भारतीय स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडेय
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी - मंगल पाण्डे एक शहीद
29 मार्च 1857 कोमंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल बजा दिया -
मंगल पांडे भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे। , उस समय की पहली बड़ी घटना थी, जिसे बाद में 'भारत माता की जय' के नाम से जाना गया।
संक्षिप्त जीवन परिचय -
नाम - मंगल पांडेय
जन्म - 19 जुलाई 1827
जन्म स्थान - अकबरपुर (दुगवारहीमपुर,बलिया यूपी)
मृत्यु - 8 अप्रैल 1857
मृत्यु स्थान - बेरकपुर
पिता - दिवाकर पांडेय
माता - अभयरानी पांडेय
व्यवसाय - बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की 31वीं रेजीमेण्ट की 6th कंपनी में सिपाही। (1849 में 22 वर्ष आयु)
मृत्यु का कारण - 1857 की क्रांति के कारण फांसी (29 मार्च 1857 को ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला)
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857
भारतीय स्वतंत्रता सेनानीयों ने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।मंगल पांडे और साथियों द्वारा गाय/सुअर की चर्बी लगे कारतूस को मुँह से काटने से मना कर दिया गया।
सिपाहियों को पुरानी 0.577 केलीबर की ब्राउन बैंस बंदूक के स्थान पर नई केलिबर की पैटन 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयी। इस नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नई एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस डालना पड़ता था। नमी से बचाने हेतु कारतूस के बाहरी आवरण पर गाय/सुअर की चर्बी लगी होती थी। सिपाहियों ने धार्मिक भावना का हवाला दे कर इन कारतूसों का उपयोग करने से मना कर दिया।
29 मार्च 1857 को कलकत्ता के निकट बैरकपुर परेड मैदान में मंगल ने रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। पूरी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से आत्महत्या की कोशिश में घायल हो गए। 06 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर 08 अप्रैल 1857 को बैरकपुर में फ़ांसी दे दी गई।
बैरकपुर छावनी विद्रोह का प्रभाव -
मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की आग अन्य छावनियों में पहुंच गई। 10 मई सन् 1857 को मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में सेना में बगावत हो गई। यह विद्रोह देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे।
विद्रोह दबा दिया गया पर अंग्रेज सरकार ने लगभग 34735 कानून लागू किये ताकि और मंगल पाण्डेय पैदा ना हो सकें।
यादें
भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।
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