Friday, 7 March 2025

✅महिला दिवस 08 मार्च

08 मार्च अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस - 
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास उन महिलाओं के समर्पित है जिन्होंने अभाव एवं विपरीत परिस्थितियों के बावजूद स्वयं को साबित किया। संघर्ष कर के दम शोषण के दमन चक्र से निकलकर यह कहते हुए साढ़ा हक़ ईथे रख का नारा दिया। अधिकार मांगने से नहीं छीन कर लिए जाते हैं। 
विश्व स्तर पर मनाए जाने वाले इस त्योंहार का इतिहास सौ साल से भी पुराना है। इस दिन 8 मार्च को अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का आरंभ मजदूर परिवारों की महिलाओं ने किया। अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, चीन, बांग्लादेश एवं भारत सहित कई देशों में महिला श्रमिकों ने बहादुरी से पुरुष साथियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर मालिकों और सरकारों के शोषण के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। महिला मौलिक अधिकार जैसे पढ़ना, समान वेतन पाना और वोट देना उनके संघर्ष की परिणित हैं। अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में स्त्रियों ने जेल यात्रा की एवं शहीद हो गईं। रूसी क्रांति में 8 मार्च अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन रोटी के बढ़ते दाम के खिलाफ प्रदर्शन के में ही अन्य मजदूर भी आन्दोलन में शामिल हुए और इतिहास में पहला मजदूर राज कायम हुवा। 08 मार्च 1910 से अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव जर्मनी की समाजवादी नेता क्लारा जेटकिन ने डेनमार्क के कोपेनहेगन में आयोजित मजदूर स्त्रियों की समस्याओं पर विचारार्थ अन्तरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा कि औरतों के अधिकारों के सम्मान और औरतों के लिए सार्वजनिक मताधिकार सुनिश्चित करने हेतु एक विशेष दिन मनाया जाए। 17 देशों से आए 100 प्रतिनिधियों ने ध्वनिमत से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। उस वक्त इसके लिए कोई एक निश्चित तिथि निर्धारित नहीं की गई। इस सम्मेलन के बाद 19 मार्च 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैण्ड में पहली बार अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जिसमें 10 लाख लोगों ने विभिन्न रैलियों और प्रदर्शन में हिस्सेदारी की। वोट देने के अधिकार के अलावा प्रदर्शनकारियों की मांगें थीं कि उन्हें काम करने का अधिकार दिया जाए, व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए तथा नौकरियों में औरतों और पुरुषों में व्याप्त असमानता समाप्त की जाए। 19 मार्च का दिन इसलिए तय किया गया कि इसी दिन 1848 में प्रशा के राजा ने एक सशस्त्र बगावत के बाद कई सुधारों का वादा किया गया जिसमें से महिलाओं को मतदान का अधिकार भी था। वर्ष 1913 में 19 मार्च को बदल कर 8 मार्च कर दिया गया क्योंकि इस बीच 8 मार्च को महिला मजदूरों द्वारा तीन बार शोषण के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया। प्रथम बार अमेरिका के न्यूयार्क शहर की कपड़ा फैक्ट्रियों और टेक्सटाइल फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिला मजदूरों ने शोषण एवं काम के घंटों को कम व समान वेतन हेतु 8 मार्च 1858 को आंदोलन किया। पुलिस ने आन्दोलन को बर्बर तरीके से खत्म किया।
इसके बाद पुनः 8 मार्च 1904 को जूते और रेडीमेड कपड़ा मिल में महिलाओं ने काम का समय 16 घंटे से 10 घंटे करवाने हेतु आंदोलन किया जिसके ऊपर पुलिस ने बर्बरता पूर्वक लाठी चलाई और आन्दोलन को कुचल दिया गया। तीसरी बार पुनः 8 मार्च 1908 को न्यूयार्क शहर में 15000 महिलाओं ने शोषण के विरुद्ध आंदोलन किया। 
प्रमुख मांगें - 
1. काम के घण्टे कम करने
2. समान वेतन
3. मताधिकार
4. बाल मजदूरी के समापन
इस आंदोलन का नारा रोटी और गुलाब था। इसमें रोटी आर्थिक सुरक्षा की तथा गुलाब बेहतर जीवन स्थितियों का प्रतीक था। इसी वर्ष अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने हर वर्ष फरवरी के अन्तिम रविवार को अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का फैसला किया। इसके बाद 28 फरवरी 1909 को पूरे अमेरिका में पहली बार अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। इसके बाद से ही यूरोप में भी फरवरी के अन्तिम रविवार को महिला दिवस मनाया जाने लगा। वर्ष 1913 में प्रथम विश्वयुद्ध की पूर्वसंध्या में रूसी स्त्रियों ने पहला अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। पूरे यूरोप में 8 मार्च या इसके आसपास अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा। इन सबमें सबसे प्रसिद्ध हुई सेंट पीटर्सबर्ग में 8 मार्च 1917 को रूसी महिलाओं के नेतृत्व में आयोजित रोटी और शांति के लिये की गई हड़ताल और इस हड़ताल का नेतृत्व क्लारा जेटकिन और एलेक्ज़ान्द्रा कोलोन्ताई ने किया। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में आयोजित यह महिला हड़ताल 8 से 12 मार्च के बीच पूरे शहर में फैल गई। धीरे - धीरे यह आग रूस के फरवरी क्रान्ति में काफी सहायक हुई। जिसने जार के शासन को इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया और इसी फरवरी क्रान्ति की बुनियाद पर रूस में लेनिन के नेतृत्व में महान नवम्बर क्रांति हुई। नवंबर क्रान्ति से लेनिन के नेतृत्व में रूस में समाजवादी समाज के निर्माण के बाद अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को राजकीय पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। पूरी दुनिया में इसकी बढ़ती लोकप्रियता और महिला आंदोलन के महत्व को स्वीकार करते हुए 8 मार्च 1975 को संयुक्त राष्ट्र महासंघ ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की घोषणा की और तब से 8 मार्च मजदूर औरतोें के संघर्ष का शानदार प्रतीक बन गया। समाजवादी रूस आगे चलकर औरतों के अधिकारों के लिए एक शानदार मिसाल बन गया और पूरी दुनिया में महिला आन्दोलन को प्रभावित किया। 
इसके बाद दुनिया के तमाम देशों में राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलनों ने जोर पकड़ा। इसके परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद ने सारे मुक्ति आन्दोलनों को कुचलने के कई हथकण्डे अपनाने शुरू किये। इनमें से एक था इन आन्दोलनों को और इनके प्रतीकों को स्वयं में मिला लेना। बड़ी मात्रा में प्रायोजित रूप से आर्थिक अनुदान देकर एनजीओ के माध्यम से शासक वर्ग ने जनता में भ्रम स्थापित करने के लिए महिला सशक्तिकरण का विकल्प परोसा। 
1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्तरराष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप मनाने की घोषणा की और इस घोषणा के साथ धीरे - धीरे मेहनतकश औरतों के शानदार संघर्ष के प्रतीक 8 मार्च के इस दिन को सारी प्रतिगामी शक्तियां भी मनाने लगीं। आये दिन देश मे कहीं न कहीं महिलाओं के साथ हिंसा और उनके साथ हो रहे अभद्र व्यवहारों की घटना की जानकारी समाचार पत्र आदि माध्यमों से मिलती रहती हैं। इसके पीछे कई कारण हैं मुख्य रूप से इसके दो प्रधान कारण है। एक समाज मे महिलाओं के प्रति पुरुषों की विचारधाराओं मे विकृति है। दूसरा देश की लोकतंत्र प्रणाली, जंहा कहने को तो महिलाओ को आजादी है पर नाम की।
आज के समाज में महिलाएं विभिन्न प्रकार के शोषणों का मार झेल रही हैं। मेहनतकश जनता पर बढ़ते दमन और शोषण से आज मजदूर परिवारों की महिलाओं पर बोझ बढ़ा है। गरीबी सबसे पहले महिलाओं के मुंह से निवाला और हाँथ से किताब छिनती है। मजदूरी के समय में भी माँ खुद कुपोषित रह कर अपने बच्चों को खाना खिलाती है। बढ़ती गरीबी की सबसे कठोर मार महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा पर ही पड़ती है। बढ़ती बेरोज़गारी के कारण अनेकों महिलाओं को बहुत कम पैसों के लिए बुरे से बुरे परिवेश में नौकरी करनी पड़ती है। 
महिला मेहनत करके परिवार का पेट पालने की कोशिश करती हैं परंतु पुरुष प्रधान समाज भेड़िए और गिद्ध की तरह उन्हें नोचने के लिए तैयार बैठा है। महिला  यौन उत्पीडन और दुर्व्यवहार आम बात हो गई है। महिला आज भी स्वयं को असुरक्षित और कमज़ोर महसूस करती है। महिलाओं के लिए अपनी पूरी क्षमता तक विकसित हो पाना असंभव सा है जो समाज के सर्वांगीण विकास में बाधक है। महिलाएं घर से निकलकर अधिकारों के लिए आन्दोलनों से जुड़ने से हिचकिचाती हैं। भारत, जहाँ एक ओर- 
- यत्र नारी पूज्यंते तत्र रमयंते देवताः
- नारी को दुर्गा, काली, सीता और सावित्री का दर्जा देकर इनकी स्तुति की बात की जाती है।
दूसरी ओर उनके साथ शर्मनाक घटनाएँ हो रही हैं। इस प्रकार की घटनाओं को समाप्त करने के बारे मे केवल बहस या नियम बना देने से काम नहीं चलेगा। आवश्यकता है विचारधारा और अनुपालना की।
जब तक साम्राज्यवाद है, युद्ध जारी रहेगा। - लेनिन 
 आज जब देश में जनता विभिन्न मुद्दों से जूझ रही है। शोषण मुक्त और सुन्दर समाज बनाने के लिए महिला और पुरुष को कंधे से कन्धा मिला कर लड़ना होगा। 
महिलाओं के अधिकार लिखित में नहीं धरातल पर मूर्त रूप में चाहिए।

शमशेर भालू खां 
9587243963

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