Saturday, 20 July 2024

महात्मा गांधी की हत्या साजिश की कहानी

प्रार्थना सभा में आते हुए गांधी का चित्र दिनांक 29.01.1948, साथ हैं सिस्टर प्रभा और मनु

"जीवन - मृत्यु ईश्‍वर के हाथ में है और यदि उन्‍हें मरना हुआ तो कोई बचा नहीं सकता"
"जो आज़ादी के स्थान पर सुरक्षा चाहते हैं उन्‍हें जीने का कोई हक नहीं है।" 

"जब मैं मरूंगा तो मेरे मुंह में राम का नाम होगा।"
गांधी जी

महात्मा गांधी की हत्या और साजिश की कहानी - 
आजादी के बाद अक्टूबर 1947 में तय की गई हत्या की तारीख 20 जनवरी 1948 की साजिश (शरणार्थी मदनलाल पाहवा द्वारा बम विस्फोट) के असफल होने के बाद 30 जनवरी 1948 को परिणित हुई।
हत्या का स्थान - बिड़ला मंदिर,दिल्ली
हथियार - बेरेटा पिस्तौल (स्वचालित)
हत्यारा - नाथुराम गोडसे
साथी -  मुख्य अभियुक्त गोडसे के अन्य सात साथी -
1 विनायक दामोदर सावरकर सबूतों के अभाव में बरी। (गोडसे और सावरकर आपस में संबंधी थे)
(गांधी जी की हत्या से पहले 14 से 17 जनवरी को नाथूराम गोडसे और नारायण डी. आप्टे से सावरकर की मीटिंग की बात हिंदू महासभा के इन सदस्यों को हथियारों की सप्लाई करने वाले दिगंबर बड़गे ने अपने बयान में स्वीकारी। बयान के अनुसार 17 दिसंबर को जब मीटिंग के बाद गोडसे और आप्टे जा रहे थे तब सावरकर ने उनसे 'सफल होकर लौटने' की बात कहते भी सुना। इतने पुख्ता सबूत के बाद भी सावरकर को बरी करना आज भी समझ से बाहर है।
2 शंकर किस्तोया सावरकर- हाई कोर्ट आदेश से बरी
3 दिगंबर बड़गे - सरकारी गवाह बनने के कारण बरी
4 गोपाल गोडसे - आजीवन कारावास (सगे भाई)
5 मदन लाल पाहवा - आजीवन कारावास (शरणार्थी)
6 विष्णु रामकृष्ण करकरे - कारावास हुआ।
7 नारायण दत्तात्रेय आप्टे - नाथुराम गोडसे के साथ फांसी।

मित्रों के संग गोडसे - शंकर किस्तोया, गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा, दिगंबर बड़गे (खड़े) के साथ बैठे हुए नारायण आप्टे, दामोदर सावरकर, नाथुराम गोडसे, विष्णु राम कृष्ण करकरे। हिंदू महासभा की बैठक दिनांक 17 दिसंबर 1947
हत्याकांड में उपयोग में लाई गई पिस्तौल - 
बैरेटा (पिस्तौल) एकोकी शहर (मेरीलैंड, यूएसए) में बनी 20 कैलिबर की सबसे छोटी पिस्तौल जिसका उत्पादन 1985 में बंद कर दिया गया। यह नाथुराम ने दिल्ली के शरणार्थी से खरीदी थी।

नेहरु पटेल में अनबन - 
देश को आजाद हुए पाँच महीने ही बीते थे कि मीडिया में पण्डित नेहरू और सरदार पटेल के बीच मतभेद की खबर आने लगी थी। इससे बापू बेहद दुखी थे और विवाद का पटाaपक्षेप चाहते थे और पटेल की कुछ नीतियों से नाराज भी थे। बापू ने 30 जनवरी 1948 को पटेल को बातचीत हेतु शाम चार बजे बिड़ला मंदिर बुलाया। पटेल मणिबेन पटेल (पुत्री) के साथ तय समय पर पहुँच गए। बैठक 05.20 बजे तक चली।इसी बैठक के कुछ क्षणों के बाद गांधी जी की हत्या हुई।
हत्यारिन राजनीति नामक कविता
साजिश का पहले शिकार सुभाष हुए जिनको विमान-दुर्घटना में था मरवाया
फिर मत-विभेद के कारण गान्धी का शरीर गोलियाँ दागकर किसने छलनी करवाया ? 
का प्रश्न आज तक अनुत्तरित है।

   मूल एफआईआर उर्दू में तुगलग नगर पुलिस थाना

घटनाक्रम - 
गांधी जी ने दिल्ली में पहला आमरण अनशन शुरू किया और सरकार से मांग  रखी कि भारत में साम्प्रदायिक हिंसा को तत्काल समाप्त करने और पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाए। इस अनशन का मंतव्य था कि को डर था कि पाकिस्तान में अस्थिरता और असुरक्षा से भारत के प्रति उनका गुस्सा और बढ़ेगा तथा सीमा पर हिंसा फैल जायेगी। सरकार ने बापू की मांग मानते हुए रकम का भुगतान कर दिया। इस पर आरएसएस  व अन्य चरमपंथी संगठनों ने मुस्लिम तुष्टिकरण का नाम दिया और विरोध किया।
नाथूराम गोडसे और उनके साथी इससे पहले बापू के हत्या के प्रयास 03 बार
1. मई 1934 और 
2.. सितम्बर 1944 में
3. 20 जनवरी 1948  
में कर चुके थे, परंतु हर बार असफल रहे। सितंबर 1944 के बाद गोडसे अपने साथी नारायण आप्टे के साथ मुंबई लौट गया। दोनों ने दत्तात्रय परचुरे और गंगाधर दंडवते के साथ मिलकर बैरेटा पिस्टल खरीदी और 29 जनवरी 1948 को दिल्ली पहुँच कर रेल्वे  स्टेशन पर कमरा नंबर 06 (रिटायरिंग रूम) में डेरा डाल दिया। अब वो उचित अवसर की तलाश में थे। 
दिनांक 20 अक्टूबर 1948 को (पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थी) मदन लाल पाहवा ने प्रार्थना सभा में (बिड़ला भवन) बम से उड़ाने की कोशिश की बम दीवार से लगा और दीवार टूट गई परंतु हत्या का उद्देश्य अपूर्ण रहा (यह स्वतंत्र भारत की प्रथम सिविल बमबारी और आतंकी घटना थी) अब यह गिरोह पुनः मौके की तलाश में रहने लगा। नाथुराम गोडसे ने बापू के यहां आना - जाना शुरू किया। कुछ लोगों से करीबी संपर्क बनाए जिस से वो बेरोक- टोक बिड़ला मंदिर और अन्य सभाओं में जा सकें। दिनांक 30.जनवरी 1948 को हमेशा की तरह शाम पाँच बजे प्रार्थना होनी थी, गाँधी जी सरदार पटेल के साथ नेहरु - पटेल विवाद के सिलसिले में) चर्चा में व्‍यस्‍त थे। 5:20 पर चर्चा पूर्ण कर शिष्या आभा और मनु के कन्धों के सहारे प्रार्थना स्थल की और बढ़ते समय सामने नाथूराम गोडसे आया, मनु को धक्का दिया और दनादन 3 गोलियां चलाई। तीन गोलियां बापू के बदन में घुसी, पहली गोली शरीर को जोड़ने वाली रीड़ की हड्डी से करीब साढ़े तीन इंच दाईं ओर और नाभि से ढाई इंच ऊपर घुसी थ, दूसरी गोली इससे ठीक और ऊपर दांई तरफ की पसलियों में जा घुसी और तीसरी और आखिरी गोली सीने में रीड की हड्डी से चार इंच दाईं लग फेफड़े को चीर गई। 76 साल के बूढ़े बापू को मौके पर मौजूद डॉ. द्वारका प्रसाद भारद्वाज और डॉ. जीवराज मेहता ने मृत घोषित कर दिया। मरते समय उनके शब्द थे "है! राम"। 
बिड़ला भवन में भगदड़ मच गई गोडसे वहीं खड़ा रहा। चादर से ढका पार्थिव शरीर बापू के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी ने खोल दिया और आवाज लगाई "संसार के शान्ति और अहिंसा के पुजारी के साथ हुई हिंसा को सब देखो।

गोडसे ने कहा कि वह गांधी के मुस्लिम समुदाय के प्रति प्रेम से नाराज था,इसलिए हत्या की।

हे,राम गांधी जी के अंतिम शब्द एक विवाद
नंदलाल मेहता के अनुसार उनके अंतिम शब्द हे,राम थे परंतु हत्या के समय पीछे चल रहे गंधीजी के निजी सचिव (स्वतन्त्रता सेनानी) वी. कल्याणम् के अनुसार ऐसा नहीं हुआ।
                      बापू की पार्थिव देह 

बिड़ला मंदिर का सुरक्षा इंतजाम - 
बापू के मना करने के बावजूद बिड़ला हाउस पर एक हेड कांस्‍टेबल और चार कांस्‍टेबलों की तैनाती किए। प्रार्थना सभा के समय बिड़ला भवन में डीआईजी रेंक अधिकारी सहित पुलिस सादे कपड़ों में तैनात रहती थी जो हर संदिग्‍ध व्यक्ति पर नजर रखती। पुलिस आने वालों की एहतियातन तलाशी लेना चाहती थी परंतु गांधीजी ने ऐसा करने से मना कर दिया।

हत्या के बाद का घटनाक्रम - 
गोडसे और साथियों सहित नन्दलाल मेहता द्वारा दर्ज़ एफआईआर दर्ज करवाई गई जिसका नंबर 68/2048 है। उर्दू में लिखी इस एफआईआर में कुल 18 लाइन हैं जो तुगलक नगर थाने में दर्ज की गई। सरकार ने जाँच आयोग का गठन किया।  बापू की हत्या की सूचना जवाहर लाल नेहरू द्वारा रेडियो के माध्यम से राष्ट्र को दी गई। उनकी शव यात्रा ट्रक द्वारा निकाली गई। अंतिम क्रिया के बाद उनकी अस्थियां 12 विभिन्न हिस्सों में बहाने के लिए भेज दी गई। एक कलश प्रवाहित नहीं किया गया जिसे (62 साल बाद 30 जनवरी 2010 को डरबन के समुद्र में उनकी परिवार के सदस्यों द्वारा प्रवाहित की गई
अस्थि और ट्रक से जुड़ी खास बातें
1. महात्मा गांधी की अस्थियां जिस ट्रक पर लाई गई थी उसका नाम फोर्ड ट्रक (47 मॉडल वी-8) था।
2.1947 में निर्मित इस ट्रक को पहले सेना ने सुसज्जित कर फ़ायर ब्रिगेड पुलिस को सौंपा।
3.12 फरवरी 1948 को महात्मा गांधी की अस्थियां इसी ट्रक में लाकर इलाहाबाद संगम में प्रवाहित की गई।
4. इलाहाबाद में एक संग्रहालय बना तो इस ऐतिहासिक ट्रक को वहाँ राष्ट्रीय संपत्ति बनाकर रख दिया गया।
5. 1948 के बाद यह ट्रक बंद पड़ा रहा पर 30 जनवरी 2006 को उसकी मरम्मत की गई। टायर निर्माता कंपनी सिएट ने नए टायर उपलब्ध करवाये।
6. 1997 में भुवनेश्वर में एक बैंक लॉकर में रखे गए अस्थि कलश को इलाहाबाद इसी ट्रक में ला कर विसर्जित किया गया। नई दिल्ली जिले के तुगलक रोड थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर दसौंदा सिंह ने इन्वेस्टिगेशन कर इस मुकदमे में शंकर किस्तैया, गोपाल गौड़से, मदनलाल पाहवा, दिगम्बर बड़गे, नारायण आप्टे, विनायक दामोदर सावरकर, नाथूराम गोडसे और विष्णु रामकृष्ण करकरे सहित कुल आठों लोगों को हत्या की साजिश में आरोपी बना कर गिरफ्तार कर लिया गया। इनमें से दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया। सावरकर के खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला तो अदालत ने बरी कर दिया। शंकर किश्तैया को निचली अदालत से आजीवन कारावास की सजा दी पर ऊपरी कोर्ट ने सजा माफ कर दी। गोडसे को पंजाब उच्च न्यायालय पीटरहॉफ जेल शिमला में हीरासत में भेज दिया गया। मणिलाल और रामदास गांधी द्वारा सजा कम करने हेतु निवेदन किया गया पर 8 नवंबर 1949 को फांसी की सजा सुनाई और 15 नवंबर 1949 गोडसे और नारायण दत्तात्रेय आप्टे को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई।। हिंदू महासभा की पूरे देश में आलोचित हुई और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया।
आरएसएस ने गोडसे के साथ किसी भी तरह के संबंध से इनकार करते हुए कहा कि उसने आरएसएस 1930 में ही छोड़ दिया जबकि गोपाल गोडसे के अनुसार वह तब भी आरएसएस के सदस्य थे और मरते दम तक बौद्धिक कार्यावाह बने रहे।

                    गोडसे का चित्र 
                 नारायन दत्तात्रेय आप्टे
                    दामोदर सावरकर 
                 शंकर किस्तोया सावरकर 

                      गोपाल राम गोडसे
                    मदन लाल पाहवा 

                            दिगंबर बड़गे
                 विष्णु रामकृष्ण करकरे 

गोडसे को महिमा मंडित करने के प्रयास

गोडसे की छवि सुधार के प्रयास के प्रयास अनवरत जारी हैं।
आरएसएस और चरम पंथी संगठन बापू के विषय में अनर्गल लिखते और छापते रहते हैं। वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद हिंदू महासभा ने गोडसे के पुनर्वास और उसे एक देशभक्त के रूप में चित्रित करने के प्रयास शुरू किए। भाजपा ने 30 जनवरी 2015 को गांधी की पुण्यतिथि पर डॉक्यूमेंट्री फिल्म देश भक्त नाथूराम गोडसे बना कर रिलीज की। कई स्थानों पर गोडसे के मंदिर बना कर वहां शौर्य दिवस 30 जनवरी मनाया जाने लगा। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के लिए पुणे कोर्ट में सिविल रिट दायर की गई।
मई 2019 में लोकसभा चुनावों के अंतिम चरण में भोपाल से भाजपा उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को देशभक्त कहते हुए बापू की तस्वीर को गोली मार दी।
उत्तर प्रदेश सरकार ने मेरठ शहर का नाम गोडसे नगर करने का प्रस्ताव रखा जो लंबित है।

शमशेर भालू खान 
9587243963

No comments:

Post a Comment