Friday, 7 March 2025

✅इस्लाम धर्म जीवन निर्वाह एवं पूजा पद्धति

इस्लाम धर्म में जीवन निर्वाह एवं पूजा पद्धति -
इस्लाम धर्म पांच शब्दों के आधार पर टीका हुआ है - 
1. अल्लाह
2. नूर
3. 27 नबी (रसूल)
4. किताब (चार किताब)
5. फरिश्ते
6. शैतान
7. ईमान
8. मेराज का सफर
9. हिजरत
10. जीवन (इंसान)
(क) हकउल्लाह 
नमाज,रोजा हज,जकात
(ख) हक़ उल इबाद 
11. मौत
12. कब्र (रूह का आवास इल्लीयिन व सिजिन में रहना)।
13. क़यामत (अंतिम दिन)
14. आख़िरत (हिसाब का दिन)
15. हूर 
16. जन्नत/जहन्नम (स्वर्ग/नरक)

1. अल्लाह - 
हिंदी रूपांतरण - 
अल्लाह 
पर्यायवाची - 
अल्लाह, रब, मालिक, खालिक, हुस्समद, वाहिद, नूर
हिंदी अर्थ - 
ईश्वर, पालनहार, स्वामी, भोजन देने वाला, अजन्मा, प्रकाश, 

अल्लाह शब्द की उत्पति - 
अल्लाह शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के दो शब्दों अल और इलाह से हुई जिसमें अल का अर्थ है The और इलाह का अर्थ है GOD/ईश्वर। बहुदेववादी अरबों में अल्लाह नाम का उपयोग निर्माता देवता या सर्वोच्च देवता के रूप में किया जाता था। मक्का में अल्लाह ही एकमात्र ऐसा देवता नाम था जिसकी कोई मूर्ति नहीं थी। इस शब्द का हिंदी रूपांतरण ईश्वर है ना कि भगवान। क्योंकि भगवान मां के पेट से जन्म लेते हैं। अरबी में इसके अन्य कई नाम हैं। उर्दू में इसे मालिक और फारसी में खुदा कहते हैं। अरब में दो हजार साल पहले सफा की पहाड़ियों पर बने घरों पर हल्लाह शब्द अंकित था। ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व ईसाइयों (यहूदी) इमारतों पर भी यह शब्द खुदा हुआ मिलता है। यह शब्द अरब में प्रचलित तो था परन्तु महत्वपूर्ण नहीं था। इस्लाम के उदय के पश्चात समस्त सृष्टि के पालक, संहारक एवं रक्षक के रूप में केवल एक ही शक्ति को बताया गया जिसका नाम अल्लाह दिया गया।

अल्लाह ईश्वर के बारे में कुरान में आयत
1. ईश्वर ने भूमि में जो कुछ है सब तुम्हारे लिए बनाया।
2. उसने सचमुच भूमि और आकाश बनाया। मनुष्य एक क्षुद्र वीर्य की बूंद से बनाया गया। 
3. उसने पशु बनाए, जिनसे गर्म वस्त्र पाते  और अनेक लाभ उठाते हो, एवं खाते हो।
4. वह तुम्हारा ईश्वर चीज़ों का बनाने वाला है। उसके सिवाय कोई भी पूज्य नहीं।
5. ईश्वर सब चीज़ों का श्रृष्टा एवं अधिकारी है।
6. निस्सन्देह ईश्वर भूमि और आकाश को धारण किए हुए है कि वह नष्ट न हो जाए।
7. वो ईश्वर जो मारता और जिलाता है।
8. ईश्वर बड़ा दयालु है, वह अपराधों को क्षमा कर देता है।
9. निस्सन्देह तेरा ईश्वर मनुष्यों के लिए उनके अपराधों का क्षमा करने वाला है।
10. ए मोहम्मद! तेरा कुछ नहीं, चाहे वह (अल्लाह) उन (अपराधियों) को क्षमा करे या उन पर विपदा डाले, यदि वह अत्याचारी हैं।
11. ईश्वर सत्य है।
12. ईश्वर न्याय पूर्ण है। क़यामत के दिन हम ठीक तौलेंगे, किसी जीव पर कुछ भी अन्याय नहीं किया जाएगा। चाहे वह एक सरसों के बराबर ही क्यों न हो, किन्तु हमारे पास में पूरा हिसाब रहेगा।
13. ईश्वर अमर है। ईश्वर जिसके सिवाय कोई भी पूज्य नहीं है,अमर एवं सत्य है। उसे नींद या औंघ नहीं आती। जो कुछ भी भूमि और प्रकाश में है, वह उसी के लिए ही है। जो कि उसकी आज्ञा के बिना उसके पास सिफ़ारिश करे? वह जानता है, जो कुछ उनके आगे या पीछ है, कोई बात उससे छिपा नहीं सकते, सिवाय इसके कि जिसे वह चाहे विशाल भूमि और प्रकाशवान स्थान दे, जिसकी रक्षा उसे नहीं थकाती वह उत्तम और महान् है।
14. वह न किसी से पैदा हुआ और न उससे कोई पैदा हुआ।
15. कौन है जो कि ईश्वर को अच्छा कर्ज़ दे, वह उसे कई गुना बढ़ाएगा।
16. निस्सन्देह दाता स्त्री–पुरुषों ने ईश्वर को अच्छा कर्ज़ दिया है, उनका वह दुगुना होगा, और उनके लिए (इसका) अच्छा बदला है।
अल्लाह की शरण (पनाह) - 
हिंदी रूपांतरण 
अउजु बिल्लाही मिन शैतान निर्रजीम
हिंदी अर्थ - 
ए अल्लाह मैं तेरी पनाह (शरण) मांगता हूं, बहिष्कृत शैतान से।

मुसलमान द्वारा किसी कार्य की शुरुआत करना - 
हिंदी रूपांतरण - 
बिस्मिल्लाही अलरहमान निर्रहीम।
हिंदी अर्थ - 
अल्लाह के नाम से प्रारंभ करता हूं जो बड़ा दयावान और कृपा करने वाला है।

अल्लाह के नाम एवं गुण - 
इस्लाम के उदय के बाद इसके अर्थ में बड़ा परिवर्तन हुआ। क़ुरान के जिस अंश (हम्द) का सबसे पहले वर्णन हुआ उसमें अल्लाह के गुण सृष्टिकर्ता, ज्ञान देने वाला पालक बताया गया (इकरा बिस्मी रब्बी कल्लजीना ख़लक)। क़ुरान में अल्लाह को एक, दयावान, न्यायकर्ता, पोषक, शासन का आपूर्ति कर्ता बताया गया है। इस्लाम के मौलिक सिद्धांत में अल्लाह के कामों व गुणों में कोई साझीदार नहीं है। इस सिद्धांत को स्वीकारना ही कलमा कहलाता है।
कलमा ए तौहीद  (एकेश्वर की स्वीकारोक्ति एवं साक्ष्य) - 
हिंदी लिप्यंतरण - 
अशहादु ला इला हा इलल्लाहु व अशहादु अन्ना मोहम्मद रसूलुल्लाह।
हिंदी रूपांतरण -  
मैं साक्ष्य देता हूं कि ईश्वर के अलावा कोई अन्य पूजा योग्य नहीं है, मैं साक्ष्य देता हूं कि मोहम्मद (स.) अल्लाह के रसूल हैं।
यहीं से इस्लाम शुरू होता है।

2. नूर - 
अल्लाह अपनी सभी किताबों में घोषणा करते हैं कि- 
मिन्न नूरीन्नूर 
मैं प्रकाश हूं, और मोहम्मद (स) उसी प्रकाश का एक भाग हैं। 
संपूर्ण सृष्टि की रचना प्रकाश के एक भाग के रूप में स्वयं प्रकाश द्वारा की गई है। अल्लाह को अल्लाह अजवाज्जल (ईश्वर, स्वयं प्रकाशित, प्रकाश) कहा गया है। कुरान में कहा गया है कि सब से पहले अल्लाह ने मोहम्मद साहब का नूर पैदा किया फिर आदम नबी को।

3. नबी/ रसूल - 
अल्लाह ने पृथ्वी पर जब - जब पाप की अति हुई तब - तब अपने उपदेशकों/संदेश वाहकों को पृथ्वी के हर भाग में, हर समाज एवं संप्रदाय में उन्हीं की भाषा एवं बोली वाला उन्हीं में से एक व्यक्ति (नबी) बनाकर भेजा जिनकी संख्या एक लाख चौबीस हज़ार (इस से कम या अधिक) है। कुरान में कुल 27 नबियों/रसूलों का वर्णन आया है जो अरब प्रायद्वीप पर आए। महाभारत में भी उद्धृत है - 
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः 
अभ्युत्थानम च धर्मस्य तद्तमन्यम सुजामियाम्।
हिंदी अर्थ - 
जब - जब पृथ्वी पर पाप, अत्याचार और अन्याय की वृद्धि हुई है तब - तब ईश्वर ने किसी आत्मा/सुजान को इसके नाश एवं धर्म (न्याय) की स्थापना हेतु भेजा है।
यहां आत्मा/सुजान /सुधारक को ही अरबी भाषा में नबी (सुधारक/मार्गदर्शक) कहा गया है। सनातन धर्म में इनकी संख्या 24 बताई गई है जिसमें से 23 आ चुके हैं चौबीसवां (कल्कि) अवतार शेष है।
कुछ विद्वानों के अनुसार मोहम्मद साहब ही अंतिम कल्कि अवतार हैं। बौद्ध एवं जैन धर्म में भी मैसेंजर ऑफ गॉड का सिद्धांत पाया जाता है। 
     सनातन धर्म में विष्णु के अवतार
सनातन साहित्य के अनुसार भारत में 24 अवतार हुए जिन में से 23 जन्म ले चुके हैं और एक कल्कि अवतार अभी शेष हैं।

नबियों का श्रेणीक्रम - 
1. नबी - अन्बिया - (बहुवचन) - 
हिंदी अर्थ - भेजा हुआ। शब्दार्थ मुतनब्बे इंसान को अल्लाह की ओर भलाई के मार्ग पर बुलाने वाला इंसान। संख्या एक लाख चौबीस हज़ार (कम - अधिक)। नबी क्षेत्र विशेष के लिए होते हैं।
2. रसूल - 
ईश्वर द्वारा अपने लिखित संदेश (किताब) सहित भेजे गए नबी (इरसाल किये गए) जो सभी को सही रास्ता दिखाते हैं। रसूल सार्वभौमिक होते हैं अर्थात समस्त पृथ्वी वासियों के लिए।
3. पैगम्बर - 
शब्दार्थ संदेश वाहक (पैगाम लेकर आने वाला) (अल्लाह का) नबी।
4. इमाम - 
नायक, नेता, नेतृत्वकर्ता व्यक्ति जो नबी के बाद लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।

नबियों का वंश वृक्ष - 
01. आदम (एडम) - 
मानव के पिता (प्रथम मानव)  आदम लगभग 12000 वर्ष पूर्व पृथ्वी पर आए। इससे पूर्व मिट्टी से इंसान बनने के बाद आदम स्वर्गलोक (जन्नत के) तीस वर्ष तक रहे। आदम की बाईं पसली से हव्वा (सम्पूर्ण इंसानों की माता) को उत्पन्न किया गया। यहां यह प्रश्न अवश्य उठता है कि क्या पसली से हूबहू (रिप्लिका) मानव को पैदा किया जा सकता है। मेरी समझ के अनुसार जब मानव को मिट्टी से बनाया जा सकता है तो उसी मिट्टी के एक भाग से (उसकी) प्रतिकृति (रिप्लिका) भी बनाई जा सकती है। जीव विज्ञान का सिद्धांत मानव की उत्पत्ति का विवरण अन्य प्रकार से देता है। आदम की आयु 922 वर्ष रही। कुरान में आदम नबी का 25 बार वर्णन किया गया है।
एक प्रश्न और उत्पन्न होता है कि आदम जब 12000 वर्ष पूर्व ही इस धरती पर आए तो उस से पहले यहां कौन था? 
प्रश्न का उत्तर है - दैव/जिन्न यहां लाखों वर्षों से रहते आ रहे थे। आदम से पहले जीव भी विशाल आकर के होते थे।

देव/जिन्न/राक्षस/दानव - 
यह पृथ्वी पर अनादि काल से वास करते आ रहे हैं। यह आग से बने हुए हैं और मानव के लिए अदृश्य होते हैं। किंवदंतियों के अनुसार कभी कभी यह मनुष्यों को दिखाई पड़ सकते हैं। 
दैवों/जिन्नों/राक्षसों की आयु हजारों वर्ष होती है। यह मानव ही की तरह परिवार बना कर रहते हैं। हिम युग के करोड़ों वर्षों बाद मानव की उत्पत्ति हुई परन्तु दैव इस से पहले भी पृथ्वी पर वास करते थे।

इब्लीश (लूसीफर) और आदम - 
ईश्वर ने आदम को मिट्टी से पैदा किया। फरिश्तों ने अल्लाह से कहा कि आप इसे क्यों पैदा कर रहे हैं। आपकी पूजा और बड़ाई के लिए तो हम फरिश्ते ही काफी हैं। तब अल्लाह ने कहा 
वमा ख़लक तुम जिन्ना वल इंशा इल्ला ली आबिदून 
(मैने इंसान और जिन्नों को केवल अपनी पूजा के लिए उत्पन्न किया)। 
फिर कहा - मैं जो जानता हूं, तुम नहीं जानते। 
फिर उसने पृथ्वी से कुछ मिट्टी (पृथ्वी से इसे वापस लौटाने के वादे के साथ) ली और उसमें जान/आत्मा (रूह) को प्रवेश करवाया। पुतला उठ खड़ा हुआ। 
इस पर अल्लाह ने सभी फरिश्तों व इब्लीश/लूसीफर (आग से बना दैव/जिन्नों का मुखिया, जिसमें प्रत्येक ग्रह की सम्पूर्ण भूमियों पर ईश्वर की बड़ाई में सजदे किए, वह कोई भी रूप धारण कर सकता है।) ने आदम को सजदा करने से मना कर दिया।सभी फरिश्तों ने आदम को सजदा (झुकना) किया परन्तु इब्लीश ने यह कहते हुए सजदा करने से मना कर दिया कि यह तो अभी मेरे सामने मिट्टी से बना है। मैं आदिकाल से तेरी पूजा करने वाला आग से बना हूं। मैं इसको सजदा नहीं करूंगा। इस पर ईश्वर ने नाराज होते हुए लूसीफर/ईब्लिश को स्वर्ग से बहिष्कृत करते हुए फटकार लगाई और नाम दिया शैतान। लूसीफर/शैतान ने अपनी पूजा के बदले ईश्वर से वरदान मांगा कि उसे आदम और उसकी पत्नी को बहकाने की शक्ति प्रदान कर। ईश्वर ने उसे यह वरदान देते हुए खुली छूट दे दी। 

हव्वा और आदम का जन्नत से निकल कर पृथ्वी पर आना - 
लूसीफर/शैतान ने हव्वा को अल्लाह के द्वारा जिस अनाज (गेहूं) के दाने खाने से मना किया था, उन्हें ही खाने पर ललचाया। वह सांप के भेष में आया और हव्वा को यह बीज खाने हेतु प्रेरित किया। हव्वा ने आदम सहित गेहूं खा ली। यह दाना खाने के कारण शौच की हाजत हुई। इस कारण उन दोनों को जन्नत से निकाल दिया गया। आदम को श्रीलंका (सरणद्वीय) और हव्वा को सीरिया के पास उतारा गया। दोनों लगभग दस वर्ष तक अलग रहने के बाद जद्दा की पहाड़ियों में (मक्का शहर के पास) मिले। 
यहां दोनों के संतान की उत्पत्ति शुरू हुई। 
1. पहली संतान 130 वर्ष की आयु में हुई जिस का नाम शैत रखा गया। शैत 905 वर्ष तक जीवित रहे। 
2. शैत के पुत्र का नाम इनोश रखा गया। 
3. एनोश के पुत्र का नाम केनान रखा गया। केनाम 920 वर्ष जीवित रहे। 
4. केनान का पुत्र महल्लेल हुआ जो  895 वर्ष जीवित रहे। 
5. महललेल के पुत्र हुआ येरेद जो 962 वर्ष जीवित रहे। 
6. योरेद के पुत्र हुआ इदरीश/ हनोक जो नबी हुए जो 365 वर्ष पृथ्वी पर रहे। बाद में ईश्वर ने उन्हें उठा लिया। 
7. इदरीश के पुत्र हुआ मतूशेलह 959 वर्ष जीवित रहे। 
8. मतूशेलह के पुत्र हुआ लेमेक जो 777 वर्ष जीवित रहे। 
9. लेमेक के पुत्र हुआ नूह जो नबी हुए।
10. पांच सौ बरस की आयु में नूह के शेम, हाम, और येपेत पुत्र हुए।
शनै - शनै इनकी संतान संपूर्ण पृथ्वी पर फैल गई।

02. इदरीस (हनोक)
इदरीश (अ.) आदम और नूह के बीच के नबी हैं। इनका जन्म बेबीलोन (इराक में हुआ। यह आदम के बेटे शीश (अ.) के कुनबे से थे। नबुवत के काम से उन्होंने बेबीलोन से मिश्र की यात्रा की। अल्लाह ने इनको ज्योतिष और दवाओं का ज्ञान दिया। बाइबल में इनको हनौक नाम दिया गया है। इनकी पत्नी का नाम आदानाह एवं पुत्र का नाम मैथ्यसालेह था। अल्लाह ने इन्हें सशरीर स्वर्ग में बुला लिया। नूह के दादा मैथ्यूसालेह था। इदरीश ने लेखन और सिलाई का काम शुरू किया। इन्हें पहला वैज्ञानिक भी कहा जाता है।

03. नूह (नूह) (इनका कबीला जल प्रलय में मारा गया)।
नूह के पिता का नाम लेमेंक ओर तीन पुत्र शेम, हाम, और येपेत हुए।
नूह के समय जल प्रलय - 
नूह के काल में पृथ्वी पर अत्याचार और अन्याय बढ़ने लगा चारों ओर हिंसा फैली हुई थी। अल्लाह ने नूह को तीन सौ हाथ लम्बा, पचास हाथ चौड़ा, तीस हाथ ऊँचा तीन मंजिला नाव जिसकी छत से एक हाथ नीचे खिड़की और सामने दरवाजा हो बनाकर उसमें सभी प्रजातियों के जीवों के जोड़े रखने का आदेश दिया। जहाज पूर्ण होने पर एक तूफान आया और नाव में सवार जीवों के अलावा सभी जीव मारे गए। नूह की कश्ति का माप संभावित इस प्रकार है जो हाथ के नाप से बताया गया है। एक हाथ को 18 इंच (लगभग 45.72 सेंटीमीटर) माना जाता है, हालांकि यह प्राचीन काल में क्षेत्र और संस्कृति के अनुसार थोड़ा भिन्न हो सकता था। इस हिसाब से, आधुनिक नाप - 
लंबाई: 300 हाथ × 45.72 = लगभग 137 मीटर (450 फीट)
चौड़ाई: 50 हाथ × 45.72 = लगभग 22.86 मीटर (75 फीट)
ऊंचाई: 30 हाथ × 45.72 = लगभग 13.72 मीटर (45 फीट)
(बाइबल, उत्पत्ति 6:14-16) नूह (Noah) की कहानी का प्राथमिक स्रोत है।

04. हूद/हुअद (हेबर)
आद समाज जो यमन और ओमान के बीच अहकाफ़ नामक स्थान रहते थे वहां पर फैले आतंक और अन्याय को मिटाने हेतु नबी हूद (अ) को भेजा गया। आद दक्षिणी अरब, फारस की खाड़ी, उम्मान से लेकर हद्रामौत और यमन, लाल सागर के दक्षिणी छोर ओमान तक फैले हुए थे। यहां अन्य समाज व जनजातियाँ समूद, जूरहूम, तसम, जदीस, अमीम, मीदियन, अमालेक, इमलाक, जसीम, कहतान और बानू यक़्तान कबीले भी रहते थे। क़ुरआन में इनके नाम से सुरह हूद अवतरित हुई। हूद नूह के चौथी पीढ़ी के वंशज थे (नूह के पुत्र शेम, शेम के पुत्र अराम, आराम के पुत्र ओज और ओज के पुत्र हूद हुए। हूद ने एकेश्वरवाद का संदेश दिया। हूद के पिता का नाम एबर बताया गया है। हूद की आयु 462 वर्ष थी।

05. सालेह (मेथूसालेह) (समूद कबीला भूकंप में मारा गया)
अरब कहानियों में सालेह का ऊंटनी वाला किस्सा 
समूद समाज (कबीला) अरब प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी (सरगोन द्वितीय के समय में असीरियन काल) में पाया जाता था। छठी शताब्दी तक यह कबीला लुप्त हो चुका था। इस कबीले में फैले अन्याय और अत्याचार को मिटाने हेतु अल्लाह ने नबी के रूप में सालेह नबी को भेजा। इनके आवास क्षेत्र को अल हिज़्र (पत्थरों का शहर) कहा जाता है। सालेह ने मदाईन सालेह (सालेह के शहर) बसाए। कुरान से पहले अन्य इब्राहिमी पुस्तकों में कोई जिक्र नहीं मिलता है।
सालेह की प्रजा समूद द्वारा नबी होने की निशानी मांगने लगी। अल्लाह ने आजीविका के साधन के रूप में उन्हें एक नाक़ा (मादा ऊँट) दिया। लोगों को उस ऊंट को शांति से चरने और उसे नुकसान ना पहुंचाने से बचने के लिए कहा गया। लेकिन सालेह की चेतावनी की अवहेलना करते हुए कबीले के लोगों ने ऊंट की टांगें तोड़ दीं और नौ लोगों ने सालेह और उसके पूरे परिवार को मारने की साजिश रची। सालेह ने उन्हें सूचित किया कि उन (समूद) के पास जीने के लिए केवल तीन दिन ओर हैं, इससे पहले कि अल्लाह का क्रोध उन पर उतरे। शहर के लोग पश्चाताप कर रहे थे परंतु उनका अपराध क्षमा नहीं किया गया और सका सभी लोग भूकंप में मारे गए।  (मदियन सालेह) अब अल हिज्र (पत्थरों का शहर) हो गया। कुरान की सूरत अन-नमल में यह कहानी सविस्तार बताई गई है।

06. नबी लूत (लॉट)
नबी लूत नबी इब्राहीम के भतीजे थे।
नबी लूत का जन्म हारान में हुआ और अधिकांश बचपन उर्दुन में बिताया एवं बाद में अपने चाचा इब्राहम के साथ कनान रहने चले आए। नबी लूत ने मिश्र में सदोम और अमोरा शहर बसाए जहां उन्होंने नबी के रूप में काम किया। वहां के लोगों को नबी लूत ने एकेश्वरवाद का उपदेश दिया। कुरान के अनुसार वहां के लोगों ने लूत को अस्वीकार कर दिया और अन्याय एवं अत्याचार (विशेषकर समलैंगिक संबंध) अनवरत रखे। लूत के समझाने पर भी अवहेलना करते रहे।
शैतान समलैंगिक संबंध बनाने वाला बुरा काम करने हेतु लूत के शहर में अमरद (बगैर दादी मूछ वाले नौजवान सुंदर युवक के रूप में ) आया और उन लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया और समलैंगिक संबंध स्थापित करवाने में सफल हो गया। इस शहर के लोगों को इसका चस्का लग गया और वो इस बुरे काम के आदि हो गए। नौबत यहां तक आ गई कि वे औरतों को छोड़कर मर्दों से यौन सुख प्राप्त करने लगे। लूत ने इसे रोकने के प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने समझाया कि - 
तुम वह प्रत्यक्ष अश्‍लील कर्म करते हो, जिसे दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया। तुम स्त्रियों को छोड़कर मर्दों से कामेच्छा पूरी करते हो, तुम नितान्त मर्यादाहीन लोग हो।
नहीं मानने पर जिब्रील फरिश्ते ने इन शहरों की पांचों बस्तियों को अपने परों पर उठा कर ज़मीन को उलट दिया | फिर उन पर पत्थरों की बारिश हुई। ऐन वक़्त जब शहर उलट पलट हो रहा था लूत की पत्नी वाइला (मुनाफ़िक़ा) बुरे लोगों से लगाव रखती थी, ने पीछे मुड़कर देख लिया और उसके मुँह से निकला - हाए मेरी क़ौम! और खड़ी हो गई, एक पत्थर उसके ऊपर आ गिरा और वहीं ढेर हो गई।

07. इब्राहिम (खलीलुल्लाह) (अब्राहम)
नाम - इब्राहिम (अब्राहम)
अन्य नाम - ख़लीलुल्लाह 
आयु - 169 वर्ष
पिता - अन्य ग्रंथ (तारिख) कुरान (आजर)
पिता अपने समय के बड़े पुजारी थे।
माता - ताराह 
जन्म - 1813 ईस्वी पूर्व (लगभग चार हजार पांच सौ वर्ष पूर्व)
जन्म स्थान - कनान (मेसोपोटामिया, इराक)
मृत्यु - 1644 ईस्वी पूर्व 
शांत स्थान - मेकलफ की गुफा
मृत्यु स्थान - हिब्रोन (शाम)
घर/निवास - मक्का (बक्का)
काबा का कुरान में वर्णन - 
वास्तव में लोगों के लिए (पूजा/इबादत) हेतु सर्वप्रथम जो घर बनाया गया वो यही (काबा) है जो बक्का (मक्का) में है बड़ी (खैर व बरकत) वाला और सम्पूर्ण संसार के लोगों का रहनुमा है।
- सुरह आल इमरान, आयात 96
भाई - नाहौर 
भतीजा - लूत 
पत्नियां
1. सारा
2. कथुरा 
3. हाजरा (बाइबल के अनुसार कैंकुबाईन/रखैल/बिना विवाह के किसी महिला से संबंध रखना/लीव इन रिलेशनशिप)
संतान
01. इस्माइल (हाजरा से) (नबी)
02. इस्हाक़ (सारा से)(नबी)
03. ज़िमरान (कथुरा से)
04. योक्षान (जॉक्सन)
06. मेदन 
07. मीदीयन
08. शुऐब
09. इश्बाक
10. शुआ
तत्कालीन राजा - नमरुद (यह राजा नाक के बल मच्छर सर में घुसने के कारण मरा)
नबी इब्राहिम की कहानी - 
उनके पिता आजर अपने क्षेत्र के बड़े पुजारी थे। पिता की अनुपस्थिति में इब्राहिम का दायित्व था कि सभी देवताओं की मूर्तियों की सेवा करें। एक दिन इब्राहिम ने सब से बड़ी मूर्ति से कहा, लो भोजन करो। परन्तु मूर्तियां भोजन नहीं करतीं। इब्राहिम ने कुल्हाड़ी से सब मूर्तियां तोड़ कर कुल्हाड़ी बड़ी मूर्ति पर रख दी। पिता के पूछने पर कहा कि इस बड़े देवता ने सब मूर्तियां तोड़ दीं। लोगों ने कहा भला मूर्ति अन्य मूर्तियों को कैसे तोड़ सकती है। इस पर इब्राहिम ने कहा तो फिर तुम इनको क्यों पूजते हो। इस अपराध के दंड स्वरूप इब्राहिम को बड़ी सी आग (आतिश ए नमरुद) में डाल कर मारने का प्रयास किया गया। (यह कहानी कुछ - कुछ भारत में प्रचलित होलिका, हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी से मेल खाती है, जो स्थान, नाम व कथानक के बदलाव के साथ प्रचलित है)। इब्राहिम अल्लाह के आदेश से आग से सुरक्षित निकल आए। वहां से इब्राहिम मिश्र आ गए। यहां उन्हें ईश्वर ने अपनी सर्वप्रिय वस्तु की बलि की मांग की। इब्राहिम ने इस आदेश पर 70 वर्ष की आयु में (हाजरा) से हुई संतान को मां सहित एक ऊंट पर बैठा कर हिजाज (मक्का) के रेगिस्तान में छोड़ दिया। हाजरा ने पानी की तलाश की। इस प्रयास में वह सात बार सफा और मरवा की पहाड़ियों पर चढ़ी पर पानी नहीं मिला इसे सई (तलाश/खोज) कहा जाता है। (हज यात्रा के समय सई की यह परंपरा आज भी निभाई जाती है)। 
अल्लाह ने इस्माईल के पानी से एड़ियां रगड़ने के स्थान से जमीन से पानी निकाल दिया। हाजरा ने जब पानी देखा तो उसे पाल बांध कर रोका और कहा, जम - जम। बाद में इब्राहिम अपना पूर्व का क्षेत्र छोड़ कर मक्का उन्हें संभालने वापस आए तो इस स्थान पर पानी का कुंआ बनवाया जिस का नाम हुआ जम - जम का कुआं। (अरबी भाषा में जम का अर्थ होता है ठहरना)। अब इब्राहिम यहां आने - जाने लगे। इस यात्रा को हज कहा गया। उन्हीं की याद में जिल कदा (नौवें महीने) महीने में पवित्र हज यात्रा की जाती है। कुछ वर्षों बाद इब्राहिम को फिर से स्वप्न आया कि अपनी प्रियतम वस्तु की बलि दो। इब्राहिम ने अपने पुत्र इस्माईल की बलि देने का प्रयास किया। इब्राहिम के इस कार्य में शैतान अवरोध डालने के प्रयास में हाजरा व इस्माईल को बहकाने आया। जिस पर दोनों ने उसे पत्थरों से मारा। हज के समय यहीं शैतान को पत्थर मारने की परम्परा (हज में रम्ज/शैतान को सात कंकरियां मारना) निभाई जाती है। अल्लाह ने वहां इस्माईल के स्थान पर भेड़ को बलि के लिए भेजा। इस कार्य की याद में ईद अल अजहा (बकराइद) का त्यौहार मनाया जाता है। यह परंपरा जिल कदा की एक तारीख से दस तारीख के बीच पूर्ण की जाती है। इब्राहिम को आदेश हुआ वहीं घर बनाओ जहां आदम ने घर बनाया था। अल्लाह (ईश्वर) के आदेश से इब्राहिम ने वहां काबा (बैतुल्लाह/अल्लाह का घर) की स्थापना की। 
(हज - मक्का और मदीना की यात्रा)।
इब्राहिम का समाज को संदेश - 
ऐ मेरे समाज के लोगों, यह क्या है जो में देख रहा हूं कि तुम अपने हाथ से बनाई मूर्तियों को पूजते हो। तुम जिस औजार से गढ़ कर मूर्तियां बनाते हो जो आपकी इच्छानुसार न बनें, तो उनको तोड़ कर दूसरी मूर्ति बनाते हो और फिर उनकी पूजा करते हो। इस गलत काम को छोड़ दो। अल्लाह जो सब का पालनहार एवं मालिक है कि पूजा करो। अल्लाह एक है जो मेरा, तुम्हारा और सबका पालनहार व मालिक और दाता है।
कुरआन में मक्की-मदनी दोनों प्रकार की 35 सूरतों की 63 आयतों में इब्राहीम (अ.) का वर्णन मिलता है।
नबी इब्राहिम को अल्लाह ने कुछ लिखित में फरिश्तों के माध्यम से भेजा। इन्हें सहूफ ए इब्राहिम कहा जाता है।
नबी इब्राहिम की संतान अब तीन स्थानों पर रहने लगी। 
1.  किनान शहर जहां सारा की संतान रहती थी वहां नबी इशहाक बने। इनकी संतान बनू इसराइल/यजदी/यहूदी कहलाती है।
2. अरब का मक्का शहर जहां इस्माईल नबी बने। इनकी संतान बनी/बनू इस्माइल/अरबी कहलाती है।
3. अफगान और ईरान क्षेत्र जहां जथूरा की संतान का राज्य हुआ।
मुस्लिम, यहूदी, ईसाई, जरथूस्ट धर्मावलंबी अपने को इब्राहिम की संतान कहते हैं। 
नबी इब्राहिम ने अपनी संतान की खतना करनी शुरू की।

दरूद (पुण्य स्मरण) ए इब्राहिम - 
अल्लाह हुमा सल्ली आला मोहम्मदिंव व आला आली मोहम्मदिंव कमा सल्लैता वा आला इब्राहिमा वा आला आली इब्राहिमा इन्नाका हमीदिंव मजीद। 

08. इस्माईल (ज़बीहउल्लाह) (इश्माएल) - 
अरब में इस्माईल बड़े हो कर पिता इब्राहिम के उत्तराधिकारी बने जिनकी संतान आल ए इस्माईल (इस्माईली) कहलाते हैं। अरब के सुनसान इलाके में उसी समय बनू जुरहम क़बीला पानी तलाश में आया। पानी मिलने पर जुरहम हाजरा से स्वीकृति ले कर यहीं बस गए। हाजरा भी यहां किसी के बसने की इच्छुक थीं। बाद में जुरहम ने अपने शेष साथियों को यहां बुला लिया और मकान बना कर रहने लगे। बनू जुरहम की लड़की से इस्माईल का विवाह हुआ। फिलीस्तीन से इब्राहिम कभी कभार संतान से मिलने आते रहते थे। एक दिन उन्होंने मक्का में आकर इस्माइल के घर पर दस्तक दी। इस्माइल की पत्नी आई तो उससे पूछा इस्माइल कहां है। पत्नी ने जवाब दिया, खाने पीने की बड़ी कमी है, इसलिए बाहर कमाने गए हैं। इब्राहिम ने कहा इस्माईल आए तो उस से कह देना, घर के दरवाजे की चौखट बदलवा लेना। इस्माइल के घर आने पर पत्नी ने सारी कहानी सुनाई। इस्माइल समझ गए कि यह तो उनके वालिद इब्राहिम थे जिन्होंने इस पत्नी को छोड़ने का आदेश दिया है। इस्माइल ने उसे तलाक दे दिया और दूसरी शादी कर ली। दोबारा इब्राहिम ने आकर घर की औरत से पूछा तो जवाब मिला जी, बाहर गए हैं। इब्राहिम ने पूछा घर के क्या हालात हैं, तो इस्माइल की पत्नी ने कहा बहुत अच्छे हैं। इब्राहिम ने कहा, इस्माइल आए तो उनसे कहना घर की चौखट मजबूत है। इस्माइल आए और पत्नी से वाकया सुना। वो समझ गए कि यह पत्नी घर के काबिल है।
अल्लाह के आदेश से इस्माईल और इब्राहिम ने अल्लाह के घर (वो जगह जहां नबी आदम घर बनाया था, की खुदाई की और उसका पुनर्निमाण किया। यहां जन्नत से लाया गया पत्थर (हजरे अस्वद) लगाया गया। एक पत्थर पर इब्राहिम के पैरों के निशान बन गए जिसे (मक़ाम ए इब्राहिम) बना कर रखा गया। 
हजरे अस्वद (जन्नत का काला पत्थर)
इस्माइल शब्द का अर्थ है ईश्वर/अल्लाह द्वारा पुकारा गया। इनकी आयु 136 वर्ष थी
एक कहानी के अनुसार इस्माइल की मृत्यु फिलिस्तीन में हुई जहां उनकी कब्र है, और दूसरी कहानी के अनुसार उनकी मौत मक्का में हुई जहां उनकी कब्र है। सच अल्लाह ही जाने। कुरान में सुरह ए मरियम और अन्य कई जगह इस्माइल का वर्णन मिलता है।

09. इशाक (इसहाक)
नाम - इशहाक 
पिता - इब्राहिम
माता - सारा
जन्म - 1713
जन्म स्थान - कनान, फिलिस्तीन
मृत्यु - फिलिस्तीन
इन की संतान बनू इसराइल कहलाई। इब्राहिम की सौ वर्ष की आयु में इशहाक का जन्म हुआ। इनकी मां का नाम सारा था।
संतान - याक़ूब व एसाव
पोते या नाती - यूसुफ़, जुदाह, लेवि, सिमियन, बेंजामिन, रूबेन।

10. याकूब (जैकब)/इसराइल
नाम - याकूब (जैकब)
पिता - इशहाक
माता - रुबिका
भाई - जुड़वां भाई ऐसाव 
(नबुवत के लिए दोनों भाइयों में बहुत बड़ी लड़ाई हुई। याकूब पिता के उत्तराधिकार हेतु अग्रेषित हुए)।
पत्नियां - दो पत्नीयां, दो रखैल 
1. लिआ (पत्नी)
2. राहेल (पत्नी) - राहेल की मृत्यु याकूब की चौहदवीं और अपनी तीसरी संतान (यूसुफ और बिन्यामिन के बाद) को जन्म देने से पूर्व हुई।
3. बिल्हा (रखैल)
4. ज़िलपा (रखैल)
(मामा लाबान की दो बेटियों से विवाह हुआ)। याकूब राहेल से प्रेम करते थे, परन्तु मामा लाबान ने पहले लिआ से विवाह कर सात वर्ष तक उनके घर पर रह कर काम करने के बाद राहेल से विवाह किया।
जन्म - केनान 
मृत्यु -  मिश्र
कुल आयु - 147 वर्ष
शांत स्थान - हेब्रोन 
याकूब का भाई ऐसाव बहुत गुस्सैल था। भाई के अत्याचार से बचने के लिए वो केनान छोड़ कर हारान मामा के घर आ गए। पिता इशहाक की मृत्यु के बाद वो केनान वापस चले आए। यहां आ कर उनका नाम इसराइल हुआ। यहीं से बनू इसराइल की शुरुआत हुई। 
इसराइल (याकूब)(जैकब) के बारह बेटे हुए - 
1.रूबेन
2. शिमोन
3. लेवी
4. यहूदा
5. इस्साकार
6. जबूलून
7. दान
8. यूसुफ़
9. बिन्यामीन
10. नप्ताली
11. गाद
12. आशेर
13. एक बेटी लिआ से नाम दीना।
ज़ुर्बरन की पेंटिंग में याकूब के बारह बेटे
याकूब के 12 बेटों से 12 कबीले हुए जिन्हें सम्मिलित रूप से बनू इसराइल कहा जाता है। याकूब के बेटों ने भाई यूसुफ को कुएं में डाल दिया। इससे रोते हुए अंधे हो गए। कालांतर में यह कबीले सब जगह फैल गए। आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में, असीरियन ने उत्तरी क्षेत्र पर आक्रमण किया और वहाँ बसे बारह में से दस कबीलों को वहां से खदेड़ दिया। इन कबीलों के ठिकानों के संबंध में समय - समय पर बहस होती रही है। यह माना जाता है कि नई दुनिया के स्वदेशी लोग दस गुमनाम कबीलों के वंशज हैं। 

11. यूसुफ़ (जोसेफ़)
नाम - यूसुफ
जन्म स्थान - पैदान (आराम)
मृत्यु स्थान - मिश्र 
पिता का नाम - याकूब
माता का नाम - राहेल
भाई एक - बिन यामीन
संतान - 
1. एफरैम 
2. मनसेह
पोते पोतियां - 
सराह सुहेलेहा, मुशीर, एलद, बेकर, जैर, तहां, इजार
- घटनाक्रम 
नबी याकूब के आठवें पुत्र माता का राहेल बहुत ही सुन्दर व्यक्ति थे। एक बार उन्हें सपना आया कि ग्यारह तारे और एक चांद उन्हें सजदा कर रहे हैं। याकूब ने उसे यह बात अपने भाइयों को बताने से मना किया। यूसुफ के भाई याकूब से उनके विशेष प्रेम से ईर्ष्या करते थे। एक दिन वो अपने भाई यूसुफ को खेलने हेतु साथ ले गए और कुएं में फेंक कर घर आकर पिता याकूब से कह दिया कि यूसुफ को भेड़िया खा गया। याकूब उनकी याद में बहुत रोए। जंगल में कुएं के पास से व्यापारियों का समूह जा रहा था। बच्चे का रोना सुनकर उन्होंने उसे बाहर निकाला और मिश्र के राजा फराओ के सेनापति को बेच दिया। यूसुफ बहुत सुन्दर थे। फराओ द्वितीय के समय सेनापति की पत्नी जुलेखा यूसुफ के रूप पर मोहित हो गई। उसने कई बार यूसुफ से संबंध स्थापित करना चाहा परन्तु असफल रही। जुलैखा ने यूसुफ पर आरोप लगा कर जेल भिजवा दिया। फराओ रामसे को एक दिन स्वप्न आया कि सात स्वस्थ गायों को सात कमजोर गाय खा रही थीं। जेल में यूसुफ में यह स्वप्न बताया गया तो उसने कहा सात वर्ष अच्छा अनाज होगा और फिर अकाल पड़ेगा। इस पर फराओ/फ़िरौन ने यूसुफ को मिश्र का खाद्य मंत्री (बाद में प्रधानमंत्री) बनाया। जुलैखा बूढ़ी हो गई। उसमें अल्लाह से पुनः जवानी दे कर यूसुफ से विवाह की दुआ की। उसकी दुआ क़ुबूल (स्वीकृत) हुई। यूसुफ ने जमाने के समय अनाज को बाल सहित इकट्ठा करना शुरू कर दिया। फिर अकाल के समय इसी अनाज में से लोगों को अनाज बांटना शुरू कर दिया। केनान से याकूब के बेटे भी अनाज लेने हेतु मिश्र आए। यूसुफ अपने भाइयों को पहचान गए। उन्होंने जान बुझ कर बिन्यामिन के बोरे में एक कटोरा डाल कर चोरी के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया। वापस आ कर याकूब के दस बेटों ने यह बात पिता को बताई। अब याकूब खुद मिश्र की ओर चल पड़े। वहां यूसुफ ने उनका स्वागत किया। यूसुफ ने याकूब और उनके सभी बेटों को कायरो (काहिरा) में बसाया। यूसुफ अब वहां शक्तिशाली नेता बन चुके थे। बनी इसराइल बहुत मेहनती थे, थोड़े ही समय में वो मिश्र के प्रभावी लोग बन गए।

12 इमरान नबी  (जोअचिम)
नाम - इमरान (जोआकिन)
पत्नी - एनी/अन्ना
पुत्री - मरियम (ईशा मसीह की मां)
पोता/नाती - ईसा (मसीह)
नबुवत का क्षेत्र - फिलिस्तीन
मृत्यु का स्थान - सलालाह (यमन)
इमरान बहुत अमीर व्यक्ति थे जो दान पुण्य का कार्य दिल खोल कर करते थे।
कुरान में इनके नाम से सुरह आले इमरान अवतरित हुई।

13. शुएब नबी (जेथ्रो)
नाम - शोएब (जोथरों)
शोएब इब्राहिम और कथूरा के पुत्र मिद्यान का पोता एवं मिकील के बेटे थे। शोएब अय्यूब नबी के बाद के नबी बने। और इनके बाद मूसा नबी बने। इनके दादा का नाम इस्साकार था। 
शोएब मूसा के ससुर थे। कुरान में उनका 11 बार वर्णन हुआ है। शोएब शब्द का अर्थ है - सही रास्ता दिखाने वाला। शोएब अरब मूल के चरवाहे थे। उनका नबुवत क्षेत्र मिद्यान (मदियन) सऊदी अरब में अब के ताबुक प्रांत से मेल खाता है जो अब यशरब (मदीना) है। यहां के लोग नापतोल में गड़बड़ करते थे। यहां आग की बारिश और फिर अतिवृष्टि का अजाब आया। शोएब नबी वाकपटु एवं बुद्धिमान थे।

14. अय्यूब (जॉब)
क्षेत्र - जॉर्डन
मृत्यु - सलाला, ओमान
नबी अय्यूब का मकबरा - सलाला
संतान - ज़ुलकिफ़्ल (नबी) सहित (सात बेटे तीन बेटियां कुल दस बच्चे)
अयुब नबी के पास 7000 भेड़, 300 ऊंट, 1000 बैल और 500 गधे थे। इनका नबुवत का क्षेत्र रोम था। रोमन में उन्हें जॉब कहा जाता है। अल्लाह ने विपत्तियों और अभाव के साथ अयुब विश्वास और धैर्य की परख की। उनकी सारी दौलत और संपत्ति उससे छीन ली गई। सभी संतान की हालत खराब हो गई। कोढ़ के कारण शरीर में कीड़े पड़ गए। एक भयंकर सूखे ने उसकी सारी फ़सलें नष्ट कर दीं और उसके सारे जानवर प्यास, भूख और बीमारी से मर गए। उनके समुदाय के लोग उन्हें छोड़ कर चले गए। उनकी वफ़ादार और धर्मपरायण पत्नी ही उनके साथ रहीं। वह हर मुश्किल में धैर्यपूर्वक देखभाल करती रहीं। फिर भी हर हाल में अल्लाह का शुक्र अदा किया। अल्लाह ने पानी के एक झरने से अय्यूब की कोढ़ को समाप्त किया। पैगंबर अय्यूब हमें सिखाते हैं कि धैर्य का मतलब केवल कठिनाई को सहना नहीं है, बल्कि कृतज्ञता और दिल से ऐसा करना है जो अल्लाह से जुड़ा रहे, उसकी बुद्धि और दया पर भरोसा करे।

15. ज़ुलकिफ़ल (एजेकील)
नाम - ज़ुल्किफल 
नबी अयुब के पुत्र।
अन्य नाम - धू अल-किफ़्ल, धुल-किफ़्ल, ज़ू अल-किफ़्ल। 
यहेजकेल को भी तल्मूद और मिड्राश द्वारा यहोशू का वंशज बताया गया है। उसने राहाब से विवाह किया था। रब्बी साहित्य में पाए गए कुछ कथनों में कहा गया है कि यहेजकेल यिर्मयाह का पुत्र था, जिसे बूज़ी (तिरस्कृत) कहा जाता था।वह यहूदियों द्वारा तिरस्कृत था।
क्षेत्र - भूमध्यसागरीय तट पर स्थित आधुनिक तेल अवीव। इस स्थान का नाम यहेजकेल था।
ईजेकील (ज़ुल्कीफल) इजरायल क्षेत्र के नबी (पैगंबर) थे। यरूशलेम पर दूसरे हमले (ईसा पूर्व 599) के बाद नबूकदनेस्सर द्वारा बेबीलोन ले जाया गया था। उन्हें जंजीरों में जकड़ा कर जेल में डाल दिया गया। कुछ समय के लिए उनकी बोलने की शक्ति चली गई (गूंगे हो गए)। उसने सब कुछ धैर्य और दृढ़ता के साथ सहन किया और इजरायल में बुराइयों का साहस पूर्वक विरोध करते रहे। उन्होंने कहा, 
ए इस्राएल के चरवाहों! जो जानवर तुम्हारा पेट पालते हैं, तुम उनका मांस और चर्बी खाते हो, ऊन पहनते हो पर तुम इनकी देखभाल नहीं करते। तुम बीमार पशुओं की देखभाल और घायलों की मरहम - पट्टि नहीं करते।

16. ज़ुल्करनैन नबी - 
कुछ लोगों का मानना है कि ज़ुल्करनैन नबी थे, वहीं कुछ का मानना है कि वो सिर्फ एक राजा थे।
अज़-ज़ुबैर इब्न बकर की रिवायत है कि सुफ़यान अथ थावरी ने कहा है कि - 
मुझे पता चला है कि चार व्यक्तियों का पूरी धरती पर शासन था जिनमें से दो सुलेमान और ज़ुल-क़रनैन एकेश्वरवादी (मुस्लिम) और बाकी दो नमरुद और बिख्तीनसार बहुदेववादी (ग़ैर मुस्लिम) थे। इसे सईद इब्न बशीर ने भी रिवायत किया है।
अली इब्न अबू तालिब के बाद अबू अत-तुफ़ैल का बयान है कि कि ज़ुलक़रनैन न तो कोई पैगंबर थे, न कोई रसूल, न ही कोई फ़रिश्ते, वो अल्लाह के बंदे एकैश्वरवाद के प्रचारक व उपासक था।

कुरान में जुल्करनैन - 
कुरान में ज़ुलक़रनैन के बारे में ज़िक्र है। कुरान में बताया गया है कि अल्लाह ने ज़ुलक़रनैन को हर चीज़ की शक्ति दी जिसने विश्व विजय कर उस पर शासन किया। वो जहाँ भी जाते वहाँ इस्लाम (एकेश्वरवाद) का प्रचार करते। उन्होंने अपने सिर पर एक मुकुट पहना था जो दो सींगों जैसा दिखता था।
कुरान में यात्रा वर्णन - 
ज़ुल-क़रनैन की एक महान यात्रा का उल्लेख किया है कि एक दिन वह पश्चिम में कहीं अपनी यात्रा शुरू करता है जहाँ वह भूमि के अंतिम छोर पर आता है। जहाँ उसने सूरज को एक अंधेरे और मटमैले पानी में डूबते हुए देखा (अर्थात पूर्व)। फिर वह विपरीत दिशा में आगे बढ़ता है जहाँ वह फिर से भूमि के अंतिम छोर पर आता है जहाँ उसने सूरज को एक महासागर से उगते हुए देखा, जिसका अर्थ है कि वह पूर्व की ओर से आया था। फिर उसने दूसरा रास्ता लिया और उन लोगों की ज़मीन पर पहुँचा जो एक अलग ज़बान (पुरानी बोली) बोलते थे। इन लोगों ने फिर ज़ुल-क़रनैन से दरख़्वास्त की और शिकायत की कि - 
ऐ ज़ुल-क़रनैन! यजूज और माजूज ने हम पर और ज़मीन पर बहुत फसाद किए हैं। हर रोज़ वो आते हैं और हमारा सारा खाना खा जाते हैं। और हमें परेशान करते हैं। इसलिए मेहरबानी करके उनके और हमारे बीच एक दीवार खड़ी कर दो।

जुलकरनैन की पहचान - 
1. विश्व विजेता
2. एकेश्वरवादी
3. दूर समंदर की यात्रा
4. सर पर सींग वाला ताज (मुकुट) पहना। उस राज का नाम अलग था जिसने ज़ुल्करनैन की उपाधि (फराओ की तरह) धारण की। इस नाम का अर्थ होता है दो सिंगों वाला।
5. एक बड़ी सी दीवार बनाने वाला
6. इस्लाम के इतिहास में शक्तिशाली, महान और पवित्र शासक।

जुलकरनैन कौन - 
इतिहास में ज़ुल्करनैन को अलग - अलग नाम से पुकारा गया है। कई इतिहासकार या टिप्पणीकारों के अनुसार सिकंदर महान के दूसरा नाम ज़ुल्करनैन है। अन्य का मानना है कि वह परसिया का राजा साइरस था। एक अन्य विचारक कहते हैं कि वह चीन का राजा शी हुआंग डी था।

जुलकरनैन पर्शिया का महान राजा साइरस (कुरुश महान्)था - 
साइरस (500 ईस्वी पूर्व) के शासनकाल में (अचमेनिद साम्राज्य) ने सभी पिछले निकटवर्ती राज्यों को जीत लिया। उसने अधिकांश पश्चिमी और मध्य एशिया पर विजय प्राप्त की और विश्व का अब तक का सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित किया जो पश्चिम में भूमध्य सागर और हेलस्पोंट से लेकर बाल्कन (पूर्वी बुल्गारिया - पेओनिया और थ्रेस - मैसेडोनिया ) के कुछ हिस्सों और पश्चिम में दक्षिण पूर्व यूरोप,  पूर्व में सिंधु नदी तक फैला हुआ था। सायरस ने सींग वाला राज मुकुट धारण किया था।

जुलकरनैन को चीनी राजा शी हुआंग डी साबित करने के पीछे तीन दलीलें हैं 
1. सींग वाला मुकुट, 
2. बिना धातु की बड़ी दीवार बनाने वाला
3. पश्चिम से पूर्व की यात्रा 
            चीन की महान दीवार
      शी हुआंग डी का राज्य विस्तार
इसमें याजूज (गोग) और माजूज (मगोग) (मगोग का अपभ्रंश मंगोल) का आशय हान और मंगोल जनजाति से हैं। यह जनजातियां बहुत बर्बर और लुटेरी थीं। जिन से बचने के लिए चीन की दीवार का निर्माण किया गया। चीन में सन् 399 ईस्वी पूर्व राजा हुए शि हुआंग डी  (जुल-क़र्नियन अरबी नाम) राज्य विस्तार हेतु मंगोलिया की ओर आया। यहां (मंगोलिया की सीमा पर) रह रहे लोगों की भाषा वह नहीं जानता था।
एक महान दीवार जिस के संबंध में कुरान में कहा गया है कि वह धातु से नहीं बनी थी वही चीन की महान दीवार है जिस का निर्माण शी हुआंग डी ने करवाया था उसे कुरान में जुल-क़र्नियन कहा गया। (वास्तव में यहां उसे उसके नाम से नहीं उपाधि से जाना गया है - 

जुलकरनैन सिकंदर महान था - 
यह तथ्य कहीं से साबित नहीं होता है। 

सारांश - 
उपरोक्त बहस के बाद मुख्य विशेषता सींग वाला मुकुट, एकेश्वरवादी, महान दीवार (बर्बर लोगों से बचने हेतु) के आधार पर तत्कालीन समय का राजा शी हुआंग डी ही राजा जुलकरनैन थे। अरब लोगों का सिल्क वे के द्वारा चीन से व्यापार हजारों सालों से चला आ रहा है। वहां आए व्यापारियों ने इस राजा, बनती हुई दीवार और शासन व्यवस्था को देखा होगा जिसका विवरण कुरान में दिया गया है। 

17. मूसा (कलीमुल्लाह) (मोजिज)
नाम - मूसा
अन्य नाम - मूसा/मोसिस/मोशे
जन्म - जाशान मिश्र
मौत - नीबो पर्वत, मोआब
कबीला - बनी इसराइल 
पिता - इमरान
माता - युकाबाद 
नबुवत क्षेत्र - मिश्र एवं फिलिस्तीन
विवाह - सफ़ूरा
संतान - 
1. गरशोम
2. अली अज़र
सहोदर -
हारून (छोटा भाई)
मरियम (छोटी बहन)
घटनाक्रम - 
इन्हें यहूदी धर्म के (संस्थापक) ईसाई और इस्लाम धर्म में नबी माना जाता है। लगभग 1200 ई.पू. (3700 वर्ष पूर्व) मिस्र के फ़राओ रामसे द्वितीय के राजकाल में जन्मे। रामसे ने स्वयं को खुदा घोषित कर दिया। मूसा बनी इसराईल में (इमरान) की संतान थे। एक ज्योतिष के कहे अनुसार कि तुम्हे मारने वाला बनी इसराइल में पैदा होगा, फराओ के आदेश अनुसार कि किसी भी बनी इजरायली के घर नर संतान का जन्म होने पर उसे राजा को सौंप दिया जाए। राजा उसे मार डालता था। इस भय से मां ने बेटे को एक संदूक में डाल कर नील नदी में बहा दिया। उनको फिर फ़राओ की पत्नी (आयशा) ने राजकुमार की तरह पाला। कुछ वर्षों बाद बड़ा होने पर मूसा को मालूम हुआ कि वो बनी इसराईली हैं और बनी इसराईल (जिसको फरओ ने ग़ुलाम बना लिया था) अत्याचार सह रहा है। मूसा ने एक पहाड़ (तूर ए सीना) पर अल्लाह से बात की और अपने समाज (बनी इसराइल) को फ़राओ की दासता से मुक्ति की प्रार्थना की। ईश्वर ने नील नदी में से रास्ता बना कर उन्हें फिलिस्तीन में रहने की जगह दी। फराओ और उसकी सेना को पानी में डूबो कर मार डाला। एक बार मूसा अल्लाह से बात करने तूर ए सीना पर गए जहां उन्हें 40 दिन लग गए। वहां अल्लाह ने उन्हें एक पत्थर पर खोद कर दस नियम ताबूत ए सकीना में रख कर दिए। बनी इसराइल के लोगों और उनके भाई हारून ने सोचा वो मर गए। कुछ लोगों ने सोने से गाय की मूर्ति बना ली। मूसा ने वापस आने के बाद एकेश्वरवाद का संदेश दिया। अल्लाह ने कुछ नियम मूसा को दिए। इसके बाद मूसा ने बनी इसराइल को ईश्वर द्वारा मिले दस आदेश दिये जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तम्भ है।
मूसा के दस नियम (अलवाह - तूर ए सीना पर)
1. मन वचन और कर्म से ईश्वर (अल्लाह) प्रेम करें।
2. अपने पड़ोसी के सुख दुख में भागीदार बनें।
3. माता - पिता की सेवा करना एवं आज्ञा पालन करना।
4. अमानत की रक्षा करना एवं उधार चुकाना
5. निर्बल, परदेसी (अजनबी) एवं छोटे बच्चों, विधवा पर दया।
6. व्यापार में सुचिता एवं व्यावहारिकता (शोषण मुक्त व्यापार)
7. निंदा एवं चुगली ना करना एवं नेतृत्व की बात मानना।
8. किसी को नुकसान ना पहुंचाना। नुकसान होने पर उसकी भरपाई करना।
9. पवित्र एवं शुद्ध रहना। शुद्ध भोजन करना।
10. हत्या और गैर इरादतन हत्या के बीच का अंतर समझ कर न्याय करना।

मूसा ने बनी इसराइल को फिलिस्तीन में बारह कबीलों में बसाया। मूसा नबी यूसुफ से लगभग 400 वर्ष बाद उनके भाइयों की संतान में से थे।

18. हारून (हारून)
हारून नबी मूसा नबी के मौसेरे छोटे भाई थे। नबी हारून हर मुश्किल समय में मूसा के साथ रहे। वो आज्ञाकारी छोटे भाई थे।
हारून और मूसा ने बनी इस्राइल को फराओ के अत्याचार एवं पथ भ्रष्ट होने से बचाया। मूसा ने अपनी अनुपस्थिति में हारून को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 
हारून की मृत्यु 123 साल की उम्र में तूरे सीना में हुई। जॉर्डन के पेट्रा के पास होर जॉर्डन पर्वत पर उनका मकबरा है, जिसे जबले हारून के नाम से जाना जाता है। मूसा पर तौरेत पुस्तक (Law of musa) अवतरित हुई।

19. दाऊद (डेविड)
दाऊद ने गोलियथ (जालूत) को मार डाला।
अल्लाह ने हवाओं और तूफानों को नियंत्रित करने और उन पर नियंत्रण करने की क्षमता दी। वो जानवरों की भाषा समझने और लोहे को मोम की तरह नरम बनाने की क्षमता रखते थे। बाइबल के अनुसार दाऊद पहले से एक राजा नहीं था। वो तो अपने आठ भाइयों में सबसे छोटा भाई था। दाऊद के पिता का नाम यिशै था। दाऊद बचपन में एक चरवाहा था, और अपने पिता की भेड़ बकरियों को चराया करता था। दाऊद सतहत्तर वर्ष जिंदा रहे।उन्होंने फिलिस्तीन पर 40 साल तक शासन किया, जिसमें से 7 साल हेब्रोन में और 33 साल अल-कुद्स (यरूशलेम) में बिताए।
अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल-आस कहते हैं कि - अल्लाह के रसूल ने मुझसे कहा, अल्लाह को दाऊद के रोजे एवं प्रार्थना सर्वाधिक प्रिय हैं। वह रात का आधा हिस्सा सोते और फिर रात का एक तिहाई हिस्सा प्रार्थना करते और फिर से छठा हिस्सा सोते और एक दिन छोड़कर रोज़ा रखते थे।
-  मुहम्मद अल-बुखारी, सहिह बुखारी
विवरण - 
दाऊद नबी पर जुबूर किताब अवतरित हुई। दाऊद इसराइल (बनी इसराइल) के नबी/राजा/रसूल थे।
नाम - दाऊद (अ. ) दुआओद/डेविड
पिता - जेस
माता - निजवेत (तल्मूद)
जन्म - ईसा से 1000 वर्ष पूर्व 
जन्म स्थान - बैथेलेहम, फिलिस्तीन (इज़राइल)
मृत्यु - ईसा से 900 वर्ष पूर्व
मृत्यु स्थान - यरुशलम
विवाह - आठ विवाह
1. मिशेल 
2. अजीनोम
3. अबिगेल 
4. माशा 
5. हागीथ 
6. एबिटल 
7. इगलाह 
8. बाथसभा
संतान - अठारह संतान
1. आमोन 
2. शिलिब 
3. अबसोलन 
4. एडोनिश
5. शेपथिया
6. इदरीम 
7. शमुआ 
8. शोबाब
9. नाथन 
10. सुलेमान/सोलोमन 
11. ईबहार 
12. ऐलीसुआ 
13. नेफ़ेग 
14. जेरीमोथ 
15. ज़फिया 
16. एलीशमा 
17. एलीएड 
18. एलीफलत 
19. तमर 
कुरान में संदर्भ - सूरह  2, 4, 5, 6, 17, 21, 27, 34, 38 में 16 बार वर्णन है।
ऐ दाऊद! हमने तुम्हें जमीन में शासक बनाया। लोगों के बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला करो और इच्छाओं का अनुसरण न करो, अन्यथा वह तुम्हें अल्लाह के मार्ग से भटका देगी। जो लोग अल्लाह के मार्ग से भटक गए, उनके लिए कठोर यातना है। वे हिसाब का दिन भूल गए।
- कुरान 38:26
दाऊद नबी ने जालूत को हराया। दाऊद  संगीत और गायन में माहिर थे। दाऊद ने सेना के लिए लौह को पिघला कर कवच का निर्माण किया। दाऊद ने यरुशलम में एक बड़ी धार्मिक इमारत का निर्माण करवाया। इसी इमारत के मालिकाना हक के लिए ईसाई,यहूदी और मुस्लिमों में संघर्ष चल रहा है।

20. सुलेमान नबी (सोलोमन) 
नाम - सुलेमान (सोलोमन)
जन्म - 990 ईस्वी पूर्व 
मृत्यु - 931 ईस्वी पूर्व 
पिता - दाऊद
माता - बेथसाबे
जन्म  स्थान - येरुशलम 
मृत्यु स्थान - येरुशलम
विवाह - 
कहा जाता है कि सुलेमान ने नामाह (मिश्र के फराओ की पुत्री सहित) 700 स्त्रियों से विवाह किया और 300 रखैल थीं। 
संतान - 
1. रेहोबोम 
2. तपथ 
3. बेसमैथ 
सुलेमान का राज्य - 
सुलेमान ने यरुशलेम में कई धर्मस्थल बनाए। इसराइल को धार्मिक जीवन का केंद्र बनाया। इन निर्माण कार्यों के कारण उन्होंने प्रजा पर करों का अत्यधिक भार डाल दिया। सुलेमान की मृत्यु के बाद राजद्रोह हुआ और उनके राज्य के दो टुकड़े हो गए - 
(1) उत्तर में इसराएल अथवा समारिया जो जेरोबोआम के शासन में आ गया और जिसमें दस वंश सम्मिलित हुए।
(2) दक्षिण में यहूदा/यरुसलेम जिसमें दो वंश सम्मिलित थे और जो रोवोआप के अधीन हो गया। धर्म ग्रंथों में सुलेमान को सफल राजा बताया गया है परन्तु वास्तव में वह असफल राजा थे। सुलेमान ने तख्त ए सुलेमानी का निर्माण करवाया। सुलेमान नबी का तख्त इब्न बतूता की खोज के अनुसार पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में स्थित सुलेमान पर्वत की चोटी पर है। इसे तख्त-ए-सुलेमान या पैगंबर सोलोमन का सिंहासन भी कहा जाता है। यह दक्षिण वजीरिस्तान और बलूचिस्तान के झोब ज़िले की सीमा के पास स्थित है। पश्तो भाषा में इस शिखर को दा कासी घर (क़ैस का पर्वत) कहा जाता है।
सैयद मुहम्मद हमजा गेसुदराज प्रथम को उनके परिवार और वंशजों के साथ तख्त-ए-सुलेमान की चोटी पर दफनाया गया है। इस दफ़न को मीरन कहा जाता है।
सुलेमान को इस्लाम धर्म में नबी/पैगंबर माना जाता है। कुरान में वर्णन के अनुसार नबी सुलेमान ने हवा और जिन्न को नियंत्रित किया। उन्हें जानवरों और जिन्न से बात करने की क्षमता सहित कई ईश्वर प्रदत्त उपहार (मोज़जे) दिए गए। 
सुलेमान के राज्य में समृद्धि और शांति थी। उसने सुलेमान यरुशलम की मस्जिद, सुलेमान का राजमहल, येरुशलम का परकोटा, भंडार गृह और अश्वशालाएं बनवाई।

कुरान में सुलेमान और दाऊद का संदर्भ
हमने दाऊद और सुलैमान को ज्ञान दिया। उन्होंने कहा सब तारीफ अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अपने ईमानवाले बन्दों के मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की। दाऊद का उत्तराधिकारी सुलैमान हुआ औऱ उसने कहा, ऐ लोगो ! हमें पक्षियों की बोली सिखाई गई है और हमें हर चीज़ दी गई है। निस्संदेह वह स्पष्ट बड़ाई है। सुलैमान के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र की गई फिर उनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी।
- क़ुरआन 27-15-17
फिर जब हमने उसके लिए मौत का फ़ैसला लागू किया, उन जिन्नों को उसकी मौत का पता बस जमीन के उस कीड़े ने दिया जो उसकी लाठी को खा रहा था। फिर जब वह गिर पड़ा, तब जिन्नों पर प्रकट हुआ कि यदि वे परोक्ष के जाननेवाले होते तो इस अपमानजनक यातना में पड़े न रहते। 
- क़ुरआन 34:14

सुलेमान की न्याय प्रियता - 
एक बार दो स्त्रियों ने एक शिशु को अपना शिशु होने का दावा किया। सुलेमान ने जल्लाद को बुला कर शिशु के दो टुकड़े कर एक - एक दोनों को देने का आदेश देते हैं। इस पर असली मां ने बच्चा दूसरी स्त्री को सौंपने की याचना की। सुलेमान ने बच्चा असली मां को सौंप दिया और झूठी स्त्री को दंड दिया। 

21. इलियास नबी (एलियास)
पथभ्रष्ट हो चुके बनी इसराइल को सही मार्ग पर लाने हेतु नबी इलियास को फिलिस्तीन क्षेत्र में भेजा गया। उनकी वंशावली इलियास बिन यासीन बिन फ़खास बिन याग्रा बिन हारून के रूप में लिखी है। नबी इलियास का जन्म 800  ईस्वी पूर्व यरूशलेम में हुआ था नबी इलियास के समय में 742 ईस्वी पूर्व असीरियाई राजा यहूदा राज्‍य पर आक्रमण की योजना बनाता है। नबी इलियास कहते हैं कि यहूदा (बनी इसराइल) को वास्‍तविक खतरा असीरिया की सैन्‍य-शक्‍ति से नहीं, बल्‍कि इस कौम के पापों से है। हमारे लोग अल्लाह पर भरोसा नहीं करते। नबी ने स्‍पष्‍ट शब्‍दों तथा कार्यों द्वारा जनता और नेताओं का आह्‍वान किया कि वे धर्म एवं न्‍याय का जीवन व्‍यतीत करें! नबी उन्‍हें यह चेतावनी भी देते हैं कि यदि वे दीन के मार्ग पर नहीं चलेंगे तो उनका विनाश होना निश्चित है। सन् 734 ईसवी पूर्व में वह राजा आहाज को यह कहते हुए अयोग्‍य ठहराते हैं कि राजा दाऊद के वंश में ऐसा व्यक्‍ति जन्‍म लेगा जो विश्‍व का आदर्श राजा होगा। संपूर्ण विश्‍व में ऐसा समय आएगा जब चारों ओर शान्‍ति का साम्राज्‍य होगा। यद्यपि हिजकियाह अपेक्षाकृत सुयोग्‍य राजा था और इसके शासनकाल में सन् 701 ईसवी पूर्व में, असीरियाई सम्राट सनहेरिब का यरूशलेम का तख्त पलटने में असफल रहा।  नबी इलियास 800 वर्ष पूर्व यरूशलेम में रहते थे। राजदरबार से उनका निकट सम्‍पर्क था। यहूदा क्षेत्र के बनी इसराइल के बहुत से लोगों को बेबीलोन में निष्‍कासित कर दिया गया। इलियास ने घोषणा की कि अल्लाह अपने लोगों को जल्द ही गुलामी से मुक्‍त कर यरूशलेम में उन्हें वापस नया जीवन आरंभ करने में सहायता करेंगे। इन्होंने बनी इसराइल को शुद्ध एवं पवित्र धार्मिक आचरण, सामाजिक न्‍याय, विश्राम-दिवस का पालन, कुर्बानी, नमाज और रोजा रखने की नसीहत की।

22. अल-यसा नबी (एलिशा) - 
पिता - आमोश 
संतान - 
समकालीन राजा - 
यहूदा के राजाओं उज्जियाह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह के कार्यकाल में अल यशा (एलिशा) नबी बने।
एशिरियन के हमलों से सन् 722 में उत्तरी फिलिस्तीन राज्य का पतन हो गया और इसकी राजधानी सामरिया पर कब्ज़ा कर लिया गया। इस समय इस्राएली राज्य खंड - खंड था पर दक्षिणी राज्य अभी भी शक्तिशाली था। सन् 722 के बाद यशायाह ने नबुवत की घोषणा की। यहां के यहूदी (बनी इसराइल) अल्लाह के स्थान पर मिस्र पर भरोसा करते थे। यशायाह ने उत्तरी राज्य के उत्थान हेतु बनी को संगठित किया।

23. युनुस नबी (जोनाह)
जन्म स्थान - गैथ हल्पर
पिता - मित्त
अल्लाह ने नबी युनुस को नीनवे (सीरिया) के लोगों का मार्गदर्शन करने और उन्हें मुक्ति दिलाने हेतु भेजा जो भटक गए थे। अपने हठ और मार्गदर्शन पर ध्यान देने की अनिच्छा के लिए जाने जाने वाले इस समुदाय ने पैगम्बर यूनुस के सामने गंभीर चुनौतियाँ खड़ी कीं पर युनुस धैर्य और शांति से अल्लाह के संदेश दृढ़ता से उन तक पहुंचाते रहे।
नीनवे के लोगों का जहाज़ में तूफ़ान में फंस गया। जहाज़ पर सवार लोगों ने पैगम्बर यूनुस को एकेश्वरवादी के रूप में पहचान कर कुर्बानी के लिए (देवताओं को बलि चढ़ाने हेतु) पैगम्बर यूनुस को जहाज़ से बाहर फेंकने का फ़ैसला किया। जहाज से फेंके जाने पर युनुस को व्हेल मछली ने निगल लिया। अल्लाह ने उस मछली को उसे समुद्र से बाहर जमीन पर फेंकने का आदेश दिया। मछली ने उन्हें नंगा बाहर फेंक दिया। युनुस के शरीर पर अल्लाह ने शैवाल जैसी हरी घास लपेट दी।
नबी यूनुस का वर्णन क़ुरआन की दसवीं सूरत में किया गया है।
अल्लाह ने ज़ुन्नून (मछलीवाले) पर भी दया दर्शाई। याद करो जब वह अत्यन्त क्रद्ध होकर चल दिया और समझा कि हम उसे तंगी में न डालेंगे। अन्त में उसनें अँधेरों में पुकारा - 
तेरे सिवा कोई इष्ट-पूज्य नहीं, महिमावान है तू, निस्संदेह मैं दोषी हूँ।
- क़ुरआन 21:87

दुःख के समय अल्लाह की शरण हेतु युनुस की दुआ - 
अल्लाहुम्मा इन्नी अ'उज़ुबिका मिन अलहम्मी वल हुज़्नी वल अज्जी वल कासली वल भुखली वल जुबनी व दलाइद दिनी व गलाबतिर रिजाल। 
हिंदी अनुवाद - 
ए अल्लाह, मैं चिंता, दुःख, कमज़ोरी, आलस्य, कंजूसी और कायरता, कर्ज़ के बोझ और मनुष्यों द्वारा प्रबल होने से तेरी शरण लेता हूँ।

तुम अपने रब की कृपा हेतु धैर्य से काम लो और मछलीवाले (यूनुस अलै॰) की तरह न हो जाना, जब उसने पुकारा था इस दशा में कि वह दुख में घुट रहा था।
- कुरान 68:48

इस्माईल, इलियास, यूनुस और लूत को भी, इनमें से हर एक को हमने संसार में श्रेष्ठता प्रदान की।
- कुरान 6:86

इसी तरह यूनुस भी उन लोगों में से थे, जो (हमारे द्वारा) भेजे गए। जब वह जहाज़ पर लदा हुआ भागा, तो अल्लाह ने संदेश भेजा। उसे दोषी ठहराया गया। फिर उसे व्हेल (मछली) ने निगल लिया और उसने निंदनीय काम किए। अगर उसने (तौबा न की होती और) अल्लाह की तसबीह न की होती, तो वह क़यामत के दिन तक मछली के पेट में ही रहता । लेकिन हमने उसे बीमारी की हालत में समुद्र के किनारे पर फेंक दिया और उसके ऊपर लौकी की तरह का एक फैला हुआ पौधा उगा दिया। और हमने उसे एक लाख या उससे ज़्यादा लोगों की तरफ़ भेजा। और वे ईमान लाए। फिर हमने उन्हें कुछ समय तक मौज-मस्ती करने की इजाज़त दी।
-  कुरान, सुराह 37 अस-साफ्फात, 139 -148

24. ज़कारिया (ज़करियाह)
जन्म - 600 ईस्वी पूर्व 
पिता - बेरेक्याह( बाइबल में ईद्दो)
कुरान में पैगंबर ज़करिया का संदर्भ - 
सुरह आले इमरान, अनआम, मरयम, और अंबिया में नबी जकरिया का वर्णन मिलता है। कुरान में जकरिया को एकेश्वरवादी नबी के रूप में प्रदर्शित किया गया है। ज़करिया सुलेमान बिन दाऊद के वंशज थे। ज़करिया निःसंतान थे और उनकी पत्नी बहुत बूढ़ी थी, उन्होंने अल्लाह से संतान हेतु दुआ की कि ऐ मेरे रब, मुझे बे-वारिस न छोड़, और तू ही सबसे अच्छा वारिस है।
अल्लाह ने उन्हें बुढ़ापे में याह्या नाम से बेटा दिया। कुरान में उनका 93 बार वर्णन किया है।

25. याह्या (जॉन द बैप्टिस्ट)
ईसाई धर्म और यहूदी धर्म में, उनका उल्लेख "जॉन द बैपटिस्ट" के रूप में किया गया है।
नबी याह्या पैगम्बर ईसा (यीशु) के चचेरे भाई थे। उन्हें अल्लाह ने पैगम्बर ईसा के लिए रास्ता तैयार करने हेतु भेजा। पैगम्बर याह्या को कैद कर लिया गया था, फिर बाद में हेरोदेस ने एक नर्तकी (अपनी भतीजी) के प्रति अपने मोह को साबित करने के लिए उनका सिर कलम कर दिया।
याह्या का जन्म नबी जकरिया के बुढ़ापे में हुआ। वे पढ़ने लिखने के शौकीन थे। पढ़ने  और ज्ञान प्राप्त करने हेतु वे माता-पिता से दूर पहाड़ों पर चले जाते थे और अल्लाह को याद करते हुए समय बिताते। वे अक्सर अल्लाह के डर से बहुत रोते थे। इसके अलावा, वे एक नेक इंसान थे जो अपने माता-पिता से प्यार करते थे और उनका सम्मान करते थे।
कुरान में नबी याह्या का संदर्भ - 
याह्या नाम कुरान में 5 बार आया है।
ऐ यहया किताब (तौरेत) मज़बूती के साथ लो और हमने उन्हें बचपन ही में अपनी बारगाह से नुबूवत और रहमदिली और पाक़ीज़गी अता फरमाई और वह (ख़ुद भी) परहेज़गार और अपने माँ बाप के हक़ में सआदतमन्द थे और सरकश नाफरमान न थे और (हमारी तरफ से) उन पर (बराबर) सलाम है जिस दिन पैदा हुए और जिस दिन मरेंगे और जिस दिन (दोबारा) ज़िन्दा उठा खड़े किए जाएँगे ।
- क़ुरआन 19- 12-15

26. ईसा नबी/रसूल (जिसस)
जन्म - 25 दिसंबर 6 ईसा पूर्व
जन्म स्थान - गलीलिया प्रांत के नाज़रेथ गाँव (बेथलहम) (बैतूल हराम) यहूदा (फिलिस्तीन) रोमन साम्राज्य
मौत -  सन 30 ईस्वी 
मृत्यु स्थान - नासरत येरुशलम, यहूदा (फिलिस्तीन) रोमन साम्राज्य
मृत्यु का कारण - क्रूस (सूली) पर चढ़ाया जाना।
माता - मरियम (मेरी)
(मरियम की सगाई दाऊद के वंशज यूसुफ से हुई थी।)
पिता - मरियम (कुंवारी माता)
गुरु - याह्या (गुरु ने इन्हें चालीस दिन की शिक्षा के बाद बपतिस्मा (दीक्षा) दिया।
नाना - नबी इमरान
ईसा मसीह (यीशु) ईसाई धर्म के संस्थापक माने जाते हैं। इनकी खतना आठ वर्ष की आयु में की गई। ईसा मसीह ने मानव सेवा के लिए अपना जीवन व्यतीत किया। मरियम और यूसुफ गलीलिया छोड़कर यहूदिया प्रांत के बेथलेहेम शहर में आ कर रहने लगे, वहाँ ईसा का जन्म हुआ। यरुशलम में कुछ व्यक्तियों ने घोषणा की कि अल्लाह बनी इसराइल के पुनरुद्धार के लिए एक नबी इसी शहर में भेज चुका है। हेरोदस ने अपने सैनिकों से ऐसे बच्चे के जन्म का पता लगाकर मारने के आदेश दिए। सैनिकों ने रामाह क्षेत्र के दो वर्ष में जन्मे सभी बच्चों को मार डाला। पूरा क्षेत्र परिजनों के रोने और विलाप से भर गया। यूसुफ और मरियम इससे बचने के लिए मिस्र चले गए। वहां से हेरोदस की मृत्यु के बाद यूसुफ लौटकर नाज़रेथ (नासरा) गाँव में आ कर बस गए। यरुशलम में फसह नाम के उत्सव में मरियम के साथ यीशु (ईसा) भी जाते थे। वहां उन्होंने धर्मावलंबियों से धर्म के बारे में चर्चा की और प्रश्न किए। तीस साल की आयु तक ईसा नासरा (नसारा) में रह कर बढ़ई का काम करते रहे। गुरु (नबी)याह्या (नबी जकरिया के बेटे) द्वारा दी गई शिक्षाओं को फैलाने के लिए ईसा यरुशलम आ गए और लोगों को एकेश्वरवाद की शिक्षा देने लगे। ईसा ने कहा केवल यहूदी/बनी इसराइल से नहीं अल्लाह तो सम्पूर्ण संसार के लोगों से प्रेम करता है। क़यामत के दिन वह हम सब से अपने कर्मों का हिसाब लेगा। कर्मकांडो का विरोध करने के कारण यहूदी रब्बियों (धर्मगुरुओं) ने ईसा का विरोध करना शुरू कर दिया। रब्बियों ने रोमन गवर्नर कप्रीफेक्ट पोन्तियुस पिलातुस से उसकी शिकायत की। पितालुस ने ईसा और उनके बारह साथियों पर मुकदमा चला मर सूली (क्रूस) पर चढ़ा कर ईसा को मौत की सजा दी। उनकी पीठ पर क्रूस लाद कर रोमी सैनिक कोड़ों से मारते हुए गल्गता ले गए। यहां उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। परन्तु अल्लाह ने ईसा को सूली पर चढ़ाने से पहले ही अपने पास बुला लिया। इस्लामिक मान्यता के अनुसार ईसा आज भी जीवित हैं। अल्लाह ने ईसा पर इंजील (पवित्र पुस्तक, पवित्र चार पुस्तकों में से एक) अवतरित की। क़ुरान में ईसा के नाम का वर्णन मुहम्मद साहब से अधिक बार किया गया है। ईसा के बारह साथियों ने उनके मिशन को आगे बढ़ाया। इस प्रकार से ईसाई धर्म की स्थापना हुई। 
ईसाई मान्यता के अनुसार यीशु पुनर्जीवित हुए और मानव जीवन को संवारने का कार्य कर रहे हैं। 

इस्लाम और ईसाई धर्म में ईसा की मान्यता - 
1. दोनों ही धर्म ईसा को कुंवारी मरियम और नबी इमरान का दोहित मानते हैं।
2. इस्लाम धर्म में ईसा को रूहअल्लाह एवं नबी/रसूल मानते हैं जबकि ईसाई यीशु को अल्लाह का बेटा मानते हैं।
3. दोनों ही धर्म के अनुसार अल्लाह ने ईसा को मुर्दों को जिंदा करने की शक्ति दी।
4. ईसाई मानते हैं कि ईसा को सूलीबोर चढ़ाया गया जबकि मुस्लिम मानते हैं कि सूली पर ईसा नहीं कोई अन्य था। ईसा को तो अल्लाह ने पहले ही ऊपर उठा लिया था।
5. मुस्लिम मानते हैं कि कयामत से पहले ईसा जमीन पर फिर से आयेंगे, इस्लाम धर्म को विश्वव्यापी बनाएंगे और दज्जाल को समाप्त करेंगे।

ईसा और हदीस - 
 समस्त नबी भाई हैं और ईसा मेरे सबसे करीबी भाई हैं, क्योंकि मेरे और ईसा के बीच कोई नबी नहीं आया।
- मोहम्मद साहब 
कुरान में ईसा का संदर्भ - 
क़ुरान में ईसा का नाम 25 बार आया है। सुरह मरियम में ईसा के जन्म का वर्णन है। सुरह आले इमरान में भी ईसा का विवरण है। क़ुरान में ईसा का मुहम्मद साहब से अधिक बार वर्णन है।

27. मोहम्मद (मुहम्मद)
(मोहम्मद साहब के बारे में अधिक जानकारी हेतु उपरोक्त लिंक को क्लिक करें)
ईश्वर (अल्लाह) ने आदम से ईसा तक एक लाख चौबीस हजार (कुछ अधिक/कम) नबी/पैगम्बर/रसूल/अंबिया भेज कर धर्म की पूर्णता और परिमार्जन का कार्य किया। अब सारांश और अंतिम धर्म स्थापना हेतु मोहम्मद साहब को भेजा गया। इनके आने के बाद ईश्वर की तरफ से धर्म स्थापना कार्य पूर्ण हुआ। अब हर व्यक्ति के पास इतना ज्ञान आ गया है कि वह अच्छा और बुरा पहचान सकता है। शैतान और इंसानियत के दुश्मन कौन हैं, उसका और इंसानियत का भला कौन सा काम करने में है और कौन सा काम नहीं करने में है। समस्त जानकारी आदमी तक पहुंचा दी गईं। 
अंतिम समय में मोहम्मद साहब ने अपने साथियों को इस बात की गवाही दिलवाई कि अल्लाह की ओर से भेजा गया ज्ञान मैंने अपनी ओर से ना एक तिल बराबर बढ़ाया है और ना ही तिल बराबर घटाया है, अर्थात पूरा - पूरा समस्त संसार के समस्त लोगों तक पहुंचा दिया है। मेरे बाद कोई नबी नहीं आयेगा। अब हर इंसान का यह महत्वपूर्ण कार्य हो गया है कि मानवता की भलाई और एकेश्वरवाद का संदेश संसार के हर कौने तक सुरक्षित पहुंचाए।

इस्लाम धर्म में महिला नबी/पैगम्बर 
अधिकांश विद्वानों का मानना है कि पैग़म्बर केवल पुरुष थे पर इब्न हज़म, कर्तुबी, इब्न हाजीर और अल अशारी का मानना है कि 
1. मरियम (इमरान की बेटी/ ईशा की माता)
2. अशिया/आयशा (फिरओन की पत्नी) मूसा की पालक मां) 
से फरिश्तों ने बात की है जिससे यह साबित होता है कि वो नबी थीं। फिर भी साधारण रूप से यह माना जाता है कि कोई महिला नबी नहीं हुईं।

3. चार किताब - 
सर्वप्रथम अल्लाह ने इब्राहिम को छोटे पीछे दिए जिनमें जीवन के नियम लिखित थे। इनका नाम सहूफे इब्राहिम हुआ। सहूफे इब्राहिम में तत्कालिक परिस्थितियों के नियम - उपनियम संधारित हैं।आदिम मानव से इंसान बनने की ओर अग्रसर होने वाले आदम की संतान को पशुता से सामाजिक  जीवन जीने हेतु कुछ अलग नियमों की आवश्यकता हुई। यही शुरुआती नियम सहूफे इब्राहिम कहलाए।

अवतरित चार किताब - 
यह किताबें वास्तव में नियमावली/संविधान हैं जिनके अनुसरण में जीवन यापन किया जाता है।
1. तोरेत (तोरा) - 
यह किताब बनी इसराइल को मिस्र के फराओ की दासता से मुक्ति दिलवाने वाले मूसा नबी के लिए अवतरित हुई। इसे ईसा के नियम (Law of moasus) के नाम से जाना जाता है। ऊपर मूसा नबी अंश में मूसा के 10 नियम दिए गए हैं। 

जुबुर - 
इसे दाऊद की न्याय संहिता भी कहा जाता है। यह नबी दाऊद के समय में उन के समाज सुधार मिशन हेतु अवतरित हुई। इस हेतु यहूदी धर्म को पढ़ कर अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
तोरेत एवं जूबर व यहूदी धर्म के बारे में अधिक जानकारी

इंजील - 
ईसा के नियम जो इंजील के रूप में सामान्य जीवन बसर हेतु प्रतिपादित किए गए। इस हेतु ईसाई धर्म को पढ़ कर अधिक जानकारी ली जा सकती है।

कुरान - 
सभी किताबों के परिमार्जित एवं संशोधित नियम जिनके बदलने की संभावना नहीं है कुरान के नियमों के अंतर्गत अवतरित हुए। यह अंतिम पुस्तक अल फुरकान व किताबुली मुबीन के नाम से भी जानी जाती है। 

5. फरिश्ता - 
अल्लाह के अर्श, जमीन ओर आसमान पर विभिन्न कार्यों के लिए नियत प्रकाश से बने होते हैं जिन्हें एंजल/फरिश्ते कहा जाता है।इनके कार्य अलग - अलग होते हैं। 
وإذ قال ربك للملائكة إني جاعل في الأرض خليفة
ऐ नबी! याद कीजिए जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफ़ा बनाने वाला हूँ। 
सूरह बक़रा - 30

اِنَّ الَّذِيْنَ عِنْدَ رَبِّكَ لَا يَسْتَكْبِرُوْنَ عَنْ عِبَادَتِهٖ وَيُسَبِّحُوْنَهٗ وَلَهٗ يَسْجُدُوْنَ
जो लोग तुम्हारे रब के पास हैं, वे अल्लाह की इबादत से इन्कार नहीं करते, बल्कि उसकी तसबीह करते हैं और उसी को सजदा करते हैं।
- सूरह अल आराफ़: 206

يا أيها الذين آمنوا قوا أنفسكم وأهليكم نارا وقودها الناس والحجارة عليها ملائكة غلاظ شداد لا يعصون الله ما أمرهم ويفعلون ما يؤمرون
ऐ ईमान वालो! अपने आपको और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन मनुष्य और पत्थर हैं। जिसपर कठोर दिल, बलशाली फ़रिश्ते नियुक्त हैं। जो अल्लाह उन्हें आदेश दे, उसकी अवज्ञा नहीं करते तथा वे वही करते हैं, जिसका उन्हें आदेश दिया जाता है। 
- सूरतुत-तहरीम - 6

कुछ फरिश्ते एवं उनके कार्य - 
1. जिब्राइल (जिब्रिल)- 
मौत का फरिश्ता/नबियों तक वाह्य लेकर आने वाला फरिश्ता। इन पर हवा को नियंत्रित करने, मानव जरूरतों को पूरा करने या रोकने और मृत्यु के समय शुद्धता बनाए रखने वालों पर दया करने का भी काम सौंपा गया है।
2. मिकाइल
बारिश के फरिश्ते।
3. इस्राफील - 
क़यामत के दिन तुरही की आवाज निकालने वाला फरिश्ता।
4. मुनकर  नकीर - 
कब्र में हिसाब लेने वाले फरिश्ते जो तीन प्रश्न पूछते हैं।
1. मन रब्बुका - तुम्हारा रब कौन है?
सही जवाब - मेरा रब अल्लाह है।
2. मन दीनुका - तुम्हारा रास्ता (धर्म) कौन सा है?
सही जवाब - मेरा दीन इस्लाम है।
3. हाजा राजुली मिन - यह चेहरा (मोहम्मद साहब की छवि दिखाते हुए) किस का है?
सही जवाब - यह चेहरा नबी मोहम्मद साहब का है।
5. किरामून कातिबीन फरिश्ते - 
कंधों पर बैठे रहते हैं जो इंसान की भलाई एवं बुराई का इंद्राज करते हैं। मुनकर अच्छाई नकिर बुराई लिखते हैं।
6. रिजवान - 
जन्नत का दरोगा। गेट मेन ऑफ हेवन।
7. इसराइल फरिश्ता -
मौत का फरिश्ता जिन का काम रूह (आत्मा) को शरीर से निकाल कर अल्लाह के यहां प्रस्तुत करना है।
8. बुर्राक - 
इस फरिश्ते पर सवार हो कर मोहम्मद साहब ने जन्नत और जहन्नम की सैर (मेराज का सफर) की थी।
9. हफ़ज़ा फ़रिश्ते - 
हर व्यक्ति को चार हफ़ज़ा फ़रिश्ते दिए जाते हैं. इनमें से दो दिन में और दो रात में निगरानी रखते हैं।
10. संरक्षक फ़रिश्ते - 
मुहम्मद साहब ने कहा है कि हर आदमी के दस संरक्षक फ़रिश्ते होते हैं।
अल्लाह ने क़ाबे की सुरक्षा के लिए 70 हजार फरिश्ते तैनात कर रखे हैं।
11. 24 घंटे मक्का का तवाफ करने वाले फरिश्ते - 
इनकी संख्या 70 हजार बताई जाती है।

6. शैतान - 
शैतान के पर्यायवाची शब्द - 
मुर्रा - कड़वा
अद्दु अल्लाह - अल्लाह का शत्रु 
अदु वल्लाह - दुश्मन का दुश्मन
अबु अल हरिथ - हल चलाने वाला शत्रु 
एजाजिल - शैतान
तल्बिस - भ्रम
डेविल - शत्रु

कुरान में शैतान का संदर्भ - 
शैतान अहंकारी इच्छाओं (नफ़्स) का अंधा अनुसरण करने हेतु आमंत्रित करके खुद के लिए देवत्व का दावा करता है।
सूरह अल-अनबिया 21 - 29 
इबलीस को छोड़कर, वह जिन्नी में से एक था 
कुरान, सुरह अल काफ़ 18 - 50

शब्द इबलिश की उत्पत्ति - 
यह शब्द ब ल से से बना है जिसका अर्थ है दुखी रहना।  शैतान शब्द का बहुवचन शयातीन कहा जाता है।
      शाहनामा में इबलिश की कृति
फ़रिश्ते आदम से मिलते हैं, जो एक आदर्श मानव है। इब्लीस घमंड से अपना सर दूसरी ओर घुमा लेता है। फरीदुद्दीन अत्तार की मन्तिक़ अल-तय्यर (पक्षियों का सम्मेलन) की पांडुलिपि से पेंटिंग। ईरान, शिराज, हिजरी 899/ सन 1494
हेरात जिस का फारसी भाषा में बलामी द्वारा तारीख अल-तबारी नाम से अनुवाद किया गया की पांडुलिपि से पेंटिंग जो टोपकापी पैलेस म्यूज़ियम लाइब्रेरी में रखी गई है। इसमें फ़रिश्ते आदम को सजदा कर रहे हैं पर इब्लीस नहीं।
फ़रिश्तों द्वारा आदम को सजदा करने का फारसी लघुचित्र। इब्लीस, काले चेहरे व बिना बालों वाला (चित्र के ऊपर दाएँ)। वह आदम को सजदा करने से मना करता है।
एक पेड़ पर परियों की रानी (हुरी या परी) बैठी है, प्रवेश द्वार की रखवाली इब्लीस करता है जो सांसारिक इच्छाओं के आगे झुकने वालों को प्रवेश करने से रोकता है।
अल-हकीम निशापुरी द्वारा आदम को जन्नत से निकालने की पेंटिंग। इसमें आदम, हव्वा, इब्लीस, सर्प, मोर और एक रिजवान (जन्नत का रक्षक फरिश्ता)
यह पेंटिंग फालनामेह (शगुन की किताब) से ली गई है जो जाफर अल-सादिक को सौपी गई थी। इसमें आदम, हव्वा, साँप, मोर और इबलीस को जन्नत से निकाले जाने के बाद दिखाया गया है। इबलीस को काले चेहरे के साथ चित्रित किया गया है, जो चित्र में नीचे बाईं ओर फरिश्तों के ऊपर है।
इब्लीस को मुअल्लिम-उल-मलकूत यानी फ़रिश्तों का उस्ताद भी कहा जाता है।
एक समय जब सृष्टि में मानव नहीं थे। यहां सिर्फ अल्लाह,फरिश्ते और दैव/जिन्न रहते थे। इन जिन्नों में से एक था इब्लीश। उसने पृथ्वी सहित सभी भूमियों और आकाश के प्रत्येक भाग पर ईश्वर की स्तुति कर अल्लाह को इतना राज़ी कर लिया कि वह जन्नत (स्वर्ग) में रहने लगा।
अल्लाह ने आदम (इंसान) को पैदा किया। बाईबल में उसे लूसीफर नाम दिया गया है।
अल्लाह ने फरिश्तों और इब्लीश को आदम के सामने झुकने (सज़दा करने) हेतु कहा, फरिश्ते तुरंत सजदे में गिर गए। शैतान ने यह कहते हुए कि मैं आदम से बेहतर हूं, वह सिर्फ मिट्टी से बना है और मैं आग से बना हूं। आदम अपना रूप नहीं बदल सकता, मैं बदल सकता हूं। आदम की ज़िंदगी थोड़ी सी है पर मेरी अनंत। इसलिए मैं आदम इस मिट्टी के पुतले को सजदा नहीं कर सकता। अल्लाह ने उसे इस इंकार के बदले जन्नत से निकाल दिया। इब्लीश ने खुदा से मन चाहे वरदान मांगे कि मैं जैसे चाहूं रूप बना कर, इंसान को पथभ्रष्ट करने हेतु स्वतंत्र रहूं। ईश्वर ने कहा, ठीक है जो तुम्हारे कहे अनुसार चलेगा वो जहन्नम में अपना स्थान तुम्हारे साथ बनाएगा। इस तरह इब्लीश/शैतान हर संभव कोशिश करता है कि मानव को पथभ्रष्ट कर सके, और ईश्वर के मार्ग से हटाना चाहता है।
अल्लाह ने इंसानों से स्पष्ट कर दिया कि शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है।
जन्नत से निकलने के बाद शैतान ने आदम को चेतावनी दी कि - 
तुम कुछ भी नहीं हो। तुम कुछ भी नहीं के लिए बनाए गए थे। अगर मुझे तुम पर शासन करना है, तो मैं तुम्हें मार डालूँगा, और अगर तुम्हें मुझ पर शासन करना है, तो मैं तुम्हारे खिलाफ विद्रोह करूँगा। - शैतान ने आदम से कहा।

सूफ़ी मत के अनुसार शैतान - 
इब्न अरबी और जामी के अनुसार, जो लोग ईश्वर की एकता को नहीं समझ सकते हैं, ईश्वर को उसकी रचना से अलग करते हैं, वे इबलीस के साथी हैं। अपनी अज्ञानता में इबलीस दिखावे की चीज़ों की मात्र सतह पर मंडराता है। जिन लोगों को वह गुमराह करता है, वे उसी भाग्य को भुगतते हैं। अन्य सूफी लेखकों, जिनमें सनाई, ऐन अल-क़ुज़ात, रुज़बिहान, अत्तर और रूमी शामिल हैं। शैतान स्वतंत्र रूप से ब्रह्मांड में इबलीस के कार्य की एक समानता की अवधारणा करता है।

शैतान वास्तविक एकेश्वरवादी था - 
अहमद ग़ज़ाली ने इब्लीस को आत्म-बलिदानी के रूप में आदर्श रूप में चित्रित किया है। गजाली ने कहा कि - 
जो कोई भी शैतान से एकेश्वरवाद नहीं सीखता वह एक विधर्मी ( ज़िंदीक़ ) है।
कादरिया सिलसिला में शैतान को अल्लाह का आज्ञाकारी और सच्चा सेवक माना है। मूसा से एक बार हुई भेंट में मूसा के अल्लाह की अवज्ञा के बारे में पूछा तो उसने कहा यह एक परीक्षा थी।

7. (ईमान) विश्वास की शुरुआत - 
42 वर्ष की आयु में मोहम्मद साहब को ज्ञान (नबुवत) प्रदान की गई। रिसालत (रसूल्लाह) की शुरुआत भी इसी दिन से हुई। मोहम्मद साहब अधिकांश समय जब व्यापार में नहीं होते थे तो बकरियों को लेकर जंगल में। चले जाते। वहां गार ए हीरा (हीरा की पहाड़ी पर एक गुफा) में अल्लाह से लौ (ध्यान) लगाते। एक दिन रात को जब वो चादर ओढ़ कर सो रहे थे तो फरिश्ते जिब्रिल आते हैं और उन्हें ज़ोर से कस कर पकड़ते हैं। इस से पहले फरिश्तों ने मोहम्मद साहब का हार्ट (हृदय) साफ किया था। जिब्रिल कहते हैं कि पढ़ो अपने रब के नाम से जो सबका पालनहार है...(इक़रा बिस्मी रब्बिकल्जी ख़लक...)।
मोहम्मद साहब ने कहा मैं अनपढ़ हूं (अना उम्मी), नहीं पढ़ सकता। जिब्रिल फिर दोहराते हैं, पर मोहम्मद साहब जवाब देते हैं मैं अनपढ़ हूं। तीसरी बार वो पढ़ते हैं (इक़रा बिस्मी रब्बिकल्जी ख़लक)। फरिश्ते जिब्रिल उन्हें रसूल होने की खुशखबरी देते हैं। यह बात मोहम्मद साहब सब से पहले अपनी पत्नी खातिजा से कहते हैं। खातिजा उन पर विश्वास (ईमान) लाती हैं। इसके बाद अपने दोस्त अबु बक्र और (चाचा के बेटे भाई) अली अबु तालिब को बताते हैं जो ईमान लाते हैं।
इस तरह पहले तीन मुस्लिम बने - 
1. खातिजा
2. अबु बक्र 
3. अली अबु
इस्लाम में, आस्था या ईमान एक मुसलमान के जीवन की नींव है। आस्था की दो महत्वपूर्ण घोषणाएँ जो हर मुसलमान को पूर्ण करनी होती हैं वे हैं 
1. ईमान-ए-मुफ़स्सल
2. ईमान-ए-मुंजमल
ये घोषणाएँ संक्षिप्त कथनों के रूप में काम करती हैं जो एक मुसलमान की मान्यताओं का सारांश होती हैं। इसी से आध्यात्मिक यात्रा और दैनिक कार्यों का संपादन किया जाता है।
ईमान ए मुंजमल - 
हिंदी रूपांतरण - 
अमन्तु बिलाही कमा हुआ बी इस्मीही, वा शिफातीही वा काबिलतु जमीहि आह्कमिहि इक़रारुन बिल्लिसानिहि वा तस्दीकुन बिल्कल्बी।
हिंदी अर्थ - 
मैं अल्लाह पर उसके सभी नामों और व्यक्तिगत गुणों के साथ पूरी तरह से विश्वास करता हूँ और मैं उसकी सभी आज्ञाओं को ज़बान से पढ़कर और कानों से उन पर विश्वास करके स्वीकार करता हूँ।
ईमान ए मुफ्फसल - 
हिंदी रूपांतरण - 
आमंतु बिल्लाहि व मुलाईकातीही वा कुतुबिही वा रसूलिहि वल योमिल आखिरी वल क़दरी खरीहि वा सर्रिहि मिनल्लाहि तआला वल बाअसि बाअदल मौत।
हिंदी अर्थ - 
मैं अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों, अन्तिम दिन, अल्लाह की ओर से भाग्य (अच्छे और बुरे) और मृत्यु के बाद जिंदा होने में विश्वास रखता हूँ।

अब हम एक पूर्ण मुस्लिम की ओर बढ़ रहे हैं। ईमान ए मुंजमल एवं ईमान ए मुफ्फसल पूर्णतया आत्मसात करने के बाद इंसान पर यदि उसकी आयु सात वर्ष से अधिक है तो नामक फ़र्ज़ हो जाती है। 

जन्म की अज़ान - 
यदि किसी बच्चे का जन्म मुस्लिम घर में हुआ है तो 24 घंटे के अंदर उसके कान में अज़ान पढ़ी जाती है। यह अज़ान जीवन की शुरूआत है जिसकी नमाज जनाजे की नमाज होगी।

पांच कलमा - 
1. अव्वल कलमा - तय्यब
لَآ اِلٰهَ اِلَّااللهُ مُحَمَّدٌ رَّسُولُ اللہِ
हिंदी लिप्यंतरण - 
ला इलाहा इलल्लाहु मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह।
हिंदी अनुवाद - 
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (स.) अल्लाह के अंतिम रसूल हैं।

2. दूसरा कलमा: शहादत
اَشْهَدُ اَنْ لَّآ اِلٰهَ اِلَّا اللهُ وَحْدَہٗ لَاشَرِيْكَ لَہٗ وَاَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهٗ وَرَسُولُہٗ
हिंदी लिप्यंतरण - 
अश-हादु अन्न ला इलाहा इल्लल्लाहु वाहदहु ला शरी-क लहू व अश्शहादु अन्न मोहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु।
हिंदी अनुवाद - 
मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। वह अकेला है उसका कोई साझेदार नहीं। और मैं गवाही देता हूं कि मोहम्मद (स.) अल्लाह के नेक बंदे एवं अंतिम रसूल हैं।

3. तीसरा कलमा: तमजीद
سُبْحَان اللهِ وَالْحَمْدُلِلّهِ وَلا إِلهَ إِلّااللّهُ وَاللّهُ أكْبَرُ وَلا حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلَّا بِاللّهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيْم
हिंदी लिप्यंतरण - 
सुब्हानल्लाही वल् हम्दु लिल्लाहि वला इला-हा इलल्लाहु वल्लाहु अकबर, वला हउला वला कूव्-व-ता इल्ला बिल्ला हि अलि अलिय्युल अज़ीम।
हिंदी अनुवाद - 
अल्लाह पाक है और सब तारीफें अल्लाह ही के लिए हैं, और अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। इबादत (पूजा) के लायक तो सिर्फ अल्लाह है और अल्लाह सबसे बड़ा है और किसी में न तो ताकत है न बल लेकिन ताकत और बल तो अल्लाह ही में है जो बड़ा शान वाला है।

5. चौथा कलमा - तौहीद
لَآ اِلٰهَ اِلَّا اللهُ وَحْدَهٗ لَا شَرِيْكَ لَهٗ لَهُ الْمُلْكُ وَ لَهُ الْحَمْدُ يُحْىٖ وَ يُمِيْتُ وَ هُوَحَیٌّ لَّا يَمُوْتُ اَبَدًا اَبَدًاؕ ذُو الْجَلَالِ وَالْاِكْرَامِؕ بِيَدِهِ الْخَيْرُؕ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شیْ قَدِیْرٌؕ
हिंदी लिप्यंतरण - 
ला इलाहा इल्लल्लाहु वाह्-दहु ला शरीक लहू लाहुल मुल्क व लाहुल हम्दु युहयी व युमीतु व हु-वा हय्युल-ला यमूतु अ-ब-दन अ-ब-दा जुल-जलालि वल इक् राम वियादि-हिल खैर व हु-वा आला कुल्लि शै - इन क़दीर।
हिंदी अनुवाद - 
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं इबादत के लायक, वह एक है, उसका कोई साझीदार नहीं, सबकुछ उसी का है।और सारी तारीफ़ें उसी अल्लाह के लिए है। वही जिलाता है और वही मारता है, और वोह जिन्दा है, उसे हरगिज़ कभी मौत नहीं आएगी। वोह बड़े जलाल और बुजुर्गी वाला है। अल्लाह के हाथ में हर तरह कि भलाई है और वोह हर चीज़ पर क़ादिर है।

5. पांचवाँ कलमा: इस्तिग़फ़ार
اَسْتَغْفِرُ اللهِ رَبِّىْ مِنْ كُلِِّ ذَنْۢبٍ اَذْنَبْتُهٗ عَمَدًا اَوْ خَطَا ًٔ سِرًّا اَوْ عَلَانِيَةً وَّاَتُوْبُ اِلَيْهِ مِنَ الذَّنْۢبِ الَّذِیْٓ اَعْلَمُ وَ مِنَ الذَّنْۢبِ الَّذِىْ لَآ اَعْلَمُ اِنَّكَ اَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوْبِ وَ سَتَّارُ الْعُيُوْبِ و َغَفَّارُ الذُّنُوْبِ وَ لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللهِ الْعَلِىِِّ الْعَظِيْمِؕ‎
हिंदी लिप्यंतरण - 
अस्तग़-फिरुल्ला-ही रब्बी मिन कुल्लि जाम्बिन अज-नब-तुहु अ-म-द-न अव् ख-त-अन सिर्रन औ अलानियतंव् व अतूवु इलैहि मिनज-जम्बिल-लजी ला अ-अलमु इन्-न-क अन्-त अल्लामुल गुयूबी व सत्तारुल उवूबि व गफ्फा-रुज्जुनुबि वाला हौ-ला वला कुव्-व-ता इल्ला बिल्लाहिल अलिय्यील अज़ीम।
हिंदी अनुवाद - 
मै अपने परवरदिगार (अल्लाह) से अपने सभी गुनाहों कि माफ़ी मांगता हुँ जो मैंने जान-बूझकर किये या भूल कर किये, छिप कर किये या खुल्लम खुल्ला किये और तौबा करता हु मैं उस गुनाह से, जो मैं जानता हूं और उस गुनाह से जो मैं नहीं जानता, या अल्लाह बेशक़ तू गैब कि बातें जानने वाला और ऐबों को छिपाने वाला है और गुनाहो को बख्शने वाला है और (हम मे) गुनाहो से बचने और नेकी करने कि ताक़त नहीं अल्लाह के बगैर जो के बहुत बुलंद दर्ज़े वाला है।
इस प्रकार से विरोध और समर्थन के साथ मुहम्मद साहब की नबुवत की शुरुआत होती है। अब तक उनके परिजन (कुरैश कबीले के लोग) उनकी नबुवत को नकारते हैं। जो धीरे - धीरे मानने लगते हैं।

8. मोहम्मद साहब की मेराज यात्रा - 
नबुवत के बाद एक दिन फरिश्ते जिब्रिल मोहम्मद साहब के पास आकर कहते हैं कि अल्लाह ने आपको मिलने के लिए बुलाया है। उन्हें मस्जिद ए हराम में ले जाया गया। वहां से बुर्राक (बुर्राक शब्द का अर्थ - यह शब्द बर्क (बिजली/बिजली) फरिश्ते के पंखों पर बैठा कर सातों जमीन - आसमानों (फर्श) से ऊपर अर्श (ब्रह्मांड से बाहर) पर ले जाया गया। यह यात्रा नबुवत की घोषणा के 11 वर्ष बाद रजब महीने की 27 तारीख को हुई।
यह सफर दो भाग में हुआ
1. इसरा की यात्रा - 
यह यात्रा मक्का से बैतुलमुकद्दस (मस्जिद ए अक्सा येरूशलम) तक का था। यहां से आगे की यात्रा शुरू होती है। यह सफर 1500 किलोमीटर दूर लगभग 40 दिन का होता है। इस से पहले मोहमद साहब पहले कभी बैतूलमुल्कद्दस नहीं गए। यहां सभी अंबिया (नबियों) की जमात को नमाज पढ़ाई जिस की इमामत मोहम्मद साहब ने की। सफर से पहले उन्हें जिब्राइल ने दो प्यालों में से एक का चुनाव करने को कहा। इन प्यालों में से एक में शराब और दूसरे में दूध था। आप ने दूध वाला प्याला उठाया।
2. मेराज - 
 यरुशलम से सात आसमानों के आगे सिजरातुल मुन्तहा तक का रहा। जिब्राइल की हद सातवें आसमान तक ही है। आगे नबी अकेले ही गए। वापस आने पर लोगों ने पूछा क्या आपने अल्लाह को देखा? तो नबी ने जवाब दिया कि नहीं, वहां इतना अधिक प्रकाश था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, सिवाय प्रकाश के।
यात्रा में जाते हुए 
पहले आसमान पर नबी आदम (अ.) से मुलाकात हुई। यहां जन्नत और जहन्नम का निरीक्षण करवाया गया।
दूसरे आसमान पर नबी ईसा (जीसस) से मुलाकात हुई।
तीसरे आसमान पर नबी यूसुफ से मुलाकात हुई।
चौथे आसमान पर नबी इदरीश  से मुलाकात हुई। अत्याचार के विरुद्ध लड़ाई की शुरुआत इन्होंने ही की थी।
पांचवे आसमान पर नबी हारून से मुलाकात हुई।
छठे आसमान पर नबी मूसा से मुलाकात हुई।
सातवें आसमान पर नबी इब्राहिम से मुलाकात हुई।
सिदरतुल मुन्तहा - 
मेराज के सफर में, पैगंबर मुहम्मद (स.) ने सिदरतुल मुन्तहा (बेर/झाड़ी का पेड़) नामक एक पवित्र वृक्ष तक भी यात्रा की, जहां कोई और पैगंबर या फरिश्ता नहीं जा सका। 
अल्लाह से मुलाकात - 
यह सफर सात आसमानों से ऊपर अल्लाह के दरबार (अर्श) तक गया, जहां पैगंबर मुहम्मद (स.) ने अल्लाह से मुलाकात की।

सात जमीन और आसमान (सात ग्रह) -
अरब के लोगों को ज्योतिष (ब्रह्मांड विज्ञान) का सूक्ष्म ज्ञान था। उस समय तक सात ग्रहों की पहचान कर ली गई थी। इन्हीं ग्रहों को सात जमीन और सात आसमान कहा जाता है।
अर्श (ब्रह्मांड का उच्चतम स्थान, जहां अल्लाह का सिंहासन है) पर एक स्थान पर जिब्रिल रुक जाते हैं। मोहम्मद साहब उनसे साथ चलने को कहते हैं पर जिब्रिल यह कहते हुए उन्हें आगे बढ़ने को कहते हैं कि मेरी सीमा यहीं तक है। मोहम्मद साहब जिब्रिल को दादा मूसा की कहानी याद दिलाते हुए आगे बढ़ते हैं (अल्लाह से बात करने हेतु जाने पर मूसा को जिब्रिल एक जगह जूतियां निकालने को कहते हैं। आगे बढ़ने पर एक स्थान पर वो अपनी जूती निकालने लगते हैं तो अल्लाह कहते हैं कि ए मोहम्मद! जूतियों सहित आ जाओ। मोहम्मद साहब कहते हैं आप ने मेरे दादा मूसा को जूतियां निकालने हेतु निर्देशित किया था। अल्लाह का जवाब आता है कि वो फर्श (धरती) था, यह अर्श (ब्रह्मांड का अंतिम छोर) है। मोहम्मद साहब को अल्लाह इरम (जन्नत का उच्चतम स्तर), जहन्नम, मैदान ए महसर, पुलसिरात का भ्रमण करवाते हैं। वापस जाते हुए अल्लाह उन्हें कुछ तोहफे (भेंट) देते हैं जिसमें 
1. 50 समय की नमाज
2. 30 दिन के रोजे (रमजान महीने में)
3. हज - (जीवन में न्यूनतम एक बार मक्का और मदीना की यात्रा)।
4. जकात (आय का न्यूनतम 2.5% और अधिकतम 10%) भाग अन्य व्यक्ति या राजकोष (बैतुलमाल) में जमा करवाना)
इस पर वापस आते समय मूसा नबी उन्हें मिलते हैं और कहते हैं ए मोहम्मद! आपकी उम्मत (प्रजा) कम आयु वाली कमजोर है। 50 समय की नमाज नहीं पढ़ सकेगी। मोहम्मद साहब वापस अल्लाह के पास जा कर कहते हैं कि मूसा ने यह कहा है, इसलिए नमाज कुछ कम कीजिए। इस प्रकार से वापस आते समय मूसा उन्हें वही शब्द दोहराते हैं और मोहम्मद साहब अल्लाह के पास जा कर नमाज कुछ कम करने की याचना/प्रार्थना करते रहे। अंत में पांच समय की नमाज, एक माह के रोजे ले कर मोहम्मद साहब आते हैं तो मूसा वही बात कहते हैं। अब मोहम्मद साहब ने मूसा से कहा यदि अबकि बार गया तो यह सब शून्य हो जाएगा, इसलिए यह तो रखना ही होगा। इस तरह वो वापस आ जाते हैं। 
वापस आ कर सभी साथियों (सहाबा) को पूरा वृतांत (घटनाक्रम) सुनाते हैं। मोहम्मद साहब ने बताया कि यह सफर प्रकाश की गति के 50 वर्ष का सफर था। (सूर्य की किरणों को धरती पर आने में आठ मिनिट का समय लगता है) इस हिसाब से अर्श सूर्य से बहुत आगे है।

9. मोहम्मद साहब की हिजरत (यात्रा)
मोहम्मद साहब ने दो बार हिजरत की।
1. की यात्रा
2. मदीना की यात्रा
मक्का के लोगों द्वारा हत्या के प्रयास, बहिष्कार एवं उपहास के कारण मोहम्मद साहब ने मक्का शहर छोड़ कर यशरब (मदीना) (वहां के 72 लोगों द्वारा मक्का आ कर नबी स्वीकार कर बुलाने पर) चले जाते हैं। इसी सफर को हिजरत कहा जाता है। इसी दिन से हिजरी सन की शुरुआत हुई। मदीना अब उनकी राजधानी बनी जहां से उन्होंने इस्लाम धर्म और एकेश्वर वाद का प्रचार प्रारंभ किया। 
मदीना के लोग मोहम्मद साहब को लेने क्यों आए - 
तोरात के अनुसार - 
केदार का बेटा मक्का की ओर से पहाड़ियों से प्रकट होगा जो सभी के दुखों को दूर करेगा। यह पढ़ कर यहूदी लगभग 500 वर्ष पूर्व मदीना (यशरब) में आ कर बस गए। यहूदियों का मदीना बसने का एक कारण यह भी था कि उस समय फिलिस्तीन में रोमन साम्राज्य का राज था, रोमन यहूदियों से बहुत नफरत करते थे। इसलिए अधिकांश यहूदी फिलिस्तीन से मदीना या अन्य जगह बस गए। इन्हीं यहूदियों ने अपने 72 प्रतिनिधियों को उन्हें मदीना ले जाने के लिए आए। 
विशेष - ध्यान रहे मुहम्मद साहब इस्माइल नबी के भाई केदार के वंश में से थे।
(नोट - हिजरत और मेराज के सफर के संबंध में संलग्न मोहम्मद साहब विषय के व्यक्तिगत लेख में अधिक पढ़ें)

10. जीवन व्यवस्था - 
ख़तना - 
शिशन के ऊपर की अतिरिक्त त्वचा को हटवाने को खतना कहते हैं। इससे शिशन की त्वचा के मध्य जीवाणु उत्पन्न नहीं होंगे। ऊपरी त्वचा काट देने से शरीर की सफाई बेहतर तरीके से होती है। यह कार्य सब से पहले इब्राहिम नबी ने किया था जो अरब क्षेत्र में सुचारू रहा। ईसा नबी की खतना आठ वर्ष की आयु में की गई थी। आजकल शिशु के जन्म के समय ही खतना कर दी जाती है।

नामकरण - 
घर के बूढ़े बुजुर्ग और अन्य सदस्य मिलकर अच्छा सा सुंदर नाम निकालते हैं। इसे छठी की रश्म कहा जाता है। बच्चे की माँ के लिए 40 दिन तक घर की किसी भी वस्तु को छूना मना होता है। इसके लिए रसोई घर में जाना भी मना होता है। 40 दिन बाद नहा कर वह घर के काम कर सकती है।
(क) हकुल्लाह - 
- पूजा (इबादत)
पूजा (इबादत) में 
(I). नमाज
(II). रोजा 
(III). हज को सम्मिलित किया गया है। 
यह तीन प्रकार की होती है।
A. फ़र्ज़ 
B. सुन्नत
C. नफ़ल 
A. फ़र्ज़ इबादत - 
वो कार्य जो हर हाल,परिस्थिति और स्थिति में करना अनिवार्य हो फ़र्ज़ कहलाता है। यह बीमार, सफर, जंग या अन्य अवस्थिति में कुछ रियायतों के साथ पूर्ण करनी होती है। यह अल्लाह के लिए है।
B. सुन्नत इबादत - 
वो इबादत जो अल्लाह के नबी ने फ़र्ज़ के अलावा की सुन्नत इबादत हैं। यह भी दो प्रकार की होती हैं - 
. सुन्नत ए मोअकदा (यह लगभग फ़र्ज़ ही की तरह होती हैं)
. सुन्नत - अत्यावश्यक नहीं
C. नफ़ल/कसर इबादत - 
यह वो इबादत है जो बढ़ोतरी के साथ की जाती है। यह समय मिले तो पूर्ण की जा सकती है और न मिले तो कोई हर्ज नहीं।
इस प्रकार से - 
प्रत्येक मुसलमान को दैनिक पूजा (नमाज) निश्चित रीति (तरीके से) निश्चित समय पर, निश्चित स्थान (यथासंभव मस्जिद) में पांच समय की नमाज पढ़ना अनिवार्य है।
नमाज से पहले - 
कुरान में नमाज का कुल 155 बार वर्णन हुआ है - 
- सालावात (सला का बहुवचन) 5 बार
- सलात 83 बार
- सला 67 बार 
नमाज़ पढ़ने से पहले कुछ शर्ते हैं जिनका पूरा किया आवश्यक है। 
नमाज़ हेतु सात शर्त निम्नानुसार हैं - 
1. बदन (शरीर) का पाक (पवित्र) होना 
पाक होना और साफ होना दोनों अलग अलग स्थितियां हैं। नमाज में पाक होना शर्त है, साफ होना शर्त नहीं है। जैसे बदन, कपडा या जमीन नापाक चीजों से भरी हुई ना हो. धुल मिट्टी लगी हो सकती है। बदन की पाकी के लिए दो क्रियाएं की जाती हैं।
गुश्ल या वज़ू से पहले मिश्वाक कर लें तो उत्तम है।
(I) गुश्ल (नहाना) - 
नहाना कब आवश्यक (फ़र्ज़) है - 
1. संभोग के बाद नहाना फ़र्ज़ है।
2. महिलाओं को मासिक धर्म की समाप्ति के बाद नहाना फ़र्ज़ है।
3. जापे (डिलीवरी) के चालीस दिन बाद महिलाओं का नहाना फ़र्ज़ है।
4. स्वनदोष की स्थिति में  नहाना फ़र्ज़ है।
5. शरीर पर ऐसी गंदगी लग जाना जिस से धोने पर निजात नहीं मिल सकती हो तो नहाना फ़र्ज़ है।
यहां शरीर पर पानी उंडेलने या समुद्र में नहाने का अर्थ गुश्ल नहीं है। सही रीति अनुसार नहाना ही गुश्ल है। नहाने के कुछ फ़र्ज़ और कुछ सुन्नत इस प्रकार हैं - 
नहाने के फ़र्ज़ - 
इस्लाम में नहाने के तीन फ़र्ज़ हैं 
1. मुंह भर कर तीन बार कुल्ली करना
2. तीन बार नाक में (नर्म हड्डी तक) पानी डालना
3. पूरे शरीर इस तरह पानी डालना पूरा शरीर भीग जाए और बाल बराबर जगह सूखी ना रहे।
नहाने का (सुन्नत) तरीका क्रमशः - 
बेहतर यह है कि पहले शरीर के दाहिने हिस्से को धोए और फिर बाएं हिस्से को।
1. सबसे पहले ग़ुस्ल की नियत करें।
2. दोनों हाथों को कलाई तक तीन बार धोएं।
3. शरीर पर लगी गंदगी को तीन बार धोएं।
4. आगे और पीछे दोनों गुप्तांगों का इस्तिंजा करें (धोएं)
5. वुज़ू करें।
6. सर पर पानी डालें,  फिर दाएं कंधे पर और फिर बाएं कंधे पर इतना पानी डालें कि वह शरीर से बहकर पैरों तक पहुंच जाए।
7. हाथों से शरीर को दो बार रगड़िए।
8. वहम हो कि शरीर का कोई हिस्सा सूखा रह गया है, तो उस हिस्से पर पानी डालें और रगड़ें।
(Ii) वज़ू करना (लघु स्नान) - 
छोटे स्तर पर शरीर पर गंदगी लगने पर वजू किया जाता है। मुस्लिम को आजीवन बा वजु रहना चाहिए। यह अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है साफ करना।
वजू कब टूट जाता है जिसके बाद पुनः वज़ू आवश्यक हो जाता है - 
1. पेशाब, पखाना जाने के बाद।
2. पाद निकलने के बाद।
3. शरीर के किसी हिस्से से खून/मवाद निकलने के बाद 
4. नींद से उठने के बाद।
5. गंदे पानी आदि के छींटे लगने के बाद।
वजू में फ़र्ज़ हैं - वज़ू में कुल छह फ़र्ज़ होते हैं - 
1. चेहरा, नाक, और मुंह को अच्छी तरह से धोना
2. दोनों हाथों को कोहनी समेत धोना
3. सिर का मसह करना
4. दोनों पैरों को टखनों समेत धोना
5. वज़ू के अंगों को क्रम में धोना
6.  पानी से अंगों को इस प्रकार धोना कि बाल बराबर जगह बाकी ना रहे।
वज़ू का तरीका - 
1. सब से पहले कलई तक तीन बार हाथ धोएं।
2. नाक में तीन बार पानी डालें और बाएं हाथ की छोटी अंगुली को नाक की नर्म तक अंदर डाल कर तीन बार घुमाएं।
3. चेहरे को तीन बार धोएं।
4. दोनों हाथों को पानी से गिला कर सर पर फेरें और कान को अंदर तक साफ करते हुए हाथ गर्दन के पीछे से घुमाएं। इसे मसा करना कहते हैं।
5. कोहनी तक हाथ तीन बार धोएं।
6. पैर टखनों तक तीन बार धोएं।

पानी नहीं मिलने की स्थिति में तय्यम्मुम
कभी - कभी नहाना या वज़ू फ़र्ज़ हो जाता है परन्तु पानी नहीं मिलता। इस स्थिति में गुश्ल या वज़ू के स्थान पर तय्यमुम (सूखा स्नान) किया जाता है। 
तय्यमुम का तरीका -
(निम्नानुसार तीन बार दोहराते हुए) - 
1. दोनों हाथ ज़मीन पर रगड़ (रेत पर) कर कलाइयों पर मसलें।
2. इसी तरह से चेहरा धोएं।
3. कोहनी तक हाथ धोएं।
4. मसा करें।
5. टखने तक पैर धोएं।
नोट - तम्बाकू, धूम्रपान, पान या गुटका आदि खाने के बाद नमाज पढ़ने हेतु कुल्ली की जानी आवश्यक है।

2. कपड़ो का पाक होना - 
कपड़ों पर पेशाब, गंदा पानी, वीर्य, खून, संभोग के बाद व अन्य नेपाकी के कण नहीं लगे होने चाहिए। कपड़े गंदे हैं तो बदलें या धोएं, फिर नमाज पढ़ें। इसमें कपड़ों पर अधिक पसरी हुई गंदगी लग गई है तो उन्हें धोना आवश्यक है। छोटे स्तर पर थोड़ी सी जगह से कपड़े गंदे हुए हैं तो कपड़े को उस स्थान से धो लिया जाए।
3. नमाज़ पढने की जगह का पाक होना - 
यथा संभव नमाज मस्जिद में ही पढ़नी चाहिए। एक हदीश के अनुसार घर के स्थान पर मस्जिद में नमाज पढ़ने से चालीस गुणा अधिक पुण्य (सवाब) मिलता है, इसके बाद घर पर। फिर भी यदि किसी कारण से बाहर नमाज पढ़नी पड़ जाए तो यथा संभव अपने साथ कोई कपड़ा (जा नमाज) रखें जिस पर नमाज पढ़ी जा सके या ऐसे स्थान का चुनाव करें जहां प्रत्यक्ष गंदगी ना हो।
4. बदन के सतर का छुपा हुआ होना - 
शरीर की नाफ़ (सुंडी) के निचे से घुटनों (मोटी पिंडली के नीचे तक) के हिस्से को मर्द का सतर कहा जाता है। नमाज़ में मर्द का यह भाग कपड़े से ढका होना आवश्यक है, चाहे नमाज बंद कमरे में अकेले ही पढ़ रहे हों। यहां शरीर का ऊपरी हिस्सा और सर का ढकना बेहतर है परन्तु अत्यावश्यक नहीं। सतर ढकने के बाद बदन (मर्द का) एवं सर खुला हो तब भी नमाज हो जाती है। उत्तम है कि सर से पांव तक ढका हो। यहां कपड़े से संदर्भ कोई भी कपड़ा सिला हुआ या बिना सिला हो सकता है। परंतु मर्द रेशम नहीं पहन सकता।
5. नमाज़ का वक्त (समय) होना - 
कोई भी नमाज़ पढने के लिए नमाज़ का वक़्त होना ज़रूरी है. वक्त से पहले कोई भी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकती और वक़्त के बाद पढ़ी गयी नमाज़ कज़ा नमाज़ मानी जाएगी। जैसे फज्र की नमाज सुबह सूरज निकलें से पहले, ईसा की नमाज रात को या चास्त की नमाज सुबह आठ बजे बाद।
यदि समय निकलने के बाद नमाज पढ़ी जाती है तो यह कजा नमाज होगी। 
6. किबले की तरफ मुह होना - 
नमाज पढ़ने हेतु किबले (काबा) की ओर मुंह होना आवश्यक है। भारत में यह पश्चिम दिशा में लगभग दो डिग्री उत्तर की ओर मुंह करने पर मुंह किबले की तरफ हो जाता है। सफर के समय यथा संभव रुक कर नमाज पढ़ें फिर भी यह संभव नहीं हो तो अपना रुख काबे की ओर करें। यह भी संभव नहीं हो तो मन में यह कहें कि रुख मेरा काबे की तरफ।
7. नमाज़ की नियत (इरादा) करना - 
नमाज़ की नियत आवश्यक है। इसमें नमाज का प्रकार समय एवं रकात की पूर्व प्रस्तावना की जाती है।
नमाज की नियत - 
मैं नियत करता/करती हूं (दो/तीन/चार) रकात फ़र्ज़/सुन्नत/नफ़ल नमाज मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ पीछे इस इमाम के (यदि फ़र्ज़ नमाज बा जमात पढ़ रहे हैं तो) यदि अकेले पढ़ रहे हैं तो पीछे इस इमाम के नहीं कहना है।
नमाज के समय पर अज़ान -
मेराज के बाद जब नबी मोहम्मद साहब को नमाज, रोजा, हज, जकात का उपहार (तोहफ़ा) दिया गया तो सभी लोगों को एक साथ किस तरह बुलाया जाए इस पर मंथन हुआ। इस मंथन में यहूदियों द्वारा दी जाने वाली अज़ान की तरह आवाज दे कर बुलाना निश्चित हुआ। अज़ान शब्द का अर्थ है बुलाना/घोषणा करना। इस हेतु शब्दों का चयन किया गया। अज़ान देने वाले को मुअज्जिन कहा जाता है। जो नमाज के लिए अज़ान देता है (मुअज्जिन) अक्सर वही तकबीर कहता है।
अज़ान के शब्द - 
अल्लाह हु अकबर अल्लाह  हु अकबर 2 पैर (समूहों में, पहले के बजाय दूसरा समूह थोड़ा खींच कर बोला जाए)
(अल्लाह महान है)(कुल चार बार)
अशाहादु ला इला हा इलल्लाह (एक बार)
मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवाय कोई पूज्य (इबादत के लायक) नहीं है।
असहादु अन्ना मोहम्मदर्रासुल्लाह 
मैं गवाही देता हूं मोहमद अल्लाह के रसूल हैं)
ह इ अलल सला (दो बार)
आओ नमाज की तरफ
ह इ अलल फलाह (दो बार)
(आओ कामयाबी की तरफ)
अल्लाह हु अकबर अल्लाह हु अकबर 
(अल्लाह महान है)
ला इला हा इलल्लाह 
(अल्लाह के सिवाय कोई पूज्य नहीं)
फज्र (सुबह की नमाज) की अज़ान में एक पंक्ति अतिरिक्त जोड़ी गई है -
अश्लातु खैरूं मिन्नूनोम् 
(नींद से बेहतर (उत्तम) नमाज है)।
अज़ान के बाद की दुआ - 
دعا بعد اذان :
اللهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعُوَةِ التَّامَةِ وَالصَّلوةِ الْقَائِمَةِ اتِ مُحَمَّنَا الْوَصِيلَةَ وَالْفَضِيلَةَ وَالدَّرَجَةَ الرَّفِيعَةَ وَابْعَثْهُ مَقَامًا مَّحْمُودًا الَّذِي وَعَدْتَهُ وَارْزُقْنَا شَفَاعَتَهُ يَوْمَ الْقِيمَةِ إِنَّكَ لَا تُخْلِفُ الْمِيعَادَه
हिंदी लिप्यंतरण - 
अज़ान के बाद की दुआ
अल्लाहुम्मा रब्बा हाजिहिद दाअवतित ताम्मति वस्सलातिल काइमति आति सय्यिदिना मुहम्मदानिल वसिलत वल फजी ल त वद्दरजतल रफीअता वबअस्तु मकामम महमुदनिल् लजी व अत्तहू वरजक्ना शफा अतहू यौमल क़ियामति इन्नका ला तुख्लिफुल मीआद।
हिंदी अनुवाद - 
ए अल्लाह! इस दावते ताम्मा और कयामत तक बाकी रहने वाली नमाज के रब तू हमारे सरदार मोहम्मद (स.)  को वसीला और फजीलत और बुलंद दर्जा अता कर और उनको मकामे मेहमूद में खड़ा कर जिस का तूने वादा किया है, और हमें कयामत के दिन उनकी शफाअत नसीब कर बेशक तू वादा खिलाफ़ी नहीं करता।
नोट - प्रत्येक मुसलमान को जो यह अज़ान सुन रहा है उसका जवाब इन्हीं शब्दों में देना चाहिए।
अज़ान के बाद नमाजी वज़ू करने के बाद मस्जिद में दाखिल होते हैं। मस्जिद में प्रवेश (दाखिल होने) की दुआ -
जमात हेतु न्यूनतम दो व्यक्तियों का होना अनिवार्य है। जो नमाज पढ़ाता है उसे इमाम कहते हैं। इमाम के पीछे फ़र्ज़ नमाज हेतु खड़ा होने पर मुअज्जिन तकबीर बोलता है। पीछे खड़े होने वालों को मुक्तदी (अनुकरण करने वाले)
तकबीर -
अल्लाह हु अकबर 2 बार
अश्हादु ला इला हा इलल्लाह 2 बार
अश्हादु अन्ना मोहम्मदररसुलल्लाह 2 बार
ह इ अलल सला 2 बार
ह इ अलल फलाह 2 बार
कद कामती सला 2 बार
अल्लाहू अकबर अल्लाह हु अकबर 
ला इला हा इलल्लाह।
तकबीर में मुक्तदियों के खड़े होने में दो तरीके (प्रकार) हैं -
तकबीर के बाद खड़े होने के कई प्रकार हैं - अहले हदीश पैर फैला कर खड़े होते हैं और अन्य मसलक के मुक्तदी दोनों टखने मिलाते हुए खड़े होते हैं। अहले हदीस दोनों हाथ सीने पर बांधते हैं अन्य नाफ के नीचे।
A. अहले सुन्नत वल जमात (बरेलवी) मुअज्जिन तकबीर बोलता है और मुक्तदी अश्हादु अन्ना मोहम्मदररसुलल्लाह  कहने के बाद बोसा देते हुए (दोनों अंगूठे चूम कर आंखों पर लगाना)  ह इ अलल सला पर खड़े होते है।
B. अहले हदीश एवं देवबंदी मुअज्जिन के साथ ही इमाम के पीछे खड़े हो जाते हैं।
इसके बाद ईमाम, मुअज्जिन और मुक्तदी नमाज की नियत (ऊपर दी गई है) करते हैं। 
इमाम तकबीर कहते हैं - 
अल्लाह हु अकबर 
सभी नीयत बांध लेते हैं। नियत में कई तरीके प्रचलित हैं इसे रफ़ादेन कहते हैं।  रफ़ादेन में - 
(क) बरेलवी/देवबंदी मसलक के मुक्तदी दोनों हाथ कानों तक उठाते हैं और फिर हाथ नाफ़ के पास बांध लेते हैं। 
(ख) अहले हदीश मुक्तदी दोनों हाथ कान तक ले जाते हैं, फिर झटक कर छोड़ देते हैं और दोबारा हाथ ऊपर उठा कर हाथ सीने पर बांधते हैं।
मन में मुक्तदी व मुअज्जिन अल्लाह हु अकबर कहते हुए खड़े (कयाम) हो जाते हैं।
इसके बाद सुब्हानकल्ला (सना/अल्लाह की बड़ाई) मन में पढ़ते हैं। 
सुब्हान् कल्ला (सना) - 
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ،
أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ،
أَسْتَغْفِرُكَ وَأَتُوبُ إِلَيْكَ
हिंदी लिप्यंतरण - 
सुब्हान कल्ला हुमा वबी हमदिका वता बारा कसमुका वताआला जड्डू का व लाइलाहा इल्लाहा गैरुक।
सना का हिंदी अनुवाद - 
ए सर्वशक्तिमान अल्लाह, मैं तेरी पवित्रता (पाकी) की घोषणा करते हुए तेरी ही बड़ाई करता हूं। तेरा स्थान उच्च (मर्तबा बलंद) है और तेरे अलावा कोई पूज्य नहीं है।
इमाम किरात (किरअत) करता है जिसमें पहले सुरह ए फातेहा (अल्हम्दु शरीफ) व कोई एक सुरत का तीन नमाज (फज्र, मगरिब और ईसा) में सस्वर वाचन करता है।
अल्हम्दु शरीफ पूरी होने पर अहले हदीश जोर से आमीन (मुझे स्वीकार है/ऐसा ही है) कहते हैं। शेष मसलक के लोग धीरे से आमीन कहते हैं।
अहले हदीश के अनुसार शुरुआती समय में नव मुस्लिम नमाज पढ़ने आ तो जाते पर साथ में अपने देवता की मूर्ति ले आते। जब सजदा किया जाता तो वो उस मूर्ति को अपने आगे रख लेते। सजदे में उठ कर मूर्ति को काख (बगल) में दबा लेते। नमाज में खड़े होते ही कुछ लोग भाग जाते। 
इस से बचने हेतु सफ़ (कतार में खड़े सभी लोगों को एक दूसरे से पैर सटा कर खड़े होने और नियत, रुकु एवं सजदे की स्थिति में रफादेन का आदेश दिया। बस अहले हदीश इसी आधार पर बार - बार हाथ झटकते हैं।
किरत के बाद रुकुअ किया जाता है।
ईमाम कहता है अल्लाह हु अकबर और मुक्तदी कहते हैं - समी अल्लाह हुलीमन हमीदा (अल्लाह ने उस खास बंदे की बात सुन ली जिसने उसकी प्रशंसा (तारीफ) की)। कहते हुए रुकु की स्थिति में आ जाते हैं।
(रुकुअ में आधे झुक कर दोनों हाथ घुटनों पर रख कर तीन बार सुब्हान यल आला पढ़ते हैं)। इसके बाद ईमाम अल्लाह हु अकबर कहते हैं और सीधे खड़े (कयाम) करते हैं।
रूकुअ से कयाम के बाद ईमाम, मुअज्जिन एवं मुक्तदी अल्लाहू अकबर कहते हुए सजदे में आ जाते हैं। 
सजदे में पढ़ते हैं - 
सुब्हान रब्बी यल अजीम 
(सर्वशक्तिमान अल्लाह का मर्तबा महान उच्चस्थ है)।
सजदा कैसे होता है (सजदे की शर्त)- 
1. सभी बीस अंगुलियों जमीन से लगी हों।
2. माथा (पेशानी) एवं नाक की नोक जमीन से लगी हो।
3. घुटने जमीन से लगे हों।
इसके बाद दूसरी रकात शुरू होती है जिसमें उपरोक्तानुसार अल्हम्दु शरीफ से प्रक्रिया पुनः दोहराई जाती है।
दूसरी रकात पूर्ण होने पर सभी दोनों घुटनों पर बैठ जाते हैं।
(बैठने में दोनों घुटनों मुड़े हुए, दाएं पैर की एड़ी खड़ी हुई और बाएं पैर की एड़ी पड़ी हुई जिस पर शरीर टिकता है और हाथ की हथेलियां घुटनों पर रखी हों) 
बैठ कर अतहियात पढ़ते हैं - 
التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلَامُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
हिंदी लिप्यंतरण - 
अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तय्यिबातु अस्सलामु अल-क अय्युहन-नबिय्यु वरमतुल्लाहि व ब-र-कातुह, अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस सालिहीन, अश्हदु अल्ला इला-ह-इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलु।
हिंदी अनुवाद - 
(मेरी सारी) ज़बानी, शारीरिक और आर्थिक (माली) इबादत सिर्फ़ अल्लाह तआला के लिए है। ऐ नबी आप पर अल्लाह तआला की रहमत, सलामती और बरकतें हो और हम पर और अल्लाह तआला के नेक बन्दों पर (भी) सलामती हो, मैं गवाही देता हूँ की अल्लाह तआला के सिवा कोई (सच्चा) माबूद (उपास्य) नहीं है और मैं गवाही देता हूँ की मुहम्मद अल्लाह तआला के बन्दे और रसूल हैं।
- सहीह बुरखारी, हदीष - 831 
- सहीह मुस्लिम, हदीष - ।402
यहां कई लोग शहादत (अश्हादु ला इला..) के बाद शहादत की अंगुली को थोड़ा उठा कर हिला कर वापस वहीं स्थिति में आ जाते है परन्तु कई लोग अंगुली को शहादत की स्थिति में रखते हैं।
यदि नमाज में दो से अधिक रकात (वितर, मगरिब की फ़र्ज़ नमाज में तीन, फज्र में दो शेष तीन में चार रकात) हो तो शेष दो रकात (फ़र्ज़ नमाज) में केवल अल्हम्दु शरीफ ही पढ़ी जायेगी। इसके बाद अंतिम रकात के सजदे के बाद बैठ कर फिर से अतहियात पढ़ी जाती है। अतहियात के बाद दुरुद ए इब्राहिम एवं दुरूद ए मुहम्मदी पढ़ी जाती है।
दरूद ए इब्राहिम -
اللَّهُمَّ صَلَّ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ، وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ اللَّهُمَّ بَارِكَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ 
हिंदी लिप्यंतरण - 
अल्लाहुम्मा सल्लि 'अला मुहम्मदीन व' अला' आलि मुहम्मदीन, कमा सल्लयता 'अला' इब्राहीमा व 'अला' आली 'इब्राहीमा,' इन्नका हमीदुन मजीद। अल्लाहुम्मा बारिक 'अला मुहम्मदीन व' अला 'आली मुहम्मदीन, कमा बारकता' अला 'इब्राहीमा व' अला' आली 'इब्राहीमा,' इन्नाका हमीदुन मजीद।
हिंदी अनुवाद - 
ऐ अल्लाह, मुहम्मद पर और मुहम्मद के आल (खानदान) पर अपना फज़ल व करम फरमा, जैसा कि आपने इब्राहिम पर और इब्राहिम के आल (खानदान) पर अपना फज़ल व करम फरमाया, बेशक आप काबिले तारीफ हैं, सबसे शानदार हैं। ऐ अल्लाह, मुहम्मद पर और मुहम्मद के आल (खानदान) पर बरकत नाजिल फरमा जैसा कि आपने इब्राहिम और इब्राहिम के आल (खानदान) पर बरकत नाजिल फरमाई, बेशक आप काबिले तारीफ हैं, सबसे शानदार हैं। 
दरूद ए मुहम्मदी - 
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ عَلَى 
ال مُحَمَّدٍ خَيْرِ الْخَلَائِقِ وَ 
افضلِ الْبَشَرِ وَشَفِيعِ الْأُمَمِ 
يَوْمَ الْحَشْرِ وَالنَّشْرِ وَصَلَّ 
على سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَعَلَى 
ال سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ بِعَدَدِ كُلِّ
آل پر معلوم 
हिंदी लिप्यंतरण -
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लैता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीमा इन्नक हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक्ता अला इब्राहीमा व अला आलि इब्राहीमा इन्नक हमीदुम मजीद।
हिंदी अनुवाद - 
ऐ अल्लाह, मुहम्मद पर और मुहम्मद के आल (खानदान) पर अपना फज़ल व करम फरमा, जैसा कि आपने इब्राहिम पर और इब्राहिम के आल (खानदान) पर अपना फज़ल व करम फरमाया, बेशक आप काबिले तारीफ हैं, सबसे शानदार हैं। ऐ अल्लाह, मुहम्मद पर और मुहम्मद के आल (खानदान) पर बरकत नाजिल फरमा जैसा कि आपने इब्राहिम और इब्राहिम के आल (खानदान) पर बरकत नाजिल फरमाई, बेशक आप काबिले तारीफ हैं, सबसे उच्य पद (मर्तबा तेरा ही है।
इसके बाद दुआ (दुआ ए मोसर) (यह दुआ युनुस नबी ने मछली के पेट में की थी) - 
اللهُمَّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا وَلَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ فَاغْفِرْ لِي مَغْفِرَةً مِنْ عِنْدِكَ وَارْحَمْنِي إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ 
हिंदी लिप्यंतरण - 
अल्लाहुमा इन्नी जलम तू नफ़सी जुलमन किसीरवं, वाला यगफिरु जुनुबा इल्ला अंता फग फिरली मग फिरातवं मिन इंदीका वर्रहमनी इन्नाका अन्तल व रहमनी इन्नाका अंत गफुर्रूर रहीम।
हिंदी अनुवाद - 
ए अल्लाह, हमने अपनी जान पर बहुत जुल्म किया है और गुनाहों को तेरे सिवा कोई माफ नहीं कर सकता, हमारी मगफिरत फरमा ओर हम पर रहम कर। बेशक तू बड़ा माफ करने वाला और रहम करने वाला है।
इसके बाद ईमाम के साथ पहले बाईं और बाद में दाईं ओर गर्दन फेर कर सलाम पढ़ते हैं - 
अस्सलामू आलई कुम वा रहमतुल्लाह
अल्लाह आपको सुरक्षित रखे।
बा जमात नमाज -
1. एक से अधिक नमाजी हों।
2. यदि आपका नमाज का टाइम हो गया और कोई अकेला नमाज की नीयत बांध कर खड़ा है तो आप उसके पीछे जा कर खड़े हो जाएं, हाथ के इशारे से पहले से नमाज में खड़े व्यक्ति को थोड़ा सा आगे कर दें।
3. कोई कितना भी बड़ा क्यों ना हो, पहले से सफ़ में बैठे व्यक्ति को धकेल/उठा कर पीछे नहीं कर सकता। जहां जगह मिल रही है वहीं सफ़ में शामिल हों।
4. आप यदि देर से आए हैं और जमात खड़ी हो गई है तो प्रथम सजदे से पहले शामिल होने पर पूरी रकात मान्य होगी। शेष रकात सलाम फेरने के बाद आप व्यक्तिगत अदा करें।
5. सफ़ सीधी होनी चाहिए।
6. कोई भी व्यक्ति किसी भी मस्जिद में बा जमात नमाज पढ़ सकता है।
7. ईमाम के पीछे सिर्फ फ़र्ज़ नमाज ही पढ़ी जाती हैं।
8. जुमा के दिन दो रकात नमाज जुमा वाजिब ईमाम के पीछे पढ़ी जाती हैं।
9.फज्र की नमाज में दो रकात सुन्नत फ़र्ज़ से पहले पढ़ना अनिवार्य है चाहे जमात खड़ी हो गई हो।
10. कुल 5 समय की नमाज में 48 रकात में 48 रुकु, 96 सजदे होते हैं।
11. जुमा, ईद अल अजहा व ईद अल फितर के दिन 50 रकात, 50 रुकु और 100 सजदे होते हैं।
नमाज समय के हिसाब से रकात -
अहले हदीश अव्वल वक्त में (नमाज का समय शुरू होते ही) अज़ान और नमाज की अदायगी करते हैं। शेष सभी मसलक निश्चित समयानुसार नमाज की अदायगी करते हैं। कुल पांच समय नमाज पढ़ी जाती है।
1. फज्र (सुबह, सूरज उगने से पहले) - 
इसमें 2 सुन्नत (सुन्नत ए मोअकदा, फ़र्ज़ से पहले पढ़ना आवश्यक चाहे जमात खड़ी हो गई हो) +2 फ़र्ज़ = कुल चार रकात।
2. जौहर (दोपहर बारह बजे से थोड़ा सा बाद में - 
अस्र से थोड़ा सा पहले की नमाज में 4 सुन्नत (सुन्नत ए मोअकदा, पढ़ना आवश्यक, पर फ़र्ज नमाज के बाद भी पढ़ सकते हैं यदि जमात खड़ी हो गई है तो) +4 फ़र्ज़ +2 सुन्नत +2नफ़ल कुल बारह रकात। इस समय ईमाम किरात (जोर से अल्हम्दु शरीफ और सूरत नहीं पढ़ते हैं)
 3. अस्र (दोपहर के बाद) - 
इसमें 4 फ़र्ज़ + 4 सुन्नत कुल 8 रकात पढ़ी जाती हैं। समय नहीं हो तो सुन्नत छोड़ भी सकते हैं। इस समय ईमाम किरात (जोर से अल्हम्दु शरीफ और सूरत नहीं पढ़ते हैं)।
4. मगरिब (दिन छिपने के तुरंत बाद) - 
इसमें 3फ़र्ज़ +2 सुन्नत+ 2 नफ़ल कुल 7 रकात पढ़ी जाती हैं। इस समय ईमाम किरात कवाते हैं।
5. ईसा (दिन छिपने से मध्य रात्रि तक) 
इसमें 4 सुन्नत (पढ़ना आवश्यक) + 4 फ़र्ज़ + 2 सुन्नत +2 नफ़ल +3 वितर + 2 नफ़ल। 
वितर - दिन की इबादत का अंत। इसमें दो रकात तो पहले की तरह ही पढ़ते हैं, तीसरी रकात में कयाम के बाद रुकु जाने से पहले एक बार फिर से रफादेन की जाती है। इसके बाद दुआ ए कुनूद पढ़ी जाती है।
दुआ ए कुनूद - 
اللَّهُمَّ إِنَّا نَسْتَعِينُكَ وَنَسْتَغْفِرُكَ وَيُؤْمِنُ
بِكَ وَتَوَكَّلْ عَلَيْكَ وَنُتْنِي عَلَيْكَ الْخَيْرُ
وتشكُوكَ وَلَا تَكْفُرُكَ وَنَخْلَعُ وَنَتْرُكُ مَنْ
يَفْجُرُكَ اللَّهُمَّ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَلَكَ نُصَلِّي وَنَسْجُدُ
وَإِلَيْكَ تَسْعَى وَنَحْفِدُ وَنَرْجُوا رَحْمَتَكَ وَتَخَشْى
عَذَابَكَ إِنَّ عَذَابَكَ بِالْكُفَّارِ مُلْحِق
हिंदी लिप्यंतरण - 
अल्लाहुम्मा इहदीनी फीमन हदायत, वा अफिनी फिमन अफैत, वा तवलनी फिमन तवललैत, वा बारिक ली फिमा अताइत, वा क़िनी शर्रा मा कादैत, फ़ा इन्नाका तकदी वा ला युकदा अलैक, वा इन्नाहु ला यदिल्लु मन वलैत, वा ला याइज्जु मन 'आदैत, तबरकता रब्बाना वा तालैत।
हिंदी अनुवाद - 
ऐ अल्लाह! हम तेरी ही इबादत करते हैं और तेरे लिए दुआ करते हैं और सजदा करते हैं और तुझे प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं और तेरे मार्ग में सेवा के लिए उपस्थित होते हैं और तेरी दया की आशा रखते हैं और तेरे दंड से डरते हैं। निस्संदेह, तेरा अज़ाब काफ़िरों को आने वाला है।
मस्जिद से बाहर निकलने की दुआ - 
 السَّلَامُ عَلَى النَّبِيِّ وَرَحْمَةُ اللهِ وَ بَرَكَاتُهُ
हिंदी लिप्यंतरण - 
अस्सलामु अलन्नबिय्यि वरहमतुल्लाहि व ब र-कातुह
हिंदी अनुवाद - 
ए नबी आप को अल्लाह का संरक्षण प्राप्त हो।
जुमा की नमाज - 
इस्लाम धर्म में आपसी संबंध स्थापित करने हेतु मेलजोल को अत्यधिक महत्व दिया। इस हेतु दिन में पांच बार और सप्ताह में एक बार मस्जिद में मिलना आवश्यक है।
जुमा (एकत्र होना) के दिन की नमाज हेतु - 1. नहाना, शरीर के बाल आदि की सफाई
2. दाढ़ी, खत बनवाना
3. साफ धुले हुए कपड़े पहनना
4. खुश्बू आदि लगाना।
5. नमाज हेतु मस्जिद में जाना।
जुम्मे की नमाज किस मस्जिद में पढ़ी जा सकती है - 
बस्ती की बड़ी मस्जिद जहां आसानी से सभी लोग आ जा सकें।
सामान्य बाजार, राजकीय सुविधाएं (अस्पताल,डाकघर, थाना आदि) आसानी से उपलब्ध हो सकें।
जुमा की नमाज की अवधारणा सल्ताह भर की आवश्यक सामग्री क्रय करना, स्वास्थ्य या अन्य राजकीय कार्य निपटाना रही है। इस के कारण लोग एक स्थान पर आयेंगे तो बाजार विकसित होने। बाजारों के कारण शहर विकसित एवं शक्तिशाली होंगे। इसी अवधारणा ने मक्का जैसी वीरान जगह को वैश्विक केंद्र बना दिया।
जुमा की नमाज में ईमाम के पीछे चार फ़र्ज़ के स्थान कर दो रकात वाजिब पढ़े जाते हैं। तकबीर से पहले जुमा की अज़ान होती है। मुख्य अज़ान के बाद खुतबे से पहले।
खुत्बा - 
मस्जिद से सभी लोगों को साप्ताहिक गतिविधियों के संचालन हेतु दिशा - निर्देश देना। खुत्बा मिम्बर पर चढ़ कर दिया जाता है।
मिंबर - 
तीन सीढ़ियों का ऊंचा स्थान जहां खड़े हो कर उपदेशक (ईमाम) साप्ताहिक गतिविधियों के निर्देश देते हैं।
ईद अल अजहा व ईद अल फितर की नमाज - 
रमजान के रोजे पूरे होने के अगले दिन और ईद अल अजहा की कुर्बानी से पहले ईदगाह में दो रकात नमाज वाजिब पढ़ी जाती है।
ईद की नमाज की नियत - 
मैं नियत करता/करती हूं दो रकात नमाज वाजिब ईद अल फितर/अजहा साथ छ तकबीरों के मुंह मेरा काबा की तरफ पीछे इस इमाम के अल्लाहू अकबर। 
पहली रकात में सना के बाद तकबीर अल्लाहू अकबर के बाद हाथ छोड़ कर दोबारा रफ़ादेन, फिर तकबीर के बाद रफ़ादेन और तीसरी तकबीर के साथ रुकु और सजदा किया जाता है। 
दूसरी रकात में पहले सना व सूरत के बाद तीन तकबीर होती हैं। 
बाद नमाज के खुत्बा पढ़ा जाता है। खुतबे के बाद दुआ होती है। दुआ के बाद सब गले मिलकर मुसाफा करते हैं।
ईदगाह - 
बस्ती से बाहर खुला स्थान जहां ईद की नमाज पढ़ी जाती है।
मईयत की नमाज - 
हम जानते हैं कि जन्म के समय शिशु के कान में अज़ान दे दी जाती है। मरने के बाद नमाज पढ़ी जाती है। यह कहा जाता है कि इंसान की जिंदगी अज़ान से नमाज के बीच है।
मय्यत की नमाज़ पढ़ने का तरीका - 
नीयत - 
मैं नीयत करता हूं चार तकबीर नमाज ए जनाजा, सना वास्ते अल्लाह के, दरूद वास्ते मोहम्मद नबी के, दुआ वास्ते इस मईयत के पीछे इस ईमाम के, मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ़ अल्लाहू अकबर।
नीयत के बाद, तकबीर पढ़ते हुए दोनों हाथों को उठाएं,बाएं हाथ पर दाहिने हाथ को रखें और अल्लाहु अकबर कहें।
इसके बाद सना पढ़ें, फिर तकबीर और दुरूद शरीफ़ पढ़ें। तीसरी बार तकबीर पढ़ें और मय्यत के लिए दुआ पढ़ें। चौथी बार तकबीर पढ़ें, इसके बाद थोड़ा रुक कर तस्लीम करें।
मय्यत की नमाज़ के लिए दुआ - 
या अल्लाह, हमारे जिंदा और फोत सब की मगफ़ीरत कर दे। हमें इनाम से वंचित न करना और हमें भटकने से बचाना।
उसे क्षमा करे और उस पर रहम करे, उसे सुरक्षित रख, और उसे माफ़ कर दो।
उसे स्वर्ग में जगह दीजिए और उसे कब्र और जहन्नम के अजाब से बचायें।
ग़ायबाना नमाज़-ए-जनाज़ा - 
जब किसी मुस्लिम व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और उसके पास कोई जीवित नामाज़ पढ़ सकने वाला मुस्लिम मौजूद न हो, तो ग़ायबाना नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ी जाती है।
प्रत्येक मुस्लिम पर नमाज फ़र्ज़ है, यदि बीमार हैं तो सोते हुए नमाज पढ़ें पर पढ़ें।
(III) रोजा - 
मेराज के सफर के बाद अल्लाह के नबी ने एक महीने के रोजे रखना सभी मुस्लिम पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) किया गया। 
रोजे (उपवास) का इतिहास - 
इतिहास में, रोज़ा (उपवास) रखने की शुरुआत पैगंबर मोहम्मद (स.) के मक्का से मदीना हिजरत करने (622 ईस्वी) के बाद हुई और बाद में रमजान (हिजरी संवत का नौवां महीना) के महीने में 30 रोज़े रखने को फर्ज़ बनाया गया।  मक्का में कुछ विशेष तारीखों (जैसे, आशूरा की 13, 14, व 15 तारीख) को रोज़े रखने की पूर्व की परंपराएं थीं। हिजरत के बाद सभी मुसलमानों को रमजान के महीने में 30 रोज़े रखने का आदेश दिया गया। अरबी भाषा में उपवास को सोम कहा जाता है और फारसी में रोजा। कुरान में रोज़े को इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक बताया गया है। रोज़ा, मुसलमानों को बुराई से दूर रख कर अल्लाह के करीब लाता है। अन्य धर्मों में रोजा (उपवास) रखा जाता है।
रोजे की प्रक्रिया - 
सहर - 
रोज़े में सहर (पौ फटने/सूर्य के प्रकाश के दिखाई देने से पूर्व का भोजन) सहरी कहलाता है। 
रोजा रखने की दुआ - 
हिंदी लिप्यंतरण - 
वा बी सौमी गदिन नवैतु मिन सहरी रमाजान।
हिन्दी अनुवाद - 
मैं रमज़ान के इस रोज़े की नियत करता/करती हूं
इफ़्तार - 
पूरे दिन बीना कुछ खाए - पीए (सूर्य उदय से पहले और सूर्य ढलने के बाद) का भोजन इफ्तार कहलाता।
रोजा खोलने की दुआ - 
हिंदी लिप्यंतरण - 
अल्लहुम्मा इन्नी ला का सोमतु वाबीका आमन्तु व आलैका तवक्कलतु वा आला रिज्कीका अबतरतु।
हिंदी अनुवाद - 
ए अल्लाह! मैंने तेरी रजा के लिए रोज़ा रखा और तेरे ही कहने पर रोज़ा खोल रहा/रही हूं।

रोजे की हालत में क्या कर सकते हैं क्या नहीं - 
1. रोजे की हालत में सुबह (पौ फटने के बाद) से शाम (सूर्यास्त) तक कुछ नहीं खाया - पीया जाता है।
2. इस अवधि में संभोग नहीं कर सकते।
3. मुंह (oral) से कोई वस्तु (खाद्य) ग्रहण नहीं कर सकते।
4. पत्नी के माथे को चूम सकते हैं।
5. आवश्यकता होने पर इंसुलिन आदि दवाई इंजेक्शन के रूप में ले सकते हैं।
6. महिला माहवारी की अवधि सात दिन तक रोजे नहीं रख सकती।
7. रोजा आंख, कान, नाक और इंद्रियों का होता है। किसी भी माध्यम से कोई भी गलत काम नहीं किया जा सकता।
8. बीमारी की हालत में रोजा कजा (किया जा सकता है) जो बाद में ठीक होने पर रखा जायेगा।
9. यदि कोई इंसान रोजा नहीं रख सकता तो उसे एक रोजे के बदले सात गरीब लोगों को भोजन करवाना होगा।
10. वार्षिक देयता - फ़ितरा (प्रति व्यक्ति 2.5 किलो अनाज गरीबों को देना), जकात आदि का भुगतान।
रोजे में पुण्य एवं पाप की गणना - 
- रोजे (रमजान) के महीने में इबलिश (शैतान) को कैद कर दिया जाता है।
- पाप एवं पुण्य की गणना 70 गुणा अधिक की जाती है।
- रमजान को तीन दहाई (असरा) में विभाजित किया जाता है 
बरकत का असरा - प्रथम दस दिन
रहमत - ग्यारहवें दिन से बीसवां दिन
मगफिरत - इक्कीसवें दिन से अंतिम दिन तक 
- रमजान के महीने का अंतिम शुक्रवार (जुमा) जमातुल विदा (आखिरी जुमा) होता है।
- इस महीने में नए कपड़े सिलवाने, खाने - पीने का हस्र में कोई हिसाब नहीं होगा।
रोजा कब टूटता है - 
- जान बुझ कर कुछ खा - पी लेने से
- संभोग करने से
- चुगली करने से
- बुराई (पाप) करने से
रोज़े का महत्व - 
- रोज़े से शारीरिक बल के साथ - साथ आध्यात्मिक (आत्मशक्ति) शक्ति बढ़ती है।
-  व्यक्ति में स्वयं पर नियंत्रण रखने की क्षमता बढ़ती है। 
- अभावग्रस्त लोगों के प्रति सहानुभूति और करुणा की भावना जागृत होती है। 
- रोजे के कारण एक माह तक शरीर में ग्यारह महीनों तक बनने वाला टॉक्सिक समाप्त हो जाता है। 
- शरीर को रिपेयर करने का समय मिल जाता है। 
- अधिक गति से बढ़ने वाली कोशिकाओं पर रोक लगती है। 
- शरीर में बढ़ती चर्बी समाप्त हो जाती है। 
- तीस दिन रोजा रखने के अगले दिन ईद (खुशी) का त्यौहार मनाया जाता है।
रमजान में तरावीह की नमाज - 
तरावीह की नमाज में रकात अलग - अलग मसलक में कम या ज्यादा हो सकती हैं। ईसा की फ़र्ज़ नमाज के बाद ईमाम के पीछे मा किरात नमाज में कम से कम आठ और अधिकतम बीस रकात होती हैं जो दो/चार के जोड़े में पढ़ी जाती हैं। ज्यादातर मस्जिदों में तरावीह में कुरान सुना जाता है परन्तु कुछ मस्जिदों में आलमतारा (तीसवां पारा/आम के पारे की अंतिम दस सूरत) से भी तरावीह पढ़ी जा सकती है।
तरावीह के बाद वितर की नमाज भी जमात से होती है। आखिरी दो सुन्नत और नफ़ल अंतिम समय (सब से बाद) में पढ़े जाते हैं।
एतकाफ - 
बीसवें रमजान के अस्र के समय से ईद का चांद दिखने तक हर मस्जिद में एक या एक से अधिक व्यक्ति मस्जिद में रहकर इबादत करते हैं। यहीं अलग से पर्दा लगाकर रहते हैं। चांद दिखने के बाद घर जाते हैं। इसे एतकाफ कहते हैं।
लैलातुल कद्र - 
रमजान के 21,23,25, 27 व 29 वीं रात में से एक रात लैलातुल कद्र होती है। अधिकतर लोग 27 वीं रात को लैलातुल कद्र कहते हैं। इस दिन सभी लोग मस्जिद या घर में पूरी रात इबादत करते हैं।

मुस्लिम शासन में कर व्यवस्था - 
(IV) जकात (मुस्लिम कर) - 
मुस्लिम शासन व्यवस्था में मुस्लिम पर टैक्स जो आय का एक निश्चित भाग होता है जकात के रूप में लिया जाता है। अन्य धर्म के मानने वालों पर जजिया टेक्स लगाया जाता है जो न्यूनतम 5% से 10% तक हो सकता है।
- जकात (आय का न्यूनतम 2.5% अधिकतम 10%) का भुगतान करना। ईद अल फितर के दिन नमाज पढ़ने जाने से पूर्व पूर्ण करना।
जकात किस पर लागू है - 
अहले असबाब (मालदार/धनी व्यक्ति जिस के पास किसी भी व्यापार, नौकरी या काम से कमाई हो जिस की शर्ते है - 
- कोई कर्ज न हो
- 55 तोला (550 ग्राम) चांदी हो
- 7.5 तोला (75 ग्राम) सोना हो
- लगभग 45000 रुपए नकद हों 
जकात कौन ले सकता है - 
- गरीब व्यक्ति - (उपरोक्त शर्तानुसार जो व्यक्ति जकात दे नहीं सकता वो) जकात ले सकता है।
- शिक्षण संस्थान (मदरसा, मकतब या अन्य संस्थान)।
- विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने हेतु जकात ले सकता है।
- धर्मयुद्ध के लिए सामग्री उपलब्ध करवाने हेतु।

जज़िया - 
मुशरिकीन (अल्लाह के अलावा अन्य ईश्वर की पूजा करने वाले) से लिया जाने वाला कर जजिया कहलाता है। इसके बदले उन्हें मुस्लिम भूमि में बसने, सुरक्षा एवं विकास का अधिकार दिया जाता है। शब्द जज़िया अरबी के जज़ा (बदला) शब्द से बना है। अन्य धर्म के लोगों का दारुस्सलाम (मुस्लिम शासन) की ज़मीन पर बसने, जान, माल और आश्रितों की रक्षा के बदले में दिया जाने वाला कर जजिया कर कहलाता है। जजिया मुसलमानों द्वारा संरक्षण के बदले गैर-मुस्लिमो से लिया जाने वाला कर है, जो बाहरी आक्रमण आदि से उसकी रक्षा करते हैं। असमर्थ, कमजोर एवं कमतर समाज संरक्षण हेतु मुस्लिम शासन व्यवस्था में आने का विकल्प देता है। इस सुरक्षा के बदले मुस्लिम सरकार इनसे कर लेती है। जजिया अक्सर मुसलमानों के लिए जिहाद के रूप में अपने छापे और विस्तार को जारी रखने के लिए बच्चों के भरण-पोषण का एक स्रोत प्रदान करता था।


(V) हज - 
प्रत्येक मुस्लिम (स्त्री/पुरुष) को जीवन में एक बार मक्का व मदीना की यात्रा करनी चाहिए। इस यात्रा को हज कहते हैं। हज अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है आरक्षण/सुनिश्चित करना। हज नबी इब्राहिम की सुन्नत (अनुकरण) है। इब्राहिम नबी इस्माइल और उनकी मां हाजरा को देखने तीन बार मक्का आए। उन्होंने बेटे इस्माइल के साथ मिलकर पहले घर (जिसका निर्माण आदम नबी ने किया था) का पुनर्निर्माण किया। मक्का से मदीना की यात्रा नबी मोहम्मद साहब की याद में की जाती है।
श्रीलंका में आदम और सीरिया में हव्वा के उतरने के बाद जेद्दाह शहर के निकट दोनों का मिलन हुआ और मक्का शहर में रहने लगे। इस के बाद इस्माइल नबी व हाजरा को इब्राहिम नबी ने मक्का में छोड़ा। इसके बाद यह स्थान व्यापार का मुख्य केंद्र बन गया।
हज के प्रकार - 
1. हज - 
यह यात्रा इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने, धू अल-हिज्जा में की जाती है। यह मक्का में कुल 12 दिन का कार्यक्रम होता है। आखिरी दिन के बाद लोग मदीना चले जाते हैं।
2. उमराह हज - 
जुल हिज्ज के अलावा अन्य किसी भी दिन मक्का मदीना की यात्रा करना।

मक्का का इतिहास - 
मक्का शहर के लिए नबी इब्राहिम की दुआ - 
काबा का निर्माण पूरा करने के बाद नबी इब्राहीम ने दुआ की कि - ए अल्लाह! मैंने अपने वंशजों में से कुछ को आपके पाक घर के पास एक बंजर घाटी में बसाया है। ताकि वे तेरी इबादत करे सकें। अतः लोगों के दिलों को उसकी ओर आकर्षित कर और उन्हें फलों और रोज़ी भर दे ताकि वे कृतज्ञ हों।
- सुरह ए इब्राहीम 14:37
मक्का को शहरों की मां (उम्म अल कुरा) भी कहा जाता है। मक्का शहर सउदी अरब के हेजाज़ क्षेत्र में जेद्दा से 73 किलोमीटर की दूरी पर संकरी घाटी में समुद्र तल से 277 मीटर की ऊँचाई पर ग्रीनविच मेरिडियन के 39°49′34″ पूर्व पर स्थित है। मक्का को पहले बक्का नाम से जाना जाता था (शब्द बक्का का अर्थ है अत्याचारियों की गर्दन कुचल देना) जो अब मक्का हो गया है। नबी आदम द्वारा स्थापित काबा (अल्लाह का घर) यहीं स्थित है।
अन्य नाम क़ादिस, नादिर, और अल-क़रियाह अल-क़दीमा (प्राचीन गांव) नामों का उल्लेख अल-अज़राकी के ऐतिहासिक विवरण में मिलता है।
यह स्थान एक निर्जन सूखा पहाड़ी क्षेत्र था। इस्माईल और हाजरा ने यहां बस कर शहर की नींव रखी। आल ए इस्माईल की शुरुआत (इस्माईली कबीला) इसी शहर से होती है। अरब के सुनसान इलाके में उसी समय बनू जुरहम क़बीला पानी तलाश में आया। पानी मिलने पर जुरहम हाजरा से स्वीकृति ले यहीं बस गए। हाजरा भी यहां किसी के बसने की इच्छुक थीं। बाद में जुरहम ने अपने शेष कबीले को यहां बुला लिया और मकान बना कर रहने लगे। बनू जुरहम की लड़की से इस्माईल का विवाह हुआ। धीरे -धीरे अन्य कबीले अमालेकाइट्स, जुरहुम, खुज़ा और कुरैश यहां आ कर बस गए। इन में इस्माइल के भाई केदार की संतान भी शामिल थी। केदार का कबीला अल कुरैश कहलाता है। बनू हाशिम इस कबीले का उच्च वर्ग रहा है। समय के साथ ही कुरैश कबीला यहां का प्रशासक बन गया। शनै -शनै यह स्थान व्यापार का मुख्य केंद्र बन गया। कुरान के अनुसार मक्का पृथ्वी का केंद्र है। इस विषय पर काफी बहस हुई है कि मक्का धरती का केंद्र है या नहीं। नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर पहुंच कर दावा किया कि मक्का का काबा स्थित बिंदु पृथ्वी का मध्य है। यहां से विशिष्ट किरणें निकलती हैं जो स्पष्ट दिखाई देती हैं। आर्मस्ट्रांग के इस दावे की पुष्टि हेतु एक अध्ययन किया गया।
मक्का पृथ्वी का केंद्र है या नहीं, इस मुद्दे को लेकर प्रोफेसर हुसैन कामेल ने पृथ्वी के नक्शे पर सातों महाद्वीपों की मक्का से दूरी और स्थिति का अध्ययन करने हेतु कई रेखाएं खिंचीं। इन रेखाएं का अक्षांशीय व देशांतरीय प्रक्षेपण दर्शाने हेतु समानांतर रेखाएं खींचनी शुरू कीं. लगातार दो साल की मेहनत के बाद कंप्यूटर प्रोग्राम के माध्यम से सही दूरी और विभिन्न स्थितियों का पता लगाया गया। इस अध्ययन के आधार पर दावा किया गया कि मक्का वास्तव में धरती का केंद्र है। वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का केंद्र 0°N 0°E (वह स्थान जहां 0 डिग्री अक्षांश और देशांतर आपस में काटते हैं। इस जगह पर कोई भी देश नहीं है, घाना क्षेत्र को धरती का केंद्र माना जाता है।
काबा -
- यकीनन लोगों की इबादत के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह यही (काबा) है जो बक्का (मक्का) में है बड़ी (खैर व बरकत) वाला और सारे जहाँ के लोगों का रहनुमा है। काबा शब्द का अर्थ घनाकार भी होता है।
- सुरह अल-इमरान आयात 96
ऐ रसूल वह वक्त याद करो, जब हमने इब्राहिम के लिए काबा की जगह ज़ाहिर कर दी और उनसे कहा कि मेरा किसी को शरीक न बनाना और मेरे घर को तवाफ, क़याम रूकू और सुजूद करने वालों के लिए साफ सुथरा रखना।
- सुरा अल-हज, आयात  26
उस समय की याद दिलाओ जब इब्राहिम व इस्माईल काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे और दुआ माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार! हमारी यह सेवा कुबूल (स्वीकार) कर बेशक तू ही दूआ का सुनने वाला और उसका जानने वाला है।
- सुरा अल-बक़रा, आयात 127
काबा मक्का में स्थित एक धार्मिक स्थान है। काबा शब्द अरबी भाषा के काबू से बना है जिसका अर्थ है चलने की शुरुआत का स्थान/ टखना। काबा को बैतूल हराम (अल्लाह का घर) कहा जाता है। काबा के अन्य नाम - बैत अल हरम (पवित्र घर), बेत अल अतीक (प्राचीन घर), अल बनियाह (इमारत), अद - दुवर (घूमने वाला), मस्जिद अल हराम (पवित्र मस्जिद), 
काबा, इस्लाम का सबसे पवित्र स्थल है, जिसका निर्माण आदम नबी ने ओर इसके बाद पुनः निर्माण पैगंबर इब्राहिम और उनके पुत्र इस्माइल ने किया था। काबे में कई देवताओं सहित लात,मन और उज्जा (तीन देवियों) की मूर्तियां स्थापित थीं। इन्हें अल्लाह की बेटी कहा जाता था। पहले नबी इब्राहिम ने और उसके बाद मोहम्मद साहब ने काबे से मूर्तियों को हटवाया। यहां इब्राहिम नबी द्वारा स्थापित जन्नत का पत्थर हजरे अस्वद लगा हुआ है। अब तक इस इमारत का दस बार पुनर्निर्माण हो चुका है। यह 10.5 मीटर का घनाकार कमरा है जिसकी ऊंचाई 15 मीटर है।
काबे का पुनर्निर्माण - 
1. नबी आदम द्वारा सर्वप्रथम निर्माण
2. नबी इब्राहिम एवं इस्माईल द्वारा दूसरी बार पुनर्निर्माण।
3. सन् 605 से 608 ईस्वी के मध्य बारिश और बाढ़ के कारण कमजोर नींव को मजबूत करने हेतु मोहम्मद साहब एवं कुरैश कबीले द्वारा पुनर्निर्माण। कुरैश ने काबा की ऊँचाई नौ हाथ बढ़ा दी, जिससे यह 18 हाथ लंबा हो गया। उन्होंने पश्चिमी दरवाज़े को पूरी तरह से सील कर दिया, और पूर्वी तरफ़ एक दरवाज़ा छोड़ दिया, ताकि हर कोई अंदर न जा सके। उन्होंने पहली बार छत बनवाई। सीमित संसाधनों के कारण, उन्होंने मूल संरचना का एक हिस्सा, जिसे हिज्र के नाम से जाना जाता है, नई इमारत के बाहर छोड़ दिया।
नोट - नबुवत के बाद नबी मुहम्मद (स.) ने इब्राहीम द्वारा रखी गई मूल नींव पर काबे का पुनर्निर्माण करने और कुरैश द्वारा छोड़े गए हिस्से को शामिल करने की इच्छा व्यक्त की। रसूलल्लह ज़मीनी स्तर पर दो दरवाज़े चाहते थे। एक पूर्वी दरवाजा दूसरा पश्चिमी दरवाजा। 
एक हदीश - अगर आप लोगों ने अज्ञानता को त्याग नहीं दिया होता, तो मैं आदेश देता कि काबा को ध्वस्त कर दिया जाए और इब्राहीम द्वारा रखी गई मूल नींव पर दो दरवाज़े, एक पूर्व और एक पश्चिम की तरफ़ के साथ फिर से बनाया जाए।
- हजरत आयशा से माखुज़ हदीश सहीह बुखारी)
4. रविवार 31 अक्टूबर 683 ईस्वी को (मक्का की पहली घेराबंदी) मोहम्मद साहब के लगभग 51 वर्ष बाद उमय्यद खलीफा और अब्दुल्लाह इब्न अल-ज़ुबैर (उम्मयद विरोधी एवं अली समर्थक) के बीच युद्ध में आग से काबे को बड़ा नुकसान हुआ। इब्न अल-जुबैर ने इसका हतीम (हतीम इब्राहिम नबी द्वारा निर्मित काबा की मूल नींव के अवशेष जिन्हें मुहम्मद साहब पुनर्निर्माण करवा कर काबा में शामिल किया करना चाहते थे) की उत्तरी दीवार को भी काबे में शामिल करते हुए पुनःनिर्माण करवाया।
5. वर्ष 692 ईस्वी में (मक्का की दूसरी घेराबंदी) में उमय्यद सेना ने अल-हज्जाज इब्न यूसुफ व (खलीफा अब्दुल मलिक इब्न मारवान) के नेतृत्व में पत्थर बरसा कर इस भवन को क्षतिग्रस्त कर दिया। इब्न अल-ज़ुबैर की हत्या कर उमय्यदों ने सभी इस्लामी शहरों को अपने अधीन ले लिया (इस घटना को दूसरी फ़ितना का अंत कहा जाता है)। वर्ष 693 ईस्वी में, अब्दुल मलिक ने अल-ज़ुबैर द्वारा बनाई काबा की इमारत को शहीद कर पुनः पुराने घनाकार भवन का निर्माण करवाया।
 6. सन् 930 ईस्वी में हज के समय शिआ क़रामतान विद्रोहियों द्वारा काबा पर आक्रमण कर यहां लगे हज़रे अस्वद (काले पत्थर) को अल-अहसा ले जाया गया। जिसे अब्बासि खलीफाओं द्वारा वर्ष 952 ईस्वी में पुनः ला कर स्थापित किया। वर्तमान काबा की मूल आकृति तब से अब तक लगभग वैसी ही है।
7. वर्ष 1629 ईस्वी (बुधवार 19 शाबान, 1039 हिजरी) में मक्का में हुई अतिवृष्टि के कारण काबा की दीवार क्षतिग्रस्त हो गईं। उस्मानी खलीफा सुल्तान मालिक ने इसे मक्का में ही पाए जाने वाले ग्रेनाइट पत्थर से पुनः बनवाया। मौजूदा काबा उसी समय से बना हुआ है।
8. सन् 1829 ईस्वी (1239 हिजरी) के अंत में, मिस्र के गवर्नर मुहम्मद अली पाशा ने बाढ़ से जमा रेत और मलबे को हटा कर इमारत की मरम्मत और जीर्णोद्धार हेतु काबा के आसपास व्यापक सफाई करवा कर पुनः निर्माण करवाया गया।
9. वर्ष 1939 ईस्वी में बादशाह सऊद ने काबा की ऊपरी लकड़ी की छत के खराब हो जाने के कारण इसका जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण करवाया गया। सभी दीवारों के आसपास की छतों के बीच एक नया आधार बनाया गया था, और मूल दीवारों की पूरी तरह से मरम्मत कर आंतरिक दीवारों के चारों ओर संगमरमर लगाया गया। काबे की छत तक जाने वाली आंतरिक सीढ़ीयों की मरम्मत की गई। 
सऊदी विस्तार के समय काबा को आधुनिक इकाइयों का उपयोग करके मापा गया। इसके आधार का क्षेत्रफल 145 वर्ग मीटर, हिज्र का क्षेत्रफल दीवार सहित 94 वर्ग मीटर था।
10. मई 1996 में काबे की छत क्षतिग्रस्त हो गई थी जिसका पुनर्निर्माण करवाया गया। तब से अब तक काबा अपनी वास्तविक स्थिति में है। काबा क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या के कारण निर्माण कार्य लगभग चलता रहता है। यहां पहले से बनी लगभग सभी इमारतें ध्वस्त कर नई आधुनिक इमारतें बनाई गई हैं। 
आज का काबा - 
काबा के नवीनतम माप उम्म अल-कुरा विश्वविद्यालय के हज अनुसंधान केंद्र द्वारा किया गया जो निम्नानुसार है - 
- हजरे अस्वद के कोने से शामी कोने तक 11.68 मीटर, जिसमें काबा का दरवाजा शामिल है।
- यमनी कोने से पश्चिमी कोने तक 12.04 मीटर।
- हजरे अस्वद के कोने से येमेनी कोने तक 10.18 मीटर।
- शामी कोने से पश्चिमी कोने तक 9.90 मीटर। 
इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि काबा की संरचना घनाकार व आयताकार नहीं हो कर चतुर्भुजाकार है।
काबा के भीतरी आयामों का नाप इतिहासकार बसलामा ने स्वयं सन 1352 हिजरी में लिया था जिसके अनुसार - 
- यमनी दीवार के मध्य से शामी दीवार के मध्य तक 10.15 मीटर।
- पूर्वी दीवार के मध्य से पश्चिमी दीवार के मध्य तक 8.10 मीटर है।
आज का काबा मस्जिद अल-हरम के केंद्र में स्थित है जिसका रखरखाव तुर्की सल्तनत द्वारा किया जाता है। यह बिना खिड़कियों के सीलबंद कमरा है। यहां की दीवारें कपड़े (सोने से जड़े (ब्रोकेड) कपड़े)(किस्वा) से ढकी हुई रहती हैं जो तुर्की द्वारा हर वर्ष बदला जाता है। काबा के अंदर छत को सहारा देने हेतु लकड़ी के तीन खंभे लगे हैं। यहां  सोने और चांदी के लैंप लगे हैं। काबे के भीतर बंद सीढ़ी लगी है जिसके आगे बाब अल-तौबा नाम का  सोने का दरवाजा लगा है। काबा को अंदर से साल में दो बार एक बार शाबान महीने की शुरुआत में और दूसरी बार ज़ु अल-क़िदा की पंद्रहवीं तारीख़ को ऊद और गुलाब जल मिश्रित ज़म - ज़म पानी से धोया जाता है। 
काबा का आंतरिक भाग - 
काबा में प्रवेश करने पर दाईं ओर सीरियाई कोने में, छत तक जाने वाली एक सीढ़ी है। यह सीढ़ी आयताकार संरचना में संलग्न है जो खिड़कियों के बिना एक सीलबंद कमरे जैसा दिखता है। पूर्वी और उत्तरी भाग मूल काबा की दीवारों का हिस्सा हैं। सीढ़ी में एक विशेष ताले वाला सोने से मंढा दरवाज़ा है जिस पर सोने - चांदी की कढ़ाई किया हुआ सुंदर रेशमी पर्दा लगा है। सीढ़ी की दक्षिणी दीवार, जहाँ दरवाजा स्थित है 225 सेमी चौड़ी है और पश्चिमी दीवार 150 सेमी चौड़ी है। छत पर सीढ़ी चढ़ने पर एक छोटा दरवाज़ा और बाईं ओर एक और समान दरवाज़ा मिलता है, दोनों काबा की दो छतों के बीच की जगह की ओर ले जाते हैं, जो 120 सेमी की दूरी पर है। सीढ़ी छत पर समाप्त होती है, जिसमें एक रोशनदान है जो बारिश को अंदर आने से रोकने हेतु ढक्कन से ढका हुआ है जिसे छत तक पहुँचने पर उठाया जा सकता है।
काबे की छत को सहारा देने वाले स्तंभ अब्दुल्ला बिन जुबेर द्वारा काली - भूरी लकड़ी के स्तंभों की परिधि 150 सेमी और व्यास 44 सेमी है।
काबा का फर्श संगमरमर से ढका हुआ है, जो मुख्य रूप से सफेद है और कुछ रंगीन हिस्से हैं। भीतरी दीवारें रंगीन और सजे हुए संगमरमर से सजी हुई हैं। अंदरूनी भाग पर लाल रेशमी पर्दा लगा हुआ है जिस पर शाहदा और अल्लाह के कुछ खूबसूरत नाम सफ़ेद लिपि में लिखे हुए हैं, जिन्हें 8 या 7 नंबर के दोहरावदार पैटर्न में व्यवस्थित किया गया है। यह पर्दा छत को भी ढकता है।
काबा के अंदर दस संगमरमर की पट्टिकाएँ हैं जिन पर पत्थर पर थुलुथ लिपि में शिलालेख खुदे हुए हैं, सिवाय एक उभरी हुई कुफिक लिपि में। कुफिक लिपि पट्टिका रंगीन संगमरमर के टुकड़ों से बनी है, जिन्हें एक चौकोर कुफिक आधार पर अक्षरों को बनाने के लिए एक साथ फिट किया गया है। ये सभी पट्टिकाएँ छठी शताब्दी हिजरी के बाद खुदी हुई हैं। काबा के दरवाजे और पूर्वी दीवार पर तौबा के दरवाजे के बीच राजा फहद बिन अब्दुल अजीज अल सऊद की एक पट्टिका है, जो काबा के उनके व्यापक जीर्णोद्धार की तारीख को दर्शाती है। इस तरह काबा के अंदर कुल दस खुदी हुई संगमरमर की पट्टिकाएँ हैं, जो ज़मीन से 144 सेमी की ऊँचाई पर लगी हैं। सिवाय काबा के आंतरिक द्वार के मेहराब के ऊपर वाली पट्टिका के, जो दो मीटर से अधिक ऊँची है।
काबा की चाबी - 
काबा की रखवाली कुरैश कबीले के बनू शैबा परिवार के पास है। मक्का विजय के दिन, पैगंबर मुहम्मद (स.) ने काबा की चाबी शैबा परिवार को सौंपते हुए कहा था कि - 
- ए बनू तल्हा, इसे हमेशा और हमेशा के लिए ले लो, और यह अत्याचारी के अलावा तुमसे कोई नहीं छीना जाएगा।
इन्हें सादिन कहा जाता है। सादिन शब्द का अर्थ है काबा से संबंधित सभी मामलों के लिए जिम्मेदार व्यक्ति, जिसमें इसे खोलना और बंद करना, इसे साफ करना और धोना, इसे किस्वा से सजाना, किस्वा के फट जाने पर इसकी मरम्मत करना और इसके आगंतुकों का स्वागत करना शामिल है। नया सादिन ज़रूरी नहीं कि पिछले सादिन का बेटा ही हो। चाबी किसी चचेरे भाई या किसी दूसरे रिश्तेदार को दी जा सकती है। इसका चुनाव उम्र के हिसाब से तय होता है। मुख्य संरक्षक काबा की चाबी रखता है और कोई भी उसकी अनुमति के बिना उसमें प्रवेश नहीं कर सकता। काबा का बाहरी किस्वा मुख्य संरक्षक को सौंप दिया जाता है, जिसे हर साल ज़ु अल-हिज्जा के नौवें दिन बनू शैबा परिवार के सदस्यों, उच्च अधिकारियों और आमंत्रित मेहमानों की मौजूदगी में बदला जाता है।
काबा के तत्व (भाग) - 
अल-हजर अल-असवद( काला पत्थर )
 - यह काबा के दक्षिण-पूर्वी कोने में, ज़मीन से लगभग 1.5 मीटर ऊपर स्थित है। यह एक चिकना, अंडाकार लाल रंग का पत्थर है, जिसका व्यास लगभग 30 सेंटीमीटर, चौड़ाई 10 सेंटीमीटर हैं जो चौड़े चांदी के फ्रेम से घिरा हुआ है। यह पत्थर जन्नत से फ़रिश्ते जिब्राइल द्वारा इब्राहिम नबी को लाकर काबा में लगाने हेतु दिया गया था। वर्तमान स्थान पर इसे अब्दुल्ला बिन जुबैर ने रखा था।
अल-मुल्तज़ाम - काले पत्थर और काबा के दरवाज़े के बीच के क्षेत्र को अल-मुल्तज़ाम इसलिए कहा जाता है कि यहां हाजी चिपक कर दुआ करते हैं।
काबा का दरवाज़ा - शुद्ध सोने से सजा एक दरवाज़ा, अल-मुलताज़म और हजरे अस्वद के बीच काबा के पूर्वी हिस्से में स्थित दरवाज़ा जो 1.90 मीटर चौड़ा, 3.10 मीटर ऊँचा और ज़मीन से 2.25 मीटर ऊंचा है। दरवाज़े के साथ उसका ताला और चाबी है, साथ ही चांदी से मढ़ी हुई लकड़ी की सीढ़ी है, जिसका इस्तेमाल काबा खोलते समय दरवाज़े तक पहुँचने के लिए किया जाता है।
हिज्र इस्माइल - काबा के उत्तर में स्थित अर्ध-वृत्ताकार दीवार। तीर्थयात्रियों को तवाफ़ (परिक्रमा) के दौरान इसके बाईं ओर से गुज़रना चाहिए क्योंकि इसके और काबा के बीच से गुज़रने पर तवाफ़ अमान्य हो जाता है।
अल-मिज़ाब - काबा की छत पर गिरने वाले वर्षा जल के लिए नाली, जो इसके उत्तरी भाग में स्थित है और हिज्र इस्माइल में पानी छोड़ती है। पहला मिज़ाब कुरैश द्वारा स्थापित किया गया था। यह सोने की प्लेटों से ढका हुआ है, जिसकी लंबाई 1.95 मीटर, चौड़ाई 26 सेंटीमीटर और ऊंचाई 23 सेंटीमीटर है।
यमनी कॉर्नर (अर-रुकन अल-यमनी) - काबा के सबसे प्रसिद्ध कोनों में से एक जिसे हाजी तवाफ़ के प्रत्येक चक्कर के बाद (यथासंभव) छूते हैं या इसकी ओर इशारा करते हैं। यमनी कॉर्नर और हजरे अस्वद के बीच की दूरी 12.11 मीटर है और यमनी कॉर्नर और सीरियाई कॉर्नर के बीच की दूरी 11.52 मीटर है।
अश-शदरवान - काबा की दीवार के आधार पर तीन तरफ से लगी एक कगार, हिज्र इस्माइल की तरफ वाली तरफ को छोड़कर। यह इब्राहिम नबी द्वारा रखी गई मूल नींव का हिस्सा है। काबा के किस्वा (आवरण) को सुरक्षित रखने के लिए इसमें धातु के छल्ले लगे होते हैं।
हज के संबंध में कुरान - 
और अल्लाह के लिए लोगों की ओर से घर की ओर हज करना अनिवार्य है, जो कोई वहाँ तक पहुँचने का मार्ग खोज ले, किन्तु जो इनकार करेगा, तो अल्लाह संसार के लोगों से निरपेक्ष है।
- कुरान 3:97

बैतूल मामूर - 
जिस तरह दुनिया में बैतुल्लाह (खाना-ए-काबा) का तवाफ़ किया जाता है इसी तरह आसमानों पर अल्लाह तआला का घर है जिसको बैतुल मामूर कहा जाता है।उसका हर दिन 70 हजार फ़रिश्ते तवाफ़ करते हैं और एक फरिश्ते को एक बार यह मौका मिलता है। अगले दिन दूसरा दस्ता तवाफ हेतु आता है।
इस घर के बारे में अल्लाह तआला क़ुरान शरीफ़ में इरशाद फरमाता है - 
और क़सम हे बैतुल मामूर की।
सुरह तूर -4

मक्का में हज की प्रक्रिया - 
अहराम बांधना - 
हज की नीयत करने के बाद मक्का की सीमा से पहले अहराम (हज का विशेष कपड़ा) पहन लेना चाहिए।
हज यथासंभव परिवार (पति - पत्नी) साथ में हज करें। 
मक्का में प्रवेश - 
यात्री मक्का शहर में प्रवेश करते हैं और काबा के पास जाते हैं। काबा के पास आते हुए पढ़ें - लब्बैक अल्लहुम्मा लब्बैक है - 
हिंदी लिप्यंतरण - 
लब्बैका अल्लाहुम्मा लब्बैक .. लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक .. इन्नल-हम्दा वन्ने-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक
हिंदी अनुवाद - 
 मैं हाज़िर (उपस्थित) हूँ, ऐ अल्लाह मैं हाज़िर हूँ .. मैं हाज़िर हूँ, तेरा कोई शरीक (साझी) नहीं, मैं हाज़िर हूँ .. निःसंदेह हर तरह की प्रशंसा, सभी नेमतें, और सभी संप्रभुता तेरी ही है। तेरा कोई शरीक नहीं।
तवाफ (चारों तरफ चक्र काटना - 
हिंदी में इसे परिक्रमा कहते हैं। हाजी काबा के चारों ओर सात बार चक्कर लगाते हैं। जिसे तवाफ कहा जाता है। 
साफा मरवा की दौड़ (सई) करना - 
हाजी सफा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ते हैं, जिसे सई कहा जाता है।
अराफ़ात में दुआ करना - 
हाजी अराफ़ात के मैदान में जाते हैं और वहां खड़े होकर अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। 
मुज़दलफ़ा नौवां दिन - 
हाजी अराफ़ात से मुज़दलफ़ा जाते हैं और वहां रात बिताते हैं। 
मीना का मैदान - 
हाजी दसवें दिन मुज़दलफ़ा से मीना जाते हैं और वहां शैतान को पत्थर मारते हैं। 
कुर्बानी - 
हाजी दसवें दिन ईद अल अजहा की नमाज पढ़ने के बाद किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं। 
तवाफ-ए-अज़ाम - 
यात्री मक्का वापस लौटते हैं और काबा का तवाफ करते हैं। 
हज की समाप्ति - 
हज यात्रा 12वें दिन समाप्त होती है। 
वर्तमान में सऊदी सरकार ने हज के महीने में चालीस लाख की संख्या निश्चित कर रखी है। इस हेतु प्रत्येक देश के लिए एक निश्चित कोटा निर्धारित होता है। इस कोटे में नंबर आने के लिए आवेदन प्रक्रिया होती है। नंबर आने टीके आदि लगवाकर पैसे हज कमेटी में जमा करवाकर हज किया जा सकता है।
मदीना यात्रा - 
मक्का में बारह दिन की यात्रा के बाद मदीना का 447 किलोमीटर का सफर शुरू होता है। मक्का एवं मदीना में कोई एयरपोर्ट नहीं है। यह यात्रा बस या अन्य वाहन से 6.30 घंटे में पूरी की जाती है।
मदीना से फिर मक्का यात्रा - 
हाजी मदीना से मक्का आकर रहते हैं। हज के लगभग चालीस दिन होते हैं जिसमें यह सभी कार्य किए जाते हैं।
हज और उमरा में अंतर - 
- हज इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है । यह प्रत्येक मुसलमान के लिए अपने जीवनकाल में एक बार अनिवार्य है, बशर्ते वे शारीरिक रूप से स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम हों। उमरा अनिवार्य नहीं है।
- हज एक निर्दिष्ट इस्लामी महीने (धु अल-हज्ज) के एक से बारह तारीख तक किया जाता है । उमराह किसी भी समय किया जा सकता है।
- दोनों की रस्में समान हैं परंतु उमराह कुछ घंटों से भी कम समय में सम्पन्न किया जा सकता है, जबकि हज में अधिक समय लगता है और इसमें अधिक रस्में शामिल होती हैं।
मदीना की यात्रा - 
मदीना मोहम्मद साहब का ननिहाल है। मोहम्मद साहब के पिता अब्दुल्ला की लगभग बीस वर्ष की आयु में मौत मदीना में हुई। यहीं इनको दफनाया गया।
मदीना शब्द का अर्थ है शहर। इस जगह का नाम था यशरब। मदीना का सही एवं पूरा नाम है मदीना अल मुन्नवरा (चमकता हुआ शहर) को बाद में सिर्फ मदीना नाम से प्रचलित हो गया। यशरब शब्द का ज़िक्र कुरान के सूरत अल-अहज़ाब (33:13) में मिलता है। मदीना का एक ओर नाम तैबा भी है। मदीना मक्का के उत्तर में 340 किमी और लाल सागर तट से लगभग 190 किमी दूर है। यह हेजाज क्षेत्र का सबसे उपजाऊ भाग, एक विशाल मैदान दक्षिण में फैला हुआ है। मदीना अल-अकल, अल-अकिक और अल-हिमह तीन पहाड़ों की घाटियों के मिलन स्थल पर एक पठार पर स्थित है। यहां की जलवायु गर्म रेगिस्तानी है।
यह शहर तीस से चालीस फुट ऊंची मजबूत अंडाकार दीवारों के बीच ईसा पूर्व 12 वीं शताब्दी में बसाया गया था। इसके चार द्वारों में से, बाब-अल-सलाम/ मिस्र का द्वार, इसकी सुंदरता के लिए उल्लेखनीय था। सऊदी युग में ऐतिहासिक शहर के भाग को ध्वस्त कर बड़े पैमाने पर विकसित पुनर्निर्मित शहर मदीना का केंद्र मस्जिद ए नबवी को बनाया गया है। चौथी शताब्दी तक अरब जनजातियों ने यमन से अतिक्रमण करना शुरू किए। वहां तीन प्रमुख यहूदी जनजातियां थीं  700  ईस्वी पूर्व यशरब में बसे। 
1. बनू कयनुका
2. बनू कुरैजा
3. बनू नादिर
इब्न खोर्डदाबे ने बाद में बताया कि हेजाज़ में फारसी साम्राज्य के प्रभुत्वकाल में बनू कुरैया फारसी शाह के कर संग्रहकर्ता थे। यमनियों ने यहां बार - बार आक्रमण किए। यमनियों के प्रभाव से यशरब के कबीले यहूदी धर्म के प्रभाव में आए। यहां बनू औस और बनू खजराज में मोहम्मद साहब के आने तक 120 वर्षों तक खूनी संघर्ष चलता रहा। दोनों कबीलों के बीच अंतिम युद्ध बुआथ की लड़ाई थी जो अनिर्णीत रही। इस संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान हेतु
यशरब के 72 निवासी अल-अकाबा (मक्का और मीना के बीच) एक जगह पर मुहम्मद साहब से गुप्त रूप से मिले और उन्हें यशरब आने का न्यौता दिया। मोहम्मद साहब ने दोनों कबीलों को एक किया। ख़जराज कबीला उनकी ननिहाल था। कई अंसार (मूर्तिपूजक), यहूदी एवं अन्य कबीलों ने इस्लाम धर्म अपना लिया। मोहम्मद साहब ने अंसार (यशरब के मूल निवासी), यहूदी एवं मुहाजिरिन के मध्य एक समझौते का पत्र जारी किया। मोहम्मद साहब की ओर से इब्ने इशाक या इब्ने हसिम द्वारा हस्ताक्षर किए गए। यहूदियों को धर्म पालन की स्वतंत्रता दी गई साथ ही उनके पास मुसलमानों को पढ़ने भेजा। यहां बदर, उहूद एवं खंदक की लड़ाई हुई।
बादशाह नूरुद्दीन जंगी को एक बार स्वप्न आया कि कोई मोहम्मद साहब की कब्र को खोद रहा था। उन्होंने वहां जा कर यहूदियों को गिरफ्तार कर लिया और कब्र के आसपास खाई खुदवा कर उसमें शीशा भरवा दिया। उस्मानिया सल्तनत काल में यह शहर इनके कब्जे में रहा।
यहां पर अधिकांश बद्दू जनजाति एवं यहूदी रहते थे। मोहम्मद साहब के वहां आने का कारण यह भी था कि जब मामाओं को भांजे पर अत्याचार का समाचार मिला तो वो उन्हें वहां से ननिहाल ले आए। यहीं से मुस्लिम सम्राज्य की नींव पड़ी। मुस्लिम सम्राज्य की राजधानी मदीना बना। मदीना तीन सबसे पुरानी मस्जिदों का घर है, अर्थात् मस्जिद ए क़ुबा (मोहम्मद साहब द्वारा निर्मित पहली मस्जिद), मस्जिद ए नबवी और मस्जिद अल-क़िब्लातैन (दो क़िब्लों की मस्जिद, यही वो मस्जिद है जहां नमाज पढ़ते हुए मोहम्मद साहब को क़िब्ला मस्जिद ए अक्सा से मक्का को किया गया था)।
मदीना शहर समुद्र तल से 608 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यहां खजूर बहुत अधिक होते हैं। यहां पानी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
अबु बक्र, उमर, फातिमा, हसन और कई सहाबी यहां जन्नत उल बाकी में दफन हैं।
मदीना के पास उहुद की पहाड़ियां हैं जहां मक्का और मोहम्मद साहब के बीच लड़ाई हुई। प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की के नियंत्रण से छीनने हेतु मित्र राष्ट्रों के सहयोग से हुसैन बिन अली (मोहम्मद साहब में खानदान (हुसैन के वंशज) से) ने तुर्की गवर्नर फखरुद्दीन पाशा का घेराव 1916 से 10 जनवरी 1919 तक किया। (72 दिनों के खूनी संघर्ष के बाद पाशा को गिरफ्तार कर लिया गया। 1920 में हुसैन बिन अली यहां के शासक बने और 1924 में इब्ने सऊद ने हुसैन को हरा कर हिजाज क्षेत्र को संगठित कर सऊदी अरब सम्राज्य की नींव रखी।
आधुनिक मदीना शहर में दो बड़े विश्वविद्यालय 
1. मदीना विश्वविद्यालय
2. तैबा विश्वविद्यालय 
खोले गए हैं। हाल ही में निर्मित एयर पोर्ट इसे विश्व के सभी देशों से जोड़ता है। यहां हरमन हाई स्पीड रेल्वे एवं उत्तम सड़क मार्ग द्वारा परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है। मदीना में भी मक्का की तरह गैर मुस्लिम का आना मना है। हाजी यहां मुहम्मद साहब के रोजे और मस्जिदों की जियारत के लिए आते हैं।

हज के बाद घर लौट कर आने के बाद एक भोज का आयोजन करते हैं जिसे हाजीखाना कहते हैं। यह आवश्यक नहीं है।

हक़ूलईबाद - 
कलमा, नमाज, रोजा, जकात और हज मानव के ईश्वर के प्रति कर्तव्य हैं जिनका स्वर्ग (जन्नत) के लालच या नरक (जहन्नम) के डर से वह पालन करता है। हकुलअल्लाह को अल्लाह माफ कर सकता है पर हमूलईबाद को अल्लाह माफ नहीं कर सकता। इस हेतु मानव को इस्लामिक शरीयत के अनुसार जीवन जीना होगा तब ही मानव के मानव/रिश्तेदारों के प्रति दायित्व पूर्ण हो सकते हैं। यदि यह दायित्व पूर्ण नहीं किए तो अल्लाह के यहां हिसाब के दिन पकड़ होगी।
कुछ हक अल इबाद - 
- माता - पिता का दायित्व है कि वह अपनी संतान का सही पालन पोषण करें।
- माता - पिता का दायित्व है कि वह संतान के साथ बराबर का व्यवहार करे।
- माता - पिता का दायित्व है कि वह संतान हेतु शिक्षा व्यवस्था करे।
- माता - पिता का दायित्व है कि वह संतान का विवाह आदि जिम्मेदारी पूर्ण करें।
- माता - पिता का दायित्व है कि वह अपने धन व संपत्ति का सही से बंटवारा अपनी वसीयत शरीयत के अनुसार करें।
- भाई, बहन, परिवार, पत्नी, माता - पिता, रिश्तेदार पड़ोसी एवं अन्य के प्रति दायित्व का पूर्ण पालन करें।
- न्याय के सिद्धांत में सींग वाली बकरी को अधिकार नहीं की वो बिना सींग वाली बकरी को मारे। यदि ऐसा करती है तो कयामत के दिन उसका बदला दिलवाया जायेगा।
- बड़ों को छोटों पर रोब का अधिकार नहीं है। यहां पद, आयु या अन्य कोई भी क्रम हो छोटे को बड़े के प्रति श्रद्धा एवं बड़ों को छोटों के प्रति प्रेम रखना आवश्यक है।
- सरकार ने प्रजा पर या प्रजा ने सरकार का हवा खाया तो उसे भी उसका बदला दिलवाया जायेगा।
- हराम खाना बिल्कुल मना है। हराम के खाने का एक लुकमा चालीस समय की नमाज का पुण्य खा जाता है। इस खाने से बनने वाला खून हराम होता है। इस खून से बनने वाली औलाद हराम होती है।
- झूठ नहीं बोलना है, यदि किसी की मासूम (बेगुनाह) की जान बचती है तो झूठ बोला जा सकता है।
- ब्याज नहीं लेना है। ब्याज लेना अपनी मां का पति बनने के बराबर है।
- चुगली नहीं करनी है। चुगली करना अपने भाई का गोश्त खाने जैसा है।
- जिना नहीं करना है। जिना की शरीयत अनुसार सजा तय है।
- यदि आपने कुछ देखा है तो सही गवाही देने से नहीं बचें। गवाही अवश्य दें।

दय्यूस - 
कभी जन्नत में नहीं जायेगे हदीस - इब्ने उमर के अनुसार मोहम्मद (स) ने कहा कि तीन तरह के लोग जन्ऩत में नहीं जा सकते - शराब के नशे में मस्त रहने वाला, 
- मां बाप से बदसुलूकी करने वाला 
- दय्यूस जो अपने घर की स्त्रियों का सौदा (देह व्यापार) स्वीकार कर ले।

इस्लाम में वक्फ (ईश्वर की संपत्ति) - 
वक्फ मुसलमानों द्वारा समाज को लाभ पहुंचाने हेतु किया गया धर्मार्थ दान है। जिसकी अर्थव्यवस्था, शहरों के विकास और यात्रा में प्रमुख भूमिका रही है। वक्फ शासकों एवं धनी द्वारा आमजन के उपकार एवं लाभ हेतु कार्य करने का स्रोत रहा है। वक्फ में नवीकरणीय राजस्व भूमि, जल स्त्रोत या नाव/ सामग्री हो सकती है। वक्फ का अर्थ है ईश्वर को समर्पित। इस संपत्ति से प्राप्त आय से शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ किया गया। वक्फ करने वाले व्यक्ति से आध्यात्मिक लाभ के अलावा अन्य लाभ की उम्मीद नहीं की जाती है।वक्फ बुनियादी ढांचे के निर्माण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वक़्फ़ संपत्ति का उपयोग युद्ध में शहरों की रक्षा के लिए भी किया जाता था जैसे कि क़ैतबे का गढ़ जिसे पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य में अलेक्जेंड्रिया की रक्षा के लिए बनाया गया था।
(विवादास्पद होने के बावजूद, नकदी का इस्तेमाल कभी-कभी वक़्फ़ के रूप में भी किया जाता था। जिस पर मिलने वाले ब्याज से लाभार्थियों को सहायता मिलती थी। मिस्र में मामलुकों ने वक्फ के माध्यम से संपत्ति को सरकारी से बचाने और अपनी संतान को हस्तांतरित करने हेतु वक्फ नियमों को तोड़ते हुए दुरुपयोग किया। हुआ यह कि 14वीं शताब्दी में मिस्र की सेना में सैनिकों को निर्वाह हेतु अस्थायी जागीर देना शुरू किया गया। इन जागीरों को उनके मालिकों ने वक्फ में बदल दिया। अब चाह कर भी मामलुक सरकार इनका पुनर्वितरण नहीं कर सकती थी। वर्ष 1378 - 79 ईस्वी में, बरकुक ने कृषि वक्फ को भंग करने के औचित्य के रूप में इस्तेमाल किया। वक्फ ने मामलुक के लिए इस्लाम में धर्मांतरित होने के एक तरीके के रूप में भी काम किया। बाद के वर्षों में ओटोमन शासकों के अधीन वक्फ अधिक लोकप्रिय हो गया।

मौत - 
इंसान जो जन्मा है उसको मरना अवश्य है। हमारे गांवों में कहावत है 
पका जो खाने को
आया वो जाने को
कुरान में स्पष्ट कहा गया है कि - 
कुल्लू नफ़सि जायकातुलमौत (हर जिंदा को मरना अवश्य है)
एक शायर ने बहुत ही खूब लिखा है कि - 
मौत से किस को रुस्तगारी है
आज वो कल हमारी बारी है।
मुसलमान मौत और मौत के बाद की ज़िंदगी के बारे में ही अधिक सक्रिय रहता है। 
मौत कैसे आती है - 
मौत के फरिश्ते मिकाइल का मुझे कार्य रूह कब्ज कर उसे वांछित स्थान तक पहुंचाना है। अच्छे आदमी की रूह सर के बल और गुनाहगारों की रूह पैरों की ओर से खींची जाती है। रूह को हम सांस कह सकते हैं। नबी मोहम्मद साहब ने कहा है कि किसी भी इंसान को आसान से आसान मौत बहुत तकलीफ देती है। मौत के फरिश्ते रूह को दो प्रकार की जगह पर जमा करवा देते हैं।
- इलियिन - अच्छी रूहों को इस स्थान पर एकत्रित कर सुख सुविधा प्रदान की जाती हैं।
- सिज्जियिन - बुरी रूहों को इस स्थान पर भेज कर सजा दी जाती है।
मारने के बाद जनाजा - 
मौत के बाद मरने वाले को इसके परिजनों (पुरुष को पुरुष/स्त्री को स्त्री) द्वारा गुश्ल दिया जाना चाहिए।
मैयत को गुश्ल का तरीका - 
दुआ - 

सब से पहले मैयत के कपड़े कैची/ब्लेड से काट कर अलग कर देने चाहिए।
मैयत को नापाकी का तहमद पहना दिया जाए।
गुश्ल देने वाले को नापाकी का दस्ताना पहन लेना चाहिए।
मैयत को नहलाने हेतु झाड़ी के पत्ते डाला हुआ हल्का गर्म पानी काम में लिया जाए।
पानी इधर - उधर नहीं फैले इस हेतु रेत या अन्य उपाय से पानी रोकने की व्यवस्था करें।
ध्यान रहे - किसी हाल में मैयत के गुप्तांग कोई देख ना पाए।
मिट्टी के ढेलों से तीन बार पीछे के हिस्से को साफ करें।
मिट्टी के ढेलों से तीन बार आगे के हिस्से को साफ (इस्तीन्जा) करें।
इसके बाद मैय्यत के हाथ मुंह धोएं। (रुई से वजू की तरह) 
पूरे शरीर पर अच्छी तरह पानी बहाना चाहिए।
अब पाकी का दस्ताना नहलाने वाला पहन ले और गुस्ल की तरह साबुन लगा मैयत को नहलाए।
गुस्ल के बाद कफ़न पहनाया जाना चाहिए।
कफ़न में पहले तहमद, फिर चादर, चोगा और ऊपर की चादर पहनाई जानी चाहिए। औरतों में एक कपड़ा सर का अतिरिक्त होता है। कफ़न पर कपूर, खुश्बू आदि लगाया जाना चाहिए। 
मरने के बाद जितना जल्दी हो सके जनाजा कब्रिस्तान में ले जा कर दफन करना चाहिए।
कफ़न की सिलाई - 
कफ़न की सिलाई - 
दस्ताने - 
कफ़न में दो जोड़ी पाकी और नापाकी के दस्ताने (रेडीमेड प्लास्टिक के भी हो सकते हैं)
तहमद - 
दो जोड़ी एक नापाकी दूसरा पाकी का
कुर्ता - 
कुर्ता बराबर काट कर एक हिस्से को थोड़ा ऊपर सरकाते हुए मुड़े हुए कपड़े को सर आने की जगह से लम्बाई और सीधाई में काट कर चोले की शक्ल दी जाती है।
चादर - 
बराबर लम्बाई के भाग को काट कर सिलाई की जाती है।
स्त्रियों हेतु ओढ़नी - 
स्त्रियों हेतु अलग से ओढ़नी बनाई जाती है।
नोट - नहलाने के बाद अंदर ही गुश्ल देने वाले कफ़न पहनाते हैं।
कब्र तैयार करना - 
मैय्यत के नाप से थोड़ी लंबी कब्र जो लगभग तीन हाथ गहरी होती है। इसे बंद करने पर आदमी बैठ सके और एक बालिस्त जगह सर से कब्र की छत के बीच बची रहे। अरब में कब्र बगली वाली होती है। हमारे यहां कब्र कच्ची जमीन हो तो ईंटों से चिनाई की जाती है। पक्की जगह पर चिनाई की जरूरत नहीं होगी। पक्की चिनाई की गई कब्र में मुल्तानी मिट्टी छिड़की जाती है।
कब्र को घड़े/पट्टी के टुकड़ों से ढका जाता है।
मैयत को कब्र में उतारना - 
मैय्यत को कब्र में उतारते समय रस्सी या कफ़न के कपड़े में से बचे कपड़े का उरासे के तौर पर उपयोग किया जाता है। मैय्यत का सर उत्तर पैर दक्षिण की ओर होते हैं। मैय्यत का चेहरा उघाड़ कर निश्चित किया जाता है कि दफनाए गए व्यक्ति का चेहरा थोड़ा सा काबे की ओर मुड़ा होना चाहिए।
मैय्यत को दफन करने के बाद मिट्टी देने की दुआ - 
हिंदी लिप्यंतरण - 
मिन्हा ख़लकना कुम फ़िहा नु ईदी कुम मिन्हा नुखरीजी कुम तारातन उखरा।
हिंदी अनुवाद - 
इंसान को मिट्टी से बनाया गया, मरने के बाद इसी मिट्टी में मिलना है। और कयामत के दिन फिर इसी मिट्टी से उठाया जायेगा।
कब्र में हिसाब ऊपर मुनकर नकीर के वर्णन में बताया जा चुका है। 
हिसाब के बाद जहन्नमी को कब्र में ही सजा मिलनी शुरू हो जाती है। कब्र आपस में मिल जाती है। सांप और बिच्छू की सजा आ घेरती है। अच्छी रूहों को जन्नत की हवाओं की सैर होती है। कब्र जहां तक नजर जाए फेल जाती है।
मैय्यत के लिए इशाल ए सवाब - 
मौत के घर में तीन दिन का शौक होता है। मरने वाले के लिए रोना मना किया गया है। यतीमों गरीबों को खाना खिलाया जाता है। हमारे यहां मौत का खाना अच्छे - अच्छे लोग भी खाते हैं। तीन दिन बाद शौक खत्म हो जाता है। हमारे यहां यह पहले चालीस दिन चलता था, अब सात से दस दिन हो गया है। 
क़यामत - 
फरिश्ते इस्राफील को तुरही फूंकने का आदेश होगा। सूरज लगभग सात फूट की ऊंचाई पर जमीन के नजदीक होगा। धरती तांबे की हो जाएगी जो गर्मी से उबलने लगेगी। इंसान इसमें मुंह तक तैरते घूमेंगे। हर आदमी को अपनी - अपनी पड़ी होगी। 
कब्र से पुलिसरात का सफर - 
कब्र से उठ कर इंसान पुलिसीरात का सफर करना होता है। यह रास्ता तलवार से अधिक धारदार और बाल से अधिक बारीक होगा। अच्छे कर्म किए इंसान यह रास्ता प्रकाश की गति से पार कर लेंगे। बूरे इंसान बीच रास्ते में ही जहन्नम की आग में गिर जाएंगे।

मैदान ए महसर - 
पुलिसीरात के बाद मैदान ए महसर में सब पहुंच जाते हैं। हर एक का कर्मपत्र (नामा ए आमाल उनके हाथ में होगा। अल्लाह सब का हिसाब करेगा। वह न्याय करेगा। अत्याचारी की भलाइयां सताए हुए लोगों को दे दी जाएंगी। भलाई कम होने पर अत्याचारी के सर सताए हुए लोगों के बुरे कर्म मढ़ने शुरू हो जाते हैं। इंसान के पास पहाड़ जितनी भलाई होगी पर हिसाब के दिन कम पड़ जाएंगी। अल्लाह अपने लिए की जाने वाली इबादत माफ भी कर सकते हैं पर हक उल इबाद को सामने वाला खुद ही माफ कर सकता है। इसमें अल्लाह किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

जन्नत - जहन्नम - 
जहन्नम का ईंधन इंसान और पत्थर होंगे।
दुनिया में जो कमाया वो बरजख में मिलता है। क़यामत के दिन सब जीव वापस खड़े किए जायेंगे। इंसान के अलावा सभी जीव बदला दिलवाने के बाद मिट्टी बना दिया जाएगा। नामा ए आमाल दाहिने हाथ में होने वाले लोग जन्नत में प्रवेश पाएंगे। बूरे लोग जहन्नम में। अल्लाह फिर भी इंसान को जन्नत में भेजने के बहाने ढूंढेंगे। क्यों कि अल्लाह इंसान से सत्तर मांओं से अधिक प्यार करता है।
जन्नत में हूर - 
यह फरिश्ते और इंसान के बीच की तखलीक है। जन्नत की सेविकाएं हूर कहलाते हैं। हूर शब्द का अर्थ है नीली आंखों वाली स्त्री।

बक्शवाना - 
किसी मैय्यत की संतान या पीढ़ियां कुरान या अन्य अच्छे कार्यों के द्वारा गुनाहकमगार की बख्शीश करवा सकते हैं।

विभिन्न दुआएं - 
रब्बाना आतीना फिद्दुनिया हस्नात्वं व फ़िल आखिराती हस्नात्वं व किन्ना अज़ाबन्नार।



सोने से पहले की दुआ - 
اللَّهُمَّ بِاسْمِكَ أَمُوتُ وَأَحْيى
अल्लाहुमा बिस्मि मौतु वा आहई 
ए अल्लाह! हम तेरा ही नाम ले कर जीते और तेरा ही नाम ले कर मरते हैं।

शमशेर भालू खां 
9587243963

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