(धरमपुर, मध्य गुजरात में खेती का काम करते थे,1930 में निधन)।
माता - मानकबाई नौराजी डोरडी
जन्म - 4 सितम्बर 1825
जन्म स्थान - खड़क, मुम्बई
मृत्यु - 30 जून 1917 (आयु 91 वर्ष)
शांत स्थान - वर्सोवा, भारत
राजनीतिक दल - लिबरल, अन्य राजनीतिक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
विवाह - गुलबाई श्रॉफ (आयु सात वर्ष, दादा भाई की आयु 11 वर्ष) (1907 में 74 वर्ष की आयु में निधन)
संतान -
1. अर्देशिर पुत्र जन्म 1858
2. शिरीन बेटी जन्म 1864
3. माकी पुत्र जन्म 1868
निवास - लन्दन, युनाइटेड किंगडम
धर्म - पारसी
शिष्य -
1. फीरोजशाह मेहता
2. मोहनदास कर्मचंद गांधी
3. मुहम्मद अली जिन्ना
4. बाल गंगाधर तिलक
शिक्षा -
प्रारंभिक - खड़क, मुंबई
उच्य शिक्षा -
1. मुम्बई विश्वविद्यालय
2. एलफिंस्टन इंस्टीटयूट। उसी संस्थान में अध्यापक के रूप में जीवन आरंभ कर आगे चलकर वहीं वे गणित के प्रोफेसर हुए, जो उन दिनों भारतीयों के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में सर्वोच्च पद था।
कार्य -
शिक्षाशास्त्री - एलफिंस्टन इंस्टीटयूट में गणित के प्रोफेसर। यह उस समय भारतीयों के लिए शैक्षणिक संस्थाओं में सर्वोच्च पद था।
राजनीतिज्ञ - मुंबई विधायिका सदस्य
अर्थशास्त्री - भारत में गरीबी उन्मूलन हेतु सर्वेक्षण कर निष्कर्ष निकाला कि भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय बीस रुपए थी। इन्हीं सब आँकड़ों के आधार पर 27 जुलाई 1870 को ईस्ट इंडिया एसोसिएशन के सामने उन्होंने वांट्स एंड मीन्स आफ़ इंडिया निबंध पढ़ा। भारत की दरिद्रता, मुद्रा और विनिमय, अफीम या शराब के सेवन के प्रोत्साहन से उत्पन्न होनेवाले कुपरिणामों के विषय में उनके भाषण बड़े आदर और ध्यान से सुने जाते थे।
व्यापारी - दादाभाई ने लंदन और लिवरपूल (इंग्लैंड) में केमास ब्रदर्स की साझेदारी से व्यापारिक कार्यालय स्थापित किया।
दानवीर - एकाएक धनी बनने पर लोग पथभ्रष्ट हो जाते हैं परन्तु दादा भाई ने इस धन का भारतीयों को इंग्लैंड में उच्च शिक्षा हेतु उपयोग में लिया।
समाज सुधारक - समाज सुधार कार्यों हेतु धार्मिक तथा साहित्य संगठनो की स्थापना।स्टूडेंट्स लिटरेरी ऐंड सांइटिफिक सोसाइटी की स्थापना की, जिसकी 2 शाखाएं थीं -
1. मराठी ज्ञानप्रसारक मंडली
2. गुजराती ज्ञानप्रसारक मंडली
पत्रकार - रास्त गफ्तार नामक अपने समय के समाज सुधारकों के समाचार पत्र का संपादन एवं संचालन।
लेखक -
1901 में पुस्तक पावर्टी ऐंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया। इस पुस्तक में उच्चाधिकारियों से पत्र व्यवहार, समितियों और आयोगों के समक्ष दी गई गवाहियाँ, घोषणाएं, लेख और निबंध लिपिबद्ध हैं।
आंदोलनकारी - दादा भाई भारत एवं इंग्लैंड में एक साथ सिविल सर्विस परीक्षा आयोजित करवाना चाहते थे। इस हेतु उन्होंने 1893 में आंदोलन चलाया। हाउस ऑफ कॉमन्स सदस्य (इंग्लैंड में लोकसभा MP) के रूप में इस हेतु संघर्ष किया। इंग्लैंड सरकार ने यह प्रस्ताव पारित कर उनकी मांग अनुसार भारत एवं इंग्लैंड में एक साथ परीक्षा आयोजित करने का प्रस्ताव पारित किया।
कार्य - मुंबई विधायिका
1. दादा भाई वर्ष 1892 में उन्होंने लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सेंट्रल फिन्सबरी सीट से जीत हासिल करने वाले पहले भारतीय सदस्य बने।
2. वर्ष 1865 में उन्होंने लंदन इंडियन सोसाइटी की सह-स्थापना की और वर्ष 1866 में उन्होंने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की।
3. दादा भाई तीन बार वर्ष 1886 (कलकत्ता), 1893 (लाहौर) और 1906 (कलकत्ता) में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने।
4. दादा भाई नौरोजी ड्रेन थ्योरी (1867) के प्रमुख समर्थकों थे, जिसने ब्रिटेन द्वारा भारत के आर्थिक शोषण को उजागर किया।
5. भारत में सुधारों की पैरवी करने के लिये वर्ष 1893 में उन्होंने ब्रिटिश संसद में एक भारतीय संसदीय समिति (Indian parliamentary committee) का गठन किया।
दादा भाई नौराजी का परिवार -
नौराजी व्यवसाय एवं राजनीति के कारण अधिकांश समय लंदन रहते थे और परिवार बॉम्बे में। परिवार के सदस्य दो अन्य पारसी परिवारों के बहुत करीब थे, समाज सुधारक बेहरामजी मालाबारी का परिवार और मंचेरजी मेरवानजी दादिना का परिवार, जो नौरोजी (एलफिंस्टन कॉलेज) के शिष्यों में से एक थे। नौरोजी के बच्चों का दादिना के बच्चों विवाह हुआ। नौरोजी के बेटे अर्देशिर और उनकी पत्नी वीरबाई के आठ बच्चे थे 1893 में अचानक दिल का दौरा पड़ने से अर्देशिर की मृत्यु हो गई। उनकी पुत्री मेहर नौरोजी ने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से चिकित्सा स्नातक करने वाली पहली भारतीय महिला थीं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में लड़ते समय केर्शास्प नौरोजी की बहादुरी की सराहना की गई थी। अन्य भाई-बहनों ने राष्ट्रवादी आंदोलन में भाग लिया। सरबोन में एक छात्र के रूप में, पेरिन नौरोजी भारतीय क्रांतिकारी भीखाजी रुस्तमजी कामा से प्रभावित थीं और वीडी सावरकर से जुड़ी। एक पोलिश क्रांतिकारी से एक बम बनाना सिखा। पेरिन ने अपनी अन्य बहनों में से एक गोसी को क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल कर लिया जिन पर ब्रिटिश सरकार ने निगरानी में रखा। पेरिन और गोसी दोनों ने 1915 के बाद महात्मा गांधी से मित्रता करने के बाद क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को त्याग दिया। एक अन्य बहन, नर्गिस कैप्टन सिस्टर्स के रूप में प्रसिद्ध हुईं (उन्होंने कैप्टन परिवार के तीन भाइयों से विवाह किया) और कांग्रेस के काम में जुट गईं, विशेष रूप से खादी के प्रचार में (एक संगठन जिसे उन्होंने स्थापित करने में मदद की, गांधी सेवा सदन। अर्देशिर नौरोजी की सबसे छोटी बेटी खुर्शीद ने राष्ट्रवादी आंदोलन में अपने लिए एक विशेष रूप से अनूठी भूमिका निभाई। पेरिस में प्रशिक्षित एक शास्त्रीय सोप्रानो ने गांधी के साथ काम करने के लिए 1920 में संगीत कैरियर को त्याग दिया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, उन्होंने अहमदाबाद के आसपास के गांवों में शराब की दुकानों पर धरना दिया। 1930 की शुरुआत में, खुर्शीद ने बीहड़ और खतरनाक उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (NWFP) में गांधी के अहिंसा के संदेश को फैलाने का फैसला किया। वह विशेष रूप से सनातन-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध थीं और इस हद तक, उन्होंने मुस्लिम डकैतों (अपराधियों) को हिंदू बंदियों को रिहा करने के लिए सलाह दी, जिनमें से कई का अपहरण कर लिया गया था और संभवतः वजीरिस्तान में अर्ध-दासता में बेच दिया गया था। बन्नू के आसपास के ग्रामीण इलाकों में कई महीनों तक घूमने और ग्रामीणों से मिलने के बाद, खुर्शीद ने अपहरण की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट आई। किसी को आश्चर्य हो सकता है कि पश्तून डाकुओं ने एक उच्च शिक्षित, अकेली पारसी महिला द्वारा उनके शिविरों में घुसकर अहिंसा के बारे में बात करने पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की होगी। वर्ष 1907 में नौरोजी के राजनीति से सेवानिवृत्त होने के बाद परिवार वर्सोवा में एक बड़े बंगले में रहता था जो 1917 में उनकी मृत्यु के बाद भी परिवार के पास रहा। दादाभाई नौरोजी का आज कोई भी वंशज जीवित नहीं है। हैरानी की बात यह है कि आर्देशिर के माध्यम से उनके आठ पोते-पोतियों में से किसी के भी कोई संतान नहीं थी। उनके पोते और संभवतः अंतिम जीवित वंशज सरोश नौरोजी का 1980 में निधन हो गया, और उसके बाद बची हुई पारिवारिक संपत्ति भी खो गई।
स्वराज की अवधारणा -
वर्ष 1906 के अखिल भारतीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उनके द्वारा स्वराज के विषय में दिया गया भाषण चर्चा का विषय रहा। अपने भाषण के दौरान में उन्होंने कहा। भाषण का अंश -
"हम कोई कृपा की याचना नहीं कर रहे हैं, हमें तो केवल न्याय चाहिए। आरंभ से ही अपने प्रयत्नों के दौरान में मुझे इतनी असफलताएँ मिली हैं जो एक व्यक्ति को निराश ही नहीं बल्कि विद्रोही भी बना देने के लिए पर्याप्त थीं, पर मैं हताश नहीं हुआ हूँ और मुझे विश्वास है कि उस थोड़े से समय के भीतर ही, जब तक मै जीवित हूँ, सद्भावना, सचाई तथा संमान से परिपूर्ण स्वयात्त शासन की माँग को परिपूर्ण, करनेवाला संविधान भारत के लिए स्वीकार कर लिया जाएगा।"
भारतोत्थान हेतु प्रयास (प्रस्ताव) -
भारत की नई पीढ़ी की आशाओं को पर लगाने हेतु सांवैधानिक सुधारों को मूर्त रूप देने बाबत प्रस्ताव तैयार करने में व्यस्त रहे। इन प्रस्तावों को ब्रिटिश सरकार ने 20 अगस्त 1917 को स्वीकार करने की घोषणा की। इस घोषणा के द्वारा प्रशासनिक सेवाओं में अधिकाधिक भारतीय सहयोग तथा ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत क्रमश: भारत में उत्तरदायी शासन के विकास के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ।
स्मृतियों में -
शमशेर भालू खां
9587243963
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