Saturday, 1 March 2025

खान अब्दुल गफ्फार खान

खान अब्दुल गफ्फार खान 
हिन्दूस्तान जैसा वतन दुनियां में और नहीं है,
बाचा खान जैसा रतन दुनियां में और नहीं है।

आओ सच्चे खुदाई खिदमतगार बनें ! मगर कैसे?

सीमांत गांधी जी के बताए रास्ते पर चलकर।
क्या उनके दिखाए रास्ते पर चल कर हम असली खुदाई खिदमतगार बन सकते हैं ?
अगर नहीं तो खुद भी जानें और दूसरों को भी बतायें, समझें और समझायें, आपस में विस्तार से चर्चा करके कि कैसे हम खुदाई खिदमतगार बन सकते हैं। कैसे हम आपसी भाईचारा बना कर आपस में एकजुटता से रह सकते हैं। हम आने वाली पीढ़ियों को विरासत में क्या दे कर जा रहे हैं।
आओ आज हम यह सोचें कि हम खुद को बहुत बड़ा समझते हैं और बड़े होना चाहते हैं क्या एक दूसरे को नीचा दिखा कर हम बड़े हो सकते हैं। अगर हम वास्तव में बड़े बनना चाहते हैं तो हमें दिल भी बड़ा रखना/करना पड़ेगा। आओ सच्चे असली खुदाई खिदमतगार बनें और आपसी भाईचारा बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा समय निकाल कर लोगों को जागरूक करें।

अमन की बात हो, सबसे प्यार से मुलाकात हो,
चाहे किसी का कोई भी धर्म और जात हो।

मिशन खुदाई खिदमतगार में हैं जुझारू जांबाज निराले,
शक है अगर किसी के दिल में वह जब चाहे आजमां ले।

फैसल खान जी के निराले अगर अंदाज नहीं होते,
खुदाई खिदमतगारों को एकजुट कर रहे आज नहीं होते।
कैसे वह खुदाई खिदमतगार को फिर से शुरू करते साथियो,
अगर उनके संग में गुरू इनाम,कृपाल जैसे जांबाज नहीं होते।

क्यों आज जरूरी है सीमांत गांधी जी का संदेश?

दुनियां में जीवन का सबसे ज्यादा समय जेल में बिताने वाले सीमांत गांधी बादशाह खान जी ने खुदाई खिदमतगार नामक संगठन करीब 1929 में बनाया।
सभी धर्मों में सद्भावना स्थापित करना खुदाई खिदमतगारों का मुख्य उद्देश्य था। बादशाह खान जी कहते थे मजहब तो दुनियां में इन्सानियत, अमन, मोहब्बत, प्रेम, सच्चाई और खुदा की मखलूक की खिदमत ( ईश्वर के बंदों की सेवा) के लिए आता है। जमातें तो सेवा के लिए बनाई जाती हैं और हर एक का दावा भी यही है , फिर उनमें झगड़ा क्यों हो?
आजादी की लड़ाई के दौरान सीमांत गांधी जी ने खुदाई खिदमतगार संगठन आरंभ किया था, अपनी गहरी निष्ठा और न्याय के लिए पूरे देश में एक मिसाल बना था। स्वयं महात्मा गांधी इस प्रयास से इतने प्रभावित हुए थे कि क्षेत्र के दौरे से लौट कर उन्होंने लिखा था," सीमांत प्रांत मेरे लिए एक तीर्थ रहेगा, जहां मैं बार-बार जाना चाहूंगा।
लगता है कि शेष भारत सच्ची अहिंसा दर्शाने में भले ही असफल हो जाए; तब भी सीमांत प्रांत इस कसौटी पर खरा उतरेगा। 

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