Friday, 28 March 2025

✅मोहम्मद (स0) इब्न अब्दुल्ला

मोहम्मद साहब का परिवार वृक्ष
मोहम्मद साहब का नाम अरबी लिपि

600 ईस्वी पूर्व से 600 ईस्वी पश्चात का समय विभिन्न धर्मों के उदय और प्रसार का समय रहा है। इसी काल खंड में बुद्ध, महावीर स्वामी,मोहम्मद साहब, गोशाला, कांफ्युशियस, लाओ स्त्से तुंग, ईसा जरथुस्ट सहित अनेक धर्म उपदेशक पृथ्वी पर आए। इस समय मानवाधिकार और मानवीयता लगभग समाप्ति की ओर थे। ऐसा कोई बूरा काम नहीं था जो इस धरती पर नहीं हो रहा था। आदि मानव असभ्य अवश्य था पर इतना नृशंश नहीं। 
इस कड़ी में मानव उद्धार हेतु अरब की भूमि पर मोहम्मद साहब ने जन्म लिया।

मोहम्मद साहब और इस्लाम धर्म का उदय :-
इस्लाम धर्म इब्राहीमी सिलसिले का तीसरा धर्म है। जिसके प्रवर्तक मुहम्मद साहब थे।
इस्लाम का प्रारंभिक विकास अरब प्रायद्वीप में हुआ। इस्लाम का शाब्दिक अर्थ “ईश्वर के प्रति समर्पित।जिसके मानने वाले मुस्लिम(मानने वाले,विश्वास करने वाले) कहलाते हैं। दूसरा शब्द काम मे लिया जाता है मुसलमान।

मोहम्मद साहब का व्यक्तिगत परिचय:-
जन्म- 20 अप्रेल 570  सुबह 4 : 45 मिनिट 12 रबीउल अव्वल आमून फील (हाथी का महीना) सोमवार,
(अब्राह की चढ़ाई के 55 दिन बाद 40 जूलूस ए किसरा ए नोशेरवाँ)
जन्म स्थान -मक्का शहर (हिजाज़)
देहान्त (विषाल) - तीसरी पत्नी आयशा के कमरे में 8 जून 632 शाम के समय 12 रबीउलअव्वल यशरब (मदीना)
मृत्यु का कारण :- बुखार
स्थान -मस्जिदे नबवी मदीना शहर (यशरब) आयशा के हुजरे में।
नाम -अमीन (सच्चा) मोहम्मद इब्न अब्दुल्लाह 
(मोहम्मद शब्द का अर्थ प्रतिष्ठित, अत्यंत गुणवान सर्वोच्च प्रशंसा योग्य)
प्रसिद्ध नाम :- मोहम्मद इब्न अब्दुल्लाह,मुस्तुफा
पिता का नाम -अब्दुल्लाह इब्ने अबुल मुत्तलिब (पिता का देहांत जन्म से पूर्व 569 ईस्वी में ससुराल मदीना के अबवा में)
माता का नाम -आमना  बिन्त अबु लहब (माता की मृत्यु जन्म के छः वर्ष बाद मदीना पीहर मिलने गई वहां अबवा में 577 ईस्वी सन में मृत्यु हुई)
पैतृक धर्म - मक्का व अरब का मूल धर्म हनीफ (इस्माइल के वंशजों का धर्म)
दादा का नाम -अब्दुल मुत्तलिब (बचपन से पालनहार,जन्म के आठ बरस बाद मृत्यु)
चाचा का नाम -अबु तालिब इब्ने अबुल मुत्तलिब मृत्यु 619 में।
चाची - फ़ातिमा बिन्त असद
(दादा की मृत्यु के बाद पालनहार)
शिक्षा-दीक्षा :- उम्मी (अनपढ़)
रजा इ मां - साअद कबीले से बीबी हलीमा 
दूध शरीक चार भाई बहन थे - 
1. अब्दुल्ला
2. अनीसा
3.
4.
जीवन की पहली घटना - 
चार साल की उम्र में जंगल में बकरियां चराते समय फरिश्तों ने सीना चीर कर दिल में से काला धब्बा (नुक्ता) निकाल कर फेंक दिया और आंतों को धोया।
व्यवसाय :- 
1 बचपन में बकरियों को चराई  571 से 583
2 चाचा अबु तालिब के व्यवसाय में हाथ बंटाया 583 से 588 शिरिया (शाम ) का सफर 13 साल की उम्र में।
3 अरब की प्रसिद्ध महिला व्यवसायी खतीजा बिन्त खुवलीद के व्यापारिक प्रतिनिधि के रूप में उनके नौकर मैसरह के साथ (सन 588 से 610)
4 मक्का में धर्म प्रचार सन 610 से 622
5 खुद के कबीले अल कुरैश से संबंध विच्छेद सन 615 में
6 सन 620 में साथियों को धर्म रक्षा व मक्का के लोगों से प्रताड़ना पर सहायता हेतु इथोपिया भेजा।
7 मदीना प्रवास व धर्म प्रचार 622 से 632
कबीला -कुरैश
खानदान- हासमी
ज्ञान प्राप्ति : -
610 गारे हीरा नामक स्थान पर (लगभग 40 वर्ष की आयु में) 

ज्ञान प्राप्ति पर विश्वास करने वाले :-
1 प्रथम महिला -खतीजा बिन्त खुवलीद(पत्नी)
2 बालक - अली इब्ने अबु तालिब (चाचा का बेटा भाई जिसे मोहम्मद साहब ने पांच साल की उम्र से पाला बाद में बेटी फ़ातिमा का विवाह किया)
3 अबूबक्र सिद्दीक़

मक्का शहर छोड़कर मदीना निवास :- 
ज्ञान प्राप्ति (नबूवत) के 12 साल बाद 53 साल की उम्र में दिनांक 16 जुलाई सन 622 (हिज़री 01 ज़ुल्हिज़्ज़ ) शुक्रवार के दिन जब मक्का के लोग जान के दुश्मन बन गये तो मक्का छोड़ कर मदीना चले आये जहां उनको मानने वालों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती गई। इस यात्रा को हिज़रत कहते हैं। हिज़री सन की शुरुआत इसी दिन से हुई। हिज़रत से पहले मदीना शहर का नाम यशरब था जो बाद में तुन्नवी या मदीना नाम से जाना जाने लगा।

हिजरी वर्ष के महीनों के नाम
01). मुहर्रम (प्रथम माह) (इमाम हुसैन की शहादत)
02). सफ़र
03). रबीउल अव्वल
04). रबीउल आखिर
05). जमादि. उल अव्वल
06). जुमादा. अल आखिर
07). रज्जब
08). शाबान
09). रमजान (रोजा)
10). शव्वाल (ईद)
11). जिल कदा
12). जिल हज (अंतिम माह) (ईद उल जुहा)

कुरआन की पहला पाठ (आयत) अवतरित : - सन 610 मक्का (जिब्रील(एक फरिश्ते का नाम) द्वारा ईश्वर के सन्देश नबी(ईश्वर के सन्देश वाहक) तक पहुंचाना जिसे अरबी में वही (फरिश्ते के माध्यम से ईश्वर के सन्देश नबी तक पहुंचने की क्रिया)  हैं। इकरा बिस्मि रब्बी कलज़ीना ख़लक (पढ़ो उसके नाम से जो पूरी सृष्टि का पालन करता है।

मेराज का सफर :-
 620 में बुर्राक नाम के फरिश्ते की सवारी कर मस्ज़िद अल अक्सा फिलिस्तीन से इश्लोक का भ्रमण किया जहाँ पूर्व के सभी नबियों से मुलाकात हुई। यहां पाँच समय की नमाज़ व 30 दिन के रोज़ों का तोहफा दिया गया।
वहाँ उन्होंने जन्नत व जहन्नुम (स्वर्ग-नरक) का भी भ्रमण किया।

जंग (युद्ध) :-
623 बद्र की लड़ाई
625 उहूद की लड़ाई
627 खाई की लड़ाई
628 हुदैबिया संधी क़ुरैश खानदान से
629 मक्का विजय

विवाह:- 
कुल 13 विवाह किये जिनमे से 3 कंवारी (एक मिश्र मूल की दासी, 10 विधवा जिन में से 09 विभिन्न युद्धों में शहीद हुये साथियों की पत्नियां।

1 खतीजा (ज़हरा तूल कुबरा) बिन्त खुवायलद (विधवा) :-
पिता अबु खुवेलिद बिन असद
पिता का घराना- बानू असद
जन्म-555 मक्का
मृत्यु- 619 मक्का हिजाज़ (जन्नत अल मुआला)
विवाह का वर्ष-597
पूर्व पति - अबु हाला (अबु हाला से एक सन्तान हिन्द बिन अबु हाला)
सन्तान -
1 कासिम बिन मोहम्मद 
जन्म- 598 मक्का
मृत्यु- 601 मक्का
विशेष- 4 साल की उम्र में मृत्यु
2- अब्दुल्लाह इब्ने मोहम्मद 
जन्म- 611 मक्का
मृत्यु - 613 मक्का
(3 साल की उम्र में मृत्यु)
3 जैनेब बिन्त मोहम्मद
जन्म 608 मक्का
मृत्यु- 628 मदीना
पति - अबु अल रबी
सन्तान-
1 अली इब्ने अबु अल रबी
2 उमामा इब्ने अबु अल रबी
विशेष-
4 फ़ातिमा बिन्त मोहम्मद 
जन्म - 605 मक्का
मृत्यु -  सितम्बर 632 मदीना
विशेष- अली से विवाह जिस से हसन,हुसैन,जैनब,उम्मे कुलसुम व एक अजन्मा बच्चा (मोहसीन) पति की रक्षा करते हुये पिता की मृत्यु के 90 दिन बाद सितम्बर 632 में मृत्यु
5 रुकय्या बिन्त मोहम्मद 
जन्म- 601 मक्का
मृत्यु- 624 मदीना
सन्तान- नहीं
विशेष- तीसरे ख़लीफ़ा उस्मान से विवाह
6 उम्मे कुलसुम बिन्त मोहम्मद 
जन्म- 603 मक्का
मृत्यु- 630 मदीना
सन्तान - नहीं
(बड़ी बहन रुकय्या की मृत्यु के बाद तीसरे ख़लीफ़ा उस्मान से विवाह)
विशेष :- उम्र में मोहम्मद साहब से 15 वर्ष( 555 -671)बड़ी सऊदिया अरब की प्रसिद्ध व्यवसायी महिला जिस ने नबी पर ईमान(विश्वास) ला कर अपना सब धन धर्म प्रचार में लगा दिया व साधारण जीवन यापन किया।

2 सोदा (सौदाहि) बिन्त ज़मआ (विधवा) :-
पिता- जमआ इब्ने कैश
पिता का घराना- बानू अमीर
जन्म-566 मक्का
मृत्यु-644
विवाह का वर्ष-619
पूर्व पति- सकाम (619 में मृत्यु) सकाम से एक सन्तान हुई जिस का नाम अब्दुर्रहमान बिन सकाम था।
सन्तान - नहीं हुई
विशेष- दूसरी पत्नी

3 आयशा बिन्त अबी बक्र :-
पिता- अबूबक्र इब्ने गफ्फान
पिता का घराना- बानू तेम
जन्म- 612 मक्का
मृत्यु- 13 जुलाई 678 मदीना
विवाह का वर्ष -623
सन्तान- नहीं हुई
विशेष - सबसे प्रिय पत्नी (प्रथम कंवारी पत्नी)  अबूबक्र की बेटी जिसने ऊंट की लड़ाई (अली व माविया के बीच) माविया के साथ रहीं बाद में अली ने अपनी रक्षा में ले लिया। आयशा ने मोहम्मद साहब की हदीष को संकलित करने का कार्य किया। एक बार इन पर किसी अन्य व्यक्ति ने गैर चलन का आरोप लगाया था।
कवि,सैन्य प्रशिक्षण
आयशा के बारे में कुछ गलत बातें जो लोग करते हैं उनके अनुसार आयशा की शादी नबी से 06 साल की आयु में की गई जो बिलकुल गलत है। जन्म 612 और शादी 623 लगभग 12 साल की आयु का अंतर है। इसके बाद लगभग 02 वर्ष आयशा का गौना नहीं हुआ।

4 हफ्सा बिन्त उमर - (विधवा) :-
पिता - उमर
पिता का घराना- बानू आदि
जन्म- 605 मक्का
मृत्यु- अक्टूबर 665 मदीना
विवाह का वर्ष- 625
पूर्व पति- खुनेश इब्ने हुदैया 624 में मृत्यु
सन्तान- नहीं हुई
विशेष- ख़लीफ़ा अबूबक्र द्वारा चर्म पत्रों पर संकलित की गई कुरआन की प्रतियां (पांडुलिपि) सुरक्षित कर उस्मान को सौंपी जिन्हें बाद में प्रकाशित करवाया गया।

5 ज़ैनब बिन्त खुज़ैमा (उम्म अल मसाकीन) :-
(विधवा) रसूल की फूफी की बेटी।
पिता - खुमेजा 
पिता का घराना- बानू हिलाल
जन्म- 596 मक्का
मृत्यु- 625 मदीना
पूर्व पति-- जैद 624 में मृत्यु (एक गुलाम जिसे अल्लाह के नबी ने आजाद कर दिया था और जैनब से निकाह करवा दिया था। जैद अल्लाह के नबी के मुंह बोले बेटे थे। अल्लाह ने इस रिश्ते को नापसंद किया। जैद की जैनब से अनबन हो गई और तलाक हो गया। इसके बाद अल्लाह के नबी से उनका निकाह हुआ।
कुछ लोग इल्जाम लगाते हैं कि नबी ने अपने बेटे की बहु से निकाह किया। यह गलत है क्यों कि इस्लाम में मुंह बोला कोई रिश्ता मान्य नहीं है।
इस मामले में (सुरह 33 अहजाब पारा 21) नाजिल हुई जिसमें घूंघट का जिक्र भी है।
विवाह का वर्ष 624
सन्तान- नहीं हुई
विशेष--

6 हिन्द (सलमा) बिन्त अवि उमय्या (विधवा) :-
पिता- अबु उम्मया
पिता का घराना- बानू मखज़्म
जन्म -568 मक्का
मृत्यु 686 मदीना
विवाह का वर्ष 627
पूर्व पति- अबु सलामा 624 में मृत्यु  इनसे 5 सन्तान हुईं ज़ेनब,सलमा,ज़राही,उमर व रुक़य्या
सन्तान-नहीं हुई
विशेष- मोहम्मद साहब की पत्नियों में सब से ज्यादा उम्र जीने वाली पत्नी जिसने अली की मदद की। कर्बला के युद्ध के बाद मृत्यु।

7 ज़ैनब बिन्त जहाश (विधवा) :-
पिता- ज़हश
पिता का घराना- बानू असद
जन्म-590 मक्का
मृत्यु-641 मदीना
विवाह का वर्ष-627
पूर्व पति-जायद इब्ने हारिश
सन्तान-नहीं हुई
विशेष-

8 जुवैरीया बिन्त अल-हारिश (विधवा) :-
पिता- हारिश इब्ने दीदार
जन्म-608
मृत्यु-676
विवाह का वर्ष- 628
पूर्व पति- मुस्तुफा सफवाहदा 623 में मृत्यु
सन्तान- नहीं हुई
विशेष-

9 राम्लाह बिन्त अवि सुफ्याँ (उम्मे हबीबा) :-  (विधवा)
पिता- अबु शुफ़ियान
पिता का खानदान - बानू उमैय्या
जन्म- 590 मक्का
मृत्यु- 664 मदीना
विवाह का वर्ष -628
पूर्व पति- उबेदुल्ला इब्ने ज़हीश 627 में मृत्यु जिस से एक सन्तान हुबेबा बिन्त उबेदुल्ला
सन्तान- नहीं हुई
विशेष- माविया व उस्मान की चचेरी बहन

10 रेहाना बिन्त जायद :-
पिता का नाम- जायद
पिता का खानदान- बानू नादिर
जन्म- मक्का
मृत्यु- 631
विवाह का वर्ष-629 मदीना
सन्तान- नहीं
विशेष- -

11सफिय्या बिन्त हुयाय्य (विधवा) :-
पिता- हुयाय बिन अबु ताबि
जन्म-610 मक्का
मृत्यु- 672 मदीना
विवाह का वर्ष- 629
पूर्व पति-केनान इब्न अल रबी
विशेष- युद्ध रणनीति विशेषज्ञ ,उस्मान की मददगार

12 मयमूना (बर्रा) बिन्त अल-हारिश :-
पिता- हारिश बिन ओफ़
पिता का घराना - बानू हिलाल
जन्म- 594 मक्का
मृत्यु-671 मदीना
विवाह का वर्ष-630
सन्तान- नहीं हुई
विशेष- मक्का पर विजय के उपलक्ष्य में

13 मारिया अल-क़ीबतिया उम्मुल इब्राहिम :-
जन्म-मिश्र
मृत्यु-637 मदीना
विवाह का वर्ष -628
सन्तान- इब्राहिम इब्ने मोहम्मद
जन्म 630 मदीना
मृत्यु 631 मदीना (छोटी उम्र में मृत्यु)
विशेष- मारिया को उसकी बहन शीरीन के साथ ईसाई गवर्नर मिश्र अलेक्जेंडर द्वारा कुछ उपहारों (एक भाई खोजा) को मुस्लिम सेना के फारस पर कब्जे के दौरान दासी के रूप में भेजा गया था।जिसे मोहम्मद साहब ने आज़ाद कर पत्नी के रूप में स्वीकार किया। मारिया व उसकी बहन ने इस्लाम धर्म अपना लिया।

अंतिम स्थान- कब्र -  
आयशा के कमरे में मोहम्मद साहब का मज़ार शेष परिवार की कब्र खतीजा को छोड़कर जन्नत अल बाकी मदीना में है। स्वयं मोहम्मद साहब की कब्र पर हरी गुंबद (गुंबद ए ख़िज़्रां बना हुआ है।

मोहम्मद साहब के सन्देश:-
1 कुरआन :- 
ईश्वर से प्राप्त आदेश जो वही (फरिश्तों के माध्यम से) के रूप में प्राप्त होते जिन्हें पास बैठा व्यक्ति चर्मपत्र पर लिख देता था। बाद में अबूबक्र ने संकलित करवाया व उस्मान के व्यवस्थित कर प्रकाशित करवाया।

हदीष :- 
मोहम्मद साहब द्वारा स्वयं कही गई बात को हदीष कहते है। इनमें महत्वपूर्ण हदीष संग्रह
सहीह अल-बुख़ारी, मुस्लिम इब्न अल-हजज, मुहम्मद इब्न ईसा -तिर्मिज़ी,अब्दुर्रहमान अल-नसाई, अबू दाऊद, इब्न माजह, मालिक इब्न अनस, अल-दराकुत्नी जैसे अनुयायियों द्वारा मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद संकलित किया गया था।

सुन्नत :- 
मोहम्मद साहब के द्वारा किये गये कार्यों की पुनरावृत्ति सुन्नत कहलाती है।

सीरत (सीरा) :- 
मोहम्मद साहब की जीवनी व अच्छे आचरण के लिखित या प्रचलित संस्मरण को सीरा कहते हैं। 
इब्ने इशहाक द्वारा 767 ईस्वी (हिज़री 150) सीरते नबी है। इसके बाद इब्ने हिसाम और अल-ताबरी नव सिराते नबी को आगे बढाते हुये नई शिराएं लिखीं।
विभिन्न जंगों व यात्राओ का वर्णन  अल-वकिदी औऱ उनके साथी इब्न साद अल-बगदादी द्वारा भी किया गया है जिसे इतिहासकार मान्य सीरा के रूप में काम लेते हैं।

मोहम्मद साहब के 100 नाम व उनके अर्थ:-
1 मोहम्मद - अति प्रशंसा योग्य
2 अहमद- प्रतिष्ठित,प्रशंसा योग्य
3 हामिद - ईश्वर की बड़ाई करने वाला
4 महमूद  -  उत्तम,शुभ
5 क़ासिम - बाँटने वाला
6 फातिह - विजेता
7 शाहिद -गवाह
8 राशिद -शिक्षित,प्राप्त करता
9 मशहूद - गवाह
10 बशीर - अच्छा सन्देश लाने वाला
11 नज़ीर - शुद्ध सोना, उदाहरण
12 दाई - दाता
13 शाफी - सन्तोषी
14 हादी - दिशा बताने वाला,मार्गदर्शक
15 महद -प्रतीक
16 माह -सुरक्षित
17 आकिब - सरदार, जानशीन
18 हासिद - हसद रखने वाला
19 मूँज - प्रकाश
20 नाह - बन्धन मुक्त
21 रसूल - प्रवर्तक
22 नबी -प्रवर्तक
23 उम्मी -अनपढ़
24 तिहामी - तिहामी वाला
25 हासमी - हासमी घराने वाला
26 अबताबी - 
27 अज़ीज़ - प्रिय
28 हारिस अलैकुम - सलामती की दुआ
29 रऊफ - दयालु
30 रहीम - दयालु
31 ताहा - कुरआन के कुछ शब्द जिनका अर्थ नहीं पता 
32 मुजतबा -पैगम्बर
33 ता सीन -कुरआन के कुछ शब्द जिनका अर्थ नहीं पता 
34 मुर्तज़ा - चुनाव किया गया
35 हा मा -कुरआन के कुछ शब्द जिनका अर्थ नहीं पता 
36 मुस्तुफा - चुनाव किया गया
37 या सीन -कुरआन के कुछ शब्द जिनका अर्थ नहीं पता 
38 अवली - प्राथमिक
39 मुज़्ज़मिल -कपडे से ढका हुआ
40 वली - दोस्त
41 मुद्दसर -कपड़े से ढका हुआ
42 मतीन - गम्भीर, धैर्यवान
43 मुस्सदिक - सच्चा
44 तैयब - अच्छा
45 नासिर -सहायक,रक्षक
46 मंसूर - मोती,लिखा हुआ
47 मिस्बाह -जलता दीपक
48 आमिर - अग्रिम,नेता
49 हिजाजी -हजाज का रहने वाला
50 नज़ारी - नजारा से
51 क़ुरैशी - कुरेशी खानदान से सम्बंधित
52 मुज़री - मुज़री जनजाति से संबंधित
53 नबीइतौबा -नबीयों की तौबा कुबूल करवाने वाला
54 हाफ़िज़ - रक्षक
55 कामिल -ओरण
56 सादिक - सपने जो सच होते हैं, रात के ढलने के बाद का वक़्त
57 आमीन -सच्चा
58 अब्दुल्लाह -ईश्वर का दास
59 कलीमुल्लाह - ईश्वर से बात करने वाला (मूसा)
60 हबीबुल्लाह - ईश्वर का दोस्त (इब्राहिम)
61 नज़ीमुअल्लाह - ईश्वर का दोस्त
62 सफीउल्लाह -आदम की दुआ
63 ख़ातिमुनाम्बिया - अंतिम अम्बिया
64 हसीब - हिसाब करने वाला
65 मुजीब - सुनकर जवाब देने वाला
66 शकूर -शुक्र करने वालक
67 मुक्तशद -मध्यमार्गी
68 रसूलुलुर्रहमती -रसूलों पर रहमत बरसाने वाला
69 कबी - दोस्त
70 हफ़ी -दोस्त
71 मामून - सुरक्षित रखने वाला
72 मअलूम -जानकार
73 हक़ - सही
74 मुबीन - देखने वाला,साफ
75 मुतिअ -ग्रहण करवाया हुआ
76 अव्वल - प्रथन
77 आखिर - अंतिम
78 ज़ाहिर - सामने
79 बातिन - छिपा हुआ
80 यतीम - अनाथ
81 करीम - दयालु
82 हकीम - जानकार,सिद्ध
83 सय्यद - मालिक
84 सिराज - दीपक
85 मुनीर - प्रकाशित
86 मुहर्रम -चहेता
87 मुकर्रम - प्रतिष्ठित
88 मुबसिर - अच्छी सूचना देने वाला
89 मुज़्ज़कर - सद्पुरुष
90 मुत्तहर - शुद्ध
91 करीब - नज़दीक
92 खलील - ईश्वर को पुकारने वाला (इब्राहिम)
93 मदअ - दुआ/ईशर की बड़ाई करने वाला
94 जव्वाद - चरित्रवान
95 ख़ातिम - अंतिम
96 आदिल - न्यायप्रिय
97 शहीर - प्रसिद्ध
98 शहीद - अमर
99 रसूलुलआलमीन- सम्पूर्ण सृष्टि का रसूल
100 सले आला व आलीहि व सल्लम - अल्लाह की सलामती हो आप पर और आप की आल पर

मोहम्मद साहब से पहले अरब की स्थिति:-
पूरे अरब जनजातियां विभिन्न कबीलों में खानाबदोश जीवन निर्वाह करती थीं।
मक्का,यशरब (मदीना) आर्थिक गतिविधियों के केंद्र थे। मक्का के देवताओं/देवियों को व्यक्तिगत जनजातियों के व्यक्तिगत संरक्षक के रूप में मान्यता थी व मान्यता थी कि इनकी आत्मा पेड़-पौधों, पत्थरों, झरनों और कुओं से जुड़ी हुई हैं।
मक्का की वार्षिक तीर्थयात्राये होती थीं।
यहाँ काबा में जनजातीय संरक्षक देवताओं की 360 मूर्तियां थीं जिनमें तीन देवियाँ अधिक पूजनीय थीं के नाम है (अल्लाह की बेटियाँ) 
1 लात
2 मनात
3 उज्जा
दूसरी तरफ यहूदी व हनीफ (इस्माइल के वंशज) धर्म व अन्य समकालीन धर्म जो एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे भी अस्तित्व में थे।
छठी शताब्दी का दूसरे हिस्से में अरब अराजकता का मुख्य क्षेत्र बन गया।
दास प्रथा चरम पर थी व महिला उत्पीड़न असहनीय। यह अवधि राजनीतिक विकार की अवधि थी जिसमे हत्या,लूट,चोरी, धाड़ व डकैती बढ़ रही थी।
अरबी धार्मिक रूप से विभाजित थे जिनमें यमन में यहूदियों के वर्चस्व था तो फारस में ईसाई धर्म की मजबूत पकड़ थी। आपसी धर्मयुद्ध अशांति के कारण बन रहे थे। लोगों में धार्मिक आस्था गिर रही थी।
मोहम्मद साहब के जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अल कुरैश जनजाति पश्चिमी अरब की प्रमुख शक्ति के रूप में थी। वो इब्राहिम के पंथ के अनुसार इस्माइल के अनुचर के रूप में धार्मिक अनुष्ठान किया करते थे।
पवित्र वार्षिक यात्रा को सुरक्षित करने के लिये व अराजकता को समाप्त करने के लिये विभिन्न जनजातियों से सन्धि की इसका प्रभाव सुरक्षा व आर्थिक क्रियाकलापों पर पड़ा।धीरे-धीरे मक्का आर्थिक व धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र बनता गया।

जीवन घटना क्रम :-
 छोटी उम्र में माता,पिता,दादा का देहांत हो गया। चाचा चाची ने पाला।
मक्का में स्थित काबे के पुनर्निर्माण हेतु नीव उनके हाथों से 580 में रखवाई गई। बचपन से ही ईमानदार व कर्तव्यपरायण रहे।
 कुछ समय बकरियां चराई। 607 में वो गारे हीरा (एक गुफा) में जाकर ईश्वर का स्मरण करने लगे।
 तीन साल बाद, 610 में उन्हें ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिस का सार्वजनिक प्रचार 613 में शुरू किया जिसमे उन्होंने यह घोषणा करते हुए कि " ईश्वर एक है ", अल्लाह को पूर्ण "समर्पण" (इस्लाम) शिक्षा व पद्दति का सही तरीका है (दीन), और वह इस्लाम के अन्य नबियों के समान, ख़ुदा के पैगंबर और दूत हैं 613 में नबूवत का ऐलान कर दिया।
उनका कबीला कुरैश ही सब से बड़ा शत्रु बना। उनके परिवार का मुख्य कार्य काबा की रक्षा करना व देवताओं की पूजा करना था। उस समय काबा में अल्लाह की तीन बेटियों 1 लात, 2 म मनात व 3 उज्जा सहित 360 अन्य देवी देवताओं की पूजा होती थी वो क्रुद्ध हो गये। स्वयं के चाचा अबु तालिब ही उनके इनकार करने वालों में शामिल हो गये।
पारिवारिक विरोध व मक्का के लोगो से दुश्मनी के चलते उत्पीड़न से बचने के लिए,उन्होंने कुछ अनुयायियों को 615 ई में अबीसीनिया (इथोपिया) भेजा। 622 में जान की जोखिम के चलते मदीना चले गये जहां उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती चली गई।
630 में  10,000 मुसलमानों की एक सेना इकट्ठी की और मक्का शहर पर चढ़ाई की। और विजय प्राप्त की। विजय बहुत हद तक अनचाहे हो गई, 632 में अंतिम हज से लौटने के बाद बुखार हो गया और विषाल( देहांत) हो गया।
कुरआन के छंद (आयत) का अवतरण जिब्रील नाम के फरिश्ते के माध्यम से हिता था जिसे पास बैठा व्यक्ति लिख लिया करता था।
मोहम्मद साहब के पहले अरब में बहुत ही अमानवीय जीवन था जिसे सुधारने के सन्देश दिये गये।

प्रभाव व सामाजिक जीवन पर प्रभाव :-
 मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं अपितु बौद्धिक पहलुओं पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। विभिन्न वर्गों व कबीलों में बंटे अरब में इस्लाम के उदय के साथ ही सामाजिक ,राजनेतिक व सांस्कृतिक एकता उत्पन्न हुई और  नई क्रांति से महान परिवर्तन हुये।
 सामाजिक सुरक्षा , पारिवारिक संरचना, दासता और महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के मामलों में जो अरब अराजक था अब सुधार होने लगा। वहाँ विशेषाधिकार के पदानुक्रम के स्थान पर सक्षमता को तरजीह दी गई।
मोहम्मद साहब ने अनैतिक व पिछड़े अरब को नैतिक व विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सम्पूर्ण विश्व बिरादरी को अरब की और आश्चर्यजनक रूप से खींच लिया।
जजकात जैसे धार्मिक कर द्वारा गरीबों,अपंगों, विधवाओं व कमज़ोर लोगों को संबलन प्रदान कर अर्थव्यवस्था संचालन के नियम बनाये।
आज सम्पूर्ण विष में उनके अनुयायी है।

सूरते नबी ;-  
नबी की सीरत व सूरत बयान करने वालों में अनस (सीराते नबी, हलीमा सादिया,अलबरा,इब्ने ईशा (समाईले नबी व तिर्मिज़ी), उम्मे माबाद
1 कद - दरमियाना
2 रंग - सफेद गेहुआँ (लालिमा के साथ)
3 गर्दन - लम्बी व पतली
4 आँखे - गोल,बड़ी,काली, सफेद सुर्ख डोरे
5 नाक - ऊंची- सुतवां
6 दांत सफेद,बारीक व बीच में जगह
7 सर - बड़ा व गोल
8 हथेली  - भरवाँ- चौड़ी
9 हाथ का पोंचा - चौड़ा
10 हाथ - लम्बे व मांसिले
11 पेट - सीने के बराबर
12 सीना -चौड़ा उभारदार
13 पिंडलियां - गोल व सीधी
14 पाँवों की अंगुलियाँ - बड़ी व सीधी, अंगूठे के नज़दीक की अंगुलियां बड़ी
15 चाल - गर्दन झुका कर मध्यम चाल ,आहिस्ता से पांव ज़मीन पर रखते थे।
16 कंधे ऊंचे,चौड़े, झुके हुये (जोड़ों की हड्डियाँ बड़ी
17 सीने के बाल - सीने से नाफ़ तक बालों की पतली लकीर बाकी बदन पर बाल कम थे।
18 चेहरा - गोल,दरमियाना व चमकदार
सर के बाल - कानों तक,गर्दन पर बड़े,मध्यम घुंघराले लटदार
19 बालों की मांग - स्वतः बीच मे 
20 आवाज़ - भारी रौबदार
21 भौंह - घनी, लम्बी व पतली आपस मे जुड़ी नहीं थीं
22 पेशानी - बड़ी व ऊंची , जब कभी गुस्से में होते तो पेशानी की रग फूल जाती थी।
23 मूंह - दरमियाना बड़ा होंठ - बड़े,पतले व सुर्ख सफेद
24 देखने की आदत - नीची नज़र से आंख की पुतलियों से , ज्यादा ज़मीन की तरफ देखते थे।
25 गदूद - कंधे पर गर्दन के पास एक गदूद था।
26 ठोड़ी - गोल दरमियाना
27 आंखों में सुरमा लगाते थे।
28 लाल धारीदार कम्बल ओढ़ते थे।
29 इत्र लगाते थे।
30 गाल - साफ गेहुआँ फुले हुये
31 मूंछ - हल्की पतली नीचे की तरफ तराशी हुई
32 एड़ी - सीधी व पतली
33 तलवे - कम गहराई के
34 खतना - जन्म से ही खतना सूदा
35 नाफ़ - नही
36 हज उमरा पर बाल मुंडवाते थे।
37 बालों में मेहंदी लगाते थे।
38 आईना,कंघा व सुरमेदानी साथ रखते थे।
39 एक मोड़दार लाठी थी
40 तीन तरह की टोपी ओढ़ते थे
1 कान वाली सफेद टोपी
2 मिश्री टोपी
3 यमनी टोपी
41 कमीज़ की आस्तीन छोटी रखते थे।
42 सिली हुई लुंगी की लंबाई चार हाथ एक बालिश्त चौड़ाई दो हाथ एक बालिश्त
43 इमामा 14 गज का काला,सफेद,जामुनी व जाफरानी
44 मिशवाक करते थे।
45 फ़टे कपड़ों के पैबन्द (कारी) लगाते थे
46 पूरी ज़िंदगी मे तीन झुबे पहने
47 धीमे बोलते थे
48 रंगीन  व रेशमी कपड़े नहीं पहने
49 कुर्ता,तहमद,पायजामा पहनते थे
50 दिन में 2 बार खाना खाते
51 मुस्कुरा कर बात करते थे।
52 आखिरी उम्र तक सफेद बाल कम थे (20 के लगभग)
53 कंधे व गर्दन के बीच कबूतर के अंडे जितनी बड़ी तिल जैसी " नबूवत की मोहर"
54 दाढ़ी - खिली हुई रेशमी 

सीरते नबी :-
1 किसी का क़त्ल नहीं किया
2 निगाह नीची
3 मध्यम सधि चाल
4 तिरछी नज़र से देखते
5 मुस्कुरा कर बात करते
6 मीठा व ज़रूरत के मुताबिक बोलते
7 अच्छी शायरी सुनते व दाद देते थे
8 हंसी मजाक करते थे
9 किसी को नज़र भरकर नहीं देखते थे
10 फ़िज़ूल बात नहीं करते थे
11 आवाज़ बलन्द व भारी 
12 बिना उलझन के साफ बात करते थे
13 ना तेज़ न धीमा बोलते
14 बात को दोहराया करते थे
15 खत लिखवाते थे (350 से अधिक खत नबूवत के पैगाम व सन्धि के खत)
16 खुद के जूते,कपड़े खुद ही सीते थे।
17 घर के काम करते थे
18 किसी से नाराज़ नहीं होते थे
19 कभी झूठ नहीं बोला
20 पैबन्द लगे कपड़े पहनते थे
21ऊंटनी की सवारी करते थे।
22 जूते -  दो तश्मे वाली सेंडल लाल व एडीदार की लंबाई एक बालिश्त दो अंगुल,बीच में 5 अंगुल व फाबे पर छः अंगुल
23 मोज़े - सूती ऊनी व चमड़े के
24 पहले सोने की अंगूठी पहनते थे, सोना हराम होने पर बांये हाथ की तर्जनी पर चांदी की मोहर वाली अंगूठी पहनी। यह अंगूठी अबूबक्र से उस्मान तक चली फिर किसी कुएं में गिर गई।
25 माफ कर देते थे।

भीख देने पर मुहम्मद साहब का मत :-
एक बार उनके पास एक भिखारी भीख लेने आया तो उससे पूछा, क्या तेरे घर कुछ है तो भिखारी ने कहा एक कम्बल है।
मोहम्मद साहब ने उस कम्बल को 2 डरहम में बेच कर एक दिरहम का राशन व एक दिरहम की कुल्हाड़ी खरीद दी।
उस भिखारी ने जंगल से लकड़ियां काट कर बेचना शुरु कर दिया व धनवान भी बना।
हदीष इब्ने माजाह जिल्द 3 हदीष 2198 पेज नम्बर 36)
किसी की मदद करने व भीख देने में अंतर है।

अदब :-
मोहम्मद साहब  का नाम लेने पर ﷺ सल्ललाह व अलैहि व सल्लम (सलामती हो आप पर ईश्वर की) बोलते हैं या लिखते हैं।

मोहमद साहब के समय के युद्ध ( जंग)
जंग ए बदर 
17 रमजान 
                 युद्ध क्षेत्र का मान चित्र 

            मक्का मदीना (यशरब) की स्थिति 

            तत्कालीन सऊदी अरब की स्थिति

दिनाक 13 मार्च सन 624
रमजान 17 हिजरी सन 02
युद्ध क्षेत्र का नाम - हिजाज
मुस्लिम सेनापति - मोहमद साहब
कुरैश सेनापति - अबू जहल


बद्र सऊदी अरब का एक पहाड़ी क्षेत्र है जो मदीना (यशरब) और मक्का के बीच पड़ता है। 
ये युद्ध मुस्लिम इतिहास की एक महत्वपूर्ण विजय के रूप में याद किया जाता है। 
माना जाता है कि यह युद्ध में रब की गायबाना सहायता से मुहम्मद ﷺ ने हिकमते-अमली (सूझ - बूझ) से जीता।
युद्ध का कारण :-
कुरेश के लोगों द्वारा मुस्लिम व्यापारियों को लूटने और उन पर बंधक बना कर अत्याचार करने के फलस्वरूप जवाबी कार्यवाही के कारण यह युद्ध हुआ। 
इस लड़ाई में आने वाले वक्त के चारों ख़लीफ़ा भी मौजूद थे।
बद्र के युद्ध में 317/313 कुल मुस्लिम योद्धाओं में से लगभग 14 शहीद हुए जिन्होंने मक्का के 1000 लोगों से लड़ाई लड़ी। कुरैश सेनापति (सरदार) अबू जहल भी मारा गया।
युद्ध की अरब परंपरा के अनुसार कुरैश के तीन सरदारों 
1 शाइबा
2 उत्बा और 
3 वलीद बिन उत्बा 
ने तीन मुस्लिम जनरलों को जंग का चैलेंज दिया और इस चैलेंज को 
1 ओबैद
2 हमजा और 
3 अली (रजि)
ने स्वीकार कर लिया। तीनों कुरैश सरदार बहादुरी से लड़े पर अंत में मारे गए।
मोहम्मद ﷺ ने युद्ध बंदियों को 4000 दिरहम के बदले में आजाद कर दिया। इसके आलावा सभी कैदियों से प्रेमपूर्वक व्यवहार (उनके खाने,पीने,पहनने का ध्यान रखा गया) किया गया। बहुत से पढ़े-लिखे कैदियों को 10 अनपढ़ मुसलमान लड़कों को पढ़ना - लिखना सिखाने की जिम्मेदारी दी गई और यही उनका हर्जाना मान लिया गया।
हार के बाद मक्का के लोगो (कुरेश) का घमंड व ताकत समाप्त हो गई  और मोहम्मद  ﷺ व मुसलमनों की शक्ति मदीना के बाहर भी बढ़ने लगी।


(मोहम्मद साहब की शिक्षाएं व ईमान के आदेश आगे अनवरत)

शमशेर भालू खान 
जिगर चूरूवी
20 अप्रेल 2022

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