जवाहरलाल नेहरू
" दुनियां में सबसे बड़ी कमज़ोरी डर है जिसके कारण आदमी झूठ बोलता है, चोरी करता है।
डर पर काबू पाकर ही हम आगे बढ़ सकते हैं। हम सब देश से ऐसी कमजोरियों को मिटाने के लिए मिलकर काम करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।"
-पंडित जवाहरलाल नेहरू
जवाहर लाल नेहरू बर्मा (म्यांमार) यात्रा के अवसर पर अप्रवासी भारतीय लोगों से मिलते हुए।
एक स्वतंत्रता सेनानी (लाजपत राय को जब लाठियां पड़ी माता जी वहीं थीं और उन्हें भी लाठियां खानी पड़ी।
पूरा नाम -जवाहर लाल नेहरू
विद्यालय में उपनाम - जो
प्रचलित नाम -
1 .भारत रत्न जवाहरलाल नेहरू (1955 मरणोपरांत)
2 . चाचा नेहरू
3 .नव भारत शिल्पकार
4 .पंडित जवाहर लाल नेहरू
पिता का नाम -मोतीलाल नेहरू (1861 -1931)(दो बार कांग्रेस अध्यक्ष)
माता का नाम -स्वरूप रानी धस्सू(नेहरू) मोतीलाल नेहरू की प्रथम पत्नी का देहांत होने पर दूसरी शादी।(धस्सू ने भी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई।)
कुल नाम - सारस्वत कॉल (नेहरू)( मोतीलाल नेहरू के परदादा राज कौल कश्मीर से दिल्ली आये थे)
मूल - कश्मीरी पंडित
जन्म 14 नबम्बर 1889 (बाल दिवस)
जन्म स्थान - आनंद भवन इलाहाबाद
मृत्यु - 27 मई 1964 (हृदयाघात) (नई दिल्ली)
समाधि - शांतिवन नई दिल्ली
आयु - 74 वर्ष 7 माह 13 दिन
सहोदर -
1 विजया लक्ष्मी पंडित(सरूप रानी) (संयुक्त राष्ट्र संघ की पहली महिला अध्यक्ष) (बहन)
2 कृष्णा हठी सिंह (लेखिका) (बहन)
3 रतनलाल नेहरू - बचपन मे ही मृत्यु (1905-1905)
दादा का नाम -
दादा का नाम - गंगाधर कौल
दादी का नाम - जानुरानी नेहरू (1868-10 जनवरी 1938)(सैनिकों के लिये ऊनी वस्त्र बुनने का कार्य)
कार्य -
1. स्वतंत्रता सेनानी
2 . बैरिस्टर - 1912 से 1916
3 . राजनेता
4 . लेखक
5 . पत्रकार (नेशनल हेराल्ड,नवजीवन व कौमी अवाज़)
महत्वपूर्ण -
1महात्मा गांधी के राजनैतिक वारिस 1941
(15 जनवरी 1941 को गांधी ने कहा था:
कुछ लोग कहते हैं कि जवाहरलाल और मैं अलग हो गए थे। हमें अलग करने के लिए मतभेद से कहीं अधिक की आवश्यकता होगी। जब से हम सहकर्मी बने तब से हमारे बीच मतभेद थे और फिर भी मैंने कुछ वर्षों से कहा है और अब कहता हूं कि राजाजी नहीं बल्कि जवाहरलाल मेरे उत्तराधिकारी होंगे।)
2 भावी स्वतंत्र भारत की विदेश नीति तय करने के लिये उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दी गई जिसे कार्टे ब्लैंच (रिक्त चेक) कहा गया।
3 15 अगस्त1947 को लाल किले से उनका देश के नाम प्रसिद्ध उद्बोधन ट्रिस्ट विद डेस्टिनी कहलाता है।
3 नेहरू ने 3259 दिन (करीब 9 साल) जेल में गुजारे
4 वो 6026 दिन (16 वर्ष 286 दिन) भारत के प्रधानमंत्री रहे।
पत्नी - कमला कौल (नेहरू)
विवाह का वर्ष- 8 फरवरी 1916
(मृत्यु 1936 स्विट्ज़रलैंड(लुसाना))
सन्तान -
1 प्रियदर्शिनी (इंदिरा) (गांधी) (1917)
2 पुत्र (एक सप्ताह में ही मृत्यु) 1924
शिक्षा- दीक्षा -
बाल्यकाल की पढ़ाई घर पर पिता द्वारा व ट्यूटर द्वारा।
1. हेरो स्कूल मुंबई प्रारंभिक शिक्षा
2 . ट्रिनीटी कॉलेज केम्ब्रिज लन्दन 2005 (प्राकृतिक विज्ञान में होनोर्स)
3 . इंटर टेम्पल कॉलेज, तकैम्ब्रिज लन्दन बैरिस्टरी (लन्दन में 2005 स 2012 कुल सात वर्ष अध्ययन)
4 . 1948 में डॉक्टर की मानद उपाधि मैसूर विश्व विद्यालय द्वारा दी गई।
5 . बाद में उन्हें मद्रास,कोलंबिया व कियो विश्व विद्यालय द्वारा भी मानद डॉक्टर की उपाधि दी गई।
स्वभाव - बहिरंग,मिलनसार, मृदयुभाषी, हंसमुख व स्वाध्याय
पद -
1 इलाहाबाद नगर पालिका अध्यक्ष 1924 से 1926 (अंग्रेजी अफसरों के असहयोग के कारण त्यागपत्र)
2. महासचिव कांग्रेस 1926 से 1928
1 . अध्यक्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ( 1928- 29 के कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस के साथ मिलकर पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की गई ,कांग्रेस ने 2 साल के बाद ब्रिटिश शासन के अधीन ही राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया)(अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू)
3 कांग्रेस अध्यक्ष 1929- 30 (लाहौर अधिवेशन 1929 में पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा व 26 जनवरी 1930 को लाहौर में स्वतंत्रता का ध्वज फहराया गया)
4 कांग्रेस अध्यक्ष 1936- 1937
5 वाइसराय की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष
(2 सितंबर 1946 - 15 अगस्त 1947) लगभग 2 वर्ष।
5 .प्रधानमंत्री 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950, 1947 से 1951 लगभग 4 वर्ष (नियुक्त), 1951 से 1957,1957 से 1962 वे 1962 से मरणोपरांत 1964 तक लगभग 14 वर्ष निर्वाचित। कुल लगभग 18 वर्ष।
6 . सांसद, लोकसभा (17 अप्रैल 1952 - 27 मई 1964) फूलपुर उत्तरप्रदेश
7 भावी स्वतंत्र भारत की योजना निर्माण समिति के मुखिया 1938
8 ऑल इंडिया स्टेट्स पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (AISPC) (गठन 1927) के अध्यक्ष 1939 (इस संगठन ने सरदार पटेल व पीपी मेनन के साथ मिलकर रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
आंदोलन में भाग लिया -
वे एनिबिसेन्ट की थियोसोफिकल सोसाइटी से 3 साल तक जुड़े रहे। 1916 में लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया और हिन्दू- मुस्लिम एकता प्रस्ताव का समर्थन किया।
1 होमरूल आंदोलन 1917
2 रौलट एक्ट विरोधी आंदोलन 1919
3 सविनय अवज्ञा आंदोलन - 1919 ( महात्मा गांधी के निर्देशानुसार पश्चिमी कपड़ों का परित्याग)
4 . असहयोग आंदोलन 1920 - 1927 ( गिरफ्तार व कुछ महीने प्रथम बार जेल गये)( उत्तरप्रदेश में आंदोलन का नेतृत्व किया)
चोरा-चोरी घटना के कारण आंदोलन स्थगित किया गया,कांग्रेस में दरार,मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी नाम से अलग दल बनाया,नेहरू गाँधीजी के साथ रहे।
5 सविनय अवज्ञा आंदोलन 2 -1930 (गाँधी जी के कुछ प्रस्ताव ब्रिटिश सरकार ने मने। 1930 में ही जयप्रकाश नारायण ने कांग्रेस के भीतर ही कांग्रेस सोसलिस्ट गुट का निर्माण किया जो गाँधी जी के विचारों से रुष्ट थे में नेहरू ने एक सेतु (नारायण-गांधी के मध्य) का कार्य किया।
5 1935 के भारत अधिनियम के अंतर्गत लगभग सभी प्रान्तों में सरकार बनाकर सेंट्रल असेम्बली में सर्वाधिक सीट प्राप्त की।
6 . 1936 में सुभाष चन्द्र बोस व मौलाना आजाद के समर्थन से राजेन्द्र प्रसाद को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा कर 2 वर्ष लगातार 1937 तक अध्यक्ष
7 भारत छोड़ो आंदोलन 1942 (अगस्त क्रांति मैदान मुंबई,8 अगस्त 1942) (गिरफ्तार किया गया)
अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम-
1 बेल्जियम-ब्रुसेल्स आंदोलन 1927 में अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम लीग के सदस्य चुने गये।
2 फिलिस्तीन स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन
लेखन -
अधिकांश पुस्तकें जेल से ही लिखीं जिसके अधिकांश अंश भारत व विष का इतिहास है।
1 . पिता के पत्र : पुत्री के नाम - 1929 (काल्पनिक रूप से इंदिरा को संबोधित करते हुये पुस्तक)
2 . विश्व इतिहास की झलक (ग्लिंप्सेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री) - (दो खंडों में,1933)
3 . मेरी कहानी (ऐन ऑटो बायोग्राफी) - 1936
4 . भारत की खोज/हिन्दुस्तान की कहानी (द डिस्कवरी ऑफ इंडिया 1946) ( इस पर एक धारावाहिक भी बना है जो दूरदर्शन पर दिखाया जाता था)
5 . राजनीति से दूर - (1945)
6 .इतिहास के महापुरुष (1945)
7 . राष्ट्रपिता - (1952)
8 जवाहरलाल नेहरू वाङ्मय - (11 खंडों में) (नेहरू जी के व्याख्यान, पत्र व अन्य विचार जवाहर लाल नेहरू स्मृति संस्थान द्वारा प्रकाशित
शौक़:-
1 घर मे पालतू जानवर(एक बाघ भी पाला)
2 सिगार
3 गुलाब का फूल
प्रभावित-
1. थियोसोफिकल ब्रुक्स
2. गैरीबाल्डी
3 महात्मा गांधी
4 एनिबेसेन्ट
5 कार्ल मार्क्स (1929-1936)
बर्नार्ड शॉ , एचजी वेल्स , जॉन मेनार्ड कीन्स , बर्ट्रेंड रसेल , लोव्स डिकिंसन और मेरेडिथ टाउनसेंड से भी प्रभावित।
(नेहरू जी पर हिटलर का समर्थक होने के आरोप भी लगे,हालांकि वे हिटलर के राष्ट्रवादी विचारों से प्रभावित थे)
मित्र-
1 सरदार वल्लभ भाई पटेल (1950 में मृत्यु) (उपप्रधानमंत्री)
2 सुभाष चंद्र बोस(वामपंथी विचारधारा) 1930 में कांग्रेस से अलग पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना।
3 मौलाना अबुल कलाम आजाद (वामपंथी विचारधारा) (गाँधीजी जिन्ना को मुस्लिम नेता के रूप में मानते थे,नेहरू ने इन्हें आगे बढ़ाया)( प्रथन शिक्षा मंत्री)
राजनीतिक विरोधी
1 मोहम्मद अली जिन्ना
2 डॉ भीमराव अंबेडकर
3 दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग (दामोदर (वीर) सावरकर व हेडगेवार)
द्वितीय विश्वयुद्ध कांग्रेस व जवाहरलाल नेहरू की भूमिका
आदर्श रूप में नेहरू हिटलर के राष्ट्रवाद से प्रभावित थे। जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ वायसराय जनरल लिनलिथगो ने बिना भारतीय प्रतिनिधियों से मशविरा किये भारत को ब्रिटेन के पक्ष में युद्ध मे साथ होने की घोषणा कर दी।
नेहरू ने कहा हमारी सहानुभूति लोकतंत्र के पक्ष में है जिसमे भारत अपनी भूमिका निभायेगा। कांग्रेस में मंथन हुआ और कुछ शर्तो पर ब्रिटिश सरकार का समर्थन करने का निर्णय लिया।
1 ब्रिटेन आश्वासन दे कि भारत की आज़ादी की घोषणा करेगा।
2 ब्रिटिश सरकार नये भारतीय संविधान निर्माण के लिये संविधान सभा के चुनाव की स्वीकृति प्रदान करेगी।
3 केंद्र की सरकार में तुरंत भारतीय प्रतिनिधियों को चुना जाना चाहिये।
वायसराय ने कांग्रेस की शर्तें मानने से इंकार कर दिया। इस के विरोध में कांग्रेस ने 23 अक्टूबर 1939 को कांग्रेस ने वायसराय के रवैये की निंदा करते हुये विभिन्न प्रांतों में कांग्रेस की सरकार से विरोध में इस्तीफा देने का आह्वान किया इसमें मुस्लिम लीग से शामिल होने की पेशकश की गई परन्तु जिन्ना ने साथ नहीं दिया। नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के रवैये का विरोध किया व वायसराय लिनलिथगो 8 अक्टूबर 1940 को मिले व सम्पूर्ण स्वतंत्रता की मांग दोहराते ब्रिटिश सरकार के नकारात्मक रुख के कारण अक्टूबर 1940 में गांधी और नेहरू ने ब्रिटेन का समर्थन का कांग्रेस का प्रस्ताव वापस ले लिया।
1940 में क्रिप्स मिशन व 1946 में कैबिनेट मिशन की कार्यवाही के अधीन अंतरिम सरकार का निर्माण 1946 में किया गया।
हिन्दू महासभा व मुस्लिम लीग का द्वी राष्ट्र शिद्धान्त
1937 में हिन्दू महासभा के अधिवेशन में दामोदर सावरकर ने कहा "वास्तव में भारत दो राष्ट्र है एक हिदू दूसरा मुस्लिम, सांस्कृतिक रूप से विभेद स्पष्ट है जिसके कारण एकता की बात करना व्यर्थ है।" सावरकर द्वारा भारत मे दो राष्ट्र का सिद्धांत दिया गया।
मुस्लिम लीग ने मार्च 1940 में मुहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता में इक़बाल के पृथक मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान का अनुमोदन किया जिसके अनुसार "हिंदुस्तान में मुस्लिम अधिकारोँ की हिफाज़त ना मुमकिन है, ब्रिटिश सरकार को अज़ादों से पहले भारत का विभाजन कर पाक (शुद्ध) पाकिस्तान का निर्माण करना चाहिये"
अंग्रेज सरकार ने इक़बाल को सर की उपाधि दी व सावरकर को तत्कालीन 60 रुपये (आज के 10 लाख रुपये) महीना पेंशन दी गई।
कांग्रेस ने 1916 के लखनऊ अधिवेशन के अनुसार इन दिनो ही प्रस्तावो का विरोध किया।
1944 में गांधी ने जिन्ना से मिलकर पाकिस्तान जाने के इच्छुक लोगों का जनमत सर्वेक्षण करवाने की बात की।
1947 की शुरुआत में स्वतंत्रता से पहले की अवधि सांप्रदायिक हिंसा और राजनीतिक अव्यवस्था के प्रकोप और मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के विरोध से प्रभावित थी , जो पाकिस्तान के एक अलग मुस्लिम राज्य की मांग कर रहे थे।
नेशनल हेराल्ड अखबार
जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वामित्व में 9 सितम्बर 1938 से दिल्ली एवं लखनऊ से दैनिक प्रकाशित होने वाला अंग्रेज़ी समाचार-पत्र नेशनल हेराल्ड की शुरुआत की थी। हिंदी में नवजीवन व उर्दू में कौमी आवाज के नाम से प्रकाशित किया गया। सन 2008 में इसका प्रकाशन बन्द हो गया जिसे जुलाई 2017 में पुनः शुरू किया गया। लखनऊ अखबार के मैनेजर फ़िरोज़ गाँधी थे।
जापान का बर्मा व भारत पर हमला व क्रिप्स मिशन
जापान ने बर्मा के माध्यम से भारत की सीमाओं पर हमला किया जिससे निपटने के लिये ब्रिटिश सरकार ने भारत की शासन व्यवस्था में बदलाव करने के लिये ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने सर स्टैफोर्ड क्रिप्स (जिन्ना व नेहरू के निकट मित्र) को संवैधानिक समस्या के समाधान के प्रस्तावों के साथ भेजा।
जिन्ना की पाकिस्तान की एकतरफा मांग व गाँधी जी की सम्पूर्ण स्वतंत्रता की मांग के कारण क्रिप्स मिशन विफल रहा।
भारत छोड़ो आंदोलन
8 अगस्त 1942 को मुंबई के अगस्त क्रांति मैदान में गांधी ने अंग्रेजों से भारत छोड़ने का आह्वान किया। उनके पास गांधी में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। 8 अगस्त 1942 को बॉम्बे में कांग्रेस के प्रस्ताव पर सभी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
गांधी,नेहरू ,अब्दुल कलाम आजाद, सरदार पटेल सहित अधिकांश कांग्रेस कार्यसमिति के नेतागण अहमदनगर किले की जेल में 15 जून 1945 तक कैद में रहे। गाँधी को चिकित्सा आधार पर1944 में रिहा किया गया।
कांग्रेस नेताओं के जेल में होने के कारण लगभग सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिम लीग सत्ता में आ गई।
लार्ड माउंटबेटन योजना व इंडिपेंडेंस, डोमिनियन ऑफ इंडिया: 1947-1950
क्रीप्स भारत जिस उम्मीद से आये थे वो धूमिल हो गई। उन्होंने रिपोर्ट दी कि भारत मे साम्प्रदायिक तनाव बहुत ज्यादा है व भारत विभाजन ही एक एक रास्ता है।
इस आधार पर इसी आधार पर केबिनेट मिशन की रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार को मिली।
ब्रिटिश शासन ने लॉर्ड माउंटबेटन को अधिकृत किया जिसके तहत 14 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान दो रास्ट्र बने।
15 अगस्त 1947 को रात्रि 12 बजे लाल किले पर यूनियन जेक उतार कर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया व नेहरू को स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री के रूप में माउंटबेटन द्वारा शपथ दिलाई उसी समय नेहरू ने प्रसिद्ध भाषण the treat with destiny दिया।
महात्मा गांधी की हत्या: 1948
30 जनवरी 1948 को, गांधी को दक्षिणपंथी(हिन्दू महासभा के सदस्य) नाथूराम गोडसे द्वारा बिरला मंदिर की सीढ़ियों से उतरते हुये भारत विभाजन का जिम्मेदार ठहराते हुये तीन गोली मार कर हत्या कर दी।
नेहरू ने रेडियो द्वारा राष्ट्र को संबोधित किया:-
दोस्तों और साथियों, हमारे जीवन से रोशनी चली गई है, और हर जगह अंधेरा है, और मुझे नहीं पता कि आपको क्या कहना है या कैसे कहना है। हमारे प्रिय नेता, बापू, जैसा कि हम उन्हें राष्ट्रपिता कहते थे, नहीं रहे। शायद मेरा यह कहना गलत है; फिर भी, हम उसे फिर से नहीं देखेंगे, जैसा कि हमने उसे इतने सालों से देखा है, हम उसके पास सलाह के लिए नहीं दौड़ेंगे या उससे सांत्वना नहीं लेंगे, और यह न केवल मेरे लिए बल्कि लाखों और लाखों लोगों के लिये व देश के लिये एक भयानक झटका है।
नेहरू और पटेल ने लगभग दो लाख गिरफ्तारियों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मुस्लिम नेशनल गार्ड्स और खाकसारों को प्रतिबंधित कर दिया।
दो सप्ताह तक बापू की हत्या का शौक मनाया गया।
भारतीय संविधान को लागू करना 1950
2 वर्ष 11 मास व 18 दिन की मेहनत से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में व भीमराव अंबेडकर की मेहनत से 26 नबम्बर1949 को बनकर तैयार समाजवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था का संविधान 26 जनवरी 1950 (गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है) को लागू किया गया।
इस संविधान ने भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बना कर गणराज्य को "राज्यों का संघ" घोषित किया। संविधान सभा अंतरिम सरकार के रूप में काम करती रही।
आम चुनाव 1952
तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पुरषोत्तम दास टण्डन व अन्य कई साथियों के कांग्रेस से इस्तीफे के बावजूद नेहरू ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
कांग्रेस(दो बैल की जोड़ी) का सबसे बड़ा विरोध दल कम्युनिस्ट पार्टी(दांती-हथौड़ा) व जनसंघ(दीपक) थी।
आम चुनाव: 1957
1957 के चुनावों में नेहरू के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 494 सीटों में से 371 सीटों पर कब्जा करते हुए आसानी से सत्ता प्राप्त की।
प्रथम चुनावों में 45% के स्थान पर इस चुनाव में लगभग 48% मत हासिल किये।
आम चुनाव 1962
इस आम चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी व जनसंघ ने थोड़ी बढ़त हासिल की व कांग्रेस की सीटें कम आइं।
प्रधान मंत्री के रूप में कार्यकाल
राज्य पुनर्गठन
दिसंबर 1953 में, नेहरू ने भाषाई आधार पर राज्यों के निर्माण की मांग की समीक्षा के लिये न्यायमूर्ति फ़ज़ल अली की अध्यक्षता राज्य पुनर्गठन की स्थापना की व इस आयोग के कार्यों की समीक्षा गोविंद बल्लभ पंत (1954 से नेहरू सरकार में गृह मंत्री) द्वारा की गई व रिपोर्ट सरकार को सौंपी।
रिपोर्ट के आधार पर धर्म, जाति व भाषा के आधार पर राज्यों के पुर्नगठन की मांग को नकारते हुये भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर नये राज्यों के गठन की मंजूरी दी गई।
इसके लिये संविधान में सातवें संशोधन के तहत , भाग A व B में राज्यों के मध्य अंतर को समाप्त करना, C व D में केंद्र शासित प्रदेश के निर्माण हेतु संसोधित किया।
आर्थिक एवं औद्योगिक नीति
"भारी उद्योग आधुनिक भारत के तीर्थ हैं"
- जवाहर लाल नेहरू
"भारत जैसे विशाल देश का विकास पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा ही किया जाना संभव है।"
नेहरू आयात - निर्यात के बेलेंस को बनाये रखना चाहते थे इसलिये मिश्रित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया।
सब्सिडी के साथ निजी उद्योग लगाने की नीति को आगे बढ़ाया।
जवहर लाल नेहरू जून 1956 में पश्चिम जर्मनी की राजकीय यात्रा की व द्विपक्षीय समझौते किये। उस समय चांसलर कोनराड एडेनॉयर और ड्यूश बैंक के अध्यक्ष हरमन जोसेफ एब्स के साथ मुलाकात कर भारत मे उद्योग लगाने बाबत चर्चा की।
पूना में 1956 में एक एंटीबायोटिक दवा उद्योग का निर्माण शुरू हुआ।
1953 में भाखड़ा नांगल परियोजना का निर्माण शुरु हुआ।
दुर्गापुर, राउरकेला और भिलाई तीन एकीकृत इस्पात संयंत्र 1950 के दशक में भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना के तहत स्थापित किया गया था।
नेहरू ने भारत के आधुनिकीकरण केके सात दर्शन दिये :-
1 राष्ट्रीय एकता
2 संसदीय लोकतंत्र
3 औद्योगीकरण
4 समाजवाद
5 वैज्ञानिक
6 स्वभाव का विकास
7 गुटनिरपेक्षता
इस दर्शन ने सार्वजनिक क्षेत्र के श्रमिकों, औद्योगिक घरानों, मध्यम और उच्च वर्ग के किसानों समाज के बड़े वर्ग को लाभान्वित किया।
बोकारो और राउरकेला में सोवियत संघ और पश्चिमी जर्मनी की सहायता से स्टील उद्योग का विकास किया गया।
1965 तक GDP में 2.5%(1950) से बढ़कर 7% के लगभग तीन गुना वृद्धि हुई व GNP में भी वृद्धि होती गई।
1947 में आज़ाद हुआ देश लगभग तिगुना औद्योगिक उत्पादन के साथ विश्व का सातवां सबसे बड़ा औद्योगिक देश बन गया।
उपनेविशिक काल मे भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ते औद्योगिक देश जापान,जर्मनी,फ्रांस,इटली,रूस व अमेरिका से पिछड़ गया था को वापस पटरी पर लाना बहुत मुश्किल काम था इसका मुख्य कारण यह भी था कि बंटवारे के समय उत्पादन क्षेत्र पाकिस्तान के हिस्से में चले गये व जनसंख्या वृद्धि दर बहुत तेज़ थी परन्तु योजनागत विकास नियंत्रण और विनियमों के साथ भारत शून्य से शक्तिशाली की ओर बढ़ता गया। 1965 की विकास दर ब्रिटेन,फ्रांस व अमेरिका से % में अधिक रही।
आलोचना
कुछ आलोचक उनकी निर्यात प्रतिस्थापन व लाइसेंस प्रणाली की नीति की आलोचना भी करते हैं।
सार्वजनिक उद्यमों के लिए नेहरू की प्राथमिकता ने मात्रात्मक नियमों, कोटा,टैरिफ,लाइसेंस और कई अन्य नियंत्रणों की एक जटिल प्रणाली बनाई। भारत में लाइसेंस राज के रूप में जानी जाने वाली प्रणाली आर्थिक अक्षमताओं की जनक मानी जाने लगी।
कृषि नीति
72% भारत की आबादी कृषि कार्य में रत थी।भूमि सुधार व भू आवंटन कानूनों के माध्यम से कृषक व कृषि में सुधार के सराहनीय प्रयास किये गये। जमीदारी प्रथा का अंत कर जोतक को उक्त भूमि का मालिकाना हक दिया गया। सहकारिता को बढ़ावा दिया गया अतिरिक्त खाली भूमि को जोत के रूप में विकसित किया गया नई तकनीक व सिंचाई परियोजना के कारण उत्पादन बढ़ा लेकिन यह बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये पर्याप्त नहीं था।
नये कृषि विद्यालय खोले गये जहाँ उन्नत खाद व बीज के साथ वैज्ञानिक कृषि की विधियां तैयार की गईं। 1960 में खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिये हरित क्रांति की शुरुआत की गई जिससे गेहूँ, दाल व चावल का रिकॉर्ड उत्पादन शुरू हुआ।
अंतिम छोर के किसान को बड़ी राहत मिली। इस कार्य में विनोबा भावे ने भू-दान यज्ञ कर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आलोचना
नेहरू जी की इस नीति से बड़े जमीदारी नाराज हुये, दक्षिणपंथी विचार बढ़ने लगे जिससे कांग्रेस को नुकसान हुआ।
शिक्षा नीति
"नवीन भारत के निर्माण के लिये शिक्षा ही उत्तम मार्ग है जिसके लिये हमें अधिक संख्या में शिक्षण संस्थान खोलने की आवश्यकता है।"
-जवाहर लाल नेहरू
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,भारतीय प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान व प्राथमिक शिक्षण संस्थानों के साथ साथ उच्च शिक्षण संस्थान बड़ी मात्रा में खोले गये।
प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में एक प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया गया भारत के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी देना। इस उद्देश्य के लिए, नेहरू ने बड़े पैमाने पर ग्राम नामांकन कार्यक्रम के माध्यम से लाखों विद्यालय निर्माण करवाये।
कुपोषण से लड़ने के लिये विद्यालय में बच्चों को मुफ्त दूध और भोजन का प्रावधान किया।
ग्रामीण क्षेत्रों में वयस्कों के लिए वयस्क शिक्षा केंद्र(प्रोढ़ शिक्षा केन्द्र) व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण स्कूल शुरू किये।
सामाजिक रूप से उत्पीड़ित समुदायों के लिए
हिंदू विवाह कानून
भारतीय संसद ने लिंग व जातिगत भेदभाव उन्मूलन के लिये व महिलाओं के कानूनी अधिकारों और सामाजिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिये हिंदू कानून में संसोधन किये।
संविधान के अनुच्छेद 44 राज्य नीति निदेशक तत्वों में उल्लेखित "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।"
भारत में धर्मनिरपेक्षता का आधार बनाया जिसका दक्षिणपंथी लोगो ने आलोचना की। आलोचना का आधार मुस्लिम पर्सनल लॉ था जो विवाह व विरासत को धर्मानुसार रखने की अनुमति देता है।
गोवा के छोटे से राज्य में , पुराने पुर्तगाली परिवार कानूनों पर आधारित एक नागरिक संहिता को जारी रखने की अनुमति दी गई थी, और नेहरू ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को प्रतिबंधित कर दिया व
1961 में नेहरू ने किये गये वादानुसार पर्सनल लॉ को मान्यता दी।
1954 में संसद ने वविशेष विवाह अधिनियम पारित किया जिस की मनसा थी भारत में सभी को नागरिक विवाह के तहत व्यक्तिगत कानून के बाहर शादी करने के अवसर देना।
यह कानून जम्मू और कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू हुआ।
यह अधिनियम हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के लगभग समान था जो दर्शाता है कि हिंदुओं के संबंध में कानून कितना धर्मनिरपेक्ष हो गया था। विशेष विवाह अधिनियम ने मुसलमानों को इसके तहत शादी करने और सुरक्षा रखने की अनुमति दी गई जो आम तौर पर मुस्लिम महिलाओं के लिये लाभदायक थी जो पर्सनल लॉ में नहीं दी गई थी।
इस अधिनियम के अनुसार
1 बहुविवाह अवैध
2 उत्तराधिकार और उत्तराधिकार संबंधित मुस्लिम पर्सनल लॉ के स्थान पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम लागू।
3 तलाक का अधिकार कानून द्वारा लागू होगा और तलाकशुदा पत्नी का भरण-पोषण नागरिक कानून के अनुसार होगा।
अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति आरक्षण
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों के सामने आने वाली सामाजिक असमानताओं और नुकसानों को दूर करने के लिए सरकारी सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की एक प्रणाली बनाई गई नेहरू ने सरकार में अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाते हुए, धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने में सफलता प्राप्त की।
भाषा नीति
नेहरू स्वयं हिंदी भाषी क्षेत्र से थे व उनके अधिकांश साथी भी उन्होंने हिंदी को भारतीय राष्ट्र की राजभाषा के रूप में बढ़ावा दिया।
अन्य भाषा समर्थकों के साथ लम्बी बहस के बाद 30 मार्च 1950 को हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा व अंग्रेजी सहायक भाषा के रूप में अपनाई गई।
तमिल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), द्रविड़ कड़गम पार्टी ने हिंदी का विरोध किया।
दक्षिण भारत की मांग के आधार पर 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित हुआ जिसके अनुसार अंग्रेजी को सहायक भाषा का अनवरत दर्जा जारी रहा।
विदेश नीति
गुटनिरपेक्षता की नीति
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो चुका था जिसमे दो राष्ट्र तेज़ी से उभर के सामने आये।
पूरा विश्व इन दो शक्तियों के साथ विभाजित हो गया। भारत की नवीन उभरती अर्थव्यवस्था के लिये दोनों ही शक्तियों की आवश्यकता थी इसलिये प्रधानमंत्री ने किसी भी राष्ट्र के साथ होने के बजाय निर्गुटता को बढ़ावा दिया।
रूस व अमेरिका के शीत युद्ध के दौरान दोनो देशों से बराबर की दूरी बनाई रखने में ही भारत का हित था। हालांकि भारत रूस से सांस्कृतिक व भावनात्मक लगाव रखता रहा।
विदेशी मामलों में, उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई राष्ट्रों का एक समूह जिसने 1950 के दशक के दो देशों के नेतृत्व में सीटो (रूस) नाटो(अमेरिका) की सदस्यता नहीं ली। भारत (जवाहर लाल नेहरू),फिदेल कास्त्रो (क्यूबा) जनरल जोसेल ब्रॉन्ज टीटो() व कर्नल जमाल अब्दुल नासिर (ईरान) ने मिलकर निर्गुट संघ का निर्माण किया।
प्रधान मंत्री के रूप में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान, नेहरू ने विदेश मामलों का विभाग भी संभाला । उनका आदर्शवादी दृष्टिकोण भारत को गुटनिरपेक्षता में नेतृत्व की स्थिति देने पर केंद्रित था। उन्होंने शीत युद्ध लड़ने वाली दो शत्रुतापूर्ण महाशक्तियों के विरोध में एशिया और अफ्रीका के नए स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच समर्थन तैयार करने की मांग की।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर नेहरू सैन्य कार्रवाई और सैन्य गठबंधनों के विरोधी थे। वह संयुक्त राष्ट्र के प्रबल समर्थक थे।
चीन के जनवादी गणराज्य की स्थापना के तुरंत बाद (जबकि अधिकांश पश्चिमी गुटों ने ताइवान के साथ संबंध जारी रखा ) को मान्यता देते हुए, नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने का समर्थन किया।
नेहरू के निर्देशन में 29 नव स्वतंत्र देशों का सम्मेलन 1955 के बांडुंग में आयोजित किया गया जो गुट निरपेक्ष आंदोलन के समर्थक थे। दरअसल बांडुंग सम्मेलन भारत को दो शक्तिशाली देशों के गुट के स्थान पर तीसरी शक्ति बनने की ओर क़दम था जिसका चीन ने विरोध किया। चीन के साथ सहयोग के लिये 1954 में पंचशील का सिद्धांत दिया।
भारत यूरोपीय देशों के राष्ट्रमंडल में सदस्य बनाया।
आलोचना
युद्ध का विरोध करते हुये नेहरू ने कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ अभियानों का नेतृत्व किया। उन्होंने 1948 में हैदराबाद और 1961 में गोवा पर कब्जा करने के लिए सैन्य बल का इस्तेमाल किया ।
रक्षा और परमाणु नीति
1949 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की आधारशिला रखते हुए उन्होंने कहा था कि "हम शांति व अहिंसा के पक्षधर हैं व रहेंगे पर जब बात अस्तित्व पर आ जाये तो आत्मसमर्पण नही कर सकते,महानता इसी में है कि मुकाबला किया जाये।"
नेहरू ने परमाणु भौतिक विज्ञानी होमी जहांगीर भाभा को परमाणु से संबंधित सभी मामलों और कार्यक्रमों पर पूरा अधिकार सौंपा और केवल प्रधान मंत्री के प्रति जवाबदेही तय की।
कोरियाई युद्ध (1950-1953) के बाद वैश्विक तनाव और परमाणु हथियारों के खतरे को कम करने के लिए काम करने के उनके प्रयासों की प्रशन्सा की गई।
उन्होंने मानव स्वास्थ्य पर परमाणु विस्फोटों के प्रभावों का पहला अध्ययन शुरू किया और "विनाश के इन भयानक इंजनों" को समाप्त करने के लिए निरंतर अभियान चलाने की आवश्यकता पर बल देते हुये परमाणु अप्रसार को बढ़ावा देने के व्यावहारिक कारण सामने लाये।
कश्मीर समस्या
कश्मीर में क़बायली हमले की आड़ में पाकिस्तान के आक्रमण का मुक़ाबला करने के लिए शेख अब्दुल्ला ने पीपल्स मिलिशिया बनाई थी जिसमें एक women corps भी थी। हथियारबंद औरतों ने भारतीय सेना के साथ कश्मीर को बचाने की लड़ाई लड़ी थी।
तस्वीर में पंडित नेहरू उसका निरीक्षण कर रहे हैं।
लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर , 1948 में, नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का वादा किया।
कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र था जिस पर दोनों ही देश अपना हक जता रहे थे।
कश्मीर के राजा हरि सिंह ने प्रधानमंत्री अब्दुल्ला शेख के प्रस्तावानुसार स्वतंत्र रूप से सरकार चलाने के इच्छुक थे पर 1947 में कश्मीर पर क़बाइली हमला हुआ।
हरि सिंह व अब्दुल्ला ने भारत ने सहायता की गुहार लगाई भारत ने तुरंत सेना भेज कर कबाईलियों को खदेड़ दिया पर कुछ हिस्से पर उनका कब्ज़ा रह गया जिसे पाकिस्तान आज़ाद कश्मीर व भारत पाक अधिकृत कश्मीर कहता है।
संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान से अधिकृत कश्मीर से सेना हटाने की बात कही पर उसने ऐसा नहीं किया।
इस आधार पर भारत सरकार ने 1953 में जनमत संग्रह कराने से मना कर दिया। महाराज हरि सिंह व अब्दुल्ला शेख को बंदी बना कर गुलाम मोहम्मद बक्शी को सरकार का मुखिया बनाया गया।
23 जनवरी 1957 को मन्त्री भारत सरकार वीपी मेनन ने लगभग 8 घण्टे के भाषण द्वारा कश्मीर पर भारत का रुख स्पष्ट किया। यह भाषण कश्मीर पर भारत के अधिकार को स्पष्ट करने वाला था जिसे भारत व विश्व बिरादरी के समर्थन प्राप्त हुआ।
गोवा व हैदराबाद का भारत में विलय
कई वर्षों की असफल वार्ता के बाद नेहरू ने भारतीय सेना को 1961 में पुर्तगाली-नियंत्रित पुर्तगाली भारत (गोवा) पर आक्रमण कर गोवा को भारत मे विलय की कार्यवाही सम्पन्न करने की जिम्मेदारी दी।
सेना ने 1961 में गोआ को औपचारिक रूप से इसे भारत में मिला लिया। इसने भारत में उनकी लोकप्रियता में वृद्धि की, लेकिन सैन्य बल के उपयोग के लिए भारत में कम्युनिस्ट विपक्ष द्वारा उनकी आलोचना की गई।
इसी प्रकार से हैदराबाद के भी सेन्य शक्ति से भारत में विलय किया गया।
चीन
1954 में नेहरू ने चीन के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर हस्ताक्षर किये
पंचशील का शिद्धान्त 29 अप्रेल 1954
नेहरू ने पंचशील का सिद्धांत दिया जिसके अनुसार पाँच सूत्र दिये गये व हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा दिया।
1 सम्प्रभुता का सम्मान
2 अनाक्रमण
3 सहअस्तित्व
4 शांति की स्थापना
5 परस्पर सहयोग
इस सन्धि के अनुसार भारत ने चीन के
1 तिब्बत पर चीनी संप्रभुता को मान्यता दी
2 भारतीय रूपये व चीनी युआन के आदान-प्रदान की शुरुआत
3 आकसाई चीन और दक्षिण तिब्बत के विवादित का आपसी वार्ता से हल
1960 के दशक में चीन ने संधि की अवहेलना शुरू की। के वर्षों में, नेहरू की विदेश नीति को सीमा विवादों पर चीन की बढ़ती दृढ़ता और 14वें दलाई लामा को शरण देने के उनके फैसले का सामना करना पड़ा।
चीन विवाद पर संयुक्त राष्ट्र के दूसरे महासचिव डैग हैमरस्कजॉल्ड ने वक्तव्य दिया कि " नेहरू नैतिक दृष्टिकोण से श्रेष्ठ थे, वहीं झोउ एनलाई वास्तविक राजनीति में अधिक कुशल थे।"
संयुक्त राज्य अमेरिका
1956 में, नेहरू ने ब्रिटिश, फ्रांसीसी और इजरायलियों द्वारा स्वेज नहर पर संयुक्त आक्रमण की आलोचना की । भारतीय प्रधानमंत्री और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में उनकी भूमिका वैश्विक परिदृश्य में महत्वपूर्ण थी। उन्होंने एंथोनी ईडन और आक्रमण के सह-प्रायोजकों की जोरदार निंदा करते हुए दोनों पक्षो से शांति व सन्धि की अपील की।
अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर नेहरू के सहयोगी थे सार्वजनिक रूप से चुप थे तो ब्रिटेन और फ्रांस को पीछे करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में अमेरिकी दबाव बनाया।
स्वेज संकट के दौरान , नेहरू के दाहिने हाथ वीपी मेनन ने एक जिद्दी जमाल अब्दल नासिर को मनाने का प्रयास किया पश्चिम के साथ समझौता करने के लिए और पश्चिमी शक्तियों को एक जागरूकता की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि नासिर भारत की उपस्थिति में समझौते के लिये तैयार हो गये। अमेरिका भारत का खुला समर्थन चाहता था व रूस से अलगाव जो भारत के लिये संभव नहीं था।
स्वेज संकट के बाद भी नेहरू ने ब्रिटेन के साथ अच्छे संबंध बना कर रखे। उन्होंने पंजाब क्षेत्र की प्रमुख नदियों के संसाधनों को साझा करने के बारे में लंबे समय से चले आ रहे विवादों को हल करने के लिए पाकिस्तानी शासक अयूब खान के साथ 1960 में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर करते हुए ब्रिटेन और विश्व बैंक की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया।
चीन-भारतीय युद्ध 1964
भारत ने फारवर्ड पॉलिसी के अंतर्गत 1959 से 1961 तक भारत-चीन सिमा पर अपनी चौकियां स्थापित करनी शुरू की जिसमें से 43 चौकियां शामिल थीं जिन पर पहले भारत का नियंत्रण नहीं था जिसका चीन ने विरोध किया और भारत-चीन युद्ध शुरू हो गया जिसमें भारत की हार हुई व चीन ने भारत के एक बड़े भू भाग पर कब्ज़ा कर लिया।।
बाद में चीन तवांग में पूर्वी क्षेत्र में युद्ध-पूर्व लाइनों से हट गया, लेकिन अक्साई चिन को बरकरार रखा जो ब्रिटिश भारत के भीतर थी और स्वतंत्रता के बाद भारत को सौंप दिया गया थी।
पाकिस्तान द्वारा 1947 में कश्मीर के शियाचीन क्षेत्र कब्जाये क्षेत्र में से 1948 में कुछ हिस्सा चीन को सौंप दिया।
इस युद्ध ने भारत की सेना की तैयारी व कमज़ोरी को उजागर किया जो कि बहुत बड़ी चीनी सेना के विरोध में केवल 14,000 सैनिकों को युद्ध क्षेत्र में भेजा गया वो भी अपर्याप्त साधनों व असलहे के साथ भारत का चीन पर हवाई हमला न करना भी घातक सिद्ध हुआ।
नेहरू ने रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन को बर्खास्त कर दिया और अमेरिकी सैन्य सहायता मांगी। नेहरू के जॉन एफ कैनेडी के साथ बेहतर संबंध काम आये उस समय अमेरिका क्यूबा मिसाइल संकट से जूझ रहा था पर नेहरू के पत्र पाते ही 60 अमेरिकी विमान, $ 5,000,000 मूल्य के स्वचालित हथियार,भारी मोर्टार और लैंड माइंस के साथ लोड कर बारह विशाल सी-130 हरक्यूलिस ट्रांसपोर्ट अमेरिकी कर्मचारियों और रखरखाव टीमों के साथ भारतीय सैनिकों और उपकरणों को युद्ध क्षेत्र में ले जाने के लिए नई दिल्ली के लिए रवाना किया।
साथ ही मित्र देश रूस ने भी हथियारों की सप्लाई शुरू की।
ब्रिटेन ने ब्रेन और स्टेन गन के साथ भारत को 150 टन हथियार एयरलिफ्ट किया।
कनाडा ने छह परिवहन विमान भेजै व ऑस्ट्रेलिया ने 1,800,000 डॉलर मूल्य के युद्ध सामग्री भेजी।
युद्ध के बाद भविष्य में इसी तरह के संघर्षों के लिए इसे तैयार करने के लिए भारतीय सेना में व्यापक बदलाव देखे गये।
नेहरू की युद्ध नीति की आलोचना हुई कि वो चीन के साथ लंबे समय से शांति स्थापना करना चाहते थे पर विश्वासघात को समझ नहीं पाये। नेहरू के हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे के साथ चीन ने विश्वाघात किया।
इस युद्ध ने नेहरू की शांति की कामना को धूमिल किया व भारत भी सैन्य शक्ति के रूप में उभरने लगा।
भारत की सेना का और आधुनिकीकरण शुरू हुआ व स्वदेशी स्रोतों और आत्मनिर्भरता के साथ हथियार बनाने की भारत की नीति नेहरू ने शुरू की।
आरोप
1 एडविना माउंटबेटन से संबंध
1936 में कमला की मृत्यु के बाद, नेहरू के ब्रिटिश महिला एडविना माउंटबेटन से संबंध के आरोप लगे हैं।
नेहरू की धार्मिक वृति व विश्वास
नेहरू ने स्वयं को हिंदू अज्ञेयवादी के रूप में एक "वैज्ञानिक मानवतावादी" के रूप में प्रस्तुत किया।
उनके अनुसार "धार्मिक वर्जनाएं भारत को आगे बढ़ने और आधुनिक परिस्थितियों के अनुकूल होने से रोक रही हैं","कोई भी देश या लोग जो गुलाम नहीं हैं। हठधर्मिता और हठधर्मिता की मानसिकता प्रगति कर सकती है, और दुर्भाग्य से हमारा देश और लोग असाधारण रूप से हठधर्मी और कम दिमाग वाले हो गए हैं।"
नेहरू अंध विश्वास और प्रतिक्रिया, हठधर्मिता और कट्टरता, अंधविश्वास, शोषण और निहित स्वार्थों के लिये धर्म के उपयोग के विरोधी थे।
एक मानवतावादी के रूप में, नेहरू ने माना कि "उनका जीवन किसी रहस्यमय स्वर्ग या पुनर्जन्म में नहीं हुआ, बल्कि जीवन की व्यावहारिक उपलब्धियों में पूरी तरह से और अपने साथी मनुष्यों के लिये कार्य करने हेतु हुआ है।"
"मुझे मृत्यु के बाद के जीवन में बहुत दिलचस्पी नहीं है। मैं इस जीवन की समस्याओं को अपने दिमाग में भरने के लिए पर्याप्त रूप से कार्य करता हूं।"
उन्होंने अपनी अंतिम वसीयत में उन्होंने लिखा "मैं पूरी गंभीरता से घोषणा करना चाहता हूं कि मैं नहीं चाहता कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे लिए कोई धार्मिक समारोह किया जाये। मैं इस तरह के समारोहों में विश्वास नहीं करता, और उन्हें प्रस्तुत करने के लिए यहां तक कि एक रूप के रूप में भी पाखंड और खुद को और दूसरों को भ्रमित करने का प्रयास होगा।"
अपनी आत्मकथा में, उन्होंने ईसाई और इस्लाम धर्म के भारत पर प्रभाव का विश्लेषण किया।
नेहरू भारत को एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में मॉडल बनाना चाहते थे ; उनकी धर्मनिरपेक्षतावादी नीतियां चर्चा का विषय बनी रही हैं।
आलोचना समालोचना के पश्चात हम कह सकते हैं कि तत्कालीन परिस्थितियों, अभावों के बावजूद नेहरू जी को हम भारत के लोग नव भारत का शिल्पी कह सकते हैं जिस सम्मान के वो अधिकारी हैं।
जवाहरलाल नेहरू और डॉ अम्बेडकर हिंदू कोड बिल के मुख्य बिंदु -
* महिलाओं को संपत्ति में अधिकार
* इंटर-कास्ट शादी
* तलाक का अधिकार
* बहूविवाह पर रोक
* दूसरी जाति के बच्चों को गोद लेने की अनुमति
* शादी के लिए जाति आधारित रीति रिवाज़ो की समाप्ति
इस बिल के विरोध में मार्च 1949 में All India Anti Hindu Code Bill Committee बनाई गई थी।
कमेटी ने देश में सैकड़ों मीटिंग की और बिल के ख़िलाफ़ धर्मयुद्ध की कॉल दी। दिसंबर 11 सन 1949 को RSS ने दिल्ली के रामलीला मैदान में बिल के विरोध में रैली व 12 दिसंबर को संसद भवन तक पैदल मार्च किया। नेहरू और डॉ अंबेडकर के पुतले जलाए। आंदोलन का नेतृत्व स्वामी करपात्री महाराज ने किया। वर्ष 1950 और 1951 में नेहरू -अंबेडकर ने बिल पास करवाने के कई प्रयास किए परन्तु रूढ़िवादियों के विरोध के कारण सफल नहीं हुए। ये रूढ़िवादी कांग्रेस में भी थे, महिलाओं को अधिकार देने को धर्म विरुद्ध मानते थे। 17 सितंबर 1951 को स्वामी करपात्री ने संसद भवन का घेराव किया, जिसमें लाठीचार्ज हुआ। बिल पास नहीं हो सका। निराश डॉ अंबेडकर ने अक्टूबर 1951 में मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया। वो ऐसे मामले में नेहरू से अधिक गंभीरता और संकल्प की उम्मीद रखते थे। अंबेडकर के इस्तीफ़े के बाद नेहरू यह बिल पास करवाने की कोशिश करते रहे, हालाँकि संघ- हिंदू महासभा के साथ साथ कांग्रेस के कई दिग्गज भी उनकी इस कोशिश के विरोधी थे। इस बीच 1952 का पहला लोकसभा चुनाव घोषित हो गया। ये बिल नेहरू के चुनाव का मुख्य मुद्दा बन गया। जनसंघ और हिंदू महासभा व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पहला लोकसभा चुनाव इसी एक मुद्दे पर लड़ा। उन्होंने नेहरू के सामने धर्मगुरु प्रभु दत्त ब्रह्मचारी को उतरे। उस चुनाव में ब्रह्मचारी का एक ही मुद्दा था, सनातन रीति रिवाजों में कोई संवैधानिक बदलाव नहीं होना चाहिए और महिलाओं को धर्म विरोधी अधिकार देने वाला बिल पास नहीं होना चाहिए। नेहरू ने धार्मिक रूढ़िवादियों से लड़ते रहे। उन्होंने इस लोकसभा चुनाव को महिला अधिकारों पर जनमत संग्रह में बदल दिया। चुनाव में नेहरू ने और कांग्रेस ने ज़बरदस्त जीत हासिल की। कांग्रेस को देश भर में 364 सीट मिली, जनसंघ को 3 और हिंदू महासभा को 4 सीट ही मिली थी। नेहरू और डॉ अंबेडकर का महिलाओं को अधिकार देने प्रयास संघ और हिंदू महासभा को चुनाव में हरा कर ही आगे बढ़ा। नेहरू ने हिंदू कोड बिल को चार अलग अलग बिल में बांट कर संसद में पास किया था। आज भारत की महिलायें जो कर सकी हैं, उनकी स्थिति में आज़ादी के बाद जो बदलाव हुआ है, उसमें नेहरू-अंबेडकर की सोच का और संघर्ष का पूरा योगदान है। यदि नेहरू पहला चुनाव इस मुद्दे पर हार जाते, जनसंघ- हिंदू महासभा का उम्मीदवार जीत जाता, तो देश की महिलाओं को न जाने कितने दशक या सदियों तक इंतज़ार करना पड़ता। डॉ अम्बेडकर की निराशा और इस्तीफ़े का कारण RSS- हिंदू महासभा का और दूसरे रूढ़िवादियों का ज़बरदस्त विरोध था।
RSS के प्रति विचार -
आरएसएस का उद्देश्य भारत को एक संकीर्ण धार्मिक राष्ट्र बनाना है, जो हमारी स्वतंत्रता संग्राम की भावना और संविधान के आदर्शों के विपरीत है।"
-जवाहरलाल नेहरू
जिगर चुरुवी
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