Wednesday, 23 April 2025

✅भारत - पाकिस्तान सिंधु समझौता एक तर्क

प्यासा मरेगा पाकिस्तान:-
पहलगाम आतंकवादी घटना के बाद प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में पाकिस्तान के विरुद्ध 5 महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं। यद्यपि इनका कानूनी अधिकार क्या है और पहलगाम आतंकवादी हमले में पाकिस्तान का हाथ हो इसके क्या सबूत हैं ? यह देश की जनता को नहीं पता, ऐसा संभव है कि सरकार के पास सारे तथ्य और सबूत हों। वैसे भी इस दर्दनाक आतंकवादी हमले को पाकिस्तान ने कराया हो इसको लेकर नकारा नहीं जा सकता।
इस मामले में मैं अपनी देश की सरकार के साथ हूं।
भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ जो त्वरित कार्रवाई की है उनमें सबसे महत्वपूर्ण है सिंधु नदी जल संधि का स्थगन। इन बातों का जनता पर प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि पाकिस्तान से आना जाना वैसे ही बंद है तो पाकिस्तानी दूतावास खुले या बंद रहे क्या फर्क पड़ता है? अटारी बार्डर खुले या बंद हो क्या फर्क पड़ता है ? सारे पाकिस्तानियों का विज़ा रद्द नहीं किया गया इससे क्या फर्क पड़ता है ? 
कोई फर्क नहीं पड़ता....बात सिंधु जल समझौते की - 
वर्ष 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल बंटवारे हेतु यह समझौता हुआ। जिसमें अहम बिंदु यह है कि कोई भी देश इसे इकतरफा रद्द नहीं कर सकता। इसीलिए भारत ने इस समझौते को रद्द नहीं निलंबित किया है।
सिन्धु नदी अथवा INDUS Rever एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है जो 3610 किमी लंबी है। यही वह नदी है जिसके किनारे बसे लोग सिंधु नदी के किनारे बसने के कारण "हिंदू" कहे गए और INDUS से देश का नाम INDIA हो गया। भारत में यह नदी लगभग 1000 किमी बहती है।
सिंधु नदी तिब्बत के कैलाश पर्वत में मानसरोवर झील के पास बोखर - चू ग्लेशियर से निकलती है और सिन - का - बाब जलधारा के रूप में उत्तर - पश्चिम दिशा में बहती हुई भारत के लद्दाख क्षेत्र में देमचोक स्थान पर प्रवेश करते हुए हिमालय की गहरी घाटियों से होकर बहती है।
लद्दाख में लेह के पास आकर यह ज़ांस्कर नदी में मिलती है। इस संगम में ज़ांस्कर की धारा सिंधु की मुख्य धारा को प्रभावित करती है। इसके बाद केरिस (लद्दाख) में सबसे बड़ी श्योक नदी इसमें आ मिलती है। इसके बाद भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के पास (गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में) गिलगित और हुंजा नामक सहायक नदियाँ सिंधु में मिलती हैं।
सतलज, रावी, ब्यास, सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों में से सिंधु और सतलज नदी चीन से आती हैं जबकि बाकी चार नदियां भारतीय क्षेत्र से निकलती हैं। सभी नदियों के साथ मिलते हुए विशाल सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है जिसका बहाव गिलगिट, पेशावर, रावलपिंडी और थट्टा तक है।
गंगा से बड़ी सिंधु नदी पर सबसे पहला नियंत्रण चीन का है। यह चीन में करीब 300 किमी बहकर भारत में काराकोरम और लद्दाख  क्षेत्र में पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बहती सिंधु नदी पर किसी एक देश का पुर्ण अधिकार नहीं है और चीन जब चाहे सिंधु नदी के जल को पूरी तरह भारत आने से रोक सकता है और वह इसके लिए बहुत पहले से कोशिश करना शुरू कर चुका है।
सतलज, रावी, ब्यास, सिंधु, चिनाब और झेलम जिन 6 नदियों के पानी से सिंधु नदी बनती है। उसे लेकर भारत और पाकिस्तान सिंधु नदी जल बंटवारे के तहत सतलज रावी और व्यास के पानी पर भारत का पुर्ण अधिकार है जिसका वह यथा संभव उपयोग करता आ रहा है। परन्तु सिन्धु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत 20% पानी ही उपयोग कर सकता है। शेष पाकिस्तान की ओर जाने देता है।
इन 6 नदियों के समूह से बना सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है। भारत के उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल का पूरा भाग इसमें समा सकता है। सोचिए पानी रोका गया बरसात में क्या हो सकता है?
दरअसल इस समझौते को तुरंत निलंबित करना अव्यवहारिक इसलिए है कि इन नदियों के बीच समुद्र है जिसके पानी को रोक पाना लगभग असंभव है। यह कोई गेट नहीं है कि ताला बंद कर दिया और नदियों का पानी पाकिस्तान जाना बंद हो गया और अगले दिन से ही पाकिस्तान प्यासा मरने लगा।
इसके लिए भारत को भाखड़ा नांगल बांध जैसे बीस बांध और सैकड़ों नहरें बनानी होंगी, जिसके लिए बहुत पैसे की जरूरत होगी। भारत की सरकारी कार्य पद्धति के अनुसार इसमें कम से कम 25 वर्ष लगेंगे, वह भी तब जब चीन कोई प्रतिक्रिया ना दे दे। अर्थात पहलगाम आतंकवादी हमले का बदला 25 वर्ष बाद सिंधु नदी के पानी को रोक कर लिया जाएगा। 
जैसा कि यह सरकार त्वरित फैसले लेती है, यदि पाकिस्तान जाने वाली इन सभी नदियों का पानी तुरंत रोक लिया तो क्या होगा ? 
रोका हुआ यह जल तमाम रिहायशी इलाकों में फैलेगा , इससे विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इस जमा पानी के कारण पर्यावरण नष्ट होगा जिसके कई ओर प्रभाव भी होंगे। पाकिस्तान प्यास से मरे ना मरे मगर बिना समुचित प्रबंध किए भारत ने पानी रोका तो उसका बहुत बड़ा हिस्सा डूबना तय है।
चीन से भारत में 10 नदियां आती हैं, 
1. सिंधु
2. ब्रह्मपुत्र
3. सतलज
4. काली
5. कर्णाली
6. कोसी
7. तिस्ता नदियां
सब जानते हैं कि चीन स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के साथ है और उसका भारी निवेश पाकिस्तान और विशेषकर POK में है जो आने वाले दिनों में इसे मुद्दा बनाते हुए मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
चीन का पाकिस्तान में प्रत्यक्ष निवेश करीब 68 अरब डॉलर का है जिसमें करीब 47 अरब डॉलर पाकिस्तान के ऊर्जा क्षेत्र में लगाए हैं और उसकी वहां 74% हिस्सेदारी है। जहां वह बांध बना रहा है, बिजली का उत्पादन कर रहा है।
चीन - पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के अंतर्गत कई जल विद्युत परियोजनाएं‌ संचालित हैं जो मुख्य रूप से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और खैबर पख्तूनख्वा जैसे जहां से झेलम, चिनाब और सिंधु नदी बहती है में स्थित हैं।
चीन पाकिस्तान में जल‌ विद्युत परियोजना के लिए जो बांध बना रहा है जिनमें - 
1. Pok में सिंधु नदी पर बन रहा दियामेर-भाशा बांध परियोजना (गिलगित - बाल्टिस्तान) की लगत $5.8 बिलियन है। जिसमें चीन की सरकारी कंपनी चाइना पावर और पाकिस्तानी सेना की कंपनी फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) शामिल हैं। इस परियोजना से 4500 मेगावाट जल विद्युत परियोजना भारत के तमाम विरोध के बावजूद जारी है।
2. नीलम - झेलम जलविद्युत परियोजना जो नीलम और झेलम नदियों पर मुजफ्फराबाद POK के पास बनी है। चीन की गार्गेज कॉरपोरेशन कंपनी इस परियोजना में शामिल है, जो 1,124 मेगावाट बिजली उत्पादन करती है।
3. दसू बांध (खैबर पख्तूनख्वा) परियोजना सिंधु नदी पर खैबर पख्तूनख्वा के कोहिस्तान जिले में है जो CPEC का हिस्सा है। यह परियोजना चाइनीज गेझोउबा ग्रुप ऑफ कंपनी (CGGC) द्वारा संचालित है जिसकी क्षमता 4,320 मेगावाट है, और यह पाकिस्तान की बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है।
ऐसे ही 7,100 मेगावाट गिलगित-बाल्टिस्तान में सिंधु नदी पर एक और प्रस्तावित जलविद्युत परियोजना, PoK में झेलम नदी के पास 1,124 मेगावाट की कोहाला जलविद्युत परियोजना भी हैं जो भारत से जाती सिंधु नदी जल पर निर्भर है जो पाकिस्तान से अधिक चीन को प्रभावित करती है तो चीन क्या करेगा ? हमारे प्रधानमंत्री को तो चीन का नाम लेने से डरता है और विदेश मंत्री स्वीकार कर चुके हैं कि चीन भारत से बड़ी अर्थव्यवस्था है इसलिए हम उससे नहीं लड़ सकते। 
सिंधु जल संधि रोकने पर चीन की POK स्थित परियोजनाएं प्रभावित होंगी। बदले में चीन भी अपने यहां से आने वाली 10 नदियों का पानी रोक सकता है और वह इसके लिए वह बहुत पहले से तैयारी कर चुका है। यहां तक कि चीन ने सिंधु की सहायक गलवान नदी के प्रवाह को लगभग रोक दिया है। कई पर्यावरण, समाजशास्त्री एवं अन्य संस्थाओं के अनुसार इसके अलावा, चीन सिंधु बेसिन में पन बिजली परियोजनाओं के लिए जल भंडारण शुरू कर दिया है और कुछ दिनों में वह अपने क्षेत्र से भारत में आने वाली सभी नदियों का पानी को रोक देगा जिससे पाकिस्तान में जारी उसकी जल‌ विद्युत परियोजनाओं की आपूर्ति बाधित ना हो‌।
एक हेडलाइन ब्रेक हुई, देश के समाचार पत्र और मीडिया चैनलों पर पाकिस्तान को प्यासा मारने की खबरें प्रसारित हुईं देश को मरहम लगा कि पाकिस्तान प्यासा मर जाएगा। खूब सारी रील बनी, मीम बने और वाह - वाह हुई।
पर देश के नागरिक को सोचना होगा, अभी से सोचना होगा, कहीं देर ना हो जाए....

स्त्रोत - विभिन्न समाचार पत्र एवं लेख
शमशेर भालू खां 
जिगर चुरूवी 
9587243963

Sunday, 20 April 2025

✅बलियाली हरियाणा की लाल सड़क

कहानी बलियाली - 
कहानी बलियाली (हिसार - हरयाणा) के दाना राँघड़ और उमदा राँघड़ की, जिन्होंने अंग्रेज़ डिप्टी कलेक्टर बेडर्नबर्न की कोर्ट रूम में गोली मारकर हत्या कर दी थी। 
यूँ तो देश की आज़ादी में मुस्लिम राजपूतों का अतुल्य योगदान रहा है। इसी कड़ी में आज हम बात करते हैं, हरयाणा हिसार के बलियाली गांव के मुस्लिम राजपूतों की। 
मई 1857 को उमदा राँघड़ और दाना राँघड़ ने बलियाली के मुस्लिम राजपूतों के साथ मिलकर हिसार की हाँसी तहसील पर हमला बोल दिया। हरयाणा में अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ उठने वाली सबसे मुखर आवाज़ मुस्लिम राजपूतों की थी। 
कहा जाता है कि हांसी की एक सड़क, राँघड़ रणबांकुरों ने अंग्रेजो के खिलाफ़ लड़ते हुए खून से लाल कर दी थी। जिसे आज भी लाल सड़क के नाम से जाना जाता है। 
तहसील कब्ज़ाने और अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ गदर करने के इलज़ाम में अंग्रेज़ी हुकूमत ने राँघड़ क्रांतिकारियों को काला पानी की सज़ा सुनाते हुए अंडमान भेज दिया। बलियाली गांव के जिन राँघड़ क्रांतिकारियो को सज़ा हुई उनके नाम इस प्रकार हैं। 
1. लम्बरदार बस्सू के पुत्र पीर बख्श राँघड़
2. सुक्कू (सक्कू) उर्फ लक्खू खान राँघड़, लंबरदार सराकू का पुत्र। 
3. सुन्दुल (चंदन) खान राँघड़ (1), लम्बरदार हमीद (हामिद) का पुत्र। 
4. मुखुन (मक्खन) उर्फ मुकीम खान राँघड़, लम्बरदार शुकरूल्लाह (शकरुल्लाह) का पुत्र
5. शहजाद खान राँघड़, लंबरदार धौंकल का पुत्र।
6. दुर्गाबी (दरघाबी) खान राँघड़, लंबरदार लाहरू का पुत्र
7. होशदार खान राँघड़, लम्बरदार रहेले खान के पुत्र।
8. चीना राजपूत, लम्बरदार ओड (उदली) का पुत्र,
9. रुस्तम राँघड़, लम्बरदार खैरू का पुत्र।
10. सुन्दुल (चंदन) खान राँघड़ (द्वितीय), लम्बरदार चीना का पुत्र।
स्त्रोत - Gallant Haryana 1857
शमशेर भालू खां 
जिगर चुरूवी 
9587243963

Monday, 14 April 2025

✅जलियांवाला बाग हत्याकांड

जलियांवाला बाग़ की कहानी -
भारत में  स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ी सरकार एनार्कीअल एंड रेवोल्यूशनरी क्राइम्स (रौलेट एक्ट) लेकर आई जो ब्रिटिश न्यायधीश सिडनी रौलेट के नाम पर जाना जाता है। यह कानून आज के UAPA कानून जैसा था जिसमें बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तारी की जा सकती थी।
इसके विरुद्ध पंजाब में और ख़ास कर अमृतसर में विरोध शुरू हुआ। गांधीजी ने 30 मार्च 1919 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा कर दी, जो तैयारी की कमी के कारण अगले रविवार 6 अप्रैल तक स्थगित कर दी गई। अमृतसर में कांग्रेस नेता एडवोकेट सैफुद्दीन किचलू और डाक्टर सत्यपाल के नेतृत्व में 30 मार्च को के दिन हड़ताल हो गई। अमृतसर के लोगों को छह अप्रैल की मीटिंग की सार्वजनिक रूप से कोई जानकारी नहीं दी गई। अंग्रेजों ने स्वामिभक्त रायबहादुरों को तलब कर किसी भी तरह की प्रदर्शन ना होने देने का आदेश दिया। 
05 अप्रैल के दिन सत्यपाल ने प्रस्तावित सभा स्थल में चल रहे क्रिकेट मैच को रुकवाने हेतु अपने घर में करीब दो सौ लोगों की सभा कर अगले दिन हड़ताल की घोषणा कर दी। हड़ताल की सूचना एक से दुसरे नागरिक तक पहुँचती गई और 06 अप्रैल को अमृतसर में शांतिपूर्ण हड़ताल शुरू हुई। सरकार ने एडवोकेट सैफुद्दीन किचलू और डाक्टर सत्यपाल पर सार्वजनिक सभाओं में भाषण देने पर रोक लगा दी। 
09 अप्रैल को रामनवमी के दिन के जुलूस के माध्यम से लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध एकता प्रदर्शित करने की ठानी। जुलूस में  डाक्टर हाफ़िज़ मोहम्मद बशीर घोड़े पर आगे चल रहे थे और मुस्लिम युवक तुर्की की सैनिक वेशभूषा में संगीत बजाते हुए पीछे चल रहे थे। कांग्रेस खिलाफत आन्दोलन का समर्थन कर रही थी। यह जुलूस जब कटरा आहलूवालिया से गुज़रा तो वहाँ इलाहबाद बैंक की बालकनी पर डिप्टी कमिश्नर माइल्स इरविन खड़े थे, को युवकों का बैंड सलामी देते हुए आगे बढ़ गया। इरविन यह दृश्य देख बुरी तरह डर गया।
10 अप्रैल को डीसी ने समन भेज कर एडवोकेट सैफुद्दीन किचलू और डाक्टर सत्यपाल को बंगले पर बुलाया जहां तत्कालीन एसपी पहले से मौजूद था। दोनों को वहीं गिरफ्तार कर अमृतसर से दूर धर्मशाला (पहले पंजाब अब हिमाचल प्रदेश) की जेल में भेज दिया गया। हंसराज और जयराम सिंह (किचलू के साथी) जो डीसी के घर उनके साथ गये थे ने उनकी गिरफ्तारी की खबर पूरे शह में फैला दी।
एडवोकेट किचलू और डाक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी के खिलाफ लोग जमा होने लगे। उस समय सभी धर्म के लोग पगड़ी बांधते थे पर उस दिन विरोध और शोक व्यक्त करने हेतु किसी ने पगड़ी और जूते नहीं पहने। हजारों लोग भंडारी पुल (तब का रेलवे ब्रिज) पर जमा होने लगे। उस समय वहाँ से कई ब्रिटिश अधिकारी गुज़रे जिनमें नार्मल स्कूल की टीचर इंजिनियर जारमन भी थे। भीड़ ने उन्हें कुछ नहीं कहा। भीड़ डीसी के आफिस जाकर एक ज्ञापन देना चाहती थी कि हमारे नेताओं को रिहा किया जाए | पुलिस और जनता के बीच मध्यस्थता का काम दो लोग गुरुदयाल सिंह सलारिया और मकबूल महमूद कर रहे थे। लेकिन पुलिस ने भीड़ पर गोली चला दी, मकबूल महमूद के पाँव में गोली लगी।  सरकारी रिकार्ड के अनुसार इस गोलीबारी में तीस घायल एवं दस व्यक्ति मारे गए। सभी लोगों के सीने में गोली लगी थी। कोई भी पीठ दिखा कर नहीं भागा सबने सीने पर गोली खाई।
दस अप्रैल को इस घटना के विरुद्ध इकट्ठे हुए लोगों ने दो बैंकों को आग लगा दी। एक सरकारी गोदाम और एक छोटे रेलवे स्टेशन भक्तांवाली को भी आग लगा दी गई। एक ब्रिटिश लेडी टीचर मिस शेरवुड की पिटाई कर दी है। इसके बाद क्रोधित भीड़ ने एक ब्रिटिश बैंक मेनेजर और एक अन्य रेलवे स्टेशन मास्टर की हत्या कर दी गई।
घायल और मारे गए सभी लोगों की लाशें पास ही की जामा मस्जिद में रखी गई जो धार्मिक एकता की भावना का प्रतीक बना। पुलिस ने अगले दिन कब्रिस्तान और श्मशान तक शवों के पीछे जुलूस निकालने पर पाबन्दी लगा दी, बावजूद इसके शहीदों के पीछे बड़ी तादाद में लोग शामिल हुए और जनाजे व अर्थियों पर फूल बरसाए।
उस समय पंजाब का प्रशासनिक मुख्यालय लाहौर था, ज हाँ का लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर था | डीसी ने उसे खबर भेजी कि यहाँ निकट भविष्य में कोई बड़ी बगावत हो सकती है। इस संभावित बगावत को रोकने के लिए जालंधर से ब्रिगेडियर जनरल डायर ग्यारह अप्रैल को अपनी टुकड़ी को लेकर अमृतसर आ गया और रेलवे स्टेशन पर ही कैम्प लगा लिया।
बारह अप्रैल को जनरल डायर ने जनता को डराने के लिए सिपाहियों के साथ फ्लैग मार्च किया। सुलतानविंड गेट के पास एकत्रित ग्रामीणों ने फ्लैग मार्च की खिल्ली उड़ाई और सैनिकों की तरफ नफ़रत से थूकना शुरू कर दिया। जनरल डायर ने रात का कर्फ्यू लगाकर सभा करने पर रोक लगा दी।
तेरह अप्रैल को जनरल डायर ने पूरे शहर में मुनादी करवा दी कि कोई भी सभा ना की जाए।
कांग्रेस नेता चौधरी बुग्गामल और आर्य समाजी महाशय रतनचंद रत्तो ने तेरह अप्रैल को बैठक का एलान कर दिया। शहर के बल्लो हलवाई ने अपनी दूकान से एक पीपा उठाया और शहर में घूम - घूम कर जलियांवाला बाग़ में शाम को चार बजे बैठक की मुनादी करना शुरू कर दी।
चार बजे शहर के लोग जलियाँवाला बाग़ में जमा होने लगे। बैसाखी होने के कारण मेले में आये हुए लोग भी वहाँ पहुंच गए जिनमें बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल थे | जनरल डायर ने सैनिकों को मुख्य चौराहों पर तैनात की और एक टुकड़ी लेकर जलियाँवाला बाग़ पहुंचा। बाग़ में आने और जाने का एक ही रास्ता था जिसे रोकने हेतु सिपाही तैनात कर खुद मशीन गन और बाकी सैनिकों को लेकर बाग़ के प्रवेश द्वार के पास खड़ा हो कर डायर ने मशीनगन से भीड़ पर बिना किसी चेतावनी के फायरिंग शुरू कर दी।
लोग बचने के लिए एक कुँए में कूदने लगे। कुआं भी लाशों से भर गया | दीवारों पर चढ़ कर बचने की कोशिश करने वालों की तरफ मशीनगन घुमा कर फायरिंग की गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 379 लोग इस गोलीकांड में शहीद हुए। कांग्रेस के अनुसार एक हजार लोग मारे गए।
इस घटना के बाद गांधीजी ने घोषणा की कि अब अंग्रेज़ी राज एक पाप बन गया है जिसे उखाड़ना ही एक मात्र विकल्प है। देश में जलियाँवाला बाग़ की मिट्टी लोग भर कर ले गये | इस मिट्टी की कसम खाकर भविष्य के कई स्वतन्त्रता सेनानी और शहीद बने जिनमें भगत सिंह एवं ऊधम सिंह का नाम प्रमुख है |
ऊधम सिंह ने इंग्लैण्ड जाकर फायरिंग का आदेश देने वाले लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर को गोली मारकर जान ले ली।
गिरफ्तार होने के बाद ऊधम सिंह ने अपना नाम बताया था राम मोहम्मद सिंह आज़ाद जो सभी भारतीयों को एकता का
सन्देश देने के लिए उन्होंने रखा था।
भगत सिंह जी की कहानी आगे के ब्लॉग में।
स्रोत - 
1.परमिंदर सिंह पूर्व प्राध्यापक गुरु नानक देव पंजाब विश्वविद्यालय से वार्ता अनुसार।
2. विभिन्न पत्रिकाएं 
शमशेर भालू खां 
जिगर चुरूवी 
9587243963

Sunday, 13 April 2025

✅झज्जर के शहीद

1857 की क्रांति में झज्जर के शहीद - 
         झज्जर का युद्ध स्थल 
झज्जर की स्थापना - 
झज्जर की स्थापना छज्जु नामक किसान ने की जिसके कारण पहले इसका नाम छज्जु नगर था, बाद में यहां की मशहूर (झझरी) सुराही के कारण इसका नाम झज्जर पड़ा।
झज्जर का इतिहास - 
झज्जर के दो मुख्य शहर बहादुरगढ़ और बेरी है। बहादुरगढ़ की स्थापना राठी जाटों ने की थी। पहले बहादुरगढ़ को सर्राफाबाद के नाम से जाना जाता था। पिछले दिनों बहादुरगढ़ का तेजी से औद्योगिकरण हुआ है। बेरी इसका दूसरा मुख्य शहर है। यहां भीमेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। इस मन्दिर में पूजा करने के लिए देश-विदेश से पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं। मन्दिरों के अलावा पर्यटक यहां पर भिंडावास पक्षी अभ्यारण भी है।
झज्जर का गुरुकुल संग्रहालय - 
यह हरियाणा के सबसे बड़े संग्रहालय का निर्माण 1959 ई.में स्वामी ओमानंद सरस्वती ने किया था।
इसमें विश्व की प्राचीन वस्तुएं संग्रहित की हैं जो झज्जर की प्रसिद्धि का एक कारण है। देश-विदेश के शोधार्थी यहाँ आते रहते हैं जो यहां पर रोम, यूनान, गुप्त, पाल, चोल, गुजर, प्रतिहार, चौहान, खिलजी, तुगलक, लेड़ही और बहमनी वंश के सिक्के व कलाकृतियां देख सकते हैं। इसके अलावा यहां पर नेपाल, भूटान, श्रीलंका, चीन, पाकिस्तान, जापान, थाईलैंड, बर्मा, रूस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और इंग्लैंड आदि देशों की मुद्राएँ भी देखी जा सकती हैं। जेल के संस्मरण, विदेश-यात्रायें, संग्रहालय की स्थापना और उसमें एकत्रित दुर्लभ वस्तुओं का विवरण, हरियाणा बनाने में झज्जर का योगदान, आमरण अनशन, हिन्दी आंदोलन, अस्त्र-शस्त्रों का बीमा, हिन्दू-मुस्लिम मारकाट के संस्मरण, महाभारत काल के अस्त्र-शस्त्र, 1947 के 1000 कारतूस, दिव्य अस्त्रों का जखीरा, हाथी दांत पर कशीदाकशी से शकुंतला की आकृति, चन्दन की जड़ में सर्प, चित्तौड़गढ़ का विजय स्तंभ, बादाम में हनुमान, झज्जर के नवाब फारुख्शयार का कलमदान और मोहर, नवाबों की चौपड़, गोटियां और पासे, माप-तोल के बाट और जरीब आदि गुरुकुल की धरोहर हैं।
बुआ का गुम्बद व तालाब - 
झज्‍जर में स्थित बुआ का गुम्बद व तालाब बहुत खूबसूरत है जिसका निर्माण मुस्तफा कलोल की बेटी बुआ ने अपने प्रेमी की याद में करवाया। वह दोनों इसी तालाब के पास मिलते थे।
झज्जर के नवाब - 
झज्जर के नवाब अब्दुल रहमान खान
1857 की क्रांति के समय झज्जर हरियाणा की सबसे बड़ी रियासत थी जिसके नवाब अब्दुर्र रहमान खान थे। 11 मई को दिल्ली में बहादुर शाह जफर का शासन स्थापित होने के बाद उन्होंने वहां से अंग्रेज अधिकारियों यहां से भगा दिया था।
इस दौरान जान मैटकाफ व किचनर अपने परिवार सहित शरण लेने झज्जर पहुंचे। नवाब ने उन्हें शरण देने से मना कर दिया।
इस कारण से उन्हें रात में ही भागना पड़ा। इसके बाद नवाब व इस क्षेत्र की जनता ने खुली बगावत कर रोहतक व दिल्ली के विद्रोह में हिस्सेदारी की। नवाब ने रोहतक के डिप्टी कमिश्नर को शरण व सहायता नहीं दी। 23 मई को नवाब ने 300 घुड़सवार व पैदल सैनिक दिल्ली में मुगल बादशाह के पास भेज दिए। उसने दिल्ली में शासन को पांच लाख रुपये देने का वायदा भी किया। इस तरह नवाब अपनी जनता के साथ अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत था। इस कारण दिल्ली जीतने के बाद अंग्रेजों ने यह क्षेत्र भी अपने कब्जे में ले लिया।

1857 का युद्ध - 
ये कब्रिस्तान हरियाणा की झज्जर रियासत के उन बीस सैनिकों का है जिनको 15 अक्टूबर 1857 को गुडियानी गाँव में अंग्रेज़ो द्वारा गोली मारकर शहीद कर दिया गया था। अंग्रेजों के दिल्ली पर कब्ज़े के बाद झज्जर नवाब को पकड़ने के लिए ब्रिगेडियर शॉवर को भेजा गया था। लेकिन वो गुड़गांव, रिवाड़ी, जटुसाना, गुडियानी, चरखी दादरी, छुच्छकवास और फिर झज्जर होते वहां पहुंचा।  ब्रिगेडियर शॉवर को लग रहा था की अगर वह सीधे दिल्ली से झज्जर गया तो लड़ाई बहुत जबरदस्त होगी। क्योंकि उस समय झज्जर छावनी में झज्जर रियासत की एक तैयार सेना थी। इस ब्रिटिश टुकड़ी ने दादरी जाते समय झज्जर नवाब के 20 घुड़सवारों को से गोली मार दी। लेकिन झज्जर के आखिरी नवाब ने अभी तक अंग्रेजों से लड़ने का फैसला नहीं किया था, यहां तक ​​कि दिल्ली रिज पर भी। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों की मदद के लिए 23 मई 1857 में केवल 300 घुड़सवार सेना दिल्ली भेजी। 
20 सितंबर 1857 को दिल्ली पतन के बाद स्थितियां बदल गईं। 4 अक्टूबर को कैप्टन हडसन ने झज्जर पर आक्रमण कर दिया। 13 दिन चले युद्ध के बाद भी हडसन सफल नहीं हुआ तो 17 अक्टूबर को लारेंस की सेना भी आ गई। 18 अक्टूबर को हडसन व लारेंस ने नवाब को छुकछुकवास में वार्ता के लिए बुलाया और बंदी बना लिया। इसके बाद झज्जर, छुकछुकवास, कोनौड़ (वर्तमान में महेंद्रगढ़) में अंग्रेजों ने लूटपाट की। उन्हें यहां 21 तोपें, सोने की मोहरों के पांच थैले (तत्कालीन मूल्य 1,39,000 रुपये) व विभिन्न दस्तावेज मिले। जिनको नवाब के खिलाफ मुकदमे का आधार बनाया गया। 26 नवंबर को उनके विरुद्ध आरोप पत्र बना कर लालकिले में उसी अदालत के सामने पेश किया, जिसमें बहादुर शाह जफर का मुकदमा चला था। आठ से 14 दिसंबर तक प्रतिदिन मुकदमे की औपचारिकता की गई। नवाब की चार बेगमों व परिवार को आवास से बेदखल कर दिया गया। महिलाओं को छोड़कर नवाब परिवार के 11 पुरुषों को तोप से बांधकर उड़ा दिया गया। झज्जर रियासत को समाप्त कर इसे रोहतक का हिस्सा बना दिया गया।
एक छोटी सी पहाड़ी के पास गुड़ियानी गांव में झज्जर सैनिकों की याद में 1990 के आसपास एक शिलालेख बनाया गया था।
स्त्रोत - विभिन्न पत्रिकाएं एवं लेख

शमशेर भालू खां 
#जिगर चुरूवी 
9587243.63