार्च पास्ट करने का साधन बना कर रखा है। हम कह सकते हैं भाजपा में संघ मातृ-संगठन है और भाजपा उसका आनुषांगिक भाग जबकि कांग्रेस में सेवा दल आनुषांगिक भाग है और कांग्रेस मातृ-संस्था है। कांग्रेस के बिना निर्देशों के बिना सेवा दल कोई कार्य नहीं कर सकता।
कांग्रेस ने सेवा दल को महज उत्सव मनाने का साधन बनाकर रख दिया। पार्टी के उत्सवों में वर्दी पहनकर खड़ा होने के अतिरक्त और कोई काम सेवा दल के पास अब नहीं रहा।
यदि सेवा दल को काम करने की छूट मिले तो एक वर्ष के भीतर स्थिति बदल सकती है। कांग्रेस और जनता के बीच सेवादल एक सेतु की तरह है।
आज भी इसके ज़्यादातर सदस्य मध्यम वर्ग से आते हैं जो हर वर्ग की धरातलीय स्थिति से परिचित हैं, यदि इसमें सिफ़ारिशी नियुक्ति बंद हो जाए और सेवा दल के सुझावों पर कांग्रेस पार्टी अमल करे तो मजबूत संगठन वाली शक्तिशाली एवं मज़बूत पार्टी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
RSS की स्थापना के पीछे की कहानी -
दिसंबर, 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन से पूर्व यहां के महाविद्यालयों के छात्रों द्वारा सभा कर कांग्रेस अधिवेशन के साथ - साथ अखिल भारतीय महाविद्यालय विद्यार्थी परिषद (आल इंडिया कॉलेज स्टूडेंट्स कांफ्रेंस) का भी आयोजन किये जाने का निर्णय लिया गया जिसके प्रचार - प्रसार हेतु रामभाऊ गोखले ने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे कर कई स्थानों का भ्रमण किया। रामभाऊ सबसे पहले मुंबई जाकर गांधी जी से मिले और सभी प्रांतों में कांग्रेस के प्रमुख व्यक्तियों के नाम मांगे परन्तु गांधी जी ने मना कर दिया।
रामभाऊ उदास हो कर नागपुर वापस आ गए जहां डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार से उनकी भेंट हुई। हरिभाऊ ने पूरा घटनाक्रम हेडगेवार को बताया। हेडगेवार ने उन्हें रेशमी साफा भेंट किया और सभी प्रांतों में अपने साथियों के पते सहित नाम दे दिए और एक गुप्त संदेश भी लिख कर दिया। रामभाऊ नई ऊर्जा सहित मिशन पर निकल गए। यहीं से शुरुआत होती है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की। हरिभाऊ ने प्रांत - प्रांत, शहर - शहर घूम कर एक सनातनी संगठन की नींव रखने हेतु लोगों का सहयोग मांगा। इस बीच हेडगेवार सुब्बाराव हार्डिकर से जुड़े रहे और उनके संगठन के सदस्य भी बने। साथ ही चुपचाप अपना संगठन बनाने हेतु भूमिका बनाते रहे। पृष्ठभूमि तैयार होते ही राष्ट्रीय सेवा मंडल से पृथक हो कर 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की।
सेवा दल एक मिशन -
सेवा दल कांग्रेस का वह संगठन था जिस से अंग्रेज़ डरा करते थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अनुशासित कार्यकर्ता तैयार करने का काम सेवा दल करता रहा।
सन 1959 में कांग्रेस के नासिक अघिवेशन में शामिल होने आए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को गेट पर सुरक्षा प्रभारी कमलाकर शर्मा द्वारा इसलिए रोक दिया गया कि उनकी गणवेश पर सेवा दल का बेज नहीं लगा था। मुस्कुरा कर नेहरू जी ने बेज लगाया तब प्रवेश मिला।अधिवेशन स्थल पर कार्यरत कमलाकर शर्मा तब कांग्रेस सेवादल के नायक थे की परीक्षा लेने हेतु नेहरू जी ने जानबूझ कर बेज जेब में डाल लिया था। कमलाकर जी की इस कार्यवाही से समारोह स्थल पर हड़कंप मच गया। शानदार कार्यशैली के कारण कमलाकर शर्मा को मुंबई का चीफ़ ऑर्गेनाइजर बनाया गया।
हार्डिकर और हेडगेवार के बीच पत्राचार
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निरंतर बढ़ते प्रभाव और हिन्दुस्तानी सेवा दल के लगातार पिछड़ने के कारण की खोज हार्डिकर करना चाहते थे। इस हेतु मुंबई से डॉक्टर हर्डीकर ने RSS की कार्यशैली को समझने हेतु उनके शिविरों के निरीक्षण हेतु अनुमति बाबत 10 दिसंबर, 1934 को डॉक्टर हेडगेवार के नाम पत्र लिखा। हेडगेवार ने प्रत्युत्तर में लिखा कि -
"महोदय, आपका 10 दिसंबर 1934 का पत्र मिला। पत्र पाकर अति उत्साहित हूं। आप स्वयं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का यहां उपस्थित हो कर अध्ययन करना चाहते हैं, जो संघ के लिए हर्ष का विषय है। देवयोग से इसी अवसर पर संघ के शीत शिविर आयोजित होने वाले हैं, इन शिविरों के अवलोकन का अवसर आपको मिल जायेगा।"
सेवा दल का मुख पत्र -
सेवा दल द्वारा पत्रिका का भी प्रकाशन होता था जिसे दल समाचार नाम दिया गया। RSS ने इसी की तर्ज पर बाद में पाञ्चजन्य नाम से अपना मुख पत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया।
दल समाचार बाद में बंद हो गया।
संगठन -
हर प्रांत में प्रांतीय सेवा दल की कमान संभालने वाला एक प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्ष होता है।
सेवा दल की महिला विंग महिला सेवा दल के नाम से है।
सेवा दल संगठन ने तीन श्रेणियों के लोगों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया -
1. बच्चे
2. किशोर
3. वयस्क
सेवा दल के हर सदस्य को शपथ लेना अनिवार्य है जिसमें अन्य बातों के साथ - साथ कांग्रेस में राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने पर बल दिया जाता है।
ऐसे समय में जब कांग्रेस रास्ता खोज रही है, उसे अपने संगठन की ओर देखना चाहिए और उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना चाहिए, जिसे 1969 के बाद लगातार ख़त्म किया जाता रहा है।
नारायण सुब्बाराव हार्डिकर -
सन् 1920 में एक युवक (हार्डिकर) अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय से स्वराज का सपना लेकर धारवाड़ लौट आया। सौभाग्य से गांधी जी भी धारवाड़ आए हुए थे। गांधीजी के दक्षिण भारत के दौरे ने धारवाड़ की हवा को आजादी के आंदोलन से भर दिया। उसी युवक ने फिर आजादी के सपने को पूरा करने के लिए युवाओं को संगठित करने हेतु “राष्ट्र सेवा दल” की स्थापना की।
जन्म 7 मई 1889
मृत्यु 26 अगस्त 1975
भारत के स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में हिन्दुस्तान सेवा मंडल की स्थापना की। बंगाल विभाजन के विरोध में नारायण सुब्बाराव ने आर्य बाल सभा का गठन किया। आज़ादी के बाद सन 1952 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य चुना गया। समाज सेवा के क्षेत्र में सन 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
आज का सेवा दल -
कभी जिससे अंग्रेज़ डरा करते थे, कांग्रेस का वह सेवा दल अपनी आख़िरी सांसें गिन रहा है।
ऐसे समय में जब कांग्रेस रास्ता खोज रही है, उसे अपने संगठन की ओर देखना चाहिए और उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना चाहिए, जिसे 1969 के बाद लगातार उपेक्षित किया जाता रहा है।
कांग्रेस में सेवा दल को फ़ौजी अनुशासन और जज़्बे के लिए जाना जाता है। जिसका संगठनात्मक ढांचा और संचालन सैन्य रूप में रहा है। एक समय था जब कांग्रेस में शामिल होने से पहले सेवा दल में प्रशिक्षण आवश्यक था। इंदिरा गांधी ने अपने पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी का कांग्रेस में प्रवेश सेवा दल के माध्यम से ही करवाया। जवाहर लाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सब शीर्ष नेता सेवा दल को ‘कांग्रेस का सच्चा सिपाही’ कहते आ रहे हैं।
कांग्रेस के ये सच्चे सिपाही इन दिनों पार्टी की दुर्दशा व अपनी उपेक्षा से उदास और खिन्न हैं। ये बहुत कुछ करना चाहते हैं पर कर नहीं पा रहे हैं।
ऐसे समय जब यह महसूस किया जा रहा है कि कांग्रेस अपनी जड़ों से उखड़ गई है और अन्य पार्टियां भी यह महसूस कर रही हैं कि संघ के जैसा ही कैडर आधारित संगठन मुक़ाबले के लिए ज़रूरी है, सेवा दल का इतिहास उसे रास्ता दिखा सकता है। इस संगठन को कांग्रेस पार्टी गंभीरता से ले तो अटूट जन समर्थन और मजबूत कार्यकर्ता के साथ पार्टी के लिए वफादार नेता तैयार किए जा सकते हैं। यह संगठन हर ब्लाक/प्रखंड और गांव में मौजूद है, मजबूत है। संपूर्ण भारत में इसके सदस्य हैं जो निःस्वार्थ भाव से केवल भावनात्मक रूप से जुड़े हुए हैं। सेवा दल कार्यकर्ता केवल सत्ता हेतु संगठन में नहीं आए हैं, परन्तु कांग्रेस में निर्णायक पदों पर बैठे लोग यही समझते हैं कि ये तो सिर्फ़ सेवा करने वाले लोग हैं, इनका काम कांग्रेस के कार्यक्रमों में केवल मार्च पास्ट और सेल्यूट करना है।
सेवादल की बंद हो चुकी पत्रिका दल समाचार को पुनः नई व्यवस्था अनुसार प्रारंभ किया जावे।
कांग्रेस से ज़्यादा सेवा दल से घबराते थे अंग्रेज़
ख़ान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ान के संगठन लाल कुर्ती उत्तरी प्रांत में कौमी सेवा दल, सिंध प्रांत में हेमू कालानी की स्वराज्य सेना, सरहद प्रांत में सरहद गांधी की खुदाई खिदमतगार और बिहार में जेपी का आज़ाद दस्ता सभी छोटे संगठनों का विलय सेवा दल में कर दिया गया। आज़ादी के आंदोलन में सेवा दल की भूमिका का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि 1931 में सेवा दल का स्वतंत्र स्वरूप समाप्त करते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल की अनुशंसा पर इसे कांग्रेस का भाग बना दिया गय़ा।
पटेल ने गांधीजी से कहा कि यदि सेवादल को स्वतंत्र छोड़ दिया गया तो वह हम सबको लील जाएगा। इसके एक साल बाद ही अंग्रेज़ों ने 1932 में कांग्रेस और सेवा दल पर प्रतिबंध लगा दिया। बाद में कांग्रेस से तो प्रतिबंध हटा पर हिंदुस्तानी सेवा दल से नहीं हटाया गया।
करोना काल में सेवा दल की जनसेवा -
संपूर्ण विश्व जब कोरोना जैसी महामारी की चपेट में था तब सेवा दल मानव सेवा का माध्यम बना।
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के आह्वान पर जिला व ब्लॉक स्तर पर सेवा दल सेवा समूह गठित कर आवास, चिकित्सा और परिवहन की सुविधाएं उपलब्ध करवाई। सेवा योद्धाओं ने कोरोना की दूसरी लहर में कोरोना से मरे लोगों के शवों को जिनको परिजन लेने नही आए उनका दाह संस्कार, सनातन रीति रिवाज से कराया व मुस्लिम शवों को मुस्लिम रीति रिवाज से दफन करवाया। जगह - जगह भंडारे खोले गए और आवास एवं चिकित्सा के प्रबंध किए गए।
वर्तमान संगठन
राष्ट्रीय संगठक
राज्य संगठक
हेम सिंह शेखावत निवासी जयपुर
शमशेर भालू खां (जिगर चुरूवी)
सचिव राजस्थान सेवा दल
9587243963
Sambhalu36@gmail.com
स्त्रोत
विभिन्न पत्रिकाएं
फोटो - गूगल के साभार
No comments:
Post a Comment