मौलाना मुहम्मद अली जौहर
मौलाना मुहम्मद अली जौहर - भारतीय नेता, स्वतंत्रता सैनानी,शायर और पत्रकार थे। कामरेड और हमदर्द नाम के अख़बार निकाले। तत्कालीन भारत के बड़े लेखकों में गिने जाते थे। आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गाँधी के साथी, काँग्रेस अध्यक्ष रहे । शाय’री में मिर्ज़ा दाग़ देहलवी के शिष्य थे। सर सैयद अहमद खान के अलीगढ़ आंदोलन के सदस्य थे। पार्टी का अध्यक्ष चुना गया और यह संगठन, विशेष रूप से गांधी के साथ असहयोग आंदोलन के बेतरतीब अंत पर मतभेदों के कारण कुछ महीनों तक ही चला। बाद के वर्षों में, वह इसके विरोधी हो गए और गांधी और मोतीलाल नेहरू पर धार्मिक तुष्टिकरण का आरोप लगाया क्योंकि वे मुसलमानों को भारत में अल्पसंख्यक मानते थे और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में मुस्लिम मांगों को समायोजित करने से इनकार करते थे। मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य और 10वें अध्यक्ष के रूप में पहले गोलमेज सम्मेलन (लंदन) में भाग लिया।
सारी दुनिया समझती के सेदाई है, अब मेरा होश में आना तेरी रुसवाई है।
नाम - मोहम्मद अली खां
उपनाम - जौहर
पदवी - मौलाना
जन्म - 10 दिसम्बर 1878
कबीला - रोहिल्ला (यूसुफजई,पठान)
जन्म स्थान - रामपुर, रामपुर (यूपी)
मृत्यु - 4 जनवरी 1931 (उम्र 52)
मृत्यु का स्थान - यरूशलम, फिलिस्तीन (शांत स्थल)
व्यवसाय - स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार(द टाइम, द मैनचेस्टर गार्डियन, द ऑब्जर्वर में लेख लिखे और भारत में कामरेड (1911 में अंग्रेजी साप्ताहिक, कलकत्ता) हमदर्द (1913 में दिल्ली से उर्दू अखबार) अखबार निकाले), चिंतक, राजनेता, शायर, शिक्षा अधिकारी, सिविल सेवा अधिकारी बड़ौदा
राजनैतिक दल - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग 1906 में ढाका में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना बैठक में भाग लिया था और 1918 में इसके अध्यक्ष बने) खिलाफत आंदोलन में सक्रिय
विवाह - अमजदी बानो बेगम (1902–31)
पिता - अब्दुल अली खां (1883 में मृत्यु)
माता - आबदी बानो बेगम (बी अम्मा,1852 - 1924) (स्वतंत्रता सैनानी)
सहोदर -
1. मौलाना शौकत अली (स्वतंत्रता सैनानी)
2. जुल्फीकार अली (स्वतंत्रता सैनानी)
शिक्षा - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, ब्रिटेन (1898, लिंकन कॉलेज, ऑक्सफोर्ड से इतिहास का अध्ययन)
कलकत्ता से दिल्ली - सन 1912
कार्य - मोहम्मद्न एंग्लो इंडियन कॉलेज (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिय इस्लामिया, दिल्ली के संस्थापक सदस्य।
बी अम्मा
मौलाना शौकत अली खान अपनी अंग्रेज पत्नी के साथघटनाक्रम - सन 1919 में तुर्की के सुल्तान (खलीफा) को न हटाने हेतु ब्रिटेन गए पर सरकार द्वारा उनकी मांगों को अस्वीकार करने के बाद खिलाफत समिति का गठन हुआ, जिसने पूरे भारत में मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार का विरोध और बहिष्कार किया।1921 में, जौहर ने शौकत अली, अबुल कलाम आज़ाद, हकीम अजमल खान, मुख्तार अहमद अंसारी, सैयद अता उल्लाह शाह बुखारी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के साथ-साथ महात्मा गांधी के साथ एक व्यापक गठबंधन बनाया। जौहर ने गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान का भी पूरे दिल से समर्थन किया और पूरे भारत में सैकड़ों विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों को प्रेरित किया। उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया और खिलाफत सम्मेलन की बैठक में देशद्रोही भाषण के आरोप में 1921 में दो साल की कैद हुई और कराची सेंट्रल जेल में रखा गया। जौहर खिलाफत आंदोलन के असहज अंत और 4 जनवरी 1922 की चौरी चौरा घटना के कारण असहयोग आंदोलन को स्थगित करने गांधी जी के फैसले से निराश थे। हुआ यह कि प्रदर्शनकारियों और पुलिस के साथ झड़प में तीन प्रदर्शनकारियों की गोलियों से हत्या होने पर आंदोलनकारियों ने चोरा - चोरी पुलिस स्टेशन पर हमलाकर 22 पुलिस वालों को मार डाला। गांधीजी ने हिंसा से क्षुब्ध हो कर आंदोलन स्थगित कर दिया। गांधी जी के इस फैसले से नाराज हो कर कांग्रेस छोड़ कर दैनिक हमदर्द फिर से शुरू किया। तुष्टिकरण का आरोप लगा कर नेहरू रिपोर्ट (संवैधानिक सुधारों और ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वतंत्र राष्ट्र के प्रभुत्व का दर्जा देने वाला प्रस्तावित दस्तावेज) का विरोध किया। जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में साइमन कमीशन के विरोध में स्थानीय सरकार के गठन हेतु तैयार करवाया गया प्रस्ताव था। जौहर को जेल में डाल दिया गया तो नेहरू रिपोर्ट पर सर्वदलीय बैठक में मौलाना शौकत अली, अमजदी बेगम, और केंद्रीय खिलाफत समिति के अन्य 30 सदस्यों अब्दुल मजीद दरियाबादी,आजाद सुभानी, मगफूर अहमद एजाज़ी, अबुल मुहसिन मुहम्मद सज्जाद मुख्य थे ने भाग लिया। इस रिपोर्ट में मुस्लिम हित की अनदेखी का आरोप लगा कर आलोचना की गई। कांग्रेस से संबंधित अबुल कलाम आज़ाद, हकीम अजमल खान और मुख्तार अहमद अंसारी से नाता तोड़ लिया।
मृत्यु - लगातार जेल की सज़ा, मधुमेह और जेल में खानपान की कमी से जोहर बीमार रहने लगे। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद, वे 1930 लंदन में आयोजित पहले गोलमेज 'सम्मेलन' में आगा खां के साथ भाग लिया। लंदन में जोहर ने घोषणा की कि जब तक भारत को आज़ाद नहीं किया जाता मैं ज़िंदा भारत नहीं लौटूंगा, मैं एक अन्य देश में मरना पसंद करूँगा जब तक हम गुलाम हैं। यदि आप भारत को आज़ादी नहीं करते हैं, तो आपको मुझे यहाँ एक कब्र देनी होगी। 4 जनवरी 1931 को लंदन में ब्रेन स्ट्रोक से उनकी मृत्यु हो गई और उनके रिश्तेदारों, दोस्तो की अनुशंसा पर उन्हें खातुनिया मदरसा यारुसलम (डोम ऑफ रॉक के पास) में दफनाया गया।
जोहर का मकबरा (यरुशलम)यादें - भारत के रामपुर यूपी में आजम खान द्वारा मोहमद अली जोहर विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया गया जिसे वर्तमान सरकार ने नष्ट करने हेतु कई प्रयास किए। इसका एक हिस्सा ढहा दिया गया है। आजम खान को अनेक आरोप लगा कर बड़ी बना लिया गया है। पाकिस्तान सरकार ने स्वतंत्रता सैनानी जोहर के नाम 1978 में एक डाक टिकट जारी किया,गुलिस्तान ए जोहर स्कूल खोला गया और जोहराबाद कॉलोनी बसाई गई। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में मौलाना मोहम्मद अली जौहर अकादमी ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज प्रारंभ की गई। बांग्लादेश में मौलाना मुहम्मद अली जोहर कालेज ढाका, बंगलादेश खोला गया।
जोहर के एक भाषण के अंश - मुझे लंबे समय से यह विश्वास था कि करोड़ों लोगों के इस देश में, जो धर्म से बहुत जुड़े हुए हैं, और फिर भी असीम रूप से समुदायों, संप्रदायों में विभाजित हैं, ईश्वर ने हमारे लिए एक अनूठी समस्या को हल करने और एक नए संश्लेषण पर काम करने का मिशन बनाया था, जो कि धर्मों के संघ से कम कुछ नहीं था। बीस से अधिक वर्षों से मैंने एक ऐसे संघ का सपना देखा है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में अधिक भव्य, महान और अधिक आध्यात्मिक हो, और आज जब कई राजनीतिक द्वेष, हिंदू-मुस्लिम मतभेदों के बुरे पुराने दिनों की वापसी की भविष्यवाणी करते हैं, तब भी मैं 'भारत के संयुक्त धर्मों' का वही पुराना सपना देखता हूँ। मोहम्मद अली जौहर; अध्यक्षीय भाषण, कांग्रेस सत्र, 1923, कोकनाडा (अब काकीनाडा)।
पाकिस्तान गठन का समर्थन - 1922 के बाद नेहरू,गांधी और अबुल कलाम आजाद से अनबन शुरू हो गई। धीरे - धीरे वो मुहम्मद अली जिन्ना और इकबाल की मुहिम से जुड़ते गए और अंत में पृथक मुस्लिम देश पाकिस्तान की मांग का समर्थन शुरू कर दिया।
मौलाना मुहम्मद अली जोहर एक शायर - एक गजल
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के बाद
है इब्तिदा हमारी तेरी इंतिहा के बाद।
जीना वो क्या कि दिल में न हो तेरी आरज़ू
बाक़ी है मौत ही दिल-ए-बे-मुद्दआ के बाद।
तुझ से मुक़ाबले की किसे ताब है वकी
मेरा लहू भी ख़ूब है तेरी हिना के बाद।
इक शहर-ए-आरज़ू पे भी होना पड़ा ख़जिल
हल-मिम्मज़ीद कहती है रहमत दुआ के बाद।
लज़्ज़त हनूज़ माइदा-ए-इश्क़ में नहीं
आता है लुत्फ़-ए-जुर्म-ए-तमन्ना सज़ा के बाद।
क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है
इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद।
ग़ैरों पे लुत्फ़ हम से अलग हैफ़ है अगर
ये बे-हिजाबियाँ भी हों उज़्र-ए-हया के बाद।
मुमकिन है नाला जब्र से रुक भी सके अगर
हम पर तो है वफ़ा का तक़ाज़ा जफ़ा के बाद।
है किस के बल पे हज़रत-ए-'जौहर' ये रूकशी
ढूँडेंगे आप किस का सहारा ख़ुदा के बाद।
अमजदी बानो बेगम :
मृत्यु - 28.3.1947)
स्वतंत्रता सेनानी
जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता और इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदर रहे “मौलाना मोहम्मद अली जौहर” ने जो मुक़ाम हासिल किया था, उसमें तीन लोगों का अहम किरदार था, एक उनकी माँ बी अम्माँ, दूसरे उनके भाई मौलाना शौक़त अली और तीसरी उनकी बीवी अमजदी़ बेगम।
बी अम्मां जो ख़ुद एक मिसाल हैं
बी अम्मां की मदद से ही अमजदी बेगम ने ख़िलाफ़त तहरीक के लिए 1920 के समय 40 लाख रुपये का फंड जमा किया। बी अम्मा ने मरते दम तक तहरीक ए ख़िलाफ़त और मुसलमानों की बेहतरी के लिए जद्दोजेहद की। अपनी जिंदगी में उन्होंने अपने बेटों को ख़िलाफ़त तहरीक को जिंदा रखने और ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद रखने की तलकीन की। और यही तालीम विरासत मे उनकी बहुओं को भी मिली।
बी अम्मा को यह अनुमान हो गया कि उनके बेटे (मोहम्मद अली व शौकत अली) ब्रिटिश साम्राज्य की गर्म सलाख़ों की तपिश बर्दाश्त नहीं कर सके और माफ़ी मांगकर बाहर आज़ादी की फ़जा में आना चाहते हैं; ऐसे में एक मां को बेटों की आमद का इंतज़ार होना चाहिए था, लेकिन वह मां थी जिसने कहा था कि
"अगर मेरे बेटों ने फ़िरंगियों से माफ़ी मांग ली है और रिहा हो रहे हेै तो मेरे हाथों को अल्लाह इतनी क़ुवत दे कि मैं अपने हाथों से उनके गले दबाकर उन्हें हलाक कर दूं। ऐसी माओं की मिसाल नहीं मिलती। 13.11.1924 को उनका इंतकाल हो गया।
अमजदी बानो बेगम
महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका के चलते उन्हें 'A BRAVE WOMEN' का ख़िताब भी दिया था।
अमजादी बेगम ने पूरा जीवन अकेले दिल्ली के करोल बाग में एक छोटे से घर में बिता दिया और अज़ादी के कुछ दिनों पहले ही 28 मार्च 1947 में इस दुनिया से अलविदा हो गयी।
मौलाना मुहम्मद अली जौहर की पत्नी अमजदी बानो बेगम ने अपने शौहर की तरह भारत को आज़ादी दिलाने में अहम किरदार निभाया है।
उन्होंने शिक्षा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसका एक नमुना हमीदिया गर्ल्स स्कूल इलाहाबाद के रुप में देखने को मिलता है। जो आज हमीदिया कालेज के नाम से जाना जाता है। क़ौमी एत्तेहाद पैदा करने और मुसलमानों की तालीमी पसमांदगी को दूर करने के लिए 1920 में कौमी इदारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया कायम किया था पर जब ख़्वाजा अब्दुल हमीद सहेब जेल मे थे तब अमजदी बानो बेगम ने जामिया मीलिया इस्लामिया का सारा दारोमदार अपने काँधे पर ले लिया।
अमजदी़ बानो बेगम की पैदाइश 1885 में रामपुर मेंं हुई, वालिद साहब अज़मत अली ख़ान बड़े सरकारी ओहदे पर थे, माँ का इंतक़ाल बचपन में ही हो गया था। अमजदी़ बेगम की तालीम मज़हबी थी और घर पर ही हुई थी। 17 साल की उम्र में अमजदी़ बेगम की शादी 1902 में मौलाना मुहम्मद अली जौहर से हुई जो उस वक़्त ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी के तालिब इल्म थे, 1917 में अमज़दी बेगम ने मुस्लिम लीग के सालाना इजलास में हिस्सा लिया और 1920 में वो ऑल इंडिया ख़िलाफ़त कमिटी की महिला विंग की सेक्रेटरी बनायी गईं।
1921 में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में अमजदी बानो बेगम ने उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि की हैसियत से हिस्सा लिया। ख़िलाफ़त तहरीक में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाली अमजदी बानो बेगम ने अलीगढ़ में खादी भंडार खुलवाया जिससे वो स्त्रियों को स्वदेशी समान ख़रीदने के लिए प्रेरित करतीं और उन्हे रोज़गार मोहय्या कराती।
29.11.1921 के यंग इंडिया मे गांधी जी अमजदी बानो बेगम को ख़िताब करते हुए लिखते हैं - एक बहादुर औरत, बेगम मोहम्मद अली जौहर के साथ काम करने पर मुझे बहुत चीज़ का तजुरबा हुआ, वो शुरु से ही अपने शौहर के साथ उनके मक़सद मे कंधे से कंधे मिलाकर खड़ीं थी, उन्होंने ख़िलाफ़त तहरीक के लिए ना सिर्फ़ फ़ंड जमा किया बल्कि वो हम लोगों के साथ बिहार, बंगाल, आसाम जैसे रियासत के दौरे पर भी गई। लोगो के अंदर इंक़लाब की मशाल जलाई। मैं ये कह सकता हुँ कि वो किसी भी सुरत मे अपने शौहर से कम नही थी।
मद्रास में भाषण -
मद्रास समुंदर के किनारे एक अज़ीम जलसा मुनक़्क़िद किया गया था जिसमे बेगम मोहम्मद अली ने एक ज़बरदस्त इंक़लाबी तक़रीर की, जिसे अवाम ने हाथो हाथ लिया था; उनका भाषण लाजवाब था।
1930 मे लंदन मे हुए गोलमेज़ सम्मेलन में भी अमजदी बानो बेगम ने अपने पति मौलाना मुहम्मद अली जौहर के साथ हिस्सा लिया। मौलाना माजिद दरियाबादी कहते हैं कि जिस जगह और जिस मीटिंग में मौलाना जौहर होते वहाँ वहाँ अमज़दी बेगम होती थी। मौलाना मुहम्मद अली जौहर की वफ़ात के बाद उन्होंने मुस्लिम लीग ज्वाइन कर लिया था जिससे मौलाना के हज़ारों समर्थक लीग में चले गए। सन 1937 में मुस्लिम लीग का सालाना इजलास लखनऊ में हुआ जिसकी सदारत अमजदी बानो बेगम ने की। दिनांक 28.12.1938 को मुस्लिम लीग का सालाना इजलास मुहम्मद अली जिन्ना की सदारत में पटना में हुआ जिसमें मुस्लिम लीग की महिला विंग का एलान हुआ और उसकी पहली सदर यानी प्रेसीडेंट अमजदी बानो बेगम बनाई गई।
अमज़दी बेगम ने लड़कियों के लिए जहाँ एक तरफ हमिदिया गर्ल्ज़ स्कूल खोला वहीं अलीगढ़ में औरतों को रोज़गार मिले इसके लिए खादी भंडार की स्थापना की। वो अवाम तक अपनी बात को पहुँचाने के लिए; जनता के अंदर बेदारी और इंकलाब की मशाल जलाने के लिए रोज़नाम हिन्द के नाम से उर्दु अख़बार निकालना शुरु किया, और लगातार उसके एडिटर का काम भी अंजाम देती रहीं।
जब जामिया मीलिया इस्लामिया मुश्किल दौर से गुज़रा तो वहाँ भी मुश्किलों के सामने चट्टान की तरह खड़ी हो गई।
अमजदी़ जी की सारी ज़िंदगी आज़ादी की जद्दोजहद में गुज़री। मगर अफ़सोस! आज़ादी के सूरज रोशन होने से पहले (28.3.1947 को) उनका देहांत हो गया।

Second from left
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