Monday, 29 January 2024

लाला लाजपत राय

           
                    भारत माता के लाल
             लाला लाजपत राय (पंजाब केसरी)

                       एक वास्तविक चित्र

                लाला लाजपत राय का चित्र 
नाम - लाजपत
उपाधि
1 राय
2 लाला (पूर्व समय में बनिये को लाला कहा जाता था)
जन्म तिथि  - 28 जनवरी 1865
जन्म स्थान - फरीदकोट (मोगा) के दुधिके, पंजाब
उपनाम - पंजाब केसरी 
पिता - मुंशी राधा कृष्ण
पिता का व्यवसाय - उर्दू और फारसी के सरकारी स्कूल के शिक्षक (लाहौर,रेवाड़ी,रोहतक,हिसार,जगराओ)
माता - गुलाब देवी
सहोदर - छः भाई बहन में सबसे बड़े बेटे। 
मृत्यु - 17 नवम्बर 1928
मृत्यु के समय आयु -  62 वर्ष 
मृत्यु का स्थान -  लाहौर, (अब पाकिस्तान) 
मृत्यु का कारण - साइमन कमीशन के विरोध में लाठी चार्ज के कारण।
शिक्षा -
प्रारंभिक शिक्षा
1 जगराओ जिला मोगा पंजाब ,भारत)। उन्होंने अपनी युवावस्था का अधिकांश समय जगराओं में बिताया । उनका घर अभी भी जगराओं में है और इसमें एक पुस्तकालय और संग्रहालय है। उन्होंने जगराओं में पहला शैक्षणिक संस्थान आरके हाई स्कूल भी बनाया।
2 माध्यमिक शिक्षा
शिक्षा सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रेवाड़ी पंजाब (वर्तमान में हरियाणा) में हुई।
3 सन 1880 में उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए लाहौर के सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया।
व्यवसाय -  
1 व्यवसाई,किसान एवं लेखक
2 वकालत - रोहतक और हिसार (कांग्रेस में शामिल होने के बाद वकालत का काम बंद करना पड़ा)
वकालत
पिता के स्थानांतरण के कारण 1884 में रोहतक, 1886 में हिसार आ गए जहां वकालत शुरू की। बाबू चुरामणि के साथ बार काउंसिल ऑफ हिसार के संस्थापक सदस्य बने। 1892 में लाहौर उच्च न्यायालय में वकालत करने के लिए लाहौर चले गये । स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भारत की राजनीतिक नीति को आकार देने के हेतु उन्होंने पत्रकारिता भी की और द ट्रिब्यून सहित कई समाचार पत्रों में नियमित योगदान दिया । 
1914 में, उन्होंने खुद को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित करने के लिए कानून की प्रैक्टिस छोड़ दी।
3 स्वतंत्रता सेनानी 
राजनीतिक संगठन 
1 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
2 कांग्रेस इंडेपिडेंट पार्टी
सामाजिक संगठन -
1 आर्य समाज
2 हिन्दू महासभा
धर्म -  सनातन
जाति - अग्रवाल
उप जाति - वाडवाल
तिकड़ी - (गर्म दल) बाल पाल और लाल
(बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय)
                  बाल, पाल और लाल

लाला जी के नारे और वक्तव्य -
1 अतीत को देखते रहना व्यर्थ है, जब तक उस अतीत पर गर्व करने योग्य भविष्य के निर्माण के लिए कार्य न किया जाए।
2 नेता वह है जिसका नेतृत्व प्रभावशाली हो, जो अपने अनुयायियों से सदैव आगे रहता हो, जो साहसी और निर्भीक हो।
3 पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ शांतिपूर्ण साधनों से उद्देश्य पूरा करने के प्रयास को ही अहिंसा कहते हैं।
5 पराजय और असफलता कभी-कभी विजय की और जरूरी कदम होते हैं।
6 "मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।"
पद -
1 विधायक पंजाब प्रांत असेंबली
2 अध्यक्ष कांग्रेस पार्टी
3 संस्थापक कांग्रेस इंडेपिडेंट पार्टी

कार्य
1 1884 में पंजाब नेशनल बैंक के संस्थापक सदस्य
2  लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना
3 सन 1921 में लाहौर में एक गैर-लाभकारी कल्याण संगठन, सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी की स्थापना की जिसने अपना आधार दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया। विभाजन के बाद, और भारत के कई हिस्सों में इसकी शाखाएँ हैं।
4 संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हुए उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग और एक मासिक पत्रिका, यंग इंडिया और हिंदुस्तान इंफॉर्मेशन सर्विसेज एसोसिएशन की स्थापना की।

लाला जी की खुद्दारी की बचपन की दिल छूने लेने वाली कहानी -
एक बार स्कूल की तरफ से पिकनिक का आयोजन किया गया। इसमें लाला लाजपत राय को भी जाना था। लेकिन न उनके पास पैसे थे और न घर में सामान, ताकि उनकी मां पिकनिक पर ले जाने के लिए कुछ बना सकें। उनके पिता बेटे का दिल न टूटे, इसके लिए पड़ोसी के घर उधार मांगने जा रहे थे, तो उन्हें यह बात पता चल गई। उन्होंने कहा कि पिताजी! उधार के लिए मत जाइए, मैं वैसे भी पिकनिक पर नहीं जाना चाहता था। अगर मुझे जाना भी होगा, तो घर में खजूर है वही लेकर चला जाऊंगा।

लाला जी का जीवन वृत्त :-
बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था। इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की जिसे कांग्रेस ने अपनाया और पूरे देश में यह भावना आग की तरह फैली। 
लालाजी ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज का प्रचार किया। 
लाला हंसराज एवं कल्याण चन्द्र दीक्षित के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का की स्थापना कर प्रचार - प्रसार किया जिसे हम डी.ए.वी. कालेज के नाम से जानते हैं। 
लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की।

राजनीति -
1888 में और फिर 1889 में, उन्हें बाबू चुरामणि, लाला छबील दास और सेठ गौरी शंकर के साथ, इलाहाबाद में कांग्रेस के वार्षिक सत्र में भाग लेने के लिए हिसार से चार प्रतिनिधियों के साथ शामिल हुए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने और पंजाब में राजनीतिक आंदोलन में भाग लेने और तोड़फोड़ करने के आरोप में लालाजी को मांडले निर्वासित कर दिया गया। लाजपत राय के समर्थकों ने दिसंबर 1907 में सूरत में पार्टी सत्र के अध्यक्ष पद के लिए उनका चुनाव सुनिश्चित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। 
नेशनल कॉलेज लाहौर के स्नातक छात्र जिसे उन्होंने ब्रिटिश शैली के संस्थानों के विकल्प के रूप में लाहौर में ब्रैडलॉफ हॉल के अंदर स्थापित किया था में भगत सिंह भी शामिल थे । भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष सत्र का नेतृत्व किया 1920 में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए। असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्हें 1921 से 1923 तक जेल में रखा गया और रिहा होने पर विधान सभा के लिए चुने गए।

संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा करें -
12 फरवरी 1916 को बर्कले के होटल शट्टक में हिंदुस्तान एसोसिएशन ऑफ अमेरिका के कैलिफोर्निया चैप्टर द्वारा लाला लाजपत राय के सम्मान में एक भोज दिया गया।
लाजपत राय ने 1916 में संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा की, और फिर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वापस लौटे। उन्होंने पश्चिमी समुद्री तट पर सिख समुदायों का दौरा किया, अलबामा में टस्केगी विश्वविद्यालय का दौरा किया और फिलीपींस में श्रमिकों से मुलाकात की। 
उनका यात्रा वृत्तांत, द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका (1916) इन यात्राओं का विवरण देता है और इसमें वेब.डु. बोइस और बुकर टी. वाशिंगटन सहित प्रमुख अफ्रीकी अमेरिकी बुद्धिजीवियों के व्यापक उद्धरण शामिल हैं । संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हुए उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में इंडियन होम रूल लीग और एक मासिक पत्रिका, यंग इंडिया और हिंदुस्तान इंफॉर्मेशन सर्विसेज एसोसिएशन की स्थापना की।
लालाजी ने यूनाइटेड स्टेट्स हाउस कमेटी ऑन फॉरेन अफेयर्स में याचिका दायर की जिसमें भारत में ब्रिटिश राज द्वारा कुप्रबंधन की एक ज्वलंत तस्वीर पेश की गई , स्वतंत्रता के लिए भारतीय जनता की आकांक्षाओं के अलावा कई अन्य बिंदुओं पर भी जोर दिया गया, जिसमें भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन की मांग की। 32 पन्नों की इस याचिका में जो रातों रात तैयार की गई, अक्टूबर 1917 में अमेरिकी सीनेट के समक्ष चर्चा हेतु रखी गई । 
प्रथम विश्व युद्ध के समय लाजपत राय संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे थे 1919 में भारत लौट आए।
   अमेरिका में लिया गया चित्र लाला जी के साथ

गांधी जी के नरम रवैए से नाराज हो कर नई पार्टी कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बनाई -
साल 1920 में जब वह अमेरिका से वापस आए तो उन्हें कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष सत्र की अध्यक्षता करने के लिए बुलाया गया। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ ब्रिटिश शासन के खिलाफ उग्र विरोध किया। गांधीजी ने 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, तब उन्होंने पंजाब में आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने गांधीजी के चौरी चौरा घटना के बाद आंदोलन वापस लेने के फैसले का विरोध किया। इसके बाद उन्होंने अपनी कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी बना ली।

साइमन कमीशन के सदस्य
सर जॉन साइमन स्पेन वैली के लिए सांसद (लिबरल पार्टी अध्यक्ष)
2 क्लीमेंट एटली (लाइमहाउस के लिए सांसद,श्रम)
3 हैरी लेवी-लॉसन(सांसद विस्काउंट बर्नहैम)
4 एडवर्ड कैडोगन (सांसद फ़िंचलीकंज़र्वेटिव)
5 वरनोन हारटशोर्न (सांसद ओग्मोर,श्रम)
6 जॉर्ज लेन-फॉक्स (सांसद बार्कस्टन ऐश कंजर्वेटिव)
7 डोनाल्ड हॉवर्ड (तीसरा बैरन स्ट्रैथाकोना और माउंट रॉयल)

घटनाक्रम -
3 फरवरी 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। 
1927 में मद्रास में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें सर्वसम्मति से साइमन कमीशन के बहिष्कार का फैसला लिया गया जिस का मुस्लिम लीग ने साइमन के बहिष्कार के फैसले का समर्थन किया।
3 फरवरी 1928 को कमीशन भारत पहुंचा। साइमन कोलकाता लाहौर लखनऊ, विजयवाड़ा और पुणे सहित जहाँ जहाँ भी पहुंचा उसे जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा और लोगों ने उसे काले झंडे दिखाए। पूरे देश में साइमन गो बैक (साइमन वापस जाओ) के नारे गूंजने लगे। लखनऊ में हुए लाठीचार्ज में पंडित जवाहर लाल नेहरू घायल हो गए और गोविंद वल्लभ पंत अपंग। 
30 अक्टूबर 1928 को लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया।

साइमन कमीशन का विरोध -
साइमन कमीशन के सभी सदस्य अंग्रेज थे जो भारतीयों का बहुत बड़ा अपमान था। चौरी चौरा की घटना के बाद असहयोग आन्दोलन वापस लिए जाने के बाद आजा़दी की लड़ाई में एक ठहराव आ गया अब साइमन कमीशन के गठन की घोषणा से तेजी से फैलने लगा। 
कमीशन का गठन 8 नवम्बर 1927 में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था और इसका मुख्य कार्य ये था कि मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार कि जांच करना था। 
30 अक्टूबर 1928 को संवैधानिक सुधारों की समीक्षा पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए सात सदस्यीय साइमन कमीशन लाहौर पहुंचा। पूरे भारत में "साइमन गो बैक" के गगन भेदी नारे गूंज रहे थे। इस कमीशन के सारे ही सदस्य गोरे थे उनमें एक भी भारतीय नहीं था।
लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन का नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया। नौजवान भारत सभा के क्रांतिकारियों ने साइमन विरोधी सभा एवं प्रदर्शन का संचालन संभाला। जहां से कमीशन के सदस्यों को निकलना था, वहां भीड़ ज्यादा थी। लाहौर के पुलिस अधीक्षक स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया और उप अधीक्षक सांडर्स जनता पर टूट पड़ा। भगत सिंह और उनके साथियों ने यह अत्याचार का हिंसात्मक विरोध करना चाहा परन्तु लाला जी ने शांत कर दिया। 
लाहौर का आकाश ब्रिटिश सरकार विरोधी नारों से गूंज रहा था और प्रदर्शनकारियों के सिर फूट रहे थे। इतने में स्कॉट स्वयं लाठी से लाला लाजपत राय को निर्दयता से पीटने लगा और वह गंभीर रूप से घायल हुए। लाठियां खाते हुए कहा कि "मेरे शरीर पर जो लाठियां बरसाई गई हैं वे भारत में ब्रिटिश शासन के ताबूत में अंतिम कील साबित होंगी। 
18 दिन बाद 17 नवम्बर 1928 को यही लाठियां लाला लाजपत राय की शहादत का कारण बनीं। क्रांतिकारियों की दृष्टि में यह राष्ट्र का अपमान था जिसका प्रतिशोध खून के बदले खून के सिद्धांत से लिया जान था। 
10 दिसम्बर 1928 की रात को निर्णायक फैसले हुए। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद,राजगुरु, सुखदेव,जयगोपाल, दुर्गा भाभी आदि एकत्रित हुए। भगत सिंह स्कॉट को स्वयं मारने की शपथ ली। आजाद,राजगुरु,सुखदेव और जयगोपाल सहित भगत सिंह ने बदले की योजना संभालना शुरू कर दिया।
17 दिसम्बर 1928 को उप-अधीक्षक सांडर्स दफ्तर से बाहर निकला। उसे ही स्कॉट समझकर राजगुरु ने गोली चलाई, भगत सिंह ने उसके सिर पर गोलियां मारीं। 
अगले दिन इश्तिहार बांटे गए जो लाहौर की दीवारों पर चिपका दिये गए। लिखा था हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ने लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध ले लिया है। 
लाहौर से भगत सिंह गौरे के भेष में,गोद में बच्चा उठाए वीरांगना दुर्गा भाभी के साथ कोलकाता मेल में जा बैठे। राजगुरु नौकरों के डिब्बे में आजाद (साधु के वेष में) किसी अन्य डिब्बे में जा बैठे। स्वतंत्रता 
कोलकाता में भगत सिंह अनेक क्रांतिकारियों से मिले। भगवती चरण वहां पहले ही पहुंचे हुए थे। सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का विचार कोलकाता में ही बना था। इसके लिए अवसर भी शीघ्र ही मिल गया। केन्द्रीय असेंबली में दो बिल पेश होने वाले थे- 
1 जन सुरक्षा बिल
2 औद्योगिक विवाद बिल
जिनका उद्देश्य देश में उठते युवक आंदोलन को कुचलना और मजदूरों को हड़ताल के अधिकार से वंचित रखना था।
भगत सिंह और आजाद के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की बैठक में यह फैसला किया गया कि 8 अप्रैल 1929 को जिस समय वायसराय असेंबली में इन दोनों प्रस्तावों को कानून बनाने की घोषणा करें तभी बम धमाका किया जाये। इस हेतु बटुकेश्वर दत्त और विजय कुमार सिन्हा को चुना गया पर बाद में भगत सिंह ने यह कार्य दत्त के साथ स्वयं ही करने का निर्णय लिया।
जब वायसराय जन विरोधी, भारत विरोधी प्रस्तावों को कानून बनाने की घोषणा करने के लिए उठे, दत्त और भगत सिंह भी खड़े हो गए। पहला बम भगत सिंह ने और दूसरा दत्त ने फेंकते हुए "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाने शुरू कर दिए। 
सदन में खलबली मच गई, जॉर्ज शुस्टर अपनी मेज के नीचे छिप गया। सार्जेन्ट टेरी इतना भयभीत था कि वह इन दोनों को गिरफ्तार नहीं कर पाया। दत्त और भगत सिंह आसानी से भाग सकते थे लेकिन वे स्वेच्छा से बंदी बने। उन्हें दिल्ली जेल में रखा गया और वहीं मुकदमा भी चला।
इसके बाद दोनों को लाहौर ले जाया गया।
लाहौर से भगत सिंह को मियांवाली जेल में लाया गया। लाहौर में सांडर्स की हत्या, असेंबली में बम धमाका आदि मामले चले।

क्रांतिकारियों को सजा -
7 अक्टूबर 1930 को ट्रिब्यूनल का फैसला जेल में पहुंचा - 
1 भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा 
2 कमलनाथ तिवारी, विजय कुमार सिन्हा, जयदेव कपूर, शिव वर्मा,गया प्रसाद, किशोर लाल और महावीर सिंह को आजीवन कारावास। 
3 कुंदनलाल को सात साल तथा प्रेमदत्त को तीन साल का कठोर कारावास हुआ। 
4 बटुकेश्वर दत्त को असेंबली बम कांड के लिए उम्रकैद का दंड सुनाया गया।

साइमन कमीशन की रिपोर्ट में निम्नानुसार सुझाव दिये गये -
(1) प्रांतीय क्षेत्र में विधि तथा व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार गठित की जाये।
(2) केन्द्र में उत्तरदायी सरकार के गठन का गठन हो।
(3) केंद्रीय विधान मण्डल को पुनर्गठित किया जाय जिसमें एक इकाई की भावना को छोड़कर संघीय भावना का पालन किया जाय। साथ ही इसके सदस्य परोक्ष पद्धति से प्रांतीय विधान मण्डलों द्वारा चुने जाएं।
भारत में एक संघ की स्थापना हो जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांत और देशी रियासतें शामिल हों।
4 वायसराय और प्रांतीय गवर्नर को विशेष शक्तियाँ दी जाएं।
5 एक लचीले संविधान का निर्माण हो।

लाला लाजपत राय का धार्मिक दर्शन - 
शिक्षा काल में वे लाला हंस राज और पंडित गुरु दत्त जैसे देशभक्तों और भावी स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये । 
लाहौर में अध्ययन के दौरान वे स्वामी दयानंद सरस्वती के सनातन सुधारवादी आंदोलन से प्रभावित हुए और 1877 में आर्य समाज लाहौर के सदस्य और लाहौर स्थित आर्य गजट के संस्थापक-संपादक बने ।
1887 में उन्होंने महात्मा हंसराज के साथ राष्ट्रवादी दयानंद एंग्लो-वैदिक स्कूल, लाहौर की स्थापना में मदद की, और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की हिसार जिला शाखाओं और कई अन्य स्थानीय नेताओं के साथ सुधारवादी आर्य समाज आंदोलन की भी स्थापना की। इनमें बाबू चुरामणि (वकील), तीन तायल भाई (चंदू लाल तायल, हरि लाल तायल और बालमोकंद तायल), डॉ. रामजी लाल हुडा, डॉ. धनी राम, आर्य समाज पंडित मुरारी लाल,सेठ छाजू राम जाट (जाट स्कूल, हिसार के संस्थापक ) और देव राज संधीर के साथ मिलकर आर्य समाज का प्रचार किया।
उनका प्रारंभिक स्वतंत्रता संग्राम आर्य समाज और सनातन साहित्य प्रचार से प्रभावित था।
उनके अनुसार सनातन समाज को जाति व्यवस्था, महिलाओं की स्थिति और अस्पृश्यता से अपनी लड़ाई खुद लड़ने की जरूरत है। वेद सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे और सभी को उन्हें पढ़ने और मंत्रों का उच्चारण करने की अनुमति दी जानी चाहिए।

राष्ट्र भाषा हिंदी के उत्थान हेतु कार्य -
लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण, मैजिनी, गैरिबॉल्डी एवं कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। उन्होने देश में मुख्यत पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया। देश में हिन्दी भाषा को लागू करने के लिये उन्होने हस्ताक्षर अभियान चलाया था।

लाला लाजपत राय ट्रस्ट -
1959 में पंजाबी मूल के महाराष्ट्र में बसने वाले आर.पी. गुप्ता और बी.एम. ग्रोवर ने लाला लाजपत राय ट्रस्ट का गठन किया ।
जो लाला लाजपत राय चलाता है। 
मुंबई में वाणिज्य और अर्थशास्त्र कॉलेज।

संस्थाओं का नामकरण -
1 दिल्ली में एक कॉलोनी का नाम लाजपत नगर रखा गया। जहां चौक पर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई। वहीं उनके नाम से बाजार का नामकरण लाजपत राय सेंट्रल मार्केट किया गया।
2 लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, मेरठ
3 सन 1998 में लाला लाजपत राय इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मोगा का नामकरण। 
4 सन 2010 में हरियाणा सरकार ने उनकी याद में लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार की स्थापना की।
5 लाला लाजपत राय चौक हिसार का नामकरण।
6 लाजपत नगर में लाला लाजपत राय मेमोरियल पार्क
7 चांदनी चौक दिल्ली में लाजपत राय मार्केट
8 खड़गपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में लाला लाजपत राय हॉल ऑफ़ रेजिडेंस
9 कानपुर में लाला लाजपत राय अस्पताल व बस टर्मिनल
10 उनके गृहनगर जगराओं में कई संस्थानों, स्कूलों और पुस्तकालयों के नाम उनके सम्मान में रखे गए हैं। जिसमें प्रवेश द्वार पर उनकी प्रतिमा के साथ एक बस टर्मिनल भी शामिल है। 
11 इसके अलावा, भारत के कई महानगरों और अन्य शहरों में उनके नाम पर कई सड़कें हैं।

लाला जी द्वारा लेखन कार्य - 
1 अंग्रेजी में लिखी पुस्तक Un happy India (दुखी भारत) 1927। 
2 Young India
3 England's Debt to India 1917
4 The Political Future of India
5 The Story of My Life (आत्मकथा) 
लाला लाजपत राय की एकत्रित रचनाएँ, खंड 1 से खंड 15, बीआर नंदा द्वारा संपादित।
आत्मकथात्मक लेखन
युवा भारत: भीतर से राष्ट्रवादी आंदोलन की व्याख्या 
6 द पंजाबी और तरुण भरण इनकी पत्रिकाऐं हैं।
7 शिवाजी की कथा
8 श्रीकृष्ण कथा
9 मैजिनी (हिंदी में जीवन वृत्त)
10 गैरिबॉल्डी (हिंदी में जीवन वृत्त)
11 संस्थापक एवं संपादक - आर्य गजट 
12 लेख लेखन -  हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी और उर्दू समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में
13 मेरे निर्वासन की कहानी 1908
14 आर्य समाज 1915
15 संयुक्त राज्य अमेरिका, एक हिंदू की छाप 1916
         (न्यूयॉर्क: बीडब्ल्यू ह्यूबश, 1916)
16 भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या 1920
                  लालाजी की प्रतिमा

शमशेर भालू खां गांधी
जिगर चुरुवी
9587243963

Wednesday, 24 January 2024

चुरू सांसद राहुल कस्वां और जिला कलक्टर को चूरू विधान सभा क्षेत्र में नहर और पेयजल समस्या के हल हेतु ज्ञापन - शमशेर भालू खान (गांधी)

चुरू विधानसभा क्षेत्र में पेयजल और नहर की समस्या समाधान हेतु चूरू सांसद राहुल कसवां और जिला कलक्टर को दिया ज्ञापन -
चूरु 24 जनवरी 2024 सांसद चूरू राहुल कस्वा को समस्या से अवगत करवाते हुए - शमशेर भालू खां

आज चुरू विधानसभा क्षेत्र के प्रतिनिधिमंडल द्वारा चूरू विधानसभा क्षेत्र में पेयजल समस्या  समाधान और चूरु नहर हेतु शमशेर गांधी के नेतृत्व में जिला कलक्टर और सांसद राहुल कस्वां को ज्ञापन दे कर समाधान हेतु निवेदन किया गया।
ज्ञापन में बताया गया कि चुरू विधानसभा क्षेत्र में कुल 40 ग्राम पंचायत के 103 राजस्व गांव और 02 शहरों का 159969 (एक लाख उनसठ हजार नौ सौ उन्हत्तर हजार) वर्ग हेक्टेयर (लगभग छः लाख बिघा)  कृषि रकबा सिंचाई सुविधा से वंचित है। इस हेतु वर्ष 1984 में नहर की चंकाई की गई थी जो चूरू के जोड़ी गांव से होते हुए रतननगर तक प्रस्तावित थी।
चूरू विधानसभा क्षेत्र में 100 % सिंचाई भूमिगत जल का दोहन कर की जाती है जिस से जलस्तर तेजी से घटता जा रहा है। बहुत से कुंओ का पानी समाप्त हो गया और बंद हो गए। लगभग हर वर्ष 10 फीट बोरिंग गहरी होती जा रही है। सिंचाई हेतु बिजली भी आवश्यकतानुसार समय पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रही है। 
इससे जल की समस्या के साथ - साथ सिंचाई की लागत भी बढ़ रही है और किसान कर्ज के बोझ से दब कर कृषि कार्य छोड़ कर अन्य कार्यों की ओर आशक्त हो रहे हैं।
लगभग 10 लाख आबादी के 70 हजार कृषक परिवारों के उत्थान हेतु नहर ही उत्तम साधन है। 
नहर निर्माण कार्य को नरेगा योजना में शामिल कर लिया जावे जिस से लोगों को राजगार भी उपलब्ध हो जायेगा।
साथ ही यह क्षेत्र शुद्ध पेयजल की प्राथमिक आवश्यकता से वंचित है।
A- चुरू विधानसभा क्षेत्र के गांव :-
1 सिरसली
2 लोहसणा छोटा
3 महला का बास
4 गिनड़ी पट्टा लोहसना
5 गिनड़ी पट्टा राजपुरा 
6 रिबीया
7  पीथीसर
8 आसलखेड़ी
9 भेरुसर
10 ऊंटवालिया
11 दूधवाखारा
12 सुरतपुरा
13 सहनाली बड़ी
14 ढाणी लाल सिंहपुरा
15 पोटी
16 रायपुरिया
17 धोधलिया
18 जासासर
19 धीरसार चारणान
20 रामपुरा रेणु
21 दुधवामीठा
22 मेघवाल बस्ती झारिया
23 रामबास जोड़ी
24 नरसिंहपुरा
25 करणपुरा
26 मेघवाल बस्ती लादडिया
27 दुधवा स्टेशन
28 कड़वासर
29 बुंटिया
30 ढाणी नायकान खींवासर
31 श्योदानपुरा

B - चूरु शहर के :-
वार्ड 1 से 5
वार्ड 6 से 15
वार्ड 16 से 25
वार्ड 26 से 35
वार्ड 36 से 45
वार्ड 46 से 54
वार्ड 55 से 60

C - नगर पालिका रतननगर के  :-
वार्ड 1 से 3
वार्ड 4 से 8
वार्ड 9 से 15
वार्ड 16 से 20
में पेयजल की उचित और निर्बाध आपूर्ति हेतु ओवर हेड टैंक क्षमता 5 लाख लीटर बनवाने का श्रम करावें।
D - जहां ओवर हेड टैंक बना तो दिये गये हैं परंतु मुख्य स्टेशन से पानी की कम आवक से अभी तक उनमें पानी भर कर पेयजल आपूर्ति नहीं की जा रही है :-
1 सहजूसर
2 सिरसला
3 रिडखला
4 जोड़ी
शमशेर भालू खां ने बताया कि यदि सरकार ने यथा समय समस्या का समाधान नहीं किया तो एक बड़ा जन आंदोलन किया जायेगा जिसकी समस्त जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की होगी।

शमशेर भालू खान
अध्यक्ष
कार्यालय चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान,संघर्ष समिति,चूरू।
9587243963

Tuesday, 23 January 2024

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता -सुभाष चन्द्र बोस 

नाम - सुभाष चन्द्र
प्रचलित नाम - नेताजी (हिटलर द्वारा दिया गया नाम)
जाति - कायस्थ
उपजाति - बॉस 
धर्म - सनातन
पिता - जानकीनाथ बॉस 
पिता का व्यवसाय - कटक महानगर पालिका में सरकारी वकील बाद में स्वयं की प्रेक्टिस बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे। उन्हे अंग्रेज सरकार द्वारा राय बहादुर की उपाधि दी गई।

   सुभाष चन्द्र बोस के पिताजी जानकीनाथ बोस 

            परिवार के साथ सुभाष चन्द्र बोस 

माता - प्रभावती देवी (प्रभावशाली व्यक्ति गंगनरायण दत्त की पुत्री)
जन्म दिनांक - 23 जनवरी 1897
जन्म स्थान -  कटक (वर्तमान उड़ीसा तत्कालीन बंगाल)
सहोदर - 8 भाई 6 बहन कुल 14 में सुभाष का स्थान 9 वां था।
2 शरत चंद्र बोस (मेज दा)
9  सुभाष चन्द्र बोस 
विवाह - 1937
पत्नी का नाम - एमिली शेंकल (बियाना ऑस्ट्रिया निवासी टाइपिस्ट)

                       पत्नी एमिली शेंकल

(बिना किसी कार्यक्रम के गुप्त विवाह  सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा नहीं।)
संतान - अनिता बोस फाफ (हाल वियना ऑस्ट्रिया)
                  पुत्री अनिता बॉस फाफ 
अनिता बोस with जवाहर लाल नेहरू 

मृत्यु  - 18 अगस्त 1945 आयु 48 वर्ष 
मृत्यु का कारण - जर्मनी से जापान जाते हुए वायुयान दुर्घटना (नेताजी की मृत्यु के संबंध में अभी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। उनके परिवार के अनुसार वो दुर्घटना के बाद भी जीवित थे,जबकि जापानी सरकार के अनुसार उनकी मृत्यु हो गई थी।
मृत्यु स्थान - सेना अस्पताल नानमोन, ताईहोकु, ताइवान (तत्कालीन जापान का भाग) ताइपे में ताइपे सिटी हॉस्पिटल हेपिंग फुयू)

नारे - 
1 जय हिन्द
2 तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा
3 दिल्ली चलो आजाद हिंद फौज के कमांडर के रूप में (5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने सैनिकों को संबोधन

पद - 
हरिपुर कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष चन्द्र बोस

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सुभाष चन्द्र बोस

1 ICS पद पर चयनित परंतु कार्यग्रहण नहीं किया

           आईसीएस सुभाष चन्द्र बोस 

2 कमांडर - आजाद हिंद फौज के संस्थापक जिसे उनकी मृत्यु के बाद मोहन सिंह ने बतौर उत्तराधिकारी आगे संभाला 
3 अध्यक्ष - जवाहर लाल नेहरू के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (18 जनवरी 1938 – 29 अप्रैल 1939) इनके बाद Dr. राजेंद्र प्रसाद शर्मा
4 नई पार्टी ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के संस्थापक व अध्यक्ष (22 जून 1939  से 16 जनवरी 1941) इनकी मृत्यु के बाद सार्दुल सिंह अध्यक्ष
5 कलकत्ता के मेयर 4th अध्यक्ष (5वें) - यतींद्र मोहन सेनगुप्ता के बाद (22 अगस्त 1930 – 15 अप्रैल 1931) इनके बाद 6th मेयर विधान चंद्र राय
राष्ट्रीय अध्यक्ष - परतंत्र भारत की पहली अस्थाई सरकार 21 अक्टूबर 1943 को बनाई जिसे जर्मनी, जापान, फ़िलीपीन्स, कोरिया, चीन ,इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशों ने मान्यता दी। जापान ने अण्डमान - निकोबार द्वीपसमूह इस अस्थायी सरकार को सौंप दिये।
शिक्षा - 
1 प्रेसीडेंसी स्कूल कटक से प्राथमिक शिक्षा 1909
2 रेवेंशा कोलेजियट स्कूल इंटरमीडियट 1915 द्वितीय श्रेणी
3 1916 में दर्शन शास्त्र पर बी ए की पढ़ाई के बीच में ही प्रेसीडेंसी कॉलेज के शिक्षकों से हुये झगड़े के कारण उन्हें एक वर्ष के लिये रिस्टिकेट कर दिया गया और परीक्षा देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
4 वर्ष 1916 में 49 वीं बंगाल रेजीमेंट पात्रता परीक्षा दी और कम दिखने के कारण अयोग्य घोषित हो गये।
5 स्कॉटिश चर्च कॉलेज कटक में प्रवेश लिया 
6 टेरीटोरियल आर्मी परीक्षा दी और फोर्ड विलियम आर्मी में बतौर सैनिक भर्ती हो गये।
7 कलकत्ता विश्वविद्यालय (बीए, दर्शनशास्त्र, 1919) प्रथम श्रेणी,कलकत्ता विश्वविद्यालय में दूसरा स्थान।
8 सुभाष ने 15 सितंबर 1919 को इंग्लैंड पहुंच कर किट्स विलियम स्कूल में प्रवेश लिया और मानसिक और नैतिक विज्ञान में बीए ओनर्स किया। 1920 में आईसीएस परीक्षा 4th रेंक से पास की।
आईसीएस की नौकरी से इस्तीफा - आईसीएस बनने के बाद सुभाष ने अपने बड़े भाई शरतचन्द्र बोस को पत्र लिखकर उनकी राय जाननी चाही कि उनके मन - मस्तिष्क में महर्षि दयानंद सरस्वती और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों हैं जिनके विरुद्ध आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी नहीं कर पायेंगे।
22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ई.एस.मान्टेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र देने का पत्र लिखा। 
एक पत्र देशबंधु चित्तरंजन दास को लिखा।
सुभाष के आईसीएस की नौकरी छोड़ने पर माँ प्रभावती ने उन्हें पत्र  लिखा कि "पिता,परिवार के लोग या अन्य कोई कुछ भी कहे उन्हें अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है।"
9 कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (मानसिक और नैतिक विज्ञान ट्रिपोस में बीए, 1921)
10 भारत आगमन 1921

भारत पहुंचने के बाद घनाक्रम -
कोलकाता के स्वतन्त्रता सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के कार्य से प्रेरित होकर सुभाष चंद बोस  दास बाबू के साथ काम करना चाहते थे। इंग्लैंड से उन्होंने दास बाबू को खत लिखकर उनके साथ काम करने की इच्छा प्रकट की। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह के अनुसार भारत वापस आने पर सर्वप्रथम मुम्बई गये और महात्मा गांधी से मिले। मुम्बई में गांधी मणिभवन में निवास करते थे। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गांधी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। गांधीजी ने उन्हें कोलकाता जाकर दास बाबू के साथ काम करने की सलाह दी। इसके बाद सुभाष कोलकाता आकर दास बाबू से मिले।
उन दिनों गांधीजी अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन चला रहे थे। दास बाबू इस आन्दोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ सुभाष इस आन्दोलन में सहभागी हो गये। गाँधी जी द्वारा 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा घटना के बाद असहयोग आंदोलन बंद कर दिया गया जिसके कारण 1922 में दास बाबू ने कांग्रेस के अन्तर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। विधानसभा के अन्दर से अंग्रेज़ सरकार का विरोध करने के लिये कोलकाता महापालिका का चुनाव स्वराज पार्टी ने लड़कर जीता और दास बाबू कोलकाता के महापौर बन गये। उन्होंने सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। सुभाष ने अपने कार्यकाल में कोलकाता महापालिका का पूरा ढाँचा और काम करने का तरीका ही बदल डाला। कोलकाता में सभी रास्तों के अंग्रेज़ी नाम बदलकर उन्हें भारतीय नाम दिये गये। स्वतन्त्रता संग्राम में प्राण न्योछावर करने वालों के परिजनों को महापालिका में नौकरी देनी शुरू कर दी।
बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गये। जवाहरलाल नेहरू के साथ सुभाष ने कांग्रेस के अन्तर्गत युवकों की इण्डिपेण्डेंस लीग शुरू की। 1927 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया। साइमन कमीशन को जवाब देने के लिये कांग्रेस ने भारत का भावी संविधान बनाने का काम आठ सदस्यीय आयोग को सौंपा। मोतीलाल नेहरू इस आयोग के अध्यक्ष और सुभाष उसके एक सदस्य थे। इस आयोग ने नेहरू रिपोर्ट पेश की। 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। 
गाँधी जी उन दिनों पूर्ण स्वराज्य की माँग से सहमत नहीं थे। इस अधिवेशन में गांधीजी ने अंग्रेज़ सरकार से डोमिनियन स्टेटस माँगने की ठान ली थी। लेकिन सुभाष और जवाहरलाल नेहरू को पूर्ण स्वराज की माँग से पीछे हटना मंजूर नहीं था। अन्त में यह तय किया गया कि अंग्रेज़ सरकार को डोमिनियन स्टेटस देने के लिये एक साल का वक्त दिया जाये। अगर एक साल में अंग्रेज़ सरकार ने यह माँग पूरी नहीं की तो कांग्रेस पूर्ण स्वराज की माँग करेगी। परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने यह माँग पूरी नहीं की। इसलिये 1930 में जब कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लाहौर में हुआ तब ऐसा तय किया गया कि 26 जनवरी का दिन स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जायेग।
             सुभाष चन्द्र बोस की कार 

             बॉस का कलकत्ता निवास
         सुभाष चन्द्र बोस का जन्म स्थान कटक
           सुभाष चन्द्र बोस साधारण वेश में 

जेल यात्रा -
26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहरा कर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलाई और घायल कर जेल भेज दिया। जब सुभाष जेल में थे तब गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया। भगत सिंह की फाँसी माफ कराने के लिये गाँधी जी ने सरकार से बात तो की। सुभाष चाहते थे कि इस विषय पर गाँधीजी अंग्रेज सरकार के साथ किया गया समझौता तोड़ दें। लेकिन गांधीजी अपनी ओर से दिया गया वचन तोड़ने को राजी नहीं थे। अंग्रेज सरकार अपने स्थान पर अड़ी रही और भगत सिंह व उनके साथियों को फाँसी दे दी गयी। भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गाँधी और कांग्रेस के तरीकों से बहुत नाराज हो गये।
अपने सार्वजनिक जीवन में सुभाष को कुल 11 बार कारावास हुआ। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 में छह महीने का कारावास हुआ।
1925 में गोपीनाथ साहा नामक एक क्रान्तिकारी कोलकाता के पुलिस अधीक्षक चार्लस टेगार्ट को मारना चाहता था। उसने गलती से अर्नेस्ट डे नामक एक व्यापारी को मार डाला। इसके लिए उसे फाँसी की सजा दी गयी। गोपीनाथ को फाँसी होने के बाद सुभाष फूट फूट कर रोये। उन्होंने गोपीनाथ का शव माँगकर उसका अन्तिम संस्कार किया। इससे अंग्रेज़ सरकार ने यह निष्कर्ष निकाला कि सुभाष ज्वलन्त क्रान्तिकारियों से न केवल सम्बन्ध ही रखते हैं अपितु वे उन्हें उत्प्रेरित भी करते हैं। इसी बहाने अंग्रेज़ सरकार ने सुभाष को गिरफ़्तार किया और बिना कोई मुकदमा चलाये उन्हें अनिश्चित काल के लिये म्याँमार के माण्डले कारागृह में बन्दी बनाकर भेज दिया।
5 नवम्बर 1925 को देशबंधु चित्तरंजन दास कोलकाता में चल बसे। सुभाष ने उनकी मृत्यु की खबर माण्डले कारागृह में रेडियो पर सुनी। माण्डले कारागृह में रहते समय सुभाष की तबियत बहुत खराब हो गयी। उन्हें तपेदिक हो गया। परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रिहा करने से मना कर दिया। सरकार ने उन्हें रिहा करने के लिए यह शर्त रखी कि वे इलाज के लिये यूरोप चले जायें। लेकिन सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इलाज के बाद वे भारत कब लौट सकते हैं। इसलिए सुभाष ने यह शर्त स्वीकार नहीं की। आखिर में परिस्थिति इतनी कठिन हो गयी कि जेल अधिकारियों को यह लगने लगा कि शायद वे कारावास में ही न मर जायें। अंग्रेज़ सरकार यह खतरा भी नहीं उठाना चाहती थी कि सुभाष की कारागृह में मृत्यु हो जाये। इसलिये सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। उसके बाद सुभाष इलाज के लिये डलहौजी चले गये।
1930 में सुभाष कारावास में थे और कलकत्ता नगरपरिषद चुनाव में उन्हें कोलकाता का महापौर चुना गया। इसलिए सरकार उन्हें रिहा करने पर मजबूर हो गयी। 1932 में सुभाष को फिर से कारावास हुआ। इस बार उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया। अल्मोड़ा जेल में उनकी तबियत फिर से खराब हो गयी। चिकित्सकों की सलाह पर सुभाष इस बार इलाज के लिये यूरोप जाने को राजी हो गये।
    ऑस्ट्रिया में स्वास्थ्य लाभ ऑपरेशन के बाद

यूरोप प्रवास और विवाह -
सन् 1933 से लेकर 1936 तक सुभाष यूरोप में रहे। यूरोप में सुभाष ने अपनी सेहत का ख्याल रखते हुए अपना कार्य बदस्तूर जारी रखा। वहाँ वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले, जिन्होंने उन्हें भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता करने का वचन दिया। आयरलैंड के नेता डी. वलेरा सुभाष के अच्छे दोस्त बन गये। जिन दिनों सुभाष यूरोप में थे उन्हीं दिनों जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का ऑस्ट्रिया में निधन हो गया। सुभाष ने वहाँ जाकर जवाहरलाल नेहरू को सान्त्वना दी।
        वियना में पत्नी के साथ सुभाष चन्द्र बोस 

ऑस्ट्रिया में प्रेम विवाह -
सन् 1934 में जब सुभाष ऑस्ट्रिया में अपना इलाज कराने हेतु ठहरे हुए थे उस समय उन्हें अपनी पुस्तक लिखने हेतु एक अंग्रेजी जानने वाले टाइपिस्ट की आवश्यकता हुई। उनके एक मित्र ने एमिली शेंकल नाम की एक ऑस्ट्रियन महिला से उनकी मुलाकात करवा दी। एमिली के पिता एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक थे। सुभाष एमिली की ओर आकर्षित हुए और उन दोनों में स्वाभाविक प्रेम हो गया। नाजी जर्मनी के सख्त कानूनों को देखते हुए उन दोनों ने सन् 1942 में बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया। वियेना में एमिली ने एक पुत्री को जन्म दिया। सुभाष ने उसे पहली बार तब देखा जब वह मुश्किल से चार सप्ताह की थी। उन्होंने उसका नाम अनिता बोस रखा था। अगस्त 1945 में ताइवान में हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में जब सुभाष की मौत हुई तो अनिता लगभग पौने तीन साल की थी। वह अभी ऑस्ट्रिया में ही रहती है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल और सुभाष चन्द्र बोस विवाद -
यूरोप में सुभाष चन्द्र विठ्ठल भाई पटेल से मिले। विठ्ठल भाई पटेल के साथ सुभाष ने मन्त्रणा की जिसे पटेल-बोस विश्लेषण के नाम से जाना जाता है। 
इस विश्लेषण में उन दोनों ने गांधीजी के नेतृत्व की जमकर निन्दा की। उसके बाद विठ्ठल भाई पटेल बीमार हो गये तो सुभाष ने उनकी खूब सेवा की। मगर विठ्ठल भाई पटेल नहीं बचे और उनका निधन हो गया।
विठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में अपनी सारी सम्पत्ति सुभाष के नाम कर दी। मगर उनके निधन के पश्चात् उनके भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस वसीयत को स्वीकार नहीं किया। सरदार पटेल ने इस वसीयत को लेकर अदालत में मुकदमा चलाया। यह मुकदमा जीतने पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने भाई की सारी सम्पत्ति गांधीजी के हरिजन सेवा कार्य को भेंट कर दी।

पिता की मृत्यु और पुनः जेल यात्रा-
1934 में सुभाष को उनके पिता के मृत्युशय्या पर होने की खबर मिली। खबर सुनते ही वे हवाई जहाज से कराची होते हुए कोलकाता लौटे। यद्यपि कराची में ही उन्हे पता चल गया था कि उनके पिता की मृत्यु हो चुकी है फिर भी वे कोलकाता गये। कोलकाता पहुँचते ही अंग्रेज सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और कई दिन जेल में रखकर वापस यूरोप भेज दिया।

आजादी की जागृति यात्रा -
3 सितम्बर 1939 को मद्रास में सुभाष को ब्रिटेन और जर्मनी में युद्ध छिड़ने की सूचना मिली। उन्होंने घोषणा की कि अब भारत के पास सुनहरा मौका है उसे अपनी मुक्ति के लिये अभियान तेज कर देना चाहिये। 8 सितम्बर 1939 को युद्ध के प्रति पार्टी का रुख तय करने के लिये सुभाष को विशेष आमन्त्रित के रूप में काँग्रेस कार्य समिति में बुलाया गया। उन्होंने अपनी राय के साथ यह संकल्प भी दोहराया कि अगर काँग्रेस यह काम नहीं कर सकती है तो फॉरवर्ड ब्लॉक अपने दम पर ब्रिटिश राज के खिलाफ़ युद्ध शुरू कर देगा।
अगले ही वर्ष जुलाई में कलकत्ता स्थित हालवेट स्तम्भ जो भारत की गुलामी का प्रतीक था सुभाष की यूथ ब्रिगेड ने रातों - रात वह स्तम्भ मिट्टी में मिला दिया। सुभाष के स्वयंसेवक उसकी नींव की एक-एक ईंट उखाड़ ले गये। यह एक प्रतीकात्मक शुरुआत थी। इसके माध्यम से सुभाष ने यह सन्देश दिया था कि जैसे उन्होंने यह स्तम्भ धूल में मिला दिया है उसी तरह वे ब्रिटिश साम्राज्य की भी ईंट से ईंट बजा देंगे।
इसके परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने सुभाष सहित फॉरवर्ड ब्लॉक के सभी मुख्य नेताओं को कैद कर लिया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सुभाष जेल में निष्क्रिय रहना नहीं चाहते थे। सरकार को उन्हें रिहा करने पर मजबूर करने के लिये सुभाष ने जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। हालत खराब होते ही सरकार ने उन्हें रिहा कर दिया। मगर अंग्रेज सरकार यह भी नहीं चाहती थी कि सुभाष युद्ध के दौरान मुक्त रहें। इसलिये सरकार ने उन्हें उनके ही घर पर नजरबन्द करके बाहर पुलिस का कड़ा पहरा बिठा दिया।

आजाद हिंद फौज -
            आजाद हिंद फौज का लोगो

1942 में जर्मन सेना रूस में फंस गई और बोस दक्षिण-पूर्व एशिया (जापान) में जान चाहते थे, मई 1942 के अंत में बोस के साथ अपनी एकमात्र मुलाकात के दौरान एडोल्फ हिटलर ने एक पनडुब्बी की मदद दी। धुरी राष्ट्रों के साथ मजबूती से जुड़ने के बाद , बोस फरवरी 1943 में एक जर्मन पनडुब्बी में सवार हुए। मेडागास्कर से बाहर, उन्हें एक जापानी पनडुब्बी में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां से वह सुमात्रा में उतरे। मई 1943 में।
1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ।
6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिए उनका आशीर्वाद और शुभ कामनाएँ मांगी।

जर्मनी एक कार्यक्रम में आजाद हिंद फौज के सिपाही

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में जापान की सहायता से टोकियो में रासबिहारी बोस ने भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इण्डियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन तैयार किया। इस सेना के गठन में कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना का विचार सर्वप्रथम मोहन सिंह के मन में आया था। इसी बीच विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए इण्डियन इण्डिपेंडेंस लीग की स्थापना की गई, जिसका प्रथम सम्मेलन जून 1942 ई, को बैंकाक में हुआ।
आरम्भ में इस फौज़ में जापान द्वारा युद्धबन्दी बना लिये गये भारतीय सैनिकों को लिया गया था। बाद में इसमें बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती हो गये। आरंभ में इस सेना में लगभग 16,300 सैनिक थे। कालान्तर में जापान ने 60,000 युद्ध बंदियों को आज़ाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए छोड़ दिया।जब जापानियों ने सिंगापुर पर कब्जा किया था तो लगभग 45 हजार भारतीय सेनानियों को पकड़ा गया था।आज़ाद हिन्द फौज के सेनानियों की संख्या का अनुमोदन ब्रिटिश गुप्तचर रहे कर्नल जीडी एण्डरसन ने किया है।

           आजाद हिंद फौज का सैनिक 
       सुभाष चंद्र बोस के साथ आजादी के दीवाने

पर इसके बाद ही जापानी सरकार और मोहन सिंह के अधीन भारतीय सैनिकों के बीच आज़ाद हिन्द फौज की भूमिका के संबध में विवाद उत्पन्न हो जाने के कारण मोहन सिंह एवं निरंजन सिंह गिल को गिरफ्तार कर लिया गया। अब यह संगठन निष्क्रिय हो गया।आज़ाद हिन्द फौज का दूसरा चरण तब प्रारम्भ होता है, जब सुभाषचन्द्र बोस सिंगापुर गये। 
            सुभाष चन्द्र बोस बर्लिन में 

सुभाषचन्द्र बोस ने 1941 ई. में बर्लिन में इंडियन लीग की स्थापना की, किन्तु जर्मनी ने उन्हें रूस के विरुद्ध प्रयुक्त करने का प्रयास किया, तब उनके सामने कठिनाई उत्पन्न हो गई और उन्होंने दक्षिण पूर्व एशिया जाने का निश्चय किया।

जब नेताजी साउथ एशिया में आए और संगठन की प्रगति के बारे में जाना तो उन्हें लगा कि अब फिर से आजाद हिन्द फौज को उठाकर भारत की आजादी का संग्राम लड़ना होगा. 4 जुलाई 1943 को इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के प्रवासी भारतीयों की बैठक बुलाई गई, सभी ने सर्वसम्मति से नेताजी को अपना नेता बनाया तथा सुभाष जी ने नेतृत्व अपने हाथ में लेकर संगठन को फिर से खड़ा किया।
               हिटलर के साथ बर्लिन

आज़ाद हिन्द फ़ौज के गिरफ़्तार सैनिकों एवं अधिकारियों पर अंग्रेज़ सरकार ने दिल्ली के लाल क़िला में नवम्बर, 1945 ई. को झूठा मुकदमा चलाया और फौज के मुख्य सेनानी कर्नल सहगल, कर्नल ढिल्लों एवं मेजर शाहवाज ख़ाँ पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया। इनके पक्ष में सर तेजबहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू, भूला भाई देसाई और के.एन. काटजू ने दलीलें दी लेकिन फिर भी इन तीनों की फाँसी की सज़ा सुनाई गयी। इस निर्णय के ख़िलाफ़ पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई, आम जनमानस भड़क उठे और और अपने दिल में जल रहे मशालों को हाथों में थाम कर उन्होंने इसका विरोध किया, नारे लगाये गये। लाल क़िले को तोड़ दो, आज़ाद हिन्द फ़ौज को छोड़ दो। विवश होकर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर इनकी मृत्यु दण्ड की सज़ा को माफ करा दिया।
              जापान में सुभाष चन्द्र बोस 

           रास बिहारी बोस धुरी राष्ट्र के साथ

सिंगापुर में आईएनए का स्मारक -
सिंगापुर के एस्प्लेनेड पार्क में लगी आईएनए की भूमिका का उल्लेख करती हुई स्मृति पट्टिका
आज़ाद हिन्द फौज़ के गुमनाम शहीदों की याद में सिंगापुर के एस्प्लेनेड पार्क में आईएनए वार मेमोरियल बनाया गया था। आज़ाद हिन्द फौज के सुप्रीम कमाण्डर सुभाष चन्द्र बोस ने 8 जुलाई 1945 को इस स्मारक पर जाकर उन अनाम सैनिकों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
बाद में इस स्मारक को माउण्टबेटन के आदेश पर ब्रिटिश साम्राज्य की सेनाओं ने ध्वस्त करके सिंगापुर शहर पर कब्जा कर लिया। इस स्मारक पर आज़ाद हिन्द फौज़ के तीन ध्येयवाचक शब्द - इत्तेहाद (एकता), एतमाद (विश्वास) और कुर्बानी (बलिदान) लिखे हुए थे।
सन् 1995 में सिंगापुर की राष्ट्रीय धरोहर परिषद (नेशनल हैरिटेज बोर्ड) ने वहाँ निवास कर रहे भारतीय समुदाय के लोगों के आर्थिक सहयोग से इण्डियन नेशनल आर्मी की बेहद खूबसूरत स्मृति पट्टिका उसी ऐतिहासिक स्थल पर फिर से स्थापित कर दी। इसकी देखरेख का काम सिंगापुर की सरकार करती है।
               वार मेमोरियल सिंगापुर

         आजाद हिंद फौज स्मृति स्थल कलकत्ता 

आजाद हिंद फौज का गीत -
द्रुत प्रयाण गीत -
कदम कदम बढाये जा - आजाद हिन्द फौज का प्रयाण गीत (क्विक मार्च सॉन्ग) था जिसकी रचना राम सिंह ठकुरि ने की थी। इस ट्यून का आज भी भारतीय सेना के प्रयाण गीत के रूप में इसका प्रयोग होता है। पूरा गीत इस प्रकार है-
क़दम क़दम बढ़ाए जा 
ख़ुशी के गीत गाए जा
ये ज़िंदगी है क़ौम की
तू क़ौम पे लुटाए जा। 

उड़ी तमिस्र रात है, जगा नया प्रभात है, 
चली नई जमात है, मानो कोई बरात है, 
समय है, मुस्कुराए जा
ख़ुशी के गीत गाए जा। 
ये ज़िंदगी है क़ौम की 
तू क़ौम पे लुटाए जा। 

जो आ पड़े कोई विपत्ति मार के भगाएँगे, 
जो आए मौत सामने तो दाँत तोड़ लाएँगे, 
बहार की बहार में 
बहार ही लुटाए जा। 
यह जिंदगी है कोम की
तू कौम पे लुटाए जा।

जहाँ तलक न लक्ष्य पूर्ण हो समर करेंगे हम
खड़ा हो शत्रु सामने तो शीश पै चढ़ेंगे हम
विजय हमारे हाथ है 
विजय-ध्वजा उड़ाए जा
यह....

क़दम बढ़े तो बढ़ चले, आकाश तक चढ़ेंगे हम
लड़े हैं, लड़ रहे हैं, तो जहान से लड़ेंगे हम
बड़ी लड़ाइयाँ हैं तो 
बड़ा क़दम बढ़ाए जा
यह....

निगाह चौमुखी रहे, विचार लक्ष्य पर रहे
जिधर से शत्रु आ रहा उसी तरफ़ नज़र रहे
स्वतंत्रता का युद्ध है, 
स्वतंत्र होके गाए जा
ये ज़िंदगी है क़ौम की 
तू क़ौम पे लुटाए जा।

आजाद हिंद फौज के मेडल -
वरीयता के क्रम में)
शेरे-हिन्द
सरदारे-जंग
वीरे-हिन्द
शहीदे-भारत

नेताजी की मृत्यु की अनसुलझी गुत्थी - 
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था।
18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये। इस दिन के बाद वे कभी किसी को दिखाई नहीं दिये।
23 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बम वर्षक विमान से आ रहे थे और 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पाइलेट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गम्भीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितम्बर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयीं। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज़ के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी।
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिये 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया। दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही शहीद हो गये।
1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बता दिया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था। 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने कहा कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
18 अगस्त 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गये और उनका आगे क्या हुआ यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा अनुत्तरित रहस्य बन गया हैं।
नेताजी के जीवित होने के किस्से - 
देश के अलग-अलग हिस्सों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में जिला रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे पेश किये गये लेकिन इन सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है। छत्तीसगढ़ में तो सुभाष चन्द्र बोस के होने का मामला राज्य सरकार तक गया। परन्तु राज्य सरकार ने इसे हस्तक्षेप के योग्य न मानते हुए मामले की फाइल ही बन्द कर दी।

पुस्तक लेखन -
The Indian struggle
भारत का संघर्ष

नेताजी के जीवन पर संपूर्ण वाङ्मय
दिसंबर 1940 से नेताजी के अंतिम समय तक उनके पूर्ण विश्वासपात्र तथा निकट सहयोगी रहे डॉ.शिशिर कुमार बोस ने नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना कर नेताजी के 'समग्र साहित्य' के प्रकाशन का कार्य विनोद सी.चौधरी के साथ मिलकर 1961 ईस्वी में आरंभ किया जो 1980 में 12 खंडों में संकलित रचनाओं के प्रकाशन का काम पूरा हुआ। 
आरंभिक योजना 10 खंडों में 'समग्र साहित्य' के प्रकाशन की थी, परंतु बाद में यह योजना 12 खंडों की हो गयी। अप्रैल 1980 में सर्वप्रथम बांग्ला में इसके प्रथम खंड का प्रकाशन हुआ था और नवंबर 1980 में अंग्रेजी में। हिंदी में इसका प्रथम खंड 1982 में प्रकाशित हुआ और फिर इन तीनों भाषाओं में समग्र साहित्य का प्रकाशन होता रहा। इसका अंतिम (12वाँ) खंड 2011 में छप कर आ पाया। 
इस 'समग्र वाङ्मय' के संकलन एवं प्रकाशन कार्य से आरंभ से ही सुगत बोस भी जुड़े हुए थे और अंतिम दो खंडों का प्रकाशन डॉ. शिशिर कुमार बोस के निधन के कारण सुगत बोस के संपादन में हुआ।
इस 'समग्र वाङ्मय' के प्रथम खंड में उनकी 'आत्मकथा' के साथ कुछ पत्रों का प्रकाशन हुआ है और द्वितीय खंड में उनकी पुस्तक 'भारत का संघर्ष' (द इंडियन स्ट्रगल) का प्रकाशन हुआ है। फिर अन्य खंडों में उनके द्वारा लिखित पत्रों, टिप्पणियों एवं भाषणों आदि समग्र उपलब्ध साहित्य का क्रमबद्ध प्रकाशन हुआ है। इस प्रकार यथासंभव उपलब्ध नेताजी का लिखित एवं वाचिक 'समग्र वाङ्मय' अध्ययन हेतु सुलभ हो गया है और यह युगीन आवश्यकता भी है कि महात्मा गांधी की तरह नेताजी के सन्दर्भ में भी अनेकानेक संदर्भ-रहित कथनों एवं अपूर्ण जानकारियों के आधार पर राय कायम करने की बजाय उपयुक्त मुद्दे को उसके उपयुक्त एवं सम्यक् संदर्भों में देखते हुए सटीक एवं प्रामाणिक राय कायम की जाय। वे बहुत ही सरल थे।

विशेष -
16 जनवरी 2014 (गुरुवार) को 
1 कलकत्ता उच्च न्यायालय ने नेता जी के लापता होने के रहस्य से जुड़े खुफिया दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष पीठ के गठन का आदेश दिया
2 वर्ष 2014 में भारत सरकार ने राज पथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ किया और नई दिल्ली शहीद स्मारक पर सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा स्थापित की।

सुभाष चन्द्र बोस के ड्राईवर
111 साल के कर्नल निजामुद्दीन आज भी जिंदा हैं। पश्चिम बंगाल में। यूं

                नेताजी की प्रतिमा जापान

आजाद हिंद फौज के कमांडर के रूप में नेताजी
       अब्दुल हबीब युसूफ मारफानी
रँगून के इस इस व्यवसायी ने आजाद हिंद फौज को एक करोड रूपये दान दिए, जो आज के लगभग दस हजार करोड रूपये होते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने इन्हें सेवा ए हिंद पदक दिया।

शमशेर भालू खान
जिगर चुरूवी
9587243963

Tuesday, 16 January 2024

चुरू विधानसभा क्षेत्र नहर और पेयजल

नहर हेतु ज्ञापन 

सेवामें,
श्रीमान भजन लाल शर्मा,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
राजस्थान सरकार,जयपुर।

विषय :- चुरू विधानसभा क्षेत्र में नहर का पानी उपलब्ध करवाने हेतु निवेदन।

महोदय जी,
उपर्युक्त विषय अंतर्गत सादर निवेदन है कि चूरू विधानसभा क्षेत्र के से गांवों में आजादी के 75 वर्ष बाद जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहें हैं, आज भी कृषिकवर्ग खेतों में सिंचाई नहर के पानी की सुविधा से वंचित हैं।
हाल ही में मेरे द्वारा चूरू विधानसभा क्षेत्र में जनजागृति तिरंगा पैदल यात्रा निकाली गई थी जिसमें चूरू विधानसभा क्षेत्र के 103 गांव और 02 शहरों का लगभग 80 हजार हेक्टेयर रकबा सिंचाई के पानी से अभावग्रस्त है। चूरू विधानसभा क्षेत्र में 100 % सिंचाई भूमिगत जल का दोहन कर की जाती है जिस से जलस्तर तेजी से घटता जा रहा है। बहुत से कुंओ का पानी समाप्त हो गया और बंद हो गए। लगभग हर वर्ष 10 फीट बोरिंग गहरी होती जा रही है। सिंचाई हेतु बिजली भी आवश्यकतानुसार समय पर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रही है। 
इससे जल की समस्या के साथ - साथ सिंचाई की लागत भी बढ़ रही है और किसान कर्ज के बोझ से दब कर कृषि कार्य छोड़ कर अन्य कार्यों की ओर आशक्त हो रहे हैं।
लगभग 10 लाख आबादी के कृषि प्रधान और मुख्य आजीविका वाले चूरू विधानसभा क्षेत्र में 40 ग्राम पंचायतों के 103 राजस्व गांवों और 02 शहरों के कृषक परिवारो को राहत देने हेतु चूरू के हर खेत में पानी पहुंचे, इस बाबत नहर ही उत्तम साधन है। 
यह भी निवेदन है कि इस नहर निर्माण कार्य को नरेगा योजना में शामिल कर लिया जावे जिस से लोगों को राजगार भी उपलब्ध हो जायेगा।
अतः आप से सादर निवेदन है कि कृपया चूरू विधानसभा क्षेत्र को नहर का पानी उपलब्ध करवाने की कृपा करें।
हम समस्त कृषक जन आपके आभारी रहेंगे।
धन्यवाद।

भवदीय
          शमशेर भालू खान
 सामाजिक कार्यकर्ता एवं अध्यक्ष
 चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान, समिति, चूरू 

प्रतिलिपि :-
1 श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी,
माननीय प्रधानमंत्री,भारत सरकार
2 श्रीमान गजेंद्र सिंह शेखावत
माननीय मंत्री महोदय जल संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार 
3 श्रीमान राहुल कसवां जी
माननीय सांसद महोदय, चुरू
4 श्रीमान जिला कलक्टर महोदय, चुरू 
5 श्रीमान मंत्री मदोदय, जल संसाधन विकास मंत्री राजस्थान सरकार।
6 श्रीमान राजेंद्र राठौड़ साहब, माननीय पूर्व विधायक, चुरू।
7 श्रीमान हरलाल सहारण
माननीय विधायक, चूरू।
8 श्रीमान उपखंड अधिकारी, चुरू 
9 कार्यालय जल जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी), चुरू 
10 रक्षित पत्रावली, कार्यालय चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान, समिति, चूरू 

कार्यालय प्रभारी
कार्यालय चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान, समिति, चूरू

पेयजल हेतु निवेदन
सेवामें,
श्रीमान भजन लाल शर्मा,
माननीय मुख्यमंत्री महोदय,
राजस्थान सरकार,जयपुर।

विषय :- चुरू विधानसभा क्षेत्र में पेयजल समस्या के निस्तारण हेतु निवेदन।

महोदय जी,
उपर्युक्त विषय अंतर्गत सादर निवेदन है कि चूरू विधानसभा क्षेत्र के बहुत से गांवों में आजादी के 75 वर्ष बाद जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहें हैं, आज भी बहुत से गांव और शहर के वार्ड शुद्ध पेयजल की प्राथमिक आवश्यकता से वंचित हैं।
हाल ही में मेरे द्वारा चूरू विधानसभा क्षेत्र में जनजागृति तिरंगा पैदल यात्रा निकाली गई थी जिसमें चूरू विधानसभा क्षेत्र के 103 गांव और 02 शहरों के 80 वार्डों में मुख्य समस्या पेयजल और जल निकासी की बताई गई।
इस हेतु आपको अवगत कराते हुये निवेदन करना चाहता हूं कि

A. चुरू विधानसभा क्षेत्र के गांव :-
1 सिरसाली
2 लोहसणा छोटा
3 महला का बास
4 गिनड़ी पट्टा लोहसना
5 गिनड़ी पट्टा राजपुरा 
6 रिबीया
7 पीथीसर
8 आसलखेड़ी
9 भेरुसर
10 ऊंटवालिया
11 दूधवाखारा
12 सुरतपुरा
13 सहनाली बड़ी
14 ढाणी लाल सिंहपुरा
15 पोटी
16 रायपुरिया
17 धोधलिया
18 जासासर
19 धीरसार चारणान
20 रामपुरा रेणु
21 दुधवामीठा
22 मेघवाल बस्ती झारिया
23 रामबास जोड़ी
24 नरसिंहपुरा
25 करणपुरा
26 मेघवाल बस्ती लादडिया
27 दुधवा स्टेशन
28 कड़वासर
29 बुंटिया
30 ढाणी नायकान खिवासर
31 श्योदनपुरा

B चूरु शहर:-
वार्ड 1 से 5
वार्ड 6 से 15
वार्ड 16 से 25
वार्ड 26 से 35
वार्ड 36 से 45
वार्ड 46 से 54
वार्ड 55 से 60

C रतननगर :-
वार्ड 1 से 3
वार्ड 4 से 8
वार्ड 9 से 15
वार्ड 16 से 20
में पानी की उचित और निर्बाध आपूर्ति हेतु ओवर हेड टैंक क्षमता 5 लाख लीटर बनवाने का श्रम करावें।

चूरू विधानसभा क्षेत्र के गांव जहां ओवर हेड टैंक बना तो दिए गए हैं परंतु मुख्य स्टेशन से पानी की कम आवक से अभी तक उनमें पानी भर कर पेयजल आपूर्ति नहीं की जा रही है :-
1 सहजूसर
2 सिरसला
3 रिडखला
4 जोड़ी
अतः आप से सादर निवेदन है कि कृपया उक्तानुसार कार्यवाही कर अनुग्रहित करें।
हम आपके आजीवन आभारी रहेंगे।
    शमशेर भालू खान
सामाजिक कार्यकर्ता एवं अध्यक्ष
कार्यालय चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान, समिति, चूरू 

प्रतिलिपि :-
1 श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी,
माननीय प्रधानमंत्री,भारत सरकार
2 श्रीमान गजेंद्र सिंह शेखावत
माननीय मंत्री महोदय जल संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार 
3 श्रीमान राहुल कसवां जी
माननीय सांसद महोदय, चुरू
4 श्रीमान जिला कलक्टर महोदय, चुरू 
5 श्रीमान मंत्री मदोदय, जल संसाधन विकास मंत्री राजस्थान सरकार।
6 श्रीमान राजेंद्र राठौड़ साहब, माननीय पूर्व विधायक, चूरू 
7 श्रीमान हरलाल सहारण
माननीय विधायक, चूरू।
8 श्रीमान उपखंड अधिकारी, चुरू 
9 कार्यालय जल जन स्वास्थ्य एवं अभियांत्रिकी विभाग (पीएचईडी), चुरू 
10 रक्षित पत्रावली, कार्यालय चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान, समिति, चूरू 

         कार्यालय प्रभारी
कार्यालय चूरू विधानसभा क्षेत्र समस्या एवं समाधान, समिति, चूरू

चीकू की बागवानी

              चीकू की खेती केसे (बागवानी)

चीकू के पौधे गर्म, उष्णकटिबंधीय जलवायु और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करते हैं। इन्हें पनपने के लिए भरपूर धूप और नियमित पानी की भी आवश्यकता होती है। बीज से रोपण के अलावा, चीकू के पौधों को सॉफ्टवुड कटिंग या एयर लेयरिंग द्वारा भी लगाया जा सकता है। या फिर आप इसे नर्सरी से पौधा खरीदकर भी लगा सकते हैं।
पौधा तैयार करने का सबसे उपयुक्त समय मार्च-अप्रैल है। बिजाई मुख्यत: फरवरी से मार्च और अगस्त से अक्तूबर महीने में की जाती है। इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है लेकिन इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली गहरी जलोढ़, रेतली दोमट और काली मिट्टी उत्तम रहती है। चीकू की खेती के लिए मिट्टी का पी एच 6-8 उपयुक्त होता है। चिकनी मिट्टी और कैल्शियम की उच्च मात्रा युक्त मिट्टी में इसकी खेती ना करें। इसे लगाने के लिए ऐसा क्षेत्र चुनें जहां भरपूर धूप हो, प्रतिदिन कम से कम 6 से 8 घंटे धूप पौधे के लिए ज़रूरी है। 
चीकू बीज को लगभग एक इंच गहरी मिट्टी में डालें और पानी दें। एक बार जब पेड़ अंकुरित हो जाता है, तो चीकू के पेड़ को फल लगने में 5 से 8 साल का समय लगता हैं। वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार चीकू के पौधों में दो वर्षो के बाद फूल एवं फल आना आरम्भ हो जाता है। इसमें फल साल में दो बार आता है, पहला फरवरी से जून तक और दूसरा सितम्बर से अक्टूबर तक। फूल लगने से लेकर फल पककर तैयार होने में लगभग चार महीने लग जाते हैं। चीकू में फल गिरने की भी एक गंभीर समस्या है। फल गिरने से रोकने के लिये पुष्पन के समय फूलों पर जिबरेलिक अम्ल के 50 से 100 पी.पी.एम. अथवा फल लगने के तुरन्त बाद प्लैनोफिक्स 4 मिली./ली.पानी के घोल का छिड़काव करने से फलन में वृद्धि एवं फल गिरने में कमी आती है।
चीकू का पेड़ 30 मीटर (100 फीट) की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। चीकू का पेड़ धीमी गति से बढ़ता है, लेकिन एक बार जब यह फल देना शुरू कर देता है, तो यह कई वर्षों तक फल देना जारी रखता है। चीकू पर फल इस बात पर निर्भर करता है कि पौधों का प्रचार-प्रसार कैसे किया जाता है।
चीकू के पेड़ पर खाद प्रतिवर्ष आवश्यकतानुसार डालते रहना चाहिये जिससे उनकी वृद्धि अच्छी हो और उनमें फलन अच्छी रहें। रोपाई के एक वर्ष बाद से प्रति पेड़ 4-5 टोकरी गोबर की खाद, 2-3 कि.ग्रा. अरण्डी/करंज की खली प्रति पौधा प्रति वर्ष डालते रहना चाहिये। खाद देने का उपयुक्त समय जून-जुलाई है। खाद को पेड़ के फैलाव की परिधि के नीचे 50-60 सें.मी. चौड़ी व 15 सें.मी. गहरी नाली बनाकर डालने से अधिक फायदा होता है।
चीकू के पौधे को शुरुआत में दो-तीन साल तक विशेष रख-रखाव की जरूरत होती है। उसके बाद बरसों तक इसकी फसल मिलती रहती है। जाड़े एवं ग्रीष्म ऋतु में उचित सिंचाई एवं पाले से बचाव के लिये प्रबंध करना चाहिये। छोटे पौधों को पाले से बचाने के लिये पुआल या घास के छप्पर से इस प्रकार ढक दिया जाता है कि वे तीन तरफ से ढके रहते हैं और दक्षिण-पूर्व दिशा धूप एवं प्रकाश के लिये खुला रहता है। चीकू का सदाबहार पेड़ बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है। इसका तना चिकना होता है और उसमें चारों ओर लगभग समान अंतर से शाखाएँ निकलती है जो भूमि के समानांतर चारों ओर फ़ैल जाती है। प्रत्येक शाखा में अनेक छोटे-छोटे प्ररोह होते हैं, जिन पर फल लगते है। ये फल उत्पन्न करने वाले प्ररोह प्राकृतिक रूप से ही उचित अंतर पर पैदा होते हैं और उनके रूप एवं आकार में इतनी सुडौलता होती है कि उनको काट-छांट की आवश्यकता नहीं होती। पौधों की रोपाई करते समय मूल वृंत पर निकली हुई टहनियों को काटकर साफ़ कर देना चाहिए। पेड़ का क्षत्रक भूमि से 1 मी. ऊँचाई पर बनने देना चाहिए। जब पेड़ बड़ा होता जाता है, तब उसकी निचली शाखायें झुकती चली जाती है और अंत में भूमि को छूने लगती है तथा पेड़ की ऊपर की शाखाओं से ढक जाती है। इन शाखाओं में फल लगने भी बंद हो जाते हैं। इस अवस्था में इन शाखाओं को छाँटकर निकाल देना चाहिये।
चीकू के पौधों पर रोग एवं कीटों का आक्रमण कम होता है। लेकिन कभी-कभी उपेक्षित बागों में पर्ण दाग रोग तथा कली बेधक, तना बेधक, पप्ती लपेटक एवं मिलीबग आदि कीटों का प्रभाव देखा जता है। इसके नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 2 ग्रा./लीटर तथा मोनोक्रोटोफास 1.5 मिली./लीटर के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
चीकू को पकाने के लिए सबसे पहले चीकू को किसी कागज में अच्छे से लपेट लें। इसके बाद इसे चावल की बोरी या डिब्बे के अंदर 2-3 इंच दबा दें। इसके बाद बैग या डिब्बे को अच्छे से बंद कर दें। लगभग दो से तीन दिन में चीकू पक कर तैयार हो जायेगे।
चीकू की खेती में पौधों की सिंचाई के लिए तने के चारों ओर दो फीट की दूरी पर गोल घेरा बनाया जाता है। इस घेरा की चौड़ाई दो फीट तक की होनी चाहिए। सर्दी के सीजन में 10 से 15 दिन में इसके पेड़ों की सिंचाई की जाती है, तथा गर्मी के मौसम में 5 से 6 दिन में एक बार पानी देना चाहिए।
साभार भगवानी की ABC Facebook Page 

Monday, 15 January 2024

चौधरी दौलत राम सहारण

दौलत राम सहारण स्वतंत्रता सेनानी,समाज सुधारक और शिक्षाविद :-
                    श्री दौलत राम सहारण 
जीवन परिचय
नाम - दौलत राम
पिता का नाम - श्री दूलाराम सारण
माता का नाम - भूरी देवी (कसवा, रामपुरा, तारानगर, चुरू)
जन्म स्थान - ढाणी पांचेरा
ढाणी पांचूराम का अपभ्रंस ढाणी पांचेरा
(फोगां निवासी पांचू राम सहारण द्वारा बसाया गया गांव)
 सरदारशहर
जन्म दिनांक - 13.01.1924
मृत्यु - 02.07.2011 सरदारशहर
आर्थिक स्थिति:- परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति - अच्छी और सुदृढ़
जाति - जाट
गोत्र - सहारण
कद काठी - रंग गोरा,अच्छी लंबाई,सुदृढ़ शरीर
पहनावा - धोती कुर्ता,टोपी (1942 से)
नारे :-
1 एको, चेतो अर खुड़को।
2 किसान संगठित रहो, शिक्षित बनो, संघर्ष करो।
कार्य - किसान नेता,स्वतंत्रता सैनानी, समाज सुधारक
पद
1 सांसद चूरू लोकसभा क्षेत्र से तीन बार
2 विधायक श्री डूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से तीन बार
3 मंत्री राजस्थान सरकार 2 बार
4 शहरी विकास मंत्री (केबिनेट)(जनता पार्टी)  भारत सरकार एक बार
5 बीकानेर प्रजा परिषद के सदस्य 1943 में
राजनीतिक दल - 
1 अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी
2 जनता पार्टी
3 भारतीय क्रांति पार्टी
4 लोक दल
दर्शन - गांधी वाद
शिक्षा दीक्षा
गांव में पुजारी से प्रारंभिक शिक्षा
हरियाणा से निजी अध्यापक द्वारा शिक्षा गांव में ही
सरदशहर में प्राथमिक शिक्षा
1942 में सरदारशहर हाई स्कूल 
पंजाब यूनिवर्सिटी के हिसार केंद्र से उच्च शिक्षा
साहित्य सम्मेलन हिसार से उच्चतर शिक्षा स्वंपाठी
सहोदर - 2 छोटे भाई (दुला राम सहारण की प्रथम संतान बेटा हुआ जो बाल्यकाल में ही देवलोक गमन कर गए) दूसरी संतान दौलत राम सहारण और उन से छोटे
1 सहीराम
2 लक्ष्मीनारायण
विवाह - भामासी 
पत्नी - श्रीमती जड़ाव देवी (भांभू), भामासी, चुरू
संतान - 
3 पुत्र -
1. अशोक कुमार सारण पत्नी सुशीला (पुत्री:हरफूल बुड़ानिया, दूधवाखारा, चुरू)
2. भारत सारण पत्नी उमा (पुत्री सुरेन्द्र दुलड़, श्रीमाधोपुर, सीकर)
3. कृष्ण कुमार (आरएलडी नेता,एक बार आम आदमी पार्टी से चुनाव लडा।) पत्नी मंजू (पुत्री रामनारायन बुड़ानिया, हेतमसर,सीकर)
4 पुत्रियाँ -
1.चंद्रकला पति चुन्नी लाल ढाका, हरदेसर, रतनगढ़l
2.कमला पति विजय प्रकाश बलवदा, झरोड़ा, झुझुनू 
3.विमला पति सुरेश चौधरी श्योरान, छानी भादरा, हनुमानगढ़
4.भारती पति कर्नल सुरेन्द्रसिंह देशवाल, भदानी, झज्जर, हरियाणा

कार्य -
1 ढाणी पांचेरा में विद्यालय चलवाया - श्री दौलतराम जी सारण के मन में बड़ी कसक थी कि गांव के बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है अतः आप ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए मात्र 17 वर्ष की आयु में हरियाणा, उत्तर प्रदेश से निजी तौर पर शिक्षक बुलाकर गांव में स्कूल शुरू किया।
2 सरदारशहर क्रय विक्रय सहकारी समिति का गठन  जिसकी दुकान गढ़ के पास खोली। व्यवस्थापक जसराज दूधवाखारा को नियुक्त किया।
3 छात्रावास संचालन - नेमजी नाई की बगीची में आंशिक रूप से संचालित छात्रावास आज बड़ा आकार ले चुका है।

छुआछूत विरोधी -
एक बार सरदारशहर तहसील के बंधनाऊ गांव में जाटों और मेघवालों में कुंवों पर बराबर पानी भरने की जिद पर झगड़ा हुआ। धर्म की रक्षा के लिए गांव के लोग हजारों की तादाद में इकट्ठा हो गए और कुए को घेर लिया जहां सारन ने पहुंच कर साफ कह दिया कि मेघवाल कुए पर पानी भरेंगे और अंत में ऐसा ही हुआ। मेघवालों को कुए पर चढ़ाया।

किसानघाट निर्माण : -
सत्यप्रकाश मालवीय ने एक संस्मरण में बताया कि चौधरी चरणसिंह का निधन 29 मई 1987 को हो गया। बड़ी जद्दोजहद और आना-कानी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार उनका दाह संस्कार करने की अनुमति उस स्थान पर देने को राजी हो गई जहां आज किसानघाट है। इसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री ब्रह्मदत्त जो पहले भारतीय क्रांति दल में थे, ने काफी सहायता की। किसान घाट बापू की समाधि से बहुत कम फासले पर है और राजघाट परिसर के अंदर है। यहीं चौधरी साहब का दाह संस्कार 31 मई 1987 की शाम को हुआ। समाधि स्थल का 4 वर्षों तक नाम मात्र भी विकास नहीं हुआ और यह उपेक्षित पड़ा रहा। हालांकि केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार भी बन गई थी। आज समाधि स्थल विकसित हालत में है और इसका पूरा श्रेय श्री सारण जी को है। सन् 1990 में जब श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने, उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में सारण जी को शहरी विकास मंत्री नियुक्त किया। समाधि स्थल इसी मंत्रालय के अंतर्गत आता है। मैं एक दिन सारण जी से मिला और उन्हें अपनी व्यथा बतलाई और समाधि स्थल की उपेक्षा की और उनका ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने अधिकारियों को बुलाया, निर्देश दिया, योजना और नक्शा बनवाया. पूरी योजना को स्वीकृत किया और सरकारी धन उपलब्ध करवाया. इसमें चंद्रशेखर जी का भी पूरा सहयोग था. श्री सारण जी ने जिस लगन, तन्मयता और प्रतिबद्धता के साथ इस समाधि स्थल के विकास में रुचि ली, उसको मैं कभी भूल नहीं सकता। प्रतिवर्ष चौधरी साहब के जन्मदिन 23 दिसंबर तथा पुण्यतिथि 29 मई को उनके अनुवाई में समाधि स्थल किसान घाट पर एकत्रित होते, वहां सर्वधर्म प्रार्थना सभा होती है। भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री शहरी विकास मंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री तथा अन्य विशिष्ट हस्तियाँ समाधि स्थल पर श्रद्धा सुमन तथा पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

आजीविका - 
1 सरदारशहर में ओसवाल विद्यालय में अध्यापन कार्य।
2 सरदारशहर में आढ़त आधारित घी की दुकान
3 सरदारशहर राजकीय विद्यालय में संस्कृत अध्यापक

सहयोगी और मार्गदर्शक
1 पंडित गौरीशंकर आचार्य : आप सरदारशहर हाई स्कूल में एक संस्कृत अध्यापक थे। 
2 कन्हैयालाल सेठिया - 
सुजानगढ़ निवासी कवि कन्हैयालाल सेठिया (11 सितम्बर 1919-11 नवंबर 2008)। गांधी वादी विचारधारा। उनकी कुछ कृतियाँ है - 
1 रमणियां रा सोरठा
2 गळगचिया , 
3 मींझर , 
4 कूंकंऊ , 
5 लीलटांस , 
5 धर कूंचा धर मंजळां , 
6 मायड़ रो हेलो , 
7 सबद , 
8 सतवाणी , 
9 अघरीकाळ , 
10 दीठ , 
11 क क्को कोड रो ,
12 लीकलकोळिया
13 हेमाणी। 
3 भंवरलाल लाल नाई पुत्र नेमीराम नाई पेशा पोस्ट मास्टर।
4 श्री बैजनाथ पंवार - ग्राम शिक्षा और ग्राम विकास संबंधी सेवा कार्यों में श्री सारण के प्रभावशाली साथी थे।
5 रावतराम आर्य - 
1953 सरपंच
1959-60 चूरु के प्रथम जिला प्रमुख
उनका एक संस्मरण - मेरे परिवार के लोग उन दिनों सरदारशहर में रहकर कपड़ा बुनाई का कार्य करते थे। मेरे पिताजी ने मुझे हरिजन पाठशाला में भर्ती करवाया। वहाँ प्राईमरी शिक्षा के बाद सरकारी स्कूल में मुझे इसलिए भर्ती नहीं किया कि मैं मेघवाल जाति से था।
6 श्री गौरी शंकर आचार्य, 
7 श्री बुद्धमल, 
8 श्री हीरा लाल बरडिया,
9 श्री पूर्णचन्द्र आदि एक संस्था चलाते थे जो परीक्षाओं की तैयारी करवाया करते थे।
10 कुंभाराम आर्य - दौलतराम सारण ने कुंभाराम आर्य के साथ बहुत लंबे समय तक राजस्थान के विकास के लिए काम किया. कुंभाराम आर्य के मोहनलाल सुखाड़िया से मतभेद हो गया। विरोध बढ़ता गया। परिणाम स्वरुप चौथे आम चुनाव से पूर्व मतभेदों के कारण 20 दिसंबर 1966 को राजा हरिश्चंद्र झालावाड़, भीमसिंह मंडावा, कमला बेनीवाल, दौलतराम सारण के साथ कुंभाराम आर्य ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने कांग्रेस दल से भी अपना संबंध तोड़ लिया।
कांग्रेस से अलग होकर इन लोगों ने राजस्थान में सन् 1967 में जनता पार्टी नाम की एक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की और राजस्थान की राजनीति में एक नए युग का प्रारंभ हुआ। लंबे समय से राजस्थान के कुछ कांग्रेसजन ईमानदारी से अनुभव कर रहे थे कि कांग्रेस का वर्तमान स्वरूप जनभावनाओं के प्रतिकूल आचरण कर रहा है। जनता को भय, संकट और चिंता का मुकाबला करना पड़ रहा है।
14 से 16 मई 1967 को इंदौर में उन सब पार्टियों के प्रतिनिधियों की ओर से एक बैठक बुलाई गई जिन्होंने आम चुनाव के अवसर पर कांग्रेस छोड़कर भिन्न-भिन्न नामों से प्रांतीय स्तर पर प्रथक-प्रथक राजनीतिक दल स्थापित करके चुनाव लड़े। इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि सभी संगठन भारतीय क्रांति दल में विलीन हो जावें। इस प्रकार सभी आवश्यक साधन जुटाकर जनता पार्टी को एक राजनैतिक स्वरूप प्रदान किया गया। कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं ने भारतीय क्रांति दल का गठन कर लिया। इस दल के अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद बने। इसके महासचिव श्री दौलतराम सारण थे। 26 दिसंबर को एक वर्ष पुरानी राजस्थान जनता पार्टी को औपचारिक रूप से भारती क्रांति दल में विलीन कर दिया गया। यह जनता पार्टी क्रांति दल की एक इकाई के रूप में राज्य में काम करने लगी। राजस्थान में इस पार्टी के अध्यक्ष चौधरी कुंभाराम आर्य और दौलतराम सारण इसके महासचिव बने।
11 डॉ कन्हैयालाल सींवर - ग्रामसेवा प्रन्यास की स्थापना चौधरी दौलतराम सारण के सानिध्य एवं संरक्षण में डॉ कन्हैयालाल सींवर की सक्रियता से हुई। प्रन्यास का प्रमुख उधेश्य सरदारशहर के आसपास के ग्रामीण इलाके के लड़कों व लड़कियों की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागृति पैदा करना था। सरदारशहर में किसान वर्ग की लड़कियों के लिए डॉ कन्हैयालाल सींवर ने अपने घर में उनके आवास हेतु निःशुल्क होस्टल की व्यवस्था शुरू की। प्रन्यास द्वारा लड़कियों के लिए होस्टल का निर्माण कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न किया गया। किसान वर्ग के लड़कों के लिए सफलतापूर्वक होस्टल का संचालन भी वर्षों से किया जा रहा है। प्रन्यास के तहत संचालित हर गतिविधि में चौधरी दौलतराम सारण का मार्गदर्शन एवं सानिध्य मिलता रहा।
12 श्री दीपेंद्रसिंह शेखावत :-  ने कहा कि छात्र जीवन से सारण जी का नाम सुनते आया हूं किंतु जब तक में उनके संपर्क में नहीं आया मेरे मन में उनकी छवि एक घोर जातिवादी जाट नेता के रूप में थी। निकट जाने के पश्चात भ्रांति दूर हुई कि वह जाट नेता नहीं बल्कि किसान और गरीब के दर्द से व्यथित होकर, देहात के पिछड़ेपन से रूबरू होकर, महात्मा गांधी और ज्योतिबा फुले से प्रभावित होकर उन्हें कुछ मूल्यों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. श्री दौलतराम जी को महिला शिक्षा, घूंघट उठाने और शराबबंदी के लिए संघर्ष करते हुए अलख जगानी पड़ी. यदि उनकी समीक्षा की गई होती तथा आज की मीडिया-जगत ने उसे पकड़ा होता तो शायद उन्हें राजस्थान के ज्योतिबा फुले के समान सम्मान मिला होता।
13 मिलाप दुग्गड़ - कुलपति आईएएसई विश्व विद्यालय गांधी विद्यामन्दिर, सरदार शहर...आप लिखते हैं कि श्रीयुत दौलत राम सारण हमारे क्षेत्र के एक ऐसे पुरुष हैं, जो सामान्य कृषिजीवी परिवार में उत्पन्न होकर अपनी बुद्धि, लगन, श्रम, कार्यक्षमता एवं सेवा भावना के बल पर जीवन में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते गए. उनके पिता चौधरी श्री दुलाराम जी गांव के प्रमुख लोगों में थे, बड़े सेवा भावी थे. हमारे यहाँ समय-समय पर पिता-पुत्र दोनों का ही आना-जाना रहता था. दोनों परिवारों में परस्पर अच्छा स्नेह संबंध था. इन्हें अध्यात्म और योग में बचपन से ही रुचि रही है. वे मेरे पिताश्री कन्हैयालाल दुगड़ के लगभग समवयस्क हैं. पिताश्री से विधिवत अभ्यास द्वारा योग में उच्चता प्राप्त की थी. अतः श्री सारण समय-समय पर उनके पास योग आदि के संबंध में चर्चा हेतु आते रहते थे. वे बड़े ही गुणग्राही व्यक्ति थे. समाजसेवियों एवं विचारकों के सानिध्य में बैठने, उन्हें सुनने और उनसे सीखने की इन्हें सदा से अभिरुचि रही है।

उपाधि -
राजस्थान केसरी, 
मरूधर का गौरव, 
थार के गांधी, 
मारवाड़ के गांधी, 
राजस्थान के ज्योतिबा फुले 

पुस्तक लेखन - श्री द्वारा लिखित अभिनंदन ग्रंथ दौलत राम सहारण के जीवन का सम्पूर्ण परिचय दिया है।

स्पष्टवादिता एक उदाहरण :- 
उन दिनों चुनाव के दिन थे और श्री दौलतराम सारण अपनी चुनावी सभा को संबोधित करने चूरू शहर में आने वाले थे। उन दिनों राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर में ईंटों का पूजन और चंदा जोर-शोर से चल रहा था। माहौल काफी राममय में बना हुआ था। श्री दौलतराम सारण को राम भक्तों की भीड़ ने चूरू के मुख्य बाजार गढ़ चौराहे पर रोक लिया और उनको तिलक लगाकर चंदा मांगने लगे। श्री दौलतराम ने न सिर्फ चंदा देने से मना कर दिया बल्कि तिलक लगाने से भी मना कर दिया और कहा कि तुम लोग चंद चालबाज और स्वार्थी लोगों के बहकावे में आए हुए हो और जो तुम्हारी भावनाओं को राम के नाम पर भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। यद्यपि उस समय उनको विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन बेबाक सत्य उन्होंने भीड़ की नाराजगी की परवाह किए बिना व्यक्त कर दिया ।

आम आदमी तक संदेश पहुंचाना - 
मेलों के माध्यम से संदेश: दौलतराम जी आम जनता में बहुत लोकप्रिय थे। वे भाषण कला में बहुत निपुण थे और मेलों-मगरियों में लोग कई-कई कोस ऊंटों पर चढ़ कर उनके भाषण सुनने जाते थे। तत्समय राजस्थान के इस रेगिस्तानी इलाके में शिक्षा व संचार माध्यमों का पूर्ण अभाव था। अतः ग्रामीणों के मेलों में सभाओं के माध्यम से संदेश पहुँचने का नया तरीका उनके द्वारा ही विकसित किया गया था। उनके द्वारा मेलों में दिये गए संदेश को लोग अगले मेले की तारीख तक दृढ़ता से अनुसरण करते थे व अगले मेले में नए संदेश का इंतजार रहता था।

मेरे विचार :-
में स्वयं उनसे कई बार मिला हूं। जब कभी पिताजी के साथ में जयपुर रहा तो कई बार उनसे मिलना हुआ। हमारा विधायक आवास B - 15 जालूपुरा था जहां वो अक्सर पिताजी के पास आते थे। कई बार उनको खिचड़ी - दही खिलाया है।
एक मिलनसार और प्रभावी व्यक्तित्व के ढाणी दौलतराम सारण का। व्यक्तिगत प्रशंसक भी रहा हूं यद्यपि बार बार पार्टी बदलने के उनके निर्णय ने मुझे निराश किया।

शमशेर भालू खान
जिगर चुरूवी
9587243963

स्त्रोत - जाटलेंड वेडसाइड
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