Tuesday, 16 January 2024

चीकू की बागवानी

              चीकू की खेती केसे (बागवानी)

चीकू के पौधे गर्म, उष्णकटिबंधीय जलवायु और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करते हैं। इन्हें पनपने के लिए भरपूर धूप और नियमित पानी की भी आवश्यकता होती है। बीज से रोपण के अलावा, चीकू के पौधों को सॉफ्टवुड कटिंग या एयर लेयरिंग द्वारा भी लगाया जा सकता है। या फिर आप इसे नर्सरी से पौधा खरीदकर भी लगा सकते हैं।
पौधा तैयार करने का सबसे उपयुक्त समय मार्च-अप्रैल है। बिजाई मुख्यत: फरवरी से मार्च और अगस्त से अक्तूबर महीने में की जाती है। इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है लेकिन इसके लिए अच्छी जल निकासी वाली गहरी जलोढ़, रेतली दोमट और काली मिट्टी उत्तम रहती है। चीकू की खेती के लिए मिट्टी का पी एच 6-8 उपयुक्त होता है। चिकनी मिट्टी और कैल्शियम की उच्च मात्रा युक्त मिट्टी में इसकी खेती ना करें। इसे लगाने के लिए ऐसा क्षेत्र चुनें जहां भरपूर धूप हो, प्रतिदिन कम से कम 6 से 8 घंटे धूप पौधे के लिए ज़रूरी है। 
चीकू बीज को लगभग एक इंच गहरी मिट्टी में डालें और पानी दें। एक बार जब पेड़ अंकुरित हो जाता है, तो चीकू के पेड़ को फल लगने में 5 से 8 साल का समय लगता हैं। वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार चीकू के पौधों में दो वर्षो के बाद फूल एवं फल आना आरम्भ हो जाता है। इसमें फल साल में दो बार आता है, पहला फरवरी से जून तक और दूसरा सितम्बर से अक्टूबर तक। फूल लगने से लेकर फल पककर तैयार होने में लगभग चार महीने लग जाते हैं। चीकू में फल गिरने की भी एक गंभीर समस्या है। फल गिरने से रोकने के लिये पुष्पन के समय फूलों पर जिबरेलिक अम्ल के 50 से 100 पी.पी.एम. अथवा फल लगने के तुरन्त बाद प्लैनोफिक्स 4 मिली./ली.पानी के घोल का छिड़काव करने से फलन में वृद्धि एवं फल गिरने में कमी आती है।
चीकू का पेड़ 30 मीटर (100 फीट) की ऊंचाई तक बढ़ सकता है। चीकू का पेड़ धीमी गति से बढ़ता है, लेकिन एक बार जब यह फल देना शुरू कर देता है, तो यह कई वर्षों तक फल देना जारी रखता है। चीकू पर फल इस बात पर निर्भर करता है कि पौधों का प्रचार-प्रसार कैसे किया जाता है।
चीकू के पेड़ पर खाद प्रतिवर्ष आवश्यकतानुसार डालते रहना चाहिये जिससे उनकी वृद्धि अच्छी हो और उनमें फलन अच्छी रहें। रोपाई के एक वर्ष बाद से प्रति पेड़ 4-5 टोकरी गोबर की खाद, 2-3 कि.ग्रा. अरण्डी/करंज की खली प्रति पौधा प्रति वर्ष डालते रहना चाहिये। खाद देने का उपयुक्त समय जून-जुलाई है। खाद को पेड़ के फैलाव की परिधि के नीचे 50-60 सें.मी. चौड़ी व 15 सें.मी. गहरी नाली बनाकर डालने से अधिक फायदा होता है।
चीकू के पौधे को शुरुआत में दो-तीन साल तक विशेष रख-रखाव की जरूरत होती है। उसके बाद बरसों तक इसकी फसल मिलती रहती है। जाड़े एवं ग्रीष्म ऋतु में उचित सिंचाई एवं पाले से बचाव के लिये प्रबंध करना चाहिये। छोटे पौधों को पाले से बचाने के लिये पुआल या घास के छप्पर से इस प्रकार ढक दिया जाता है कि वे तीन तरफ से ढके रहते हैं और दक्षिण-पूर्व दिशा धूप एवं प्रकाश के लिये खुला रहता है। चीकू का सदाबहार पेड़ बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है। इसका तना चिकना होता है और उसमें चारों ओर लगभग समान अंतर से शाखाएँ निकलती है जो भूमि के समानांतर चारों ओर फ़ैल जाती है। प्रत्येक शाखा में अनेक छोटे-छोटे प्ररोह होते हैं, जिन पर फल लगते है। ये फल उत्पन्न करने वाले प्ररोह प्राकृतिक रूप से ही उचित अंतर पर पैदा होते हैं और उनके रूप एवं आकार में इतनी सुडौलता होती है कि उनको काट-छांट की आवश्यकता नहीं होती। पौधों की रोपाई करते समय मूल वृंत पर निकली हुई टहनियों को काटकर साफ़ कर देना चाहिए। पेड़ का क्षत्रक भूमि से 1 मी. ऊँचाई पर बनने देना चाहिए। जब पेड़ बड़ा होता जाता है, तब उसकी निचली शाखायें झुकती चली जाती है और अंत में भूमि को छूने लगती है तथा पेड़ की ऊपर की शाखाओं से ढक जाती है। इन शाखाओं में फल लगने भी बंद हो जाते हैं। इस अवस्था में इन शाखाओं को छाँटकर निकाल देना चाहिये।
चीकू के पौधों पर रोग एवं कीटों का आक्रमण कम होता है। लेकिन कभी-कभी उपेक्षित बागों में पर्ण दाग रोग तथा कली बेधक, तना बेधक, पप्ती लपेटक एवं मिलीबग आदि कीटों का प्रभाव देखा जता है। इसके नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 2 ग्रा./लीटर तथा मोनोक्रोटोफास 1.5 मिली./लीटर के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
चीकू को पकाने के लिए सबसे पहले चीकू को किसी कागज में अच्छे से लपेट लें। इसके बाद इसे चावल की बोरी या डिब्बे के अंदर 2-3 इंच दबा दें। इसके बाद बैग या डिब्बे को अच्छे से बंद कर दें। लगभग दो से तीन दिन में चीकू पक कर तैयार हो जायेगे।
चीकू की खेती में पौधों की सिंचाई के लिए तने के चारों ओर दो फीट की दूरी पर गोल घेरा बनाया जाता है। इस घेरा की चौड़ाई दो फीट तक की होनी चाहिए। सर्दी के सीजन में 10 से 15 दिन में इसके पेड़ों की सिंचाई की जाती है, तथा गर्मी के मौसम में 5 से 6 दिन में एक बार पानी देना चाहिए।
साभार भगवानी की ABC Facebook Page 

No comments:

Post a Comment