Thursday, 30 March 2023

राजस्थान

साजन आया रे सखी काई मनवार करां
थाल भरां गज मोतियां ऊपर नैण धरां 

ओतो सुरगां न सरमावे
इं पर देव रमण न आवे
इं रो जस नर नारी गावे
धरती धोरा री 
माय सपूतां री 


राजस्थान परिचय,इतिहास एवम् भूगोल :-
    रेतीले धोरों का मनोहारी दृश्य

           राजस्थान स्थापत्य
राजस्थान के नगर और उनके प्राचीन नाम

   वर्तमान राजस्थान का मानचित्र 


राजस्थान की सीमा 
अंतर्राष्ट्रीय सीमा 1070
अंतर्राजिये सीमा 4850
कुल सीमा 5920 किमी

राजस्थान की अंतर्राज्यीय सीमा-
1 पंजाब दो जिले हनुमानगढ़,गंगानगर व पंजाब के फाजिल्का, मुक्तसर 89 किमी
2 हरियाणा हनुमानगढ़, चूरू,झुंझुनूं,जयपुर,अलवर 1262
3 उत्तर प्रदेश भरतपुर,धौलपुर 877 
4 मध्य प्रदेश झालावाड़,भीलवाड़ा,कोटा,चित्तौड़गढ़,प्रतापगढ़,बांसवाड़ा, 1600
5गुजरात बांसवाड़ा,डूंगरपुर,सिरोही,जालौर,सांचौर,बाड़मेर,उदयपुर 1022 किमी
से 5 राज्यों से कुल 4850 किलोमीटर है।
 
अंतर्राष्ट्रीय सीमा :- 
राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा हिन्दुमल कोट (गंगानगर) से शाहगढ़ (बाड़मेर) तक 1070 किलोमीटर लंबी है। राजस्थान के जिले (उत्तर से दक्षिण की ओर) अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित 
1 श्रीगंगानगर से 210
2 बीकानेर से 168 
3 जैसलमेर से 464
4 बाड़मेर से 228  
किलोमीटर लगती है।

राजस्थान का इतिहास
राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषाणकाल से प्रारम्भ होता है। आज से करीब तीस लाख वर्ष पहले राजस्थान में मनुष्य मुख्यतः बनास नदी के किनारे या अरावली के उस पार की नदियों के किनारे आकर बसा। 
आदिम मनुष्य भोजन की तलाश में हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते थे। 
इनके हथियार/औजार पत्थर के थे जिनके कुछ नमूने बैराठ,रैध और  भानगढ़ के आसपास पाए गए हैं।
अतिप्राचीनकाल में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान आज के जैसा बीहड़  मरुस्थल नहीं था जैसा आज है। सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहा यहां बहा करती थीं। इन नदी घाटियों में हड़प्पा (ग्रे-वैयर) और रंगमहल जैसी संस्कृतियां फली-फूलीं।  पुरातत्ववेताओं द्वारा की गई खुदाइयों से कालीबंगा के पास पांच हजार साल पुरानी विकसित नगर सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा,ग्रे-वेयर और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों किलोमीटर दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली हुई थीं।
इसके प्रमाण मौजूद हैं कि ईसा पूर्व चौथी सदी और उसके पहले यह क्षेत्र कई छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था। इनमें से दो गणराज्य मालवा और शिवी बहुत शक्तिशाली थे। शिवी रियासत के भीलों ने विश्वविजेता सिकंदर को पंजाब से सिंध की ओर लौटने के लिए बाध्य कर दिया। उस समय उत्तरी बीकानेर क्षेत्र पर एक गणराज्यीय योद्धा कबीले यौधेयत का अधिकार था।
महाभारत काल में मत्स्य पूर्वी राजस्थान और जयपुर के एक बड़े हिस्से पर शासन करते थे जिनकी राजधानी  जयपुर से 80 किमी उत्तर में बैराठ (विराटनगर) थी। 
सम्राट अशोक महान के दो शिलालेखों और चौथी पांचवी सदी के बौद्ध मठ के भग्नावशेषों से चलता है कि भरतपुर, धौलपुर और करौली उस समय सूरसेन जनपद के अंश थे जिसकी राजधानी मथुरा थी।भरतपुर के नोह (नूह) नामक स्थान पर खुदाई से उत्तर-मौर्यकालीन मूर्तियां और बर्तन मिले हैं। 
शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कुषाण काल तथा कुषाणोत्तर काल में तीसरी सदी में उत्तरी एवं मध्यवर्ती राजस्थान समृद्ध क्षेत्र था। 
कालांतर में राजस्थान के प्राचीन गणराज्यों ने स्वयं को पुनर्स्थापित किया और मालवा गणराज्य का भाग बने। मालवा गणराज्य हूणों  के आक्रमण के पहले एक स्वायत्त व समृद्ध राज्य था। 
छठी सदी में तोरामण के नेतृत्व में हूणों ने इस क्षेत्र में काफी लूट-पाट की और मालवा पर अधिकार जमा लिया। बाद में यशोधर्मन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण पूर्वी राजस्थान पर गुप्तवंश का प्रभुत्व जमाया। 
सातवीं सदी में पुराने गणराज्य स्वतंत्र राज्यों के रूप मे स्थापित होने लगे।
2500 ईसा पूर्व से पहले राजस्थान में मानव बसा जिसने उत्तरी राजस्थान में सिंधु घाटी सभ्यता की नींव रखी। प्राचीन समय में राजपूताना पर आदिवासी कबीलों का शासन था।
भील और मीना जनजाति इस क्षेत्र में रहने के लिए सबसे पहले आए।

राजस्थान में प्राचीन सभ्यताओं के केन्द्र -
1 कालीबंगा (हनुमानगढ)
2 रंगमहल (हनुमानगढ)
3 आहड (उदयपुर)
4 बालाथल (उदयपुर)
5 गणेश्वर (सीकर)
6 बागोर (भीलवाडा)
7 बरोर(अनूपगढ़)
पुरातात्विक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि लगभग 100,000 साल पहले प्रारंभिक मानव बनास नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे रहते थे। 
सिंधु घाटी (हड़प्पा) और इसके बाद की सभ्यताएँ (तीसरी-दूसरी सहस्राब्दी ईपू) का पता लगाया जा सकता है। उत्तरी राजस्थान में कालीबंगा,साथ ही आहड़ और गिलुंड (उदयपुर) सभ्यताएं विद्यमान थीं। कालीबंगा में मिले मिट्टी के बर्तनों के अवशेष 2700 ईसा पूर्व के हैं 
बैराठ (उत्तर-मध्य राजस्थान) में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दो शिलालेखों से संकेत मिलते हैं कि यह क्षेत्र उस समय भारत के मौर्य वंश के अंतिम महान सम्राट अशोक के शासन के अधीन था।
वर्तमान राजस्थान के पूरे या कुछ हिस्सों पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बैक्ट्रियन (इंडो-ग्रीक) राजाओं का शासन रहा। शक,क्षत्रप (स्किथियन) दूसरी से चौथी शताब्दी ईस्वी तक गुप्त राजवंश का, चौथी शताब्दी की शुरुआत से 6वीं शताब्दी में हेफथलाइट्स (हूण) और 7वीं तक राजपूत शासक हर्षवर्धन का शासन रहा।
7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच राजपूत राजवंशों का उदय हुआ जिसमें गुर्जर-प्रतिहार वंश भी शामिल थे जिन्होंने सिंध क्षेत्र (अब दक्षिण-पूर्वी  पाकिस्तान) को अरब आक्रमणकारियों से बचाए रखा।
अंतर्गत भोज (मिहिर भोज) (836 - 885) गुर्जर-प्रतिहारों का क्षेत्र हिमालय की तलहटी से दक्षिण की ओर नर्मदा नदी तक और गंगा नदी घाटी से पश्चिम की ओर सिंध तक फैला हुआ था।10वीं शताब्दी के अंत तक इस साम्राज्य का विघटन हो गया और राजस्थान में कई प्रतिद्वंद्वी राजपूत वंश सत्ता में आए। 
गुहिल,प्रतिहार के सामंतों ने 940 में स्वतंत्रता का दावा किया और मेवाड़ (उदयपुर) क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित किया।
11वीं सदी तक चौहान  (चाहुमान) वंश जिनकी राजधानी अजमेर और बाद में दिल्ली थी पूर्वी क्षेत्र में प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा।
कछवाह (कच्छावा,कुशवाहा) भट्टियों (भाटी) और राठौरों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किए।
सन 1192 में दिल्ली के पास लड़ी गई तरावड़ी (तराइन) की लड़ाइ ने राजस्थान के इतिहास में एक नए दौर की शुरुआत की।
पृथ्वीराज तृतीय के अधीन एक राजपूत सेना पर मुहम्मद गोरी की जीत ने गंगा के मैदान से राजपूत शक्ति का विनाश कर उत्तरी भारत में सल्तनत साम्राज्य की स्थापना की नीव रखी।
मोहम्मद गौरी की सेना ने अरब आक्रमणकारियों को काठियावाड़ प्रायद्वीप (सौराष्ट्र, गुजरात) के पारंपरिक मार्गों के साथ दक्षिण और फिर पश्चिम की ओर धकेल दिया)। 
अब राजस्थान के राजपूत राज्यों को घेर लिया गया और चार शताब्दियों में इस क्षेत्र के राजपूत राज्यों को अधीन करने के लिए दिल्ली दरबार द्वारा बार-बार प्रयास किए गए परंतु असफल रहे। राजपूत अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपराओं के बावजूद कभी अपने विरोधियों पर निर्णायक जीत के लिए एकजुट नहीं हो पाए।
16वीं शताब्दी के प्रारंभ में राजपूत शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच चुकी थी। मेवाड़ के राणा सांगा (संग्राम सिंह) की बाबर से भीषण युद्ध में हार हुई। 
राजपूत राजनीति का संक्षिप्त वैभव तेजी से कम होता गया। 

मुगल काल और राजस्थान :-
मुगल बादशाह अकबर ने राजस्थान को एकीकृत प्रांत राजपूताना बनाया। सन 1707 के बाद मुगल शक्ति के पतन की शुरुआत के साथ ही  राजस्थान का विघटन शुरू हो गया और मराठों ने राजस्थान में प्रवेश किया।
16वीं सदी के अंत में मुगल बादशाह अकबर कूटनीति और सैन्य कार्रवाई के माध्यम से राज्य हासिल करने में सक्षम था जो उसके पूर्ववर्ती बादशाह बल द्वारा हासिल करने में असमर्थ रहे थे। 
सन 1567 - 68 में एक और मुगल सेना द्वारा रणथंभौर व चित्तौड़गढ़ पर सैन्य अभियान चलाए जा रहे थे, दूसरी ओर सुलह ए कुल की नीति के अंतर्गत अकबर ने कई राजपूत शासकों के साथ विवाह संबंधों के माध्यम से गठबंधन किया। जहाँगीर (1605-27) साथ ही जहाँगीर के तीसरे बेटे शाहजहाँ (1628-58) दोनों राजपूत माताओं के पुत्र थे। मुगल-राजपूत विवाह 18वीं शताब्दी की शुरुआत तक जारी रहे। 
कुछ राजपूत शासकों जैसे अंबर (आमेर,जयपुर ) के मानसिंह और मारवाड़ (जोधपुर) के जसवंत सिंह ने मुगल साम्राज्य की वफादारी से सेवा की। 
अकबर ने अधीन राजपूत राज्यों को मुगल साम्राज्य की एक प्रशासनिक इकाई अजमेर सूबे के अंतर्गत एक साथ रखा।
सन 1707 में बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद भरतपुर के राजपूत राज्य को जाट वंश के महाराजा सूरजमल ने जीत लिया। 
सन1803 तक आसपास के अधिकांश राज्यों पर पश्चिम-मध्य भारत के मराठा राजवंश ने अधिकार कर लिया। 19वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने मराठों को अपने अधीन कर लिया और इस क्षेत्र में सर्वोच्चता स्थापित कर राजपूत राज्यों को राजपूताना प्रांत के रूप में संगठित किया। 

राजस्थान ब्रिटिश काल में :-
राजस्थान इतिहास के जनक कर्नल जेम्स टॉड कहे जाते है। वे 1818 से 1821 के मध्य मेवाड़ (उदयपुर) के पोलिटिकल एजेन्ट थे।
टॉड ने घोड़े पर धूम-धूम कर राजस्थान के इतिहास को लिखा। 
अतः कर्नल टाॅड को घोड़े वाले बाबा भी कहा जाता है।
राजपुताना में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व गवर्नर जनरल के प्रतिनिधि के रूप में राजनीतिक अधिकारी आयुक्त नियुक्त किया गया।
यह अधिकारी अजमेर- मेरवाड़ा ब्रिटिश प्रांत का पदेन मुख्य आयुक्त भी होता था जिसके अधीन अन्य राजनेतिक प्रतिनिधि होते थे।
राजस्थान में ब्रिटिश सत्ता का विरोध ज्यादातर आदिवासियों और राजपूतो ने किया जिनमें भील जनजाति प्रमुख रूप से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़ी हुई । भीलों को नियंत्रण में लाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने भील सरदार वसावा,मराठा प्रमुख और राजपूत प्रमुख के साथ समझौता किया कि भील और राजपूत बिना किसी रोक के खेती कर सकेंगे।

1947 के बाद भारत के प्रांत
राजस्थान विलय के चरण 
प्रथम चरण :-
मत्स्य प्रदेश (18 मार्च 1948) :-
मत्स्य प्रदेश अलवर भरतपुर, धौलपुर,करौली के इलाके को एक कर धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयभान सिंह को राज प्रमुख मनाया गया। मत्स्य प्रदेश की राजधानी अलवर रखी गई। 
83 लाख रुपए वार्षिक आय वाले मत्स्य संघ राज्य का क्षेत्रफल लगभग 30 हजार किमी और जनसंख्या तकरीबन 19 लाख थी। मत्स्य संघ के विलय-पत्र में यह बात पहले से ही दर्ज कर दी गई कि इस संघ का प्रस्तावित राजस्थान संघ में विलय कर दिया जावेगा।

द्वितीय चरण (25 मार्च 1948) :-
स्वतंत्र देशी रियासतों कोटा, बूंदी, झालावाड, टौंक,डूंगरपुर,बांसवाडा, प्रतापगढ,किशनगढ और शाहपुरा को मिलाकर 25/03/1948 बने राजस्थान संघ बना। 
इसका राजप्रमुख सब से बड़ी रियासत कोटा के राजा महाराव भीमसिंह को बनाया गया। बूंदी के राजा महाराव बहादुर सिंह राजप्रमुख भीमसिंह के बड़े भाई थे को छोटे भाई की राजप्रमुखता में काम करने से आपत्ति थी। परंतु कोटा का बड़ी रियासत होना भारत सरकार की विवशता थी। 

तीसरा चरण (18 अप्रैल 1948) :-
बूंदी के महाराव बहादुर सिंह ने अपने छोटे भाई महाराव भीमसिंह की राजप्रमुखता को समाप्त करने के लिए उदयपुर रियासत को राजस्थान संघ में विलय के लिए राजी कर लिया गया। 
वो चाहते थे कि बड़ी रियासत होने के कारण उदयपुर के महाराणा को राजप्रमुख बनाया जाये।
18 अप्रेल 1948 को राजस्थान के एकीकरण के तीसरे चरण में उदयपुर रियासत का राजस्थान संघ में विलय कर नया नाम संयुक्त राजस्थान संघ दिया गया। 
माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में बने मंत्रिमंडल का राजप्रमूख उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह को बनाया गया।
कोटा के महाराव भीमसिंह को वरिष्ठ उप राजप्रमुख बनाया गया।

चौथा चरण (30 मार्च 1949) :-
संयुक्त राजस्थान संघ के निर्माण के बाद भारत सरकार ने अपना ध्यान देशी रियासतों जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर चारों रियासतों का विलय कर वृहत्तर राजस्थान संघ का निर्माण किया।
इस संघ का उद्घाटन रियासत एकीकरण प्रभारी एवं केंद्रीय गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया। 
बीकानेर रियासत ने सर्वप्रथम भारत में विलय किया। 
राजस्थान की स्थापना का दिन 30 मार्च हर साल राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है। संपूर्ण राजस्थान अभी नहीं बना था अभी
चार देशी रियासतों (मत्स्य संघ) का विलय राजस्थान में होना शेष था जो पहले ही भारत संघ में विलय हो चुकी थीं। अलवर,भतरपुर, धौलपुर व करौली पर भारत सरकार आधिपत्य था और इनके राजस्थान में विलय की मात्र औपचारिकता होनी थी।

पांचवा चरण  (15 मई 1949) :-
पन्द्रह मई 1949 को भारत सरकार के मत्स्य संघ के वृहत्त (ग्रेटर) राजस्थान में विलय की औपचारिक घोषणा के साथ ही वृहत्तर राजस्थान का निर्माण हुआ। अभी सिरोही रियासत का एकीकरण शेष था।

छठा चरण -(26 जनवरी 1950) :-
भारत का संविधान लागू होने के दिन 26 जनवरी 1950 को भारत सरकार के अधीन सिरोही रियासत का विलय ग्रेटर राजस्थान में कर दिया गया (एक औपचारिक घोषणा)। 
राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया के समय सिरोही के शासक नाबालिग थे और भारत सरकार द्वारा गठित एजेंसी काउंसिल की अध्यक्ष देवगढ़ की महारानी की देखरेख में  राजकार्य संपादित किया जा रहा था। 
सिरोही के एक हिस्से आबू देलवाडा को लेकर विवाद के कारण इस चरण में आबू देलवाडा तहसील को बंबई और शेष रियासत का विलय राजस्थान में किया गया।

सांतवा चरण -(1 नवंबर 1956) :-
बंबई में शामिल किए गए सिरोही के भू भाग आबू देलवाडा को राजस्थान अलग नहीं होने देना चाहता था जिसका एक कारण था इसी तहसील में राजस्थान का कश्मीर कहा जाने वाला आबू पर्वत और दूसरा सिरोही वासियों के रिश्तेदार और जमीने दूसरे राज्य में चली गई। इस विलय के विरुद्ध आंदोलन शुरू हो गया। 
आंदोलन कारियों की जायज मांग के कारण आबू देलवाड़ा को भारत सरकार ने सिरोही राजस्थान में फिर से मिला दिया। 
सातवें चरण में बंबई व राजस्थान के कुछ भाग इधर - उधर कर भौगोलिक और सामाजिक त्रुटि में सुधार किया गया। 
मध्यप्रदेश में शामिल हो चुके सुनेल टप्पा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया और झालावाड के उप जिले सिरनौज को मध्यप्रदेश को दे दिया गया।
1/11/1956 को राजस्थान का निर्माण 22 रियासतों का विलय कर कुल सात चरण में पूरा हुआ और इसी दिन से राजप्रमुख का पद समाप्त कर राज्यपाल का पद सृजित किया गया था।

 राजपूताना से राजस्थान का सफर :-
1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद राजपुताना की रियासतों और राज प्रमुखों को एक ही इकाई में कई चरणों में एकीकृत किया गया। 
सब से पहले मत्स्य संघ और राजस्थान संघ जैसे छोटे संघों में बांटा गया जिन्हें 1949 में ग्रेटर राजस्थान बनाने के लिए शेष राजपूत राज्यों के साथ मिला दिया गया। स्वतंत्र भारत का संविधान 1950 में लागू हुआ तो राजस्थान राज्य बनया गया। 
राजपूत राजाओं को विशेषाधिकार और प्रिवीपर्स की सुविधा दे कर समस्त शक्तियां केंद्र सरकार ने अपने अधीन कर ली। 
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के अनुसार राजस्थान को वर्तमान आकार दिया गया। 
इसके साथ ही पूर्व रियासतों के शासकों को दिये गये विशेषाधिकार/प्रिविपर्स 1970 में बंद कर दिये गए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शासन काल खंड (1952 से 1990 टीकाराम पालीवाल,मोहनलाल सुखाडिया,हरिदेव जोशी, बरकतुल्लाह खान,शिवचरण माथुर, अशोक गहलोत 1956 से 1977, 1980 से 1990,1998 से 2003, 2008 से 2013 व 2018 से लगातार) (1977 से 1980 भेरू सिंह शेखावत जनता पार्टी)  (1990 से 1998,2003 से 2008, 2013 से 2018 भेरू सिंह शेखावत, वसुंधरा राजे सिंधिया भारतीय जनता पार्टी) की सरकारों में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में विकास के साथ अपनी बड़े पैमाने पर कृषि अर्थव्यवस्था में विविधता लाते हुए राज्य अगले कई दशकों में समृद्ध बनाया। 
पर्यटन में विशेष रूप से उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

राजस्थान की कला एवं संस्कृति :- 
राजस्थान की कला एवं संस्कृति समृद्ध रही है। यहां ऐसी कला व परंपराएं हैं जो प्राचीन  भारतीय जीवन शैली को दर्शाती हैं। 
राजस्थान को राजाओं की भूमि भी कहा जाता है। इसमें पर्यटकों के लिए भारत का यह ऐतिहासिक राज्य अपनी समृद्ध संस्कृति, परंपरा, विरासत और स्मारकों के साथ आकर्षण का केंद्र रहा है। 

नृत्य एवं वाद्य :-
जोधपुर का घूमर, जैसलमेर का कालबेलिया, उदयपुर डूंगरपुर का गवरी, बीकानेर के गिंदड़ नृत्य के साथ - साथ भोपा , चंग,तेरहताली, काछीघोड़ी,तेजाजी, पार्थ नृत्य, डेरू नृत्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है । 
लोक संगीत राजस्थानी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह राजस्थानी संस्कृति के उदाहरण हैं। लोक गीत आमतौर पर गाथा गीत होते हैं जो वीरों की वीरता और प्रेम कहानियों से संबंधित होते हैं। 
धार्मिक या भक्ति गीत जिन्हें भजन और बानी के रूप में जाना जाता है (अक्सर ढोलक,सितार,सारंगी जैसे वाद्य यंत्रों के साथ) गाए जाते हैं।
कन्हैया गीत पूर्वी राजस्थानी पट्टी के प्रमुख ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के बेहतरीन स्रोत के रूप में गाया जाता है। 
घूमर,मूमल,चिरमी,अलगोजा एवं ढोला - मरवन लोक गीत गीत भी उल्लेखनीय हैं।

कठपुतली कला :-
पारंपरिक कठपुतली  प्रदर्शन राजस्थान की मूल कला है जो राजस्थान में मेलों, त्योहारों और सामाजिक समारोहों में प्रमुखता से देखी जा सकती है। 
यह कला हजारों साल पुरानी है। कठपुतली के उल्लेख राजस्थानी लोककथाओं,गाथा गीतों और यहां के लोक गीतों में पाए गए हैं। 
छड़ - कठपुतलियाँ पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती हैं।
माना जाता है कि कठपुतली की शुरुआत 1500 साल पहले आदिवासी राजस्थानी भाट समुदाय द्वारा एक स्ट्रिंग कठपुतली कला के रूप में नागौर के आसपास के इलाकों में की गई।
कठपुतली कलाकारों को राजाओं का संरक्षण प्राप्त था। 

राजस्थान का स्थापत्य :- 
राजस्थान में कई गुप्त और उत्तर-गुप्त युग के मंदिर हैं। देलवाड़ा के जैन मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य के लिए विख्यात हैं।
यहां 7वीं शताब्दी के बाद वास्तुकला एक नए रूप में विकसित हुई जिसे गुर्जर-प्रतिहार शैली कहा जाता है। इस शैली के प्रसिद्ध मंदिर ओसियां ​​मंदिर,चित्तौड़ के कुंभश्याम मंदिर,  बरौली के मंदिर,  किराडू में सोमेश्वर मंदिर,सीकर में हर्षनाथ मंदिर और नागदा के सहस्र बाहु मंदिर हैं।
10वीं से 13वीं शताब्दी तक मंदिर वास्तुकला की एक नई शैली विकसित हुई जिसे सोलंकी शैली या मारू-गुर्जर शैली के रूप में जाना जाता है।
चित्तौड़ का समाधीश्वर मंदिर और चंद्रावती का भग्नावशेष मंदिर इस शैली के उदाहरण हैं।
यह काल राजस्थान के जैन मंदिरों के लिए भी स्वर्णिम काल था। इस काल के कुछ प्रसिद्ध मंदिर दिलवाड़ा मंदिर , सिरोही का मीरपुर मंदिर,पाली जिले में सेवरी ,नाडोल,घनेरावआदि में इस काल के कई जैन मंदिर हैं।
14वीं शताब्दी और उसके बाद से, कई नए मंदिरों का निर्माण किया गया, जिनमें  महाकालेश्वर मंदिर उदयपुर,उदयपुर में जगदीश मंदिर,  एकलिंगजी मंदिर, आमेर का जगत शिरोमणि मंदिर और रणकपुर जैन मंदिर  शामिल हैं।

राजस्थान के किले :-
1 आमेर का किला आमेर,जयपुर
2 बाला किला,अलवर
3 बाड़मेर किला,बाड़मेर
4 चित्तौड़ का किला, चित्तौड़गढ़
5 गागरोन किला,  झालावाड़
6 गुगोर किला,बरन
7 जयगढ़ किला,जयपुर
8 सोनार का किला जैसलमेर
8 जालौर का किला,  जालौर
9 झालावाड़ किला,  झालावाड़
10 जूना किला और मंदिर,बाड़मेर
11 जूनागढ़ किला,  बीकानेर
12 खंडार किला,सवाई माधोपुर
13 खेजरला किला,  जोधपुर
14 खींवसर का किला,  नागौर
15 कुम्भलगढ़ किला,  राजसमंद
16 लोहागढ़ किला,  भरतपुर
17 मेहरानगढ़ किला,  जोधपुर
19 अहिक्षत्रपुर नागौर किला, नागौर
20 नाहरगढ़ किला,  जयपुर
21 नाहरगढ़ किला, बारां
22 नीमराना फोर्ट पैलेस,नीमराना,अलवर
23 रणथंभौर किला,  सवाई माधोपुर
24 भानगढ़ किला,  अलवर
25 तारागढ़ किला,    अजमेर
26 तारागढ़ किला,बूंदी
27 शेरगढ़ किला,बारां
28 सूरजगढ़ किला, सूरजगढ़

राजस्थान के महल :-
1 अलवर सिटी पैलेस,  अलवर
2 आमेर पैलेस, आमेर ,  जयपुर
3 बादल महल,डूंगरपुर
4 धौलपुर पैलेस,  धौलपुर
5 फतेह प्रकाश पैलेस,  चित्तौड़गढ़
6 गजनेर पैलेस और झील,बीकानेर
7 जग मंदिर,उदयपुर
8 जगमंदिर पैलेस,  कोटा
9 सिटी पैलेस,जयपुर
10 जल महल,जयपुर
11 जूना महल,डूंगरपुर
12 लेक पैलेस,उदयपुर
13 लालगढ़ पैलेस और संग्रहालय,बीकानेर
14 लक्ष्मी निवास पैलेस, बीकानेर
15 मान महल,पुष्कर
16 मंदिर पैलेस, जैसलमेर
17 मानसून पैलेस,  उदयपुर
18 मोती डूंगरी,अलवर
19 मोती डूंगरी,जयपुर
20 मोती महल,जोधपुर
21 नथमल जी की हवेली,जैसलमेर
21 पटवों की हवेली, जैसलमेर
22 फूल महल,जोधपुर
23 राज मंदिर,  बांसवाड़ा
24 रामपुरिया हवेली,  बीकानेर
25 राणा कुंभा पैलेस,  चित्तौड़गढ़
26 रानी पद्मिनी का महल, चित्तौड़गढ़
27 रानीसर पदमसर,  जोधपुर
28 रतन सिंह पैलेस,  चित्तौड़गढ़
29 सलीम सिंह की हवेली,जैसलमेर
30 सरदार समंद झील और पैलेस,जोधपुर
31 शीश महल,जोधपुर
32 सिसोदिया रानी पैलेस एंड गार्डन,जयपुर
33 सुख महल,बूंदी
34 सुनहरी कोठी,  सवाई माधोपुर
35 उदय बिलास पैलेस, डूंगरपुर
36 सिटी पैलेस,उदयपुर
37 उम्मेद भवन पैलेस, जोधपुर

परंपरागत उद्योग :-
राजस्थान वस्त्र,अर्द्ध कीमती पत्थर और हस्तशिल्प के साथ-साथ अपनी पारंपरिक और रंगीन कला के लिए प्रसिद्ध है। 
राजस्थानी काष्ठ कला अपनी बारीक नक्काशी और चमकीले रंगों के लिए अलग पहचान रखती है। 
यहां की ब्लॉक प्रिंट, टाई एंड डाई प्रिंट,बगरू प्रिंट,सांगानेर प्रिंट,बूंदी का कोटा डोरिया, और ज़री कढ़ाई प्रसिद्ध हैं। 
राजस्थान कपड़ा उत्पादों, हस्तशिल्प, रत्न और आभूषण,कीमती पत्थरों, कृषि और खाद्य उत्पादों में पारंपरिक रूप से अग्रणी रहा है।शीर्ष पांच निर्यात वस्तुएं, जिनका राजस्थान राज्य से दो-तिहाई निर्यात में योगदान है, 
1वस्त्र (तैयार वस्त्रों सहित) 
2 रत्न और आभूषण, 
3 इंजीनियरिंग सामान, 4 रसायन और संबद्ध उत्पाद
5 जयपुर का ब्लू पॉटरी विशेष रूप से विख्यात है। 
पारंपरिक कला और शिल्प के पुनरुद्धार के साथ-साथ सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने के लिए निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से राजस्थान में पहली हस्तशिल्प नीति जारी की गई है।
राजस्थान में हस्तकला के विकास की अपार संभावनाओं को भुनाने के लिए मार्बल,लकड़ी, चमड़ा जैसे कच्चे माल की बड़ी मात्रा है।
हैंड प्रिंटिंग का अनोखा संग्रहालय कपड़े पर पारंपरिक वुडब्लॉक प्रिंटिंग का कार्य देखते ही बनता है।

राजस्थान के लोक देवता :- 
1 पाबू की ऊंटों के देवता (फड़)
2 गोग (जाहर पीर) जी गोगा मेडी सांपों के देवता (निशान,डेरू)
3 रामदेव (पीर)जी गौ रक्षक (इकतारा)
4 तेजो जी किसानों के देवता

राजस्थान के तीर्थ स्थल :-
1 हर्ष देव (सीकर)
2 लोहागर जी (झुंझुनूं)
3 असोतरा (ब्रह्म धाम) बालोतरा
4 दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती) अजमेर
5 ब्रह्म मंदिर पुष्कर,अजमेर
6 जीण देवी (सीकर)
7 देलवाड़ा जैन मंदिर, सिरोही
8 रामदेव जी मंदिर, रामदेवरा,जैसलमेर
9 करणी माता मंदिर,देशनोक बीकानेर
10 गोगामेड़ी (गोगाजी का मंदिर) हनुमानगढ़
11 ददरेवा  (गोगाजी का मंदिर) चूरू
12 सालासर बालाजी, चूरू
13 नरहड़ दरगाह,झुंझुनूं
14 हमीदुद्दीन की दरगाह, नागौर
15 रानी सती मंदिर,झुंझुनूं
16 बेनेश्वर धाम बांसवाड़ा
17 त्रिवेणी धाम भीलवाड़ा

राजस्थान का भूगोल :-
भौगोलिक स्थिति
राजस्थानमे अक्षांश की कुल लम्बाई बांसवाङा में 26 किमी तथा डुंगरपुर में 8 किमी है जिसका विस्तार गंगानगर से 23°03' उत्तरी अक्षांश से 30°12' डूंगरपुर उत्तरी अक्षांश अक्षांशिय विस्तार 7°9 है) तक कुल लंबाई  उत्तर से दक्षिण 826 किमी है।
राजस्थान की देशांतरीय स्थिति धौलपुर से 69°30' पूर्वी देशांतर से 78°17' जैसलमेर पूर्वी देशांतर के मध्य है  (देशांतरिय विस्तार 8°47) कुल चौड़ाई पूर्व से पश्चिम 869 किमी है।
लंबाई चौड़ाई का अंतर 35 किमी ही है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान भारत का सब से बड़ा राज्य है।
राजस्थान का अक्षांशीय देशांतरीय विस्तार :- 
राजस्थान 09 देशांतर रेखाओं में स्थित है जिसके कारण पूर्वी सीमा से पश्चिमी सीमा में समय का 36 मिनिट (4° × 9 देशान्तर = 36 मिनिट) का अन्तर आता है अर्थात् धौलपुर में सूर्योदय के लगभग 36 मिनिट बाद जैसलमेर में सूर्योदय होता है।
कर्क रेखा (23½° उत्तरी अक्षांश) राजस्थान के डूंगरपुर जिले के चिखली गांव के दक्षिण से तथा बाँसवाड़ा जिले के कुशलगढ तहसील के लगभग मध्य में से गुजरती है।
कुशलगढ़ (बाँसवाड़ा) में 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्बवत् पड़ती है।
गंगानगर में सूर्य की किरणें सर्वाधिक तिरछी व बाँसवाड़ा में सूर्य की किरणें सर्वाधिक सीधी पड़ती है।
राजस्थान में सूर्य की लम्बवत् किरणें केवल बाँसवाड़ा में पड़ती है।

राजस्थान भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य है तथा देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किमी, देश के क्षेत्रफल का 10.41% है तथा यहाँ राष्ट्रीय जनसंख्या की 5,66% जनसंख्या निवास करती है (जनगणना-2011 अंतिम आँकड़े)। यह पश्चिम में पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा है।

जनसंख्या :-
यहां मरुस्थलीय और पहाड़ी क्षेत्रों में विरल और मैदानी एवं पठारी क्षेत्रों में सघन जनसंख्या है।
वर्तमान में राजस्थान 8 करोड़ की जनसंख्या के साथ भारत का दूसरा सब से बड़ा राज्य है।

भूमि :-
थार मरुस्थल :-
प्राचीन काल में आज के थार के मरुस्थल के स्थान पर टेथीस सागर नाम से विशाल समुद्र था। भूगर्भीय हलचल और प्लेट्स के टकराव से कालांतर में यह सागर विलुप्त हो गया और एक बड़ा सूखा क्षेत्र बना जिस का नाम हुआ थार का मरुस्थल।
राजस्थान के चूरू को इसका प्रवेश द्वार कहा जा सकता है को एशिया महाद्वीप के पाकिस्तान,ईरान,इराक, सऊदी अरब,इजराइल से होते हुए मिश्र तक पहुंचता है। स्थान विशेष पर इसका नाम अलग - अलग नाम से जाना जाता है। संयुक्त रूप से सहारा का मरुस्थल कहा जाता है।

अरावली की पहाड़ियां :- 
अरावली की पहाड़ियाँ राज्य के दक्षिण-पश्चिम में 1,722 मीटर ऊँचे गुरु शिखर से पूर्वोत्तर में खेतड़ी तक एक रेखा बनाती हुई गुज़रती हैं। राज्य का लगभग 3/5 भाग इस रेखा के पश्चिमोत्तर में व शेष 2/5 भाग दक्षिण-पूर्व में स्थित है। राजस्थान इस के द्वारा दो प्राकृतिक भागों में विभाजित होता है। 
बेहद कम पानी वाला पश्चिमोत्तर भूभाग रेतीला और अनुत्पादक है। इस क्षेत्र में विशाल भारतीय रेगिस्तान (थार) नज़र आता है। सुदूर पश्चिम और पश्चिमोत्तर के रेगिस्तानी क्षेत्रों से पूर्व की ओर बढ़ने पर अपेक्षाकृत उत्पादक व निवास योग्य भूमि है।
विविधतापूर्ण स्थलाकृति वाला दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र अपेक्षाकृत ऊँचा व अधिक उपजाऊ है। दक्षिण में मेवाड़ की पहाड़ीयाँ हैं। 
दक्षिण-पूर्व में कोटा व बूँदी ज़िले का एक बड़ा क्षेत्र पठारी भूमि का निर्माण करता है और इन ज़िलों के पूर्वोत्तर भाग मे चम्बल नदी के प्रवाह के साथ-साथ ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र है। आगे उत्तर की ओर का क्षेत्र समतल होता जाता है। 
पूर्वोत्तर भरतपुर ज़िले की समतल भूमि यमुना नदी के जलोढ़ बेसिन का हिस्सा है।
अरावली राजस्थान के सबसे महत्त्वपूर्ण जल विभाजक का निर्माण करती है। इस पर्वत श्रृंखला के पूर्व में जल अपवाह की दिशा पूर्वोत्तर की ओर है। राज्य की एकमात्र बड़ी व बारहमासी नदी चम्बल का प्रवाह है। इसकी प्रमुख सहायक नदी बनास है, जो कुम्भलगढ़ के निकट अरावली से निकलती है व मेवाड़ पठार के समस्त जल प्रवाह को संग्रहीत करती है। आगे उत्तर में बाणगंगा जयपुर के निकट से निकलने के बाद विलुप्त होने से पहले तक पूर्व दिशा में यमुना की ओर बहती है। 
अरावली के पश्चिम में लूनी ही एकमात्र उल्लेखनीय नदी है। यह अजमेर की पुष्कर घाटी से निकलती है और 302 किमी. पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती हुई कच्छ के रण तक जाती है। शेखावाटी क्षेत्र में लूनी बेसिन का पूर्वोत्तर हिस्सा आंतरिक अपवाह व खारे पानी की झीलों के लिए जाना जाता है, जिसमें सांभर सॉल्ट लेक सबसे बड़ी है। 
सुदूर पश्चिम में वास्तविक मरुस्थल बंजर भूमि व रेत के टीलों का क्षेत्र है, जो विशाल भारतीय रेगिस्तान की हृदयस्थली का निर्माण करते हैं।
जैसलमेर,बाड़मेर,जालौर,सिरोही,जोधपुर,बीकानेर,गंगानगर,झुंझुनू,सीकर,पाली व नागौर ज़िलों में विस्तारित पश्चिमोत्तर के रेतीले मैदानों में मुख्यत: लवणीय या क्षारीय मिट्टी पाई जाती है। 
यहां पानी दुर्लभ है जो40 -60 मीटर की गहराई पर खोदने पर मिल जाता है। 
यहां की मिट्टी कैल्शियम युक्त है। मिट्टी में नाइट्रेट इसकी उर्वरकता को बढ़ाते हैं, जैसा कि इंदिरा गांधी नहर (राजस्थान नहर) के क्षेत्र में देखा गया है।
पानी की पर्याप्त आपूर्ति से खेती सम्भव हुई है। मध्य राजस्थान के अजमेर ज़िले में अधिकांश मिट्टी रेतीली है इसमें चिकनी मिट्टी की मात्रा 3 से 9% के बीच मिलती है। 
पूर्व में जयपुर व  अलवर ज़िलों में बलुआ दोमट से रेतीली चिकनी मिट्टी तक पाई जाती है।कोटा, बूँदी व झालावाड़ क्षेत्र में मिट्टी सामान्यत: काली,गहरी और अधिक समय तक नम रहती है।उदयपुर,चित्तौड़गढ़,डूंगरपुर, बांसवाड़ा व भीलवाड़ा ज़िलों के पूर्वी क्षेत्रों में मिश्रित लाल और काली मिट्टी है और पश्चिमी क्षेत्रों में लाल व पीली मिट्टी पाई जाती है।

राजस्थान की जलवायु :-
राजस्थान की जलवायु विविधतापूर्ण है। एक ओर अति शुष्क तो दूसरी ओर आर्द्र क्षेत्र हैं। आर्द्र क्षेत्रों में दक्षिण-पूर्व व पूर्वी ज़िले आते हैं।
अरावली के पश्चिम (छाया प्रदेश ) में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापमान, निम्न आर्द्रता तथा तीव्र हवाओं से युक्त शुष्क जलवायु है।
दूसरी ओर अरावली के पूर्व में अर्द्ध-शुष्क एवं उप-आर्द्र जलवायु है, जहाँ वर्षा की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा कम तापमान व अपेक्षाकृत उच्च वायु दाब के कारण वायु की गति में भी कमी रहती है।

राजस्थान वन्य एवम् वन्य जीव :- 
यहाँ की प्रमुख वानस्पतिक विशेषता झाड़ीदार जंगल हैं। पश्चिमी क्षेत्र में झाउ और झाउ जैसे शुष्क क्षेत्र के पौधे पाए जाते हैं। पेड़ विरल हैं और ये अरावली पहाड़ियों व दक्षिण राजस्थान में ही थोड़े-बहुत मिलते हैं।
अरावली व अनेक ज़िलों में बाघ पाए जाते हैं।पर्वतों व जंगलों में तेंदुआ, रीछ, सांभर और चीतल पाए जाते हैं। नीलगाय भी कुछ हिस्सों में पाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों में काले हिरन व जंगली हिरन बहुतायत में हैं। 
रेगिस्तान को छोड़कर चाहा, बटेर, तीतर और जंगली बत्तख़ हर जगह पाए जाते हैं।बीकानेर क्षेत्र रेगिस्तानी तीतर की अनेक प्रजातियों के लिए विख्यात है।
वन जीव अभयारण्य
राज्य में अनेक अभयारण्य व वन्य जीव पार्कों की स्थापना की गई है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण अलवर के निकट सरिस्का वन जीव अभयारण्य व जैसलमेर के निकट डेज़र्ट नेशनल पार्क है।
यहां की विशेषता ऊंट है जो राज्य पक्षी है।
पेड़ पौधों में खासतौर से नीम,झाड़ी, आक,खिंप, बुई, खेजड़ी,रोहिड़ा,बबुल, कंकेडा, सेवन घास आदि पाई जाती है।
मरुस्थल में अधिकांश वनस्पति कंटीली व मैदानों में अधिक घनी वनस्पति पाई जाती है।

राजस्थान का प्रशासनिक ढांचा :-
वर्तमान में राजस्थान में 50 जिले और 10 संभाग हैं।

राजस्थान के जिले  :- 
बाबू सिंह झुझा अभी उस गंजा बाबा धोबी को
भासुचि जेसी कटोरा में अनाज प्रपाचु दोजो 

नए जिलों का सूत्र
बादू दीदी के ब्याव को सांचों खैर
अगनी शाह जद जऊ जोप सफल।

राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवंम्बर 1956 को आया। 
इस समय राजस्थान में कुल 26 जिले थे। 
1 अजमेर
2 जैसलमेर
3 बाड़मेर
4 भीलवाड़ा
5 बीकानेर
6 भरतपुर
7 अलवर
8 उदयपुर
9 चूरू
10 चित्तौड़गढ़
11 सिरोही
12 पाली
13 जयपुर
14 सवाई माधोपुर
15 झालावाड़
16 बूंदी
17 टोंक
18 डूंगरपुर
19 बांसवाड़ा
20 जालौर
21 जोधपुर
22 गंगानगर
23 झुंझुनूं
24 सीकर
25 नागौर
26 कोटा
27वां जिला धौलपुर (भरतपुर से अलग) 15 अप्रैल 1982 
28 वां जिला बांरा (कोटा से अलग) 10 अप्रैल 1991
29 वाँ दौसा (जयपुर से) 10 अप्रैल 1991
30वा जिला राजसमन्द (उदयपुर से) 10 अप्रैल 1991
31वा जिला हनुमानगढ़ 12 जुलाई, 1994 को (श्रीगंगानगर से)
32वा जिला करौली 19 जुलाई,1997 (सवाई माधोपुर से)
33वा जिला प्रतापगढ़  26 जनवरी, 2008 को (चित्तौड़गढ़,उदयपुर व बाँसवाड़ा) से) 33वाँ जिला बना।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा नए 17 जिले 17/03/2023 को बनाए गए 
34 बालोतरा (बाड़मेर) 
35 अनूपगढ़ (गंगानगर)
36 केकड़ी (अजमेर)
37 खैरथल (अलवर)
38 नीम का थाना (सीकर)
39 गंगापुर सिटी (सवाई माधोपुर)
40 जयपुर दक्षिण (जयपुर)
41 जोधपुर पश्चिम(जोधपुर)
42 ब्यावर (अजमेर)
43 शाहपुरा (भीलवाड़ा)
44 डीडवाना कुचामन (नागौर)
45 दूदू (जयपुर)
46 फौलोदी (जोधपुर)
47 कोटपुतली (अलवर)
48 सलूंबर (उदयपुर)
49 सांचौर (जालौर) 
50 डीग (भरतपुर)

राजस्थान में संभाग :-
अप्रेल, 1962 को मोहनलाल सुखाड़िया सरकार ने संभागीय व्यवस्था समाप्त कर दी परंतु  26 जनवरी,1987 को हरिदेव जोशी 
सरकार ने संभागीय व्यवस्था को पुनः लागू करते हुए 6 नये संभाग-
सूत्र :- हरदेव बीउ जो अज को 
वसुंधरा भर वसुंधरा राजे 01 संभाग
अशोक सीपाबां अशोक गहलोत 03

हरिदेव जोशी द्वारा 1987 में बनाए गए संभाग :-
1जयपुर
2 अजमेर
3 जोधपुर
4 उदयपुर
5 बीकानेर
6 कोटा 

4 जून, 2005 को वसुन्धरा राजे सरकार ने 
7वां  संभाग भरतपुर बनाया।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 17/03/2023 को 3 संभाग
8 पाली
9 बांसवाड़ा
10 सीकर
तीन नए संभाग बनाए।

लेखन एवं सम्पादन

शमशेर भालू खान
जिगर चुरुवी
9587243963

2 comments:

  1. संविदा कार्मिको को नियमित करवाने के लिए 1/1 का अनुभव जुड़वाओ

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