Thursday, 13 June 2024

खोखर वंश का इतिहास

खोखर वंश का इतिहास - 

                             खोखर रियासत 


खोखर शब्द फारसी भाषा के शब्द खूंखार का अपभ्रंश है जिसका हिंदी अर्थ है रक्तपिपासु। 
खोखर जाति का उद्गम तात्कालिक सभी उपलब्ध स्रोतों के आधार पर स्पष्ट होता है कि वे पंजाब की मूल पर्वतीय जाति में से एक थे। जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि था। स्थानीय राजनैतिक उथल-पुथल की परिस्थितियों ने उन्हें किसान से सैनिक बनने को मजबूर कर दिया । पोथोहर पठार पंजाब क्षेत्र (वर्तमान पाकिस्तान) के उत्तरी भागों में एक पठार और ऐतिहासिक भौगोलिक क्षेत्र है। पंजाबी इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं और कई जनजातियों और कबीलों में विभाजित हैं। टिल्ला जोगियान पोथोहर पठार की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। पंजाब में मध्यकाल में उत्तरी पंजाब की अधिकांश जनजातियाँ इस्लाम में परिवर्तित हो गईं और विभिन्न पंजाबी जनजातियों के साथ-साथ विदेशी शक्तियों ने भी इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए लड़ाई लड़ी।

खोखर वंश की उत्पत्ति के तथ्य - 
तथ्य 01 - 
पोथोहर की जनजाति खोखर - 
पोथोहर पठार पर गखर और खोखर जनजातियों का प्रभुत्व रहा है । 
पोथोहर पठार के ज्ञात शासकों की सूची - 
शासक का नाम         शासन              टिप्पणी
शेखा खोखर        1380 से 1399        - 
जसरत               1405 से 1442   सियालकोट
झंडा खान गखर    लगभग 1493     रावलपिंडी
तातार खान गखर   लगभग 1519    बाबर से गठबंधन
हाथी खान गखर   1519 से 1526 
सारंग खां  गखर   1526 से 1545   रावत में शेरशाह सूरी के खिलाफ लड़ते हुए शहीद।
आदम खां गख़र    1546 से 1555    मुगल साम्राज्य
कमाल खान गखर  1555 – 1566 
सईद खान             1563 से 1597    सैदपुर गांव 
नज़र खान                     -    500 सैनिकों का कमांडर
अल्लाह कुली खान 1681 से 1705 
सुल्तान मुकर्रब खान 1705 से 1769 पोथोहर का अंतिम प्रभावी शासक
पोथोहर क्षेत्र की प्रमुख बिरादरियों राजपूत, जंजुआ, जट्ट, अवान, अरैन, गुज्जर, खोखर, खराल और गखर शामिल हैं।
खोखर राजस्थान, पंजाब, सिंध, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पायी जाने वाली एक मुख्य राजपूत गोत्र है।मुस्लिम खोखर लोगों को हिंदू जाट और राजपूत समुदायों से धर्मान्तरण किया हुआ माना जाता है। मध्यकाल के फ़ारसी इतिहासकार फ़रिश्ता ने तत्कालीन खोखर (खूंखार) लोगों को धर्म और नैतिकता विहीन बर्बर जनजाति कहा है। हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, हरियाणवी, खड़ीबोली बोलने वाले खोखर सनातन, इस्लाम, सिक्ख पंथ में पाए जाते हैं।
भारत के विभाजन से पहले खत्री, मोहयाल ब्राह्मण और अरोड़ा सहित अन्य बिरादरी भी इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मौजूद थीं। यह क्षेत्र औपनिवेशिक युग में पंजाबियों के मार्शल रेस पदनाम के तहत पुरानी औपनिवेशिक ब्रिटिश भारतीय और पाकिस्तान सेना में भर्ती का एक महत्वपूर्ण स्रोत थे और अभी भी है। 
तथ्य 02 - 
राठौड़ वंश से खोखर वंश के संबंध में तथ्य -  
दुहड़ जी के 10 पुत्र हुए - 
01 - राव रायपालजी - रायपालोत राठौड़
02 - राव किरतपालजी/खेतपालजी खेतपालोत राठौड़
03 - राव बेहड़जी/ बेहरजी के बेहरड़ राठौड़
04 - राव पीथड़जी के वंसज पीथड़ राठौड़
05 - राव जुगलजी के वंसज जोगवत राठौड़
06 - राव डालूजी [---------------------]
07 - राव बेगरजी के बेगड़ राठौड़
08 - उनड़जी के उनड़ राठौड़
09 - सिशपलजी के सीरवी राठौड़
10 - चांदपालजी आईजी माता के दीवान के सीरवी राठौड़]
राव रायपालजी - 1309-1313 ई. - 
राव रायपालजी राव दूहड़जी के पुत्र राव अस्थानजी के पोते और राव सीहाजी [शेओजी] के पड़पोते थे। रायपालजी के पंद्रह पुत्र हुए -         
01 - राव कानपालजी -
02 – केलणजी -
03 – थांथीजी - थांथी राठौड़
04 - सुंडाजी - सुंडा राठौड़ 
05– लाखणजी - लखा राठौड़ (जोधपुर के इतिहास में विवरण उपलब्ध नहीं है)
06 - डांगीजी - डांगी या डागिया/डांगी के ढोलि राठौड़
07 - मोहणजी - मुहणोत राठौड़
08 - जांझणजी - जांझणिया राठौड़
09 - जोगोजी - जोगावत राठौड़
10 - महीपालजी/मापाजी - मापावत/महीपाल राठौड़
11 - शिवराजजी - शिवराजोत राठौड़
12 - लूकाजी - लूका राठौड़
13 - हथुड़जी - हथूड़ीया राठौड़ (जोधपुर के इतिहास में विवरण उपलब्ध नहीं)
14 - रांदोंजी/रंधौजी - रांदा राठौड़ (जोधपुर के इतिहास में विवरण उपलब्ध नहीं)
15 - राजोजी/राजगजी - राजग राठौड़ (जोधपुर के इतिहास में विवरण उपलब्ध नहीं)
कानपालजी - 1313 से 1323 ई. राव कानपालजी के तीन पुत्र हुए -   
01 - राव जालणसीजी
02 - राव भीमकरण
03 - राव विजयपाल
राव जालणसीजी -1323 से 1328 ई के तीन पुत्र हुए
01 - राव छाडाजी        
02 - राव भाखरसिंह  
03 - राव डूंगरसिंह  
राव छाडाजी/छाडाजी 1328 से 1344 ई के सात पुत्र हुए
01 - राव तीड़ाजी 
02 - राव खोखरजी 
03 - राव वनरोजी 
04 - राव सिहमलजी  
05 - राव रुद्रपालजी  
06 - राव खीपसजी 
07 - राव कान्हड़जी
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राव त्रिभुवनसिंहजी
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राव उदौजी
राव खोखरजी - राव छाडा जी दो नंबर पर पुत्र राव खोखर जी के वंशज खोखर राठौड़ कहलाये।
राव खोखर जी राव जालणसीजी के पोते और - राव कानपालजी के पड़पोते थे ।
राव खोखरजी ने सांकडा, सनावड़ा आदी गाँवो पर अधिकार किया। और राजस्थान के बाड़मेर के पास खोखर गाँव बसाया।
अलाउद्दीन खिलजी जिसका वास्तविक नाम अली गुरशास्प था, ने 1308 /विक्रम सम्वत 1788 में सिवाना (बाड़मेर) पर अधिकार करने के लिए आक्रमण किया। वहाँ के परमार राजपूत शासक शीतलदेव ने कड़ा संघर्ष किया और रण में काम आया, इनके साथ ही राव खोखरजी सातलदे के पक्ष में वीरता के साथ लड़े और युद्ध मे काम आये । खिलजी ने कमालुद्दीन गुर्ग को वहाँ का गवर्नर नियुक्त किया।

तथ्य - 03 
खिजर खां के वंशज हैं खोखर - 
दिल्ली में तैमूर के गवर्नर और दिल्ली सल्तनत के सैय्यद वंश के संस्थापक खिज्र खान की उत्पत्ति के बारे में विवाद हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार, खिज्र खान एक खोखर सरदार था। जिसने समरकंद की यात्रा की और तैमूर समाज के साथ अपने संपर्कों से लाभ उठाया।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि - 
सन 1204 से 1205 में खोखरों ने अपने नेता के नेतृत्व में विद्रोह किया और मुल्तान और लाहौर जीत कर लूटपाट की और पंजाब व गजनी के बीच के मार्ग रोक दिए। तारीख-ए-अल्फी के अनुसार, खोखरों के इस उत्पात के कारण व्यापारियों को एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता। चूंकि कुतुबुद्दीन ऐबक खुद विद्रोह को संभालने में अकक्षम था। 
गौर के मुहम्मद गौरी ने खोखरों के खिलाफ कई अभियान चलाए और झेलम के तट पर लड़ी गई अंतिम लड़ाई में उन्हें हरा कर नरसंहार किया। गजनी वापस लौटते समय, मार्च 1206 में साल्ट रेंज में स्थित धामियाक में इस्माइलियों द्वारा मोहम्मद गौरी की हत्या कर दी। कुछ लेखकाें ने मुहम्मद गौरी की हत्या का श्रेय हिंदू खोखरों को दिया है, परंतु बाद के लेखों की पुष्टि फ़ारसी इतिहासकारों द्वारा नहीं की गई है। फारसी इतिहासकारों के अनुसार मोहम्मद गौरी के हत्यारे शिया मुसलमानों के प्रतिद्वंद्वी इस्माइलिया संप्रदाय से थे। इब्न-ए-असीर के बयान के आधार पर डॉ हबीबुल्लाह का मत है कि यह काम बातिनी और खोखर का संयुक्त मामला था। आगा महदी हुसैन के अनुसार, खोखरों को भी हाल ही में इस्लाम में धर्म परिवर्तन के मद्देनजर मलाहिदा कहा जाता है। मुहम्मद गौरी ने खोखर नागरिकों को बंदी बना लिया जिन्हें बाद में इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया। उसी अभियान के दौरान, उन्होंने गजनी और पंजाब के बीच रहने वाले कई अन्य खोखरों और बौद्धों को भी धर्मांतरित किया । फ़ारसी इतिहासकारों के अनुसार इस अभियान के दौरान पवित्र धागा पहनने वाले लगभग तीन से चार लाख लोगों को मुसलमान बनाया। 
16वीं सदी के इतिहासकार फ़रिश्ता कहते हैं - गजनी और सिंधु के पहाड़ों के बीच रहने वाले अधिकांश लोगों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित किया।

                       शेखा खोखर


तथ्य 04 - कुरेश खानदान से हैं खोखर - 
हाल ही में प्रकाशित खोखर वंश का इतिहास लेखक मकबूल खान खोखर प्रकाशक राजस्थान ग्रंथावली जोधपुर में उल्लेख किया गया है कि खोखर पैगंबर मोहम्मद साहब के वंशज हैं। मोहम्मद साहब के दामाद और चचेरे भाई हजरत अली की पत्नी बिण्त खिलवद की संतान में से हैं। इनका मुख्य वंश अल्वी है।
पुस्तक में सजरा भी दिया गया है। शब्बीर खान खोखर जोधपुर के अनुसार बही भाट भी इसी नश्ब से खोखरों को जोड़ते हैं, एवं शोधित और लिखित इतिहास खोखर वंश डॉ० मुहम्मद बुद्धिबाल अवों निवासी जलहरी मोहम्मद साह जिला रावलपिंडी त० गुजरखान के संद्रभानुसार - 
सिजरा में हजरत आदम से कुतुब शाह एक का जिक्र है -  पुस्तक के अनुसार 
अध्याय 1
हजरत अली से कुतुबशाह खोखर का इतिहास
इस्लामी वंशावली
हजरत आदम अलैहिअस्सलाम
हजरत केदार अलैहिअस्सलाम
हजरत आली अलैहिअस्सलाम
हजरत हमला अलैहिअस्सलाम
हजरत अनोस अलैहिअस्सलाम
हजरत सुलेमान अलैहिअस्सलाम
हजरत काब्या अलैहिअस्सलाम
हजरत ईस्हाक अलैहिअस्सलाम
हजरत महीसल्ला अलैहिअस्सलाम
हजरत साबुत अलैहिअस्सलाम
हजरत बरदादी अलैहिअस्सलाम
हजरत नाकुसुन अलैहिअस्सलाम
हजरत आदरीक अलैहिअस्सलाम
हजरत यौरूब अलैहिअस्सलाम
हजरत ईदरीस अलैहिअस्सलाम
 हजरत हुमै अलैहिअस्सलाम
हजरत मातीसल्ला अलैहिअस्सलाम
हजरत आसिया अलैहिअस्सलाम
हजरत लाम अलैहिअस्सलाम
हजरत याहया अलैहिअस्सलाम
हजरत नूहं अलैहिअस्सलाम
हजरत अदनान अलैहिअस्सलाम
हजरत स्वाहले अलैहिअस्सलाम
हजरत आमर अलैहिअस्सलाम
हजरत नातो अलैहिअस्सलाम
हजरत यारकुस अलैहिअस्सलाम
हजरत साबुर अलैहिअस्सलाम
हजरत नाखुर अलैहिअस्सलाम
हजरत मादरीक अलैहिअस्सलाम
हजरत बीनार अलैहिअस्सलाम
हजरत मालिक अलैहिअस्सलाम
हजरत बरदादी अलैहिअस्सलाम
हजरत हक्कालब अलैहिअस्सलाम
हजरत लुबी अलैहिअस्सलाम
हजरत आजर अलैहिस्सलाम
हजरत सुनी अलैहिस्सलाम
हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम
हजरत कावा अलैहिस्सलाम
हजरत ईस्माइल ईस्हाक
हजरत नजर अलैहिस्सलाम
हजरत कलाबा अलैहिस्सलाम 
हजरत कसाना अलैहिस्सलाम
हजरत अब्दुल मुनाफ अलैहिस्सलाम
हजरत हासम अलैहि अस्सलाम
हजरत अबुल मुतलिब अलैहिस्सलाम
अबू जहल
अब्दुल्लाह (बीबी आमना)
अबू तालिब
अमीर हामजा
हजरत मुहम्मद मुस्तफाप अलैहि वसल
अली मुरतजा, हजरत मुहम्मद साहब का जमाई
(हुजुर को बेटे)
देवनानी देव की बेटी
बरदा मलो
अली इलियास
हजरत अली (के रूप में) इब्न अबी तालिब
हजरत गाजी अब्बास इब्न अली
हजरत अबेदुल्लाह इब्न अब्बास
हजरत हसन इब्न अब्बेदुल्लाह
हजरत हमजा इब्न हसन
हजरत जफर इब्न जाफर
हजरत अबू कासिम इब्न अली
हजरत तायार इब्न कासिम
हजरत कासिम इब्न तायार
हजरत हमजा इब्न कासिम
हजरत याला इब्न हमजा
हजरत ओवान (कुबुबशाह) इब्न आला
मुहम्मद इब्न अली इब्न अबी तालिब (मुहम्मद इब्न अल हनफियाह)
15 एच-81 एच (637-700 ईसवी)
हजरत अली इब्न अब तालिब
हजरत गाजी अब्बास
हजरत अबैदुल्लाह
हजरत हसन
हजरत हमजा
हजरत जाफर
हजरत अली द्वितीय
हजरत अबू कासिम
हजरत अली से कुतुबशाह खोखर 
हजरत ताय्यार
हजरत कासिम द्वितीय
हजरत हमजा द्वितीय
हजरत हजरत याला
[ हजरत हजरत ओवान (कुतुबशाह) ↓
जमान अली खोखर
नादेर अली
मुहम्मद शाह मोब
मु० अली चौहान
बहादुर अली
अब्दुल्लाह
फतेह अली
मोजाम्मल अली कलधान
गौहर अली
हजरत कुतुबशाह के बारह पुत्र
1. जामान अली उर्फ खोखर (खुखरौन से) राजपूर रानी के पुत्र
2. मोहम्मद अली उर्फ चौहान
3. फतेह अली (खुखरौन से) राजपूर रानी के पुत्र
4. नजफ अली
5. नादेर अली
6. बाधार अली
7. मोजाम्मल अली कलधान
8. फरमान अली
9. करम अली
10. मुहम्मद शाह मुहम्मद
11. अब्दुल्लाह
12. गोहर अली
मेरे मानने के अनुसार यह सही नहीं है। यदि खोखर मोहम्मद साहब के वंशज हैं तो कुरेशी हुए और व्यापारी समाज के निकटतम। कायमखानी लकाब राजपूत से मुस्लिम बने समूहों को ही मिला है। 
इन तथ्यों के आधार पर भारत और पाकिस्तान में दो प्रकार के खोखर हैं। एक पाथोहर के पंजाबी खोखर दूसरे राजस्थान के राठौड़ खोखर।
जो खोखर कायमखानी लकब धारित हैं वो राजपूत खोखर हैं और इनका निकास खोखर गांव बाड़मेर से है।
खीजर खान से इन राजपूत खोखरो का कोई लेना देना नहीं हैं। खिजर खां खोखरों की तीसरी खांप गुजरात (अहमदाबाद) के खोखरों से संबन्धित है जो मोहम्मद साहब के वंश से थे। खिजर खां शिया मुस्लिम थे। राजस्थान के कायमखानी खोखर सुन्नी मुस्लिम। खिजर खां सैयद वंश का संस्थापक है।

                        मोहम्मद गौरी 
खोखर दिल्ली सल्तनत के अधीन - 
सन 1240 ई. में शम्स-उद-दीन इल्तुतमिश की बेटी रजिया सुल्तान और उसके पति अल्तुनिया ने अपने भाई मुइज़ुद्दीन बहराम शाह से गद्दी वापस लेने का प्रयास किया। बताया जाता है कि रजिया ने पंजाब के खोखर सैनिकों के सहयोग से बनी सेना का नेतृत्व किया। सन 1246 से 1247 तक, बलबन ने खोखरों को खत्म करने के लिए साल्ट रेंज तक एक अभियान चलाया। सन 1251 में लाहौर पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण था और लगभग बीस वर्षों तक लाहौर खंडहर बना रहा, मंगोलों और उनके खोखर सहयोगियों द्वारा कई बार हमले हुए। लगभग उसी समय हुलेचू नामक एक मंगोल कमांडर ने लाहौर पर कब्जा कर लिया और मुहम्मद गौरी के पिता के साथी गुल खोखर के साथ गठबंधन किया।
खोखर जो इस्लाम में सबसे पहले धर्मांतरित हुए, बाबा फ़रीद के प्रभाव के कारण आगे भी धर्मांतरित हुए जिन्होंने अपनी बेटियों की शादी दरगाह के मुखिया के परिवारों से कर दी। जवाहर-ए-फ़रीदी के रिकॉर्ड में ऐसी तेईस शादियों में से चौदह खोखर थे, जिनके नाम के आगे मलिक लगा हुआ था (मलिक शब्द का अर्थराजनीतिक सत्ता से जुड़ाव)। पाकपट्टन के दरगाह से जुड़े कबीलों के नामों में बीस कबीले शामिल थे, खोखर, खानख्वानी, बहली, अधखान, झाकरवाली, यक्कन, मेहरखान, सियांस, ख्वाली, संख्वाली, सियाल, बाघोटी, बरती, दुधी, जोयेस, नाहरवानी, टोबी और डोगर।
गाजी मलिक ने खोखर जनजातियों के समर्थन से विद्रोह के द्वारा दिल्ली में तुगलक वंश की स्थापना की, जिन्हें सेना के अग्रिम-रक्षक के रूप में रखा गया था। खोखर गुल खोखर के विद्रोह से पहले तुगलक वंश के पक्षधर रहे। मुल्तान के गवर्नर ऐनुल मुल्क मुल्तानी ने अपने परिवार और अपने आश्रितों की अजोधन (पाकपट्टन) से मुल्तान की यात्रा के बारे में चिंता व्यक्त की, क्योंकि खोखरों के विद्रोह ने सड़क को असुरक्षित बना दिया। खोखरों ने मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में 1342 में लाहौर पर विजय प्राप्त की। 
सन 1394 तक सुल्तान महमूद तुगलक के शासनकाल में लाहौर के पूर्व गवर्नर प्रमुख शेख खोखर के नेतृत्व में लाहौर के गवर्नर नुसरत खोखर, सारंग खान, मल्लू इकबाल और मुकर्रब खान के साथ दिल्ली सल्तनत के मुख्य महत्वपूर्ण रईसों में से एक थे जो बाद में धर्मांतरित हो कर मुस्लिम बन गए। दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश द्वारा नियुक्त नागौर, राजस्थान के गवर्नर जलाल खान खोखर थे। जलाल खान खोखर ने मारवाड़ साम्राज्य के शासक राव चूंडा की पत्नी की बहन से विवाह किया।

खोखर स्वतंत्र सरदार
मुस्तफा जसरत/दशरथ खोखर शेख खोखर के बेटे थे जो तामेरलेन के यहां जेल में बंद थे। तामरलेन की मृत्यु के साथ ही पिता की मृत्यु हो गई और जसरत जेल से भाग कर खोखरों के नेता बन गए और पंजाब लौट आए। जसरत ने जल्द ही तैमूर सेना में एक जनरल का पद प्राप्त कर लिया तैमूर के बेटे शाहरुख मिर्जा की बेटी से शादी कर ली। 
उन्होंने सैयद वंश के अली शाह के खिलाफ कश्मीर पर नियंत्रण के लिए युद्ध में शाही खानदान का समर्थन किया और जीतने के बाद पुरस्कृत हुए। जसरत खोखर ने खिज्र खां की मृत्यु के बाद दिल्ली पर विजय प्राप्त करने के प्रयास किए। तलवंडी और जालंधर के अभियान में जीतने के बावजूद उन्हें सफलता नहीं मिली और सरहिंद पर कब्ज़ा करने के प्रयास में तेज बारिश ने बाधा उत्पन्न की । 
खोखर जाटों ने मुहम्मद ग़ोरी के ख़िलाफ़ विद्रोह किया था और 1206 में ग़ोरी ने इस विद्रोह का क्रूरतापूर्वक दमन किया। गौरी के वापस लौटते समय नमक मार्ग क्षेत्र के स्थान धम्यक में एक धावे में खोखरों ने मुहम्मद ग़ोरी की हत्या कर दी। जम्मू-काश्मीर के खोखरों की दो जातीय समूह हैं।
01 क़ुतुब शाही खोखर और 
02 राजपूत खोखर 
क़ुतुब शाह ने एक हिंदू राजा की लड़की से विवाह किया था और उनकी वंश परंपरा के लोग कुतुबशाही खोखर के रूप में जाने जाते हैं। खोखर जाति का उल्लेखनीय राजा जसरथ/ दशरथ) रहा है जिसके नेतृत्व में विद्रोह के कारण सैयद वंश के विनाश हुआ।
                   खोखर गांव राजस्थान

मध्यकालीन और आधुनिक युग में खोखर - 
पंजाब में ब्रिटिश राज की भर्ती नीतियों के संदर्भ में ब्रिटिश भारतीय सेना की तुलना में इतिहारकर टैन ताई योंग टिप्पणी करते हैं - खोखर जाटों के उनके पारंपरिक आसन पर निवास के संदर्भ में, पोथेहर पठार में नमक की रेंज से खोखरों को खदेड़ने के बाद, मुहम्मद गौरी ने अगले दिन साल्ट रेंज में आगे मार्च किया, जहाँ एक प्रतिष्ठित खोखर प्रमुख के बेटे के कब्जे में एक मजबूत गढ़ था और ग़ुरिद क्षेत्रों पर छापा मार रहे थे। गौरी ने एक संक्षिप्त घेराबंदी के बाद इसे ग़ुरिदों को सौंप दिया और मुहम्मद गौरी की अधीनता स्वीकार कर ली। गढ़ हारने के बाद, कई खोखर सैनिक जिन्होंने एक दिन पहले भीषण युद्ध मे हार के बाद जंगल में भाग गए जिन्हें मुहम्मद गौरी और उनकी सेना ने बेरहमी से जला दिया। बड़े नरसंहार के बाद मुहम्मद गोरी ने खोखरों को बहुत बर्बरता से वश में किया कई को बंदी बना लिया गया जिन्हें बाद में इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया। इतिहासकार जुजानी के अनुसार - मुहम्मद गौरी ने युद्ध में अपने वीर प्रदर्शन के लिए इल्तुतमिश को सम्मान की पोशाक प्रदान की। बंदियों को दास बना लिया गया। खोखारों के सरदार कुतुबुद्दीन ऐबक को मुक्त नहीं किया गया। खोखरों के विरुद्ध अभियान में मुहम्मद गौरी को भारी मात्रा में दास और लूट का माल प्राप्त हुआ।
लाहौर में खोखर विद्रोह को कुचलने और कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली जाने की अनुमति देने के बाद मुहम्मद गौरी ने ग़ज़नी की ओर वापसी शुरू की। साल्ट रेंज से वापस आते समय शाम की नमाज़ पढ़ रहे  मुहम्मद गौरी की धामियाक (वर्तमान पाकिस्तान में) में हत्या कर दी गई। 17वीं शताब्दी के इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार मुहम्मद की हत्या हिंदू खोखरों ने की थी, जिन्होंने हाल ही में समाप्त हुई लड़ाई में अपने रिश्तेदारों की हत्या का बदला लिया था, हालांकि यह जुजानी और अन्य मुस्लिम इतिहासकारों के पहले के खातों से प्रमाणित नहीं होता है, जिन्होंने मुहम्मद की हत्या के लिए इस्माइलियों को जिम्मेदार ठहराया। कुछ विद्वानों ने इब्न अल-असीर के लेखन के आधार पर अनुमान लगाया कि मुहम्मद गौरी की हत्या खोखरों और इस्माइलियों के समझौते द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी।

औपनिवेशिक युग
औपनिवेशिक भारत के पंजाब प्रांत में ब्रिटिश राज में
मुसलमान,राजपूत और सिख जातियों का चयन केवल शारीरिक उपयुक्तता के आधार पर नहीं बल्कि स्थानीय प्रभुत्व, उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा, प्रभावशाली अभिजात वर्ग, और जमीदारों के प्रति पूर्वाग्रह के अंतर्गत किया गया। अतः खोखर, गक्खर, जंजुआ और अवान जैसी सामाजिक रूप से प्रमुख मुस्लिम, राजपूत और सिक्ख वर्ग को प्राथमिकता दी गई।
                  खोखर सैनिक ब्रिटिश काल

खोखर वंश और कायमखानी - 
जिस प्रकार से जिईया,चायल, मोयल और जाटू वंश के स्थानीय जागीरदारों और राजाओं ने वली कायम खा की बेअत की उसी प्रकार से खोखर वंश के दसरत खोखर ने (शेख फरीद की कयादत) कायम खां को वली माना और लकब कायमखानी इख्तियार किया।

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