भारत माता के लाल
लाला लाजपत राय (पंजाब केसरी)
लाला लाजपत राय का चित्र
नाम - लाजपत
उपाधि -
1 राय
2 लाला (पूर्व समय में बनिये को लाला कहा जाता था)
जन्म तिथि - 28 जनवरी 1865
जन्म स्थान - फरीदकोट (मोगा) के दुधिके, पंजाब
उपनाम - पंजाब केसरी
पिता - मुंशी राधा कृष्ण
पिता का व्यवसाय - उर्दू और फारसी के सरकारी स्कूल के शिक्षक (लाहौर,रेवाड़ी,रोहतक,हिसार,जगराओ)
माता - गुलाब देवी
सहोदर - छः भाई बहन में सबसे बड़े बेटे।
मृत्यु - 17 नवम्बर 1928
मृत्यु के समय आयु - 62 वर्ष
मृत्यु का स्थान - लाहौर, (अब पाकिस्तान)
मृत्यु का कारण - साइमन कमीशन के विरोध में लाठी चार्ज के कारण।
शिक्षा -
प्रारंभिक शिक्षा -
1 जगराओ जिला मोगा पंजाब ,भारत)। उन्होंने अपनी युवावस्था का अधिकांश समय जगराओं में बिताया । उनका घर अभी भी जगराओं में है और इसमें एक पुस्तकालय और संग्रहालय है। उन्होंने जगराओं में पहला शैक्षणिक संस्थान आरके हाई स्कूल भी बनाया।
2 माध्यमिक शिक्षा -
शिक्षा सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रेवाड़ी पंजाब (वर्तमान में हरियाणा) में हुई।
3 सन 1880 में उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया।
व्यवसाय -
1 व्यवसाई,किसान एवं लेखक
2 वकालत - रोहतक और हिसार (कांग्रेस में शामिल होने के बाद वकालत का काम बंद करना पड़ा)
वकालत
पिता के स्थानांतरण के कारण 1884 में रोहतक, 1886 में हिसार आ गए जहां वकालत शुरू की। बाबू चुरामणि के साथ बार काउंसिल ऑफ हिसार के संस्थापक सदस्य बने। 1892 में लाहौर उच्च न्यायालय में वकालत करने के लिए लाहौर चले गये । स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारत की राजनीतिक नीति को आकार देने के हेतु उन्होंने पत्रकारिता भी की और द ट्रिब्यून सहित कई समाचार पत्रों में नियमित योगदान दिया ।
1914 में, उन्होंने खुद को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित करने के लिए कानून की प्रैक्टिस छोड़ दी।
3 स्वतंत्रता सेनानी
राजनीतिक संगठन -
1 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2 कांग्रेस इंडेपिडेंट पार्टी
सामाजिक संगठन -
1 आर्य समाज
2 हिन्दू महासभा
धर्म - सनातन
जाति - अग्रवाल
उप जाति - वाडवाल
तिकड़ी - (गर्म दल) बाल पाल और लाल
(बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय)
लाला जी के नारे और वक्तव्य -
1 अतीत को देखते रहना व्यर्थ है, जब तक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिए कार्य न किया जाए।
2 नेता वह है जिसका नेतृत्व प्रभावशाली हो, जो अपने अनुयायियों से सदैव आगे रहता हो, जो साहसी और निर्भीक हो।
3 पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ शांतिपूर्ण साधनों से उद्देश्य पूरा करने के प्रयास को ही अहिंसा कहते हैं।
5 पराजय और असफलता कभी-कभी विजय की और जरूरी कदम होते हैं।
6 "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।"
पद -
1 विधायक पंजाब प्रांत असेंबली
2 अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी
3 संस्थापक कांग्रेस इंडेपिडेंट पार्टी
कार्य -
1 1884 में पंजाब नेशनल बैंक के संस्थापक सदस्य
2 लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना
3 सन 1921 में लाहौर में एक गैर-लाभकारी कल्याण संगठन, सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी की स्थापना की जिसने अपना आधार दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया। विभाजन के बाद, और भारत के कई हिस्सों में इसकी शाखाएँ हैं।
4 संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हुए उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग और एक मासिक पत्रिका, यंग इंडिया और हिंदुस्तान इंफॉर्मेशन सर्विसेज एसोसिएशन की स्थापना की।
लाला जी की खुद्दारी की बचपन की दिल छूने लेने वाली कहानी -
एक बार स्कूल की तरफ से पिकनिक का आयोजन किया गया। इसमें लाला लाजपत राय को भी जाना था। लेकिन न उनके पास पैसे थे और न घर में सामान, ताकि उनकी मां पिकनिक पर ले जाने के लिए कुछ बना सकें। उनके पिता बेटे का दिल न टूटे, इसके लिए पड़ोसी के घर उधार मांगने जा रहे थे, तो उन्हें यह बात पता चल गई। उन्होंने कहा कि पिताजी! उधार के लिए मत जाइए, मैं वैसे भी पिकनिक पर नहीं जाना चाहता था। अगर मुझे जाना भी होगा, तो घर में खजूर है वही लेकर चला जाऊंगा।
लाला जी का जीवन वृत्त :-
बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की जिसे कांग्रेस ने अपनाया और पूरे देश में यह भावना आग की तरह फैली।
लालाजी ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज का प्रचार किया।
लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का की स्थापना कर प्रचार - प्रसार किया जिसे हम डी.ए.वी. कालेज के नाम से जानते हैं।
लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की।
राजनीति -
1888 में और फिर 1889 में, उन्हें बाबू चुरामणि, लाला छबील दास और सेठ गौरी शंकर के साथ, इलाहाबाद में कांग्रेस के वार्षिक सत्र में भाग लेने के लिए हिसार से चार प्रतिनिधियों के साथ शामिल हुए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने और पंजाब में राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने और तोड़फोड़ करने के आरोप में लालाजी को मांडले निर्वासित कर दिया गया। लाजपत राय के समर्थकों ने दिसंबर 1907 में सूरत में पार्टी सत्र के अध्यक्ष पद के लिए उनका चुनाव सुनिश्चित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
नेशनल कॉलेज लाहौर के स्नातक छात्र जिसे उन्होंने ब्रिटिश शैली के संस्थानों के विकल्प के रूप में लाहौर में ब्रैडलॉफ हॉल के अंदर स्थापित किया था में भगत सिंह भी शामिल थे । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष सत्र का नेतृत्व किया 1920 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्हें 1921 से 1923 तक जेल में रखा गया और रिहा होने पर विधान सभा के लिए चुने गए।
संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा करें -
12 फरवरी 1916 को बर्कले के होटल शट्टक में हिंदुस्तान एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के कैलिफोर्निया चैप्टर द्वारा लाला लाजपत राय के सम्मान में एक भोज दिया गया।
लाजपत राय ने 1916 में संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा की, और फिर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वापस लौटे। उन्होंने पश्चिमी समुद्री तट पर सिख समुदायों का दौरा किया, अलबामा में टस्केगी विश्वविद्यालय का दौरा किया और फिलीपींस में श्रमिकों से मुलाकात की।
उनका यात्रा वृत्तांत, द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका (1916) इन यात्राओं का विवरण देता है और इसमें वेब.डु. बोइस और बुकर टी. वाशिंगटन सहित प्रमुख अफ्रीकी अमेरिकी बुद्धिजीवियों के व्यापक उद्धरण शामिल हैं । संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हुए उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग और एक मासिक पत्रिका, यंग इंडिया और हिंदुस्तान इंफॉर्मेशन सर्विसेज एसोसिएशन की स्थापना की।
लालाजी ने यूनाइटेड स्टेट्स हाउस कमेटी ऑन फॉरेन अफेयर्स में याचिका दायर की जिसमें भारत में ब्रिटिश राज द्वारा कुप्रबंधन की एक ज्वलंत तस्वीर पेश की गई , स्वतंत्रता के लिए भारतीय जनता की आकांक्षाओं के अलावा कई अन्य बिंदुओं पर भी जोर दिया गया, जिसमें भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन की मांग की। 32 पन्नों की इस याचिका में जो रातों रात तैयार की गई, अक्टूबर 1917 में अमेरिकी सीनेट के समक्ष चर्चा हेतु रखी गई ।
प्रथम विश्व युद्ध के समय लाजपत राय संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे थे 1919 में भारत लौट आए।
गांधी जी के नरम रवैए से नाराज हो कर नई पार्टी कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई -
साल 1920 में जब वह अमेरिका से वापस आए तो उन्हें कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष सत्र की अध्यक्षता करने के लिए बुलाया गया। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र विरोध किया। गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, तब उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने गांधीजी के चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन वापस लेने के फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने अपनी कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बना ली।
साइमन कमीशन के सदस्य
सर जॉन साइमन स्पेन वैली के लिए सांसद (लिबरल पार्टी अध्यक्ष)
2 क्लीमेंट एटली (लाइमहाउस के लिए सांसद,श्रम)
3 हैरी लेवी-लॉसन(सांसद विस्काउंट बर्नहैम)
4 एडवर्ड कैडोगन (सांसद फ़िंचलीकंज़र्वेटिव)
5 वरनोन हारटशोर्न (सांसद ओग्मोर,श्रम)
6 जॉर्ज लेन-फॉक्स (सांसद बार्कस्टन ऐश कंजर्वेटिव)
7 डोनाल्ड हॉवर्ड (तीसरा बैरन स्ट्रैथाकोना और माउंट रॉयल)
घटनाक्रम -
3 फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया।
1927 में मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें सर्वसम्मति से साइमन कमीशन के बहिष्कार का फैसला लिया गया जिस का मुस्लिम लीग ने साइमन के बहिष्कार के फैसले का समर्थन किया।
3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा। साइमन कोलकाता लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे सहित जहाँ जहाँ भी पहुंचा उसे जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए। पूरे देश में साइमन गो बैक (साइमन वापस जाओ) के नारे गूंजने लगे। लखनऊ में हुए लाठीचार्ज में पंडित जवाहर लाल नेहरू घायल हो गए और गोविंद वल्लभ पंत अपंग।
30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया।
साइमन कमीशन का विरोध -
साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे जो भारतीयों का बहुत बड़ा अपमान था। चौरी चौरा की घटना के बाद असहयोग आन्दोलन वापस लिए जाने के बाद आजा़दी की लड़ाई में एक ठहराव आ गया अब साइमन कमीशन के गठन की घोषणा से तेजी से फैलने लगा।
कमीशन का गठन 8 नवम्बर 1927 में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था और इसका मुख्य कार्य ये था कि मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार कि जांच करना था।
30 अक्टूबर 1928 को संवैधानिक सुधारों की समीक्षा पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए सात सदस्यीय साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा। पूरे भारत में "साइमन गो बैक" के गगन भेदी नारे गूंज रहे थे। इस कमीशन के सारे ही सदस्य गोरे थे उनमें एक भी भारतीय नहीं था।
लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया। नौजवान भारत सभा के क्रांतिकारियों ने साइमन विरोधी सभा एवं प्रदर्शन का संचालन संभाला। जहां से कमीशन के सदस्यों को निकलना था, वहां भीड़ ज्यादा थी। लाहौर के पुलिस अधीक्षक स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया और उप अधीक्षक सांडर्स जनता पर टूट पड़ा। भगत सिंह और उनके साथियों ने यह अत्याचार का हिंसात्मक विरोध करना चाहा परन्तु लाला जी ने शांत कर दिया।
लाहौर का आकाश ब्रिटिश सरकार विरोधी नारों से गूंज रहा था और प्रदर्शनकारियों के सिर फूट रहे थे। इतने में स्कॉट स्वयं लाठी से लाला लाजपत राय को निर्दयता से पीटने लगा और वह गंभीर रूप से घायल हुए। लाठियां खाते हुए कहा कि "मेरे शरीर पर जो लाठियां बरसाई गई हैं वे भारत में ब्रिटिश शासन के ताबूत में अंतिम कील साबित होंगी।
18 दिन बाद 17 नवम्बर 1928 को यही लाठियां लाला लाजपत राय की शहादत का कारण बनीं। क्रांतिकारियों की दृष्टि में यह राष्ट्र का अपमान था जिसका प्रतिशोध खून के बदले खून के सिद्धांत से लिया जान था।
10 दिसम्बर 1928 की रात को निर्णायक फैसले हुए। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद,राजगुरु, सुखदेव,जयगोपाल, दुर्गा भाभी आदि एकत्रित हुए। भगत सिंह स्कॉट को स्वयं मारने की शपथ ली। आजाद,राजगुरु,सुखदेव और जयगोपाल सहित भगत सिंह ने बदले की योजना संभालना शुरू कर दिया।
17 दिसम्बर 1928 को उप-अधीक्षक सांडर्स दफ्तर से बाहर निकला। उसे ही स्कॉट समझकर राजगुरु ने गोली चलाई, भगत सिंह ने उसके सिर पर गोलियां मारीं।
अगले दिन इश्तिहार बांटे गए जो लाहौर की दीवारों पर चिपका दिये गए। लिखा था हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध ले लिया है।
लाहौर से भगत सिंह गौरे के भेष में,गोद में बच्चा उठाए वीरांगना दुर्गा भाभी के साथ कोलकाता मेल में जा बैठे। राजगुरु नौकरों के डिब्बे में आजाद (साधु के वेष में) किसी अन्य डिब्बे में जा बैठे। स्वतंत्रता
कोलकाता में भगत सिंह अनेक क्रांतिकारियों से मिले। भगवती चरण वहां पहले ही पहुंचे हुए थे। सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का विचार कोलकाता में ही बना था। इसके लिए अवसर भी शीघ्र ही मिल गया। केन्द्रीय असेंबली में दो बिल पेश होने वाले थे-
1 जन सुरक्षा बिल
2 औद्योगिक विवाद बिल
जिनका उद्देश्य देश में उठते युवक आंदोलन को कुचलना और मजदूरों को हड़ताल के अधिकार से वंचित रखना था।
भगत सिंह और आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की बैठक में यह फैसला किया गया कि 8 अप्रैल 1929 को जिस समय वायसराय असेंबली में इन दोनों प्रस्तावों को कानून बनाने की घोषणा करें तभी बम धमाका किया जाये। इस हेतु बटुकेश्वर दत्त और विजय कुमार सिन्हा को चुना गया पर बाद में भगत सिंह ने यह कार्य दत्त के साथ स्वयं ही करने का निर्णय लिया।
जब वायसराय जन विरोधी, भारत विरोधी प्रस्तावों को कानून बनाने की घोषणा करने के लिए उठे, दत्त और भगत सिंह भी खड़े हो गए। पहला बम भगत सिंह ने और दूसरा दत्त ने फेंकते हुए "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाने शुरू कर दिए।
सदन में खलबली मच गई, जॉर्ज शुस्टर अपनी मेज के नीचे छिप गया। सार्जेन्ट टेरी इतना भयभीत था कि वह इन दोनों को गिरफ्तार नहीं कर पाया। दत्त और भगत सिंह आसानी से भाग सकते थे लेकिन वे स्वेच्छा से बंदी बने। उन्हें दिल्ली जेल में रखा गया और वहीं मुकदमा भी चला।
इसके बाद दोनों को लाहौर ले जाया गया।
लाहौर से भगत सिंह को मियांवाली जेल में लाया गया। लाहौर में सांडर्स की हत्या, असेंबली में बम धमाका आदि मामले चले।
क्रांतिकारियों को सजा -
7 अक्टूबर 1930 को ट्रिब्यूनल का फैसला जेल में पहुंचा -
1 भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा
2 कमलनाथ तिवारी, विजय कुमार सिन्हा, जयदेव कपूर, शिव वर्मा,गया प्रसाद, किशोर लाल और महावीर सिंह को आजीवन कारावास।
3 कुंदनलाल को सात साल तथा प्रेमदत्त को तीन साल का कठोर कारावास हुआ।
4 बटुकेश्वर दत्त को असेंबली बम कांड के लिए उम्रकैद का दंड सुनाया गया।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट में निम्नानुसार सुझाव दिये गये -
(1) प्रांतीय क्षेत्र में विधि तथा व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार गठित की जाये।
(2) केन्द्र में उत्तरदायी सरकार के गठन का गठन हो।
(3) केंद्रीय विधान मण्डल को पुनर्गठित किया जाय जिसमें एक इकाई की भावना को छोड़कर संघीय भावना का पालन किया जाय। साथ ही इसके सदस्य परोक्ष पद्धति से प्रांतीय विधान मण्डलों द्वारा चुने जाएं।
भारत में एक संघ की स्थापना हो जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासतें शामिल हों।
4 वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को विशेष शक्तियाँ दी जाएं।
5 एक लचीले संविधान का निर्माण हो।
लाला लाजपत राय का धार्मिक दर्शन -
शिक्षा काल में वे लाला हंस राज और पंडित गुरु दत्त जैसे देशभक्तों और भावी स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये ।
लाहौर में अध्ययन के दौरान वे स्वामी दयानंद सरस्वती के सनातन सुधारवादी आंदोलन से प्रभावित हुए और 1877 में आर्य समाज लाहौर के सदस्य और लाहौर स्थित आर्य गजट के संस्थापक-संपादक बने ।
1887 में उन्होंने महात्मा हंसराज के साथ राष्ट्रवादी दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल, लाहौर की स्थापना में मदद की, और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की हिसार जिला शाखाओं और कई अन्य स्थानीय नेताओं के साथ सुधारवादी आर्य समाज आंदोलन की भी स्थापना की। इनमें बाबू चुरामणि (वकील), तीन तायल भाई (चंदू लाल तायल, हरि लाल तायल और बालमोकंद तायल), डॉ. रामजी लाल हुडा, डॉ. धनी राम, आर्य समाज पंडित मुरारी लाल,सेठ छाजू राम जाट (जाट स्कूल, हिसार के संस्थापक ) और देव राज संधीर के साथ मिलकर आर्य समाज का प्रचार किया।
उनका प्रारंभिक स्वतंत्रता संग्राम आर्य समाज और सनातन साहित्य प्रचार से प्रभावित था।
उनके अनुसार सनातन समाज को जाति व्यवस्था, महिलाओं की स्थिति और अस्पृश्यता से अपनी लड़ाई खुद लड़ने की जरूरत है। वेद सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे और सभी को उन्हें पढ़ने और मंत्रों का उच्चारण करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
राष्ट्र भाषा हिंदी के उत्थान हेतु कार्य -
लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण, मैजिनी, गैरिबॉल्डी एवं कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। उन्होने देश में मुख्यत पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया। देश में हिन्दी भाषा को लागू करने के लिये उन्होने हस्ताक्षर अभियान चलाया था।
लाला लाजपत राय ट्रस्ट -
1959 में पंजाबी मूल के महाराष्ट्र में बसने वाले आर.पी. गुप्ता और बी.एम. ग्रोवर ने लाला लाजपत राय ट्रस्ट का गठन किया ।
जो लाला लाजपत राय चलाता है।
मुंबई में वाणिज्य और अर्थशास्त्र कॉलेज।
संस्थाओं का नामकरण -
1 दिल्ली में एक कॉलोनी का नाम लाजपत नगर रखा गया। जहां चौक पर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई। वहीं उनके नाम से बाजार का नामकरण लाजपत राय सेंट्रल मार्केट किया गया।
2 लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, मेरठ
3 सन 1998 में लाला लाजपत राय इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मोगा का नामकरण।
4 सन 2010 में हरियाणा सरकार ने उनकी याद में लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार की स्थापना की।
5 लाला लाजपत राय चौक हिसार का नामकरण।
6 लाजपत नगर में लाला लाजपत राय मेमोरियल पार्क
7 चांदनी चौक दिल्ली में लाजपत राय मार्केट
8 खड़गपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में लाला लाजपत राय हॉल ऑफ़ रेजिडेंस
9 कानपुर में लाला लाजपत राय अस्पताल व बस टर्मिनल
10 उनके गृहनगर जगराओं में कई संस्थानों, स्कूलों और पुस्तकालयों के नाम उनके सम्मान में रखे गए हैं। जिसमें प्रवेश द्वार पर उनकी प्रतिमा के साथ एक बस टर्मिनल भी शामिल है।
11 इसके अलावा, भारत के कई महानगरों और अन्य शहरों में उनके नाम पर कई सड़कें हैं।
लाला जी द्वारा लेखन कार्य -
1 अंग्रेजी में लिखी पुस्तक Un happy India (दुखी भारत) 1927।
2 Young India
3 England's Debt to India 1917
4 The Political Future of India
5 The Story of My Life (आत्मकथा)
लाला लाजपत राय की एकत्रित रचनाएँ, खंड 1 से खंड 15, बीआर नंदा द्वारा संपादित।
आत्मकथात्मक लेखन
युवा भारत: भीतर से राष्ट्रवादी आंदोलन की व्याख्या
6 द पंजाबी और तरुण भरण इनकी पत्रिकाऐं हैं।
7 शिवाजी की कथा
8 श्रीकृष्ण कथा
9 मैजिनी (हिंदी में जीवन वृत्त)
10 गैरिबॉल्डी (हिंदी में जीवन वृत्त)
11 संस्थापक एवं संपादक - आर्य गजट
12 लेख लेखन - हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और उर्दू समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में
13 मेरे निर्वासन की कहानी 1908
14 आर्य समाज 1915
15 संयुक्त राज्य अमेरिका, एक हिंदू की छाप 1916
(न्यूयॉर्क: बीडब्ल्यू ह्यूबश, 1916)
16 भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या 1920
शमशेर भालू खां गांधी
जिगर चुरुवी
9587243963