1991 में सोना इंग्लैंड में गिरवी रख कर 300 करोड़ के कर्ज से भारत के आर्थिक विकास की गाथा लिखी।
मन मोहन जी की मोहक झलक
राज्य सभा सदन में सिंह साहब का स्थान
अंतिम दर्शन - अंतिम दर्शन
कुछ फोटो और मनमोहन सिंह
G - 20 सम्मेलन में अंतर्राष्ट्रीय नेताओं के साथ जिसमें बराक ओबामा ने कहा था कि मनमोहन सिंह बोलते हैं तो पूरी दुनिया उनको सुनना पसंद करती है।
पत्नी गुरु शरण कौर के साथ 1958
संक्षिप्त परिचय -
नाम - मनमोहन सिंह जन्म - 26 सितंबर 1932
मृत्यु - 26 दिसम्बर 2024
काफी दिनों से बीमार चल रहे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो बार बाईपास सर्जरी हो चुकी है। दूसरी बार फ़रवरी 2009 में विशेषज्ञ शल्य चिकित्सकों की टीम ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में इनकी शल्य-चिकित्सा की। काफी दिनों से एम्स में भर्ती सिंह साहब ने AIMS नई दिल्ली में आखिरी सांस ली।
जन्म स्थान - गाँव गाह जिला चकवाल पंजाब (पाकिस्तान)
शांत स्थान - नई दिल्ली
अंतिम क्रिया - 28 दिसंबर 2024
अंतिम किया पर विवाद -
कांग्रेस पार्टी सरदार मनमोहन सिंह जी का अंतिम संस्कार विजय घाट पर करना चाहती है परन्तु भारत सरकार का गृह मंत्रालय निगम घाट हेतु अनुमति पत्र जारी कर रहा है। इस हेतु भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने पत्र जारी किया है।
पिता का नाम - गुरुमुख सिंह
माता का नाम - अमृत कौर
पत्नी - श्रीमती गुरशरण कौर विवाह 1958 में
मनमोहन सिंह जी पत्नी से जुड़ा एक किस्सा -
प्रधानमंत्री के सम्मान में एक भोज का आयोजन था, उसी भोज में एक साधारण कपड़े पहने एक महिला एक कोने में बैठ भोजन कर रही थी, सभी अधिकारियों की पत्नियों को एक शानदार कार्यक्रम के बीच इतनी साधारण महिला की उपस्थिति कुछ खल रही थी, कुछ ने उनके पास जाकर उनका परिचय चाहा, तो उस महिला ने सहज भाव से कहा - मेरे पति यहाँ काम करते है। अधिकारियों की महिलाओं का शक यकीन में बदलने लगा जरूर किसी छोटे कर्मचारी की पत्नी यहाँ आकर इस शानदार कार्यक्रम की शोभा खत्म कर रही है । एक महिला ने थोड़ा रोब झाड़ते हुवे कहा साफ साफ बताओ तुम्हारे पति किस पद पर कार्य करते है ?
महिला पुनः सहज भाव से बोली जी वे प्रधानमंत्री के पद पर कार्य करते हैं। इस जवाब के बाद उस महिला की थाली में खत्म हुई रोटी लाने के लिए तमाम अधिकारियों की पत्नियों में होड़ मच गई किन्तु श्रीमती मनमोहन सिंह उन्हें धन्यवाद देते हुवे स्वयं अपना खाना लेने चल दी।
सहजता के अनुयायी प्रायः कम ही होते है।
संतान - तीन बेटियों ने पढ़ाई लिखाई के बाद अलग अलग क्षेत्र चुने और वहां उन्होंने अपनी खास जगह बनाई। शिक्षाविद हैं, इतिहासकार हैं, मानवतावादी हैं तो लेखक हैं।
1. सबसे बड़ी बेटी उपिंदर सिंह इतिहासकार और शिक्षाविद हैं,
2. दूसरी बेटी दमन सिंह लेखिका हैं, पिता पर किताब लिख चुकी हैं,
3. तीसरी बेटी अमृत कौर मानवाधिकार मामलों से जुड़ी हुई वकील हैं।
लेखन -
1. पुस्तक इंडियाज़ एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ भारत की अन्तर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।
भाषाएं - उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी
पद - भारत के 13वें प्रधानमन्त्री
कार्यकाल - 22 मई 2004 – 26 मई 2014 तक
भारत के वित्त मंत्री -
कार्यकाल 21 जून 1991 – 13 मई 1996
भारतीय रिज़र्व बैंक के 14वे गवर्नर
कार्यकाल - 16 सितंबर 1982 – 14 जनवरी 1985
राजनैतिक दल - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
शिक्षा -
-बी.ए. (ऑनर्स) - पंजाब विश्वविद्यालय।
-एम.ए. (अर्थशास्त्र) - पंजाब विश्वविद्यालय।
-डी.फिल. (डॉक्टरेट) - ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (नफील्ड कॉलेज)।
-कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में अध्ययन किया।
पुस्तकें -
2. चेंजिंग इंडिया - 2019
3. चिले,इंस्टिट्यूशन्स एंड पॉलिसिस- 2004
4. मेकिंग डेमोक्रेसी वर्क फॉर प्रो पूअर-2003
5. टू द नेशन, फॉर द नेशन - 2006
जीवन परिचय -
देश के विभाजन के बाद सिंह का परिवार भारत आ गया। पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ने चले गए, कैंब्रिज से उन्होंने PH. D. की। इसके बाद उन्होंने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से D. Fil. किया।
डॉक्टर सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी ख्याति अर्जित की। वे पंजाब विश्वविद्यालय और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स में प्राध्यापक रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार रहे।
सन 1978 से 1980 तक जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव रहे।
वर्ष 1981 में डॉक्टर सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार नियुक्त हुए।
सन 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। इसके बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे। भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्तमंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया है।
लोकसभा चुनाव 2009 के बाद कांग्रेस को मिली जीत के बाद वे जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के पहले ऐसे प्रधानमन्त्री बने, जिनको पाँच वर्षों का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा करने के बाद लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला था।
राजनैतिक जीवन -
पुस्तक Penguin Random House India से प्रकाशित ए.के. भट्टाचार्य की किताब India’s Finance Ministers- Stumbling into Reforms (1977 to 1998) के अनुसार डॉक्टर मनमोहन सिंह का राजनीति में आने का किस्सा बहुत रोचक है. सिंह साहब को पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव देर रात नींद से उठाकर दिया गया, जिस पर उन्हें यकीन नहीं हुआ और अगली सुबह वे अपने दफ्तर चले गए। जबकि उन्हें शपथ लेने के लिए राष्ट्रपति भवन जाना था। राजीव गांधी के शासन काल में योजना आयोग के लगातार पांच वर्ष तक उपाध्यक्ष रहे। बाद में प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार बनाए गए। पी.वी. नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने तो ग़ैर राजनीतिज्ञ व्यक्ति जो अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे, का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ और वो देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कामयाब रहे। सिंह साहब को बिना किसी सदन का सदस्य बने मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया और वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंपा। बाद में राज्य सभा के सदस्य बने।
वित्त मंत्री के रूप में सिंह साहब ने आर्थिक उदारीकरण को उपचार के रूप में बदल कर भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार के समक्ष सक्षम किया। डॉक्टर साहब ने आयात और निर्यात को सरल बनाया। लाइसेंस एवं परमिट गुज़रे ज़माने की बात हो गई। निजी पूंजी को उत्साहित कर रुग्ण एवं घाटे में चलने वाले सार्वजनिक उपक्रमों हेतु अलग से नीतियाँ विकसित की। भारत की अर्थव्यवस्था जब घुटनों पर चल रही थी, तब पी.वी. नरसिम्हा राव को कटु आलोचना का शिकार होना पड़ा। विपक्ष उन्हें नए आर्थिक प्रयोगों के कारण घेर रहा था परन्तु राव ने मनमोहन सिंह पर भरोसा रखते हुए मात्र दो वर्ष बाद ही आलोचकों के मुँह बंद कर दिया। उदारीकरण के उत्तम परिणाम भारतीय अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर होने लगे।
मनमोहन सिंह और आर्थिक उदारीकरण -
वर्ष 1991 का वो ऐतिहासिक बजट, जब मनमोहन सिंह ने की बड़ी घोषणा कि आज से लाइसेंस राज खत्म।
वर्ष 1991 से पहले भारत आर्थिक दिवालियापन के कगार पर था। वित्तीय पतन में सुधार हेतु मनमोहन सिंह की नीतियों और सुधार कार्यक्रम ने मुख्य भूमिका निभाई। उनके नाम पर कई उपलब्धियां हैं। जब देश 90 के दशक में बड़े आर्थिक संकट में था, तब वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने ऐसे बड़े फैसले लिए जिससे भारत की अर्थव्यवस्था बदल गई। आर्थिक उदारीकरण में उनका विशेष योगदान रहा। 24 जुलाई, 1991 को जब नेहरू जैकेट और आसमानी पगड़ी पहने हुए मनमोहन सिंह अपना बजट भाषण देने के लिए खड़े हुए तो सारी दुनिया की निगाहें उनके ऊपर थीं। भाषण की शुरुआत में ही उन्होंने स्वीकार किया कि इस समय वो बहुत अकेला महसूस कर रहे हैं क्योंकि राजीव गांधी का मुस्कराता हुआ चेहरा उनके सामने नहीं है। उनके भाषण में उस परिवार का बार बार ज़िक्र किया गया जिसकी नीतियों को वो सिरे से ख़ारिज कर रहे थे। दिलचस्प बात ये थी कि मनमोहन सिंह को बजट बनाने में सहायता देने वाले दो वित्त मंत्रालय के दो चोटी के अधिकारी एस.पी. शुक्ला और दीपक नैय्यर मनमोहन सिंह की विचारधारा से सहमत नहीं थे। सिंह साहब के 18000 शब्दों के बजट भाषण की सबसे ख़ास बात यह थी कि वो बजटीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 8.40 फ़ीसदी से घटाकर 5.90 फ़ीसदी पर ले आए। इसका अर्थ हुआ सरकारी ख़र्चों में लगातार कमी करना। मनमोहन सिंह ने अपने भाषण का अंत विक्टर ह्यूगो के मशहूर उद्धरण से किया, "दुनिया की कोई ताक़त उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ पहुँचा है" महज़ कुछ मिनटों में मनमोहन सिंह ने नेहरु युग के तीन स्तंभ लाइसेंस राज, सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार और विश्व बाज़ार से भारत के अलगाव को समाप्त कर दिया। अमेरिका में भारत के राजदूत आबिद हुसैन ने वाशिंगटन से ईशेर अहलुवालिया को फ़ोन कर कहा कि वो उनकी तरफ़ से मनमोहन सिंह को गले लगा लें और उन्हें जागृति फ़िल्म का वो गाना याद दिलाएं, "दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल" यह गाना महात्मा गांधी के लिए लिखा गया था परन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य में मनमोहन सिंह पर भी लागू हो रहा था। मनमोहन सिंह की सादगी और किफ़ायत के तरीक़े से ज़िंदगी जीने के तरीक़े ने उन्हें उदारवाद की वकालत करने के लिए सशक्त बनाया। उन पर ये आरोप नहीं लग पाया कि उन्होंने उपभोक्तावाद और आलीशान ज़िंदगी के मोह के कारण उदारवाद का समर्थन किया है। सोने पर सुहागा तब हुआ जब जेनेवा में साउथ कमीशन की नौकरी के दौरान कमाए गए डॉलरों की क़ीमत रुपए के अवमूल्यन के कारण बढ़ गई तो उन्होंने सारे अतिरिक्त पैसे जोड़ कर प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमा करवा दिए।
गृहित पद -
सरदार मनमोहन सिंह भारत सरकार की कॉमर्स मिनिस्ट्री में आर्थिक सलाहकार के तौर पर शामिल हुए।
मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय में चीफ इकॉनॉमिक अडवाइज़र बन गए। अन्य जिन पदों पर वह रहे, वे हैं– वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष।
मनमोहन सिंह पहले आसाम बाद में राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य बने रहे और राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे। मनमोहन सिंह ने प्रथम बार 72 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री का कार्यकाल आरम्भ किया, जो अप्रैल 2009 में सफलता के साथ पूर्ण हुआ। इसके बाद लोकसभा के चुनाव हुए और भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की अगुवाई वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन पुन: विजयी हुआ और सिंह दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए। प्रधानमंत्री सिंह ने वित्तमंत्री के रूप में पी. चिदम्बरम को अर्थव्यवस्था का दायित्व सौंपा, जिसे उन्होंने कुशलता के साथ निभाया। वर्ष 2009 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत में भी देखने को मिला। भारत की बैंकिंग व्यवस्था का आधार मज़बूत होने के कारण उतना नुक़सान नहीं उठाना पड़ा, जितना अमेरिका और अन्य देशों को हुआ।
कड़े कदम -
26 नवम्बर 2008 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकियों ने हमला किया। दिल दहला देने वाले इस हमले ने देश को हिलाकर रख दिया। प्रधानमंत्री सिंह ने गृह मंत्री शिवराज पाटिल को पद से हटा कर वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम को गृह मंत्रालय और प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाया।
जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव -
1. 1957 से 1965 - चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में अध्यापक।
2. 1969 में संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक मां के अधिकारी नियुक्त।
3. 1969 से 1971 - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोफ़ेसर।
4. 1973 में - दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मानद प्रोफ़ेसर
5. 1982 से 1985 - भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर
6. 1985 से 1987 - योजना आयोग के उपाध्यक्ष
7. 1990 से 1991 - प्रधानमन्त्री के आर्थिक सलाहकार
8. 1991 से 1996 - नरसिंहराव मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री
9. 1991 - असम से राज्यसभा के सदस्य
10. 1995 - दूसरी बार राज्यसभा सदस्य
11. 1996 - दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर
12. 1999 - दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा, हार गये।
13. 2001 - तीसरी बार राज्य सभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता
14. 2004 से 2014 भारत के प्रधानमन्त्री
15. इसके अतिरिक्त उन्होंने पहले पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स में प्रोफेसर का पद संभाला। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिये भी काफी महत्वपूर्ण काम किया है।
विवाद -
मीडिया द्वारा मनमोहन सिंह जी को मौन मोहन सिंह नाम दिया गया।
तत्कालीन भाजपा नेता वर्तमान प्रधानमंत्री ने मनमोहन सिंह जी के प्रति अत्यधिक अनर्गल बयान दिए।
एक बयान के अनुसार बाथ रूम में रैन कोट पहन कर नहाने वाला की संज्ञा दी गई।
टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले के नाम पर आरोप लगे। इस घोटाले को स्वतन्त्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला कहा गया। सरकार ने जेपीसी का गठन किया और जांच की गई। उस घोटाले में भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपये का घपला हुआ है। इस घोटाले में विपक्ष के भारी दवाव के चलते मनमोहन सरकार में संचार मन्त्री ए. राजा को पद से हटा दिया गया और जेल में भी भेजा गया। भारतीय उच्चतम न्यायालय में दायर वाद पर पूरे मामले पर प्रधानमन्त्री की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। इस के जवाब में मनमोहन सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जवाब दिया
"हजारों सवालों से अच्छी है मेरी खामोशी
न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली"
2G स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला -
इसके अतिरिक्त टूजी स्पेक्ट्रम आवण्टन को लेकर संचार मन्त्री A. राजा की नियुक्ति के लिये हुई पैरवी के सम्बन्ध में नीरा राडिया, पत्रकारों, नेताओं और उद्योगपतियों से बातचीत के बाद सिंह साहब को कटघरे में खड़ा किया गया।
कोयला आबंटन घोटाला -
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में देश में कोयला खान आवंटन के नाम पर करीब 26 लाख करोड़ रुपये की लूट की ऐसा आरोप मीडिया और विपक्ष ने लगाया l
तथाकथित घोटाले का राज बताया गया कोयले का कैप्टिव ब्लॉक, जिसमें निजी क्षेत्र को उनकी मर्जी के मुताबिक ब्लॉक आवंटित कर दिया गया। इस कैप्टिव ब्लॉक नीति का फायदा हिंडाल्को, जेपी पावर, जिंदल पावर, जीवीके पावर और एस्सार आदि जैसी कंपनियों ने जोरदार तरीके से उठाया। यह नीति खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दिमाग की उपज थी।
उक्त सभी घोटालों की जांच के बाद सभी आरोप निराधार निकले, और कोर्ट ने सभी केस खारिज कर दिए।
विशेष -
नोट बंदी पर संसदीय समिति से संबंधित संस्मरण -
नोटबन्दी के दौरान मोदी सरकार घेरे में आ गई। मामला संसदीय समिति को सौंपा गया। RBI गवर्नर उर्जित पटेल इस मामले का बयान करते हुए Tv पर बच्चों की तरह रोने लगे। हुआ यह कि 18 जनवरी 2017 उर्जित पटेल को संसदीय समिति के समक्ष उपस्थित होना पड़ा। समिति के चेयरमैन कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोइली और सदस्य थे डॉक्टर मनमोहन सिंह। कमेटी ने उर्जित पटेल से सवाल पूछने शुरू' किए। कुछ सवालों के बाद उर्जित पटेल लड़खड़ा गए थे और जवाब देते नहीं बन पा रहा था।
सरदार मनमोहन सिंह ने उर्जित पटेल संभालते हुए कहा, कि आप पर हर सवाल का जवाब देने की पाबंदी नहीं है। आप हमारे सवालों का जवाब देने से मना' करने का हक़ भी रखते हैं। यही रिवाज है और क़ानून है। अर्जित पटेल का पक्ष लेने से विपक्षी सांसद नाराज हो गए। खुद सिंह साहब संसद में नोटबन्दी के ख़िलाफ़ मोदी सरकार को घेर चुके थे। सांसदों की नाराजगी का उत्तर देते हुए सिंह साहब ने कहा - RBI की "इंटीग्रिटी" और RBI गवर्नर की 'इज़्ज़त बहुत बड़ी बात है। मैं ख़ुद RBI का गवर्नर था। किसी अन्य की गलती के कारण, जो RBI का हो या ना हो, RBI की साख को दांव पर नहीं लगने दूंगा।RBI और देश बड़ा है, मोदी जैसे आएंगे जाएंगे पर RBI पर बट्टा लगा तो देश की सारी बैंक बरबाद हो जाएंगी। इस वाक़िए के बाद मोदी और उर्जित पटेल के रिश्ते ख़राब हो गए। पटेल ने वर्ष 2018 में RBI गवर्नर पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
यह थी सिंह साहब की दूरदर्शिता।
असीम अरुण सिंह साहब के सुरक्षा अधिकारी की कलम से -
मैं 2004 से लगभग तीन साल उनका बॉडी गार्ड रहा। एसपीजी में पीएम की सुरक्षा का सबसे अंदरुनी घेरा होता है - क्लोज़ प्रोटेक्शन टीम जिसका नेतृत्व करने का अवसर मुझे मिला था। एआईजी सीपीटी वो व्यक्ति है जो पीएम से कभी भी दूर नहीं रह सकता। यदि एक ही बॉडी गार्ड रह सकता है तो साथ यह बंदा होगा। ऐसे में उनके साथ उनकी परछाई की तरह साथ रहने की जिम्मेदारी थी मेरी।
डॉक्टर साहब की अपनी एक ही कार थी मारुति 800, जो पीएम हाउस में चमचमाती काली बीएमडब्ल्यू के पीछे खड़ी रहती थी। मनमोहन सिंह जी बार-बार मुझे कहते- असीम, मुझे इस कार में चलना पसंद नहीं, मेरी गड्डी तो यह है (मारुति)। मैं समझाता कि सर यह गाड़ी आपके ऐश्वर्य के लिए नहीं है, इसके सिक्योरिटी फीचर्स ऐसे हैं जिसके लिए एसपीजी ने इसे लिया है। लेकिन जब कारकेड मारुति के सामने से निकलता तो वे हमेशा मन भर उसे देखते। जैसे संकल्प दोहरा रहे हो कि मैं मिडिल क्लास व्यक्ति हूं और आम आदमी की चिंता करना मेरा काम है। करोड़ों की गाड़ी पीएम की है, मेरी तो यह मारुति है।
मनमोहन सिंह के विचार
01. एकता और धर्मनिरपेक्षता सरकार का आदर्श वाक्य होगा, हम भारत में विभाजनकारी राजनीति बर्दाश्त नहीं कर सकते।
02. राज्य के मामले में व्यक्ति को भावनाओं से परिपूर्ण रहना पड़ता है, लेकिन कोई व्यक्ति कभी भी भावुक नहीं हो सकता।
03. मेरा हमेशा से मानना रहा है, कि भारत ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपार उद्यमशीलता कौशल वाला देश है।
04. हमारी दृष्टि सिर्फ आर्थिक विकास की नही है, बल्कि एक ऐसे विकास की भी है, जो आम आदमी के जीवन को बेहतर बनाए।
05. पूंजीवाद ऐतिहासिक रूप से एक बहुत ही गतिशील शक्ति रहा है और उस बल के पीछे तकनीकी प्रगति, नवाचार, नए विचार, नए उत्पाद, नई प्रौद्योगिकियां और टीमों के प्रबंधन के नए तरीके हैं।
06. हारने वाला वह है, जिसने अपने सपनों को छोड़ दिया है, जब तक आप कोशिश कर रहे हैं, आप अभी तक हारे नहीं हैं।
07. मैं नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं.... मैं ईमानदारी से मानता हूं कि इतिहास मेरे प्रति समकालीन मीडिया या संसद में विपक्ष की तुलना में अधिक दयालु होगा.... राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए, मैंने वह सर्वश्रेष्ठ किया है जो मैं कर सकता था। मैंने परिस्थितियों के अनुसार जितना कर सकता था, उतना किया है...मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया है, इसका फैसला इतिहास को करना है।
08. हर दिन प्रधानमंत्री भारत के लोगों का 24 घंटे का सेवक होता है।
09. हम सभी जानते हैं, कि आज दुनिया में आतंकवाद का केंद्र पाकिस्तान है। विश्व समुदाय को इस कड़वी सच्चाई से रूबरू होना होगा।
उपलब्धियां -
01. 1991 के आर्थिक सुधारों की शुरुआत की।
02. भारत को आर्थिक संकट से बाहर निकाला और उदारीकरण, निजीकरण, तथा वैश्वीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।
3. (LPG) की नीतियों को लागू किया।
4. लाइसेंस राज समाप्त किया।
. प्रधानमंत्री काल (2004-2014):
. प्रथम कार्यकाल (2004-2009) -
1. मनरेगा योजना की शुरुआत।
2. सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम लागू।
3. भारत-अमेरिका परमाणु समझौता।
. दूसरा कार्यकाल (2009-2014)
4. आर्थिक विकास को आगे बढ़ाया।
5. आधार कार्ड योजना (UIDAI) की शुरुआत।
6. खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू।
7. भूमि अधिग्रहण बिल
8. 15 सूत्री कार्यक्रम
9. समस्त किसानों का 72 हजार करोड़ का कर्ज माफ
10. जीडीपी में अप्रत्याशित वृद्धि
11. DBTL (लाभार्थी के खाते में सीधा राशि का हस्तांतरण)
12. सिंह साहब ने प्रधानमंत्री रहते हुए कुल 117 बार प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
दैनिक भास्कर के अनुसार -
सरदार मनमोहन सिंह के सम्मान में एक छोटा सा प्रयास
फोटो साभार - गूगल गैलरी
संदर्भ है - विभिन्न पत्रिकाएं
शमशेर भालू खां
जिगर चुरूवी
9587243963