नाम - कुंभाराम आर्य (पिता के देहावसान के बाद चौधरी कुंभाराम आर्य)
जन्म - 10 मई 1914 खेरा छोटी पटियाला
दादा का नाम : चौधरी नन्दराम सुंडा
भैराराम के दो पुत्र हुए जो ईश्वर को प्यारे हो गए थे। उसी तीसरे लड़के का नाम कुरड़ा रखा। एक बड़ी बहन का नाम महकां था जो करावन फतेहाबाद के पालाराम श्योराण के यहां ब्याही गई थी।
मृत्यु - 26 अक्टूबर 1995
पिता का नाम - भेरा राम जाति जाट गोत्र सुंडा (पैतृक निवास कूदन जिला सीकर) परिवार पहले श्योदनपुरा चूरू बसा बाद में फेफाना तहसील नोहर जिला हनुमानगढ़ में बस गया। भैराराम जी की मृत्यु अल्पायु में 1919 में हो गई।
माता का नाम - जीवनी देवी
जन्म स्थान -खेरा छोटी (तत्कालीन पटियाला रियासत) पंजाब
विवाह - 1928 भूरी देवी सिंवर गोत्र किडावन फतेहाबाद हरियाणा
पुत्र : 1. विजयपाल आर्य पत्नी श्रीमती सुचार आर्य, 2. अजित कुमार आर्य पत्नी शालिनी आर्य
पुत्रियाँ : 1.श्रीमती अभय आर्य पत्नी श्री राधा कृष्ण चौधरी, 2.श्रीमती विजय चौधरी पत्नी श्री मुखराम, 3.शारदा पत्नी हरफूल सिंह, 4.इंदू वर्मा पत्नी मोहन वर्मा, 5.मंजू (अविवाहित
शिक्षा - फेफाना प्रारंभिक शिक्षा (मेट्रिक) 1920 में प्रथम कक्षा में प्रवेश के समय नाम कुरडा से कुंभाराम अध्यापकों ने रखा। 1924 में चौथी कक्षा में पूरे बीकानेर राज्य में प्रथम स्थान आया। रियासत से आगे पढ़ाई के लिए 2 रुपए महीना वजीफा मिला पर गरीबी के कारण आगे पढ़ाई नहीं कर पाए।
स्थायी पता: -
आर्य निवास, दुर्गा पुरा, जयपुर, राजस्थान।
व्यवसाय -
1 खेती
2 1928 में वन विभाग में नौकरी शुरू की आयु 14 वर्ष 1930 में बरखास्त। 1930 में बीकानेर स्टेट ने नाबालिग को नौकरी पर ना रखने के आदेश किए जिसके कारण 1931 को उन्हें नौकरी से हटा दिया गया।
3. 7 जनवरी 1932 को क्लार्क के रूप में पुलिस सेवा में शामिल हुए और इंस्पेक्टर पद तक प्रमोशन 1944 में हुआ। पुलिस से स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन के कारण 13 मार्च 1946 को उन पर दुराचार और अपमानजनक व्यवहार का आरोप लगाते हुए उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया।
सामांजिक कार्य -
1. स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित लोग ग्रामीण क्षेत्रों में आर्य समाज की गतिविधियों का प्रसार कर रहे थे। समाज में व्याप्त ब्राह्मणवादी वर्चस्व और छुआछूत के कारण कुंभाराम भी कुंभाराम आर्य बन गए।
कुंभाराम राजनीति में केसे आए :-
राजनीतिक जीवन -
1.1930 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में शामिल हुए जिसके कारण वन विभाग की नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
2. पुलिस विभाग में नौकरी के समय मुक्ता प्रसाद वकील और रघुवर दयाल गोयल से संपर्क हुआ उनकी मदद से एक राजनीतिक संगठन प्रजा परिषद का गठन किया।
3.गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। सेलिए पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया और राजनीति में सक्रिय हो गए।
3. 1945 में अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद अधिवेशन में भाग लिया।
4. बीकानेर रियासत के किसानों को जागीरदारों के खिलाफ एक किया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया 1946 में रिहा हुए। यहां किसान भूमि के किरायेदार थे और उनकी स्थिति जागीरदारों, जमींदारों और बिशवेदरों आदि कहे जाने वाले जमींदारों के शोषण के कारण दयनीय थी। काश्तकार का उसके द्वारा खेती की गई भूमि पर कोई अधिकार नहीं था। काश्तकार की जमीन आंदोलन की मांग के दबाव के फलस्वरूप सरकार ने राजस्थान काश्तकार संरक्षण अध्यादेश, 1949 पारित किया। राजस्थान भूमि सुधार और जागीरों की बहाली अधिनियम, 1952 राजस्थान में भूमि सुधारों के कानूनी इतिहास में मील के पत्थर बने। राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 लागू हुआ। उन्होंने किसानों के पक्ष में पेड़ों की कटाई के नियमों में भी संशोधन किया। अपनी जमीन से पेड काटने हेतु किसान को अपने स्वयं के उपयोग के लिए अपनी स्वामित्व वाली भूमि से पेड़ काटने की अनुमति देने के लिए नियमों में सरकार ने संशोधन किया।
राजस्थान में पहली सरकार1949 में श्री हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में गठित हुई। 1951 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में नई सरकार बनी। इसमें चौधरी कुंभाराम आर्य को गृह मंत्री बनाया गया था। बाद में 1954 में मोहनलाल सुखाडिया सरकार में और 1964 में भी वे दो बार स्वास्थ्य मंत्री रहे। उन्होंने पंचायत राज संघ का गठन किया, जिसके वे 1957-1958 तक अध्यक्ष रहे। वे राजस्थान में पंचायत राज के संस्थापक सदस्य हैं। राजस्थान के पंचायत राज के नियम देश में आदर्श माने जाते हैं। वे 1960-1964 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। 1966 में उन्होंने कांग्रेस सरकार से इस्तीफा दे दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी "जनता पार्टी" बनाई। 1968 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए और 1968-74 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वह लोकदल पार्टी से सीकर (1980-84) से चुने गए संसद सदस्य थे।
चौधरी कुंभाराम आर्य ने 1974 में किसानों के हित में किसान यूनियन का गठन किया। उनका मानना था कि ग्रामीण विकास की सफलता की कुंजी पंचायती राज और सहकारिता आंदोलन में है। वे राजस्थान में सहकारिता आन्दोलन के संस्थापक थे। वह राजस्थान एपेक्स सहकारी बैंक के अध्यक्ष थे। वह राजस्थान मार्केटिंग फेडरेशन "राजफेड" के अध्यक्ष थे। वे राजस्थान सहकारी संघ के अध्यक्ष थे। राजस्थान में सहकारिता आन्दोलन में उनकी भूमिका अद्वितीय थी।
1 अखिल भारतीय देसी लोक परिषद पार्टी
2 राष्ट्रीय कांग्रेस,
3 जनता पार्टी 1967
4 भारतीय क्रांतिदल,
5 भारतीय लोकदल और
6 जनता पार्टी
7 जनता दल एस (1980) सांसद सीकर से
विभिन्न पार्टियों से लगभग 50 वर्षों तक सेवा की।
पद :-
1 मंत्री बीकानेर राज्य, 1948,
2 मंत्री राजस्थान सरकार स्वास्थ्य, पुलिस, खनिज और उद्योग
3 मंत्री 1951, स्वास्थ्य और स्थानीय स्वशासन
4 मंत्री 1954-55 और राजस्व मंत्री,
5 1964-67 राजस्थान सरकार,
6 संस्थापक राजस्थान पंचायत राज संघ 1957-58
7 उपाध्यक्ष अखिल भारतीय पंचायत परिषद l957-58,
8 सदस्य, (i) राजस्थान विधानसभा, 1952-57, 1964-66, (ii) राज्यसभा, 1960-64 और फिर, 1969-74
9 सन 1966 में उन्होंने कांग्रेस सरकार से इस्तीफा दे दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी जनता पार्टी बनाई। 1968 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए और 1968-74 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वह लोकदल पार्टी से सीकर (1980-84) से संसद सदस्य रहे।
10 आर्य ने 1974 में किसानों के हित में किसान यूनियन का गठन किया और राजस्थान में सहकारिता आन्दोलन के संस्थापक थे। राजस्थान एपेक्स सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने। वह राजस्थान मार्केटिंग फेडरेशन "राजफेड" के अध्यक्ष बने। राजस्थान सहकारी संघ के अध्यक्ष बने। राजस्थान में सहकारिता आन्दोलन में उनकी भूमिका अद्वितीय रही।
आर्य समाज विचारक
चौधरी कुंभाराम आर्य एक महान समाज सुधारक और क्रांतिकारी विचारक थे। उनकी विचारधारा परंपराओं पर आधारित नहीं थी। और आर्य समाज के प्रबल समर्थक थे । कुंभाराम आर्य जीवन भर समाज से सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने अस्पृश्यता का डटकर विरोध किया दलित को खाना बनाने हेतु व ड्राइवर राजपूत को नियुक्त किया। इसी राजपूत ड्राइवर के साथ मुस्लिम लड़की को बहन के रूप में अपनाने के बाद शादी कर दी।
लेखन :-
1 किसान यूनियन क्यों
2 वर्ग चेतना
3 हिंदी पत्रिका किसान (1978)
दो पुस्तकें लिखीं।
शिक्षा के क्षेत्र में कार्य :-
उन्होंने बीकानेर क्षेत्र में लड़कियों के लिए कई स्कूल और छात्रावास शुरू किए।
विदेश यात्रा: जर्मनी, रूस और ब्रिटेन
प्रज परिषद का प्रचार प्रसार और जेल यात्रा
प्रजापरिषद का प्रचार प्रसार करने के एवज में आर्य को सरकार ने जेल में डाल दिया। कुछ समय बाद जेल से मुक्त होने पर उनके हाथों में परिषद की कमान आ गई।सरकार से दो-दो हाथ करने का मन बना लिया। आपने गांव-गांव ढाणी-ढाणी जाकर अलख जगाने का बीड़ा उठाया। अलख जन के लिए सर्वप्रथम नोहर तहसील के तलाना गांव में बुला लिया गया। सैकड़ों किसान इस फॉर्म में आए। कुंभाराम का साथ देने की सौगंध बे। तत्पश्चात लोहा चूरू में सभा की। लोहा गांव में सामंतों के डर से कुछ लोग मिलाएँ। सभा मंच से सामंतवाद के खिलाफ क्रांतिकारी गाने गाए।
देश बहिष्कार (देश निकाला)
कुंभाराम आर्य को बीकानेर स्टेट ने राजद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिया, फिर देश बहिष्कार दे दिया। इस दौरान कुंभाराम आर्य लुहारू हरियाणा के आर्य मंदिर में रहें। बीकानेर नरेश के आग्रह पर लुहारु नवाब ने आर्य को गिरफ्तार कर लिया पर जनता के दबाव से रिहा करना पड़ा।आर्य मंदिर से ही किसान आंदोलन को गति प्रदान की। आर्य अपना मजबूत संघ बनाने में सफल रहे। समय-समय पर जाट बोर्डिंग झुंझुनूं में आने वाले किसानों के लिए अभियोग की कमी और सामंत शाही के खिलाफ पुर जोर तरीके से आह्वान करते रहे।शेखावाटी के किसानों के समूहों में भी आर्य के प्रति गहरी श्रद्धा थी। बीकानेर स्टेट के प्रशासन की निगाहों में धूल झोंककर वह चोरी-छुपे बीकानेर का का दौरा कर जनता को क्रांति के लिए जागृत करते रहे।
संपत्ति कुर्क :
महाराजा सार्दुल सिंह ने आदेश दिया कि कुंभाराम की पूरी संपत्ति कुर्क कर ली जावे। सरकारी आदेश के अनुसार फेफाना गांव में कुंभाराम की संपत्ति एक झोंपड़ी,एक गाय और कुछ समान कुर्क कर ली गई।
दुधवाखारा चूरू और कांगड़ रतनगढ़ कालरी राजगढ़ किसान आंदोलन :
दुधवखारा में किसान नेता हनुमान सिंह बुडानिया के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया गया।मार्च और अप्रैल 1946 में राजशाही के जुल्म में बढ़ोतरी हुई। जगह-जगह किसानों में असंतोष था। को 20 मार्च 1946 को हनुमानसिंह बुडानिया को गिरफ्तार कर अज्ञात स्थान पर ले जा कर उनकी खूब पिटाई की गई। गांव के मुखिया गोरधनराम को रस्सी से बांधकर ऊंट के साथ गर्मी में दौड़ाया गया। जिससे वह बेहोश होकर गिर पड़ा।
कांगड़ में आंदोलन को दबाने के लिए जागीरदार गोप सिंह ने बीकानेर से सेना बुला ली। खूब जुल्म के बावजूद क्रांतिकारियों का पता नहीं बताया। कांगड़ जाने वाले स्वतन्त्रता सेनानियों में गंगादत्त रंगा, स्वामी सच्चिदानंद, हंसराज आर्य, मास्टर दीप चंद, केदारनाथ, मौजीराम और रूपराम आदि जागीरदार से वार्ता करने हेतु कांगड़ आए। गांव वालों की दारुण गाथा सुनकर क्रांतिकारी रो पड़े। सामंत के ने सिपाहियों ने इन क्रांतिकारियों को भी पकड़ लिया उन्हें पीटा गया।
सामंतों के इन जुल्मों के खिलाफ गांव की कालरी राजगढ़ में विरोध उत्पन्न हो गया। कालरी के क्रांतिकारी स्वामी कर्मानंद आर्य को घेर कर गिरफ्तार कर लिया गया। स्वामी कर्मानंद ने गिरफ्तारी के खिलाफ जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी।
चौधरी कुंभाराम की गिरफ्तारी और स्वामी कर्मानंद की जेल में भूख हड़ताल को सुनकर गांव-गांव में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।। 9 मई 1946 को बीकानेर शहर में एक बड़ा आंदोलन हुआ जिसमें पुलिस ने लाठीचार्ज किया और लोगों को गिरफ्तार भी किया। इस पर 10 मई 1946 को में किसानों ने एक बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया। पुलिस ने फिर जमकर लाठीचार्ज किया जिसमें करीब 25 प्रदर्शनकारी गंभीर रूप से घायल हो गए। इसी समय 15 मई 1946 को हमीरवास राजगढ़ में किसानों पर लाठीचार्ज हुआ। इसी समय फेफाना में भी आंदोलन किया गया जिसमें खास तौर से महिलाओं ने तिरंगे झंडे लेकर राष्ट्रीय नारे लगाए। इसके बाद जागीरदारों के खिलाफ जगह जगह सभा होने लगी। चूरू,रतनगढ़ भादरा ,नोहर , गंगानगर, बांय, सांखू करनपुर ,पदमपुर और रायसिंहनगर में आंदोलन भड़के।बीकानेर रियासत का पुलिस विभाग किसान आंदोलन को कुचलने में लग गया, इसी दौरान 1 जुलाई 1946 ई. को रायसिंहनगर में बीकानेर प्रजा परिषद के राजनीतिक सम्मेलन में पुलिस की गोली से तिरंगे झंडे की रक्षा करते हुए बीरबलसिंह शहीद हो गए। इस बलिदान ने आग में घी का काम किया। प्रजा परिषद की ओर से 6 जुलाई 1946 को राज्य में किसान दिवस मनाया गया जहां जगह-जगह सभाओं के आयोजन हुए। जाटों के विरोध को देखते हुए बीकानेर महाराजा सादुल सिंह ने किसी जाट नेता को अपने साथ रखने की चाल चली और प्रजा परिषद से अलग कर प्रजा परिषद को कमजोर करना चाहा। इस कार्य के लिए उन्हें प्रजा काउंसिल नेता एडवोकेट ख्यालीसिंह गोदारा उपयुक्त व्यक्ति मिल गए। ख्यालीराम गोदारा ने महाराजा बीकानेर को आश्वस्त किया कि वह जाट हाउस में रहने वाले जाटों को प्रजा परिषद से अलग कर देंगे। इस पर महाराजा ने एक नीति के तहत सर्वप्रथम 27 जुलाई 1946 चौधरी कुंभाराम सहित 7 राजबंदियों रघुवरदयाल , हनुमान सिंह , गणपत सिंह , वैद्य मगाराम, किशनगोपाल व रामनारायण को रिहा कर दिया। तथा 1 अगस्त 1946 को चौधरी ख्याली राम गोदारा को ग्राम सुधार मंत्री नियुक्त कर आंदोलन को कमजोर करने का प्रयास किया। परंतु उपायों का आंदोलन पर कोई असर नहीं हुआ। 9 अगस्त 1946 को प्रजा परिषद की एक बैठक गंगानगर में हुई जिसमें रायसिंहनगर में शहीद बीरबल सिंह की पत्नी ने झंडारोहण किया। इस में चौधरी ख्याली सिंह गोदारा मंत्री की हैसियत से आए जिन्हे काले झंडे दिखाये गए। इसके बाद 3 सितंबर 1946 को गोगामेड़ी में आयोजित प्रजा-परिषद की विशाल सभा में जहां चौधरी कुंभाराम ने जागीरदारों के अत्याचारों की भारी आलोचना की वहां रामचंद्र जैन ने जागीरदारी प्रथा समाप्त करने की मांग की। इस सभा में चौधरी हरदत्त सिंह तत्कालीन मुंसिफ मजिस्ट्रेट हनुमानगढ़ भी शामिल हुए और अपने पद से इस्तीफा दे कर प्रजा परिषद में शामिल हो गए। चौधरी कुंभाराम आर्य, हरदत्त सिंह , हनुमानसिंह , स्वामी कर्मानन्द आर्य आदि नेता नहरी क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर सभाएं आयोजित कर किसानों को संगठित किया। इस पर बीकानेर सरकार ने 2 अक्टूबर 1946 को चौधरी कुंभाराम सहित हरदत्त सिंह, गुरुदयाल सिंह , मोहर सिंह, जीवनदत्त , नाथूराम आदि जाट नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इस पर चारों ओर किसानों में फिर से असंतोष फैल गया। इसी बीच 1 नवंबर 1946 को भयंकर कांगड़ कांड हुआ जिसमें कांगड़ गांव के जागीरदार गोपसिंह ने प्रजा परिषद के सात नेताओं स्वामी सच्चिदानंद, केदारनाथ, हंसराज आर्य , मास्टर दीपचंद, चौधरी मौजीराम , गंगादत्त रंगा, तथा चौधरी रूपाराम को गिरफ्तार कर पिटाई की ओर गंभीर घायल कर दिया।इस घटना से पूरे राज्य में भारी असंतोष पैदा हुआ। बीकानेर सरकार को स्थिति बिगड़ती देख कर बड़े शहरों को छोड़कर रियासत भर में 3 माह के लिए धारा 144 लगानी पड़ी और उसे लंबे समय तक 3-3 माह के बाद बढ़ानी पड़ी। सन 1947 बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष पद पर किसान नेता स्वामी कर्मानंद आर्य के निर्वाचन से जुड़े किसान नेताओं ने जागीरी जुल्म के विरोध में जागीरदारी प्रथा को ही समाप्त करने का नारा लगाया। इसके किसान व्यापक रूप से प्रभावित हुए और वे जागीदार उनके विरुद्ध अधिक सक्रिय हो गए। उर जागीदार वर्ग भी किसानों का अधिक दमन करने लगा। चौधरी कुंभाराम और अन्य जाट नेताओं के सतत प्रयास, व्यापक जनसंपर्क, कुशल नेतृत्व और अदम्य साहस का ही फल था कि 1947 तक बीकानेर में किसानों का संगठन इतना शक्तिशाली हो गया था कि कुछ जगहों पर वे जागीरदारों को न केवल लगान देना बंद कर दिया। इस प्रकार सदियों से पीड़ित और प्रताड़ित किसानों को बहुत पहली बार में गहरी नींद से उठकर कर संगठित हो कर जागीरदारों के शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ एकता का परिचय दिया। अंततोगत्वा बीकानेर महाराजा सादुल सिंह को किसान शक्ति के सामने झुकना पड़ा। चौधरी कुंभाराम आर्य को जेल से मुक्त कर समझौता करना पड़ा। 18 मार्च 1948 को एक समझौते के तहत बीकानेर महाराजा ने 10 सदस्यों का एक प्रबंध मंत्रिमंडल बनाया जिसमें चौधरी हरदत्त सिंह को उप प्रधान मंत्री व गृहमंत्री और चौधरी कुंभाराम को राजस्व मंत्री नियुक्त किया गया। उस समय उनकी आयु लगभग 34 वर्ष की
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग :-
पुलिस विभाग में सेवा के दौरान वे लोकतांत्रिक सोच के दो राजनेताओं मुक्ता प्रसाद वकील और रघुवर दयाल गोयल के संपर्क में आए। गांधीजी द्वारा द्वारा शुरू किए गए स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करने के लिए पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया । वे राजनीति में सक्रिय हो गए और राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेने लगे। उन्होंने 1945 में अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद अधिवेशन में भाग सानों के लिए सुधारवादी कदम उठाए। रियासत के किसानों को एक किया । उन्हें बीकानेर के शासक ने 1 मई 1946 को संगरिया हनुमानगढ़ से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 27 जुलाई 1946 तक कैद में रखा।
कुंभाराम जी के साथी एवं संबंध :-
रावतराम आर्य(भारत के प्रथम मेघवाल जिला प्रमुख), दौलतराम सारण, पत्रकार महावीर पुरोहित, स्वतंत्रता सेनानी हीरालाल शर्मा, दैनिक समाचार पत्र राष्ट्रदूत के संस्थापक एवं संपादक स्व. पंडित हजारीलालरा, ष्ट्रीय राजनीति में जाने के कारण आर्य से ऐसे कई नेताओं के रिश्ते बने हुए भैरोंसिंह शेखावत, ज्ञानी जैलसिंह, प्रतापसिंह केरो ,चौधरी देवीलाल,हेमवती नंदन बहुगुणा, गुलजारी नंदा, चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई , चंद्रशेखर, लाल बहादुर शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू,इंदिरा गांधी, कर्पूरी ठाकुर, अजय मुखर्जी, महामाया प्रसाद सिंह, मधुर लिमए, जॉर्ज फर्नांडीस, रवि राय आदि प्रमुख थे। आर्य हमेशा ही राज्य में किसान हित एवं देश हित के मुद्दे आए थे।
एक संस्मरण :
स्व.भैरोंसिंहावत के शासन काल में एक बार चौधरी कुम्भाराम आर्य किसी बात को लेकर एक दिन सुबह सुबह उनके आवास के सामने भूख हड़ताल पर बैठे थे। दोपहर एक बजे खाने का समय होते ही रतन कँवर घर से निकलकर धरना स्थल पर आई और भूख हड़ताल पर बैठे चौधरी कुम्भाराम जी के चरण स्पर्श कर भोजन करने हेतु कहा। बाबा भोजन तैयार है, घर के अंदर खाना बना है। चौधरी कुम्भाराम ने आशीर्वाद देते हुए कहा- बाईसा,मैं भूख हड़ताल पर बैठा हूँ सो अन्न जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? पर रतन कंवर ने हठ करते हुए कहा - बाबा, जब तक आप खाना नहीं खाएंगे तब तक घर का हर सदस्य भूखा रहेगा। आप घर के आगे भूखे बैठे हैं तो हम भोजन कैसे कर सकते हैं? रतन कंवर बाईसा द्वारा भोजन के लिए आग्रह किया गया और उनका संस्कार देखकर चौधरी कुम्भाराम जी गहरी सोच में पड़ गए। एक तरफ उनकी भूख हड़ताल का फैसला और दूसरी और बाईसा रतन कंवर द्वारा स्नेह नजर आने लगा। कुछ देर सोच कर नेता चौधरी कुम्भाराम उठकर रतन कंवर बाईसा के पीछे भूख हड़ताल छोड़कर भोजन करने चल पड़े।
चौधरी चरण सिंह जी के साथ कुंभाराम आर्यएक महान व्यक्तित्व को सलाम अंत में मेरा मानना है कि इस हस्ती को एक जाति या समाज विशेष के बंधन में बंधना अन्याय होगा। कुंभाराम जी सर्व समाज के नेता थे, हैं और रहेंगे।
शमशेर भालू खान गांधी
जिगर चुरुवी
9587243963
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