Thursday, 4 May 2023

✅भारत रत्न राजीव रत्न गांधी जीवन परिचय

भारत रत्न राजीव रत्न गांधी संक्षिप्त परिचय 


शहीद राजीव गांधी जी के वस्त्र

               पिता फिरोज गांधी 
 राजीव गांधी का एविएशन लाइसेंस 

मां इंदिरा गांधी की पीठ पर राजीव
राजीव सोनिया का विवाह
।       संजय और राजीव
     पुत्र राहुल और पुत्री प्रियंका

भारत रत्न राजीव गांधी 

नाम - राजीव गांधी
पूरा नाम - राजीव रत्न (कमला-जवाहर)(यह नाम नाना जवाहरलाल नेहरू ने रखा)
ददिहाल (पारसी परिवार की तरफ से नाम - बिरजिस(एक ग्रह का नाम(बृहस्पति)
पिता का नाम - फ़िरोज़ गांधी (पारसी) (जन्म 12 सितम्बर 1912 मुंबई मृत्यु 8 सितम्बर 1960 दिल्ली)(स्वतंत्रता सेनानी, इंजीनियर,नेशनल हेराल्ड, लखनऊ एडिशन के सम्पादक)
माता का नाम - इंदिरा गांधी (सनातन,कश्मीरी पंडित) (जन्म 19 नबम्बर 1917 प्रयागराज मृत्यु 31 अक्टूबर 1984 नई दिल्ली  हत्या) (भारत की प्रधानमंत्री)
नाना का नाम -जवाहरलाल नेहरू(भारत के प्रथम प्रधानमंत्री)
नानी का नाम- कमला नेहरू
दादा का नाम - फरदुन जहांगीर गांधी
दादी का नाम - रतिमल कम्मिसनरत 
जन्म - 20 अगस्त 1944 (बॉम्बे प्रेसिडेंसी)
मृत्यु - 21 मई 1991 (श्री पेरमबदुर,तमिलनाडु)
मृत्यु का कारण -चुनावी सभा में बम आत्मघाती विस्फोट
भाई - संजय गांधी(1980 में वायुयान दुर्घटना में मृत्यु)
मृत्यु के समय आयु  - 45 वर्ष 9 माह 
निवास - नई दिल्ली
व्यक्तित्व - शालीन,मृदयुभाषी,चित्रकार

पद -
(1)भारत के छठे प्रधानमंत्री (31 अक्टूबर 1984 - 2 दिसंबर 1989) इंदिरा गांधी के बाद दूसरे सब से कम उम्र के प्रधानमंत्री आयु लगभग 40 साल। 31 अक्टुबर1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के दिन व 1984 के आम चुनाव में 411 सीट जीतकर दोबारा प्रधानमंत्री बने।)
(2) नेता प्रतिपक्ष -18 दिसंबर 1989 - 23 दिसंबर 1990 (वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने जनता दल से)
(3) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष - 1985-1991 तक
(4) अमेठी से सांसद -  17 अगस्त 1981 - 21 मई 1991
(5) कांग्रेस महासचिव - 1980 से 1984
(6) 1982 ऐशियाई खेल समारोह समिति में सक्रिय भागीदारी
सम्मान - भारत रत्न (मरणोपरांत 1991)
स्मारक का नाम - वीर भूमि ( नई दिल्ली)
राजनीतिक दल से सम्बद्ध - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पत्नी - सोनिया गांधी (एडविज एंटोनिया अल्बिना मोइनो)  (इटली, ईसाई)(1998 से कांग्रेस अध्यक्ष, रायबरेली से सांसद)
विवाह का वर्ष - 1968⁠ (तीन वर्ष के प्रेम संबंधों के बाद)

सन्तान -
 (1) राहुल गांधी पुत्र (1970) (दो बार अमेठी से अब केरल से सांसद)
 (2) प्रियंका वाड्रा (1972) - पुत्री
शिक्षा
1. 1951 में, राजीव और संजय की शिव निकेतन स्कूल बॉम्बे में प्रारम्भिक शिक्षा
            2 . 1954 में वेल्हम बॉयज़ स्कूल , देहरादून और दून स्कूल , देहरादून 
             3 . 1961 में ए-लेवल का अध्ययन करने के लिए लंदन गये।
             4 .  स्विट्ज़रलैंड के एक अंतरराष्ट्रीय बोर्डिंग स्कूल, इकोले डी ह्यूमैनिटे में पढ़ाई।
             5 . ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज 1962 से 1965 (एवियशन में इंजीनियरिंग) (पढ़ाई अधूरी)
              6  . इंपीरियल कॉलेज लंदन  1966 मेकेनिकल इंजीनियरिंग(पढ़ाई अधूरी)

विदेश से शिक्षा पूर्ण कर भारत लौटे - 1966

मूल कार्य -
1966 में फ्लाइंग क्लब के सदस्य बने व 1970 से इंडियन एयरलाइंस में पायलट 

राजनीतिक में आने का कारण -  
23 जून 1980 में एक विमान दुर्घटना में संजय की मृत्यु के बाद, गांधी ने अनिच्छा से इंदिरा के कहने बद्रीनाथ के एक संत, शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद के कहने पर 16 फरवरी 1981 से राजनीति में प्रवेश किया व  बाद में अमेठी से चुनाव लड़ा।
राजीव गांधी  ''अगर मेरी मां को इससे मदद मिली तो मैं राजनीति में आ जाऊंगा.'' 

भारत के प्रधान मंत्री के रूप में राजीव गांधी
राजीव गांधी 31 अक्टूबर 1984 को पश्चिम बंगाल में थे, जब ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर पर सैन्य हमले का बदला लेने के लिए उनकी मां, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने हत्या कर दी थी । 
तत्कालीन सांसद सरदार बूटा सिंह और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव गाँधी पर हत्या के कुछ ही घंटों के भीतर अपनी मां के स्थान पर प्रधानमंत्री बनने के लिए दबाव बनाय।
मां की मृत्यु के बाद उनके बयान ,  "जब एक विशाल पेड़ गिरता है, तो नीचे की धरती हिलती है। (दिल्ली सिख विरोधी दंगों पर)
उनकी तीखी आलोचना हुई।
1984 में ही लोकसभा भंग कर आम चुनाव करवाये गये जिसमे 411 सीट जीतकर भारत के युवा प्रधानमंत्री बने।

प्रधानमंत्री के रूप में चुनोतियाँ
भारत के छठे प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने चौदह सदस्यीय मंत्रिमंडल का गठन किया। एक मात्र महिला मंत्री मोहसिना किदवई रेल मंत्री; वह कैबिनेट में एकमात्र महिला व्यक्ति थीं। पूर्व गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव को रक्षा, वीपी सिंह वित्त, 1987 में  बदल कर रक्षा मंत्री, बनाया गया। 
वे अक्सर कैबिनेट मंत्रियों को बदल दिया करते जिसे आलोचना के रूप में भ्रम का पहिया कहा जाने लगा।

दलबदल विरोधी कानून
जनवरी 1985 में उन्होंने दलबदल विरोधी कानून पारित करवाया। जिसके के अनुसार, संसद या विधान सभा का निर्वाचित सदस्य अगले चुनाव तक विपक्षी दल में शामिल नहीं हो सकता पर 1/3 सदस्य एक साथ अलग हो कर ऐसा कर सकते हैं। 
उनके अनुसार मंत्रियों के भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को रोकने का यह एक उपाय था। ताकि वे बहुमत हासिल कर सकें व 1980 जैसी दलबदल घटना न दोहराई जा सके।

शाह बानो प्रकरण 
सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम तलाकशुदा शाह बानो के पक्ष में पति द्वारा तलाक़ पर गुजारा भत्ता देने का निर्णय दिया जिसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अतिक्रमण मानकर विरोध किया। 
राजीव गांधी ने पर्सनल लॉ बोर्ड की मांगें मानते हुये 1986 में, भारत की संसद में मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 पास करवाया, जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय का फैसला रद्द हो गया यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले कमजोर करने वाला कदम माना गया जिसमें तलाकशुदा महिला को केवल इद्दत की अवधि के दौरान भरण पोषण भुगतान की अनुमति दी गई या तलाक के 90 दिन बाद तक। विवाह संहिता की धारा 125 के विपरीत फैसले को अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की संज्ञा दी। मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने इसके विरोध में त्यागपत्र दे दिया।

उदार अर्थव्यवस्था की शुरूआत
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने देश की अर्थव्यवस्था को उदार बनाने की कोशिश की। बड़े व छोटे औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए कॉर्पोरेट कंपनियों को बढ़ावा देने के लिये सब्सिडी व अन्य सहायता इस आशय से दी गई कि इससे आर्थिक विकास में वृद्धि होगी और निवेश की गुणवत्ता में सुधार होगा। उनके इस फैसले का शहर समर्थक कह कर विरोध किया गया।

तकनीक विज्ञान व प्रौद्योगिकी को बढ़ावा
राजीव गांधी ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संबद्ध उद्योगों के लिए सरकारी समर्थन बढ़ाया। कंप्यूटर,एयरलाइंस,रक्षा और दूरसंचार पर आयात कोटा बढ़ाया व शुल्कों को कम किया।

नई शिक्षा नीति 1986
1986 में प्राथमिक व उच्च शिक्षा विकास कार्यक्रमों के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 लागू की।
1. जवाहर नवोदय विद्यालय प्रणाली की स्थापना की, जो एक केंद्र सरकार-आधारित शिक्षा संस्थान है जो 20 % शहरी व 80% ग्रामीण आबादी के छात्रों को कक्षा छह से बारह तक पूर्णतया मुफ्त आवासीय शिक्षा प्रदान करने हेतु व्यवस्था की गई। 650 से अधिक विद्यालयों से 15 लाख से अधिक छात्र पास आउट हो चुके हैं।
2. ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड के अंतर्गत हर जिले में शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान DIET खोले गये।
3. प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षक उपलब्ध करवाने के लिये 90%केंद्रीय सहायता प्रारंभ की गई।

दूरसंचार के क्षेत्र में 
1986 में एमटीएनएल का निर्माण किया गया जिसके कारण पीसीओ का संचालन किया गया व आम आदमी की संचार के साधनों तक पहुंच बढ़ी इसी कारण ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन नेटवर्क विकसित किये जा सके।

तकनीकी विकास
राजीव गांधी ने सैम पित्रोदा (रॉकवेल इंटरनेशनल के पूर्व कार्यकारी) को सार्वजनिक सूचना बुनियादी ढांचे और नवाचार सलाहकार के रूप में नियुक्त किया। 
सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों एमटीएनएल और वीएसएनएल का विकास हुआ। टेलीविजन व टेलीफोन जो अमीरों के घरों तक सीमित थे आम जनता की पहुँच में आ गई। सरकार ने पूरी तरह से असेंबल किये मदरबोर्ड के आयात की अनुमति दी जिसके कारण कंप्यूटरों की कीमत कम हो गई।

लाइसेंस राज की समाप्ति
राजीव गांधी ने 1990 के बाद लाइसेंस राज को समाप्त करने के उपायों की शुरुआत की , जिससे व्यवसायों और व्यक्तियों को पूंजी, उपभोक्ता सामान खरीदने और नौकरशाही प्रतिबंधों के बिना आयात करने की अनुमति मिली।

विदेश नीति
भारत की नई विदेश नीति विश्व व्यवस्था की दृष्टि में श्रेष्ठ थी यह भारत को मजबूत, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और दुनिया के राष्ट्रों की अग्रिम पंक्ति में ले जाने की दिशा में तैयार थी। राजीव गांधी की कूटनीति को उचित रूप से शांकित किया गया था।
आवश्यक होने पर सुलह और मिलनसार और अवसर की मांग के अनुसार नीति तय की जा सके।

संयुक्त राष्ट्र संघ में संबोधन
राजीव गांधी ने 9 जून 1988 को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के पंद्रहवें विशेष सत्र में कहा था कि विश्व के देशों को परमाणु हथियारों से मुक्त होना चाहिये उन्होंने अपने एक्शन प्लान फॉर अशरिंग के द्वारा प्रभावित किया।
जैविक व परमाणु हथियार विश्व कल्याण में बाधक है।
यह 29 नवंबर 1985 को जापान में उन्होंने कहा कि "आइये हम उन मानसिक विभाजन को दूर कर शांति और समृद्धि में एक साथ जुड़कर मानव परिवार की महान बुद्ध के करुणा के संदेश को आगे बढायें।
उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन पर परमाणु अप्रसार की नीति को ईमानदारी से लागू करने के लिये दबाव बनाया।

पड़ौसी देशों से संबंध

पाकिस्तान से संबंध
पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया-उल-हक ने दिल्ली का दौरा फरवरी 1987 में किया जिसमे सैनिक अभ्यास व सीमा विवाद पर चर्चा की। 
राजीव गांधी ने भी 1988 में पाकिस्तान का दौरा किया जिसमें जुल्फिकार अली भुट्टो व इंदिरा गांधी के मध्य हुये 1972 के शिमला समझौते की अनुपालना हेतु तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो से चर्चा की।

श्रीलंका से संबन्ध
श्रीलंका में भारतीय मूल के तमिलों के अधिकारों की रक्षा के लिये लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) हिंसक गतिविधियाँ अपना रहा था जिससे वहाँ आंतरिक असन्तोष प्रारंभ हो गया।  LTTE श्रीलंका में एक स्वतंत्र तमिल राज्य की मांग कर रहे थे । 
1986 में सार्क संघ की बैठक में श्रीलंका के प्रधानमंत्री रणसिंघे प्रेमदासा के साथ राजीव गांधी ने इस समस्या पर चर्चा की पर उसी वर्ष 1986 में श्रीलंकाई सेना ने जाफना के तमिल बहुसंख्यक जिले में कैम्प कर अत्याचार किये जिससे तमिल आबादी भुखमरी की शिकार हो गई तो राजीव गांधी ने पैराशूट द्वारा राहत सामग्री तमिल बहुल क्षेत्रों में गिराने का आदेश दिया व शान्ति सेना भिजवाई। 
29जुलाई 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये व शान्ति सेना को भारत वापस बुला लिया गया।
समझौते के अनुसार तमिल-बहुल क्षेत्रों में सत्ता के हस्तांतरण की परिकल्पना की गई , लिट्टे को भंग कर दिया गया और तमिल भाषा को श्रीलंका की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई।
"श्रीलंका में शांति की स्थापना व तमिल हितों की रक्षा करना हमारा दायित्व है" राजीव गांधी 30 जुलाई 1987 को गार्ड ऑफ ओनर के समय विजेता रोहाना नामक एक सम्मान गार्ड ने उनके कंधे पर अपनी राइफल से वार किया पर बच गये।

क्षेत्रीय मुद्दे

पंजाब
राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद संभालते ही पंजाब की समस्या का समाधान निकालने के लिए अकाली दल के वरिष्ठ नेताओं के साथ बंद कमरे में बैठक कर 1984 के समय ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय बन्दी बनायें गये सभी अकाली दल के नेताओं को रिहा कर दिया व ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन पर लगा प्रतिबंध हटा दिया और 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच शुरू करवाई व 1985 में राजीव लोंगोवाल समझौता किया।
1987 में सुरजीत सिंह बरनाला ने इस्तीफा दे दिया व राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
पंजाब में शांति व्यवस्था के लिये मई 1988 में राजीव गांधी ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर को हथियारों और बंदूकधारियों से मुक्त करने के लिए ऑपरेशन ब्लैक थंडर शुरू किया।
राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड और SOG नाम के दो समूह बनाकर उन्होंने 10 दिनों की घेराबंदी की व मंदिर को घेर लिया, जिसके दौरान चरमपंथियों के हथियार जब्त कर लिये गये। 

पूर्वोत्तर भारत
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद की वृद्धि को चिह्नित कर मिजो नेशनल फ्रंट ने मिजोरम के लिये स्वतंत्रता की मांग की । 1987 में उन्होंने इस समस्या का समाधान किया मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को उन राज्यों का दर्जा दिया गया जो पहले केंद्र शासित प्रदेश थे। असम आंदोलन को भी समाप्त कर दिया ULFA के नाम से असमिया लोगों द्वारा बांग्लादेशी मुसलमानों के कथित अवैध प्रवास और अन्य बंगालियों के अपने राज्य में प्रवास के विरोध में शुरू किया गया जिसके कारण असम निवासी वहां अल्पसंख्यक हो गये।
15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर 1951 से 1961 के बीच असम में आने वाले विदेशियों को पूर्ण नागरिकता दी गई थी परन्तु उन्हें 1961 से 1971 के बीच अगले दस वर्षों तक वोट देने का अधिकार नहीं मिला।


आरोप
बोफोर्स कांड
एचडीडब्ल्यू कांड और 1989 की चुनाव हार
मुख्य लेख: बोफोर्स घोटाला
तत्कालीन वित्त मंत्री वी.पी. सिंह ने सरकार और राजनीतिक भ्रष्टाचार के बारे में खुलासे किये जिसके अनुसार स्वीडिश हथियार कंपनी बोफोर्स द्वारा  ओटावियो क्वात्रोची के माध्यम से भारतीय अनुबंधों के बदले में गांधी परिवार को रिश्वत देने के आरोप लगे।
द हिन्दू में वीपी सिंह ने लाखों अमेरिकी डॉलर के कांड के आरोप लगाने पर उन्हें केबिनेट मंत्री से बर्खास्त कर दिया गया जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ जनता दल का गठन किया। 
सन 2004 में जांच एजेंसियों ने उन्हें उन्हें निर्दोष करार दिया।

एच डी डब्ल्यू घोटाला 
वीपी सिंह ने ही 1988 में राजीव गांधी पर 1981 में जर्मनी की कंपनी HDW द्वारा निर्मित दो तैयार पनडुब्बियों और CKD रूप में दो पनडुब्बियों को मझगांव डॉक में असेंबल करने के लिए खरीदने के लिए सहमति व्यक्त की गई थी। वीपी सिह ने उस सौदे में प्राप्त टेलीग्राम के आधार पर दलाली के आरोप लगाये।
यह आरोप भी मीडिया ट्रायल साबित हुये और राजीव गांधी को आरोप मुक्त घोषित किया गया।

काले धन का आरोप
स्विजरलैंड की पत्रिका स्विट्ज़र इल्लुस्ट्रेट ने नवंबर 1991 में इमेल्डा मार्कोस और अन्य राजनीतिक लोगो व शासको के स्विस बैंक में गुप्त खातों की रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमे राजीव गांधी का भी नाम था में आरोप था कि स्विस बैंक में उनके 2.5 बिलियन डॉलर जमा है।
विपक्षी दलों ने इसे खूब हवा दी और मुद्दा लोकसभा व राज्यसभा में उठाया गया परन्तु आदिनांक तक आरोप सिद्ध नही हो सके।

केजीबी से फंडिंग
राजीव गांधी की हत्या के बाद 1992 राजीव गांधी पर रूसी कम्पनियों से (1980 में) दलाली लेने के आरोप लगे।
1994 में एक पुस्तक द स्टेट विदिन ए स्टेट में पत्रकार येवगेनिया अल्बेट्स और कैथरीन फिट्ज़पैट्रिक ने विक्टर चेब्रीकोव द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र का हवाला देते हुये आरोपों की पुष्टि की।

राजीव जी पर सब से अधिक आरोप वीपी सिंह, रामजेठ मलानी व सुब्रमण्यम स्वामी ने लगाये।

1989 की चुनावी हार
लोक दल, कांग्रेस (समाजवादी) और जन मोर्चा के संयुक्त गठबंधन (जनता दल)(राष्ट्रीय मोर्चा)ने राजीव गांधी को आम चुनाव हरा कर वीपी सिंह प्रधानमंत्री और चौधरी देवीलाल उप प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस को 197 व गठबंधन को 143 सीट मिली परन्तु भाजपा(बाहरी समर्थन) व वामपंथी दलों  के मिलकर गठबंधन की सरकार बनी।

हत्या
21 मई 1991 को मद्रास से दूर एक गाँव अंतिम चुनावी सभा श्रीपेरुम्बदूर को संबोधित कर रात को वो जनता से मिल रहे थे कि LTTE कार्यकर्ता   तेनमोझी राजारत्नम ने 10:10 बजे उनके  पैर छूने के लिए नीचे झुकी और कपड़ों में छिपे  700 ग्राम आरडीएक्स से विस्फोटक कर दिया।
विस्फोट की तश्वीरें राजा बाबू नाम के फोटोग्राफर के कैमरे में कैद हुई जिसकी मृत्यु हो चुकी थी।
उनकी मां इंदिरा गांधी, भाई संजय गांधी और नाना जवाहरलाल नेहरू के स्मृति स्थलों के पास यमुना नदी के तट पर वीर भूमि में उनका अंतिम संस्कार किया गया ।

राजीव गांधी जी की हत्या की हृदय विदारक दास्तां (साभार : बीबीसी संवाददाता नीना गोपाल)
21 मई, 1991 को शाम के आठ बजे थे. कांग्रेस की बुज़ुर्ग नेता मारगाथम चंद्रशेखर मद्रास के मीनाबक्कम हवाई अड्डे पर राजीव गांधी के आने का इंतज़ार कर रही थीं. थोड़ी देर पहले जब राजीव गांधी विशाखापट्टनम से मद्रास के लिए तैयार हो रहे थे तो पायलट कैप्टन चंदोक ने पाया कि विमान की संचार व्यवस्था काम नहीं कर रही है. राजीव मद्रास जाने का विचार त्याग गेस्ट हाउस के लिए रवाना हो गए. लेकिन तभी किंग्स एयरवेज़ के फ़लाइट इंजीनियर ने संचार व्यवस्था में आया नुख़्स ठीक कर दिया. विमान के क्रू ने तुरंत पुलिस वायरलेस से राजीव से संपर्क किया और राजीव मद्रास जाने के लिए वापस हवाई अड्डे पहुंच गए. दूसरे वाहन में चल रहे उनके पर्सनल सुरक्षा अधिकारी ओपी सागर अपने हथियार के साथ वहीं रह गए. मद्रास के लिए विमान ने साढ़े छह बजे उड़ान भरी. राजीव खुद विमान चला रहे थे. जहाज ने ठीक आठ बज कर बीस मिनट पर मद्रास में लैंड किया. वो एक बुलेट प्रूफ़ कार में बैठ कर मार्गाथम, राममूर्ति और मूपानार के साथ श्रीपेरंबदूर के लिए रवाना हो गए. दस बज कर दस मिनट पर राजीव गाँधी श्रीपेरंबदूर पहुंचे. राममूर्ति सबसे पहले मंच पर पहुंचे. पुरुष समर्थकों से मिलने के बाद राजीव ने महिलाओं की तरफ़ रूख़ किया. तभी तीस साल की एक नाटी, काली और गठीली लड़की चंदन का एक हार ले कर राजीव गाँधी की तरफ बढ़ी. जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए झुकी, कानों को बहरा कर देने वाला धमाका हुआ. उस समय मंच पर राजीव के सम्मान में एक गीत गाया जा रहा था...राजीव का जीवन हमारा जीवन है...अगर वो जीवन इंदिरा गांधी के बेटे को समर्पित नहीं है... तो वो जीवन कहाँ का?
वहाँ से मुश्किल से दस गज़ की दूरी पर गल्फ़ न्यूज़ की संवाददाता और इस समय डेक्कन क्रॉनिकल, बंगलौर की स्थानीय संपादक नीना गोपाल, राजीव गांधी के सहयोगी सुमन दुबे से बात कर रही थीं. नीना याद करती हैं, "मुझे सुमन से बातें करते हुए दो मिनट भी नहीं हुए थे कि मेरी आंखों के सामने बम फटा. मैं आमतौर पर सफ़ेद कपड़े नहीं पहनती. उस दिन जल्दी-जल्दी में एक सफ़ेद साड़ी पहन ली. बम फटते ही मैंने अपनी साड़ी की तरफ देखा. वो पूरी तरह से काली हो गई थी और उस पर मांस के टुकड़े और ख़ून के छींटे पड़े हुए थे. ये एक चमत्कार था कि मैं बच गई. मेरे आगे खड़े सभी लोग उस धमाके में मारे गए थे."
नीना बताती हैं, "बम के धमाके से पहले पट-पट-पट की पटाखे जैसी आवाज़ सुनाई दी थी. फिर एक बड़ा सा हूश हुआ और ज़ोर के धमाके के साथ बम फटा. जब मैं आगे बढ़ीं तो मैंने देखा लोगों के कपड़ो में आग लगी हुई थी, लोग चीख रहे थे और चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी. हमें पता नहीं था कि राजीव गांधी जीवित हैं या नहीं." जब धुआँ छटा तो राजीव गाँधी की तलाश शुरू हुई. उनके शरीर का एक हिस्सा औंधे मुंह पड़ा हुआ था. उनका कपाल फट चुका था और उसमें से उनका मगज़ निकल कर उनके सुरक्षा अधिकारी पीके गुप्ता के पैरों पर गिरा हुआ था जो स्वयं अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे. बाद में जीके मूपनार ने एक जगह लिखा, "जैसे ही धमाका हुआ लोग दौड़ने लगे. मेरे सामने क्षत-विक्षत शव पड़े हुए थे. राजीव के सुरक्षा अधिकारी प्रदीप गुप्ता अभी ज़िंदा थे. उन्होंने मेरी तरफ़ देखा. कुछ बुदबुदाए और मेरे सामने ही दम तोड़ दिया मानो वो राजीव गाँधी को किसी के हवाले कर जाना चाह रहे हों. मैंने उनका सिर उठाना चाहा लेकिन मेरे हाथ में सिर्फ़ मांस के लोथड़े और ख़ून ही आया. मैंने तौलिए से उन्हें ढक दिया." मूपनार से थोड़ी ही दूरी पर जयंती नटराजन अवाक खड़ी थीं. बाद में उन्होंने भी एक इंटरव्यू में बताया, "सारे पुलिस वाले मौक़े से भाग खड़े हुए. मैं शवों को देख रही थी, इस उम्मीद के साथ कि मुझे राजीव न दिखाई दें. पहले मेरी नज़र प्रदीप गुप्ता पर पड़ी... उनके घुटने के पास ज़मीन की तरफ मुंह किए हुए एक सिर पड़ा हुआ था... मेरे मुंह से निकला ओह माई गॉड...दिस लुक्स लाइक राजीव." वहीं खड़ी नीना गोपाल आगे बढ़ती चली गईं, जहाँ कुछ मिनटों पहले राजीव खड़े हुए थे. नीना बताती है, "मैं जितना भी आगे जा सकती थी, गई. तभी मुझे राजीव गाँधी का शरीर दिखाई दिया. मैंने उनका लोटो जूता देखा और हाथ देखा जिस पर गुच्ची की घड़ी बँधी हुई थी. थोड़ी देर पहले मैं कार की पिछली सीट पर बैठकर उनका इंटरव्यू कर रही थी. राजीव आगे की सीट पर बैठे हुए थे और उनकी कलाई में बंधी घड़ी बार-बार मेरी आंखों के सामने आ रही थी. जहाँ राजीव का शव पड़ा हुआ था वहीं लाल कारपेट के एक हिस्से में आग लगी हुई थी." "वहाँ मौजूद इंस्पेक्टर राघवन ने उसके ऊपर कूद कर जलती हुई कारपेट को बुझाया. इतने में राजीव गांधी का ड्राइवर मुझसे आकर बोला कि कार में बैठिए और तुरंत यहाँ से भागिए. मैंने जब कहा कि मैं यहीं रुकूँगी तो उसने कहा कि यहाँ बहुत गड़बड़ होने वाली है. हम निकले और उस एंबुलेंस के पीछे पीछे अस्पताल गए जहाँ राजीव के शव को ले जाया जा रहा था."

सोनिया गांधी को ऐसे मिली जानकारी
दस बज कर पच्चीस मिनट पर दिल्ली में राजीव के निवास 10, जनपथ पर सन्नाटा छाया था. राजीव के निजी सचिव विंसेंट जॉर्ज अपने चाणक्यपुरी वाले निवास की तरफ निकल चुके थे. जैसे ही वो घर में दाख़िल हुए, उन्हें फ़ोन की घंटी सुनाई दी. दूसरे छोर पर उनके एक परिचित ने बताया कि मद्रास में राजीव से जुड़ी बहुत दुखद घटना हुई है. जॉर्ज वापस 10 जनपथ भागे. तब तक सोनिया और प्रियंका भी अपने शयन कक्ष में जा चुके थे. तभी उनके पास भी ये पूछते हुए फ़ोन आया कि सब कुछ ठीक तो है. सोनिया ने इंटरकॉम पर जॉर्ज को तलब किया. जॉर्ज उस समय चेन्नई में पी. चिदंबरम की पत्नी नलिनी से बात कर रहे थे. सोनिया ने कहा जब तक वो बात पूरी नहीं कर लेते वो लाइन को होल्ड करेंगीं. नलिनी ने इस बात की पुष्टि की कि राजीव को निशाना बनाते हुए एक धमाका हुआ है लेकिन जॉर्ज सोनिया को ये ख़बर देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. दस बज कर पचास मिनट पर एक बार फिर टेलीफ़ोन की घंटी बजी.
रशीद किदवई सोनिया की जीवनी में लिखते हैं, "फ़ोन मद्रास से था और इस बार फ़ोन करने वाला हर हालत में जॉर्ज या मैडम से बात करना चाहता था. उसने कहा कि वो ख़ुफ़िया विभाग से है. हैरान परेशान जॉर्ज ने पूछा राजीव कैसे हैं? दूसरी तरफ से पाँच सेकंड तक शांति रही, लेकिन जॉर्ज को लगा कि ये समय कभी ख़त्म ही नहीं होगा. वो भर्राई हुई आवाज़ में चिल्लाए तुम बताते क्यों नहीं कि राजीव कैसे हैं? फ़ोन करने वाले ने कहा, सर वो अब इस दुनिया में नहीं हैं और इसके बाद लाइन डेड हो गई." जॉर्ज घर के अंदर की तरफ़ मैडम, मैडम चिल्लाते हुए भागे. सोनिया अपने नाइट गाउन में फ़ौरन बाहर आईं. उन्हें आभास हो गया कि कुछ अनहोनी हुई है. आम तौर पर शांत रहने वाले जॉर्ज ने इस तरह की हरकत पहले कभी नहीं की थी. जॉर्ज ने काँपती हुई आवाज़ में कहा "मैडम मद्रास में एक बम हमला हुआ है." सोनिया ने उनकी आँखों में देखते हुए छूटते ही पूछा, "इज़ ही अलाइव?" जॉर्ज की चुप्पी ने सोनिया को सब कुछ बता दिया. रशीद बताते हैं, "इसके बाद सोनिया पर बदहवासी का दौरा पड़ा और 10 जनपथ की दीवारों ने पहली बार सोनिया को चीख़ कर विलाप करते सुना. वो इतनी ज़ोर से रो रही थीं कि बाहर के गेस्ट रूम में धीरे-धीरे इकट्ठे हो रहे कांग्रेस के नेताओं को वो आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी. वहाँ सबसे पहले पहुंचने वालों में राज्यसभा सांसद मीम अफ़ज़ल थे. उन्होंने मुझे बताया कि सोनिया के रोने का स्वर बाहर सुनाई दे रहा था. उसी समय सोनिया को अस्थमा का ज़बरदस्त अटैक पड़ा और वो क़रीब-क़रीब बेहोश हो गईं. प्रियंका उनकी दवा ढ़ूँढ़ रही थीं लेकिन वो उन्हें नहीं मिली. वो सोनिया को दिलासा देने की कोशिश भी कर रही थीं लेकिन सोनिया पर उसका कोई असर नहीं पड़ रहा था." अचानक प्रियंका ने हालात को कंट्रोल में लिया. उन्होंने जार्ज की तरफ़ मुड़ कर पूछा, "इस समय मेरे पिता कहाँ हैं?" जार्ज ने उन्हें जवाब दिया, "वो उन्हें मद्रास ला रहे हैं." प्रियंका ने कहा, "कृपया तुरंत मद्रास पहुंचने में हमारी मदद कीजिए."
इतने में राष्ट्रपति वैंकटरमण का फ़ोन आया. संवेदना व्यक्त करने के बाद उन्होंने पूछा, "क्या इस समय मद्रास जाना अक्लमंदी होगी?"
प्रियंका ने ज़ोर दे कर कहा कि हम इसी समय मद्रास जाना चाहेंगे. भारत के पूर्व विदेश सचिन टीएन कौल उन्हें अपनी कार में बैठा कर हवाई अड्डे पहुंचे. मद्रास पहुंचने में उन्हें तीन घंटे लगे. पूरी उड़ान के दौरान किसी ने एक शब्द भी नहीं कहा. सिर्फ़ सोनिया की सिसकियों की आवाज़े आती रहीं.
जब वो मद्रास पहुंचे तो अभी वहाँ अंधेरा ही था. जैसे ही सोनिया ने वहाँ राजीव के पुराने दोस्त सुमन दुबे को वहां देखा, वो उनसे लिपट कर रोने लगीं. लेकिन वो शव को नहीं देख पाईं. वो देख भी नहीं सकती थीं. उन्हें बताया गया कि शव इतनी बुरी हालत में था कि उसे इंबाम तक नहीं किया जा सकता था. उन्होंने सिर्फ़ दो ताबूत रखे देखे. एक में राजीव का शव रखा हुआ था और दूसरे में उनके सुरक्षा अधिकारी प्रदीप गुप्ता का. यहाँ पर पहली बार प्रियंका के आँसू निकल पड़े जब उन्हें एहसास हुआ कि अब वो अपने पिता को कभी नहीं देख पाएंगी.
सोनिया गाँधी की एक और जीवनीकार जेवियर मोरो अपनी किताब 'द रेड साड़ी' में लिखते हैं, "तभी सोनिया ने एक ऐसा काम किया जिसे अगर राजीव जीवित होते तो बहुत पसंद करते. उन्होंने नोट किया कि प्रदीप गुप्ता के ताबूत पर कुछ भी नहीं रखा है. वो उठीं और उन्होंने मोगरे की एक माला उठा कर अपने हाथों से उसे उसके ऊपर रख दिया."
'मैं वैसे भी मारा जाऊँगा'
कुछ दिनों बाद सोनिया गांधी ने इच्छा प्रकट की कि वो नीना गोपाल से मिलना चाहती हैं.
नीना गोपाल ने बताया, "भारतीय दूतावास के लोगों ने दुबई में फ़ोन कर मुझे कहा कि सोनिया जी मुझसे मिलना चाहती हैं. जून के पहले हफ्ते में मैं वहां गई. हम दोनों के लिए बेहद मुश्किल मुलाक़ात थी वो. वो बार-बार एक बात ही पूछ रहीं थी कि अंतिम पलों में राजीव का मूड का कैसा था, उनके अंतिम शब्द क्या थे."
"मैंने उन्हें बताया कि वह अच्छे मूड में थे, चुनाव में जीत के प्रति उत्साहित थे. वो लगातार रो रही थीं और मेरा हाथ पकड़े हुए थीं.
इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी एलेक्ज़ेंडर ने अपनी किताब 'माई डेज़ विद इंदिरा गांधी' में लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटों के भीतर उन्होंने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट के गलियारे में सोनिया और राजीव को लड़ते हुए देखा था.
राजीव सोनिया को बता रहे थे कि पार्टी चाहती है कि, 'मैं प्रधानमंत्री पद की शपथ लूँ.' सोनिया ने कहा हरगिज़ नहीं. 'वो तुम्हें भी मार डालेंगे'. राजीव का जवाब था, 'मेरे पास कोई विकल्प नहीं है. मैं वैसे भी मारा जाऊँगा.' सात वर्ष बाद राजीव के बोले वो शब्द सही सिद्ध हुए थे।

आपरेशन फालकन:-
नेफे (अरुणाचल प्रदेश) और राजीव गांधी
18 से 20 अक्टूबर 1986 ऑपरेशन फाल्कन :-
चीन भारत सन 1962 गिना रहा पर  1967 भूल गया। दो कदम बढ़ कर एक कदम पीछे हटना चीन की पुरानी नीति रही है। वह हमेशा अक्साई चीन पर कब्जा चाहता है। अक्साई चिन से गुजरता हाइवे, काशगर-जिनजियांग और बीजिंग को जोड़ने वाली गर्भनाल है। CPEC और पाकिस्तान जाने वाला कराकोरम हाइवे भी यहीं से निकला है। चाऊ ने 59 में यह प्रस्ताव दिया- नेफा तुम्हारा मान लेते है, अक्साई चिन हमारा मान लो। 
नेहरू ने प्रस्ताव ठुकरा दिया। विदेशमंत्री बाजपेयी को भी यही प्रस्ताव मिला, मगर कुछ गड़बड़ कर पाते कि सरकार चली गयी। दोबारा सरकार में आयी इंदिरा से चीन ने ये बात कहने की हिम्मत ही नही की। 
इंदिरा जी नही रहीं  राजीव का दौर आया और चीन का यही प्रस्ताव फिर आया जो ठुकरा दिया गया इस पर चीन ने नेफा में गतिविधियां बढ़ा दी। रोज उनका जमावड़ा सीमा पर आगे बढ़ कर भारत को पेट्रोलिंग से रोकता रहा जबकि समझौते के अनुसार सीमा पर दोनों पक्ष हैवी इक्विपमेंट्स और आर्टिलरी इस्तेमाल नही करते।
राजीव ने पूर्वी कमान के मेजर जनरल जिमी,सेनाध्यक्ष सुंदरजी ने कार्यवाही हेतु 1200 खच्चर मांगे जो नहीं दिए गए। 
बमों से भरकर रशियन हैवी लिफ्ट हेलीकाप्टर बंदूकें, फौजी राशन, फोर्टीफिकेशन सामान के साथ इंडियन आर्मी ने धावा बोल दिया तवांग से 90 किलोमीटर आगे उन पहाड़ियों पर जहां चीन हमे पेट्रोलिंग से रोकता था  मिशन साफ था उन पहाड़ियों पर कब्जा करना जो मैकमैहन लाइन के अनुसार हमारी थी। 
राजीव ने कहा - वी शैल टेक व्हाट वी क्लेम।
चीनी फ़ौज को इस स्टाइल की हिम्मत की उम्मीद नही थी। एकाएक बड़ा इलाका हाथ से निकल गया। बिना शहादत के भारत को जीत मिली।
चीन बौखलाया, कूटनीति गर्म होने लगी। चीनी नेताओं ने डिएस्केलेट करने को दबाव बनाया।
नेफा का नाम अरुणाचल प्रदेश रखकर भारत के पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
यह था सन 86 का ऑपरेशन फाल्कन।



राजीव गांधी की विदेश नीति की दुर्देशिता :-
। 4 नवंबर 1988 रात का समय

रात के 3 बजे, मालदीव के राष्ट्रपति ने इसरार की। थके हुए, मगर बेहद कृतज्ञ गयूम का सम्पर्क, सेटेलाइट फोन से राजीव से कराया गया। राजीव उस रात सोए नही थे मनों उन्हें इस कॉल का इंतजार था।  दिल्ली में राजीव से गयूम की मुलाकात तय थी मगर अपरिहार्य कारणों से उनका दौरा स्थगित हो गया था। इसकी खबर विरोधियों को नही थी। श्रीलंका में बैठे गयूम के विरोधी अरबपति ने सरकार पलटने की योजना बना रखी थी। श्रीलंकाई चीतों से डील सेट की गई थी कि गयूम दिल्ली में होते और विद्रोही माले में हमला कर दें। भाड़े के लड़ाके, हाईजैक किये शिप से माले उतरे। बहुत से इसके पहले ही, आम वेशभूषा में माले पहुँच गए थे।छोटा सा शहर- आप एयरपोर्ट, टेलीफोन एक्सचेंज, सेक्रेट्रीटीएट जैसी आधा दर्जन बिल्डिंग कब्जा कर लें, तो सत्ता आपकी हुई। भाड़े के विद्रोही कब्जा कर चुके थे और राष्ट्रपति को हिरासत में लेना जरूरी था जो पैलेस में नही थे कहीं छिप गए। वहीं से अमेरिका से मदद मांगी। मगर डिएगो गार्सिया से मदद आने में कुछ दिन लगती।  श्रीलंका और पाकिस्तान से मदद मांगी तो पाकिस्तान ने क्षमता न होने का बहाना किया, श्रीलंका चीतों से उलझना नही चाहता था, ब्रिटेन से मदद मांगने पर थ्रेचर ने सलाह दी कि भारत से मदद मांगो। उस समय राजीव कलकत्ता में थे रक्षा और विदेश मंत्रालय की संयुक्त बैठक रखी गयी राजीव सीधे एयरपोर्ट से वहीं पहुचें। आर्मी, नेवी व एयरफोर्स का एक संयुक्त ऑपरेशन तय किया गया नाम रखा गया ऑपरेशन कैक्टस।
कई योजना बनीं बिगड़ी, पैरा ट्रूपर्स उतारने की बात सोची गई, मगर माले इतना छोटा की था कि ज्यादातर सैनिक, समुद्र में गिर जाते। फिर एक डेयरिंग योजना बनी। शाम होते होते आगरा से हैवी एयरक्राफ्ट, फौजी, साजो सामान,जीपें लेकर प्लेन माले चला। और सीधे हुलहले एयरपोर्ट पर उतरा। घुप्प अंधेरे में ये लैंडिंग जानलेवा हो सकती थी। तुरन्त ही फौजी और जीपें बिखर गये। एयरपोर्ट थोड़े से सँघर्ष के बाद कब्जे में आ गया। इतने में और विमान उतर गए। कुछ ही घण्टो में माले में विद्रोहियों की लाशें बिखरी पड़ी थीं। खेल खत्म हो गया था। सेफ हाउस में छिपे गयूम से माले के भारतीय राजदूत मिले। बताया गया कि विद्रोह कुचल दिया गया है और वे सेफ हैं। भारत की सेना ने सिर्फ सोलह घण्टे में ऑपरेशन सफल कर दिया। इस त्वरित मदद से अभिभूत, थके हुए मगर बेहद कृतज्ञ गयूम ने भारतीय राजदूत से कहा - मैं प्रधानमंत्री राजीव से बात करना चाहता हूँ!इसके बाद, मालदीव एक स्ट्रेटजिक एसेट के रूप में भारत का ठिकाना बना। हिन्द महासागर में भारत को एक मजबूत ताकत बनाने में, वहां क्रिएट किया गया फौजी ठिकाना, हमे थाह देता रहा लगभग तीन दशक तक।

शमशेर भालू खान
                               जिगर चुरुवी
                             9587243963

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