Monday, 8 January 2024

स्वामी गोपाल दास महंत

स्वामी गोपालदास महंत - 
भारत शीघ्र ही स्वतंत्र होगा, भारत की जनता इस उत्पीड़न को नहीं सहन करेगी। आंखे शासक जो हैं उनका क्या होगा पता नहीं, परन्तु आज के निर्वासित और विद्रोही कल के शासक होंगे।
जून 1935,बीकानेर जेल से चूरू आने पर उद्बोधन।

 आदम कद प्रतिमा स्वामी गोपाल दास महंत

             स्वामी गोपाल दास 
आदम कद प्रतिमा स्वामी गोपाल दास चौक चूरू

स्वामी गोपाल दास कस्वां भेरुसर :-
चूरू मे आजादी के जनक, चूरू मे सर्वप्रथम तिरंगा फहराने वाले, सर्वहितकारिनी सभा,कबीर पाठशाला, पुत्री पाठशाला के संस्थापक स्वामी गोपाल, प्लेग रोग में देवदूत,समाज सुधारक की तरह काम करने वाले महापुरुष।

सामान्य जीवन परिचय -
नाम - गोपाल राम
प्रचलित नाम - स्वामी गोपाल दास महंत
पिता का नाम - चौधरी बिंजाराम कस्वां (गोपालदास की छोटी उम्र में पिता का देहांत)
माता का नाम - श्रीमती नौजी देवी (पति के देवलोग गमन के बाद चुरू में आ कर सेठों के घरों में अनाज पिसाई का कार्य किया)
जाति - जाट
गोत्र - कस्वां
संप्रदाय - निंबार्क
जन्म -  फरवरी 1882 (दलीप सरावग के अनुसार)
जन्म स्थान - चुरू के उत्तर में 18 किमी दूरी पर स्थित भैरूसर ग्राम पंचायत इंद्रपुरा (चुरू - तारानगर स्टेट हाई वे)
मृत्यु - 09.01.1937  माघ माह में माघ कृष्ण पक्ष 3 संवत 1938 को गंगा नदी के लक्ष्मण झूला तट पर।
अंतिम समय - फूल चट्टी, लक्ष्मण झूला गंगा तट
कद काठी - कद लम्बा, सुन्दर सुगठित शरीर , सर चौड़ा और मस्तक ऊंचा उठा हुआ
पहनावा - खादी का सफेद धोती कुर्ता और आगे से ऊंचाई लिया हुआ फेंटा 
कर्म स्थल - नौजा देवी ने अपने बेटे गोपाल को छोटे मंदिर के महंत मुकुंद दास को सौंप दिया।
व्यक्तित्व - लगनशील, स्वाभिमानी और निरपेक्ष स्वामी गोपाल दास का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था।
(17वीं सदी में चूरू के मोहता गुवाल सिंह लखोटिया द्वारा निर्मित इस मंदिर में कुछ समय बाद निम्बार्क संप्रदाय की गद्दी स्थापित की गई। कालांतर में बड़े मंदिर का निर्माण हुआ।) महंत जी ने बालक गोपाल की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर पंडित कन्हैया लाल ढंढ द्वारा संचालित स्कूल में भेज दिया। वहां उन्होंने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में विशेष ज्ञान प्राप्त किया।

पद एवं उपाधि
महंत छोटा मंदिर चूरू 
जीवन के अंतिम काल में गोपाल को उनकी प्रतिभा और सेवा से प्रभावित हो कर महंत मुकुंद दास ने अपना शिष्य घोषित कर दिया। गुरु के देवलोक गमन के पश्चात गोपाल अब 19 वर्ष की आयु में वर्ष 1901 में निंबार्क संप्रदाय के महंत बने और नया नाम हुआ स्वामी गोपाल दास महंत।

सर्व हितकारिणी सभा की स्थापना -
वर्ष 1907 में चूरु गढ़ के सामने पांच मंजिला इमारत सर्व हितकारिणी सभा का भवन बनाया गया जिसमें वाचनालय, पुस्तकालय, आयुर्वेदिक उपचार केंद्र और अन्य सामाजिक कार्य करने की व्यवस्था की गई। यह भवन आजादी के दीवानों का विमर्श क्षेत्र बना जिसे चूरू की कांग्रेस कहा जाने लगा। कालांतर में सर्वहितकारिणी सभा के भवन में रात्रिकालीन कक्षा के रूप में उच्च शिक्षण केंद्र की शुरुआत हुई।
स्वामी जी ने सर्वहितकारिणी सभा भवन में लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक एवं विपनचन्द्र पाल के चित्र सजाये। यह उनकी स्वतंत्रता के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा का द्योतक है। ब्रिटिश शासन की दृष्टि में लाल - बाल - पाल सरकार से सजा प्राप्त अपराधी थे। चूरू में अंग्रेज सरकार और बीकानेर रियासत के जासूसों द्वारा इस प्रकार की गतिविधियों की जानकारी सरकार को पहुंचाई। शासन द्वारा स्वामी जी के विरुद्ध कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू हो गई परन्तु स्वामी जी ने अपना काम जारी रखा।

सर्व हितकारिणी सभा भवन जहां आज भी वाचनालय और डिस्पेंसरी का संचालन किया जा रहा है।
चूरू का किला जिसका वर्ष 2023 में 5 करोड़ रुपए लगा कर अशोक गहलोत सरकार द्वारा जीर्णोधार करवाया गया।

विशेषताएं -
गौ पालक -
गाय को भारतीय जीवन और संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा मानने वाले स्वामी जी आजीवन गौ कल्याणार्थ प्रतिबद्ध रहे। अकाल के समय गायों की पीड़ा को कम करने हेतु चारे और पानी की व्यवस्था की। चूरू नगर सेठ शिवबक्श राय बागला द्वारा संवत 1925 में चूरू पिंजरापोल की स्थापना की गई जो अपर्याप्त संसाधनों की मार झेल रही थी, में गोपाष्टमी मेले की शुरुआत की। आज भी यह मेला हर वर्ष आयोजित किया जाता है। स्वामी जी को पिंजरापोल का प्रबंधक नियुक्त किया गया। जुलाई 1929 में चुनाव के दौरान स्वामी गोपाल दास को पूर्ण स्वत्वाधिकारी बनाया गया। 

पर्यावरण प्रेमी -
चूरू के सेठों से उनके पास पड़ी बंजर भूमि दान में लेकर चारागाह के रूप में विकसित कर और वहां सघन वृक्षारोपण किया। इससे गौचर के साथ - साथ रेगिस्तान का विस्तार भी रुका। गोपाल दास जी के पर्यावरण प्रेम की बानगी सरदारशहर के गिगदास जी को लिखे पत्र में दिखती है, जिसमें उनके द्वारा बाल्यकाल में लगाये गये पीपल के पेड़ की देखभाल हेतु विनय किया गया है । 
बड़े - बड़े वीरान धोरों की धरती को उन्हीं के अथक प्रयासों ने हरियाली से ढंक दिया गया। सिर पर पानी ले जा कर सींचे गए चूरू रेल्वे स्टेशन से राम मंदिर तक सड़क के दोनों ओर बड़े-बड़े पेड़ आज भी हमें उनकी याद दिलाते हैं। पर्यावरण एवं पशुधन की चराई को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से स्वामी जी ने सेठों से संपर्क कर चूरू में लगभग 510 अभयारण्यों (बीहड़) छुड़वाने का अनोखा कार्य किया। स्वामी जी के नेतृत्व में सर्वहितकारिणी सभा चूरू की ओर से सन 1912 में बीकानेर महाराजा को लिखे एक प्रार्थना पत्र में त्रिलोकी तीर्थ स्थल की मांग की थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वामी जी मरुस्थल में हरियाली एवं पर्यावरण सरंक्षण के महत्व को समझते थे। पशु एवं पर्यावरण संरक्षण विकास शहरों एवं आसपास नवोन्वेषी अभियान की शुरुआत की गई। इसी का प्रतिफल यह हुआ कि वन - रक्षण हेतु फर्स्ट रिलैक्सेशन बिल, आवासीय प्लॉट, सन 1927 ई.पू. पारित किया गया और पूरी तरह से इलाके में लागू हुआ। जनवरी 1932 में स्वामी जी ने स्वयं के आश्रम के साथ - साथ अन्य आश्रमों हेतु भूमि छुड़वाने के अभियान में विशेष योगदान दिया।

प्रतिबद्ध सामाजसेवी -
चूरू में सन 1917 से 18 में महामारी प्लेग और मलेरिया, विकराल रूप धारण कर चुकी थी। इससे संक्रमित हो कर बड़ी संख्या में लोग मरने लगे। सड़ती लाशों और संक्रमित लोगों को छोड़ कर परिजन पलायन करने लगे। शहर वीरान होने लगा। बीमारों की सेवा और मृतकों का अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं रहा। यह पुनीत कार्य स्वामी जी ने शिष्यों के साथ मिलकर अपने हाथ में लिया। मरे लोगों का अंतिम संस्कार और बचे लोगों को भोजन, पानी और दवाएँ उपलब्ध करवा कर मरीजों की मदद की। बड़े क्षेत्र में पैदल जा कर लोगों की देखभाल मुश्किल हुई तो एक घोड़ा खरीद लिया जिससे वो पूरे शहर का चक्कर लगा कर उनका आयुर्वेद का ज्ञान वरदान साबित हुआ। उनकी पहल और प्रयासों से ही चूरू में आयुर्वेद विद्यापीठ केंद्र संचालित होने लगे जो आज भी संचालित हैं। श्री सर्व हितकारिणी निःशुल्क होमियोपैथी चिकित्सालय इसका उचित उदाहरण है।
इस भयंकर त्रासदी में डाक तार व्यवस्था तार - तार हो गई, तो स्वामी जी ने संबंधित लोगों तक तार एवं पत्र पहुंचाने की व्यवस्था की।

कवि पंडित अमोलकचंद के शब्दों में गोपाल दास के सेवा कार्य -
"चूरू शहर में सोर भयो, जद जोर करयो महामारी।
डेड पोस्ट होम के समान पुराने छोड़े चले जाओ बंद किवाड़ी।।
आवत है गोपाल अश्व चढ़ जहां बीमार पड़यो है।
देत औषधि वो दया करके नाथ, अनाथ को नाथ खड्यो है।।

जन जागृति - 
स्वामी गोपाल दास की सामाजिक सेवाएँ बहुआयामी थीं। आजादी से पहले चूरू जनपद अशिक्षा, गरीबी, अकाल और चिकित्सा सुविधाओं की कमी से पीड़ित था। ब्रिटिश राज जागीरदारों  और जमींदारों द्वारा किए जाने वाले शोषण का शिकार रहा। 
उन दिनों स्वतंत्रता की बात करना या जागीरदारों के विरुद्ध किसी प्रकार का आंदोलन करना अपराध की श्रेणी में आता था। नव विचार संचरण हेतु स्वामी जी ने 1907 में सत्य, अहिंसा, अस्तेय और ब्रह्मचर्य के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सर्वहितकारिणी सभा ​​प्रारंभ की।  पहले तीन वर्षों तक वह सभा के अध्यक्ष और उसके बाद उसके मंत्री रहे। जागीरदार 'सर्वहितकारिणी सभा' ​​की स्थापना से खुश नहीं थे, परिणामस्वरूप उन्हें उनके विरोध का सामना करना पड़ा। सर्वहितकारिणी सभा का कोई भवन नहीं था। अतः उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक सभा का अपना भवन नहीं बन जायेगा तब तक वे अन्न ग्रहण नहीं करेंगे। उन्होंने सभा के भवन के निर्माण के लिए विभिन्न स्रोतों से धन एकत्र किया और सभा के लिए सात मंजिला भवन तैयार होने तक केवल फलाहार पर ही जीवित रहे। उन्होंने दलित लोगों की स्थिति में सुधार हेतु कई कदम उठाए। समाज से छुआछूत को दूर करने के लिए महंत जी ने 'कबीर पाठशाला' शुरू की।

स्त्री शिक्षा -
आधी आबादी महिला शिक्षा से वंचित थी।इनका सम्बलीकरण समाज और राष्ट्र के विकास में पहला कदम है ऐसा मानना था स्वामी जी का। स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु सबसे पहले उन्होंने सर्वहितकारुणि पुत्री पाठशाला प्रारम्भ की। यह संस्थान महिलाओं को निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध कराता, और उन्हें सिलाई-बुनाई का प्रशिक्षण भी देता था, जिससे वे आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो सकें। यह संस्था विधवाओं को भी उनकी स्थिति सुधारने बाबत शिक्षा प्रदान करती थी। बाद में पुत्री पाठशाला की शाखाएँ पड़ोसी गाँवों और कस्बों में शुरू की गईं। तारानगर में पुत्री पाठशाला का संचालन चूरू सर्व हितकारिणी सभा द्वारा ही किया जाता था।
स्वामी गोपाल दास द्वारा राजस्थान में उस समय की गई ये पहल क्रांतिकारी मानी जाती है जो महात्मा गांधी को भी नजर नहीं आई। 

दलित उद्धार और उनकी शिक्षा -
पुत्री पाठशाला की तरह दलित बस्ती में शिक्षा के प्रचार प्रसार हेतु कबीर पाठशाला नाम से विद्यालय प्रारंभ किया गया। यह विद्यालय उस समय शुरू किया गया जब दलितों को शिक्षा देना धर्म विरुद्ध समझा जाता था। पुत्री पाठशाला की स्थापना पर पिछड़ी एवं रुढ़िवादी जनता ने स्वामी गोपालदास पर पथराव किया जाता, लेकिन वे दृढ़ता के साथ आगे बढ़े और अपने उद्देश्य में सफल हुए। स्वामी गोपाल दास ने बीकानेर रियासत में अनिवार्य शिक्षा के लिए आवाज उठाई। उनके मार्गदर्शन में सर्वहितकारिणी सभा' ​​ने कई पुस्तकालय, पुत्री पाठशाला', कबीर पाठशाला बाद में उनके नाम से एक और पाठशाला चूरू में खोली गई जिसका नाम रखा गोपाल पाठशाला।

विधवा व अनाशक्त महिलाओं हेतु कार्य
सर्व हितकारिणी सभा द्वारा जरूरतमंद, विधवा और अनशक्त महिलाओं के उत्थान हेतु उद्योग वर्धिनी सभा  आतुरालय और महिलाश्रम चलाए गए। इन गतिविधियों के माध्यम से गोपाल दास जी ने आत्म निर्भर नारी की भावना को मूर्त रूप दिया।

पेयजल उपलब्धता हेतु कार्य -
मरुभूमि चुरू को पानी के संकट से राहत प्रदान करने के उद्देश्य से सर्वहितकारिणी सभा के माध्यम से स्वामी जी ने शहर के बाहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक कुँए, कुंड, जोहड़ और तालाब बनवाए। चूरू के आस-पास के इलाक़ों के अलावा दूरस्थ गाँव जैसे सरदारशहर में पक्का तालाब, एक कुंड और चार मर्वों का कुआँ, खंडवा और अन्य स्थानों में कुंडों का निर्माण करवा कर स्वामी जी ने जल संकट से निपटने का कार्य किया।

अन्य -
इसके अलावा उन्होंने शिल्पशाला, सेवासदन, अनाथालय, गौशाला आदि कई रचनात्मक गतिविधियाँ संचालित की।

सामाजिक कार्यकर्ता -
सामाजिक बुराइयों को मिटाने हेतु सर्वहितकारिणी सभा के माध्यम से उन्होंने बाल विवाह और वृद्ध विवाह पर प्रतिबंध, जहरीली सामग्रियों के उपयोग पर प्रतिबंध लगवाने की मांग की।
हिंदी और संस्कृत और स्थानीय भाषाओं का प्रसार करने जैसे कदम भी उठाए। स्वामी गोपाल दास ने सर्वहितकारिणी सभा के माध्यम से कुओं, कुंडों का निर्माण करवाया। जोहड़ों, तालाबों और पुराने कुओं और तालाबों का जीर्णोद्धार करवाया। अकाल और महामारी के दौरान सर्वहितकारिणी सभा द्वारा किये गये कार्य चूरू के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए।

स्थापत्य प्रेमी -

चूरू धर्म स्तूप -
सभा की ओर से स्वामी गोपालदास एवं स्वामी श्रीराम ओझा के प्रयासों के फलस्वरूप सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने चूरू  रेलवे स्टेशन सड़क पर धर्म स्तूप (लाल घंटा घर) का निर्माण कराया। लाल पत्थर से निर्मित इस धर्म स्तूप पर विभिन्न धर्मों के प्रवर्तकों की मूर्तियां स्थापित कर धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया जा रहा है। इसी धर्म स्तूप से राजस्थान के चूरू में तिरंगा फहराने का अनूठा इतिहास जुड़ा हुआ है। चूरू धर्म स्तूप आजादी का प्रतीक है। देश के आजाद होने से पहले 26 जनवरी 1930 17 साल पहले स्वतंत्रता सैनानी चंदन मल बहड़ ने धर्म स्तूप पर सब से पहले तिरंगा फहराया जिसमें उनके साथियों ने सहयोग किया।

चूरु इंद्रमणि पार्क - 
चूरू के प्रथम सार्वजनिक पार्क का निर्माण कलकत्ता प्रवासी सेठ रुकमानंद बागला ने अपनी सुपुत्री इंद्रमणि की पुण्य स्मृति में इंद्रमणि पार्क के नाम से करवाया। स्वामी जी ने पार्क के निर्माण हेतु कीमती भूमि सरकार से निः शुल्क प्राप्त की। 
     मुख्य द्वार इंद्रमणि पार्क चूरू 
              इंद्रमणि पार्क चूरू 

बालिका महाविद्यालय - 
चूरू सर्वहितकारिणी सभा भवन में बालिका महाविद्यालय की शुरुआत की गई। बाद में कॉलेज भवन का निर्माण हो जाने के बाद कॉलेज वहां स्थानांतरित किया गया।

कबीर पाठशाला - 
दलित समुदाय की शिक्षा हेतु कबीर पाठशाला का निर्माण एवं संचालन किया गया।
गोपाल पाठशाला - 
स्वामी जिनके नाम से गोपाल पाठशाला की शुरुआत की गई।
लोहिया कॉलेज,चूरु - 
         लोहिया कॉलेज भवन 
स्वामी जी द्वारा चूरू की ऐतिहासिक संस्था सर्व हितकारिणी सभा के संरक्षण में चूरू में कॉलेज की स्थापना की शुरुआत की गई। चूरू नगर सेठ श्यामलाल जी जीवन में शिक्षा के महत्व को समझये थे। स्वामी जी से मिली प्रेरणा से उद्योगपति श्यामलाल जी ने निर्णय लिया कि चूरू के लोगों में उच्च शिक्षा के अभाव में प्रगति रुकने नहीं दी जायेगी। इसी क्रम में चूरू में कॉलेज की स्थापना का सपना मूर्त रूप लेने लगा। 18 दिसंबर 1943 का दिन चूरू हेतु सदैव गौरवशाली रहेगा, इसी दिन सेठ लोहिया, महाराजा शार्दुल सिंह और सेठ मुलायम लाल नोलीम ने चूरू में लोहिया महाविद्यालय की नींव रखी। दुर्भाग्य रहा है कि चूरू में कॉलेज का सपना देखने वाले और सेठ कन्हैयालाल लोहिया को इस हेतु प्रेरित करने वाले स्वामी गोपालदास भव्य कॉलेज भवन पूरे होने से पहले नश्वर संसार से प्रस्थान कर गए।

धन की प्राप्ति -
स्वामी गोपाल दास की ईमानदारी और निष्ठा से चुरू क्षेत्र के धनी सेठ बहुत प्रभावित थे। सेठ साहूकार किसी कार्य हेतु धन उपलब्ध करवाने बाबत तैयार रहते। चूरू में सार्वजनिक इंद्रमणि पार्क की स्थापना उनके प्रयासों से हुई। स्वामी गोपाल दास की पहल पर उद्योगपति जे.के.बिड़ला ने चूरू में धर्मस्तूप की स्थापना की। इस स्तूप पर कृष्णजी, महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध की मूर्तियाँ, सर्वधर्म समभाव में आस्था को दर्शाती हैं। सर्वहितकारिणी सभा सनातन, मुस्लिम, सिख, बौद्ध और जैन में किसी प्रकार का धार्मिक भेद नहीं करती थी।

स्वतंत्रता सेनानी -
स्वामी गोपाल दास ने चूरू में स्वतंत्रता आन्दोलन प्रारम्भ किया। उन्होंने सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन और अंग्रेजों से आजादी की मांग पर विभिन्न पत्रिकाओं में लेखों की एक श्रृंखला लिखी। उन्होंने चूरू में स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित किया और उनके व्याख्यान और बैठकें आयोजित कीं। उन्होंने सार्वजनिक सम्मेलनों में बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी की तस्वीरें लगाना शुरू कर दिया और स्वदेशी के उपयोग का प्रचार किया। स्वामी गोपाल दास की गतिविधियों से बीकानेर के रियासत के शासक भयभीत हो गए और 1932 में उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया। उन्हें तीन साल तक बीकानेर सेंट्रल जेल में रखा गया। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण उन्हें प्रांतीय कांग्रेस कमेटी का सदस्य चुना गया।

घटनाक्रम -
1901 में महंत की गद्दी पर विराजने के बाद 1907 में सर्व हितकारिणी सभा और 1912 में सर्वहितकारिणी मठ की स्थापना कर चूरू और आसपास के गांवों में शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया। महंत जी द्वारा मदीना मदरसे में लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई का काम भी पढ़ाई के साथ सिखाया जाता था। रूढ़िवादी लोगों ने स्वामी जी को पत्थर मारे पर वे अपने काम के प्रति अविराम प्रतिबद्ध रहे। रिणी /तारानगर सामाजिक कार्यकर्ता सोनिया कन्या की हत्या कर दी गई यहां सर्वहितकारिणी सभा का संचालन किया गया। स्वामी जी ने बीकानेर राज्य में अनिवार्य शिक्षा की मांग करने का साहस किया। स्वामी गोपालदास का नाम रियासत में आजादी के आंदोलन में स्तंभ के रूप में अमर है। सन 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें रियासत में तत्समय हो रहे दमन और शोषण से संबंधित पैम्पलेट स्वामी जी, सहयोगी खूबराम शेख और सत्यनारायण द्वारा तैयार किया गया। यह पैम्पलेट गोलमेज़ सम्मेलन में सम्मिलित राष्ट्रीय स्तर के सभी नेताओं को दिया गया। महाराजा गंगासिंह ने इस पम्पलेट को राज्य के विरुद्ध माना। 
11 जनवरी 1932 को चूरू के उत्तरादा बाजार में आयोजित सार्वजनिक सभा में स्वामी जी ने भाषण में गेहूं पर जकात लगाने का पुरजोर विरोध किया, जिसे महाराजा बीकानेर ने राजद्रोह मानते हुए स्वामी जी और उनके सहयोगियों को राजद्रोह और षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। स्वामी जी को बीकानेर जेल से रिहा करवाने हेतु गांधीजी, नेहरू जी और अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने महाराजा बीकानेर को पत्र लिखे। 4 वर्ष बाद 1937 में जेल से छुट कर पुनः इसी कार्य में लग गए।
थोड़े दिन बाद कलकत्ता चले गए जहां उनका नागरिक अभिनंदन हुआ।
अखबार लोकमान्य कलकता में छपी खबर
"चूरू (बीकानेर) के सुप्रसिद्ध वीरकर्मी एवं साधु स्वामी गोपाल दास जी इन दिनों हमारे नगर में आये हुए हैं और सुराणा भवन में प्रवास कर रहे हैं। उन्होंने स्वाभाविक रूप से सार्वजनिक सेवा का व्रत लिया था और साढ़े तीन साल की लंबी अवधि तक जेल की कठिनाइयाँ झेलने के बाद भी उन्होंने अपना रास्ता नहीं छोड़ा। हम अपने शहर में उनका हार्दिक स्वागत करते हैं।"

स्वामी गोपालदास पुस्तक
जन जागृति के कर्णधार - 
स्वामी जी ने जन जागृति हेतु कर्णधार के रूप में काम किया, इस हेतु देश के प्रखर नेताओं को चूरू में आमंत्रित किया गया। नेताओं के व्याख्यानों का सर्वहितकारिणी सभा के मंच से संयोजन किया और देश - गौरव की हर तिथि का सामूहिक उत्सव मनाकर, स्वयं ने खद्दर और संपूर्ण रूप से स्वदेशी माध्यम से पालन किया। सर्वहितकारिणी सभा को चूरू की कांग्रेस के नाम से जाना जाने लगा। जब उन्हें बीकानेर कॉन्सेप्ट कांड में सन् 1932 में गिरफ्तार किया गया तो देश भर में उग्र प्रतिक्रिया हुई और देश के कई नगरों में बीकानेर विरोध दिवस मनाया गया। गांधीजी और नेहरूजी ने भी इस वैमनस्यपूर्ण कृत्य की आलोचना की।

सम्मान में लेखन -
स्वामी गोपालदास के जीवन परिचय के संबंध में कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई थी। यह काम लेखक प्रेम मोहन लखोटिया ने वर्ष 2003 में किया। 
राजस्थान स्वर्ण जयंती प्रकाशन समिति जयपुर द्वारा राजस्थान, स्वतंत्रता संग्राम के अमर पुरोधा पुस्तक में भी उनका उल्लेख किया गया है।

गोपाल दास चौक चूरू -
चूरू गढ़ और सर्व हितकारिणी सभा के बीच के मैदान में 17 अगस्त 1956 को चूरू में लोक नायक श्री सोया व्यास के कर कमलों द्वारा गोपाल दास जी की आदम कद मूर्ति की स्थापना की गई और चौक का नामकरण गोपाल दास चौक नाम से किया गया।

वार्षिक श्रद्धांजलि सभा -
स्वामी गोपाल दास की श्रद्धांजलि सभा श्री हनुमान कोठारी की अध्यक्षता में बनी समिति के सचिव श्री दलीप सरावग निवासी बुंटीया के संयोजन में प्रति वर्ष 09 जनवरी को आयोजित की जाती है।

स्वामी गोपाल दास पुरस्कार - 
स्वामी गोपाल दास की स्मृति में सिरसली, चूरू निवासी भंवर लाल कस्वां - राकेश कुमार कस्वां (राज TVS) परिवार द्वारा प्रतिष्ठित पुरस्कार से चूरू की विभिन्न सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले महामनाओं को सम्मानित किया जाता है। 

समिति के सदस्य
1 हनुमान सिंह कोठारी अध्यक्ष
2 हनुमाना राम ईसरान, मेघसर, हाल चूरू
3 दलीप सरावग, बुंटिया सचिव
4 भंवर लाल कसवां , सिरसली, हाल चूरू
5 ओम प्रकाश रणवां,ढाणी रणवा हाल चूरू

9 जनवरी 2019 से उनकी याद में चूरू में आयोजित समारोह में प्रथम पुरस्कार चूरू के इतिहासकार स्वर्गीय गोविंद अग्रवाल को मरणोपरांत दिया गया।
2020 का पुरस्कार - चंदन मल जी बहड़ स्वतंत्रता सैनानी, चुरू मरणोपरांत
2021 का पुरस्कार - डॉक्टर घासीराम वर्मा शिक्षाविद, प्रोफेसर गणित, हाल अमेरिका, निवासी झुंझुनूं
2022 का पुरस्कार - श्री रावत राम आर्य स्वतंत्रता सैनानी, दलित समाज सुधारक,मरणोपरांत
2023 का पुरस्कार - चौधरी हनुमान सिंह बुडानिया स्वतंत्रता सैनानी, मरणोपरांत
2024 का पुरस्कार - चूरू के भामाशाह सेठ कन्हैया लाल जी लोहिया (लोहिया कॉलेज के संस्थापक) को मरणोपरांत दिया गया।
2025 का पुरस्कार - श्री बनवारी लाल सोती को दिया गया।
अंत में हम कह सकते हैं कि -
मानवतावाद के प्रचारक, धर्म के मर्म के ज्ञाता, कर्मयोगी संत, पूर्वी एशिया में आजादी के आंदोलन के प्रणेता, निरंकुश राजसत्ता के ज़ुल्म के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने वाले योद्धा, जन जागृति के समर्थक, भविष्यदृष्टा, महान समाज सुधारक, सर्वहितकारी कार्यकर्ताओं के प्रति समर्पित श्रेष्ठ वैज्ञानिक, अद्वितीय पर्यावरण प्रेमी और सात्विक गौ भक्त स्वामी गोपालदास एक इंसान नहीं, एक इंसान इंसानियत की परिष्कृत संस्था थे, एक जीवट व्यक्तित्व थे। उनकी शख़्सियत एक व्यक्ति के अनेक आयाम वाली रही। एक शब्द में सब कुछ समाहित कर कहा जाए कि गोपालदास जी महामानव थे।
अंग्रेजी अखबार प्रिंसली इंडिया, दिल्ली ने 8 जून 1932 के अंक में स्वामी जी के बारे में लिखा है कि "स्वामी गोपालदास जी महाराज एक संत व्यक्तित्व हैं। चूरू के सामाजिक, धार्मिक एवं सार्वजनिक जीवन की आत्मा हैं। उन्होंने चूरू में जन कल्याण एवं खुशहाली की नवीन गतिविधियाँ प्रारम्भ कीं। उनका जीवन पूरी तरह से लोगों की सेवा और भलाई के लिए समर्पित है। उन्होंने बीकानेर राज्य से निरक्षरता को दूर करने की पुरजोर वकालत की।"
राजस्थान में स्वतंत्रता सेनानी, 197। में सुमनेश जोशी ने पृष्ठ संख्या 104  से 110 में उन्हें महान समाज सेवी गांधी के अनुयायी, गोभक्त जनसेवक कहा है।
बद्रीदत्त शास्त्री ने संस्कृत ग्रंथ नवभारत निर्माता: (1971) में स्वामी गोपालदास जी को एक आदर्श कर्तव्यपरायण जनसेवक बताया है।
श्री ईश्वरदास जालान, कानून मंत्री बंगाल सरकार ने कहा है कि राजस्थान में जिन लोगों ने सिर पर कफ़न बांध कर स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी उनमें स्वामी गोपालदास की निराली छटा थी।

स्रोत - 
1. स्थानीय इतिहासकार श्री गोविंद अग्रवाल और सुबोध अग्रवाल द्वारा लिखित इतिहास
A युगपुरुष स्वामी गोपालदास 'चूरू मंडल का संपूर्ण इतिहास 
B पुस्तक पत्रों के प्रकाश में स्वामी गोपालदास
2. नगर श्री चूरू में स्वामी गोपालदास जी के पत्र एवं उनकी जीवनी से संबंधित सामग्री
3. इतिहासकार डॉ. पेमाराम की पुस्तक राजस्थान का इतिहास में स्वामी गोपालदास के योगदान से संबंधित सामग्री।
4. अन्य प्रामाणिक स्रोत संकलित लिखित आलेख
5. प्रोफेसर हनुमानराम ईसारण शिक्षा अनुसंधानकर्ता का लेख
6. प्रोफेसर कमल सिंह कोठारी के आलेख एवं वार्ताएं

शमशेर भालू खान
जिगर चुरूवी 
9587243963

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