पंचायत समिति सभागार जैसलमेर
मंत्री सालेह मोहम्मद साहब के भाई इलियास फकीर की शादी में भागू का गांव जैसलमेर जैसलमेर के साथी देरावर सिंह भाटी का सुबह -सुबह कॉल आया कि भाई साहब, जी सा (पिताजी) बात करना चाहते हैं।
भाटी साहब 80 के करीब उम्र के हो गए कम सुनता है पर आवाज धाकड़ ।
फोन पर आदेश हुआ कि आपको हमारी ढाणी आना है और मैने हां कह दी।
इसी बीच जैसलमेर के पीर पगारा के खलीफा फकीर परिवार के सदस्य मंत्री सालेह मोहम्मद जी छोटे भाई इलियास फकीर की शादी का पैगाम आ गया।
पिछली बार हमने राजस्थान का भ्रमण किया था परंतु बाड़मेर के बायतु तक ही जा पाये, जैसलमेर और बाड़मेर बाकी रहे इसलिए शादी और देरावर सिंह के यहां जाने के साथ ही मारवाड़ का दौरा भी साथियों से बात कर निश्चित हो गया।
8 जुलाई को जैसलमेर शहर में मीटिंग,
9 को बाड़मेर और भागू का गांव
10 को जोधपुर का दौरा तय हुआ।
हमारे साथी राजीव गांधी पैरा टीचर रहीम खान ने चूरू बीकानेर और बीकानेर से जैसलमेर का टिकट बना कर भेज दिया।
बीकानेर के लिये शाम 4:30 बजे ट्रेन चलती है जो शाम को 9:40 पर बीकानेर छोड़ देती है।
मेरा सफर का सब अच्छा काम यह है कि ट्रेन हो या बस जल्द नींद आ जाती है।
बीकानेर उतरने पर पुल पार करते वक्त कुछ साथियों ने पहचान लिया कि आप तो शमशेर भालू ख़ान जी हो। वो चाय पिलाने के लिये रेल्वे स्टेशन से बाहर ले कर जा ही रहे थे के पीछे से एक पुलिस के साथी ने कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा " शमशेर भालू ख़ान?"
मेने कहा जी मैं ही हूं।
सब इंस्पेक्टर रेंक पुलिस के साथी के सीने पर लगी नेमप्लेट पर लिखा था असलम खान।
मैने जेसे ही उनका परिचय पूछना चाहा इस से पहले उन्होंने कहा "मैं असलम खान दायमखानी गांव जसरासर,चूरू।
अरे वाह यह तो रिश्तेदार निकले। बाहर बारिश हो रही थी।
असलम खान साहब ने वेटिंग रूम में बैठा दिया और खाने के लिए फोन कर दिया।
खुद प्रधानमंत्री जी की के बीकानेर के दौरे के कारण बिजी थे।
11:35 पर जैसलमेर के लिये ट्रेन मालानी एक्सप्रेस प्लेटफार्म 06 पर खड़ी थी जिस की बर्थ s5 के 01 पर बैठा ही था कि कब आंख लग गई और जैसलमेर रेल्वे स्टेशन आ गया।
सुबह के 5 से कुछ ऊपर ही समय हुआ था।
जैसलमेर रेल्वे स्टेशन पूर्णतया अविकसित स्थान है यह सुना था आज देख भी लिया।
हालांकि नया स्टेशन भवन बन रहा है जिसे पूरा होने में करीब 2 साल कम से कम लगेंगे।
रेल्वे स्टेशन के पास ही एक चाय की थड़ी पर चाय पी इतने में रहीम खान आ गया और अपनी मोटर साइकिल पर बैठा कर होटल में बुक कमरे की तरफ चलने लगा।
में ने उनसे पूछा कि आपका घर कितनी दूर है तो बताया कि 14 किलोमीटर हमारी ढाणी है।
हम ढाणी चलेंगे मेरे शब्द सुनते ही वो बहुत खुश हुए और हम 20 मिनिट के सफर से गुल्लू खान की ढाणी पहुंच गये।
जैसलमेर की सब से खास बात यहां पर पर्यटकों का आना और पिला पत्थर है। रहीम के घर में उनके पिताजी बैठे थे।
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रहीम खान की ढाणी गुल्लू खान की ढाणी मेंआपसी बात चीत से पता चला कि वो पहले रेवड़ चराने का काम करते थे। आजादी के बाद अमीन (भूमि का नाप करने वाले) उनके जानकर थे और 100 बीघा भूमि उनके नाम कर गये। खेत में ट्यूब वेल बने हैं जहां सभी फसलें होती हैं खास तौर पर जीरा और ईसबगोल।
जीरे का भाव 2 माह पहले 29000 रूपये/क्विंटल था जो आज 56000 हो गया।
ईसबगोल भी 26000 रूपये क्विंटल बिका ।
आप पड़ोस के लोगो से मिलना हुआ।
इसके बाद हम जैसलमेर पंचायत समिति सभागार में रखी बैठक में पहुंचे और सभी साथियों से मिलकर बैठक शुरू की।
बैठक में राजीव गांधी पैराटीचर,शिक्षा कर्मी और मदरसा पैरा टीचर्स उपस्थित हुए।
भुर सिंह भाटी जिलाध्यक्ष जैसलमेर के घर
कुछ समय बाकी रहा तो गढ़ीसर तलाब और वार मेमोरियल देखने गये।
वार मेमोरियल में 1947 से 1999 तक के युद्ध और उनसे जुड़ी जानकारियां,तत्कालीन नेताओं की सूझ बूझ और समस्याओं पर पार पाने की कशिश आत्म विभोर कर देती हैं।
कमाल चनिया के घर भागू के गांव जैसलमेर यहां से भाई कमाल चानिया की ढाणी में पहुंचे, चंवरा काबिल ए तारीफ बनाया गया है।
जैसलमेर के लोग देखने में अनपढ़ और अविकसित लगते हैं पर यहां की महमन्नवाजी शानदार है, सभी घरों में चाहे अमीर हो या गरीब।
यहां की एक खासियत और है ओढावनी। आपके घर कोई आया है तो ओढावानी जरूर करेंगे। शॉल, पट्टू, साफा या चादर से।
हर जगह ओढ़वानी जरूर होती है। हर घर में आपको ड्राई फ्रूट्स परोसे जायेंगे,और बोतल बंद पानी के साथ महंगे जूस का चलन भी ज्यादा है। यह बहुत महंगा पड़ता है। घड़े का पानी यहां मुझे नसीब नही हुआ सिर्फ बोतल बंद पानी ही पीने को मिला।
कमाल भाई के यहां से चेलक गांव पहुंचे जो जैसलमेर जिलाध्यक्ष ज्ञान सिंह भाटी का गांव है।
राजपूती संस्कृति से ओतप्रोत स्वागत किया गया। लोग काफी संख्या में मिले जिन में पंचायत सहायक भी थे।
यहां से जोगीदास का गांव पहुंचे जो जैसलमेर से 125 किलोमीटर दूर है।
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ज्ञान सिंह भाटी जिलाध्यक्ष संयुक्त संघर्ष समिति के गांव चेलक जैसलमेर में
भाई देरावर सिंह ने पूरे गांव का खाना हमारे साथ बना रखा था। पहले सभा हुई आदर सत्कार हुआ बाद में सब बैठ कर आगामी कार्यों की रणनीति में व्यस्त हो गये। रात को वहीं सब सब के सोने की व्यवस्था थी।
सुबह जल्दी 7 बजे चलकर हम जोगिदास का से भूर सिंह भाटी जिला अध्यक्ष पंचायत सहायक संघ के गांव पहुंचे।
अब शिव होते हुये बाड़मेर लगभग 11 बजे पहुंच गये।
महावीर पार्क में सब से मिलना जुलना हुआ और बाड़मेर पंचायत समिति सभागार में हमारी बैठक शुरू हुई।
सभी का एक ही सवाल था कब तक? सब साथियों को वास्तविकता से रूबरू करवाया गया। पंचायत सहायक साथियों को संबोधित करते हुये साफ बता दिया कि अभी फाइल 1/3 ही निकल रही है। संभव है इसमें परिवर्तन हो पर विद्यार्थी मित्र का अनुभव जुड़े बगैर आपको निराशा हाथ लग सकती है।
साथियों से मिलकर हम भागू का गांव के लिये चल पड़े और लगभग 200 किलोमीटर का सफर कर शादी समारोह में पहुंचे।
पोकरण विधायक और अल्पसंख्यक मामलात मंत्री सालेह मोहम्मद साहब का रसूख देखने लायक था।
लगभग एक लाख से अधिक लोग शादी में आये जिनके लिये अलग अलग टेंट में अलग अलग खाना परोसा जा रहा था।
हर एक मेहमान को फकीर परिवार द्वारा ओढावनी की जा रही थी।
शादी का मंजर देखने लायक था, सभी टेंट में ac लगी हुई थी और शानदार सजावट।
यहां से फ्री हो कर चाणिया परिवार भागू के गांव पहुंचे और लोगों से मुलाकात की। इस गांव में चानिया परिवार और कलर परिवार की राजनीतिक अनबन है जो स्पष्ट झलकती है।
स्वर्ण नगरी जैसलमेर की खासियत
दही जमा देनें वाला
हाबूर पत्थर -
दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं... वहीं राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित इस गांव में जामन की जरूरत नहीं पड़ती है...यहां ऐसा पत्थर है जिसके संपर्क में आते ही दूध जम जाता है... इस पत्थर पर विदेशों में भी कई बार रिसर्च हो चुकी है...फॉरेनर यहां से ले जाते हैं इस पत्थर के बने बर्तन....।
स्वर्णनगरी जैसलमेर का पीला पत्थर विदेशों में अपनी पहचान बना चुका है... इसके साथ ही जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित हाबूर गांव का पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है..इसके चलते इसकी डिमांड निरंतर बनी हुई है...हाबूर का पत्थर दिखने में तो खूबसूरत है ही, साथ ही उसमें दही जमाने की भी खूबी है... इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है... इसी खूबी के चलते यह विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है..इस पत्थर से बने बर्तनों की भी डिमांड बढ़ गई है..।
कहा जाता है कि जैसलमेर पहले अथाह समुद्र हुआ करता था और कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए व पहाड़ों का निर्माण हुआ.. हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों की भरमार है.
जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है। साथ ही वैज्ञानिकों के लिए भी ये पत्थर शोध का विषय बन गया है... इस पत्थर से सजे दुकानों पर बर्तन व अन्य सामान पर्यटकों की खास पसंद होते हैं और जैसलमेर आने वाले वाले लाखों देसी विदेशी सैलानी इसको बड़े चाव से खरीद कर अपने साथ ले जाते हैं।
इस पत्थर में दही जमाने वाले सारे कैमिकल मौजूद है... विदेशों में हुए रिसर्च में ये पाया गया है कि इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं... ये कैमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं... इसलिए इस पत्थर से बने कटोरे में दूध डालकर छोड़ देने पर दही जम जाता है…. इन बर्तनों में जमा दही और उससे बनने वाली लस्सी के पयर्टक दीवाने हैं... अक्सर सैलानी हाबूर स्टोन के बने बर्तन खरीदने आते हैं... इन बर्तनों में बस दूध रखकर छोड़ दीजिए, सुबह तक शानदार दही तैयार हो जाता है, जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है... इस गांव में मिलने वाले इस स्टोन से बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाए जाते हैं... ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है.. इससे बनी मूर्तियां लोगों को खूब अट्रैक्ट करती हैं।
बाड़मेर रिफाइनरी और तेल का भंडार भंडार
यहां से लगभग 250 किलोमीटर बालोतरा के पाटोदी पंचायत समिति के गांव भाकरसर पहुंचे।
भाकरसर से पहले एक गांव आता है परेउ जहां रोड पर ही एक शिक्षा कर्मी की मेडिकल की दुकान है सरस्वती मेडिकल के नाम से। यहां हमारे साथ चलने के लिये बुधराम भील बैठे थे। हमने गाड़ी वहां रोकी लेकिन अफसोस इस बात का है कि इस शिक्षा कर्मी ने हम से यह तक नहीं पूछा कि भाई साहब पानी पी लीजिए।
हकीकत में बहुत बूरा लगा, केसे कैसे लोग इस संसार में बसते हैं, कोई जान देने को तैयार और कोई पानी तक की नहीं पूछ रहा।
हालांकि बारिश हो रही थी और रुकने का कोई इरादा भी नहीं था, पर औपचारिकता के नाते उनका फर्ज बनता था कि कम से कम चाय पानी के लिये पूछें।
खैर ऐसे बहुत सारे लोग हैं।
रात को काफी लोग आये पर मैं अपने तय कार्यक्रम के अनुसार 10 बजे से पहले सो गया और सुबह जल्दी उठकर तैयार।
8 बजे के करीब पाटोदी, कल्याणपुरा और आस पास के लोग आ गये जिनसे मिलकर जोधपुर के लिये बस में बैठ निकल पड़े।
11 बजे के करीब जोधपुर पहुंचे और आजम खां पठान प्रदेशाध्यक्ष मदरसा पैरा टीचर्स के नई सड़क स्थित मदरसे में मीटिंग की। मान सम्मान के बाद सभी साथियों से आपसी चर्चा की ओर आ गया संगरिया कॉलोनी स्थित दुर्गा वैष्णव के घर।
यहां से भांजे राशिद खान के पास बीजेएस कॉलोनी आ गया और शाम के खाने के बाद आजम के घर।
आजम ने ट्रेन का टिकिट करवा कर रुखसत किया और मारवाड़ का दौरा संपन्न हुआ।
शमशेर भालू ख़ान
जिगर चुरुवी