Wednesday, 30 March 2022

हम औऱ हमारी सच्चाई

कहां हैं
#बड़े_लोगों_की_छोटी_बात

           रास्ते पर घर है जहां  वाहनों की लोगों की भीड़ लगी रहती है हम भी समाज के बड़े प्रतिष्ठित सम्मानित नागरिकों में गिने जाते हैं।
        सुंदर घर के आगे एक सुंदर सा टॉयलेट-बाथरूम बनवाया जिस में बेहतरीन किस्म की टाइल,गेट व पानी की फिटिंग करवाई। हमारे घर में किसी तरह की गन्दगी न हो इसलिये बाथरूम का नाला सड़क की तरफ खोल दिया और बेतहासा पानी बहा रहे हैं।
           उसी रास्ते से नमाजी और पुजारी के साथ राहगीर पानी के छींटों से भीगते हुये दुआओं की बारिश करते चले जाते हैं।
       हम कामगार मज़दूर लोग हैं पशु तो रखने ही पड़ेंगे। अब पशु घर के अंदर रहे तो मिंगणी गोबर पेशाब की सड़ांध से जीना दूभर हो जायेगा। रास्ते पर जहां हमने पहले एक चौकी बना ली थी उस से थोड़ा बढ़कर बकरियों, गाय,भैंस के लिये खूँटा गाड़ देंगे। परेशान हम क्यों हो भई, लोग ही हों।
       घर का गेट थोड़ा ऊँचा लगवा लिया तो क्या हुआ सड़क पर बड़ा सा खरंजा बना कर आसानी से गाड़ी घर मे जा सकती है।
             पानी की कोई कमी नहीं है, टूंटी आ रही है बस जितना चाहिये भर लिया बाक़ी सड़क पर बह रहा है इस से ज्यादा आप हम से क्या चाहते हैं फ्री में ठण्डी सड़क मय्यसर करवा रहे हैं।
        रात खाना बना, बेहतरीन था अब लोगों को कैसे बतायें हमने क्या बनाया था, कोई बात नहीं हम बची हुई हड्डियाँ, छिलके दस्तरखान के कागज़, नेपकिन,बच्चों के हग्गीज़, कुछ कूड़ा सड़क पर डाल कर बड़ी शान से कहते हैं सफाई आधा ईमान है। हमारे नबी स0 को सफाई से बहुत लगाव था।
       दोस्तों के साथ बैठ कर हालात के बारे में बयान शुरू कर देते हैं कि हमारे देश के नेता चोर हैं सब कुछ खा-पी लिया पूरे देश को लूट रहे हैं।
         सऊदी,ब्रिटेन,अमेरिका व फ्रांस में जा कर देखो सड़क पर एक तिनका भी मिल जाये तो मज़ाल है। वहां बहुत सख़्ती है। (सड़क पर पुड़िया की पीक थूकते हुये खाली पुड़िया का रैपर वहीं डाल कर)वहाँ  कोई गन्दगी नहीं कर सकता औऱ हमारे देश में देखो कितनी गन्दगी है,मेरा तो जी ही नहीं लगता।
गांव शहर मोहल्ले एकदम साफ सुथरे होने चाहिये। जब हम सुबह सुबह घर से निकलें तो चौड़ा पक्का और साफ सुथरा रास्ता देख कर दिल को सुकून मिलता है।
                हम खूब शौक से किसी के घर के आगे खाली पड़ी ज़मीन पर अपनी मोटर साईकिल, स्कूटर,गाड़ी या साईकल खड़ी कर के अंदर घुस जाते हैं ।
       पूरे यकीन के साथ कि पास से गुजरने वाला वाहन आराम से निकल  सकता है अपनी गाड़ी/वाहन सुरक्षित है। यह सब दूसरे के घर में होना चाहिये।
           वहाँ से निकल कर बग़ीचे में घूमने चले गये,डालियों से लगे सुंदर फूलों ने ध्यान खींचा। इधर उधर नज़र दौड़ा कर तपाक से कुछ फूल तोड़े और जेब में रख कर घर की ओर चल दिये।
(हमारी बस्ती,शहर,गांव में मैने जो देखा महसूस किया वही लिख दिया। आप और मैं चाहें तो अपने ऊपर लेकर सोच सकते हैं,हालत बदल सकते हैं)
हम कब सुधरेंगे।

जिगर चूरूवी
(शमशेर भालुखान)
9587243963

शुद्ध हिन्दी वर्तनी

वर्तनी (हिन्दी)  
लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं। इसे 'हिज्जे' भी कहा जाता है।

उच्चारण
वर्तनी का सीधा संबंध उच्चारण से होता है। हिन्दी में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है। यदि उच्चारण अशुद्ध होगा तो वर्तनी भी अशुद्ध होगी। प्रायः अपनी मातृभाषा या बोली के कारण तथा व्याकरण संबंधी ज्ञान की कमी के कारण उच्चारण में अशुद्धियाँ आ जाती हैं जिसके कारण वर्तनी में भी अशुद्धियाँ आ जाती हैं।
संस्कृत भाषा के मूल श्लोकों को अदधृत करते समय संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। जैसे:संयुक्त, चिह्न, विद्या, चच्चल, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि। किंतु यदि इन्हें भी उपर्युक्त नियमों के अनुसार ही लिखा जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी।

कारक चिह्न
हिन्दी के कारक चिह्न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक् लिखे जाएँ। जैसे: राम को, राम से, स्त्री से, सेवा में आदि। सर्वनाम शब्दों में ये चिह्न प्रातिपदिक के साथ मिलाकर लिखे जाएँ। जैसे- तूने, आपने, तुमसे, उसने, उससे आदि।
सर्वनामों के साथ यदि दो कारक चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक् लिखा जाए। जैसे- उसके लिए, इसमें से।
संयुक्त क्रिया पदों में सभी अंगीभूत क्रियाएँ पृथक-पृथक् लिखी जाएँ। जैसे- पढ़ा करता है, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, खेला करेगा, घूमता रहेगा, आदि।
हाइफ़न (योजक चिह्न)
हाइफ़न का विधान स्पष्टता के लिए किया गया है।
द्वंद्व समास में पदों के बीच हाइफ़न रखा जाए। राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती संवाद, देख-रेख चाल-चलन हँसी-मजाक, लेन-देन, खेलना-कूदना आदि।
सा, जैसा आदि से पूर्व हाइफ़न रखा जाए। जैसे: तुम-सा, राम- जैसा, चाकू-से तीखे।
तत्पुरुष समास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं किया जाए जहाँ उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे-भू-तत्व। सामान्यत: तत्पुरुष समास में हाइफ़न लगाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या आदि।
इसी तरह यदि 'अ-नख' (बिना नख का) समस्त पद में हाइफ़न न लगाया जाए तो उसे 'अनख' पढ़े जाने से 'क्रोध' का अर्थ निकल सकता है। अ-नति (नम्रता का अभाव) अनति (थोड़ा), अ-परस (जिसे किसी ने न छुआ हो):अपरस (एकचर्मरोग), भू-तत्त्व (पृथ्वी-तत्व) भूतत्त्व (भूत होने का भाव) आदि समस्त पदों की भी यही स्थिति है। ये सभी युग्म वर्तनी और अर्थ दोनों दृष्टियों से भिन्न-भिन्न शब्द हैं।

कठिन संधियों से बचने के लिए भी हाइफ़न का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-दवि-अक्षर (दव्यक्षर), दवि-अर्थक (दव्यअर्थक) आदि।
अव्यय
'तक', 'साथ', आदि अव्यय सदा पृथक् लिखे जाएँ। जैसे: यहाँ तक, आपके साथ।
आह, ओह, अहा, ऐ, ही, तो, सो, भी, न, जब, तब, कब, यहाँ वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, श्री, जी, तक, भर, मात्र, साथ, कि, किंतु, मगर, लेकिन, चाहे या अथवा, तथा, यथा, और आदि, अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं।
कुछ अव्ययों के आगे कारक चिह्न भी आते हैं। जैसे-अब से, तब से, यहाँ से, वहाँ से, सदा से, आदि। नियम के अनुसार अव्यय सदा पृथक् लिखे जाने चाहिए। जैसे आप ही के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज़ भरकपड़ा, देशभर, रातभर, दिनभर, वह इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्र आदि।

सम्मानार्थक 'श्री' और 'जी' अव्यय भी पृथक् लिखे जाएँ। जैसे:श्रीराम, कन्हैयालाल जी, महात्मा जी आदि। (यदि श्री, जी आदि व्यक्तिवाचक संज्ञा के ही भाग हों तो मिलाकर लिखे जाएँ। जैसे: श्रीराम, रामजी लाल, सोमयाजी आदि)
समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय जोड़कर लिखे जाएँ (यानी पृथक् नहीं लिखे जाएँ) जैसे प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथोचित आदि। यह सर्वविदित नियम है कि समास होने पर समस्त पद एक माना जाता है। अत: उसे विभक्त रूप में न लिखकर एक साथ लिखना ही संगत है। 'दस रुपए मात्र' 'मात्र दो व्यक्ति' में पदबंध की रचना है। यहाँ मात्र अलग से लिखा जाए (यानी मिलाकर नहीं लिखें)
अनुस्वर (ं), चंद्रबिन्दु (ँ)
अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिकता स्वर का नासिक्य विकार। हिन्दी में ये दोनों अर्थभेदक भी हैं। अत: हिन्दी में अनुसार (.) और अनुनासिकता चिह्न () दोनों ही प्रचलित रहेंगे। अनुस्वार
संस्कृत शब्दों का अनुस्वार अन्य वर्गीय वर्णों से पहले यथावत् रहेगा। जैसे संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, अंश, कंस, आदि।
संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरुपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए। जैसे पंकज, गंगा, चंचल, कंजूस, कंठ, ठंडा,संत, संध्या, मंदिर, संपादक आदि (कण्ठ, ठण्डा, संत, मन्दिर, सन्ध्या, सम्पादक, सम्बन्ध, वाले रूप नहीं) कोष्ठक में रखे हुए रूप संस्कृत के उदधरणों में ही मान्य होंगे। हिन्दी में बिंदी (अनुस्वार) का प्रयोग करना ही उचित होगा।
यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे वाड़मय,अन्य, चिन्मय, उन्मुख, आदि (वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख आदि रूप ग्राहय नहीं होंगे)
पंचम वर्ण यदि दवित्त्व रूप में (दुबारा) आय तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे- अन्न, सम्मेलन, सम्मति आदि (अंत, संमेलन, संमति रूप ग्राहय नहीं होंगे)।
अंग्रेज़ी, उर्दू से गृहीत शब्दों में आधे वर्ण या अनुस्वार के भ्रम को दूर करने के लिए नासिक्य व्यंजन को पूरा लिखना अच्छा रहेगा। जैसे लिमका, तनखाह, तिनका, तमगा, कमसिन आदि।
संस्कृत के कुछ तत्सम शब्दों के अंत में अनुस्वार का प्रयोग म् का सूचक है। जैसे- अहं (अहम्), एवं (एवम्), शिवं (शिवम्),
अनुनासिकता (चंद्रबिंदु)
हिन्दी के शब्दों में उचित ढंग से चंद्रबिंदु का प्रयोग अनिवार्य होगा।
अनुनासिकता व्यंजन नहीं है, स्वरों का ध्वनिगुण है। अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में नाक से भी हवा निकलती है। जैसे-आँ, ऊँ, एँ, माँ, हूँ, आएँ।
चंद्रबिंदु के बिना प्राय: अर्थ में भ्रम की गुंजाइश रहती है। जैसे -हंस:हँस, अंगना: अँगना, स्वांग(स्व+अंग): स्वाँग आदि में।
अतएव ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए चंद्रबिंदु का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। किंतु जहाँ (विशेषकर शिरोरेखा के ऊपर जुड़ने वाली मात्रा के साथ) चंद्रबिंदु के प्रयोग से छपाई आदि में बहुत कठिनाई हो और चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु का (अनुस्वार चिह्न का) प्रयोग किसी प्रकार का भ्रम उत्पन्न न करे, वहाँ चंद्रबिंदु के स्थान पर बिंदु के प्रयोग की छूट रहेगी। जैसे:नहीं, में मैं, आदि। कविता आदि के प्रसंग में छंद की दृष्टि से चंद्रबिंदु का यथा स्थान अवश्य प्रयोग किया जाए। इसी प्रकार छोटे बच्चों की प्रवेशिकाओं में जहाँ चंद्रबिंदु का उच्चारण अभीष्ट हो, वहाँ मोटे अक्षरों में उसका यथास्थान सर्वत्र प्रयोग किया जाए। जैसे: कहाँ, हँसना, आँगन, सँवारना, मँ, मैँ नहीँ आदि।

विसर्ग (:)
संस्कृत के जिन शब्दों में विसर्ग का प्रयोग होता है, वे यदि तत्सम रूप में प्रयुक्त हों तो विसर्ग का प्रयोग अवश्य किया जाए जैसे: 'दु:खानुभूति' में। यदि उस शब्द के तद्भव रूप में विसर्ग का लोप हो चुका हो तो उस रूप में विसर्ग के बिना भी काम चल जाएगा। जैसे 'दुख-सुख के साथी'।
तत्सम शब्दों के अंत में प्रयुक्त विसर्ग का प्रयोग अनिवार्य है। यथा:-अत:, पुन:, स्वत:, प्राय:, पूर्णत:, मूलत:, अंतत:, वस्तुत:, क्रमश:, आदि।
'ह' का अघोष उच्चरित रूप विसर्ग है, अत: उसके स्थान पर (स) घोष 'ह' का लेखन किसी हालत में न किया जाए (अत: पुन: आदि के स्थान पर अतह, पुनह आदि लिखना अशुद्ध वर्तनी
का उदाहरण माना जाएगा। )

दु:साहस/दुस्साहस, नि:शब्द/निश्शब्द के उभय रूप मान्य होंगे। इनमें दवित्व वाले रूप को प्राथमिकता दी जाए।
नि: स्वार्थ मान्य है(निस्सवार्थ उचित नहीं होगा)
निस्तेज, निर्वचन, निश्चल आदि शब्दों विसर्ग वाला रूप (नि:तेज, नि:वचन, नि:चल) न लिखा जाए।
अंत:करण, अंत:पुर, प्रात: काल आदि शब्द विसर्ग के साथ ही लिखे जाएँ।
तदभव/देशी शब्दों में विसर्ग का प्रयोग न किया जाए। इस आधार पर छ: लिखना ग़लत होगा। छह लिखना ही ठीक होगा।
प्रायदवीप, समाप्तप्राय आदि शब्दों में तत्सम रूप में भी विसर्ग नहीं है।
विसर्ग को वर्ण के साथ मिलाकर लिखा जाए, जबकि कोलन चिह्न (उपविराम) शब्द से कुछ दूरी पर हो। जैसे: अत: यों है:-
हल् चिह्न
इसको हल् चिह्न कहा जाए, न कि हलंत। व्यंजन के नीचे लगा हल् चिह्न उस व्यंजन के स्वर रहित होने की सूचना देता है, यानी वह व्यंजन विशुद्ध रूप से व्यंजन है। इस तरह से 'जगत' हलंत शब्द कहा जाएगा, क्योंकि यह शब्द व्यंजनांत है, स्वरांत नहीं।
संयुक्ताक्षर बनाने के नियम के अनुसार ड्, छ्, ट्, ठ्, ड्, ढ्, ह् में हल् चिह्न का ही प्रयोग होगा। जैसे;-चिह्न, बुड्ढा, विद्वान आदि में।
तत्सम शब्दों का प्रयोग वांछनीय हो, तब हलंत रुपों का ही प्रयोग किया जाए; विशेष रूप से तब जब उनसे समस्त पद या व्युत्पन्न शब्द बनते हों। यथा:- प्राक्-(प्रागैतिहास) , तेजस् -(तेजस्वी), विद्युत् -(विद्युल्लता) आदि। तत्सम संबोधन में हे राजन्, हे भगवन् रूप ही स्वीकृत होंगे। हिन्दी शैलीमें हे राजा, हे भगवान लिखे जाएँ। जिन शब्दों में हल् चिह्न लुप्त हो चुका हो उनमें उसे फिर से लगाने का प्रयत्न न किया जाए। जैसे:- महान् विद्वान आदि (क्योंकि हिन्दी में अब 'महान' से 'महानता' और 'विद्वानों' जैसे रूप प्रचलित हो चुके हैं।
व्याकरण ग्रंथों में व्यंजन संधि समझाते हुए केवल उतने ही शब्द दिए जाएँ, जो शब्द रचना को समझने के लिए आवश्यक हों (उत्+नयन=उन्नयन, उत्+लास=उल्लास) या अर्थ की दृष्टि से उपयोगी हों (जगदीश, जगन्माता, जगज्जननी)।
हिन्दी में हृदयंगम (हृदयम्+गम), संचित(सम्+चित्) आदि शब्दों का संधि-विच्छेद समझाने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। इसी तरह 'साक्षात्कार', 'जगदीश', 'षट्कोण', जैसे शब्दों के अर्थ को समझाने की आवश्यकता हो, तभी उनकी संधि का हवाला दिया जाए। हिन्दी में इन्हें स्वतंत्र शब्दों के रूप में ग्रहण करना ही अच्छा होगा।
स्वर परिवर्तन
संस्कृतमूलक तत्सम शब्दों की वर्तनी को ज्यों-का-त्यों ग्रहण किया जाए। अत: 'ब्रह्मा' को 'ब्रम्हा' को 'चिह्न' 'उऋण' को 'उरिण' में बदलना उचित नहीं होगा। इसी प्रकार ग्रहीत, दृष्टव्य, प्रदर्शिनी, अत्याधिक, अनाधिकार आदि अशुद्ध प्रयोग ग्राह्य नहीं हैं। इनके स्थान पर क्रमश: गृहीत, द्रष्टव्य, प्रदर्शनी, अत्यधिक, अनधिकार ही लिखना चाहिए।
जिन तत्सम शब्दों में तीन व्यंजनों के संयोग की स्थिति में एक द्वित्वमूलक व्यंजन लुप्त हो गया है उसे न लिखने की छूट है।:- अर्द्ध-अर्ध, तत्त्व-तत्त्व आदि।
'ए','औ',का प्रयोग
हिन्दी में ऐ, औ का प्रयोग दो प्रकार के उच्चारण को व्यक्त करने के लिए होता है। पहले प्रकार का उच्चारण 'है', और 'और', आदि में मूल स्वरों की तरह होने लगा है; जबकि दूसरे प्रकार का उच्चारण 'गवैया' , 'कौआ' आदि शब्दों में संध्यक्षरों के रूप में आज भी सुरक्षित है। दोनों ही प्रकार के उच्चारणों को व्यक्त करने के लिए इन्हीं चिह्नों(ऐ, औ) का प्रयोग किया जाए। 'गवय्या', कव्वा', आदि संशोधनों की आवश्यकता नहीं है। अन्य उदाहरण हैं:- भैया, सैयद, तैयार, हौवा, आदि।
दक्षिण के अय्यर, नय्यर, रामय्या, आदि व्यक्ति नामों को हिन्दी उच्चारण के अनुसार ऐयर, नैयर, रामैया आदि न लिखा जाए, क्योंकि मूल भाषा में इसका उच्चारण भिन्न है।
अव्वल, क़व्वाल, क़व्वाली जैसे शब्द प्रचलित हैं। इन्हें लेखन में यथावत रखा जाए।
संस्कृत के तत्सम शब्द 'शय्या' को 'शैया' न लिखा जाए।
पूर्वकालिक कृदंत प्रत्यय 'कर'
पूर्वकालिन कृदंत प्रत्यय 'कर' क्रिया से मिलाकर लिखा जाए। जैसे :- मिलाकर, खा+पीकर, रो+रोकर आदि।
कर+कर से 'करके' और करा+ कर से 'कराके' बनेगा।
वाला
क्रिया रुपों में 'करने वाला' 'आने वाला' 'बोलने वाला' आदि को अलग लिखा जाए। जैसे: - मैं घर जाने वाला हूँ जाने वाले लोग।
योजक प्रत्यय के रूप में 'घरवाला' 'टोपीवाला' , 'दिलवाला', दूधवाला आदि एक शब्द के समान ही लिखे जाएँगे।
'वाला' जब प्रत्यय के रूप में आएगा तब तो नियम 2 के अनुसार मिलाकर लिखा जाएगा, अन्यथा अलग से। यह वाला, यह वाली, पहले वाला, अच्छा वाला, लाल वाला, कल वाली, बात आदि में वाला निर्देशक शब्द है। अत: इसे अलग ही लिखा जाए।
इसी तरह लंबे बालों वाली लड़की दाढ़ी वाला आदमी आदि शब्दों में भी वाला अलग लिखा जाएगा। इससे हम रचना के स्तर पर अंतर कर सकते हैं। जैसे- गाँववाला, गाँव वाला मकान,

श्रुतिमूलक 'य', 'व'
जहाँ श्रुतिमूलक य, व का प्रयोग विकल्प से होता है वहाँ न किया जाए, अर्थात् किए: किये, नई: नयी, हुआ: हुवा आदि में से पहले (स्वरात्मक) रुपों का प्रयोग किया जाए। यह नियम क्रिया, विशेषण, अव्यय आदि सभी रुपों और स्थितियों में लागू माना जाए। जैसे:- दिखाए गए, राम के लिए, पुस्तक लिये हुए, नई दिल्ली आदि।
जहाँ 'य' श्रुतिमूलक व्याकरणिक परिवर्तन न होकर शब्द का ही मूल तत्त्व हो वहाँ वैकल्पिक श्रुतिमूलक स्वरात्मक परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है।
जैसे:- स्थायी, अव्ययीभाव, दायित्व आदि (अर्थात् यहाँ स्थाई, अव्यईभाव, दाइत्व नहीं लिखा जाएगा)।

विदेशी ध्वनियाँ
उर्दू शब्द-
उर्दू से आए अरबी -फ़ारसी मूलक वे शब्द जो हिन्दी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिन्दी ध्वनियों में रुपांतर हो चुका है, हिन्दी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे:- कलम क़िला दाग़ आदि (क़लम, क़िला दाग़) नहीं)। पर जहाँ उनका शुद्ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्यक हो, वहाँ उनके हिन्दी में प्रचलित रुपों में यथास्थान नुक्ते लगाए जाएँ। जैसे:-खाना: ख़ाना, राज: राज़ फन: फ़न आदि।

अंग्रेज़ी शब्द
अंग्रेज़ी के जिन शब्दों में अर्धविवृत 'ओ' ध्वनि का प्रयोग होता है, उनके शुद्ध रूप का हिन्दी में प्रयोग अभीष्ट होने पर 'आ' की मात्रा के ऊपर अर्धचंद्र का प्रयोग किया जाए (ऑ) जहाँ तक अंग्रेज़ी और अन्य विदेशी भाषाओं से नए शब्द ग्रहण करने और उनके देवनागरी लिप्यंतरण का संबंध है, अगस्त-सितंबर, 1962 में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा वैज्ञानिक शब्दावली पर आयोजित भाषाविदों की संगोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय शब्दावली के देवनागरी लिप्यंतरण के संबंध में की गई सिफ़ारिश उल्लेखनीय है। उसमें कहा गया है कि अंग्रेज़ी शब्दों का लिप्यंतरण इतना क्लिष्ट नहीं होना चाहिए कि उसके वर्तमान देवनागरी वर्णों में अनेक नए संकेत-चिह्न लगाने पड़ें। अंग्रेज़ी शब्दों का देवनागरी लिप्यंतरण मानक अंग्रेज़ी उच्चारण के अधिक-से अधिक निकट होना चाहिए।

द्विधा रूप वर्तनी
हिन्दी में कुछ प्रचलित शब्द ऐसे हैं जिनकी वर्तनी के दो-दो रूप बराबर चल रहे हैं। विद्वत्समाज में दोनों रुपों की एक सी मान्यता है। कुछ उदाहरण हैं:- गरदन/गर्दन, गरमी/गर्मी, बरफ़/बर्फ़, बिलकुल/बिल्कुल, वापस/वापिस, बीमारी/बिमारी, दुकान/दूकान, आखिरकार/आखीरकार, चिहन/चिन्ह आदि।

अन्य नियम
शिरोरेखा का प्रयोग प्रचलित रहेगा।
फुलस्टॉप (पूर्ण विराम) को छोड़कर शेष विराममादि चिह्न वही ग्रहण कर लिये गए हैं अंग्रेज़ी में प्रचलित हैं। यथा:- (हाइफ़न/योजक चिह्न), (डैश/निर्देशक चिह्न), (कोलन एंड डैश/विवरण चिह्न) (कोमा/अल्पविराम), (सेमीकोलन/अर्धविराम),: (कोलन/उपविराम), ? (क्वश्चन मार्क/प्रश्न चिह्न) ! (साइन ऑफ़ इंटेरोगेशन/विस्मयसूचक चिह्न), (अपोस्ट्राफ़ी/ऊर्ध्व अल्प विराम), " " (डबल इंवर्टेड कोमाज़/उद्धारणचिह्न), () [] (तीनों कोष्ठक),
(...लोप चिह्न), (संक्षेपसूचक चिह्न) (हंसपद)।

विसर्ग के चिह्न को ही कोलन का चिह्न मान लिया गया है। पर दोनों में यह अंतर रखा गया है कि विसर्ग वर्ण से सटाकर और कोलन शब्द से कुछ दूरी पर रहे।
पूर्ण विराम के लिए खड़ी पाई (।) का ही प्रयोग किया जाए। वाक्य के अंत में बिंदु (अंग्रेज़ी फुलस्टॉप) का नहीं।

मानक वर्तनी के प्रयोग का उदाहरण
हिन्दी एक विकासशील भाषा है। संघ की राजभाषा घोषित हो जाने के बाद यह शनै:-शनै: अखिल भारतीय रूप ग्रहण कर रही है। अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के संपर्क में आकर, उनसे बहुत कुछ ग्रहण करके और हिन्दीतर भाषियों द्वारा प्रयुक्त होते-होते उसका यथासमय एक सर्वसम्मत अखिल भारतीय रूप विकसित होगा-ऐसी आशा है। यद्यपि यह सही है कि एक विस्तृत भू-खंड में और बहुभाषी समाज के बीच व्यवह्रत किसी भी विकासशील भाषा के उच्चारणगत गठन में अनेकरुपता मिलना स्वाभाविक है, उसे व्याकरण के कठोर नियमों में जकड़ा नहीं जा सकता; उसके प्रयोगकर्ताओं को किसी ऐसे शब्द को, जिसके दो या अधिक समानांतर रूप प्रचलित हो चुके हों, एक विशेष रूप में प्रयुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता; ऐसे शब्दारुपों के बारे में किसी विशेषज्ञ समिति द्वारा निर्णय दे देने के बाद भी उनकी ग्राह्यता-अग्राह्यता के विषय में मतभेद बना ही रहता है; फिर भी प्रथमत: कम-से-कम लेखन, टंकन और मुद्रण के क्षेत्र में तो हिन्दी भाषा में एकरूपता और मानकीकरण की तत्काल आवश्यकता है। क्या ऐसा करना आज के यंत्राधीन जीवन की अनिवार्यता नहीं है? भाषा विषयक कठोर नियम बना देने से उनकी स्वीकार्यता तो संदेहास्पद हो जाती है, साथ ही भाषा के स्वाभाविक विकास में भी अवरोध आने का थोड़ा सा डर रहता है। फलत: भाषा गतिशील, जीवंत और समयानुरूप नहीं रह पाती। हिन्दी वर्णमाला के मानकीकरण में और हिन्दी वर्तनी के एकरुपता विषयक नियम निर्धारित करते समय इन सब तथ्यों को ध्यान में रखा गया है और इसीलिए, जहाँ तक बन पड़ा है, काफ़ी हद तक उदारतापूर्ण नीति अपनाई गई है।

हिन्दी के संख्यावाचक शब्दों की एकरूपता
हिन्दी प्रदेशों में संख्यावाचक शब्दों के उच्चारण और लेखन में प्राय: एकरुपता का अभाव दिखाई देता है। इसलिए एक से सौ तक सभी संख्यावाचक शब्दों पर विचार करने के बाद इनका जो मानक रूप स्वीकृत हुआ, वह इस प्रकार है:- एक, दो, तीन, चार, पाँच , छह, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पंद्रह, सोलह, सत्रह, अठारह, उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाईस, तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकतीस, बत्तीस, तैंतीस, चौंतीस, पैंतीस, छत्तीस, सैंतीस, अड़तीस, उनतालीस, चालीस, इकतालीस, बयालीस, तैंतालीस, चौवालीस, पैंतालीस, छियालीस, सैंतालीस, अड़तालीस, उनचास, पचास, इक्यावन, बावन, तिरपन, चौवन, पचपन, छप्पन, सत्तावन, अट्ठावन, उनसठ, साठ, इकसठ, बासठ, तिरसठ, चौंसठ, पैंसठ, छियासठ, सड़सठ, अड़सठ, उनहत्तर, सत्तर, इकहत्तर, बहत्तर, तिहत्तर, चौहत्तर, पचहत्तर, छिहत्तर, सतहत्तर, अठहत्तर, उन्यासी, अस्सी, इक्यासी, बयासी, तिरासी, चौरासी, पचासी, छियासी, सत्तासी, अट्ठासी, नवासी, नब्बे, इक्यानबे, बानबे, तिरानबे, चौरानबे, पंचानबे, छियानबे, सत्तानबे, अट्ठानबे, निन्यानबे, सौ।

क्रमसूचक संख्याएँ
पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवाँ, छठा, सातवाँ, आठवाँ, नौवाँ, दसवाँ (प्रथम द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, सप्तम, अष्टम, नवम, दशम)।

भिन्नसूचक संख्याएँ
एक चौथाई, आधा, पौन, सवा(सवा एक नहीं), डेढ़ (साढ़े एक नहीं), पौने दो, सवा दो, ढाई, (साढ़े दो नहीं), पौने तीन, सवा तीन, साढ़े तीन, आदि।

मानक वर्तनी
भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय ने सन् 1983 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा पूर्व में किए हिन्दी भाषा की लिपि व वर्तनी के मानकीकरण संबंधी प्रयासों का समन्वित रूप 'देवनागरी लिपि तथा हिन्दी वर्तनी का मानकीकरण' के रूप में प्रस्तुत किया। इन्होंने वर्तनी के सम्बन्ध में कुछ सुझाव प्रस्तुत किये है जिनका विवरण इस प्रकार है:-

खड़ी पाई वाले व्यंजन
खड़ी पाई वाले व्यंजनों के संयुक्त रूप परंपरागत तरीके से खड़ी पाई को हटाकर ही बनाए जाएँ। यथा:-

ख्याति, लग्न, विघ्न व्यास
कच्चा, छज्जा श्लोक
नगण्य राष्ट्रीय
कुत्ता, पथ्य, ध्वनि, न्यास स्वीकृत
प्यास, डिब्बा, सभ्य, रम्य यक्ष्मा
शय्या त्र्यंबक
अन्य व्यंजन
क और फ / फ़ के संयुक्ताक्षर पक्का, दफ़्तर आदि की तरह बनाए जाएँ, न कि संयुक्त, पक्का दत्फर की तरह।
ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ, द और ह के संयुक्ताक्षर हल चिह्न लगाकर ही बनाए जाएँ। यथा:-
अशुद्ध शुद्ध
वाङमय वाङ्मय
विदया विद्या
चिहन चिह्न
संयुक्त 'र' के प्रचलित तीनों रूप यथावत् रहेंगे। यथा:- प्रकार, धर्म, राष्ट्र
श्र का प्रचलित रूप ही मान्य होगा। इसे श के साथ र मिश्रित करके नहीं लिखा जाएगा। त + र के संयुक्त रूप के लिए पहले त्र को मानक माना गया है। इसी तरह अन्य संयुक्त व्यंजनों पर भी यही नियम लागू होंगे। जैसे:- क्र, प्र, ब्र, स्र, ह्र आदि
हल् चिह्न युक्त वर्ण से बनने वाले संयुक्ताक्षर के द्वितीय व्यंजन के साथ 'इ' की मात्रा का प्रयोग संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जाएगा, न कि पूरे युग्म से पूर्व। यथा:-
अशुद्ध शुद्ध
कुटटिम कुट्टिम
चिटठियाँ चिट्ठियाँ
अशुद्धियाँ
प्रायः लोग जिन शब्दों के उच्चारण एवं वर्तनी में अशुद्धियाँ करते हैं, उन शब्दों के अशुद्ध और शुद्ध रूप आगे तालिका में दिये जा रहे हैं-

स्वर संबंधी अशुद्धियाँ
'अ' 'आ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अकाश आकाश
अगामी आगामी
अजमाइश आजमाइश
अन्त्यक्षरी अन्त्याक्षरी
अर्यावर्त आर्यावर्त
अलपीन आलपीन
आजकाल आजकल
ढाकना ढकना
चहरदीवारी चहारदीवारी
हस्ताक्षेप हस्तक्षेप
हाथिनी हथिनी
'इ' 'ई' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
आशिर्वाद आशीर्वाद
इश्वर ईश्वर
दिपिका दीपिका
लिजिये लीजिये
हानी हानि
बाल्मीकी बाल्मीकि
शिर्षक शीर्षक
कोटी कोटि
गीनना गिनना
'उ' 'ऊ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अनुदित अनूदित
आशिर्वाद आशीर्वाद
आशिर्वाद आशीर्वाद
आशिर्वाद आशीर्वाद
आशिर्वाद आशीर्वाद
आशिर्वाद आशीर्वाद
'ऋ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अनुग्रहीत अनुगृहीत
रिगवेद ऋग्वेद
त्रितीय तृतीय
रितु ऋतु
पैत्रिक पैतृक
'ए' 'ऐ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
जेसा जैसा
पेसा पैसा
फैंकना फेंकना
सैना सेना
भाषाऐं भाषाएँ
सेनिक सैनिक
'ओ' 'औ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अलोकिक अलौकिक
ओद्योगिक औद्योगिक
लौहार लोहार
त्योहार त्योहार
ओरत औरत
प्रोढ़ प्रौढ़
अनुस्वर(ं), चंद्रबिन्दु(ँ) संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
आंख आँख
दांत दाँत
बांह बाँह
मुंह मुँह
गूंगा गूँगा
टांगना टाँगना
विसर्ग (ः) संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
प्रातकाल प्रातःकाल
प्राय प्रायः
निस्वार्थ निःस्वार्थ
दुख दुःख
निशुल्क निःशुल्क
व्यंजन संबंधी अशुद्धियाँ
'छ' 'क्ष' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
आकांछा आकांक्षा
नछत्र नक्षत्र
संछेप संक्षेप
रच्छा रक्षा
छीण क्षीण
'ज' 'य' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अजोधा अयोध्या
जाचना याचना
जमुना यमुना
जदि यदि
जोग योग
'ट' 'ठ' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
कनिष्ट कनिष्ठ
घनिष्ट घनिष्ठ
प्रविष्ट प्रविष्ठ
इकट्टा इकट्ठा
विशिष्ठ विशिष्ट
'ड' 'ड़' 'ढ' 'ढ़' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
कन्नड कन्नड़
पेड पेड़
षड़्यंत्र षड्यंत्र
सीड़ियां सीढ़ियां
पडता पड़ता
'ण' 'न' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अर्चणा अर्चना
श्रवन श्रवण
विस्मरन विस्मरण
प्रनाम प्रणाम
मरन मरण
'ब' 'व' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
नबाब नवाब
बिकट विकट
पूर्ब पूर्व
धोवी धोबी
क़ामयावी कामयाबी
'ङ' 'ञ' 'ण' 'न' 'म' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अन्ग अंग
कन्ठ कण्ठ
चन्चल चंचल
पन्डित पंडित
झन्डा झण्डा
'य' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
अंतर्ध्यान अंतर्धान
सामर्थ सामर्थ्य
मानवर मान्यवर
कवित्री कवयित्री
गृहस्थ्य गृहस्थ
'र' 'ड़' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
उमरना उमड़ना
परत्येक प्रत्येक
बृज ब्रज
पिंजड़ा पिंजरा
मिरच मिर्च
'श' 'ष' 'स' संबंधी अशुद्धियाँ
अशुद्ध शुद्ध
उत्कर्श उत्कर्ष
मनुश्य मनुष्य
दुश्कर्म दुष्कर्म
अमावश्या अमावस्या
संसोधित संशोधित

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आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
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Monday, 21 March 2022

कश्मीर मिथक व सच

कश्मीर मिथक और तथ्य 
(कश्मीर शब्द का नामकरण महर्षि कश्यप के नाम से हुआ है)
कश्मीर एवं कश्मीर समस्या को समझने के लिये 'इंडिया आफ्टर गाँधी, 'जहांगीर नामा','बाबर नामा' व उस समय प्रकाशित कुछ 'अखबारों की रिपोर्ट' महत्वपूर्ण हैं जिनके अध्ययन के बिना इसे समझ पाना मुश्किल है।
(मेरे एक साल के कश्मीर प्रवास के आधार पर लिखा गया संस्मरण जिस में कश्मीर, कश्मीरियत उनकी समस्या व समाधान विषय पर चर्चा)

वर्ष 2007 से 2008 तक शिक्षा प्राप्ति के उद्देश्य से कश्मीर जाना हुआ।
सचमुच जवाहर टनल से इस ओर व उस ओर के भारत मे एक बहुत बड़ा अंतर है।
एक साल के अनुभव उनके विचार आपके साथ साझा करने का मन हुआ।
गर जमी खुल्द अस्त
आम अस्त अमी अस्त।
जहांगीर बादशाह को कश्मीर की खूबसूरती से बहुत लगाव था। उसने फ़ारसी में यह शेअर लिखा जिस का अर्थ है अगर संसार में कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है,यहीँ है।
वास्तव में कश्मीर की सुंदरता अदम्य अनुदाहरणीय अकल्पनीय है। इस सुंदरता का वर्णन शब्दों में करना सूरज को दिया दिखाने के समान है।
 
1947 की परिस्थियां बहुत अलग थी। कुछ लोगों द्वारा भ्रामक प्रचार किया जाता है कि स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू ने कश्मीर समस्या का हल नहीं किया।
सरदार वल्लभभाई पटेल की उपेक्षा कर नेहरू ने यह समस्या स्वयं के बलबूते पर सुलझाने के प्रयास किये।
औऱ कश्मीर मामले को UNO में उठाकर और पेचिदा बना दिया।
सत्य इसके विपरीत है।
 यहाँ हम कश्मीर, कश्मीर समस्या,समाधान के प्रयास एवं तत्तकालीन परिस्थितियों पर विचार करेंगे।

कश्मीर:-
कश्मीर की भौगोलिक स्थिति एवं विस्तार:- 
  भारत के उत्तर में पर्वतीय प्रदेश शिवालिक,उप हिमालय एवं महा हिमालय के दुर्गम क्षेत्र जहाँ सामान्य मनुष्य का विचरण लगभग असंभव है जहां नदियो,धाराओं,झरनों, बर्फीली चोटियों, दर्रों,घाटियों व घने जंगलों के कारण जीवन दुर्गम है ऐसे क्षेत्र में स्थित है कश्मीर।
1 नाम :- जम्मू-कश्मीर राज्य (अब अगस्त 2019 से जम्मू कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश)
2स्थापना :- 26 जनवरी 1947 (इससे पूर्व रियासत के रूप में थी जिसके राजा हरि सिंह थे। हरि सिंह पृथक स्वतंत्र देश की स्थापना करना चाहते थे,पर कबाइलियों के आक्रमण व भारत सरकार के आग्रह पर भारत में विलय किया गया जिसे 1954 में संविधान सभा ने मंजूरी दी।) (यह विलय ब्रिटिश भारत स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार किया गया।)
3 स्थिति :-
अक्षांशीय- 32`15' से 37` 05' उत्तरी अक्षांश
देशांतरीय- 72`35' से 80`20' पूर्वी देशांतर
भौगोलिक स्थिति :-
A लद्दाख -कंडी पट्टी,गिलगित,बाल्टिस्तान का भाग
B कारगिल :- पीरपंजाल का उत्तरी भाग द्रास,कारगिल पहाड़ी क्षेत्र
C घाटी :- कश्मीर घाटी, सिंधु घाटी क्षेत्र पीर पँजाल क्षेत्र
D जम्मू क्षेत्र राजोरी,पूंछ, डोडा,जम्मू रावी क्षेत्र (जवाहर टनल से पहले का इलाका)
4 भाषाएँ :- डोगरी,पहाड़ी,उर्दू,पश्तो,पंजाबी(जम्मू में)
5 क्षेत्रफल :- 
कुल 22236 वर्ग किमी (138124 वर्ग किमी भारत के पास,12000 वर्ग किमी 1962 अक्साई चीन चाइना के पास शेष पीर पंजाल का पश्चिमी क्षेत्र पाकिस्तान के पास 1948 से)
6 राजधानी :- 
A गर्मियों में :- श्रीनगर जिसे राजा अशोकवर्धन ने बसाया रावी व झेलम नदी इसके बीच से होकर गुजरती हैं।
B शर्दियों में :- जम्मू जो तवी नदी के किनारे बसा हुआ शहर है।
श्रीनगर व जम्मू को राष्ट्रीय राजमार्ग 1A द्वारा जोड़ा गया है जो अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया।
7 लिंगानुपात :- 1000:923
8 धार्मिक स्थान :- अमरनाथ,वैष्णोदेवी, हज़रतबल
9 धार्मिक आबादी :- पहले पूरे कश्मीर में बौद्ध आबादी थी के बाद सनातन धर्म को मानने वाली बढ़ती गई। इस्लाम के उदय के बाद कश्मीरी पंडितों, बौद्धों व सनातन धर्मावलंबियों ने इसे स्वीकार किया आज 70% से अधिक आबादी मुस्लिम शेष सनातन(घाटी व जम्मू),बौद्ध((लद्दाख),सिक्ख घाटी व जम्मू) में निवास करती है।
10 प्रागेतिहासिक महत्व :-
कश्मीर का 65% भाग सिंधु घाटी क्षेत्र में है। यहां बुर्जहोम (श्रीनगर से 16 किमी ) में ईशा पूर्व 1000 से 3000 के अवशेष मिले हैं।
नव पाषाण व उत्तर पाषाण काल के अवशेष भी प्राप्त हुये हैं।
11 नदियाँ :- रावी,तवी, झेलम, सतलुज, चिनाब,सिंधु आदि मुख्य नदियाँ हैं।
12 झीलें :- वैसे तो पूरा घाटी क्षेत्र किसी समय एक झील ही था, मुख्य झील डल,
13 राष्ट्रीय राजमार्ग :- NH 1A
14 रेलमार्ग :-  कश्मीर भारत से रेलमार्ग से नहीं जुड़ा हुआ था जम्मू तक ही (रेल्वे स्टेशन का नाम जम्मू तवी) तक ही थी ।
1991 में शेष कश्मीर को रेल मार्ग से जोड़ने की परियोजना प्रारम्भ हुई। कश्मीर के भौगोलिक क्षेत्र उबड़ खाबड़ है जहाँ बड़े व लम्बे पुल बना कर रेल लाईन से जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं।
15 हवाई मार्ग : - जम्मू,कारगिल ,लद्दाख व श्रीनगर हवाई मार्ग से पूरे देश से जुड़ा हुआ है।
16 विशेष राज्य का दर्जा :- अगस्त 2019 से पूर्व कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा था धारा 370 के अनुसार 
A पृथक संविधान।
B पृथक ध्वज।
C अन्य राज्यों के लोगों का आकर बसना वर्जित।
D पृथक दण्ड व प्रक्रिया संहिता।
E संसद को बिना कश्मीर विधानसभा की अनुमति के कश्मीर पर कानून बनाने पर पाबंदी।


#कश्मीर विवाद के कारक:- 
कश्मीर समस्या कोई धार्मिक समस्या नहीं थी इसे कुछ लोगों द्वारा जानबूझकर धर्म का रूप दिया गया जिसमें मुस्लिम कांफ्रेंस(बाद में  नेशनल कांफ्रेंस) जिसके नेता शेख अब्दुल्ला पूर्व प्रधानमंत्री कश्मीर रियासत व श्यामा प्रसाद मुखर्जी (RSS की कश्मीर शाखा प्रजा परिषद) की राजनीतिक महत्वकांक्षा थी।

#यहां की खूबशूरती संसाधन की प्रचुरता व स्थल मार्ग से विश्व जुड़ाव के मार्ग हमेशा इसके लिये वरदान के साथ अभिशाप भी रहे।
जिसके कारण यह क्षेत्र हमेशा युद्ध का केंद्र बना रहा।

स्थानीय कारण :- भूमि,संसाधन, बगीचे,व्यवसाय आदि पर कश्मीरी पण्डितों का वर्चस्व रहा शेष आबादी मज़दूर,काश्तकार,कमेरा अन्य कार्य करते थे। 
यहां कहा जा सकता है जमींदार या जागीरदार के मध्य सर्वहारा वर्ग का जो संबंध था वही संबंध कश्मीर के अन्य लोगों व पंडितों के मध्य था।
बस असन्तोष को उभरने का बहाना इस कारक ने उपलब्ध करवा दिया।

#कश्मीर विवाद :- 1947 तक यह एक रियासत था जिसके राजा हरि सिंह स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहते परन्तु जनता भारत में मिलना चाहती थी।
पाकिस्तान व चीन की नज़र यहां के वैभवशाली संसाधनों पर थी। 
1947 में पाकिस्तानी कबाइलियों ने आक्रमण कर दिया औऱ महाराज हरिसिंह ने प्रधानमंत्री(कश्मीर) शेख अब्दुल्ला की सलाह से भारत मे विलय के प्रस्ताव को मंजूर किया। यह विलय माउंटबेटन के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार था जो चीन पाकिस्तान को मंज़र नहीं हुआ।
1948में कबाइली हमले तेज़ हो गये जिसपर भारत सरकार ने सेना भेजना प्रारंभ कर दिया,पाकिस्तान ने इसका विरोध किया।
भारत ने 1 जनवरी 1948 को मुद्दा UN में उठाया जिस पर UN ने 13 अगस्त 1947 को संकल्प संख्या 47 चेप्टर (vi) दो प्रस्ताव पास किये:-
A पाकिस्तान तुरन्त कश्मीर से सेना हटाये।
B शांति स्थापना के बाद जनमत संग्रह द्वारा यहां के लोगों की इच्छा पूछी जानी चाहिये (नेहरू ने पहले ही जिन्ना के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था जिसे अस्वीकार किया गया)
यहाँ यह बताना जरूरी है नंद ऋषि कालेज नटीपुरा श्रीनगर से वर्ष 2008 के दौरान B.Ed. करते हुए मैं स्वयं ने लाल डेड हॉस्पिटल लाल चौक व कालेज के गेट के आगे 21 दिन धरना दे कर कॉलेज प्रशासन द्वारा की जा रही अनियमितताओं का पर्दाफाश किया था व जीत दर्ज की थी।


 कुछ तथ्य 

1 माह सितंबर,1949 पंडित जवाहर लाल नेहरू व शेख अब्दुल्ला के मध्य झेलम नदी के किनारे 2 घण्टे एक शिकारे में चर्चा हुई थी जिसे टाइम पत्रिका ने सफल वार्ता का शीषर्क दिया था।
2 कश्मीर का भारत में विलय होने के बाद भी मामला UN में ले जाना एक कूटनीति का हिस्सा थी।
 3 ब्रिटेन अमेरिका सहित नाटो देश कश्मीर को पाकिस्तान में मिलने के पक्षधर थे पर उनकी एक न चली।

4 यह सत्य है भारत पाकिस्तान का बंटवारा हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर हुआ था।
बंटवारे के समय यह शर्त थी कि  मुस्लिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान में जाएंगे, हिंदू बाहुल्य राज्य भारत में रहेंगे।

5 इसी शर्त के अनुसार जूनागढ़ को वहाँ के नवाब के पाकिस्तान में विलय 13 सितम्बर 1947 की घोषणा के उपरांत भी भारत में विलय किया गया। बाद में माउंटबेटन की निगरानी में जनमत संग्रह करवाया गया जिसमें 82% हिंदू जनता होने के बावजूद 91%  जनता ने भारत के पक्ष में मत दिया।नवाब जूनागढ़ को पाकिस्तान भागकर शरण लेनी पड़ी। इस प्रकार 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।

6  बंटवारे के नियमानुसार कश्मीर पर पाकिस्तान ने दावा किया जिसका समर्थन ब्रिटेन और अमेरिका ने पूरी शक्ति से किया मगर पं नेहरू की कूटनीति व रूस के साथ की वजह से कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बन पाया।
अमेरिका ब्रिटेन पाकिस्तान को कश्मीर सौंप कर वहाँ सैनिक अड्डा बना लेते जो सोवियत रूस के लिये हानिकारक होता।

7 सरदार वल्लभ भाई पटेल के निजी सचिव पी.शंकर अनुसार पटेल कश्मीर को पाकिस्तान को सौंपने के लिये तैयार हो गये थे पर नेहरू की अडिगता व जूनागढ़ की घटना के बाद उनका मन बदला।

8 नेहरू ने शेख अब्दुल्ला की दोस्ती के दम पर कश्मीरियों का दिल जीता।

9 पटेल ने महाराजा हरि सिंह को मनाकर विलय हेतु मार्ग प्रशस्त किया।

10 सिंतबर 27,1947 को पटेल को नेहरू ने पत्र के माध्यम से उनको मिली खुफिया जानकारी के आधार पर आगाह किया कि ''कश्मीर की परिस्थिति तेजी से बिगड़ रही हैं। शीतकाल में कश्मीर का संबंध बाकी भारत से कट जायेगा, हवाई मार्ग बंद हो जायेंगे पाकिस्तान कश्मीर में घुसपैठियों को भेजना चाहता है,महाराजा का प्रशासन इस खतरे को झेल नहीं पायेगा।वक्त की जरूरत है कि महाराजा व शेख अब्दुल्ला को रिहा कर नेशनल कॉन्फ्रेंस से दोस्ती की जाये। ''शेख अब्दुल्ला की मदद से महाराजा पाकिस्तान के खिलाफ जन समर्थन हासिल करें, शेख अब्दुल्ला ने कहा है कि वो मेरी सलाह पर काम करेंगे।''

11 नेहरू के पत्र के अनुसार सरदार पटेल ने महाराजा से संपर्क किया, 29 सिंतबर 1947 को शेख अब्दुल्ला को रिहा कर दिया गया और उन्होंने एक ऐतिहासिक भाषण दिया जिसमें कहा कि "पाकिस्तान के नारे में मेरा कभी विश्वास नहीं रहा,फिर भी पाकिस्तान आज वास्तविकता है,पंडित नेहरू मेरे दोस्त हैं और गांधी जी के प्रति मेरा पूज्य भाव है। 
मगर कश्मीर कहां रहेगा इसका फैसला यहां की 40 लाख जनता करेगी।'' 

12 महाराजा हरि सिंह अभी भी पृथक देश की फिराक में थे और अचानक 22 अक्टूबर 1947 को कबाइलीयों ने कश्मीर पर हमला कर दिया।
कबाईली हमलावर मुजफ्फराबाद से आगे बढ़कर श्रीनगर के करीब पहुंच गये और वहॉं के बिजली घर पर कब्जा कर श्रीनगर की बिजली काट दी। इस पर जिन्ना ने कहा था कि अबकी श्रीनगर में मनायेंगे।

14  चारों ओर से घिरे हरि सिंह ने भारत सरकार के विलय के प्रस्ताव को मान लिया व भारतीय सेना मैदान में आ खड़ी हुई।

15 अक्टूबर 27,1947 को सैनिकों से भरे 28 डकोटा विमान गोलियों की गूंज के साथ श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरे। बड़ी ही वीरता से जवानों ने कबाइलियों को खदेड़ना शुरू कर दिया जिनका साथ कश्मीरी जनता ने दिया। 

16 कबाइलियों को खदेड़ने का काम लंबा चलने वाला था  क्योंकि वहाँ बर्फ गिरने लगी थी।

17  जनमत संग्रह शांति का एक विकल्प था जिस पर बात करने के लिए लार्ड माउंटबेटन नवंबर 1947 में कराची पहुँचकर जिन्ना से बात की कि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह का विरोध क्यों कर रहा है। इस सवाल के जवाब में जिन्ना ने कहा कि ''कश्मीर भारत के अधिकार में होते हुये व शेख अब्दुल्ला की सरकार होते हुये मुसलमानों पर दबाव रहेगा कि पाकिस्तान की बजाय भारत के लिये वोट करें।''

18 दिसंबर माह में पहाड़ बर्फ से ढंक चुके थे, श्रीनगर को खाली करवाया जा चुका था, आधा कश्मीर कश्मीर कबाइलियों के कब्जे में था।

19  पं.नेहरू ने महाराजा हरि सिंह को 1 दिसंबर 1947 को पुनः पत्र लिखा जिसमें सन्दर्भित था कि  ''हम युद्ध से नहीं डरते,मगर हम चाहते हैं कि कश्मीरी जनता को कम से कम नुकसान हो। मुझे लगता है कि समझौते के लिए ये उचित समय है,शीत ऋतु में हमारी कठिनाइयां बढ़ रही है, संपूर्ण क्षेत्र से आक्रमणकारियों को भगा पाना हमारी सेनाओं के लिए मुश्किल है। गर्मियां होती तो उन्हें भगाना आसान नहीं होता, मगर इतना इंतजार करने का मतलब है कि और 4 महीने। तब तक वो कश्मीरी जनता को सताते रहेंगे, ऐसे में समझौते की कोशिश करते हुए छोटी लड़ाई जारी रखी जानी चाहिये"।"

20 जनवरी 1, 1948 की तारीख भारत मामले को UN ले गया। मगर जिस तरह की उम्मीद थी, UN ने वैसी नहीं सुनी। UN ने युद्ध रोकने का काम जरूर किया।

21 नेहरू के UN जाने के फैसले के गलत सही होने की बहस पर एक अधिकारी एम.के. रसगोत्रा जो नेहरू के कार्यकाल में 1982-85 में भारत के विदेश सचिव रहे लिखते हैं कि ''यूनाइटेड नेशन्स जाना तत्तकालीन परिस्थितियों में बिलकुल सही फैसला था, जिसने आगे देश की मदद की। क्योंकि UN में पहली शर्त यही रखी गई कि जनमत संग्रह तभी होगा, जब पाकिस्तान गुलाम कश्मीर से अपनी फौज पीछे हटे। दूसरा आजादी का कोई विकल्प नहीं दिया गया।''

22 सन 1989 के चुनाव के बाद पनपा उग्रवादी घटनाओं की संख्या बढ़ने लगीं जो 100% पाकिस्तान प्रायोजित थीं।

23 कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है कश्मीरियत को बचाते हुये कश्मीर को पाने के लिये वास्तविक दिल का रिश्ता जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिये।

24 विश्व बिरादरी व अन्य वैश्विक संगठनों के माध्यम से भारत को रणनीतिक विदेश नीति पर चल कर पाकिस्तानी प्रोपगंडा को अवाम के सामने लाना होगा।

25 अगस्त 2019 को कश्मीर का राज्य के रूप में दर्ज़ा समाप्त कर 2 केंद्र शासित प्रदेश बना दिये गये हैं 
A जम्मू व कश्मीर
B लद्दाख

26 उग्रवाद का समाधान रोज़गार है।

27 इन चार-पाँच साल से मेरा उनसे संपर्क नहीं हो पाया जिनके बारे में बात की जाये। उनकी असाधारण मेजबानी आज भी मेरे दिल मे जगह बनाये हुये है।

लेख के सन्दर्भ :-
1 इंडिया आफ्टर गांधी
2 विभिन्न समचार पत्रों के लेख
3 पारस्परिक बातचीत @सुबिना बशीर (कॉलेज क्लासमेट)
4 पारस्परिक बातचीत @सिकन्दर बट्ट स्थानीय दुकानदार
5 पारस्परिक बातचीत @राशिदा खान लेक्चरर नँद ऋषि कॉलेज ऑफ एडुकेशन।
6 अन्य स्थानीय लोगों से वार्ता अनुसार

जिगर चूरूवी
@शमशेर भालुखान
9587243963

Thursday, 17 March 2022

धर्म क्या और क्यों




धर्म क्या और क्यों
 कहा जाता है ईश्वर ने पूरी सृष्टि (कायनात) को एक आवाज कुन फाया कुन (हो जा) से प्रारंभ की जिसके साक्ष्य तो नहीं हैं, और हम अब तक यह पता भी नहीं लगा सके की इस संपूर्ण सृष्टि की रचना किसने कितने वर्ष पूर्व की होगी।
विज्ञान प्रकृति नामक (अदृश्य,अलौकिक) शक्ति को मानता है और स्वीकार करता है कि कहीं ना कहीं ऐसी अदृश्य शक्ति जो सर्वशक्तिमान इस सृष्टि में व्याप्त है जो लाखों करोड़ प्रकाश वर्ष में फैले ब्रह्मांड को संचालित कर रही है। इसी सृष्टि का छोटा सा भाग है हमारा सौरमंडल।
अभी कुछ वर्ष पूर्व है वैज्ञानिकों ने बिगबैंग थ्येरी के आधार पर हमारे ब्रह्माण्ड के निर्माण का अनुमान लगाया है, जिसके अनुसार एक परमाणु विस्फोट के द्वारा संपूर्ण सृष्टि की रचना हुई।
यह प्रश्न समक्ष आ ही जाता है कि इस परमाणु व परमाणु में समाहित इलेक्ट्रॉन न्यूट्रॉन प्रोटोन की संरचना या निर्माण कैसे हुआ, इसका रचनाकार कौन है, किसने प्रोटोन (भारवान) को परमाणु की नाभि अर्थात केंद्र में स्थापित किया न्यूट्रॉन को उदासीन (ठहरा हुआ भारहीन ) व इलेक्ट्रॉन को निश्चित पथ पर प्रोटॉन की परिक्रमा हेतु संचालित किया।
मानव है तो प्रश्न है और प्रश्न है तो उनके उत्तर की खोज शुरू हो जाती है।
जैसे-जैसे मानव ने और मानव बुद्धि ने विकास किया वैसे वैसे उस अलौकिक पारलौकिक अदृश्य शक्ति के बारे में जानकारी के लिए खोज की जाने लगी।
 यह खोज दो प्रकार से शुरू हुई 
(1) मान्यता के आधार पर खोज जिसे हम धर्म पंथ या मजहब के नाम पर जानते हैं। (2) साक्ष्य, परिकल्पना,तथ्य व अनुसंधान के आधार पर व्यापक दृष्टिकोण के साथ खोज की गई जिसे हम प्रयोग के आधार पर खोज मानते हैं। 
सृष्टि के निर्माण की खोज व्यक्ति के सिद्धांत दोनों ही आधार पर बनाई गई भिन्न-भिन्न मान्यताओं के लोगों जो भिन्न-भिन्न स्थान विशेष भौगोलिक स्थिति के वासी थे के द्वारा प्रकट किए गये जिन्हें लिपिबद्ध कर लिया गया वो आगे चलकर धर्म ग्रंथ के नाम से जाने जाने लगा।
 इस सृष्टि में आप जानते हैं हमारी पृथ्वी के जैसी करोड़ों पृथ्वी और हमारे सूर्य जैसे करोड़ों सूर्य मौजूद हैं और सभी निश्चित दिशा व वेग से किसी अन्य पिंड का चक्कर लगा रहे हैं।
 हम जिस सूर्य परिवार में रहते हैं उसका नाम सौरमंडल है हमारे सूर्य एवं सौरपरिवार जैसे हज़ारों सूर्य व सौरपरिवार हमारी गैलेक्सी (अलकनन्दा) रहते हैं और ऐसी लाखों करोडों गेलेक्सी हैं और उनमें अरबों सौरपरिवार गतिमान हैं। सवाल यह भी हो सकता है कि हमारे सौर परिवार की रचना कैसे हुई होगी एक विज्ञानिक ऑटो स्मिथ ने इस बारे में विचार दिया है जिसे ऑटो स्मिड की इंटरस्टारर डस्ट हाइपोथिसिस (ऑटो स्मिड की अंतर तारक धूल परिकल्पना) के नाम से जानते हैं। इस परिकल्पना के अनुसार 1000000 करोड़ वर्ष पूर्व है सूर्य में एक महा विस्फोट हुआ इस महा विस्फोट के कारण सूर्य कई भागों में बिखर गया और यह सूर्य के टुकड़े कई करोड़ किलोमीटर में फैल गये। सबसे बड़ा टुकड़ा सूर्य रहा जिसके गुरुत्वाकर्षण के कारण चारों ओर फैले हुए छोटे टुकड़े सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगे और छोटे टुकड़ों से छोटे टुकड़े जो बीच के टुकड़ों की से नजदीक थे वह उन के चक्कर लगाने लगे। इस प्रकार से सूर्य से छोटे टुकड़े ग्रह और उन छोटे टुकड़ों से छोटे टुकड़े उपग्रह कहलाये।
 उपग्रह ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाने लगे हमारी पृथ्वी इन ग्रहों के मध्य में स्थित है जो सूर्य के चारों ओर एक निश्चित दूरी पर अपने अक्ष पर घूमते हुए चक्कर लगाती है ऊपर नीचे के ग्रहों को ही सात जमीन और सात आसमान धार्मिक मान्यता के अनुसार माना गया है ।
(यह विचार मेरा निजी विचार है जो मैंने देखा या सुना उसके आधार पर और जो विज्ञान में पढ़ा उसके आधार पर व्यक्त कर रहा हूं।) 

इस पृथ्वी पर जैसा कि पहले बताया गया है ईश्वर के संबंध में स्थान विशेष भौगोलिक स्थिति के आधार पर ईश्वर की भिन्न-भिन्न परिकल्पना मानव के द्वारा की गई जो पृथ्वी बनने के करोड़ों वर्ष बाद पैदा हुआ।
 मानव से पूर्व बहुत सूक्ष्मजीव जल और थल का निर्माण हो चुका था यहां यह बता देना जरूरी होगा कि पृथ्वी के भी तीन भाग ऊपरी भाग जो ठंडा हो गया मध्य भाग और बीच का भाग ऊपरी भाग को सीमा कहा जाता है मध्य भाग को सियाल कहा जाता है और बीच के भाग को निफे जाता है कोर या मध्य भाग आज भी लावे के रूप में गर्म तपता हुआ भाग है।
करोड़ों वर्ष की पृथ्वी के ऊपर जब मानव ने घूमना फिरना शुरु किया तो मानव की संख्या भी बढ़ी और इसके साथ-साथ क्योंकि मानव समस्त जीवो से श्रेष्ठ और बुद्धि दृष्टि से विकसित हुआ तो उस पर शासन व्यवस्था नाम की कोई व्यवस्था चलाई गई होगी और इस व्यवस्था को चलाने का आधार सिर्फ और सिर्फ धर्म था।
इस प्रकार से धर्म की उत्पत्ति हुई या यह बता देना उचित होगा कि धर्म ग्रंथों की पौराणिक मान्यताओं को प्रयोग व साक्ष्य के आधार पर साबित करके पलट दिया गया है और शायद आज बिरला ही विश्वास करेगा कि पृथ्वी चपटी है यह बेल के सींग पर टिकी है, बैल मछली के ऊपर बैठा है,मछली पानी में है और सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है। 
मेरा मानना है जैसे जैसे विज्ञान का विकास होता जायेगा निस्संदेह  ईश्वर के संबंध में हमारे विचार अधिक स्पष्ट होते जायेंगे।
विज्ञान के अनुसार सृष्टि परमाणु से बनी है पर सवाल उठता है मन के विचार, भावना, सोचने की शक्ति, दुःख का कारण,सुख का अहसास,पेड़-पौधे, सजीव-निर्जीव,पहाड़,समुद्र का निर्माण किसने और कैसे किया होगा जिनमे से कुछ परमाणु से कुछ बिना परमाणु से बने हैं तो हम उन्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर की खोज में लीन हो जाते हैं।
 और इस प्रश्न का उत्तर धर्म में ढूंढने के प्रयास अधिक गतिमान हो जाते हैं।
पूर्व में लगभग 600 ईसवी पूर्व धर्म व विज्ञान की संकल्पना पृथक नहीं थी दोनों एक ही माने जाते थे। इसके पश्चात धर्म और विज्ञान में आपस में द्वंद्व शुरू हुआ और दोनों का अध्ययन अलग अलग किया जाने लगा।
चौहदवीं सदी में धर्म व विज्ञान के सिद्धांतों की खोज ने इसमें अधिक अंतर डाल दिया जिसमें गेलिलियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 
उस समय कई शोधकर्ताओं को यातना देकर इसलिये मौत के घाट उतार दिया गया कि उनकी खोज धार्मिक मान्यताओं के विपरीत थीं। परंतु समय आने पर शोधकर्ताओं की खोज जो साक्ष्य के आधार पर सत्य थीं और धार्मिक मान्यताएं सिर्फ मान्यता,जिन्हें हम सब सहर्ष स्वीकार करते हैं।
हम मान सकते हैं कि जब तक विज्ञान किसी तथ्य को परिभाषित कर सत्य से रूबरू न करवाये धार्मिक मान्यता के आधार पर सृष्टि व ईश्वर संबंधी विचारों का स्थान व्यापक रहेगा ।
इसके साथ ही यह यह प्रश्न अति महत्वपूर्ण रहेगा की आत्मा और शरीर का योग वियोग कैसे होता है वियोग अर्थात मृत्यु के पश्चात आत्मा का क्या होगा जिसका उत्तर संभव है कभी विज्ञान ढूंढ ही लेगा पर तब तक हमें धार्मिक मान्यताओं पर ही आधारित रहना होगा।
 यही कारण है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी 99% व्यक्ति किसी न किसी धर्म को स्वीकार करते हैं उनकी मान्यताओं के आधार पर कार्य करते हैं वैज्ञानिक है या अन्य कोई व्यक्ति।

धर्म के प्रकार 
विश्व मे 2 प्रकार के धर्म पाये जाते हैं एक अनुमान के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में इनकी संख्या 13% के करीब है जो तेजी से बढ़ रही है।
1 नास्तिक - 
यह भी 2 प्रकार के हैं
A . भौतिकवादी - मुक्ति ईश्वर आत्मा परमात्मा सब इसी जीवन मे हैं इसके बाद कुछ नहीं। ईश्वर की सत्ता का विरोध करते हैं।
B . मध्यमार्गी - ईस्वर की सत्ता स्वीकार भी नहीं इंकार भी नहीं । यह लोग न अधिक भौतिकवादी होते हैं न हीं धार्मिक।

2 आस्तिक -
आस्तिक लोग कई धर्मो को मानते हैं जिनका प्रतिशत 85 के लगभग है। यह तीन प्रकार के हैं

A ब्रह्म वादी (ईश्वर की इच्छा से ही मुक्ति) जैसे इस्लाम, सनातन,ईसाई,यहूदी, बहावी आदि
B श्रमवादी (स्वयं के परिश्रम से मुक्ति जैसे बौद्ध व जैन धर्म)
C जनजातीय - हर जनजाति का लोक मान्यता के अनुसार स्वयं का व्यक्तिगत धर्म व भगवान होता है व स्थानीय मान्यता। जैसे अफ्रीका आस्ट्रेलिया व उत्तरी अमेरिका की जनजातियों का धर्म।


Tuesday, 15 March 2022

मदरसा बोर्ड

हसन खान मेवाती

       राजा हसन खाँ मेवाती एक वीर

15 मार्च 1527 हसन खां व 12000 घुडसवारों का 495वाँ शहीद दिवस (खानवा का युद्ध राणा सांगा व बाबर के मध्य )
 
बाबर सू  जा कर  लडो़, लड़्योरोप दई छाती
खानवा को जंग अधूरो बिन हसन खाँ मेवाती।

        बहुत ही कम ऐसे लोग होंगे जिन्हें शायद यह मालूम हो कि 495 वर्ष पहले अलवर ओर मेवात पर ठठ्ठा के खानजादो/मेवो का शासन था।

     नोट- मेव खानजादा एक ही जाति विशेष शब्द है।
मेव आज अलवर,भरतपुर फिरोजाबाद,दिल्ली, पुन्हाना,आगरा,अलीगढ़,चित्तौड़,भीलवाड़ा,मध्यप्रदेश(छोटी-मेवात,गुजरात के क्षेत्र में पाये जाते हैं।
          बादशाह फ़िरोज तुगलक के काल मे भारत के गढ,मलिपुर,चम्पारन,राजपुर इत्यादि इलाकों के बहुत से यदुवन्शी ओर परमार राजा राजपूतो ने इस्लाम-धर्म स्वीकार किया जिनमें ठठ्ठा के यदुवन्शी राजकुमार साँभरपाल ने भी इस्लाम धर्म की दीक्षा ली।
         सांभर या सांभरपाल की तीसरी पीढ़ी में लोधीवंश के अलावत खाँ का जन्म हुआ हसन खाँ मेवाती उनके पुत्र थे।
                हसन खाँ मेवाती ओर इब्राहिम लोदी आपस मे मौसरे भाई थे। 1517 ई. मे जब लोदी वंश के इब्राहिम लोधी को दिल्ली का सिंहासन मिला तो उसने हसन खाँ को अलवर ओर मेवात का इलाका व उतरी मेवात के वे भाग भी लौटा दिये जिनको अहमद खा लोदी ने जीत कर दिल्ली मे मिला लिया था।
              हसन खाँ ने अपने समय मे अलवर ओर मेवात को समृद्ध बनाने में कोई कसर न रख छोड़ी। हसन खाँ बलवान,साहसी ओर कमर्ठ शाशक था। इस से पहले अलवर ओर मेवात किसी एक निर्दिष्ट रियासत के रूप में स्थापित नहीं था। हसन खान ही प्रथम शासक था जिसने यहाँ स्थिर शासन का सूत्रपात किया।

            अलवर के किले का पुराना कोटा जिसे बडगुजरो ने मिट्टी ओर पत्थर से बनवाया था,उसे गिरवा कर उसकी नीव पर चूने के साथ पत्थर की पक्की,कन्गूरेदार दिवारें व बुर्जे बनवाये जो आज तक विद्यमान हैं। इसके अलावा बहुत सी,इमारत सड़कें,बाग मकबरे व सराये भी बनवाईं जिनके ध्वंसावशेष टपूकड़ा, तावडू, रामगढ़, किशनगढ़,
पहाड़ी,कामा,घुसड़वली,गोविन्दगढ़,फ़िरोजपुर, भौंडसी,तिजारा,अलवर,तथा,ढ़ढीकर इत्यादि  इलाकों में मौजूद हैं।
                    हसन खाँ विद्या प्रेमी भी थे। उनके संरक्षण में बहुत से विद्वानों का पालन-पोषण होता रहा। वे शायरी का भी शोक रखते थे, अपने समकालिन कवियों में उस्ताद के नाम से मारूफ थे । सबके अतिरिक्त स्वदेश प्रेम उसमे कूट-कूट कर भरा हुआ था। इस्लाम धर्मवलम्बी होते हुए भी,प्राण व प्रतिष्ठा के लिए स्वधर्मी के साथ युद्ध करने मे कभी नहीं चुके।  
         पानीपत के विख्यात युद्ध मे इब्राहिम लोदी का भाग्य अस्त हो गया। मुगलों की वीरता के आवेग के सम्मुख खानजादों(मेवों) की सीमित सेना नहीं ठहर सकी।  हसन खाँ अपने चुने हुए सरदारों के साथ जंगलों मे भटकते रहे। डेढ़ साल तक बाबर की सेना मेवात के एक सिरे से दूसरे सिरे तक उन्हें खदेड़ती रही। मेवातियों की सहानुभूति और अपने अदम्य साहस के बल पर मुगलो को चैन नहीं लेने दिया।
          इस बीच उनको मेवाड के राणा सांगा का निमन्त्रण मिला जो बिखरे हुए राजपूतों की विशाल सेना इकट्ठी कर बयाना के विशाल मैदान की ओर बाबर से लोहा लेने के लिये आगे बढ़ रहे थे। उधर बाबर ने अपने प्रतिनिधि मुल्ला तुर्क अली और नजफ़बेग के हाथ सुलह की सूचना हसन को भेजी जिसमें लिखा था कि वह उसे मेवात का स्वतंत्र राजा बना देगा यदि एक बार बाबर की अधीनता स्वीकार कर ले। बाबर ने भेंट स्वरूप अशर्फ़ियों के थाल,दास-दासी और नीलम के मूठ की तलवार भी भेजी थी। बाबर ने मित्रता प्रदर्शित करते हुये हसन खां के लड़के को रिहा कर दिया,जिसे पानीपत के युद्ध में बन्दी बनाया था।
          वास्तव मे बाबर को राणा सांगा से उतना भय नहीं था जितना हसन खाँ से जिसका कारण मेवात का दिल्ली के पड़ोस में होना भी था यहाँ राजनीति में पड़ौसी को दुश्मन बना लेना घातक होता है के नियम से बाबर भलीभाँति भिज्ञ था। दिल्ली व आगरा के अतिरिक्त उसका शासन अन्य प्रान्तो मे अत्यंत शिथिल था। फ़लत: परिस्थितियों ने उसे मजबूर कर दिया कि सांगा को हराने से पहले वह हसन खाँ को अपना मित्र बनाये। स्वाभिमानी हसन खाँ मेवाती ने बाबर का निमंत्रण ठुकरा कर स्वदेश प्रेमयों के साथ रहना उचित जाना।
            खानदानी अधिकारों व राणा सांगा की मित्रता के सामने धन-वैभव की क्या बिसात थी। हसन ने अपने पुत्र कि आहुति तक देने का दृढ निश्चय कर लिया। बाबर के निमंत्रण का प्रत्युत्तर दिल्ली पहुँचे उस से पूर्व हसन खां का पुत्र बाबर द्वारा स्वतंत्र किया जा चुका था जिसका वर्णन (बाबर की पुस्तक 'तुजुक' मे भी कई स्थानों पर किया है)। 
                        राणा राणा सांगा को हसन खाँ मेवाती वचन दे चुके थे कि वह उसी वंश की ओर से अताताइयों से युद्ध करेगा जिसमें वह पैदा हुआ। वीरो के लिए प्रणपालन सबसे अमूल्य धन है।
           धर्म,जाति,भाषा व देश कि विभिन्नताएँ उनके उद्देश्यों पर घात नहीं लगा सकती (जाय लाख रहे साख) के आदर्श पर ही वीर मर मिटते हैं। 
     हसन खाँ राणा सांगा से बयाना में सेना सहित जा मिले,जो आगरा से 50 मील कि दूरी पर स्थित है।  28 फ़रवरी 1527 ई. को फ़तेहपुर-सीकरी के उत्तर मे घमासन युद्ध हुआ बाबर कि फौज व मुगल सरदारों की हिम्मत टूट गई। शेख जमाली ओर मुल्ला तुर्क अली की सलाह से उसने अजमेर की तरफ भाग जाना ठीक समझा। यदि हसन खां के आदेशानुसार उसी समय मुगलों का पीछा किया जाता तो सभंवत: मुगल वंश का नाम लेवा भारत मे कोई नहीं रहता और भारत के इतिहास का घटनाक्रम ही बदल जाता।
           लेकिन सांगा की फौजें वापिस अपनी छावनी लौट कर आमोद-प्रमोद में लीन हो गई जिसका मुगल सेना ने लाभ उठाया बाबर को सेना संगठित करने का मौका मिल गया और 2-3 दिन के अन्तर से मेवाड़ के साथ मेवात पर चढ़ाई कर दी नतीजा फ़तेहपुरी के मैदान मे मुग़ल जीत गये। अन्तिम युद्ध के पूर्व राजा हसन खाँ मेवाती को उसके गुरू शय्यद जमाल अहमद बहादुरपुरी ने बाबर से लड़ने के लिए मना कर किया था। सय्यद साहब पर उसका बहुत विश्वास था ओर बचपन से युवा होने तक हसन खां ने कभी उसकी आज्ञा नहीं टाली पर वीरत्व के गर्व/घमण्ड के सामने गुरु की सीख को अनदेखा किया गया।
       हसन अलवर से विदा होते कहकर गया था कि या तो वह मेवात के लिए स्वन्त्रता लायेगा या उसकी लाश शहर में लौटेगी। यही हुआ हसन ओर उसके 12000 सैनिक वीरों की तरह लड़ते हुये खानवा के मैदान में शहीद हो गये।
      जमाल खा फ़तहजंग और हुसैन खाँ जो उसके सबंधी थे ने हसन लाश अलवर लाकर नगर के उतरी पाश्व मे दफ़नाई और तुर्बत पर छतरी बनवा दी जो आज भी हसन खां की छतरी के नाम से विख्यात है।
                      हसन खाँ की मृत्यु के सबन्ध मे इतिहासकारों के भिन्न-भिन्न अनुमान हैं। बमोलवी नजमुल गनी रामपुरी जकाउल्ला देहलवी कर्नल जैम्स टाँड अन्य विद्वानों कि राय में उसकी मृत्यु समरक्षेत्र में बन्दूक के आघात से हुई। हैकेट साहब अपने गजेटियर में उसकी मृत्यु का कारण पारस्परिक वैमनस्य बताते हैं। बाबर ने तुजक में लिखा है कि ललाट पर तीर लगने से उसके प्राण पखेरु उड़ गये। 
       अधिक विश्वासनीय यही बात जंचती है कि आजादी का वह फ़रिश्ता समर-क्षेत्र में ही वीरगति को प्राप्त हुआ।
       सच बात तो यह है कि देश की स्वन्त्रता के लिए मेवाड़ी ओर मेवाती दोनो ही शहीद हो गए।
          देश कि स्वन्त्रता के लिए दोनों की तलवार एक साथ उठी। 
आज भी यह लोकगीत प्रसिद्ध है :-
यह मेवाती वह मेवाड़ी मिल गये दोनों सैनाणी।
हिन्दु-मुस्लिम भाव छोड़ मिल बैठे दो हिन्दुस्ताणी।

           देश की रक्षा के लिए एक झण्डे के नीचे हिन्दु-मुस्लिम एकता का प्रतीक खानवा (बयाना) 495 वाँ यादगार यौम-ए-शहादत सभी वीरो को नमन।
माखुज़।
शमशेर भालुखान
जिगर चूरूवी