कविंद्र रविन्द्र नाथ टैगोर
कवि, दार्शनिक एवं गीतकार
सामान्य परिचय एवं इतिहास
नाम - रविंद्र नाथ ठाकुर (अंग्रेजी में अपभ्रांस के कारण ठाकुर को टैगोर बोला गया बाद में यही नाम प्रसिद्ध हो गया।
उपनाम - गुरुदेव
पिता का नाम - देवेंद्र नाथ ठाकुर (व्यापारी)
माता का नाम - शारदा देवी (माता को बाल्यकाल में ही मृत्यु के कारण पालन पोषण नौकरों द्वारा हुआ।
जन्म - 07.05.1861
जन्म भूमि - जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी, कोलकाता
मृत्यु - 07.08.1941
शांत स्थल - कोलकाता
सहोदर -
01. सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ (दार्शनिक और कवि)
02. भाई सत्येंद्रनाथ (यूरोपीय सिविल सेवा हेतु चयनित पहले भारतीय)
03 भाई ज्योतिरिंद्रनाथ (संगीतकार और नाटककार )
04. बहिन स्वर्ण कुमारी (उपन्यासकार)
विवाह - मृणालिनी देवी (01 मार्च 1854 से 23 नवंबर 1902) वर्ष 1873 में।
संतान - 05 (जिनमें से 02 का बाल्यावस्था में निधन)
धर्म - सनातन
गोत्र - राजपूत
पारिवारिक पृष्ठभूमि -
टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया; बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं। टैगोर के पिता ने कई पेशेवर ध्रुपद संगीतकारों को घर में रहने और बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया। ज्योतिरिंद्रनाथ की पत्नी कादंबरी देवी जो टैगोर से थोड़ी बड़ी थीं और उनकी प्रिय मित्र और प्रभावशाली स्त्री थीं ने 1884 में आत्महत्या कर ली। इस कारण टैगोर और इनका शेष परिवार क्षणिक कठिनाइयों से घिरा रहा।
पद -
01.विश्वविख्यात हिंदी और बांग्ला भाषा के कवि, साहित्यकार, दार्शनिक
02. भारतीय साहित्य के (एशिया के प्रथम) नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।
03. एकमात्र कवि जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं।
01. भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और
02. बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला'
रबीन्द्रनाथ टैगोर (१९२५)
शिक्षा-
01. माध्यमिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल कोलकाता।
02. बैरिस्टर बनने की इच्छा में 1858 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया
03. लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया किन्तु
04. सन 1870 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश लौट आए।
दर्शन - आधुनिकतावाद
जीवन परिचय -
भाभी के आत्महत्या करने के बाद टैगोर पढ़ाई से कतराने लगे। स्थानीय क्षेत्र मैरर या पास के बोलपुर और पनिहती में घूमने जाने लगे। भाई हेमेंन्द्र नाथ ने पढ़ाया और शारीरिक रूप से पुष्ट किया। गंगा को तैर कर पार करना, जिमनास्टिक्स, जूडो और कुश्ती अभ्यास करना भाई ने सिखाया। टैगोर ने ड्राइंग, शरीर विज्ञान, भूगोल और इतिहास, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी को सबसे पसंदीदा विषय के रूप में अध्ययन किया। ओपचारिक शिक्षा से उनका मन उचांट रहा। टैगोर ने कहा है कि ओपचारिक शिक्षा जिज्ञासा को शांत नहीं कर पाती है।
ग्यारह वर्ष की आयु में उपनयन (यज्ञोंपवित/ जनेऊ) संस्कार के बाद, टैगोर पिता के साथ महीनों, भारत यात्रा पर रहे। फरवरी 1873 में कलकत्ता छोड़ कर शांति निकेतन और अमृतसर से डेलाहौसी के हिमालय के पर्वतीय स्थलों तक यात्रा की। वहां टैगोर ने जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में पढ़ाई की। सन 1873 में अमृतसर के एक महीने के प्रवास के समय, गुरूद्वारे में गाई जाने वाली सुप्रभात गूरुवाणी और नानक वाणी से बहुत प्रभावित हुए और नियमित सुनने जाते रहे। इसके बारे में टैगोर ने 1912 में प्रकाशित पुस्तक मेरी यादों में उल्लेख किया है।
साहित्यिक जीवन -
टैगोर परिवार साहित्य से जुड़ा रहा और घर में साहित्यिक वातावरण के कारण स्वताः ही साहित्यिक गतिविधियां उनको मोहित करने लगीं। सन 1881 में टैगोर ने वाल्मीकि प्रतिभा' नामक नाटक में शीर्ष भूमिका (इंदिरा देवी,लक्ष्मी) किभुमिका निभाई।
बचपन से ही कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास करवाया। टैगोर ने पहली कविता आठ वर्ष की आयु में लिखी थी और सन् 1877 में सोलह वर्ष की आयु में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई।
टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृन्त, नाटक और सैंकडों गाने लिखे हैं। टैगोर मुख्यतः पद्य कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। गद्य में लिखी उनकी छोटी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय रही हैं। टैगोर ने इतिहास, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखी थीं। टैगोर के यात्रावृन्त, निबंध, और व्याख्यान कई खंडों में संकलित किए गए, जिनमें यूरोप के जटरिर पत्र (यूरोप से पत्र) और मनुशर धर्म (मनुष्य का धर्म) शामिल थे। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत, वास्तविकता की प्रकृति पर नोट, बाद के उत्तरार्धों के एक परिशिष्ट के रूप में सम्मिलित किया गया है।
टैगोर के 150वें जन्मदिन के अवसर पर उनके कार्यों का संकलन (कालनुक्रोमिक रबीन्द्र रचनावली) प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रत्येक कार्य के सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण है। सन 2011 में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व-भारती विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध फखरुल आलम और राधा चक्रवर्ती द्वारा संपादित टैगोर के कार्यों के सबसे बड़े संकलन द एसेंटियल टैगोर प्रकाशित करने हेतु सहयोग किया।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ -
गीतांजलि
पूरबी प्रवाहिन
शिशु भोलानाथ
महुआ
वनवाणी
परिशेष
पुनश्च
वीथिका शेषलेखा
चोखेरबाली
कणिका
नैवेद्य मायेर खेला
क्षणिका
गीतिमाल्य
कथा ओ कहानी
रविन्द्र नाथ की कहानियां
घरे बहिरे
गोरा
मनुशर धर्म
यूरोप से पत्र
रबीन्द्र संगीत -
टैगोर ने लगभग 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएँ तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत की ध्रुपद शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के अलग - अलग रंग प्रस्तुत करते हैं।
अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं कि यह रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी। प्रकृति के प्रति गहरा लगाव रखने वाला यह प्रकृति प्रेमी ऐसे एकमात्र लेखक हैं जिनके गाने दो देशों के राष्ट्रगान बने। जन गण मन भारत और ओमार सोनार बांग्ला बंगला देश का राष्ट्रीय गान है।
रविंद्र दर्शन -
गुरुदेव रविंदर नाथ टैगोर ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया। टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहे। जहां गांधी जी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते थे। टैगोर ने गांधी जी को डाकू का विशेषण दिया था। एक समय था जब शान्तिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस समय गांधी जी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक प्रदान किया।
जीवन के अन्तिम समय से कुछ पहले इलाज के लिए जब उन्हें शान्ति निकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहाँ नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हाँ पुराना आलोक चला जाएगा और नए का आगमन होगा।
रविंद्र नाथ की साहित्यिक विशेषताए -
टैगोर की रचनाओं में मनुष्य और ईश्वर के बीच के चिरस्थायी सम्पर्क की विविध रूपों में अभिव्यक्ति मिलती है। उन्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य के साथ बोलचाल की भाषा का भी उपयोग किया। इससे बंगाली साहित्य शास्त्रीय संस्कृत के प्रभाव से मुक्त हो गया। टैगोर की रचनायें बांग्ला साहित्य में एक नई ऊर्जा ले कर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इनमे चोखेर बाली, घरे बहिरे, गोरा आदि शामिल है। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया। सन 1913 में गीतांजलि के लिए इन्हें एशिया के प्रथम साहित्यकार के रूप में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला। मात्र आठ वर्ष की उम्र मे पहली कविता और केवल 16 वर्ष की उम्र मे पहली लघुकथा प्रकाशित कर बांग्ला साहित्य मे एक नए युग की शुरुआत की। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्म के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है। टैगोर की कविता पढ़ने से उपनिषद पढ़ने जैसी भावनाएं परिलक्षित होती है।
विश्व-भारती विश्वविद्यालय -
विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना 22 दिसंबर 1921 में रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने पश्चिम बंगाल के शान्ति निकेतन बोलपुर, बीरभूम जिला, पश्चिम बंगाल, में की। यह भारत के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है अनेक स्नातक और अधिस्नातक संस्थान इससे संबद्ध हैं। इसका आदर्श वाक्य है यत्र विश्वं भवत्येकनीड़म
सन 1901 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यहां बालकों की शिक्षा हेतु एक प्रयोगात्मक विद्यालय स्थापित किया जो प्रारम्भ में ब्रह्म विद्यालय, बाद में शान्ति निकेतन तथा 1921 में विश्व भारती' विश्वविद्यालय के नाम से प्रख्यात हुआ।
विश्व भारती महर्षि रवीन्द्रनाथ टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी विचारों का मूर्तमान स्वरूप है। यहाँ खुले गगन के नीचे वृक्षों व कुंजों के झुरमुटों में जमीन पर बैठकर देश-विदेशों से आकर असंख्य विद्यार्थी धर्म, दर्शन, साहित्य एवं कला का उच्च अध्ययन करते हैं। प्राच्य व पाश्चात्य संस्कृतियों के सम्मिश्रण में इस संस्था ने बड़ा योग दिया है। सात्विक व सादा जीवन, प्रकृति से संपर्क, प्राचीन व आधुनिक शिक्षा पद्धतियों का एकीकरण आध्यात्मिक व भौतिक शिक्षा पर समान बल एवं सांस्कृतिक उत्थान इत्यादि इस संस्था की अपनी विशेषताएँ हैं। भारत की शिक्षा के इतिहास में यह एक नूतन व महान परीक्षण माना गया है।
शांतिनिकेतन का जन्म
टैगोर के पिता देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने सन 1863 में साधना हेतु कलकत्ते के निकट बोलपुर नामक ग्राम में एक आश्रम की स्थापना की जिसका नाम शांति-निकेतन रखा। जिस स्थान पर वे साधना किया करते थे वहां एक संगमरमर की शिला पर बंगला भाषा में अंकित है--तिनि आमार प्राणेद आराम, मनेर आनन्द, आत्मार शांति।
गुरु-शिष्य सम्बन्धों पर विचार करते हुए टैगोर ने आधुनिक किशोर की समस्याओं का सहृदयता से अध्ययन किया और अपना दृढ़ मत व्यक्त किया कि शिक्षण संस्थाओं में व्याप्त अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए जेल और मिलिट्री की बैरकों का कठोर अनुशासन काम नहीं दे सकता, यह तो अध्यापकों की प्रतिष्ठा पर भी आघात होगा। विद्यार्थियों से यह आशा करना ही गलत है वे अध्यापकों से वैसा ही व्यवहार करें जैसा किसी सामन्त के दरबारी करते हैं। टैगोर का विश्वास था कि शिक्षा में आदान-प्रदान की प्रक्रिया यदि पारस्परिक सम्मान की भावना से युक्त हो तो अनुशासन की समस्या स्वत ही सुलझ जाएगी।
ज्ञान को समाज के हर वर्ग में फैलाना अतीत की शिक्षा का एक आदर्श था। धर्म ग्रन्थों और महाकाव्यों के अंशों का वाचन, भक्त ध्रुव, सीता वनवास, दानवीर कर्ण, सत्यवादी हरिशचन्द्र, आदि नाटक इसी उद्देश्य से किए जाते थे। यह उत्तम प्रकार की समाज शिक्षा थी। परन्तु अंग्रेजी शिक्षा का लाभ अधिकांश नगरों तक ही सीमित रहा और शेष देश के असंख्य गाँव अशिक्षा, रोग और क्षय के अन्धकार में विलीन होते गए। इस स्थिति को सुधारना चाहिए।
टैगोर शान्ति निकेतन विद्यालय की स्थापना से ही संतुष्ट नहीं थे। उनका विचार था कि एक ऐसे शिक्षा केन्द्र की स्थापना की जाए, जहाँ पूर्व और पश्चिम को मिला सके। सन् 1916 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विदेशों से भेजे गए एक पत्र में लिखा था- "शान्ति निकेतन को समस्त जातिगत तथा भौगोलिक बन्धनों से अलग हटाना होगा, यही मेरे मन में है। समस्त मानव-जाति की विजय-ध्वजा यहीं गड़ेगी। पृथ्वी के स्वादेशिक अभिमान के बंधन को छिन्न-भिन्न करना ही मेरे जीवन का शेष कार्य रहेगा।"
विश्व भारती विश्व विद्यालय के उद्देश्य
(01) विभिन्न दृष्टिकोणों से सत्य के विभिन्न रूपों की प्राप्ति के लिए मानव मस्तिष्क का अध्ययन करना।
(02) प्राचीन संस्कृति में निहित आधारभूत एकता के अध्ययन एवं शोध द्वारा उनमें परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना।
(03) एशिया में व्याप्त जीवन के प्रति दृष्टिकोण एवं विचारों के आधार पर पश्चिम के देशों से संपर्क बढ़ाना।
(04) पूर्व एवं पश्चिम में निकट संपर्क स्थापित कर विश्व शान्ति की संभावनाओं को विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान द्वारा सुदृढ़ बनाना।
(05) इन आदर्शों को ध्यान में रखते हुए शान्ति निकेतन में एक ऐसे सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना करना जहाँ धर्म, साहित्य, इतिहास, विज्ञान एवं हिन्दू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य सभ्यताओं की कला का अध्ययन और उनमें शोधकार्य, पश्चिमी संस्कृति के साथ, आध्यात्मिक विकास के अनुकूल सादगी के वातावरण में किया जाए।
विश्व भारती विश्व विद्यालय के विभाग -
(01) पाठ भवन -
इसमें स्कूल सर्टिफिकेट (मैट्रिक परीक्षा) उत्तीर्ण करने के लिए शिक्षा दी जाती है तथा 6 से 12 वर्ष की आयु के बालकों को प्रवेश दिया जाता है। शिक्षा का माध्यम बंगाली है।
(02) शिक्षा भवन -
इसमें सीनियर स्कूल सर्टिफिकेट (इन्टर परीक्षा) की परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए शिक्षा दी जाती है। छात्रों की आवश्यकताओं पर व्यक्तिगत ध्यान तथा सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य सहगामी क्रियाओं की प्रचुर मात्रा में व्यवस्था शिक्षा भवन की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
(03) विद्या भवन -
इसमें 3 वर्ष की बी.ए. (आनर्स) पाठ्यक्रम की तैयारी कराई जाती है। परीक्षा के विषय संस्कृत, बंगाली, हिन्दी, उड़िया, अंग्रेजी, अर्थशास्त्र और दर्शन है। भवन में दो वर्ष के एमए. पाठ्यक्रम की व्यवस्था संस्कृत, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति, बंगाली, हिन्दी, उड़िया, अंग्रेजी तथा दर्शन में है। छात्र इन विषयों में अनुसंधान कार्य भी कर सकते हैं। दो वर्षीय सार्टिफिकेट्स कोर्स, तत्पश्चात एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स का अतिरिक्त प्रबन्ध संस्कृत, बंगाली, हिन्दी, उड़िया, चीनी, जापानी, तिब्बती, फ्रेंच, जर्मन, अरबी और अंग्रेजी भाषाओं में किया गया है।
(04) विनय भवन -
यह एक अध्यापक प्रशिक्षण कॉलेज है जिसमें एक वर्षीय बी.एड. पाठ्यक्रम की व्यवस्था है। प्रशिक्षण काल में शिल्प तथा अन्य व्यावहारिक एवं रचनात्मक क्रियाओं की शिक्षा का भी प्रबन्ध किया जाता है।
(05) कला भवन
इसमें ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्ति कला, कढ़ाई आदि के अतिरिक्त काष्ठ कला, कलात्मक चर्म-कार्य तथा अन्य शिल्पों की शिक्षा भी दी जाती है। कला भवन में कलात्मक शिल्पों में दो वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स तथा मैट्रिक परीक्षा के पश्चात 4 वर्षीय डिप्लोमा कोर्स की व्यवस्था है।
(06) संगीत भवन -
इसमें संगीत में (क) 3 वर्षीय इंटरमीडिएट परीक्षा का पाठ्यक्रम, (ख) तत्पश्चात रवीन्द्र संगीत, हिन्दुस्तानी संगीत, सितार, मणिपुरी नृत्य, कत्थक, कथाकली और भरतनाट्यम में 2 वर्षीय डिग्री पाठ्यक्रम की व्यवस्था है।
(07) चीन भवन - इसमें भारतीय छात्रों को चीन सम्बन्धी और चीनी छात्रों को भारतीय संस्कृति की शिक्षा दी जाती है।
(08) हिन्दी भवन - इसमें हिन्दी भाषा की शिक्षा तथा अनुसंधान कार्य करने की सुविधाएं है।
(09) हिन्द-तिब्बती शिक्षालय -
इसमें तिब्बती भाषा की शिक्षा का प्रबन्ध है।
(10) श्री निकेतन -
इसमें ग्राम्य जीवन की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य छात्रों को ग्राम्य जीवन से परिचित करवाना तथा ग्राम्य समस्याओं के समाधान की शक्ति पैदा करना है। श्री निकेतन में ग्रामीण बालकों को माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षा सत्र की स्थापना की गई है। घरेलू उद्योग-धन्धों के प्रशिक्षण का कार्य शिल्प सदन द्वारा किया जाता है।
(11) शिक्षा चर्चा भवन -
बेसिक अध्यापक प्रशिक्षण विद्यालय के रूप में स्थापित संस्था तथा भारत सरकार द्वारा स्थापित ग्रामीण महाविद्यालय उच्च ग्रामीण शिक्षा की व्यवस्था करती है।
विश्व भारती की विशेषताएँ
(01) स्वयं गुरुदेव रवीन्द्र ने विश्व भारती की विशेषता का उल्लेख इन शब्दों में किया - "विश्व भारती भारत का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ भारत की बौद्धिक सम्पदा सभी के लिए उपलब्ध है। अपनी संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व दूसरों को देने में और दूसरों की संस्कृति के श्रेष्ठ तत्व अपनाने में भारत सदा से उदार रहा है। विश्व भारती भारत की इस महत्वपूर्ण परम्परा को स्वीकार करती है।"
(02) कोई छात्र किसी एक विभाग में प्रवेश पाने के पश्चात् किसी दूसरे विभाग में भी बिना कोई अतिरिक्त शुल्क दिए शिक्षा प्राप्त कर सकता है।
(03) विदेशी छात्रों को नियमित छात्र के रूप में या अस्थाई छात्र के रूप में भी प्रवेश दिया जा सकता है।
(04) ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्ति कला, चर्म कार्य, कढ़ाई, नृत्य, संगीत आदि ललित कलाओं में तथा चीनी और जापानी भाषाओं में शान्ति निकेतन ने विशेष ख्याति प्राप्त की है। इन क्षेत्रों में शान्ति निकेतन का योगदान विशिष्ट है।
(05) खुले मैदानों में या वृक्षों के नीचे प्रकृति के सान्निध्य में और स्वतंत्र वातावरण में शिक्षा दी जाती है।
(06) गुरु शिष्य के आदर्श सम्बन्धों को पुन: स्थापित किया जा रहा है।
(07) विश्वविद्यालय का पुस्तकालय बहुत प्रसिद्ध है जहाँ लगभग दो लाख पुस्तकों का संग्रह है।
सार्वजनिक सम्मान -
सन 1913 में रबीन्द्रनाथ ठाकुर को उनकी काव्य रचना गीतांजलि के लिये साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
1915 में उन्हें राजा जॉर्ज पंचम ने नाइटहुड (सर) की पदवी से सम्मानित किया। सन 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने यह उपाधि लौटा दी थी।
आज सम्पूर्ण भारत में टैगोर को श्रद्धा पूर्वक याद किया जाता है और किया जाता रहेगा।
शमशेर भालू खान
जिगर चुरूवी
9587243963
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