मोहनदास कर्मचंद गांधी
(महात्मा गांधी)
देदो हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख प्रणेता (1869-1948) -
भारत एवं भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को स्वतन्त्रता दिलाकर पूरे विश्व को नागरिक अधिकार एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया।
@शमशेर भालू खान
नाम -
मोहनदास कर्मचंद गांधी (गांधी शब्द का शाब्दिक अर्थ है इत्र बेचने वाला (मूल शब्द गंधी से बना शब्द गांधी)
लघु नाम -
1 मोहन - घर का नाम
2 राष्ट्रपिता - ( 6 जुलाई 1948 रंगून से गांधी जी के नाम एक प्रसारण में सुभाष चंद्र बोस ने बापू कहकर उनसे आजाद हिंद फोज के लिए समर्थन मांगा था।)
3 महात्मा - (यह नाम सर्वप्रथम राज वैद्य कालिदास ने 1915 में दिया, इसी वर्ष स्वामी श्रद्धानंद ने और 12 अप्रैल 1919 में एक लेख में सार्वजनिक रूप से नाम रविंद्र नाथ टैगोर ने लिखा।)
4 बापू - सुभाष चंद्र बोस साबरमती आश्रम में रहते थे उस समय का संबोधन)
दादा का नाम - उत्तम चंद गांधी (गांधी जी इनको ओटा कहते थे)(पोरबंदर रियासत के डिप्टी दीवान रहे)
दादी का नाम - लक्ष्मी बेन गांधी
पिता का नाम - कर्मचंद उत्तमचंद गांधी (1822 से1885)(उपनाम - काबा) छः भाइयों में से पांचवें पुत्र
(पिता राज कोट राज दरबार में दीवान का काम किया करते थे।)
गांधी जी के भाई बहन -
कर्मचंद जी के कुल 4 पत्नियां थीं।
1 पहली पत्नी से पुत्री मूली बेन गांधी
2 दूसरी पत्नी से पुत्री पान कुंवर बेन गांधी
3 तीसरी पत्नी के कोई संतान नहीं हुई।
4 चौथी पत्नी पुतली बाई से कुल 4 संतान हुई
(i) लक्ष्मी दास गांधी
(ii) रलियत बेन गांधी
(iii) करसनदास गांधी
(iv) मोहनदास गांधी
माता का नाम - पुतली बाई गांधी
(1844 से 12 जून 1891)
जन्म - 2 अक्टूबर 1869
जन्म स्थान - पोरबंदर गुजरात
मृत्यु - 30 जनवरी 1948 (हत्या -नाथूराम गोडसे)
कुल आयु - 78 वर्ष 2 माह 27 दिन
मृत्यु का स्थान - बिड़ला मंदिर, नई दिल्ली
शांत स्थान - शहीद स्मारक राजघाट नई दिल्ली
अस्थि विसर्जन -
12 फरवरी वर्ष 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश 12 तटों पर विसर्जित किए गए थे, त्रिमोहिनी संगम भी उनमें से एक है।
जाति - गुजराती बनिया (पंसारी)
धर्म - सनातन
पंथ - वैष्णव
शिक्षा -
1 प्रारंभिक शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल, राजकोट।
2 यूनिवर्सिटी कॉलेज, में बेरिस्टर की पढ़ाई हेतु 4 सितंबर 1977 को 19 वर्ष की आयु में लंदन
व्यवसाय -
1 वकालत
2 सामाजिक कार्य
3 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
4 नवीन भारतीय दार्शनिक
5 राजनीति
6 पत्रकारिता
7 लेखक
राजनैतिक पार्टी - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पत्नी का नाम - कस्तूर बा गाँधी
गांधीजी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली और हर संघर्ष में उनका साथ देने वाली उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी का
जीवन परिचय :-
"कस्तूर बा स्त्रीत्व का जीता जागता प्रति रूप थीं।"
सरोजनी नायडू
"मैं बा के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता।"
महात्मा गांधी 23 फरवरी 1944 बा की मृत्यु के दूसरे दिन प्राथना सभा में
पूरा नाम - कस्तूरबाई माखनजी कपाडिया।
जन्म - 11 अप्रैल 1869 पोरबंदर
मृत्यु - 22 फरवरी 1944 आगा खां पैलेस जेल में
(गांधी जी से लगभग 6 माह बड़ी)
जन्म स्थान - पोरबंदर (गुजरात)
पिता का नाम - गोकुल दास कपाड़िया
(अफ्रीका और मिडल-ईस्ट के देशों में अनाज, कपड़े और कॉटन के बहुत बड़े व्यापारी, राजनितीज्ञ {पोरबंदर के मेयर भी रह चुके} और स्माजाजिक कार्यकर्ता एवम् कर्मचंद गांधी के मित्र थे।)
माता का नाम - व्रज कुंवर
भाई - 2
सगाई - (7 वर्ष की आयु में) 1976 में
विवाह - 1982 (13 वर्ष की आयु )
कस्तूरबा एक साहसिक परिचय -
कस्तूरबा गांधी एक उच्च नैतिक चरित्रवान, अनुशासित, साहसी एवं स्वतंत्र व्यक्तित्व की महिला थीं।
शादी के बाद शुरुआत में गांधीजी ने उन पर प्रभुत्व स्थापित की कोशिश की पर कस्तूरबा ने विरोध किया और स्वतंत्र व्यक्तित्व को कायम रखा।
1893 में वे दक्षिण अफ्रीका गांधी जी के साथ गई और रंगभेद के विरुद्ध अहिंसक आंदोलन में पति का पूरा साथ दिया।
गांधीजी के साथ रहकर या दूर से हर हाल में उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाया।
आंदोलन हेतु दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए बा ने सारे गहने दान कर दिए सादगी भरा जीवन बिताने लगीं।
अफ्रीका में गांधीजी के संघर्षों में बा ने हर कदम पर पूरा साथ दिया।
बा को बच्चों को बहुत स्नेह था इसी कारण गांधीजी महात्मा बहुत बाद में बने कस्तूर उन से पहले 1900 में ही बा (मां) के नाम से दक्षिण अफ्रीका में जानी जाने लगी थीं। इसके बाद सभी उन्हें कस्तूरबा गांधी के नाम से ही जानने लगे।
एक पत्नी और मां के रूप में बा की भूमिका -
कस्तूरबा गांधी ने एक पत्नी और मां के रूप में भी अतुलनीय भूमिका निभाई। पति के संघर्षों में साथ देने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ देश के नाम अर्पित कर दिया। उन्होंने अपने सारे गहने और बहुमूल्य चीजें दान में दे दी। उनके दरवाजे हर आदमी के लिए खुले थे। वह हर किसी की मदद करती थीं। बीमारों की देखभाल बा का मुख्य काम था।
आश्रम में हर व्यक्ति का ख्याल बा (मां) की तरह रखती थीं।
बा के अंतिम दिन -
22 फरवरी, 1944 की शाम को बा ने आगा खां महल के डिटेंशन कैंप में आखिरी सांस ली और 23 फरवरी 1944 को यहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया।
उस समय गांधीजी वहीं मौजूद थे और तब तक वहां बैठे देखते रहे जब तक चिता पूरी तरह जल नहीं गई। जब किसी ने उनसे बीच में ही जाने को कहा तो गांधीजी ने जवाब दिया कि 62 साल तक एक साथ जीवन गुजारने के बाद यह अंतिम रूप से अलगाव हो गया है कम से कम चिता को पूरी तरह जलता तो देखने दो।
संतान -
1 हरिलाल मोहनदास गाँधी
2 मणिलाल मोहनदास गाँधी
3रामदास मोहनदास गाँधी
4 देवदास मोहनदास गाँधी
पोशाक -
1. 1920 से पहले विदेशी वस्त्र कोट पेंट टाई
2. 1920 के बाद मोटे सूत से बनी स्वदेशी धोती एवम् स्वयं की बुनी हुई सूती शाल।
भोजन -
शाकाहारी अधिकतर दूध का सेवन किया।
लंदन जाते समय माता को (जैन भिक्षु बेचार जी के समक्ष) अनुसार शराब,मांस व अनैतिक आचरण नहीं करने के वचन को निभाया। शाकाहारी समाज लंदन के सदस्य बने और कार्यकारिणी के सदस्य भी।
गांधी और थियोसोफिकल सोसाइटी -
इस सोसाइटी की स्थापना 1875 में विश्व बन्धुत्व को प्रबल करने के लिये की गयी थी। जो बौद्ध एवं सनातन धर्म के साहित्य के अध्ययन के माध्यम से शांति व अहिंसा के सिद्धांतों का प्रचार करती थी।
थियोसोफिकल के लोगों ने मोहनदास को श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ने के लिये प्रेरित किया परंतु इसमें उन्होंने कोई विशेष रुचि नहीं दिखायी।
महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु :-
गोपाल कृष्ण गोखले
व्यसायिक जीवन की शुरुआत -
इंग्लैंड से वेल्स बार एसोसिएशन के बुलावे पर मोहनदास भारत लौट आये परंतु बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली।
आजीविका हेतु एक हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी का प्रार्थना पत्र दिया वो भी अस्वीकार कर दिया गया।
अब वे छोटे मोटे मुकदमों की अर्जियाँ लिखने के लिये राजकोट में रहने लगे।
एक अंग्रेज अफसर के कारण उन्हें यह कारोबार भी छोड़ना पड़ा। सत्य के साथ मेरे प्रयोग आत्मकथा में इस घटना का वर्णन बड़े भाई की ओर से परोपकार की असफल कोशिश के रूप में किया है।
यही से मोहनदास के महत्मा बनने की शुरुआत होती है।
असफल जीवन से हताश गांधी को लड़ाई का मार्ग मिल गया।
आश्रम की स्थापना -
1 एल्फिस्टन आश्रम दक्षिण अफ्रीका
2 साबरमती आश्रम गुजरात
संघर्ष के हथियार (सिद्धांत) -
1 सत्य
2 अहिंसा
3 उपवास
4 सत्याग्रह
5 पैदल मार्च
जेल में कुल दिन -
उपवास कुल दिन -
कार्य -
1 अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के अधिकारों के लिए व रंग भेद के खिलाफ संघर्ष 1893 से 1914
2 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1915 से 1947
संघर्ष के चरण -
महात्मा गांधी के संघर्ष को हम 2 चरणों में विभाजित कर सकते हैं 1 विदेश में संघर्ष
2 भारत में संघर्ष
1 विदेश में संघर्ष 1893 से 1915 -
महात्मा गांधी (मोहनदास कर्मचंद गांधी) ने ब्रिटेन से बेरिस्टर की पढ़ाई पूरी कर राजकोट गुजरात में वकालत का कार्य प्रारंभ किया। दुर्भाग्य से उनकी वकालत नहीं चल पाई।
इसी बीच दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के द्वारा उनसे रंग भेद और शोषण के विरुद्ध लड़ने का निवेदन एक भारतीय व्यवसाई अब्दुल्ला ने किया गया जिसे स्वीकार कर गांधीजी दक्षिण अफ्रीका चले गए।
हुआ यह कि 1893 में एक भारतीय फर्म जो नेटाल दक्षिण अफ्रीका (ब्रिटिश उपनिवेश) मे कार्य करती थी ने कानूनी सलाह के लिए गांधी से एक वर्ष का करार कर नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) में वकालत हेतु राजी कर लिया।
यहां से आपने सत्याग्रह के रुप में अहिंसात्मक संघर्ष की शुरुआत की।
गांधी दक्षिण अफ्रीका में (1895)
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों को भेदभाव का सामना करना पड़ाता था जिस से गांधी जी भी अछूते नहीं रहे।
होटलों में खा खाना वर्जित कर दिया गया।
प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बाद भी तृतीय श्रेणी के डिब्बे में यात्रा करने हेतु,ट्रेन के पायदान पर यात्रा करने हेतु कई बार विवश किया गया ट्रेन से सामान सहित बाहर फेंक दिया गया, उनके साथ मार पिटाई भी की गई ।
एक बार एक अदालत के न्यायाधीश ने केस की सुनवाई के दौरान उन्हें पगड़ी उतारने का आदेश दिया जिसे नहीं मानते हुए गांधी जी अदालती कार्यवाही करते रहे।
इन्ही घटनाओं ने उनके मन को उद्वेलित कर दिया और उनका जीवन सामाजिक,राजनेतिक अन्याय के प्रति सामाजिक जागरुकता के कार्य में लग गए।
इस अन्याय के विरुद्ध लड़ने हेतु योजनागत लड़ाई शुरू की।
अंग्रेज -ज़ुलु युद्ध और मोहनदास -
1906 में ज़ुलु (Zulu) दक्षिण अफ्रीका में चुनाव कर नए नियम लागू किए गए जिनका स्थानीय लोगों ने विरोध किया और संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी गई। अंग्रेजों ने इस हत्याकांड का बदला लेने के लिए जूलू के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।
गांधीजी ने भारतीय नागरिकों को अंग्रेज सेना में भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों से आग्रह किया और बदले में नागरिक समानता के कानून की मांग की।
अंग्रेजों ने भारतीयों को सेना में पद देने के प्रस्ताव को इंकार कर दिया और गांधी जी के भारतीय लोगों द्वारा घायल अंग्रेज सैनिकों के उपचार हेतु स्ट्रैचर पर लाने के लिए बिना प्रतिदेय के सहयोगी के रूप में कार्य कर सकने के प्रस्ताव को मान लिया। स्वयं गांधी जी ने यह कार्य अपने हाथ में लिया जिसकी घोषणा 21 जुलाई 1906 को भारतीय जनमत (इंडियन ओपिनिय) पत्र यह लिखते हुए की गई कि जुलु निवासियों के विरूद्ध चलाए गए आप्रेशन के संबंध में नेटाल सरकार के कहने पर एक कोर का गठन किया गया है जिसमे दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों से इस युद्ध में अंग्रेजों की सहायता हेतु शामिल होने के लिए आग्रह किया।
गांधी जी दूरदृष्टा थे वे इस सहयोग के बदले अवसर का उपयोग कर के लिए भारतीयों की स्थिति एवम् स्तर को समान लाने का कूटनीतिक प्रयास था। उन्होंने सत्याग्रह की तरह ही काफिर (स्थानीय निवासी) का उदाहरण देते हुए भारतीयों से अध्यादेश का विरोध किया।
"यहाँ तक कि आधी जातियां और काफिर जो भारतीयों से कम आधुनिक हैं ने भी सरकार का विरोध किया है। पास का नियम उन पर भी लागू होता है किंतु वे पास (नागरिकता पास) नहीं दिखाते हैं।"
जुलु युद्ध के समय गांधीजी का बयान इंडियन ओपिनियन ।
इस तरह से गांधीजी ने सत्याग्रह के माध्यम से जुलु युद्ध में अंग्रेज सैनोको की मदद के द्वारा भारतीयों के प्रति अंग्रेजों की मानसिकता में बदलाव करने के सफल प्रयास किए।
गांधीजी के दक्षिण अफ्रीका में 10 महान कार्य :-
1 दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने अफ्रीकी और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव के खिलाफ 1894 में अहिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू किया, इस आंदोलन में हजारों लोग उनके साथ मिलकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया।
2 वह दक्षिण अफ्रीका में सेवा करने और साथी भारतीय को इकट्ठा करने के लिए 1896 में थोड़े समय के लिए भारत आए। उन्होंने 800 भारतीयों को इकट्ठा किया, लेकिन एक विडंबनापूर्ण भीड़ द्वारा उनका स्वागत किया गया और गांधी हमले में घायल हो गए।
3 उन्होंने 1899 में बोअर युद्ध के प्रकोप के दौरान अंग्रेजों के लिए भारतीय एम्बुलेंस कोर का आयोजन किया। ताकि ब्रिटिश मानवता को समझ सकें लेकिन भारतीयों पर जातीय भेदभाव और अत्याचार जारी रहे।
4 उन्होंने डरबन के पास फीनिक्स फार्म की स्थापना की, जहाँ गांधी ने अपने कैडर को शांतिपूर्ण संयम या अहिंसक सत्याग्रह के लिए प्रशिक्षित किया। इस फार्म को सत्याग्रह का जन्मस्थान माना जाता है।
5 उन्होंने एक और फार्म को स्थापित किया, जिसे टॉलस्टॉय फार्म कहा जाता थाए जिसे उस स्थान के रूप में माना जाता है, जहाँ सत्याग्रह को विरोध के हथियार के रूप में ढाला गया था।
6 महात्मा गांधी का पहला अहिंसात्मक सत्याग्रह अभियान सितंबर 1906 में स्थानीय भारतीयों के खिलाफ गठित ट्रांसवाल एशियाटिक अध्यादेश के विरोध में आयोजित किया गया था। उसके बाद, उन्होंने जून 1907 में काले अधिनियम के खिलाफ सत्याग्रह भी किया।
7 उन्हें 1908 में अहिंसक आंदोलन के आयोजन के लिए जेल की सजा सुनाई गई थीए लेकिन जनरल स्मट्स के साथ मुलाकात के बाद जो एक ब्रिटिश राष्ट्रमंडल राजनेता थे, को रिहा कर दिया गया।
8 उन्हें 1909 में वोल्क्सहर्स्ट और प्रिटोरिया में तीन महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी। रिहा होने के बाद, वह वहां भारतीय समुदाय की सहायता लेने के लिए लंदन गए लेकिन उनका प्रयास व्यर्थ गया।
9 गांधी जी ने 1913 में गैर-ईसाई विवाहों के ओवरराइड के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
10 उन्होंने ट्रांसवाल में एक और सत्याग्रह आंदोलन का आयोजन किया था, जिसमें भारतीय नाबालिग पीड़ित थे। उन्होंने ट्रांसवाल सीमा के पार लगभग 2,000 भारतीयों का नेतृत्व किया
2 भारत में संघर्ष 1915 से 1948 -
दक्षिण अफ्रीका से 1915 में उनकी भारत वापसी हुई।
जिसके बाद उन्होंने यहाँ के दलितों,किसानों, श्रमिकों को शोषण एवं भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया।1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के बाद दरिद्रता से मुक्ति,हरिजनोद्धार, महिला सशक्तिकरण, धार्मिक एवं जातीय एकता, व स्वावलंबी व बुनियादी शिक्षा के कार्यक्रम शुरू किए।
इनमें ब्रिटिश राज से मुक्ति हेतु उनका स्वराज आंदोलन प्रमुख था।
(i)असहयोग आन्दोलन 1920
(ii) खिलाफत आन्दोलन 1919 से 1924
(iii) नमक सत्याग्रह 1930
(iv) अंग्रेजी भारत छोड़ो आंदोलन 1942 से 1947
आइंस्टीन और गांधीजी
पूरे जीवनकाल में महात्मा गांधी ने करीब 35 हजार पत्र लिखे। इन पत्रों में बापू अपने सहयोगियों, शिष्यों, मित्रों, सम्बन्धियों को वास्तविक नाम के स्थान पर उपनाम से सम्बोधित करते थे। मसलन, सरोजिनी नायडू माई डियर पीसमेकर, सिंगर एंड गार्डियन ऑफ माई सोल, माई डियर फ्लाई, राजकुमारी अमृत कौर को माई डियर रेबल, लियो टॉल्सटाय को सर और एडोल्फ हिटलर व एल्बर्ट आइंस्टीन को "माई डियर फ्रेंड! कहते थे।
परमाणु की विध्वंसक शक्ति के दुरुपयोग की आशंका से परेशान अल्बर्ट आइंस्टीन, अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी से मिलना चाहते थे। परन्तु उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। 1931 में आइनस्टीन द्वारा लिखे पत्र में उन्होंने बापू से मिलने की इच्छा जताते हुए लिखा कि आपने अपने काम से यह साबित कर दिया है कि ऐसे लोगों के साथ भी अहिंसा के जरिये जीत हासिल की जा सकती है जो हिंसा के मार्ग को खारिज नहीं करते। मैं उम्मीद करता हूँ कि आपका उदाहरण देश की सीमाओं में बँधा नहीं रहेगा बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होगा। मैं उम्मीद करता हूँ कि एक दिन मैं आपसे मुलाकात कर पाऊँगा।
गांधीजी की उपलब्धियाँ राजनीतिक इतिहास में अद्भुत हैं। उन्होंने देश को दासता से मुक्त कराने के लिये संघर्ष का ऐसा मार्ग चुना जो मानवीय और अनोखा है। यह एक ऐसा मार्ग है जो पूरी दुनिया के सभ्य समाज को मानवता के बारे में सोचने को मजबूर करता है। उन्होंने लिखा कि हमें इस बात पर प्रसन्न होना चाहिये कि तकदीर ने हमें अपने समय में एक ऐसा व्यक्ति तोहफे में दिया जो आने वाली पीढ़ियों के लिये पथ प्रदर्शक बनेगा।
- आइंस्टीन
आइंस्टीन के पत्र का जवाब 18 अक्टूबर 1931 के जवाब में उन्होंने लिखा - सुन्दरम् (गांधी के मित्र) के माध्यम से मुझे आपका सुन्दर पत्र मिला। मुझे इस बात की सन्तुष्टि मिली कि जो काम मैं कर रहा हूँ वह आपकी दृष्टि में सही है। मैं उम्मीद करता हूँ कि भारत में मेरे आश्रम में आपसे मेरी आमने सामने मुलाकात होगी।
गांधी जी की हत्या :-
दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में चहलकदमी करते समय 30 जनवरी 1948 की शाम को महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे नाम के युवक (चरमपंथी, कट्टरवादी हिन्दू महासभा के सदस्य) द्वारा सीने पर 3 बार गोली मारकर हत्या कर दी गई। गांधी जी के मरते समय शब्द थे "हे राम" जो राजघाट पर उनकी समाधि पर लिखे हुए हैं।
बापू की हत्या की सूचना जवाहर लाल नेहरू द्वारा रेडियो के माध्यम से राष्ट्र को दी गई।
गोडसे का मत था कि भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान सरकार को किए वादे के अनुसार 55 करोड़ रुपए का भुगतान गलत था जिसके जिम्मेदार बापू थे।
पुणे आगा खां पैलेस (राजघाट) में बापू की अस्थियां
10 फरवरी 1948 को अंतिम संस्कार के बाद बापू के अस्थि कलश को पूरे राष्ट्र में घुमाया गया।
गांधी जी की अस्थियां विभिन्न कलशों में रख कर पारिवारिक मित्रों,अनुयाइयों एवं राष्ट्रों को स्मृति हेतु सौंपा गया था।
तत्कालीन समय छपा इश्तहार नाथू राम गोडसे
बापू की शव यात्रा ट्रक द्वारा हुई:-
जिस ट्रक से उनकी अस्थियों को विसर्जन किया गया उसकी खास बातें :-
हत्या के बाद देशभर की नदियों और महासागरों में अस्थि विसर्जन के बाद आखिरी अस्थि कलश मणि भवन में रखा गया।
गांधी जी जब भी शहर की यात्रा पर होते थे वे यहां ठहरते थे।
अस्थि और ट्रक से जुड़ी खास बातें
1. महात्मा गांधी की अस्थियां जिस ट्रक पर लाई गई थी उसका नाम फोर्ड ट्रक (47 मॉडल वी-8) था।
2.1947 में निर्मित इस ट्रक को पहले सेना ने सुसज्जित कर फ़ायर ब्रिगेड पुलिस को सौंपा।
3.12 फरवरी 1948 को महात्मा गांधी की अस्थियां इसी ट्रक में लाकर इलाहाबाद संगम में प्रवाहित की गई।
4. इलाहाबाद में एक संग्रहालय बना तो इस ऐतिहासिक ट्रक को वहाँ राष्ट्रीय संपत्ति बनाकर रख दिया गया।
5. 1948 के बाद यह ट्रक बंद पड़ा रहा पर 30 जनवरी 2006 को उसकी मरम्मत की गई। टायर निर्माता कंपनी सिएट ने नए टायर उपलब्ध करवाये।
6. 1997 में भुवनेश्वर में एक बैंक लॉकर में रखे गए अस्थि कलश को इलाहाबाद इसी ट्रक में ला कर विसर्जित किया गया।
1. इलाहाबाद उत्तर प्रदेश :-
12 फरवरी 1948 को अस्थियां इलाहाबाद के तट पर गंगा जी में विसर्जित की गईं।
साथ ही अन्य 11 स्थानों पर भी अस्थि विसर्जन हुआ।
2. त्रिमोहिनी संगम :-
त्रिमोहिनी संगम बिहार के कटिहार जिले के कटरिया गाँव के निकट स्थित नदियों का संगम जहाँ से कोशी का गंगा में मिलन और कलबलिया नदी की एक छोटी धारा की उत्पत्ति होती है । त्रिमोहिनी संगम भारत की सबसे बड़ी उत्तर वाहिनी गंगा का संगम है।
12 फरवरी 1948 में महात्मा गांधी के अस्थि कलश यहां भी विसर्जित किया गया।
3. सतियारा घाट (ताप्ती नदी) :-
देश की कई नदियों की तरह ताप्ती नदी में भी बापू की अस्थियां विसर्जित की गई थीं। सतियारा घाट बुरहानपुर 11 फरवरी को अस्थियां पहुंचीं और 12 फरवरी 1948 को दोपहर 3 बजे रामधुन के साथ अस्थि विसर्जन जुलूस के साथ विसर्जन किया गया जिसमें पट्टाभि सीतारमैया,मंगलदास पखवासा,आचार्य अत्रे सहित कई विद्वान शामिल हुए।
यहां ओटला बनाकर इसे बापू का अस्थि विसर्जन स्थल नाम दिया है।
बापू 1933 में हरिजन आंदाेलन के तहत राशि एकत्र करने बुरहानपुर आए थे।
इसकी स्मृति में यहां करीब 25 साल तक गांधी मेला लगा। इसमें उत्तम कृषि उपज, मवेशी मेले के साथ कवि सम्मेलन और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे जो बाद में गांधी भवन में कार्यक्रम होने लगे।
4 महिला घाट (गऊ घाट के समीप) पुष्कर अजमेर,राजस्थान :-
महिला घाट (गांधी घाट) पुष्कर (अजमेर,राजस्थान) :- पुष्कर सरोवर के महिला घाट पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियों का विसर्जन किया गया। अब इस घाट को गांधी घाट के नाम से जाना जाता है।
5 रामपुर, उत्तर प्रदेश :-
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि रामपुर में भी है। 11 फरवरी 1948 को बापू की अस्थियां रामपुर में लाई गईं जिनका कुछ हिस्सा 12 फरवरी 1948 को कोसी नदी में प्रवाहित किया गया और शेष अस्थियों को चांदी के कलश में रखकर दफन कर दिया गया था जिस पर आज गांधी समाधि बनी हुई है।
हुआ यह कि महात्मा गांधी रामपुर से लगाव के कारण 2 बार यहां आए। था। वो दो बार यहां आए भी थे।
30 जनवरी 1948 तक रामपुर रियासत का भारत गणराज्य में विलय नहीं हुआ था।
31 जनवरी 1948 को काले हाशिये के साथ स्टेट गजट जारी कर रामपुर के नवाब रजा अली खां ने 13 दिन के सरकारी शोक का एलान किया।
दो फरवरी 1948 को जब बापू का दिल्ली में अंतिम संस्कार हुआ तो रामपुर के किले से उनको 23 तोप की सलामी दी गई।
10 फरवरी को नवाब दिल्ली के राजघाट पहुंचे और महात्मा गांधी की चिता पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। इसके बाद नवाब रजा अली खां ने बापू की अस्थियों को रामपुर ले जाने की इच्छा जताई।
अस्थियों को लाने के लिए रामपुर से 18 सेर वजनी अष्टधातु का कलश बनाया गया।
11 फरवरी को सुबह 9 बजे नवाब की स्पेशल ट्रेन से अस्थि कलश रामपुर लाया गया। हजारों की भीड़ स्टेशन पर थी। शांति मार्च के रूप में अस्थि कलश को स्टेशन से स्टेडियम लाया गया, जहां शहर वासियों ने बापू को श्रद्धांजलि दी।
12 फरवरी 1948 को रामपुर में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया और स्टेडियम में हुई शोकसभा में सर्वधर्म सभा आयोजित की गई। दोपहर तीन बजे कलश को सुसज्जित हाथी पर रखकर कोसी नदी लाया गया। यहां नवाब ने कुछ अस्थियां कोसी में विसर्जित कीं तो शेष को कलश में लेकर रियासती बैंड की मातमी धुन के बीच नवाब गेट के पास चांदी के कलश में रखकर नवाब ने अपने हाथों से जमीन में दफन किया।
पुस्तक रामपुर का इतिहास में लेखक शौकत अली खान के अनुसार पंडितों के तर्क के बाद रजा अली खां को मिली थी बापू की अस्थियां।
नवाब रजा अली खां ने जब दिल्ली पहुंच कर बापू की अस्थियां रामपुर ले जाने की इच्छा जताई थी तो उनको मना कर दिया गया।
पहले यह कहा गया कि एक मुसलमान को बापू की अस्थियां क्यों दी जाए। पंडितों के तर्क के बाद बापू की अस्थियां नवाब को सौंप दी गई। रजा अली खां अपने साथ पंडित राम रतन, पंडित राम चंद्र, राम गोपाल शर्मा, पंडित राधे मोहन चौबे और मदन मोहन चौबे को दिल्ली साथ ले गए थे।
6. गांधी मंडपम कन्या कुमारी :-
तीन सागरों के मिलन स्थल कन्याकुमारी तट पर गांधीजी के पवित्र अस्थि को त्रिवेणी संगम में 12 फरवरी 1948 को प्रवाहित किया गया। यहां ओडिसा शैली में 1956 में गांधी स्मारक मंदिर में ओडिशा शैली में 'त्रिवेणी संगमम' बनाया गया।
महात्मा गांधी 1925 और 1937 में दो बार कन्याकुमारी आए।
1948 में उनकी मृत्यु के बाद, उनके अवशेषों को देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाने के लिए 12 अलग-अलग कलशों में रखा गया था। इनमें से एक कलश कन्याकुमारी लाया गया था और स्मारक बनाया गया।
बाढ़ के कारण यह स्मारक समुद्र में डूब गया।
बाद में यहां नया महात्मा गांधी स्मारक (गांधी मंडपम)उड़ीसा शैली में 1956 में बनाया गया।गुलाबी स्तंभों वाले इस मंडपम के फोकल टॉवर की ऊंचाई 79 फीट है। गांधी मंडपम का सबसे आकर्षक तत्व उसकी छत है। 2 अक्टूबर के दिन सूर्य की किरणें ठीक उसी स्थान पर पड़ती हैं जहां उनके उनकी स्मृति अवशेष रखे गए थे।
1990 में अखबारों में खबर छपी की गांधी जी की अस्थियां स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कटक शाखा में एक लकड़ी के बॉक्स में लाकर में रखी हुई हैं।
तुषार गाँधी(गांधी जी के परपोत्र) ने बैंक से अस्थि विसर्जन हेतु हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई पर सरकार का रुख नकारात्मक रहा। इस पर तुषार गांधी ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। मुख्य न्यायाधीश अहमदी की खंडपीठ ने सुनवाई कर अस्थियां तुषार गांधी को सौंपने हेतु निर्देश उड़ीसा सरकार व बैंक को दिए। सन 1997 में इसे इलाहाबाद (प्रयागराज) में गंगा जी में विसर्जित किया गया।
30 जनवरी 2008 को दुबई में रहने वाले एक व्यापारी द्वारा मुंबई संग्रहालय को गांधी जी की चिता का शेष अस्थि कलश सौंपा गया जो गिरगांव चौपाटी स्थान पर जल में विसर्जित कर दिया गया।
एक अन्य अस्थि कलश आगा खान महल पुणे (1942 से 1944 गांधीजी डीटेंशन सेंटर में कैद रहे) में रखा गया। एक अन्य अस्थि कलश आत्मबोध फैलोशिप झील मंदिर, लॉस एंजिल्स में रखा हुआ है।
हत्यारों को सजा :-
इस हत्याकांड के षड्यंत्र में गोडसे का सहयोग करने वाले व्यक्ति का नाम था नारायण आप्टे।स्वतंत्र भारत की पहली आतंकवादी घटना के कारण इन दोनों आतंकवादियों को बाद में अदालत ने फांसी की सजा सुनाई जिसके फलस्वरूप 15 नवंबर 1959 को फांसी दे दी गई।
जेल बंदियों को दिए जाने वाले कम्पनशेषन के रूप में 100 rs प्रति माह बॉम्बे सरकार द्वारा दिए जाने का स्वीकृति पत्र।
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