मोयलवाटी -
चौहानों की शाखा मोयलों ने छापर द्रोणपुर इलाके में खुद को स्थापित किया। वर्तमान चुरू जिले का दक्षिणी पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी भाग इन्हीं मोहिलो के नाम से मोयलवाटी कहलाए। आज के सुजानगढ़, छापर, लाडनू, इन्हीं मोहिलो के कब्जे में थे।
गांव - 140 (नेनसी के अनुसार 1400 गांव)
मोयल वंश का इतिहास -
राठ (अरिमुनि की संतान), चायल, जोड़, मोयल ओर कायम वंश का इतिहास घंघराय की संतान तक एक ही है। चौहानों की कुल चौबीस शाखाओं का इतिहास के अनुसार इनका वर्णन पहले ही किया जा चुका है। मोयल/मोहित वंश चौहानों की एक शाखा है।
बछराय/बच्छराज जी की संतान मोयल वंश कहलाई। तथ्य 01 - नेनसी के अनुसार चौहान से पुत्र चाह,चाह से राणा, राणा से गंग (घंघ),गंग से इंद्रवीर, इंद्रवीर से अर्जुन, अर्जुन से सुरजन से राणा, और राणा ही मोहिल हुआ। उसके अनुसार द्रोणपुर पर शिशुपाल वंशी डाहलियों का अधिकार था जिसे उनके कट्टर शत्रु बागड़ियों ने हरा कर कब्जे किया। आगे चल कर बागड़ियो ने यह क्षेत्र सुरजन के पुत्र मोहील के हवाले कर दिया।
तथ्य 02 - कायम रासा के अनुसार कन्हन के पुत्र बच्छराज की संतान मोहिल कहलाई।
तथ्य 03 - चंपा सामोर के अनुसार घनासुर, इंद्र राव, अजानबहू, और सुरजन का नाम दिया गया है।
तथ्य 04 - डॉक्टर ओझा ने बीकानेर के इतिहास में लिखा है श्री मोर (दौसा और लालसोट के मध्य भंडारेज के पास गांव गढ़ मोरा का पुराना नाम) क्षेत्र के शासक सजन (सुरजन) के ज्येष्ठ पुत्र का नाम मोहिल था, इसी नाम से चौहानों की नई खांप मोयल वंश की स्थापना हुई।
तथ्य 05 - नेनसी और बही भाट के मतों में भिन्नता है, नेनसी के अनुसार मोहिल पिता से लड़कर छापर आए और बही भाट के अनुसार हरदत्त पिता मोहिल से लड़कर छापर आए। सेठ और कसूम्बी की घटना में अंतर नहीं है। नेनसी की बात का चंपा सामोर ने समर्थन किया है।
तथ्य 06 - मोहिल वंश के जग्गा/भाट के अनुसार अन्नराज के पुत्र घंघराय, घंघराय से सुरजन और
सुरजन (सुरजन का राज्य श्रीमोर, दौसा 1110 से 1130) के पुत्र मोहील से मोयल वंश की शुरुआत हुई।
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भाटों के अनुसार राव सुरजन के दो पत्नियां थीं -
01. पुष्पावती (तंवर राजा की पुत्री)
02. दूसरी पत्नी चंदेल वंश से थी।
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मोयल जी वरसल जी जड़ जी आदल जी
(पत्नी खीवसंध सांखला की पुत्री ओमवती)
(1130 से 1150)
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हरदत्त
(पिता से रूठ कर श्री मोर से छापर के स्थानीय शासक सरदार पलू को सन 950 (यह तिथि सही नहीं है) (संभवतः सही तिथि 1150 है) हराया और छापर पर अधिकार कर लिया, सन 1170 तक यही राजा रहे, धर्म की बहन कसुंबी के नाम से कसूम्बी गांव बसाया, यह गांव सेठ सनातन बोहरा को 05 गांव सहित 21 किलोमीटर क्षेत्र में (03 लाख रुपए कर्ज के बदले जागीर में दिया गया ) यहां सनातन बोहरा की बावड़ी आज भी मौजूद है।
(बही भाट से यहां गलती हुई, छापर हरदत्त जी नहीं मोहिल जी आए।
हरदत्त जी के तीन रानियां थीं - (1150 से 1170)
01 - मानसिंह की पुत्री कपूरदे
02 - उदय पाल सांखाला की पुत्री रतन कंवर
03. उदयपाल यादव की पुत्री कान कंवर
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बेरीसाल जी चंदरसाल जी छत्रसाल जी
(पत्नी रावल जी भाटी की पुत्री जीत कंवर)
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(1170 विसं से 1190 अनुमानित)
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बुधराव जी
पत्नी राव रत्न सिंह सिसोदिया चित्तौड़ की पुत्री राजमती
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कुंवरसंघ
(पत्नी सुरतान जी पंवार की पुत्री अमरवती)
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राणा पीतल जी
(पत्नी चंद्रभान जादौन करोली की पुत्री दमयंती)
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महकरण जी
(पत्नी हनुतजी कच्छवाहा की पुत्री मानकंवर)
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बालकरन जी
(राव रत्न सिंह सिसोदिया की पुत्री मालकदे कंवर)
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कुतकरण जोगजी तगजी कतलजी सिगजी दलजी
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(पत्नी 01. राव चुंडा चावड़ा की पुत्री मंदोद कंवर
02. बेरीसल जी राठौड़ की पुत्री अजंकनवर)
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बालहर (बालूराव)
(पत्नी बिकम सिंह तंवर की पुत्री लालमदे )
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(1190 से 1220 विस अनुमानित)
------|--------|--------|------|--------|---------|--------|--आसलजी कुंपाल शंभू खड़ग रतनपाल रामचंद्र बिरगजी
(पत्नी 01. सोनगजी राठौड़ की पुत्री माल कंवर
02. चंदगीरजी सोलंकी की पुत्री सारंगदे कंवर
03. बनवीरजी दाहिमा की पुत्री चांद कंवर )
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अहड जी
(पत्नी लुकसी पंवार की पुत्री दमयंती)
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सोनपालजी लूणकरणजी भगवानदास चर जी
( पत्नी राव लोकहर भाटी की पुत्री पेमावती)
(1220 से 1240 विस अनुमानित)
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शेखजी राणा शमशु देपालदेव
(पत्नी 01. रावलखुतलजी भाटी की पुत्री चांद कंवर
02. श्योलजी कच्छवा की पुत्री चमन कंवर )
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सुजोजी महकरण दहकरण खेतसी कुतकरण लालचंद
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जेमलजी चाहड़देव
(चाडवास गांव बसाया संवत 1253)
(पत्नी कल्याणसी पड़िहार की पुत्री सागर दे)
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सहणमल
(पत्नी तेजसी सांखला की पुत्री सूरजकंवर)
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(पत्नी विक्रमसी जडेजा की पुत्री बालाकंवर)
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रण बाब जी
(पत्नी जालिमसी सिसोदिया की पुत्री चांद कंवर)
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राणा बाघोजी
(पत्नी सुगनाजी कच्छवाह की पुत्री रतन दे )
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बखतसी नाढराव। रुघनासी मानकराव
राणापुर छापर पड़िहारा छापर
गद्दी गद्दी गद्दी गद्दी
पत्नी 1. बिजराज भाटी की पुत्री अमनकंवर भटनेर
2. उदयराव तंवर की पुत्री जतन कंवर
3. कुचर ग्रावदल गहलोत की पुत्री केसरकांवर
कुल 15 विवाह किए।
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गोविंददास सागजी रघुदास नारायणदास अखेराज
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बेरीसाल गंगासध भुरड़ जी सांवतजी आसलजी
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रावलसी साहबजी खड़गजी सुरतानजी कोडमदे पुत्री
(कोडमदे की सगाई जोधपुर के रिडमल राठौड़ से हुई पर काला होने के कारण कोडमदे ने मना कर दिया। भटनेर के सार्दुलसी भाटी से प्रेम हो गया और राठोड़ों ओर भाटियों में खूनी जंग हुई। सार्दुल भाटी काम आए और कोडमदे वहीं सती हो गई।
(पत्नी गोड राव रायमल की पुत्री कान कंवर)
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बछुराना जी
(छामर गढ़)
(पत्नी कल्याण देव सोढा की पुत्री रायकंवर)
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मेघाराना
(पत्नी साग जी सिसोदिया की पुत्री जीतकंवर)
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लोहट जी
(पत्नी राव जसलदेव पंवार की पुत्री फूलकंवर)
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खींवराज बाब जी जगमाल जी (छापर)
(खिनपाल जी जादन की पुत्री सजन कंवर)
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अरकडमल अजीतसी कानड़देव
(पत्नी अरकडमल - लोचनसी भाटी की पुत्री जसकंवर)
(पत्नी अजीतसी - राव जोधा की पुत्री रामकंवर)
- राव जोधा ने दामाद अजीतसी की हत्या के प्रयास किए और आडिट की लड़ाई में शहीद हो गए। पत्नी रामकवर सती हुई।
(अरकडमल - छापर से उठ कर लाडनूं चढ़ाई की, जीते)
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भोजराज रतनसी भींवसी मालदेव सुरतान चंद्रभान
पत्नी 01. रामसध भाटी की पुत्री रतन कंवर
02.वनपालसी पंवार की पुत्री सागर दे
03. धनराज तंवर की पुत्री नील कंवर
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जयसी (जय सिंह जी ने इस्लाम धर्म अपनाया)
पत्नियां - 13
01. कुंभकरणसी भाटी जैसेलमेर की पुत्री खेमकवर
02. बुधसी राठौड़ की पुत्री रॉय कंवर
03. भंवरसी सोलंकी की पुत्री चंदर कंवर
04. सादुलसी पंवार की पुत्री जसकंवर
05. गोपालसी गौड़ मारोठ की पुत्री पेमावती
06. संग्रामसी राणावत की पुत्री जतनकंवर
07. लखधर चंद्रावत रामपुरा गढ़ की पुत्री अमान कंवर
08. चुंडा जी जाटू की पुत्री नोगरदे कंवर
09. भोलसधजी कच्छावा कोलपा की पोत्री मेहकंवर
10 दूसासी पुत्र जीवाजी टाक टाकवासी की पुत्री चंदर कंवर
11. भोदे खां पुत्र फिरोज खां जोइया (लूणे खां की पड़पोती सिंध ठिकाणा) सुखदे बानू
सुख दे बानू के पांच पुत्र -
01. साहर जी का - साह पोता
02. देवराज जी का - देवराज पोता
03. सुख दे जी का - सुखावत
04. हंसराज जी का - हंसावत
05. कालदेव जी का - मालावत (लाडनू गद्दी)
राजपूत रानियों से 12 पुत्र हुए जो अपने नहिहाल चले गए -
01. हिरसध
02. हमीरसध
03. लूणासध
04. खगारसध
05. सलबहना
06. जैतसिंह
07. मोकलसध
08. तेज सिंह
09. जस करण
10. रायकरण
11. शैतानसध
12. पहाड़ सिंह (मारवाड़)
सन 1542 के आसपास अकबर की सेना से हुए युद्ध में जय सिंह जी शहीद हों गए।
सन 1550 के बाद लगभग मॉयल शासन का अंत हो गया। इसके पश्चात मॉयल राव बिदा और अन्य राजपूत राजाओं (रियासतों) के अधीन हो गए।
मोयलों के पतन का मुख्य कारण आपसी फूट और राज गद्दी हथियाना था। दिल्ली सल्तनत ने मोयल सरदारों द्वारा सहायता मंगने पर सेना भेजी गई परंतु दगाबाजी के कारण मॉयल और सल्तनत की सेना हार गई।
वर्तमान में मॉयल - लाडनूं, सुजानगढ़,बीदासर, चूरू, सरदार शहर, झुंझुनूं, डीडवाना, नागौर,जोधपुर, जयपुर और पाली में निवास करते हैं। शिक्षा और आर्थिक दृष्टि से अधिकतर संपन्न हैं।
मोयलों में गोत्र निम्नानुसार हैं -
01. देवराज पोता
02. रसलान
03. बधावत
04. विजावत
05. सिंगावत
06. नारावत
07. हंसावत
08. साहू पोता
09. शेषमलोत
साभार -
मोहिल वंश का इतिहास द्वारा रतन लाल मिश्र
राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
जनाब बहादुर खान मोहिल लाडनूं
हमीद खान मोयल लाडनूं
रणजीत खां पहाड़ियान जोधपुर
सतार खां मोयल चूरू
शमशेर भालू खां
सहजुसर
9587243963
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