मुंशी प्रेमचंद
सामान्य परिचय एवं जीवन
हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक
पत्नी के साथ प्रेमचंद
(इसी फोटो को आधार बना कर हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद के फटे जूते व्यंग्यात्मक लेख लिखा)
प्रेमचंद
नाम - धनपत राय श्रीवास्तव
उपनाम - मुंशी प्रेमचन्द, नबाब राय
जन्म - जुलाई ,1880
जन्म स्थान - लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु – 8 अक्टूबर 1936
मृत्यु का स्थान - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
जाति - कायस्थ
पिता का नाम - अजॉय राय (डाक बाबू वाराणसी डाकघर में, 1896 में मृत्यु)
माता का नाम - आनंदी देवी (1887 में देहांत), माता की मृत्यु के पश्चात पिता ने दूसरी शादी की और सौतेली मां का व्यवहार उनके प्रति सही नहीं रहा।
विवाह - 1895 में (1905 में पहली पत्नी को तलाक दे दिया)
दूसरा विवाह - बाल विधवा शिवरानी देवी से 1906 में हुआ जो एक सुशिक्षित महिला थीं। शिवरानी देवी ने कुछ कहानियाँ और प्रेमचंद घर में शीर्षक पुस्तक भी लिखी।
संतान - तीन सन्ताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
विवाह के संबंध में उनके विचार - प्रेमचंद लिखते हैं कि “पिताजी ने जीवन के अंतिम वर्षों में एक ठोकर खाई और स्वंय तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया और मेरी शादी बिना सोचे समझे करा दिया|"
व्यवसाय - लेखन,संपादन, प्रकाशन, फिल्म पटकथा लेखन (इस हेतु 1933 में 10 माह तक बॉम्बे रहे), शिक्षक, पत्रकार
प्रकाशन हेतु सरस्वती प्रेस खरीदा जो में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा।
लेखक संघ - अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (तरक्की पसंद तहरीक)
साहित्य का प्रेमचंद युग - रामविलास शर्मा के अनुसार "सौतेली माँ का व्यवहार, बचपन में शादी, पण्डे-पुरोहित का कर्मकाण्ड, किसानों और क्लर्कों का दुखी जीवन-यह सब प्रेमचंद ने सोलह साल की उम्र में ही देख लिया था। इसीलिए उनके ये अनुभव एक जबर्दस्त सचाई लिए हुए उनके कथा-साहित्य में झलक उठे थे।"
वर्ष 1906 से 1936 का काल मुख्य लेखन काल रहा जिसमें से हिंदी कहानी और उपन्यास में 1918 से 1936 का काल खंड प्रेमचंद युग कहलाता है। इस काल खंड (30) वर्ष का साहित्य तत्कालीन सामाजिक सांस्कृतिक दशा का दस्तावेज है। समाज सुधार आन्दोलन, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण किया गया है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जातिय भेदभाव, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष असमानता, आदि उस समय की लगभग सभी प्रमुख समस्याओं का सजीव चित्रण किया गया है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है।
शिक्षा -
प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा फारसी में हुई, बालपन से ही पढ़ने लगन रही। उनका पहला विवाह पंद्रह साल की उम्र में हुआ।
1898 में मेट्रिक पास किया आगे पढ़ाई के साथ नौकरी भी जारी रखी।1910 में अंग्रेज़ी, दर्शन, फ़ारसी और इतिहास लेकर इण्टर किया।
सन 1919 में अंग्रेजी, फ़ारसी और इतिहास लेकर बी. ए. किया। 1919 में स्नातक पास कर के शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए और 23.06.1921 को अशयोग आंदोलन के समर्थन में इस्तीफा दे दिया।
व्यवसाय एवं स्वतन्त्रता संग्राम -
सन 1921 में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने लेखन को अपना व्यवसाय बनाया। उन्होंने कुछ महीने मर्यादा नामक पत्रिका का संपादन किया। इसके बाद उन्होंने लगभग छह वर्षों तक हिंदी पत्रिका माधुरी का संपादन किया। इस दौरान उन्होंने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस पत्रिका और जागरण समाचार पत्र प्रकाशित किया। प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ और बेचना पड़ा। प्रेमचंद पर कर्जा चढ़ गया। सन 1933 में ऋण उतारने हेतु प्रकाशक मोहन लाल भवनानी की कंपनी अजंता सिनेटोन में कहानी (फिल्म पटकथा) लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार करन पड़ा। फिल्म मजदूर की पटकथा उनकी लिखी हुई है।
फिल्म नगरी प्रेमचंद को रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए। उनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।
प्रेमचार के विरोधियों ने उनके निजी जीवन के संबंध में विचार व्यक्त कर कुछ आरोप भी लगाए हैं ।
प्रेमचंद के अध्येता कमल किशोर गोयनका ने अपनी पुस्तक 'प्रेमचंद : अध्ययन की नई दिशाएं' में प्रेमचंद के जीवन पर कुछ आरोप लगाए हैं। जैसे- प्रेमचंद ने अपनी पहली पत्नी को बिना वजह छोड़ा और दूसरे विवाह के बाद भी उनके अन्य किसी महिला से संबंध रहे (जैसा कि शिवरानी देवी ने 'प्रेमचंद घर में' में उद्धृत किया है)। प्रेमचंद ने जागरण विवाद में विनोद शंकर व्यास के साथ धोखा किया, प्रेमचंद ने अपनी प्रेस के वरिष्ठ कर्मचारी प्रवासी लाल वर्मा के साथ धोखाधडी की, प्रेमचंद की प्रेस में मजदूरों ने हड़ताल की, प्रेमचंद ने अपनी बेटी के बीमार होने पर झाड़-फूंक का सहारा लिया आदि।
फिर भी कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा उनको सदैव याद किया जाता रहेगा। प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाकतार विभाग की ओर से 30 जुलाई 1980 को जन शताब्दी के अवसर पर 30 पैसे का डाक टिकट जारी किया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई। प्रेमचंद की 125वीं सालगिरह पर सरकार की ओर से घोषणा की गई कि वाराणसी से लगे लमही गाँव में प्रेमचंद के नाम पर एक स्मारक तथा शोध एवं अध्ययन संस्थान बनाया जाएगा
साहित्यिक जीवन
साहित्य कार्य -
भाषा - फारसी, हिंदी एवं उर्दू
आदर्शवादी व यथार्थवादी लेखक प्रेमचंद का साहित्य दोनों भाषाओं में उस समय की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में प्रकाशित हुआ।
लेखन का केंद्रीय विषय - किसान,साहूकार,समसामयिक सामाजिक सरोकार
संपादन - जागरण (समाचार पत्र), हंस, मर्यादा, माधुरी (साहित्यिक पत्रिका) का संपादन
धनपत राय का साहित्यिक जीवन 1901 से शुरू होता है। उन्होंने नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखना शुरू किया। प्रेम करने के फलस्वरूप (एक दलित स्त्री से मामा का प्रेम) मामा की खूब पिटाई हुई और इसी आधार पर उन्होंने पहली कहानी नाटक लिखा यह प्रकाशित नहीं हो सका। इसका उदहरण प्रमचंद ने स्वयं के लेख ‘पहली रचना’ में किया है। उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास 'असरारे मआबिद उर्दू साप्ताहिक आवाज-ए-खल्क़ में 8 अक्टूबर 1903 से 1 फरवरी 1905 दो साल तक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ। कालान्तर में यह हिन्दी में देवस्थान रहस्य नाम से भी प्रकाशित हुआ।
प्रेमचंद का दूसरा उर्दू उपन्यास 'हमखुर्मा व हमसवाब' है जो हिंदी में 'प्रेमा' नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। सन 1908 में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसी कारण उन्हें दयानारायण निगम द्वारा दिए गए नाम प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया। 'प्रेमचंद' नाम से पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई।
सन 1915 में उस समय की प्रसिद्ध हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती के दिसम्बर अंक में पहली बार उनकी कहानी सौत प्रकाशित हुई। सन 1918 में उनका पहला हिंदी उपन्यास सेवा सदन प्रकाशित हुआ। इसकी अत्यधिक लोकप्रियता ने प्रेमचंद को उर्दू से हिंदी का कथाकार बना दिया और लगभग सभी रचनाएँ हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित होती रहीं।
उपन्यास - लगभग 18 उपन्यास - सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान, बेवा, मानसरोवर आदि कहानियां - लगभग 300 से अधिक कहानियां, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि
जीवन के अंतिम दिनों तक साहित्य सृजन में रत प्रेमचंद का महाजनी सभ्यता अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
1922 में बेदखली की समस्या पर आधारित प्रेमाश्रम उपन्यास प्रकाशित किया। सन 1925 में उन्होंने रंगभूमि नामक वृहद उपन्यास लिखा, जिसके लिए उन्हें मंगलप्रसाद पुरस्कार मिला। सन 1926 से 1927 में महादेवी वर्मा द्वारा संपादित हिंदी मासिक पत्रिका चाँद के लिए धारावाहिक उपन्यास के रूप में निर्मला की रचना की। इसके बाद उन्होंने कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि और गोदान की रचना की। उन्होंने सन 1930 में बनारस से स्वयं की प्रेस से मासिक पत्रिका हंस का प्रकाशन शुरू किया। सन 1932 में उन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्र जागरण का प्रकाशन आरंभ किया। सन 1936 में लखनउ में आयोजित अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (तरक्की पसंद तहरीक) के सम्मेलन की अध्यक्षता की। सन 1920 से 1936 तक प्रेमचंद लगभग दस से अधिक कहानी प्रतिवर्ष लिखते रहे। मरणोपरांत उनकी कहानियाँ "मानसरोवर" नाम से 08 खंडों में प्रकाशित हुईं। उपन्यास और कहानी के अतिरिक्त वैचारिक निबंध, संपादकीय, पत्र के रूप में भी उनका विपुल लेखन उपलब्ध है।
प्रेमचन्द के अधिकांश साहित्य का वर्तमान में सार्वजानिक प्रकाशन डायमंड पाकेट बुक द्वारा किया गया है। इन में से कुछ इस प्रकार हैं -
किशना - 1907 के 'ज़माना' में प्रकाशित
रूठी रानी - अप्रेल 1907 में अप्रैल से अगस्त तक ज़माना में प्रकाशित किया गया।
जलवए ईसार- यह सन् 1912 में प्रकाशित हुआ था।
सेवासदन- 1918 ई. में प्रकाशित सेवासदन प्रेमचंद का हिन्दी में प्रकाशित होने वाला पहला उपन्यास था। यह मूल रूप से उन्होंने 'बाजारे-हुस्न' नाम से पहले उर्दू में लिखा गया लेकिन इसका हिन्दी रूप 'सेवासदन' पहले प्रकाशित हुआ। यह स्त्री समस्या पर केन्द्रित उपन्यास है जिसमें दहेज-प्रथा, अनमेल विवाह, वेश्यावृत्ति, स्त्री-पराधीनता आदि समस्याओं के कारण और प्रभाव शामिल हैं।
प्रेमाश्रम - 1922 यह किसान जीवन पर उनका पहला उपन्यास है। इसका मसौदा भी पहले उर्दू में 'गोशाए-आफियत' नाम से तैयार हुआ था लेकिन इसे पहले हिंदी में प्रकाशित कराया। यह अवध के किसान आन्दोलनों के दौर में लिखा गया में किसानों के हालत पर लिखा गया पहला उपन्यास है। इसमें सामंती व्यवस्था के साथ किसानों के अन्तर्विरोधों को केंद्र में रखकर उसकी परिधि में आने वाले प्रत्येक सामाजिक तबके का -ज़मींदार, ताल्लुकेदार, उनके नौकर, पुलिस, सरकारी मुलाजिम, शहरी मध्यवर्ग - और उनकी सामाजिक भूमिका का सजीव चित्रण किया गया है।
रंगभूमि (1925)- इसमें प्रेमचंद एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव का सूत्रपात करते हैं।
निर्मला (1925)- यह अनमेल विवाह की समस्याओं को रेखांकित करने वाला उपन्यास है।
कायाकल्प (1926)
अहंकार - इसका प्रकाशन कायाकल्प के साथ ही सन् 1926 ई. में हुआ था। अमृतराय के अनुसार यह "अनातोल फ्रांस के 'थायस' का भारतीय परिवेश में रूपांतर है।"[15]
प्रतिज्ञा (1927)- यह विधवा जीवन तथा उसकी समस्याओं को रेखांकित करने वाला उपन्यास है।
गबन (1928)- उपन्यास की कथा रमानाथ तथा उसकी पत्नी जालपा के दाम्पत्य जीवन, रमानाथ द्वारा सरकारी दफ्तर में गबन, जालपा का उभरता व्यक्तित्व इत्यादि घटनाओं के इर्द-गिर्द घूमती है।
कर्मभूमि (1932)-यह अछूत समस्या, उनका मन्दिर में प्रवेश तथा लगान इत्यादि की समस्या को उजागर करने वाला उपन्यास है।
गोदान (1936)- यह उनका अन्तिम पूर्ण उपन्यास है जो किसान-जीवन पर लिखी अद्वितीय रचना है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद 'द गिफ्ट ऑफ़ काओ' नाम से प्रकाशित हुआ।
मंगलसूत्र (अपूर्ण)- यह प्रेमचंद का अधूरा उपन्यास है जिसे उनके पुत्र अमृतराय ने पूरा किया। इसके प्रकाशन के संदर्भ में अमृतराय प्रेमचंद की जीवनी में लिखते हैं कि इसका-"प्रकाशन लेखक के देहान्त के अनेक वर्ष बाद 1948 में हुआ।"
प्रेमचद की कुछ कहानियों के नाम -
कहानी संग्रह-
सप्त सरोज-
1917 में इसके पहले संस्करण की भूमिका लिखी गई थी। सप्त सरोज में प्रेमचंद की सात कहानियाँ संकलित हैं। उदाहरणतः बड़े घर की बेटी[, सौत, सज्जनता का दण्ड, पंच परमेश्वर, नमक का दारोगा, उपदेश तथा परीक्षा आदि।
नवनिधि-
यह प्रेमचंद की नौ कहानियों का संग्रह है। जैसे-राजा हरदौल, रानी सारन्धा, मर्यादा की वेदी, पाप का अग्निकुण्ड, जुगुनू की चमक, धोखा, अमावस्या की रात्रि, ममता, पछतावा आदि।
समरयात्रा-
इस संग्रह के अंतर्गत प्रेमचंद की 11 राजनीतिक कहानियों का संकलन किया गया है। उदाहरण स्वरूप-जेल, कानूनी कुमार, पत्नी से पति, लांछन, ठाकुर का कुआँ, शराब की दुकान, जुलूस, आहुति, मैकू, होली का उपहार, अनुभव, समर-यात्रा आदि।
मानसरोवर' -
भाग एक व दो और 'कफन'। उनकी मृत्यु के बाद उनकी कहानियाँ 'मानसरोवर' शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई। इनकी अधिकतर कहानियोँ में निम्न व मध्यम वर्ग का चित्रण है। डॉ॰ कमलकिशोर गोयनका ने प्रेमचंद की संपूर्ण हिंदी-उर्दू कहानी को प्रेमचंद कहानी रचनावली नाम से प्रकाशित कराया है। प्रेमचंद ने जीवन काल में लगभग 300 से अधिक कहानियाँ तथा 18 से अधिक उपन्यास लिखे है| इनकी इन्हीं क्षमताओं के कारण इन्हें कलम का जादूगर कहा जाता है| प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़ ए वतन (राष्ट्र का विलाप) नाम से जून 1908 में प्रकाशित हुआ। इसी संग्रह की पहली कहानी दुनिया का सबसे अनमोल रतन को आम तौर पर उनकी पहली प्रकाशित कहानी माना जाता रहा है। डॉ॰ गोयनका के अनुसार कानपुर से निकलने वाली उर्दू मासिक पत्रिका ज़माना के अप्रैल अंक में प्रकाशित सांसारिक प्रेम और देश-प्रेम से ओतप्रोत उनकी पहली प्रकाशित कहानी है
अन्य संग्रह - प्रेमपूर्णिमा, प्रेम-पचीसी, प्रेम-प्रतिमा,
प्रेम-द्वादशी
कुछ कहानियों के नाम -
1. अन्धेर
2. अनाथ लड़की
3. अपनी करनी
4. अमृत
5. अलग्योझा
6. आखिरी तोहफ़ा
7. आखिरी मंजिल
8. आत्म-संगीत
9. आत्माराम
10. दो बैलों की कथा
11. आल्हा
12. इज्जत का खून
13. इस्तीफा
14. ईदगाह
15. ईश्वरीय न्याय
16. उद्धार
17. एक आँच की कसर
18. एक्ट्रेस
19. कप्तान साहब
20. कर्मों का फल
21. क्रिकेट मैच
22. कवच
23. कातिल
24. कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
25. कौशल़
26. खुदी
27. गैरत की कटार
28. गुल्ली डण्डा
29. घमण्ड का पुतला
30. ज्योति
31. जेल - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
32. जुलूस
33. झाँकी
34. ठाकुर का कुआँ - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
35. तेंतर
36. त्रिया-चरित्र
37. तांगे वाले की बड़
38. तिरसूल
39. दण्ड
40. दुर्गा का मन्दिर
41. देवी
42. देवी - एक और कहानी
43. दूसरी शादी
44. दिल की रानी
45. दो सखियाँ
46. धिक्कार
47 धिक्कार - एक और कहानी
48. नेउर
49. नेकी
50. नबी का नीति-निर्वाह
51. नरक का मार्ग
52. नैराश्य
53. नैराश्य लीला
54. नशा
55. नसीहतों का दफ्तर
56. नाग-पूजा
57. नादान दोस्त
58. निर्वासन
59. पंच परमेश्वर (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
60. पत्नी से पति - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
61. पुत्र-प्रेम
62. पैपुजी
63. प्रतिशोध
64. प्रेम-सूत्र
65. पर्वत-यात्रा
66. प्रायश्चित
67. परीक्षा (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
68. पूस की रात
69. बैंक का दिवाला
70. बेटों वाली विधवा
71. बड़े घर की बेटी (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
72. बड़े बाबू
73. बड़े भाई साहब
74. बन्द दरवाजा
75. बाँका जमींदार
76. बोहनी
77. मैकू - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
78. मन्त्र
79. मन्दिर और मस्जिद
80. मनावन
81. मुबारक बीमारी
82. ममता
83. माँ
84. माता का ह्रदय
85. मिलाप
86. मोटेराम जी शास्त्री
87. र्स्वग की देवी
88. राजहठ
89. राष्ट्र का सेवक
90. लैला
91. वफ़ा का खंजर
92. वासना की कड़ियां
93. विजय
94. विश्वास
95. शंखनाद
96. शूद्र
97. शराब की दुकान
98. शान्ति
99. शादी की वजह
100. स्त्री और पुरूष
101. स्वर्ग की देवी
102. स्वांग
103. सभ्यता का रहस्य
104. होली का उपहार - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
105. समस्या
106. सैलानी बन्दर
107. स्वामिनी
108. सिर्फ एक आवाज
119. सोहाग का शव
110. सौत - (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
111. होली की छुट्टी
112. आहुति - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
113.गृह-दाह
114.सवा सेर गेहूँ
115. नमक का दरोगा (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
116. सज्जनता का दंड (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
117.दूध का दाम
118.मुक्तिधन
119.कफ़न
120. उपदेश (1917 में प्रकाशित सप्त सरोज कहानी संग्रह)
नव निधि कहानी संग्रह में प्रकाशित कहानियां -
121. राजा हरदौल
122. रानी सारन्धा
123. मर्यादा की वेदी
124. पाप का अग्निकुण्ड
125. जुगुनू की चमक
127. धोखा
126. अमावस्या की रात्रि
128.ममता
129. पछतावा
130. कानूनी कुमार - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
131. लांछन - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
132 शराब की दुकान - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
133.जुलूस - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
134. होली का उपहार - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
138. अनुभव - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
139. समर-यात्रा - (समर यात्रा कहानी संग्रह में प्रकाशित)
नाटक
संग्राम (1923)-
यह किसानों के मध्य व्याप्त कुरीतियाँ तथा किसानों की फिजूलखर्ची के कारण हुआ कर्ज और कर्ज न चुका पाने के कारण अपनी फसल निम्न दाम में बेचने जैसी समस्याओं पर विचार करने वाला नाटक है।
कर्बला (1924)
प्रेम की वेदी (1933)
ये नाटक शिल्प और संवेदना के स्तर पर हैं लेकिन उनकी कहानियों और उपन्यासों ने इतनी ऊँचाई प्राप्त कर ली थी कि नाटक के क्षेत्र में प्रेमचंद को कोई खास सफलता नहीं मिली। ये नाटक वस्तुतः संवादात्मक उपन्यास ही बन गए हैं।
कथेतर साहित्य
प्रेमचंद : विविध प्रसंग-
यह अमृतराय द्वारा संपादित प्रेमचंद की कथेतर रचनाओं का संग्रह है। इसके पहले खण्ड में प्रेमचंद के वैचारिक निबन्ध, संपादकीय आदि प्रकाशित हैं। इसके दूसरे खण्ड में प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह है।
प्रेमचंद के विचार-
तीन खण्डों में प्रकाशित यह संग्रह भी प्रेमचंद के विभिन्न निबंधों, संपादकीय, टिप्पणियों आदि का संग्रह है।
साहित्य का उद्देश्य-
इसी नाम से उनका एक निबन्ध-संकलन भी प्रकाशित हुआ है जिसमें 40 लेख हैं।
प्रेमचंद के कुछ निबन्धों की सूची निम्नलिखित है-
01. पुराना जमाना नया जमाना
02. स्वराज के फायदे
03. कहानी कला (भाग 1,2,3)
04. कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार
05. हिन्दी-उर्दू की एकता
06. महाजनी सभ्यता
07. उपन्यास
08. जीवन में साहित्य का स्थान।
चिट्ठी-पत्री-
यह प्रेमचंद के पत्रों का संग्रह है। दो खण्डों में प्रकाशित इस पुस्तक के पहले खण्ड के संपादक अमृतराय और मदनगोपाल हैं। इस पुस्तक में प्रेमचंद के दयानारायन निगम, जयशंकर प्रसाद, जैनेंद्र आदि समकालीन लोगों से हुए पत्र-व्यवहार संग्रहित हैं। संकलन का दूसरा भाग अमृतराय ने संपादित किया है।
अनुवाद
प्रेमचंद एक सफल अनुवादक भी थे। उन्होंने दूसरी भाषाओं के लेखकों को पढ़ा और जिनसे प्रभावित हुए उनकी कृतियों का अनुवाद भी किया। उन्होंने 'टॉलस्टॉय की कहानियाँ' (1923), गाल्सवर्दी के तीन नाटकों की हड़ताल (1930), चाँदी की डिबिया (1931) और न्याय (1931) नाम से अनुवाद किया। उनका रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्यास फसान-ए-आजाद का हिन्दी अनुवाद आजाद कथा बहुत मशहूर हुआ।
बाल साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी, दुर्गादास
विचार : प्रेमचंद : विविध प्रसंग, प्रेमचंद के विचार (तीन खण्डों में)
संपादन -
प्रेमचन्द ने 'जागरण' नामक समाचार पत्र तथा 'हंस' नामक मासिक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन किया था। उन्होंने सरस्वती प्रेस भी चलाया था। वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे।
विशेषताएँ -
साहित्य के प्रति यानी चाहे राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक सभी को उन्होंने जिस तरह अपनी रचनाओं में समेटा और खास कर एक आम आदमी को, एक किसान को, एक आम दलित वर्ग के लोगों को वह अपने आप में एक उदहारण के रूप में प्रस्तुत करता है।साहित्य में दलित विमर्श की शुरुआत शायद प्रेमचंद की रचनाओं से हुई थी। प्रेम चंद की विचारधारा में उनके साहित्य की वैचारिक यात्रा आदर्श से यथार्थ की ओर उन्मुख है। सेवासदन के दौर में वे यथार्थवादी समस्याओं को चित्रित तो कर रहे थे लेकिन उसका एक आदर्श समाधान भी निकाल रहे थे। 1936 के आते-आते महाजनी सभ्यता, गोदान और कफ़न जैसी रचनाएँ अधिक यथार्थपरक हो गईं, किंतु उसमें समाधान नहीं सुझाया गया। अपनी विचारधारा को प्रेमचंद ने आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहा है। इसके साथ ही प्रेमचंद स्वाधीनता संग्राम के सबसे बड़े कथाकार हैं। इस अर्थ में उन्हें राष्ट्रवादी भी कहा जा सकता है। प्रेमचंद मानवतावादी भी थे और मार्क्सवादी भी। प्रगतिवादी विचारधारा उन्हें प्रेमाश्रम के दौर से ही आकर्षित कर रही थी। प्रेमचंद ने 1936 में उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन को सभापति के रूप में संबोधित किया था। उनका यही भाषण प्रगतिशील आंदोलन के घोषणा पत्र का आधार बना। इस अर्थ में प्रेमचंद निश्चित रूप से हिंदी के पहले प्रगतिशील लेखक कहे जा सकते हैं।
प्रेमचन्द के अनुमार्गी -
प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने में कई रचनाकारों ने भूमिका अदा की है। प्रेमचंद की परंपरा को अलका कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा और निराला ने अपनाया। उसे चकल्लस और क्या से क्या आदि कहानियों के लेखक पढ़ीस ने भी अपनाया। उस परंपरा की झलक नरेंद्र शर्मा, अमृतलाल नागर आदि की कहानियों और रेखाचित्रों में मिलती है। 50 से 60 के दशक में रेणु, नागार्जुन औऱ इनके बाद श्रीनाथ सिंह ने ग्रामीण परिवेश की कहानियाँ लिखी, वो एक तरह से प्रेमचंद की परंपरा के तारतम्य में आती हैं।
प्रेमचंद से संबंधित रचनाएँ
प्रेमचंद की तीन जीवनीपरक पुस्तकें सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं:
01. प्रेमचंद घर में-
सन 1944 में प्रकाशित यह पुस्तक प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा लिखी गई है जिसमें उनके व्यक्तित्व के घरेलू पक्ष को उजागर किया है। सन 2005.में प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार ने संशोधित संस्करण प्रकाशित करवाया।
02. प्रेमचंद कलम का सिपाही-
सन 1962 में प्रकाशित प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय द्वारा लिखी गई यह प्रेमचंद वृहद जीवनी है जिसे प्रामाणिक बनाने के लिए उन्होंने प्रेमचंद के पत्रों का उपयोग किया है।
03. कलम का मज़दूर:प्रेमचन्द-
सन 1964 में प्रकाशित इस कृति की भूमिका रामविलास शर्मा के अनुसार-"29 मई, 1962 में लिखी गई थी किंतु उसका प्रकाशन बाद में किया गया. मदन गोपाल द्वारा रचित प्रेमचंद की जीवनी मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई और हिंदी अनुवाद बाद में प्रकाशित हुआ। यह प्रेमचंद के परिवार के बाहर के व्यक्ति द्वारा रचित जीवनी है जो प्रेमचंद संबंधी तथ्यों का अधिक तटस्थ रूप से मूल्यांकन करती है।
आलोचनात्मक पुस्तकें
रामविलास शर्मा ने प्रेमचंद और उनके जीवन तथा साहित्य का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया है। प्रेमचंद पर हुए नए अध्ययनों में कमल किशोर गोयनका और डॉ॰ धर्मवीर का नाम उल्लेखनीय है। कमल किशोर गोयनका ने प्रेमचंद का अप्राप्य साहित्य (दो भाग) व 'प्रेमचंद विश्वकोश' (दो भाग) का संपादन भी किया है। डॉ॰ धर्मवीर ने दलित दृष्टि से प्रेमचंद साहित्य का मूल्यांकन करते हुए प्रेमचंद : सामंत का मुंशी व प्रेमचंद की नीली आँखें नाम से पुस्तकें लिखी हैं।
प्रेमचंद और सिनेमा
प्रेमचंद हिन्दी सिनेमा के सबसे अधिक लोकप्रिय साहित्यकारों में से हैं। सत्यजित राय ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। 1977 में शतरंज के खिलाड़ी और 1981 में सद्गति। उनके देहांत के दो वर्षों बाद सुब्रमण्यम ने 1938 में सेवासदन उपन्यास पर फ़िल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई। 1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से एक तेलुगू फ़िल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगू फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 में गोदान और 1966 में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। 1980 में उनके उपन्यास पर बना धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था।
"हंस" के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे। परन्तु कालांतर में पाठकों ने 'मुंशी' तथा 'प्रेमचंद' को एक समझ लिया और 'प्रेमचंद'- 'मुंशी प्रेमचंद' बन गए।[31]
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