भारत का विभाजन एक परिचय
ब्रिटिश भारत में सम्मिलित देश
1. भारत
2. पाकिस्तान
3. बांग्लादेश
4. बर्मा
5. श्रीलंका
6. गोआ (फ्रांस)
7. लक्ष्यद्वीप (पुर्तगाल)
आज के दिन भारत एक राष्ट्र नहीं है, यहाँ पर दो राष्ट्र हैं, हिन्दू और मुसलमान।
- विनायक दामोदर सावरकर (1937 प्रयागराज)
हिन्दुओं और मुसलमानों के धर्म, विचारधाराएँ, रीति-रिवाज़ और साहित्य बिलकुल अलग-अलग हैं। एक राष्ट्र बहुमत में और दूसरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बाँध कर रखने से असंतोष बढ़ कर रहेगा और अंत में ऐसे राज्य की बनावट का विनाश हो कर रहेगा।
- मोहम्मद अली जिन्ना (1940)
हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग गठबंधन सरकार
1944 में कांग्रेस ने अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन अन्तर्गत विरोध स्वरूप कई प्रदेशों में अपनी सरकारों से इस्तीफा दिलवाया तो दोनो संघों ने मिलकर सरकार बनाई।
03 मार्च, 1943 को जब सिंध विधानसभा ने एक प्रस्ताव पेश किया और चर्चा कर उसे पारित किया. सैयद ने वायसराय से सिफारिश की, “भारत के मुसलमान एक अलग राष्ट्र हैं.” हिंदू महासभा के नेता सरकार में थे। हालांकि हिंदू महासभा के मंत्रियों ने प्रस्ताव का विरोध किया और इसके खिलाफ मतदान किया, लेकिन वे सरकार में बने रहे।
ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिए। केवल हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग पर कोई प्रतिबंध नहीं था तब बंगाल,पंजाब और सिंध में हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर गठबंधन सरकारें चलाई।
अविभाजित भारत 1947
अविभाजित भारत कश्मीर, पाकिस्तान पूर्वी, पाकिस्तान पश्चिमी, हैदराबाद और गोआ और भारत
मेरी आत्मा इस विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है कि हिन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृतियाँ हैं। ऐसे सिद्धांत का अनुमोदन करना मेरे लिए ईश्वर को नकारने के समान है।
- महात्मा गांधी
स्वतंत्रता आंदोलन के परवान चढ़ने से अंग्रेज सरकार ने भारत को आजाद करने का अंतिम फैसला किया। इस निर्णय से भारत में चल रहा द्विराष्ट्र का झगड़ा भी परवान चढ़ा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह और तीव्र हो गया। सनातनी, सिख और मुसलमानों के बीच हिंसा शुरू हुई।
1945 हुए चुनाव में ब्रिटेन में सरकार बदली और एटली प्रधानमंत्री बने।नई सरकार ने भारत की आज़ादी का निर्णय किया। ब्रिटिश सरकार ने इस हेतु क्रिप्स मिशन भारत भेजा। आखिर में माउंटबेटन योजन के अंर्तगत भारत का विभाजन हुआ और स्वतन्त्रता की घोषणा हो गई।
पृष्ठभूमि -
भारत की आज़ादी की लड़ाई के तीन महत्वपूर्ण बिंदु रहे
1. कांग्रेस
2. ब्रिटिश
3.. सामाजिक और धार्मिक संस्थाएं
कांग्रेस से समय समय पर वैचारिक मतभेद के कारण भारत में कई नई संस्थाएं बनी। सभी संस्थाएं मुख्य रूप से कट्टर धार्मिक भावनाओं के अतिरेक का कारण बनी। यह कहानी शुरू होती है 1905 के बंगाल विभाजन से जिसे धर्म के आधार पर 1905 में पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के रूप में दो भागों में बांटा गया। उस समय भारत के गर्वनर जनरल लार्ड मिंटो थे।
द्वि राष्ट्र सिद्धांत
मुस्लिम लीग
हिंदू महासभा
आरएसएस
मुस्लिम लीग
अखिल भारतीय मुस्लिम लीग (एआईएमएल) का 1906 में राजनैतिक दल के रूप में ढाका में गठन हुआ। इसका प्रारंभिक उद्देश्य मुस्लिम हितों का संरक्षण करना था। कांग्रेस ने 1905 के बंगाल विभाजन का भारी विरोध प्रदर्शन किया। इसरत पैलेस ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम शिक्षा सम्मेलन की वार्षिक बैठक 1906 आयोजित हुई जिस में ढाका के नवाब ख्वाजा सलीमुल्लाह ने मुस्लिम हितार्थ राजनीतिक दल बनाने का प्रस्ताव रखा, सर मियां मुहम्मद शफी (लाहौर) ने इसका नाम ऑल इंडिया मुस्लिम लीग सुझाया जो सर्वसम्मति से पारित हुआ। 1905 के बंगाल के विभाजन के बाद मुस्लिम लीग ने पूर्वी बंगाल में सरकार बनाई जिसमें ख्वाजा नजीमुद्दीन पहले मुख्यमंत्री बने।
1915 के हिंदू सभा के प्रस्ताव द्वि राष्ट्र सिद्धांत के अनुसार भारत में दो संस्कृतियां पृथक - पृथक हैं जो एक राष्ट्र नहीं हो सकती का आंशिक समर्थन लीग ने किया। जिसका 1916 में कांग्रेस ने राष्ट्रीय अधिवेशन में विरोध किया। पहले इकबाल कभी भी विभाजन के पक्षधर नहीं थे। वो भारत में वो संघीय व्यवस्था चाहते थे जहां मुस्लिम हित सुरक्षित रहे। इकबाल ने इलाहाबाद के संबोधन में भारतीय संघ के भीतर मुस्लिम बहुल प्रांत का प्रस्ताव रखा, न कि स्वतंत्र देश का। - डॉ. सफ़दर महमूद। एडवर्ड थॉम्पसन के साथ बातचीत में इकबाल ने कहा कि उन्होंने मुस्लिम लीग के सत्र में अध्यक्ष के रूप में अपनी स्थिति के कारण पाकिस्तान की वकालत की, लेकिन उन्हें यकीन था कि यह पूरे भारत और खासकर मुसलमानों के लिए हानिकारक होगा। विभाजन की मांग 1930 में सर मुहम्मद इकबाल की मुस्लिम बहुल क्षेत्र को पृथक देश पाकिस्तान के रूप में मान्यता देने की मांग पर जोर पकड़ा।
कांग्रेस ने भारत के सैनिकों को बिना भारतीय पार्टियों से परामर्श किए सेकंड वर्ल्ड वार में झोंकने का विरोध किया परंतु मुस्लिम लीग ने ब्रिटेन का समर्थन किया। अक्टूबर 1908 के आदेश के अनुसार मुसलमानों को मांग से कम सीटें दी गई। 1909 में मुस्लिम लीग के सदस्यों ने भारत और लंदन में विरोध प्रदर्शन किया। सरकार ने मोर्ले - मिंटो समिति का गठन किया। मिंटो का मानना था कि मुसलमानों को पर्याप्त दिया जा चुका है जबकि मोर्ले के अनुसार और अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। मुस्लिम लीग की केंद्रीय समिति ने 12 सितंबर 1909 को अलग निर्वाचन क्षेत्र और अधिक प्रतिनिधित्व की मांग की। आगा खान के समझौते के अनुसार मुस्लिमों को इंपीरियल काउंसिल में दो अतिरिक्त सीटें आरक्षित की गई। 28 जनवरी 1933 को, पाकिस्तान नेशनल मूवमेंट के संस्थापक चौधरी रहमत अली ने अभी या कभी नहीं किताब में पकिस्तान की व्युत्पत्ति पर विस्तार से चर्चा की -पाकिस्तान फ़ारसी और उर्दू का शब्द है। यह हमारे सभी मातृभूमियों के नामों से लिए गए अक्षरों से बना है जिसमें पंजाब, अफ़गानिस्तान (उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत), कश्मीर, ईरान, सिंध (कच्छ और काठियावाड़ सहित), तुखारिस्तान, अफ़गानिस्तान और बलूचिस्तान शामिल है। विभाजन से पहले मुस्लिम लीग पर आरोप है कि मुल्तान, रावलपिंडी, कैंपबेलपुर, झेलम और सरगोधा के साथ-साथ हजारा जिले में सनातनियों और सिखों के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा में लिप्त भीड़ का प्रत्यक्ष समर्थन और सहायता की। 1947 में भारत के विभाजन के बाद मुस्लिम लीग को भंग कर दिया गया। नए भारत केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने ली जो केरल में सक्रिय और यूपीए का घटक दल है।
हिंदू महासभा
कांग्रेस से अलग हो कर मदन मोहन मालवीय ने सन 1915 में हिंदू महासभा (पूर्व में गठित हिंदू सभा का पुनर्गठन) का गठन किया। महासभा ने ब्रिटिश राज से पहले के रूढ़िवादी हिंदुओं के हितों की सुरक्षा हेतु दबाव बनाने के लिए हिंदू महासभा का गठन किया गया। महासभा बाद में 1930 में विनायक दामोदर सावरकर के नेतृत्व में एक अलग पार्टी का रूप कार्य करने लगी। जिन्होंने हिंदुत्व की अवधारणा विकसित की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद का कड़ा विरोध किया।
हिंदू महासभा की विचारधारा
हिंदू महासभा भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करना चाहती थी। हिंदू महासभा भारत में जाति, वर्ण और वैदिक व्यवस्था की समर्थक रही है। हिंदू महासभा ने हिंदी हिंदू हिंदुस्थान (हिंदुस्तान के नाम पर) का नारा दे कर हिंदुत्व के सिद्धांतों को बढ़ावा देती है।
महासभा ने एक राष्ट्र एक कानून लागू करना चाहती थी। बढ़ती आबादी के लिए मुसलमानों और ईसाइयों को जिम्मेदार ठहराती है। द्वितीय विश्व युद्ध में महासभा ने ब्रिटिश सरकार का समर्थन किया और प्रांतीय और केंद्रीय विधान परिषदों में मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया। सन 1946 में कांग्रेस द्वारा मुस्लिम लीग हिंदू महासभा में समझौते के प्रयास किए। वार्ता की असफलता के बाद मुहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम राज्य बनाने के लिए प्रत्यक्ष कार्रवाई का आह्वान किया। इससे सम्पूर्ण भारत में हिंसा बढ़ गई और गृहयुद्ध की स्थिति बन गई जिससे अगस्त में कलकत्ता में सेना तैनात करनी पड़ी। हिंसा बॉम्बे, दिल्ली और पंजाब तक फैल गई। महासभा ने स्पष्ट घोषणा की कि भारत में हिदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते।
लार्ड माउंटबेटन योजना
प्रधानमंत्री एटली द्वारा लॉर्ड माउंटबेटन को भारत के विभाजन और सत्ता के जल्द हस्तान्तरण के लिए भारत भेजा। 3 जून 1947 को समस्या के समाधान हेतु विभिन्न चरणों में कार्य निष्पादन हेतु योजना प्रस्तुत की गई।
1. भारत विभाजन पर सहमति
2. सत्ता हस्तांतरण और सरकारों को संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता।
3. बंगाल और पंजाब विभाजन और उत्तर पूर्वी सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह कराया जाना।
4. पाकिस्तान संविधान निर्माण हेतु पृथक संविधान सभा का गठन।
5. रियासतों को पाकिस्तानया भारत में सम्मिलित होने या स्वतन्त्र इकाई के रूप में रहने की छूट।
6. सत्ता हस्तान्तरण का दिन 15 अगस्त 1947 तय।
7. सीमा रेखा हेतु आयोग का गठन
8. इस योजना के अनुसार भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947, ब्रिटिश सरकार द्वारा जुलाई 1947 में पारित।
9. भारत पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देगा। (संपत्ति बंटवारा) ।
अवधारणा -
भारतीय मुसलमान हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दु नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने को हिन्दुओं के प्रति भेदभाव मानने लगे। अतः दोनो ही पक्षों में अलगाव बढ़ता गया जो अनियंत्रित दंगों का रूप ले लिया। इन दंगों हेतु मुस्लिम लीग,हिंदू महासभा और आरएसएस जिम्मेदार रहे।
विभाजन की कार्यवाही -
भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम भारत - पाकिस्तान पृथक - पृथक गणराज्य की घोषणा के साथ ही 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्रता दे दी जाएगी। श्रीलंका (सिलोन) व बर्मा (म्यांमार) को अलग राष्ट घोषित किया गया। लार्ड लुईस माउंटबेटन की उपस्थिति में लियाकत अली खान के सुझाव के अनुसार पाकिस्तान स्वतन्त्रता कार्यक्रम 14 अगस्त (27 रमजान) कराची और भारतीय स्वातंत्रता कार्यक्रम नई दिल्ली में 15 अगस्त को आयोजित हुआ।1944 में मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन डे दंगों में दोनो पक्षों की महिलाओं को अधिक सताया गया। नोआखली (बंगाल) की हिंसा में हिंदू और 1946 पटना (बिहार) हिंसा में मुस्लिम महिलाओं का अपहरण कर यातनाएं दी गईं। हजारों महिलाओं ने आत्महत्या की। नवंबर 1946 में, गढ़मुक्तेश्वर, अमृतसर में नग्न महिलाओं की परेड कर बलात्कार किया गया था। कहा जा सकता है वर्तमान मणिपुर जेसे हालत थे।
अधिकांश महिलाओं ने परिवारों में अस्वीकार्यता के डर वापस जाने से मना कर दिया कि उनके परिवार उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेंगे।
कांग्रेस के अधिकतर नेता पंथ-निरपेक्ष थे और संप्रदाय के आधार पर भारत का विभाजन करने के विरुद्ध थे। 2016 के अधिवेशन में कांग्रेस ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी धर्म आधारित दल और संगठन के साथ नहीं है।महात्मा गांधी का विश्वास था कि हिन्दू और मुसलमान साथ रह सकते हैं और उन्हें साथ रहना चाहिए। उन्होंने विभाजन का घोर विरोध किया।
मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिधी कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे शुरू हो गए। जिसमें हजारों लोग मारे गये और कई हजार घायल। देश में आंतरिक अशांति फेल गई। लगभग पूरा उत्तर भारत पंजाब, बंगाल, बिहार, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और कश्मीर इस आग में जल उठे। यह एक तथ्य है कि दक्षिण भारत इन दंगों से लगभग बचा रहा। इस स्थिति में अंग्रेज सरकार और भारतीय नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश में गृह युद्ध की स्थिति न आ जाए।
विभाजन कार्यवाही को 3 जून योजना या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की जिसे आज भी रेडक्लिफ कहा जाता है। सनातन बहुल क्षेत्र भारत और मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान बना। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित हुआ जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। 591 रियासतों ने ब्रिटिश सरकार से पृथक - पृथक समझौते कर रखे थे को स्वतंत्रता दी गई कि वो चाहें तो स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर सकते हैं और चाहेँ तो भारत या पाकिस्तान में सम्मिलित हो सकते हैं। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया।
ब्रिटिश सरकार की असफल नीति और विभाजन -
ब्रिटिश सरकार द्वारा उक्त समय में कई देशों को स्वतन्त्र किया गया और उनका विभाजन भी किया गया। आधिकांश विभाजन धर्म और नस्ल के आधार पर हुई घोर हिंसा के कारण हुए। इनकी वास्तविक जांच की जय तो तथ्य होगा कि सभी विभाजन और हिंसा का मुख्य उद्देश्य सत्ता की प्राप्ति था। भारत में मोहम्मद अली जिन्ना और जवाहरलाल नेहरू के साथ श्यामाप्रहाद मुखर्जी और सावरकर सत्ता की मुख्य धुरी रहे। भारत के साथ ही आयरलैंड, फिलिस्तीन और साइप्रस का भी विभाजन हुआ जिसमें धार्मिक एवं नस्लीय कारणों के अलावा इसमें ब्रिटेन के सामरिक व राजनीतिक हित शामिल थे। ब्रिटेन दिरीय विश्व युद्ध के बाद अपने उपनिवेशों को संभालने में असमर्थ हो चुका था। हर जगह स्वातंत्रत के आंदोलन चल रहे थे। सत्ता के हस्तांतरण से पूर्व कानून - व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी ब्रिटिश सरकार की थी, जिसे वह पुएं नहीं कर पाई और स्वतंत्रता से पूर्व भारत और पाकिस्तान की सरकारों पर अतिरिक्त भार आ गया और दोनों ही सरकारें विफल रहीं। बिगड़ी व्यव्स्था ने लाखो जानें लीं।
आजादी के बाद के हालात और दंगे -
आजादी के बाद दोनों देशों ने दंगे रोकने और शरणार्थियों को यथा स्थान पहुंचाने का कार्य शुरू किया। बडी संख्या में लोग विस्थापित हुए। इस विस्थापन में तीन संख्याएं थी,
1 सिक्ख समुदाय
2 मुसलमान
3 सनातन
सर्वाधिक मारकाट सिक्ख और मुस्लिम समुदाय में हुई, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सनातन और मुस्लिम में भी बड़ी मारकाट हुई। भारत सरकार के अनुसार उस समय 60 हजार के करीब महिलाओं का अपहरण और बलात्कार हुआ, इसी तरह पाकिस्तान सरकार ने भी बड़ी संख्या में ऐसा होने का दावा किया।
दो देशों के मध्य सम्पत्ति का बंटवारा
माउण्टबैटन समझौते के अनुसार भारत सरकार की ओर से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपये की देने का परामर्श दिया गया। दोनों देशों के मध्य संपत्ति बंटवारे की प्रक्रिया बहुत लंबी होने पर गांधीजी ने सरकार पर अनशन कर दबाव बनाया कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए जल्दी भेजे।
12 .10.1947 को पाकिस्भाताn ने भारत के कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। इस कारण भारत सरकार इस राशि को रोकना चाहती थी। को इस आगे झुकना पड़ा और यह राशी दिसंबर 1947 में भेज दी गई। कट्टर पंथी लोगों ने इसका विरोध किया। गांधी की भावना आम जन समझ ना सका और उनके विरोध में खड़े हो उठे। यही कारण बता कर गोडसे और उसके साथियों ने गांधी की हत्या की।
भारत विभाजन और सीमा विवाद
माउंटबेटन बहुत जल्दबाजी में थे, उनके पास कोई वास्तविक विकल्प नहीं बचा था और उन्होंने कठिन परिस्थितियों में सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश की।
उन्होंने ने रैडक्लिफ रेखा तय करने के साथ ही विभाजन प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। सीमा आयोग द्वारा भारत - पाकिस्तान मध्य अंतिम सीमा का निर्धारण करने से पहले स्वतंत्रता प्रदान कर दी गई।
सेना का विभाजन
संसाधनों के साथ साथ ब्रिटिश भारतीय सेना का भी विभाजन को हुआ जिसका नेतृत्व फील्ड मार्शल सर क्लाउड औचिनलेक ने किया।
चार लाख सैनिकों का धर्म के आधार पर बंटवारा हुआ जिनमें से लगभग 260,000 सैनिक भारत के हिस्से में 140,000 पाकिस्तान गए। नेपाल की गोरखा ब्रिगेड को भारत और ब्रिटेन के बीच विभाजित किया गया।
कई ब्रिटिश अधिकारी इस कार्य हेतु भारत में ही रूम रहे। जिनमें जनरल सर रॉबर्ट लॉकहार्ट और पाकिस्तान के जनरल सर फ्रैंक मेसेर्वी दोनों देशों में प्रथम सेना अध्य्क्ष) शामिल थे। पाकिस्तान में 19वीं लांसर्स ने भारत में स्किनर हॉर्स से मुस्लिम सैनिकों के लिए अपने जाट और सिख सैनिकों का आदान-प्रदान किया। स्वतंत्रता के बाद सभी ब्रिटिश सैन्य कर्मी स्वदेश लौट गए।भारत छोड़ने वाली ब्रिटिश अंतिम इकाई प्रथम बटालियन, समरसेट लाइट इन्फैंट्री (प्रिंस अल्बर्ट) थी जो 28 फरवरी 1948 को बम्बई के र इंग्लैंड पहुंची।
शमशेर भालू खान
9587243963
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