Monday, 15 January 2024

चौधरी दौलत राम सहारण

दौलत राम सहारण स्वतंत्रता सेनानी,समाज सुधारक और शिक्षाविद :-
                    श्री दौलत राम सहारण 
जीवन परिचय
नाम - दौलत राम
पिता का नाम - श्री दूलाराम सारण
माता का नाम - भूरी देवी (कसवा, रामपुरा, तारानगर, चुरू)
जन्म स्थान - ढाणी पांचेरा
ढाणी पांचूराम का अपभ्रंस ढाणी पांचेरा
(फोगां निवासी पांचू राम सहारण द्वारा बसाया गया गांव)
 सरदारशहर
जन्म दिनांक - 13.01.1924
मृत्यु - 02.07.2011 सरदारशहर
आर्थिक स्थिति:- परिवार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति - अच्छी और सुदृढ़
जाति - जाट
गोत्र - सहारण
कद काठी - रंग गोरा,अच्छी लंबाई,सुदृढ़ शरीर
पहनावा - धोती कुर्ता,टोपी (1942 से)
नारे :-
1 एको, चेतो अर खुड़को।
2 किसान संगठित रहो, शिक्षित बनो, संघर्ष करो।
कार्य - किसान नेता,स्वतंत्रता सैनानी, समाज सुधारक
पद
1 सांसद चूरू लोकसभा क्षेत्र से तीन बार
2 विधायक श्री डूंगरगढ़ विधानसभा क्षेत्र से तीन बार
3 मंत्री राजस्थान सरकार 2 बार
4 शहरी विकास मंत्री (केबिनेट)(जनता पार्टी)  भारत सरकार एक बार
5 बीकानेर प्रजा परिषद के सदस्य 1943 में
राजनीतिक दल - 
1 अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी
2 जनता पार्टी
3 भारतीय क्रांति पार्टी
4 लोक दल
दर्शन - गांधी वाद
शिक्षा दीक्षा
गांव में पुजारी से प्रारंभिक शिक्षा
हरियाणा से निजी अध्यापक द्वारा शिक्षा गांव में ही
सरदशहर में प्राथमिक शिक्षा
1942 में सरदारशहर हाई स्कूल 
पंजाब यूनिवर्सिटी के हिसार केंद्र से उच्च शिक्षा
साहित्य सम्मेलन हिसार से उच्चतर शिक्षा स्वंपाठी
सहोदर - 2 छोटे भाई (दुला राम सहारण की प्रथम संतान बेटा हुआ जो बाल्यकाल में ही देवलोक गमन कर गए) दूसरी संतान दौलत राम सहारण और उन से छोटे
1 सहीराम
2 लक्ष्मीनारायण
विवाह - भामासी 
पत्नी - श्रीमती जड़ाव देवी (भांभू), भामासी, चुरू
संतान - 
3 पुत्र -
1. अशोक कुमार सारण पत्नी सुशीला (पुत्री:हरफूल बुड़ानिया, दूधवाखारा, चुरू)
2. भारत सारण पत्नी उमा (पुत्री सुरेन्द्र दुलड़, श्रीमाधोपुर, सीकर)
3. कृष्ण कुमार (आरएलडी नेता,एक बार आम आदमी पार्टी से चुनाव लडा।) पत्नी मंजू (पुत्री रामनारायन बुड़ानिया, हेतमसर,सीकर)
4 पुत्रियाँ -
1.चंद्रकला पति चुन्नी लाल ढाका, हरदेसर, रतनगढ़l
2.कमला पति विजय प्रकाश बलवदा, झरोड़ा, झुझुनू 
3.विमला पति सुरेश चौधरी श्योरान, छानी भादरा, हनुमानगढ़
4.भारती पति कर्नल सुरेन्द्रसिंह देशवाल, भदानी, झज्जर, हरियाणा

कार्य -
1 ढाणी पांचेरा में विद्यालय चलवाया - श्री दौलतराम जी सारण के मन में बड़ी कसक थी कि गांव के बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है अतः आप ने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए मात्र 17 वर्ष की आयु में हरियाणा, उत्तर प्रदेश से निजी तौर पर शिक्षक बुलाकर गांव में स्कूल शुरू किया।
2 सरदारशहर क्रय विक्रय सहकारी समिति का गठन  जिसकी दुकान गढ़ के पास खोली। व्यवस्थापक जसराज दूधवाखारा को नियुक्त किया।
3 छात्रावास संचालन - नेमजी नाई की बगीची में आंशिक रूप से संचालित छात्रावास आज बड़ा आकार ले चुका है।

छुआछूत विरोधी -
एक बार सरदारशहर तहसील के बंधनाऊ गांव में जाटों और मेघवालों में कुंवों पर बराबर पानी भरने की जिद पर झगड़ा हुआ। धर्म की रक्षा के लिए गांव के लोग हजारों की तादाद में इकट्ठा हो गए और कुए को घेर लिया जहां सारन ने पहुंच कर साफ कह दिया कि मेघवाल कुए पर पानी भरेंगे और अंत में ऐसा ही हुआ। मेघवालों को कुए पर चढ़ाया।

किसानघाट निर्माण : -
सत्यप्रकाश मालवीय ने एक संस्मरण में बताया कि चौधरी चरणसिंह का निधन 29 मई 1987 को हो गया। बड़ी जद्दोजहद और आना-कानी के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार उनका दाह संस्कार करने की अनुमति उस स्थान पर देने को राजी हो गई जहां आज किसानघाट है। इसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री ब्रह्मदत्त जो पहले भारतीय क्रांति दल में थे, ने काफी सहायता की। किसान घाट बापू की समाधि से बहुत कम फासले पर है और राजघाट परिसर के अंदर है। यहीं चौधरी साहब का दाह संस्कार 31 मई 1987 की शाम को हुआ। समाधि स्थल का 4 वर्षों तक नाम मात्र भी विकास नहीं हुआ और यह उपेक्षित पड़ा रहा। हालांकि केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार भी बन गई थी। आज समाधि स्थल विकसित हालत में है और इसका पूरा श्रेय श्री सारण जी को है। सन् 1990 में जब श्री चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने, उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में सारण जी को शहरी विकास मंत्री नियुक्त किया। समाधि स्थल इसी मंत्रालय के अंतर्गत आता है। मैं एक दिन सारण जी से मिला और उन्हें अपनी व्यथा बतलाई और समाधि स्थल की उपेक्षा की और उनका ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने अधिकारियों को बुलाया, निर्देश दिया, योजना और नक्शा बनवाया. पूरी योजना को स्वीकृत किया और सरकारी धन उपलब्ध करवाया. इसमें चंद्रशेखर जी का भी पूरा सहयोग था. श्री सारण जी ने जिस लगन, तन्मयता और प्रतिबद्धता के साथ इस समाधि स्थल के विकास में रुचि ली, उसको मैं कभी भूल नहीं सकता। प्रतिवर्ष चौधरी साहब के जन्मदिन 23 दिसंबर तथा पुण्यतिथि 29 मई को उनके अनुवाई में समाधि स्थल किसान घाट पर एकत्रित होते, वहां सर्वधर्म प्रार्थना सभा होती है। भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री शहरी विकास मंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री तथा अन्य विशिष्ट हस्तियाँ समाधि स्थल पर श्रद्धा सुमन तथा पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

आजीविका - 
1 सरदारशहर में ओसवाल विद्यालय में अध्यापन कार्य।
2 सरदारशहर में आढ़त आधारित घी की दुकान
3 सरदारशहर राजकीय विद्यालय में संस्कृत अध्यापक

सहयोगी और मार्गदर्शक
1 पंडित गौरीशंकर आचार्य : आप सरदारशहर हाई स्कूल में एक संस्कृत अध्यापक थे। 
2 कन्हैयालाल सेठिया - 
सुजानगढ़ निवासी कवि कन्हैयालाल सेठिया (11 सितम्बर 1919-11 नवंबर 2008)। गांधी वादी विचारधारा। उनकी कुछ कृतियाँ है - 
1 रमणियां रा सोरठा
2 गळगचिया , 
3 मींझर , 
4 कूंकंऊ , 
5 लीलटांस , 
5 धर कूंचा धर मंजळां , 
6 मायड़ रो हेलो , 
7 सबद , 
8 सतवाणी , 
9 अघरीकाळ , 
10 दीठ , 
11 क क्को कोड रो ,
12 लीकलकोळिया
13 हेमाणी। 
3 भंवरलाल लाल नाई पुत्र नेमीराम नाई पेशा पोस्ट मास्टर।
4 श्री बैजनाथ पंवार - ग्राम शिक्षा और ग्राम विकास संबंधी सेवा कार्यों में श्री सारण के प्रभावशाली साथी थे।
5 रावतराम आर्य - 
1953 सरपंच
1959-60 चूरु के प्रथम जिला प्रमुख
उनका एक संस्मरण - मेरे परिवार के लोग उन दिनों सरदारशहर में रहकर कपड़ा बुनाई का कार्य करते थे। मेरे पिताजी ने मुझे हरिजन पाठशाला में भर्ती करवाया। वहाँ प्राईमरी शिक्षा के बाद सरकारी स्कूल में मुझे इसलिए भर्ती नहीं किया कि मैं मेघवाल जाति से था।
6 श्री गौरी शंकर आचार्य, 
7 श्री बुद्धमल, 
8 श्री हीरा लाल बरडिया,
9 श्री पूर्णचन्द्र आदि एक संस्था चलाते थे जो परीक्षाओं की तैयारी करवाया करते थे।
10 कुंभाराम आर्य - दौलतराम सारण ने कुंभाराम आर्य के साथ बहुत लंबे समय तक राजस्थान के विकास के लिए काम किया. कुंभाराम आर्य के मोहनलाल सुखाड़िया से मतभेद हो गया। विरोध बढ़ता गया। परिणाम स्वरुप चौथे आम चुनाव से पूर्व मतभेदों के कारण 20 दिसंबर 1966 को राजा हरिश्चंद्र झालावाड़, भीमसिंह मंडावा, कमला बेनीवाल, दौलतराम सारण के साथ कुंभाराम आर्य ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने कांग्रेस दल से भी अपना संबंध तोड़ लिया।
कांग्रेस से अलग होकर इन लोगों ने राजस्थान में सन् 1967 में जनता पार्टी नाम की एक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की और राजस्थान की राजनीति में एक नए युग का प्रारंभ हुआ। लंबे समय से राजस्थान के कुछ कांग्रेसजन ईमानदारी से अनुभव कर रहे थे कि कांग्रेस का वर्तमान स्वरूप जनभावनाओं के प्रतिकूल आचरण कर रहा है। जनता को भय, संकट और चिंता का मुकाबला करना पड़ रहा है।
14 से 16 मई 1967 को इंदौर में उन सब पार्टियों के प्रतिनिधियों की ओर से एक बैठक बुलाई गई जिन्होंने आम चुनाव के अवसर पर कांग्रेस छोड़कर भिन्न-भिन्न नामों से प्रांतीय स्तर पर प्रथक-प्रथक राजनीतिक दल स्थापित करके चुनाव लड़े। इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि सभी संगठन भारतीय क्रांति दल में विलीन हो जावें। इस प्रकार सभी आवश्यक साधन जुटाकर जनता पार्टी को एक राजनैतिक स्वरूप प्रदान किया गया। कांग्रेस छोड़कर आए नेताओं ने भारतीय क्रांति दल का गठन कर लिया। इस दल के अध्यक्ष बिहार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद बने। इसके महासचिव श्री दौलतराम सारण थे। 26 दिसंबर को एक वर्ष पुरानी राजस्थान जनता पार्टी को औपचारिक रूप से भारती क्रांति दल में विलीन कर दिया गया। यह जनता पार्टी क्रांति दल की एक इकाई के रूप में राज्य में काम करने लगी। राजस्थान में इस पार्टी के अध्यक्ष चौधरी कुंभाराम आर्य और दौलतराम सारण इसके महासचिव बने।
11 डॉ कन्हैयालाल सींवर - ग्रामसेवा प्रन्यास की स्थापना चौधरी दौलतराम सारण के सानिध्य एवं संरक्षण में डॉ कन्हैयालाल सींवर की सक्रियता से हुई। प्रन्यास का प्रमुख उधेश्य सरदारशहर के आसपास के ग्रामीण इलाके के लड़कों व लड़कियों की शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागृति पैदा करना था। सरदारशहर में किसान वर्ग की लड़कियों के लिए डॉ कन्हैयालाल सींवर ने अपने घर में उनके आवास हेतु निःशुल्क होस्टल की व्यवस्था शुरू की। प्रन्यास द्वारा लड़कियों के लिए होस्टल का निर्माण कार्य कुशलतापूर्वक सम्पन्न किया गया। किसान वर्ग के लड़कों के लिए सफलतापूर्वक होस्टल का संचालन भी वर्षों से किया जा रहा है। प्रन्यास के तहत संचालित हर गतिविधि में चौधरी दौलतराम सारण का मार्गदर्शन एवं सानिध्य मिलता रहा।
12 श्री दीपेंद्रसिंह शेखावत :-  ने कहा कि छात्र जीवन से सारण जी का नाम सुनते आया हूं किंतु जब तक में उनके संपर्क में नहीं आया मेरे मन में उनकी छवि एक घोर जातिवादी जाट नेता के रूप में थी। निकट जाने के पश्चात भ्रांति दूर हुई कि वह जाट नेता नहीं बल्कि किसान और गरीब के दर्द से व्यथित होकर, देहात के पिछड़ेपन से रूबरू होकर, महात्मा गांधी और ज्योतिबा फुले से प्रभावित होकर उन्हें कुछ मूल्यों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. श्री दौलतराम जी को महिला शिक्षा, घूंघट उठाने और शराबबंदी के लिए संघर्ष करते हुए अलख जगानी पड़ी. यदि उनकी समीक्षा की गई होती तथा आज की मीडिया-जगत ने उसे पकड़ा होता तो शायद उन्हें राजस्थान के ज्योतिबा फुले के समान सम्मान मिला होता।
13 मिलाप दुग्गड़ - कुलपति आईएएसई विश्व विद्यालय गांधी विद्यामन्दिर, सरदार शहर...आप लिखते हैं कि श्रीयुत दौलत राम सारण हमारे क्षेत्र के एक ऐसे पुरुष हैं, जो सामान्य कृषिजीवी परिवार में उत्पन्न होकर अपनी बुद्धि, लगन, श्रम, कार्यक्षमता एवं सेवा भावना के बल पर जीवन में उत्तरोत्तर आगे बढ़ते गए. उनके पिता चौधरी श्री दुलाराम जी गांव के प्रमुख लोगों में थे, बड़े सेवा भावी थे. हमारे यहाँ समय-समय पर पिता-पुत्र दोनों का ही आना-जाना रहता था. दोनों परिवारों में परस्पर अच्छा स्नेह संबंध था. इन्हें अध्यात्म और योग में बचपन से ही रुचि रही है. वे मेरे पिताश्री कन्हैयालाल दुगड़ के लगभग समवयस्क हैं. पिताश्री से विधिवत अभ्यास द्वारा योग में उच्चता प्राप्त की थी. अतः श्री सारण समय-समय पर उनके पास योग आदि के संबंध में चर्चा हेतु आते रहते थे. वे बड़े ही गुणग्राही व्यक्ति थे. समाजसेवियों एवं विचारकों के सानिध्य में बैठने, उन्हें सुनने और उनसे सीखने की इन्हें सदा से अभिरुचि रही है।

उपाधि -
राजस्थान केसरी, 
मरूधर का गौरव, 
थार के गांधी, 
मारवाड़ के गांधी, 
राजस्थान के ज्योतिबा फुले 

पुस्तक लेखन - श्री द्वारा लिखित अभिनंदन ग्रंथ दौलत राम सहारण के जीवन का सम्पूर्ण परिचय दिया है।

स्पष्टवादिता एक उदाहरण :- 
उन दिनों चुनाव के दिन थे और श्री दौलतराम सारण अपनी चुनावी सभा को संबोधित करने चूरू शहर में आने वाले थे। उन दिनों राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर में ईंटों का पूजन और चंदा जोर-शोर से चल रहा था। माहौल काफी राममय में बना हुआ था। श्री दौलतराम सारण को राम भक्तों की भीड़ ने चूरू के मुख्य बाजार गढ़ चौराहे पर रोक लिया और उनको तिलक लगाकर चंदा मांगने लगे। श्री दौलतराम ने न सिर्फ चंदा देने से मना कर दिया बल्कि तिलक लगाने से भी मना कर दिया और कहा कि तुम लोग चंद चालबाज और स्वार्थी लोगों के बहकावे में आए हुए हो और जो तुम्हारी भावनाओं को राम के नाम पर भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं। यद्यपि उस समय उनको विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन बेबाक सत्य उन्होंने भीड़ की नाराजगी की परवाह किए बिना व्यक्त कर दिया ।

आम आदमी तक संदेश पहुंचाना - 
मेलों के माध्यम से संदेश: दौलतराम जी आम जनता में बहुत लोकप्रिय थे। वे भाषण कला में बहुत निपुण थे और मेलों-मगरियों में लोग कई-कई कोस ऊंटों पर चढ़ कर उनके भाषण सुनने जाते थे। तत्समय राजस्थान के इस रेगिस्तानी इलाके में शिक्षा व संचार माध्यमों का पूर्ण अभाव था। अतः ग्रामीणों के मेलों में सभाओं के माध्यम से संदेश पहुँचने का नया तरीका उनके द्वारा ही विकसित किया गया था। उनके द्वारा मेलों में दिये गए संदेश को लोग अगले मेले की तारीख तक दृढ़ता से अनुसरण करते थे व अगले मेले में नए संदेश का इंतजार रहता था।

मेरे विचार :-
में स्वयं उनसे कई बार मिला हूं। जब कभी पिताजी के साथ में जयपुर रहा तो कई बार उनसे मिलना हुआ। हमारा विधायक आवास B - 15 जालूपुरा था जहां वो अक्सर पिताजी के पास आते थे। कई बार उनको खिचड़ी - दही खिलाया है।
एक मिलनसार और प्रभावी व्यक्तित्व के ढाणी दौलतराम सारण का। व्यक्तिगत प्रशंसक भी रहा हूं यद्यपि बार बार पार्टी बदलने के उनके निर्णय ने मुझे निराश किया।

शमशेर भालू खान
जिगर चुरूवी
9587243963

स्त्रोत - जाटलेंड वेडसाइड
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