Thursday, 4 May 2023

ज्योतिबा फुले - सावित्री बाई फुले

ज्योतिबा फुले एवं सावित्री बाई फुले जीवन परिचय एवं इतिहास 
                         महात्मा ज्योतिबा फुले
              11अप्रैल 1827 से 19 नवंबर 1890


सन 1870, सावित्री बाई फूले और फ़ातिमा शेख़ 
मिलकर महाराष्ट्र के इलाक़े में लड़कियों का पहला स्कूल खोला था और इसका बहुत सकारात्मक असर इस इलाक़े में दिखा था बड़ी संख्या में लड़कियाँ पढ़ने स्कूल जाने लगीं ।

"ज्योतिबा फुले असली महात्मा थे।"
महात्मा गांधी
25 नवम्बर 1949 में दीनबन्धु समाचार पत्र के महात्मा फुले विशेषांक में प्रकाशित हुए थे।

                          ज्योतिबा फुले 

महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले भारतीय समाज सुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे।
इन्हें महात्मा फुले या जोतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है। 
सितम्बर 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया।
महाराष्ट्र में सर्वप्रथम अछूतोद्धार और महिला शिक्षा का काम आरंभ किया।
समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।


महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले

पूरा नाम - ज्योतिराव गोविंदराव फुले
अन्य नाम - महात्मा फुले 
जन्म - 11 अप्रॅल, 1827
जन्म स्थान - खानवाडी पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु - 28 नवम्बर, 1890 पुणे महाराष्ट्र
(वृहस्पतिवार 27 नवम्बर 1890 को महात्मा ज्योतिबा जी का गिरा हुआ स्वास्थ्य उनके महाप्रयाण का संकेत देने लगा। ज्योतिबा फुले जी ने लगभग शाम 5 बजे अपने परिवार के लोगों को अपनी चारपाई के पास बुलाया। महातम ज्योतिबा फुले जी ने सभी को स्वार्थहीन तथा सात्विक ढंग से अपने कर्तव्यों के पालन का उपदेश दिया। रात्रि 2 बजाकर 20 मिनिट पर अंतिम विदा ली।
पिता- गोविंदराव 
माता - विमला बाई (ज्योतिबा के जन्म के एक वर्ष बाद 1828 में देहांत हो गया इस कारण लालन पालन एक बाई सगुन बाई ने किया इनका परिवार सतारा में फूलों का काम (माली) करता था इस कारण ज्योतिबा को फूले उपनाम मिला) 
              ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले

पत्नी - सावित्री बाई फुले 
(विवाह के समय ज्योतिबा की आयु 13 वर्ष सावित्री बाई की आयु 9 वर्ष)
संतान - यशवंत फुले
कर्म भूमि - महाराष्ट्र 
भाषा - मराठी
संस्था - सत्य शोधक समाज
विशेष - फुले ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया जिसे मुंबई हाईकोर्ट से मान्यता मिली।
विवाह - 1840 में सावित्री बाई से हुआ था।
कुल आयु 63 वर्ष 7 माह 17 दिन
व्यवसाय - एक अंग्रेजी मिशनरी स्कूल में अध्यापन का कार्य किया।
रुचि - पढ़ना -पढ़ाना
प्रशंसक - लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के
शिष्य - भीमराव अम्बेडकर, सावित्रि बाई फुले और फातिमा शेख

                   ज्योतिबा फुले का स्मारक

उपाधियां - 
1 ब्रिटिश सरकार द्वारा 1883 में स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक"  की उपाधि प्रदान की।
2 1888 में मुंबई में एक सभा में महात्मा की उपाधि प्रदान की।

शिक्षा 
मराठी माध्यम से पढ़ाई शुरू की पर अध्ययन कार्य बीच में ही छोड़ दी। बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी माध्यम से 7 वीं कक्षा उत्तीर्ण की।

लेखन -
अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं-
1 गुलामगिरी  सन 1873
(इस पुस्तक गुलामगिरी का प्रकाशन भी हुआ। सत्य शोधक समाज की स्थापना और इस पुस्तक का प्रकाशन दोनों ही घटनाओं ने लोगों को बहुत प्रभावित किया। इस पुस्तक में पुस्तक बहुत कम पृष्ठ है परंतु इसमें बताये गये विचारों के आधार पर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में बहुत सारे आंदोलन चले। उत्तर प्रदेश में चल रही दलित अस्मिता की लड़ाई के बहुत सारे सूत्र गुलामगिरी में ढूंढ़े जा सकते हैं।)
2 तृतीय रत्न
3 छत्रपति शिवाजी
4 राजा भोसला का पखड़ा
5 किसान का कोड़ा
6 अछूतों की कैफियत
7 सीक्रेट राइटिंग्स ऑफ ज्योतिराव फुले
8 Slavery 

कार्य -
मूल उद्देश्य 
1 स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना, 
2 बाल विवाह का विरोध, 
3 विधवा विवाह का समर्थन 
4 कुप्रथा, अंधश्रद्धा मुक्त समाज की स्थापना
 करना चाहते थे।
5 जनता को अधिकारों के प्रति जागरूक करना
 6 स्त्री-पुरुष भेदभाव मिटाना
7 महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया।
8 बिना ब्राह्मण के विवाह (मुंबई हाई कोर्ट से मान्यता)
9 अनपढ़ महिला साक्षरता की कक्षाएं  (रात्रि स्कूल) की शुरूआत।
10 पति के गुजर जाने पर विधवा हुई महिलाओं का मुंडन कर दिया जाता था। इस अपमानजनक प्रथा के खिलाफ उन्होंने नाईयों को प्रेरित किया। एक ऐसे आश्रम की स्थापना की, जिसमें सभी जातियों की तिरस्कृत विधवाएं सम्मान के साथ रह सकें। उन नवजात शिशु कन्याओं के लिए भी एक घर बनाया, जो अवैध संबंधों से पैदा हुई थीं और जिनका सड़क या घूरे पर फेंक दिया जाना निश्चित था।

कार्य क्षेत्र :-
बा ने बालिकाओं के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पुणे में 1848 में शुरू की। उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले को स्वयं शिक्षा प्रदान कर उन्हें भारत की प्रथम महिला शिक्षिका बनाया। इस कार्य में उनको बहुत विरोध का सामना करना पड़ा।
पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर 1854 में एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए। उन्होंने कुल 18 स्कूल शुरू किए।

अछूतोद्धार के कारण जाति से बहिष्कृत :-
अछूतोद्धार के लिए ज्योतिबा ने अछूत बच्चों को अपने घर पर पाला और अपने घर की पानी की टंकी उनके लिए खोल दी। परिणामस्वरूप उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। कुछ समय तक एक मिशन स्कूल में अध्यापक का काम मिलने से ज्योतिबा का परिचय पश्चिम के विचारों से भी हुआ, पर ईसाई धर्म ने उन्हें कभी आकृष्ट नहीं किया। 
सन 1853 में पति-पत्नी ने अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए तैयार किया था, पर वे ज्योतिबा की समाज सेवा की भावना से उनके शिष्य बन गए।
पिछड़े लोगो के लिए काम करते हुए उन्होंने ही उनके लिए दलित शब्द का प्रयोग किया।
फुले दंपति घर से निकाले जाने के बाद उस्मान शेख और फातिमा शेख भाई बहन के घर में रहे और यहीं से 1848 में प्रथम स्कूल शुरू किया।

फुले ऐसे समाजशास्त्री और मानवतावादी थे जिन्होंने ऐसे साहसिक विचार प्रस्तुत किए। फुले ऐसी सामाजिक व्यवस्था के आमूलचूल परिवर्तन के पक्षधर थे, जिसमें शोषण करने के लिए कुछ लोगों को जानबूझकर दूसरों पर निर्भर, अनपढ़, अज्ञानी और गरीब बना दिया जाता है। उनके अनुसार व्यापक सामाजिक -आर्थिyक परिवर्तन के लिए अंधविश्वास उन्मूलन एक हिस्सा है। परामर्श, शिक्षा और रहने के वैकल्पिक तरीकों के साथ-साथ शोषण के आर्थिक ढांचे को समाप्त करना भी बेहद जरूरी है। 28नवंबर, 1890 को उनका देहांत हो गया तो सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज की बागडोर संभाली।

सत्य शोधक समाज की स्थापना :-
अध्यक्ष - ज्योतिबा फुले
महिला अध्यक्ष - सावित्री बाई फुले
निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने सत्यशोधक समाज' 1873 मे स्थापना की।
ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई उच्च न्यायालय से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। ज्योतिबा की मृत्यु के बाद सावित्रीबाई ने संस्था का भार संभाला।

कुछ रोचक तथ्य:-
1 दलितों के लिए लड़ने की प्रेरणा :-
ज्योतिबा फुले को दलितों के लिए काम करने की प्रेरणा उनके एक ब्रह्मण दोस्त की शादी में 1948 में मिली। 
वहां पर उन्हें हिंदू धर्म के अनुसार सबसे निचले वर्ण शुद्र में होने के कारण उनका अपमान किया गया जिसके बाद उन्होंने दलितों के लिए काम करने की ठानी और इस सामाजिक बुराई और भेदभाव को दूर करने का निर्णय लिया। 
2  विधवाओं के लिए आश्रम के साथ नवजात शिशुओं के लिए आश्रम और कन्या भ्रूण हत्या पर रोक के प्रयास।
3 जिस प्रकार बाल काटना नाई का धर्म नहीं, धंधा है। चमड़े की सिलाई करना मोची का धर्म नहीं, धंधा है। उसी प्रकार पूजा-पाठ करना ब्राह्मण का धर्म नहीं धंधा है।

आध्यात्मिक विचार :- 
मूर्ति पूजा का विरोध किया और जाति व्यवस्था की निंदा की। सत्य शोधक समाज ने तर्कसंगत सोच पर बल देते हुए शैक्षिक और धार्मिक नेताओं के रूप में ब्राह्मणों एवं पुरोहितों की जरूरत को खारिज कर दिया। उनका दृढ़ विश्वास था कि अगर आप स्वतंत्रता, समानता, भाईचारे, मानवीय गरिमा, आर्थिक न्याय जैसे मूल्यों पर आधारित नई सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं तो सड़ी-गली, पुरानी, असमान व शोषणकारी सामाजिक व्यवस्था और मूल्यों को उखाड़ फेंकना होगा।
यह अच्छी तरह से जानने के बाद उन्होंने धार्मिक पुस्तकों और भगवान के नाम पर परोसे जाने वाले अंधविश्वास पर हमला किया। उन्होंने महिलाओं और शूद्रों के मन में बैठी मिथ्या धारणाओं को समाप्त करने का प्रयास किया। 
फुले ने महिलाओं, शूद्रों व समाज के अगड़े तबकों में अंधविश्वास को जन्म देने वाली आर्थिक और सामाजिक बाधाओं को हटाने के लिए अभियान चलाए।
फुले ऐसे समाजशास्त्री और मानवतावादी थे जिन्होंने ऐसे साहसिक विचार प्रस्तुत किए। फुले ऐसी सामाजिक व्यवस्था के आमूलचूल परिवर्तन के पक्षधर थे, जिसमें शोषण करने के लिए कुछ लोगों को जानबूझकर दूसरों पर निर्भर, अनपढ़, अज्ञानी और गरीब बना दिया जाता है। उनके अनुसार व्यापक सामाजिक -आर्थिyक परिवर्तन के लिए अंधविश्वास उन्मूलन एक हिस्सा है। परामर्श, शिक्षा और रहने के वैकल्पिक तरीकों के साथ-साथ शोषण के आर्थिक ढांचे को समाप्त करना भी बेहद जरूरी है। 28नवंबर, 1890 को उनका देहांत हो गया तो सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज की बागडोर संभाली।

                        सावित्री बाई फुले 

                सावित्री बाई फुले का स्मारक

जन्म - 3 जनवरी 1831, नायगाँव
मृत्यु - 10 मार्च 1897, पुणे (प्लेग के कारण)
माता- लक्ष्मीबाई
पिता: खन्दोजी नेवसे पाटिल
शिक्षा - अनपढ़ पति ज्योतिबा फुले ने तीसरी कक्षा तक पढ़ाया।
सावित्री बाई का सपना था कि वह पढ़े लिखें, लेकिन उस समय दलितों के साथ काफी भेदभाव किया जाता था। सावित्री बाई ने एक दिन अंग्रेजी की एक किताब हाथ मे ले रखी थी तभी उनके पिता ने देख लिया और किताब को लेकर फेंक दिया। इसके बाद उनके पिता ने कहा कि शिक्षा सिर्फ उच्च जाति के पुरुष ही ग्रहण कर सकते हैं। दलित और महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने की इजजात नहीं है, क्योंकि उनका पढ़ना पाप है। इसके बाद सावित्रीबाई फूले अपनी किताब वापस लेकर आ गईं। उन्होंन प्रण लिया कि वह जरूर शिक्षा ग्रहण करेंगी चाहे कुछ भी हो जाए।
सावित्रीबाई फुले ने सभी बाधाओं के बाद भी पढ़ाई करना शुरू कर दीं। बताया जाता है कि जब वह पढ़ने के लिए स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर से मारते थे। यही नहीं लोग उनके ऊपर कूड़ा और कीचड़ भी फेंकते थे। 
साहित्य - मराठी कवियत्री (आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।)

सामाजिक मुश्किलें -
वे स्कूल जाती थीं, तो ब्राह्मण लोग उनपर पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 191 साल पहले बालिकाओं के लिये स्कूल खोलना पाप माना जाता था।
सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती तो एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती।
5 सितंबर 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए विद्यालय की स्थापना की। 
एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। 
तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित किया। एक महिला के लिये सन उस समय बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा इसकी कल्पना शायद आज नहीं की जा सकती। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ाया भी।
1897 में प्लेग महामारी में एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।
लड़कियों के लिए एक दो नहीं बल्कि 18 स्कूलों का निर्माण कराया। 

                            फातिमा शेख

फ़ातिमा शेख़ :-
फातिमा शेख सामाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थी  शिक्षक थीं।
जन्म - 9 जनवरी 1831पुणे, महाराष्ट्र 
कार्य - बालिका शिक्षा ,सावित्री बाई फुले के साथ
(आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिका)
भाई -  उस्मान शेख  (जिनके घर में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने निवास किया था जब फुले के पिता ने उनके परिवार को घर से निकाल दिया।)
 
फ़ातिमा शेख़ ने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं और उत्पीड़ित जातियों के लोगों को शिक्षा देना शुरू किया। उनके भाई उस्मान शेख ने फुले दम्पत्ती को अपने घर के खाली परिसर में स्कूल चलाने पर सहमति व्यक्त की। 1848 में उस्मान शेख और उसकी बहन फातिमा शेख के घर में एक स्कूल खोला गया था।
फ़ातिमा और सावित्रीबाई फुले ने मिलकर समाज ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए काम किया। यह फातिमा शेख थी जिन्होंने हर संभव तरीके से सावित्रीबाई का दृढ़ता से समर्थन किया।
फातिमा शेख ने सावित्रीबाई फुले के साथ उसी स्कूल में पढ़ना शुरू किया। सावित्रीबाई और फातिमा सागुनाबाई के साथ थे।
उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 11 अप्रैल के दिन सार्वजनिक अवकाश की घोषणा 10 अप्रैल 2023 के दिन की।


जिगर चुरुवी
शमशेर भालू खान
9587243963

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