उपनाम - भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक
जन्म - 30 अक्टूबर 1909
जन्म स्थान - मुंबई, भारत
मृत्यु - 24 जनवरी 1966
मृत्यु स्थान - मोंट ब्लांक, फ्रांस
(वायुयान दुर्घटना में)
पिता - जहांगीर होर्मुसजी भाभा
(बंगलौर में पले और ऑक्सफोर्ड से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की)।
माता - मेहरबाई फ़्रामजी पांडे
(बैरिस्टर, इंग्लैंड से)
(भीकाजी फ़्रामजी पांडे की बेटी और बॉम्बे के दिनशॉ पेटिट की पोती)
धर्म - पारसी
सहोदर - जमशेद जी भाभा, भाई
पत्नी - अज्ञात
संतान -
1. लिआ भाभा, पुत्री
2. ईशान भाभा, पुत्र
3. सत्य भाभा, पुत्र
कार्य क्षेत्र - परमाणु वैज्ञानिक
संस्थान -
1. केवेंडिश लेबोरेट्रीज
2. भारतीय विज्ञान संस्थान
3. टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान
4. परमाणु ऊर्जा आयोग (भारत)
शिक्षा -
प्रारंभिक शिक्षा -
कैथड्रल और जॉन केनन स्कूल, मुंबई
उच्य शिक्षा -
1. एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई
2. रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, मुंबई से B.SC.
3. गोनगिले कैअस कॉलेज, कैंब्रिज, इंग्लैंड से 1927 में इंजीनियरिंग। (18 वर्ष की आयु)
4. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से 1930 में स्नातक
5. सन् 1934 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय मेकेनिकल ट्रीपोज से डॉक्टरेट, न्यूक्लियर फिजिक्स।
6. जर्मनी से कास्मिक किरणों पर विशेष अध्ययन एवं प्रयोग किए।
शिष्य - बी भी श्रीकांतन
वैज्ञानिक सिद्धांत - भाभा स्कैटेरिंग (भाभा इलेक्ट्रॉन प्रकीर्णन की घटना)
शेष विश्व में समकालीन वैज्ञानिक -
अमेरिका-ब्रिटेन के युद्धकालीन परमाणु हथियार कार्यक्रमों में प्रमुख भूमिकाएँ निभाने वाले वैज्ञानिक, उनमें से -
1. नील्स बोहर
2. जेम्स फ्रैंक
3. एनरिको फर्मी
भाभा को सम्मान -
1. न्यूटन छात्रवृति, 1934
2. फैलोशिप रॉयल सोसाइटी, 1941
3. एडम्स पुरस्कार, 1943
4. हॉपकिंस पुरस्कार, 1948
5. पद्म भूषण, 1954
वैज्ञानिकों को भारत में बुलाकर परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत -
डॉक्टर भाभा ने अपने पिता को पत्र लिख कर इंजीनियरिंग के स्थान पर फिजिक्स की पढ़ाई हेतु अनुरोध किया। भाभा जर्मनी में रह कर साथी वैज्ञानिक W. हैटलर के साथ गामा किरणों के कॉस्मिक प्रभाव पर अनुसंधान कर रहे थे कि दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। इस कारण वो 1939 में भारत लौट आकर बेंगलुरु के इंडियन स्कूल ऑफ साइंस में रीडर पद पर नियुक्त हुए। 1945 में टाटा ट्रस्ट के सहयोग से टाटा इंटीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की। अनुसंधान करने करने। अप्रैल 1948 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को लिखा -
"अगले कुछ दशकों में, परमाणु ऊर्जा देशों की अर्थव्यवस्था और उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और अगर भारत दुनिया के औद्योगिक रूप से उन्नत देशों से और भी पीछे नहीं रहना चाहता, तो विज्ञान की इस शाखा को विकसित करना आवश्यक होगा।"
भाभा के इस अनुरोध पर नेहरू ने संविधान सभा में परमाणु ऊर्जा अधिनियम पारित करने पर सहमति व्यक्त की, जिससे भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (IAEC) का गठन हुआ। ट्राम्बे के परमाणु संस्थान में परमाणु रिएक्टर की स्थापना की गई जिसका नाम अप्सरा रखा गया। इस कार्यक्रम में सहयोग हेतु विदेश में रह रहे वैज्ञानिकों से भारत लौटने की अपील की। इस अपील पर काफी वैज्ञानिक लौट भी आए। इनमें से एक थे अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन कर मैनचेस्टर की इंपीरियल कैमिकल कंपनी में काम करने वाले होमी नौशेरवांजी सेठना। भाभा ने 1956 में जेनेवा परमाणु ऊर्जा सम्मेलन में भाग लेने पर कनाडा के सहयोग (लुईस के साथ भाभा के व्यक्तिगत संबंधों के कारण) से साइरस प्रोजेक्ट शुरू किया जो 1960 में पूरा हुआ। यह प्रोजेक्ट देखने में शांतिपूर्ण अनुसंधान हेतु था पर परमाणु हथियार हेतु संशोधित प्लूटोनियम के उत्पादन हेतु आवश्यक था, इस क्षमता का बाद में दोहन किया गया। चीन भी परमाणु कार्यक्रम में लगा था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू एवं लाल बहादुर शास्त्री ने भाभा को इस हेतु विधाई एवं अन्य सभी छूट प्रदान की। 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री शास्त्री की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु के बाद 23 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री की शपथ लेने के दूसरे दिन 24 जनवरी 1966 को को होमी भाभा की यूरोप की हवाई यात्रा के समय विमान के माउंट ब्लांक से टकरा जाने के कारण मृत्यु हो गई। 12 जनवरी 1967 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परमाणु ऊर्जा संस्थान, ट्रॉम्बे का नामकरण भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) कर दिया। अब सब जिम्मेदारी डॉक्टर सेठना पर आ गई।
सेठना डॉक्टर भाभा की मृत्युपरांत परमाणु कार्यक्रम में रत रहे और 1974 में भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाया। डॉक्टर भाभा के नेतृत्व में भारत में एटॉमिक एनर्जी कमीशन की स्थापना की गई। उनके एटॉमिक एनर्जी के विकास के लिए समर्पित प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत ने वर्ष 1956 में ट्रांबे में एशिया के प्रथम एटोमिक रिएक्टर की स्थापना की गई। केवल यही नहीं, डॉक्टर भाभा वर्ष 1956 में जेनेवा में आयोजित यूएन कॉफ्रेंस ऑन एटॉमिक एनर्जी के चेयरमैन भी चुने गए थे।
भारत का परमाणु कार्यक्रम एवं डॉक्टर सेठना -
डॉ़ होमी भाभा ने डॉ़ सेठना को इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड, अलवाय, केरल का प्रमुख बनाया। जहां उन्हाने मोनोज़ाइट रेत से दुर्लभ नाभिकीय पदार्थो के अंश निकाले। उस दौरान वे कनाडा-भारत रिएक्टर (सायरस) के प्रॉजेक्ट मैनेजर भी रहे। इसके बाद डॉ़ सेठना ने 1959 में ट्रांबे स्थित परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान में प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी पद का कार्यभार संभाला। यह प्रतिष्ठान आगे चल कर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र बना। वहां उन्हाने नाभिकीय ग्रेड का यूरेनियम तैयार करने के लिए थोरियम संयंत्र का निर्माण करवाया। वर्ष 1959 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में प्लूटोनियम पृथक करने के प्रथम संयंत्र का निर्माण करवाया। इसके डिजाइन और निर्माण का पूरा काम भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने तैयार किया था। इसी संयंत्र में पृथक किए गए प्लूटोनियम से वह परमाणु युक्ति तैयार की गई जिसके विस्फोट से 18 मई 1974 को पोखरण में बुद्घ मुस्कराए (परमाणु विस्फोट का गुप्त संदेश)। डॉ़ सेठना के मार्गदर्शन में ही 1967 में जादूगोड़ा (झारखंड) से यूरेनियम संयंत्र लगा। डॉ़ सेठना ने तारापुर के परमाणु रिऐक्टरों के लिए यूरेनियम ईंधन के विकल्प के रूप में मिश्र-ऑक्साइड ईंधन का विकास किया। पोखरण में परमाणु विस्फोट के बाद अमेरिका ने यूरेनियम की आपूर्ति पर रोक लगा दी, (रिऐक्टर अमेरिका निर्मित) पर भारत ने फ्रांस से यूरेनियम प्राप्त कर लिया। यदि फ्रांस मदद नहीं करता तो डॉ़ सेठना ने मिश्र-ऑक्साइड से तारापुर के परमाणु रिऐक्टर को चलाने की तैयारी कर ली थी। डॉ़ सेठना स्वावलंबन में विश्वास रखते थे और किसी भी काम को पूरा करने के लिए किसी के अहसान की जरूरत महसूस नहीं करते थे। वो परमाणु के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के प्रबल पक्षधर थे। वे परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर 1958 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जेनेवा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उप-सचिव रहे। वे संयुक्त राष्ट्र की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य थे और 1966 से 1981 तक अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के भी सदस्य रहे। डॉ सेठना अनेक संस्थानों के अध्यक्ष और निदेशक भी रहे। वे 1966 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के निदेशक नियुक्त हुए और 1972 से 1983 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष रहे। इस पद पर होमी भाभा के बाद वे ही सबसे अधिक समय तक रहे। इस दौरान उन्हाने भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को नई गति प्रदान की। उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे तमाम बड़े अलंकरणों से नवाजा गया। आज अगर भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में दुनिया भर में मान्यता मिली है, तो इसमें भाभा के बाद सबसे ज्यादा योगदान सेठना का ही है।
1974 में सेठना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को बताया कि उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट की तैयारियां पूरी कर ली है। यह भी पूछा कि क्या वे इस सिस्टम को शुरू कर सकते हैं? इसके साथ ही उन्होंने यह भी बता दिया कि एक बार सिस्टम शुरू होने के बाद इसे रोकना संभव नहीं होगा, ऐसे में अगर वे मना कर देंगी तो उसे नहीं सुना जा सकेगा क्योंकि तब विस्फोट होकर ही रहेगा। इंदिरा गांधी की हरी झंडी मिलते ही तैयारियां शुरू हो गई। अगले ही दिन, 18 मई को सेठना ने कोड वर्ड में इंदिरा गांधी को गोपनीय संदेश भेजा- बुद्ध मुस्कराए।
तस्वीरों में होमी जहांगीर भाभा -
भारत के महान वैज्ञानिक को मेरा सलाम।
शमशेर भालू खां
9587243963
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