Thursday, 17 March 2022

धर्म क्या और क्यों




धर्म क्या और क्यों
 कहा जाता है ईश्वर ने पूरी सृष्टि (कायनात) को एक आवाज कुन फाया कुन (हो जा) से प्रारंभ की जिसके साक्ष्य तो नहीं हैं, और हम अब तक यह पता भी नहीं लगा सके की इस संपूर्ण सृष्टि की रचना किसने कितने वर्ष पूर्व की होगी।
विज्ञान प्रकृति नामक (अदृश्य,अलौकिक) शक्ति को मानता है और स्वीकार करता है कि कहीं ना कहीं ऐसी अदृश्य शक्ति जो सर्वशक्तिमान इस सृष्टि में व्याप्त है जो लाखों करोड़ प्रकाश वर्ष में फैले ब्रह्मांड को संचालित कर रही है। इसी सृष्टि का छोटा सा भाग है हमारा सौरमंडल।
अभी कुछ वर्ष पूर्व है वैज्ञानिकों ने बिगबैंग थ्येरी के आधार पर हमारे ब्रह्माण्ड के निर्माण का अनुमान लगाया है, जिसके अनुसार एक परमाणु विस्फोट के द्वारा संपूर्ण सृष्टि की रचना हुई।
यह प्रश्न समक्ष आ ही जाता है कि इस परमाणु व परमाणु में समाहित इलेक्ट्रॉन न्यूट्रॉन प्रोटोन की संरचना या निर्माण कैसे हुआ, इसका रचनाकार कौन है, किसने प्रोटोन (भारवान) को परमाणु की नाभि अर्थात केंद्र में स्थापित किया न्यूट्रॉन को उदासीन (ठहरा हुआ भारहीन ) व इलेक्ट्रॉन को निश्चित पथ पर प्रोटॉन की परिक्रमा हेतु संचालित किया।
मानव है तो प्रश्न है और प्रश्न है तो उनके उत्तर की खोज शुरू हो जाती है।
जैसे-जैसे मानव ने और मानव बुद्धि ने विकास किया वैसे वैसे उस अलौकिक पारलौकिक अदृश्य शक्ति के बारे में जानकारी के लिए खोज की जाने लगी।
 यह खोज दो प्रकार से शुरू हुई 
(1) मान्यता के आधार पर खोज जिसे हम धर्म पंथ या मजहब के नाम पर जानते हैं। (2) साक्ष्य, परिकल्पना,तथ्य व अनुसंधान के आधार पर व्यापक दृष्टिकोण के साथ खोज की गई जिसे हम प्रयोग के आधार पर खोज मानते हैं। 
सृष्टि के निर्माण की खोज व्यक्ति के सिद्धांत दोनों ही आधार पर बनाई गई भिन्न-भिन्न मान्यताओं के लोगों जो भिन्न-भिन्न स्थान विशेष भौगोलिक स्थिति के वासी थे के द्वारा प्रकट किए गये जिन्हें लिपिबद्ध कर लिया गया वो आगे चलकर धर्म ग्रंथ के नाम से जाने जाने लगा।
 इस सृष्टि में आप जानते हैं हमारी पृथ्वी के जैसी करोड़ों पृथ्वी और हमारे सूर्य जैसे करोड़ों सूर्य मौजूद हैं और सभी निश्चित दिशा व वेग से किसी अन्य पिंड का चक्कर लगा रहे हैं।
 हम जिस सूर्य परिवार में रहते हैं उसका नाम सौरमंडल है हमारे सूर्य एवं सौरपरिवार जैसे हज़ारों सूर्य व सौरपरिवार हमारी गैलेक्सी (अलकनन्दा) रहते हैं और ऐसी लाखों करोडों गेलेक्सी हैं और उनमें अरबों सौरपरिवार गतिमान हैं। सवाल यह भी हो सकता है कि हमारे सौर परिवार की रचना कैसे हुई होगी एक विज्ञानिक ऑटो स्मिथ ने इस बारे में विचार दिया है जिसे ऑटो स्मिड की इंटरस्टारर डस्ट हाइपोथिसिस (ऑटो स्मिड की अंतर तारक धूल परिकल्पना) के नाम से जानते हैं। इस परिकल्पना के अनुसार 1000000 करोड़ वर्ष पूर्व है सूर्य में एक महा विस्फोट हुआ इस महा विस्फोट के कारण सूर्य कई भागों में बिखर गया और यह सूर्य के टुकड़े कई करोड़ किलोमीटर में फैल गये। सबसे बड़ा टुकड़ा सूर्य रहा जिसके गुरुत्वाकर्षण के कारण चारों ओर फैले हुए छोटे टुकड़े सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने लगे और छोटे टुकड़ों से छोटे टुकड़े जो बीच के टुकड़ों की से नजदीक थे वह उन के चक्कर लगाने लगे। इस प्रकार से सूर्य से छोटे टुकड़े ग्रह और उन छोटे टुकड़ों से छोटे टुकड़े उपग्रह कहलाये।
 उपग्रह ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाने लगे हमारी पृथ्वी इन ग्रहों के मध्य में स्थित है जो सूर्य के चारों ओर एक निश्चित दूरी पर अपने अक्ष पर घूमते हुए चक्कर लगाती है ऊपर नीचे के ग्रहों को ही सात जमीन और सात आसमान धार्मिक मान्यता के अनुसार माना गया है ।
(यह विचार मेरा निजी विचार है जो मैंने देखा या सुना उसके आधार पर और जो विज्ञान में पढ़ा उसके आधार पर व्यक्त कर रहा हूं।) 

इस पृथ्वी पर जैसा कि पहले बताया गया है ईश्वर के संबंध में स्थान विशेष भौगोलिक स्थिति के आधार पर ईश्वर की भिन्न-भिन्न परिकल्पना मानव के द्वारा की गई जो पृथ्वी बनने के करोड़ों वर्ष बाद पैदा हुआ।
 मानव से पूर्व बहुत सूक्ष्मजीव जल और थल का निर्माण हो चुका था यहां यह बता देना जरूरी होगा कि पृथ्वी के भी तीन भाग ऊपरी भाग जो ठंडा हो गया मध्य भाग और बीच का भाग ऊपरी भाग को सीमा कहा जाता है मध्य भाग को सियाल कहा जाता है और बीच के भाग को निफे जाता है कोर या मध्य भाग आज भी लावे के रूप में गर्म तपता हुआ भाग है।
करोड़ों वर्ष की पृथ्वी के ऊपर जब मानव ने घूमना फिरना शुरु किया तो मानव की संख्या भी बढ़ी और इसके साथ-साथ क्योंकि मानव समस्त जीवो से श्रेष्ठ और बुद्धि दृष्टि से विकसित हुआ तो उस पर शासन व्यवस्था नाम की कोई व्यवस्था चलाई गई होगी और इस व्यवस्था को चलाने का आधार सिर्फ और सिर्फ धर्म था।
इस प्रकार से धर्म की उत्पत्ति हुई या यह बता देना उचित होगा कि धर्म ग्रंथों की पौराणिक मान्यताओं को प्रयोग व साक्ष्य के आधार पर साबित करके पलट दिया गया है और शायद आज बिरला ही विश्वास करेगा कि पृथ्वी चपटी है यह बेल के सींग पर टिकी है, बैल मछली के ऊपर बैठा है,मछली पानी में है और सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है। 
मेरा मानना है जैसे जैसे विज्ञान का विकास होता जायेगा निस्संदेह  ईश्वर के संबंध में हमारे विचार अधिक स्पष्ट होते जायेंगे।
विज्ञान के अनुसार सृष्टि परमाणु से बनी है पर सवाल उठता है मन के विचार, भावना, सोचने की शक्ति, दुःख का कारण,सुख का अहसास,पेड़-पौधे, सजीव-निर्जीव,पहाड़,समुद्र का निर्माण किसने और कैसे किया होगा जिनमे से कुछ परमाणु से कुछ बिना परमाणु से बने हैं तो हम उन्हें सर्वशक्तिमान ईश्वर की खोज में लीन हो जाते हैं।
 और इस प्रश्न का उत्तर धर्म में ढूंढने के प्रयास अधिक गतिमान हो जाते हैं।
पूर्व में लगभग 600 ईसवी पूर्व धर्म व विज्ञान की संकल्पना पृथक नहीं थी दोनों एक ही माने जाते थे। इसके पश्चात धर्म और विज्ञान में आपस में द्वंद्व शुरू हुआ और दोनों का अध्ययन अलग अलग किया जाने लगा।
चौहदवीं सदी में धर्म व विज्ञान के सिद्धांतों की खोज ने इसमें अधिक अंतर डाल दिया जिसमें गेलिलियो की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 
उस समय कई शोधकर्ताओं को यातना देकर इसलिये मौत के घाट उतार दिया गया कि उनकी खोज धार्मिक मान्यताओं के विपरीत थीं। परंतु समय आने पर शोधकर्ताओं की खोज जो साक्ष्य के आधार पर सत्य थीं और धार्मिक मान्यताएं सिर्फ मान्यता,जिन्हें हम सब सहर्ष स्वीकार करते हैं।
हम मान सकते हैं कि जब तक विज्ञान किसी तथ्य को परिभाषित कर सत्य से रूबरू न करवाये धार्मिक मान्यता के आधार पर सृष्टि व ईश्वर संबंधी विचारों का स्थान व्यापक रहेगा ।
इसके साथ ही यह यह प्रश्न अति महत्वपूर्ण रहेगा की आत्मा और शरीर का योग वियोग कैसे होता है वियोग अर्थात मृत्यु के पश्चात आत्मा का क्या होगा जिसका उत्तर संभव है कभी विज्ञान ढूंढ ही लेगा पर तब तक हमें धार्मिक मान्यताओं पर ही आधारित रहना होगा।
 यही कारण है कि आज के इस वैज्ञानिक युग में भी 99% व्यक्ति किसी न किसी धर्म को स्वीकार करते हैं उनकी मान्यताओं के आधार पर कार्य करते हैं वैज्ञानिक है या अन्य कोई व्यक्ति।

धर्म के प्रकार 
विश्व मे 2 प्रकार के धर्म पाये जाते हैं एक अनुमान के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में इनकी संख्या 13% के करीब है जो तेजी से बढ़ रही है।
1 नास्तिक - 
यह भी 2 प्रकार के हैं
A . भौतिकवादी - मुक्ति ईश्वर आत्मा परमात्मा सब इसी जीवन मे हैं इसके बाद कुछ नहीं। ईश्वर की सत्ता का विरोध करते हैं।
B . मध्यमार्गी - ईस्वर की सत्ता स्वीकार भी नहीं इंकार भी नहीं । यह लोग न अधिक भौतिकवादी होते हैं न हीं धार्मिक।

2 आस्तिक -
आस्तिक लोग कई धर्मो को मानते हैं जिनका प्रतिशत 85 के लगभग है। यह तीन प्रकार के हैं

A ब्रह्म वादी (ईश्वर की इच्छा से ही मुक्ति) जैसे इस्लाम, सनातन,ईसाई,यहूदी, बहावी आदि
B श्रमवादी (स्वयं के परिश्रम से मुक्ति जैसे बौद्ध व जैन धर्म)
C जनजातीय - हर जनजाति का लोक मान्यता के अनुसार स्वयं का व्यक्तिगत धर्म व भगवान होता है व स्थानीय मान्यता। जैसे अफ्रीका आस्ट्रेलिया व उत्तरी अमेरिका की जनजातियों का धर्म।


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