Tuesday, 4 March 2025

✅विभिन्न मुस्लिम विचारक एवं संप्रदाय

विभिन्न मुस्लिम संप्रदाय एवं विचारक - 

अहमदिया/कादियानी संप्रदाय - 
मिर्जा गुलाम अहमद का परिचय - 
नाम - मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद
जन्म - 13 फ़रवरी 1835
जन्म स्थान - क़ादियाँ, गुरदासपुर, पंजाब
मृत्यु - 26 मई 1908 (उम्र 73)
शांत स्थान - लाहौर, पाकिस्तान
जाति - मंगोल, बरलास के तुर्क 
दादा - मिर्जा हादी बेग 1530 में अपने परिवार के साथ समरकंद से भारत आ गए और पंजाब के उस क्षेत्र में बस गए। जहीरुद्दीन बाबर ने मिर्ज़ा हादी बेग को कई सौ गांवों की जागीर दी।
कार्य - 
1. 23 मार्च 1889 को कादियानी, अहमदिया संप्रदाय की स्थापना
2. 1891 में ईसा मसीह होने का दावा।
3. मिर्ज़ा गुलाम अहमद कादियानी ने राम और कृष्ण होने का भी दावा किया।
विवाह - 
1. हरमत बीबी 
2. नुसरत जहां बेगम
संतान - 
1.मिर्जा सुल्तान अहमद
2. मिर्जा अफजल अहमद
3. मिर्जा बशीरुद्दीन महमूद अहमद
4. मिर्जा शरीफ अहमद
5. मिर्जा मुबारक अहमद
6. मुबारिका बेगम
7. अमातुल नसीर बेगम
8. अमातुल हफीज़ बेगम

वर्तमान में हमदिया/कादियानी आंदोलन - 
यह इस्लाम से अलग हुआ संप्रदाय है। मुसलमान इन्हें काफिर मानते हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुस सलाम पाकिस्तान के पहले और अकेले वैज्ञानिक हैं जिन्हे फिज़िक्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है। वह अहमदिया अनुयाई थे। महेरशला अली अभिनय के लिए ऑस्कर जीतने वाले पहले कादियानी अभिनेता भी अहमदिया थे। पाकिस्तान में लगभग 25 लाख अहमदिया रहते हैं। इस प्रकार विश्व में सर्वाधिक अहमदिया पाकिस्तान में ही रहते हैं। पाकिस्तानी पंजाब के रबवा में अहमदिया जमात का मुख्यालय हुआ करता था जो अब इंग्लैण्ड में ले जाया गया। पाकिस्तान में उन्हे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है। इस संबंध में प्रसिद्ध इस्लामी संगठन राब्ता आलम-ए-इस्लामी (मुस्लिम वर्ल्ड लीग) के छह से 10 अप्रैल 1974 में आयोजित सम्मेलन में 110 देशों से आए मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से कादियानवाद के संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए घोषणा की थी कि यह समूह इस्लाम से बाहर है और मुसलमानों का दुश्मन है। इसके अलावा पूर्व में भी विभिन्न अदालतों ने कादियानवाद के संबंध में आदेश जारी किए। वर्ष 1935 में बहावलपुर अदालत का निर्णय व 1912 में मुंगेर के उप-न्यायाधीश द्वारा मिर्जाईयों के मुस्लिम मस्जिदों में प्रवेश पर प्रतिबंध तथा 1974 में संयुक्त अरब अमीरात के सुप्रीम कोर्ट द्वारा कादियानियों को देश से निर्वासित करने का आदेश और 1937 में मारीशस के मुख्य न्यायाधीश के जरिए मिर्जाईयों गैर-मुस्लिम होने का फैसला सुनाया गया।

सोहरावर्दी सिलसिला - 
यह सिलसिला सूफ़ीवाद का अंग है। इसके संस्थापक अबू अल नजीब अल सोहरावर्दी (1097-1168) हैं। सुहरावर्दी सिलसिला” सबसे प्रमुख धार्मिक उपदेशक और सूफी संत दिया नजीबुद्दीन सुहरावर्दी के सहयोग से भारत आया था। 1097 ई. में सुहरावर्दी सिलसिला मूल रूप से ईश्वर को नूर (प्रकाश) रूप में मानते हैं। दिया नजीबुद्दीन सुहरावर्दी, हजरत फखरुद्दीन इराकी और शेख शरफुद्दीन याह्या मनैरी द्वारा सुहरावर्दी सिलसिला को आगे बढ़ाया गया। सुहरावर्दी सिलसिला की मूल समझ शुरू में ईरान के वर्तमान स्थान सोहरेवद में उत्पन्न हुई। बुनियादी विचारधाराओं में, सुहरावर्दी, चिश्ती सिलसिले से अलग है। सुहरावर्दी और चिश्ती सिलसिले के बीच मुख्य अंतर विचारधारा का है, जहां सुहरावर्दी सिलसिले अभिजात वर्ग से उपहार की अपेक्षा करते हैं, वहीं चिश्ती सिलसिले सीमित मांगों के साथ सरल जीवन पर बहुत जोर देते हैं। सुहरावर्दी का मूल आधार अल-गज़ाली और जुनैद बगदादी के माध्यम से अली इब्न अबी तालिब का आध्यात्मिक सिलसिला है। नजीबुद्दीन फ़ारसी फकीर थे जिन्होंने अपने भतीजे शहाबुद्दीन अबू हफ़्स उमर सुहरावर्दी के साथ इस सिलसिले में आगे बढ़े। 

सुहरावर्दी के बारे में ज़रूरी बातें - 
सुहरावर्दी सिलसिला के संत धार्मिक और सामाजिक मामलों में कठोर विचार रखते थे। सुहरावर्दी सिलसिला की गतिविधियां राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और दक्कन क्षेत्र में केंद्रित थीं। भारत में सुहरावर्दी सिलसिला के संस्थापक शेख बहाउद्दीन ज़कारिया थे।
शेख बहाउद्दीन ज़कारिया का जन्म लगभग 1182-83 में मुल्तान के पास कोट करोर में हुआ जो शायर थे। जिन्होंने मध्यकालीन दक्षिण एशिया में बगदाद के सुहरावर्दी संप्रदाय की स्थापना की थी। सुहरावर्दी सिलसिला और इसकी शिक्षा की लोकप्रियता के कारण, कई लोगों में इसे जानने और सीखने की उत्सुकता थी।
एक शेअर - 
ए शहीद ए मुल्कों मिल्लत मैं तेरे पे निसार
लज़्ज़ते सोहरवांवर्दी दूरी ए मंजिल में है।

शेख शर्फुद्दीन याह्या मनैरी ने अपना जीवन सुहरावर्दी सिलसिले की शिक्षा और उपदेश के लिए समर्पित कर दिया। शेख शर्फुद्दीन याह्या मनैरी ने सूफी समुदायों के रूप में सुहरावर्दी सिलसिले की पूर्व शिक्षाओं का पालन किया। 
शेख फखरुद्दीन सूफी - 
ईरान में जन्मे शेख फ़ख़रुद्दीन इराकी कवि, लेखक, सूफ़ी और लेखक थे जिन्होंने शेख़ बहाउद्दीन के शागिर्द थे। वह सूफ़ी समुदाय के सबसे आकर्षक व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने कई पारंपरिक सूफ़ी और उनके कामकाज के खिलाफ़ मोर्चा खोला। फ़ख़रुद्दीन इराकी ने विश्व की यात्रा की और इस्लाम और उसकी शिक्षाओं के बारे में दुनिया भर में बहुत कुछ सीखा।

वहाबी आंदोलन  - 
अहमद बिन हंबल - 
नाम - अहमद बिन हंबल
उपनाम -
1. शेख उल इस्लाम
2. चार इमामों में से एक
जन्म - नवंबर 780 ईस्वी (रबी-उल-अव्वल 164 हिजरी)
जन्म स्थान - बग़दाद, ख़िलाफ़त ए अब्बासिया 
मृत्यु - 2 अगस्त 855 ईस्वी (12 रबी-उल-अव्वल 241 हिजरी)
शांत स्थान - बग़दाद, ख़िलाफ़त ए अब्बासिया।
संतान - 
1. अब्दुल्लाह बिन अहमद बिन हंबल
2. सालेह बिन अहमद बिन हंबल
कार्य - 
अबु अब्दुल्लाह अहमद बिन मुहम्मद बिन हंबल शैबानी इन्हें अहमद इब्न हंबल या इब्न हंबल के नाम से भी जाना जाता है। अहमद बिन को हदीस की अच्छी जानकारी थी। इन्हें इमाम अल-मुहद्दिसिन माना जाता था और उलेमा के समूह द्वारा बहुत सम्मान दिया जाता था। इमाम अहमद ने लोगों को पढ़ाना शुरू किया लेकिन अल-वासीक की खिलाफत के समय उन्हें पढ़ाना बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
पुस्तकें - 
1. मसनद अहमद इब्ने हंबल
2. रद्दे आला दजामिया वल जनादिक 
3. किताबुल सुन्नाह

इब्न तैमियाह व्यक्तिगत परिचय - 
नाम - तक़ीउद्दीन अहमद इब्न अब्दुल हलीम इब्न अब्दुस्सलाम अल नुमैरी अल हर्रानी, इब्न तैमियाह
पिता - सिहाबुद्दीन इब्ने तैमियाह
धर्म - इस्लाम
राष्ट्र - सीरिया (शाम), रूम की हरान सल्तनत।
जन्म - 22 जनवरी 1263 (10 रबी अल-अव्वल 661 AH) 
मृत्यु - 26 सितंबर 1328 (20 ज़िल-क़ादा 728 AH)
शांत स्थान - दमिश्क, मामलुक साम्राज्य, दमिश्क (सीरिया) के किले में कारावास की स्थिति में मृत्यु के बाद दफन।
विवाह - अज्ञात

मुहम्मद इब्न अब्दुल वहाब - 
नाम - अबूल-हुसैन मुहम्मद इब्न अब्दुल वहाब अल-तमीमी
जन्म - 1703
जन्म - गाँव उयेयना, नजद, सऊदी अरब।
मृत्यु - 22 जून 1792
इस्लामिक स्कूल - हम्बली 
कार्य - 
एक धार्मिक नेता, इस्लामी विद्वान और वहाबी आंदोलन के संस्थापक।

वहाबी/अहले हदीश आंदोलन - 
भारत में इस आंदोलन है जिसके प्रवर्तक बरेली के सैयद अहमद (1828-1888) थे। वह बिदअतों (गलत या गैर इस्लामिक रीति रिवाजों) को मिटाने तथा इस्लाम को उसकी असल हालत में, जैसा कि इस्लाम पैगंबर के समय में था लाना चाहते थे। कुछ लोग उन्हें चरमपंथी मानते हैं। वहाबियों को खुद को वहाबी कहलाना पसंद नहीं है क्योकि इस नाम से उन्हें किसी एक खास व्यक्ति से जोड़ा जाता है जिसने यह आंदोलन शुरू किया, जबकि उनका उद्देश्य बड़ा है वो खुद को अहले-हदीस, सलफी या मुवह्हिद कहलाते हैैं। दावे के अनुसार, यह आंदोलन तौहीद (एकेश्वरवाद) के इर्द-गिर्द घूमता है। यह आंदोलन मध्यकालीन विद्वान इब्न तैमियाह और इमाम अहमद इब्न हन्बल की शिक्षाओं पर जोर देता है। हन्बली उलेमा मुहम्मद इब्न अब्दुल वहाब की मान्यताओं का समर्थन करते हैं। कुछ हंबल उलेमाओं ने सल्तनत ए उस्मानिया के प्रभाव के कारण इब्न अब्दुल वहाब के विचारों को त्याग दिया। वास्तव में, मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब न्यायशास्त्र और अक़िदों में इब्न तैमियाह से बहुत प्रभावित थे, और इब्न तैमियाह कुछ मामलों में हन्बली सोच से भिन्न थे, जिसमें उन्होंने अपनी राय और अंतर्दृष्टि के अनुसार फतवे जारी किए। कुछ मामलों में वो किसी का भी अनुकरण करने वाले नहीं थे। इब्न अब्दुल वहाब और आले सऊद के बीच संबंध इस अतिवादी आंदोलन के लिए लंबे समय तक चलने वाला और उपयोगी साबित हुआ। आले सऊद ने आंदोलन के साथ राजनीतिक और धार्मिक संबंधों को बनाए रखा, जिसने अगले 150 वर्षों तक सऊदी अरब में आंदोलन का पोषण किया और आज भी जारी है। हनबली धर्म के प्रचार और विकास में शेख-उल-इस्लाम हाफिज इब्न तैमियाह की सेवाएं अमूल्य हैं। उन्हें हंबली धर्म की व्याख्या करने वाला माना जाता है। लेकिन इब्न तैमियाह कुछ मुद्दों पर इमाम अहमद इब्न हन्बल से असहमत थे। इब्न तैमियाह हंबली मसलक के विद्वान थे परन्तु सिद्धांत और इबादत से संबंधित बहुत से मुद्दों पर इनसे अलग हो गए। जिस पर बहुत से विद्वानों जिनमें इब्न हजर अस्कलानी, ​​इब्न हजर हैतमी, ताजुद्दीन सुबकी, वालीउद्दीन इराक़ी और तकिउद्दीन सुबकी और अन्य ने सख्त प्रतिक्रिया व्यक्त की। वर्तमान में सऊदी सरकार का सरकारी संप्रदाय हम्बली/अहले हदीश है। इसके प्रचार - प्रसार हेतु सऊदी सरकार काफी अनुदान विभिन्न देशों में देती है। आजकल भारत में अहले हदीश की अलग से मस्जिदें बनने लगी हैं। अहले हदीस दो शब्‍दों के मिश्रण से बना शब्‍द है- अहल (वाले) और हदीस(मोहम्मद साहब के वाक्य, बात)।

सलाफ़ी/सलाफीयत/सलाफिया आंदोलन -  
यह 19वीं शताब्दी के अंत में मिस्र में वहाबी आंदोलन के सानिध्य में विकसित यूरोपीय साम्राज्यवाद के विरोध स्वरूप सुन्नी इस्लाम की सुधार शाखा अथवा पुनरुत्थानवादी आंदोलन है। यह आंदोलन सलाफ़ अर्थात मुस्लिमों की पहली तीन पीढ़ियां (जिन्होंने अपरिवर्तित, शुद्ध इस्लाम का पालन) के मार्ग का अनुसरण करने पर जोर देते हैं। उन पीढ़ियों में पैगंबर मुहम्मद साहब और उनके साथी (सहाबा), उनके उत्तराधिकारी (तबिउन), उत्तराधिकारीयों के उत्तराधिकारी (तबा ताबीउन) शामिल हैं। सलाफी सिद्धांत इस्लाम के मूल प्रारंभिक स्वरूप को प्रतिपादित करता है, कि समकालीन मुसलमानों ने धर्म का पालन कैसे किया वैसे ही हमें करना चाहिए। वे धार्मिक नवाचार या बिदाह को अस्वीकार कर, शरिया (इस्लामी कानून) के क्रियान्वयन का समर्थन करते हैं। इस आंदोलन को अक्सर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है - 
1. शुद्धतावादी समूह - राजनीति से बचते हुए केवल ईश्वर (अल्लाह) की इबादत।
2. राजनीतिक समूह -  यह राजनीति में शामिल हो कर शरीयत के अनुसार कार्य करते हैं।
3. सशस्त्र संघर्ष कार्यकर्ता - यह कम संख्या में हैं जो शुरुआती इस्लामी तरीके को बहाल करने के लिए सशस्त्र संघर्ष की वकालत करते हैं।
भारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इसी सिद्धांत के आधार पर तीन स्तरीय कार्य करता है। राजनीति से परे संघ, राजनीतिक मंच भाजपा और सशस्त्र संगठन बजरंग दल या विश्व हिंदू परिषद हैं।
इस्लामी कानून शरीयत के मामलों में, सलाफी दो गुटों में विभाजित हैं - 
1. लिबरल सलाफी - इज्तिहाद (न्यायिक प्रक्रिया, निर्णय) में चार सुन्नी स्कूल (इमामों) के निर्णयों के सख्त अनुपालन (तक्लिद) को अस्वीकार करते हैं। 
2. कट्टर सलाफी - वो लोग जो इन इमामों के निर्णयों का पूर्ण अनुकरण करते हैं।

अहले-हदीस सलाफ़ी
सलाफियों की यह जमात एशिया के अहले हदीस/सलफ़ी सुन्नी किसी एक इमाम के अनुसरण के स्थान पर मुहम्मद साहब का अनुसरण करते हुए सिर्फ उन्हें ही इमाम मानते हैं। इनके अनुसार शरीयत को समझने और सही अनुपालना हेतु सीधे क़ुरान और हदीस का अध्ययन करना चाहिए और जिस तरह मुहम्मद साहब के साथी अनुयायियों (सहाबीयों) ने कुरान और मोहम्मद साहब की हदीस को समझा और उसका अर्थ निकाला वही अर्थ समझना चाहिए।

मक्कियन संप्रदाय (अहले हदीश) - 
इसी समुदाय को सल्फ़ी सुन्नी और अहले-हदीस, अहले-तौहिद आदि के नाम से जाना जाता है। यह संप्रदाय चारों इमामों के ज्ञान, उनके शोध अध्ययन और उनके साहित्य का अनुसरण करता है परन्तु इन इमामों में से केवल किसी एक का अनुसरण नहीं  कर सामूहिक सभी का अनुसरण करता है। यह सम्प्रदाय उनकी क़ुरान और हदीस के अनुसार सही बातें मानते हुए शेष को खारिज करता है विवाद की स्थिति में अंतिम निर्णय क़ुरान और हदीस के अनुसार ही मान्य होता है। अहले-हदीस उर्फ सलफ़ी सुन्नी इसलिए एक बार मे तीन तलाक़ और हलाला जैसे मान्यताओ को नही मानते क्यो की इसका सबूत क़ुरान या हदीस में नही मिलता।
सल्फ़ी सुन्नी समूह ऐसे इस्लाम को मानता है जो पैग़म्बर मोहम्मद के समय में था।
युरोप,दक्षिण एशिया तथा मध्य पूर्व के अधिकांश इस्लामिक विद्वान उनकी विचारधारा से ज़्यादा प्रभावित हैं। अमेरिका में अधिकांश सुन्नी सलाफी मुस्लिम हैं।
मान्यताएँ
अहले हदीस क़ुरान और सुन्नत को ही धर्म और उसके कानून को समझने का स्रोत मानते हैं, यह बिद्दत का विरोध करती हैं जो इस्लाम में बाद में आई।
सलाफी शाखाएं - 
अहले हदीस वास्तव में फ़िक्ही और इज्तिहादी संगठन है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अहले सुन्नत वल जमात के धर्म की समझ रखने वाले अपने तौर तरीक़े की वजह से दो गीरोह में बटे हैं - 
1. अस्हाबे राई (हनफ़ि)
अस्हाबे राई समूह का केंद्र इराक़ था जो शरीयत कानूनों के संदर्भ में क़ुरआन और सुन्नत के अलावा इज्तिहाद से भी काम लेता था। यह लोग फ़िक्ह (इस्लामी न्याय शास्त्र) में क़्यास (अनुमान) को अधिक विश्वासपात्र समझते हैं और यहि नहीं, कुछ जगहों पर कभी - कभी स्थान और परिस्थितियों के अनुसार इसको क़ुरआन और सुन्नत से अधिक महत्व देते हैं। इस समूह के संस्थापक अबू हनीफा (चार इमामों में से एक) थे। 
2. अस्हाबे हदीस
अस्हाबे हदीस का केंद्र हिजाज़ (सऊदी अरब) था। यह लोग सिर्फ क़ुरआन और हदीस पर भरोसा करते हुए स्थान, परिस्थिति एवं कारण के सिद्धांत को नकारते हैं। इस समूह के बड़े उलमा (विद्धवान) मालिक इब्ने अनस, अहमद इब्ने हम्बल हैं। अरब के अधिकांश विद्वान अहमद इब्न हम्बल कि विचारधारा से प्रभावित हैं। 
अहले हदीस के अनुसार केवल क़ुरान, हदीस और सुन्नत के प्रकाश में ही प्रत्येक मामला सुलझाया जाना चाहिए, कारण, स्थिति या स्थान कोई भी हो। इस हेतु किसी इमाम के वक्तव्यों की आवश्यकता नहीं है।

इस्लाम धर्म में सूफीवाद - 
            सूफियों की सभा 
         सूफी हालात ए चिल्ला में 
सूफ़ीवाद (तसव्वुफ़/मुतसवविफ़) इस्लाम धर्म का फकीरों और संतों का पंथ है। सूफीवाद इस्लाम का एक आध्यात्मिक रहस्यवाद है तथा यह एक धार्मिक संप्रदाय है जो ईश्वर की आध्यात्मिक खोज पर ध्यान केंद्रित करता है और भौतिकवाद को नकारता है। सूफियों का मुख्य कार्य शमा के माध्यम से ईश्वर (अल्लाह) की प्राप्ति एवं अन्य लोगों को इस्लाम धर्म की ओर ले जाना है। सूफ़ी स्थानीय परिवेश के अनुसार जीवन यापन करते हैं। स्थानीय काम जैसे खेती, पशु चारण या अन्य कार्य, स्थानीय वेष - भूषा एवं स्थानीय खानपान को अपनाना इनकी पहचान है। सूफ़ी दान-उपहार स्वीकार नही करते थे और सादगी भरा जीवन बिताना पसन्द करते हैं।

सूफ़ी शब्द का अर्थ - 
1. सूफ़ी शब्द सफ़ा (दर्जा) से लिया गया है जिसका अर्थ है ऐसा व्यक्ति जो आध्यात्मिक रूप में ईश्वर (अल्लाह) से संबंध रखता हो।
2. अबू नासुलसिराज के अनुसार सूफ़ी शब्द सफ/सुफ़ (ऊन) बना है। ईरान के फकीर (धार्मिक लोग/संत) ऊनी कंबल या लोई ओढ़ते थे, इसलिए उन्हें सूफ़ी कहा जाने लगा। 
3. सूफ़ी शब्द सोफस (sophos) से बना है जिसका अर्थ बुद्धि होता है।

सूफीवाद का प्रचार - 
सूफीवाद का जन्म लगभग सोलह सौ वर्ष पूर्व ईराक़ के बसरा में हुआ। राबिया, अल अदहम, मंसूर अल्जैहाज प्रारंभिक सूफी हुए जिन्हें आम जन द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। चौदह सौ वर्ष पूर्व सन 1100 के समीप अल ग़ज़ाली को इस मत को पहचान दिलवाने का श्रेय प्राप्त हुआ। बाद में अत्तार, रूमी और हाफ़िज़ जैसे कवि इस श्रेणी में गिने जाते हैं, इन सबों ने शायरी को तसव्वुफ़ को धर्म प्रचार का माध्यम बनाया। मुगल बादशाह शाहजहां के पुत्र सूफी दारा शिकोह बहुत से अर्थों में ब्राह्मण धर्म एवं सूफीवाद के अद्वैत वेदांत को एक ही मानते हैं। सूफीवाद के मुराकाबा (ध्यान) फ़ना (समाधि) को ब्राह्मण व बौद्ध से लिया गया है। पुस्तक हिंदुसियत वा तसूर में अबु जकरिया ने लिखा है कि अल बिरूनी, इहसान इलाही ज़हीर, अनवर अल-ज़ुंडी, विलियम जोन्स, अल्फ्रेड क्रेमर, रोसेन, गोल्डज़ीहर, मोरेनो, रॉबिन हॉर्टन, मोनिका होर्स्टमैन, रेनॉल्ड्स निकोलसन, रॉबर्ट चार्ल्स ज़हनेर, इब्न तैमिय्याह, मुहम्मद जियाउर रहमान आज़मी और अली ज़यूर जैसे लेखकों के अनुसार अरब में इब्नुल अरबी, जलालुद्दीन रूमी, बायोज़िद बोस्तामी, अब्दुल कादिर जिलानी, मंसूर अल्हाज सहित कई सूफी संत हुए।प्रारंभिक सूफी फारस, भारत, यूरोप और अरब के मिश्रित प्रभाव के कारण यह ग्रीक, यहूदी, ईसाई, बौद्ध एवं ब्राह्मण दर्शन से सीधे प्रभावित हुए। सूफ़ी कुछ हद तक ब्राह्मण धर्म के पुनर्जन्म, संगीत (तस्वुफ़) से ईश्वर की प्राप्ति, परमात्मा से मिलन(वास्फ़), मोक्ष/निर्वाण (हुलुल), साधना (मुजाहिदा) वेदांत (वहदतुलवजुद) के मत के समर्थक हैं।

सूफीवादी संतों की विशेषताएं - 
1. अधिकांश सूफी गैर-अरब थे।
2. सूफीवाद सबसे पहले भारत के निकट ईरान के प्रांत खोरासन में उत्पन्न हुआ जिसे यूनानी एरियाना (आर्यों का क्षेत्र) कहते हैं। 
3.  तुर्कि इस्लाम के आगमन से पूर्व ईरान से सटे पूर्वी और पश्चिमी धर्मों संस्कृतियों का मिलन स्थल रहा।
4. मुसलमानों ने ब्राह्मण धर्म की विशेषताएं अपनाकर इस्लाम धर्म का प्रचार किया।
5. समर्पण से ईश्वर की प्राप्ति को पूजा का माध्यम बनाया गया।
सूफ़ी मुन और मंसूर ने भारत यात्रा के पश्चात बगदाद लौटते समय ध्यान (हलाज) लगाते हुए कहते मैं पूर्ण सत्य हूं/अहं ब्रह्मास्मि वाक्यांश से अरबी में कहा अनल हक़।

विभिन्न सूफीवादी मत एवं संत - 
कादरिया सिलसिला - 
क़ादरी सूफ़िवादी विचारधारा है जिसका नाम अब्दुल क़ादिर जीलानी (1077 से 1166) के नाम पर रखा गया है जो गिलान (सीरिया) के रहने वाले थे। यह संप्रदाय इस्लाम के मूलतत्व पर आधारित है। अब्दुल कादिर अबू सईद अल-मुबारक के मदरसे में पढ़े। सन 1129 में अल-मुबारक की मृत्यु के बाद इस स्कूल के मुखिया बने। सन 1258 में बगदाद पर मंगोलियाई विजय से बचकर कादरिया और प्रभावशाली सुन्नी धर्मगुरु बन गए। 1166 में इनकी मृत्यु होने के बाद इनके बेटे अब्दुल रज्जाक मदरसे के संचालक बने। अब्दुल रज्जाक ने अपने पिता की जीवनी प्रकाशित की।  अब्बासिद खलीफा के पतन के बाद बहजत अल-असरार फिद मनकीब - अब्दुल-क़ादिर के नाम से नूर अली, अली अल-शतानुफी ने कादरी को बगदाद के बाहर प्रचारित किया। यह संप्रदाय अरब देशों के साथ-साथ तुर्की, इंडोनेशिया, अफ़ग़ानिस्तान, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, बाल्कन, रूस, नेपाल, भुटान, फ़लस्तीन, इज़राइल, चीनी और अफ्रीका में रहते हैं। गिलानी को ग़ौस-ए-आज़म के नाम से भी जाना जाता है। कादरी संप्रदाय में साधकों को आत्मा की शुद्धि, ज्ञान और ईश्वर के प्रति प्रेम की शिक्षा दी जाती है। 
भारत में कादरिया सिलसिला - 
कादरी संप्रदाय का प्रभाव भारत में भी बहुत गहरा रहा है, और यहां के कई सूफी संतों और दरगाहों ने इस परंपरा का पालन किया। हज़रत शेख अब्दुल कादिर जिलानी की शिक्षाएं आज भी भारत और दुनिया भर में सूफी समुदाय द्वारा अनुसरण की जाती हैं। भारत में इस सम्प्रदाय का प्रचार मख्दूम मुहम्मद जिलानी और शाह नियामतुल्ला ने किया। सैयद बन्दगी मुहम्मद ने 1482 ईस्वी में सिन्ध को इस सम्प्रदाय का प्रचार केन्द्र बनाया। वहाँ से कालान्तर में यह सम्प्रदाय कश्मीर, पंजाब, बंगाल और बिहार तक फैला। इस सम्प्रदाय के अनुयायी संगीत के विरोधी हैं।

कादरिया सिलसिले की कई शाखाएं हैं 
कादिरिया हरियारी तारिक 
इसके संस्थापक शायख हकीम हरारी थे। इनका मुख्यालय इथियोपिया के हरार शहर में स्थित है। शायला सिलसिला के दो श्राइन सोमालिया के उत्तर में बोरमा सिटी में हैं। वर्तमान शेख सोमालिया के मोहम्मद नसरुद्दीन बिन शायख इब्राहिम कुलमीये हैं।

नक्शबंदी सिलसिला - 
नक्शबंदी सिलसिला सुन्नी सूफीवाद का एक प्रमुख सिलसिला है। सूफीवाद में गुरु शिष्य परंपरा को ही सिलसिला कहते हैं, और समान विचार रखने वाले सूफी एक सिलसिले के कहे जाते हैं। सूफी परंपरा भी गुरु (यानि शेख या उस्ताद या वली) से शिष्य (यानि मुरीद) को बढ़ाई जाती है। नक्शबंदी सिलसिले का मूल बहाउद्दीन नक्शबंद बुखारी से माना जाता है, जो सूफी परंपरा के तौर पर सीधे हजरत मुहम्मद से संबंध रखते हैं। नक्शबंदी सिलसिला सुन्नी इस्लाम के हनफी पंथ से जुड़ा है। भारत में सर्वप्रथम जो नक्शबंदी सूफी आए वे थे ख़्वाजा रजीउद्दीन मुहम्मद बक़ी उर्फ बक़ी बिल्ला ‘बैरंग’। ये काबुल के थे, इन्होंने काबुल और समरकंद में शिक्षा प्राप्त की, जहां ये नक्शबंदी सिलसिले के संपर्क में आए। इन्होंने भारत आकर नक्शबंदी सिलसिले को बढ़ाना चाहा पर तीन साल में ही इनकी मृत्यु हो गई। इनके दो मुख्य शिष्य हुए, शेख अहमद सरहिंदी और दिल्ली के शेख अब्दुल हक़। शेख अहमद सरहिंदी वह शख्स थे जिन्होंने हिंदुस्तान में नक्शबंदी को लोकप्रिय किया। ये आज के भारतीय पंजाब के सरहिंद गांव में 1564 में पैदा हुए और सियालकोट में पढ़े। इन्होंने मुग़ल दरबार में भी जगह बनाई। शेख अहमद सरहिंदी सूफी थे लेकिन इस्लाम को लेकर इनका दृष्टिकोण कट्टरवादी था। इन्होंने अकबर के सर्वधर्म समभाव के विचार का विरोध किया और दीन ए इलाही के आलोचक रहे। इनके विचारों में शिया समुदाय के प्रति भी दुर्भाव देखने को मिलता है। मुगल बादशाह जहांगीर ने जब सिखों के गुरु अर्जन देव जी को कैद में डाल दिया और गुरु अर्जन देव की मृत्यु हो गई, तब अहमद सरहिंदी ने इसपर खुशी का इजहार किया और इसे हिंदुओं के खिलाफ एक बड़ी उपलब्धि बताया, इस तरह सिख गुरु की मौत को राजनीतिक के साथ एक धार्मिक कोण भी दे दिया। अन्य सूफी संतों से भी इनके धार्मिक मतभेद रहे, और इनकी विचारधारा के कारण नक्शबंदी सिलसिले को सूफीवाद का सबसे कट्टर सिलसिला माना जाता है। इनकी मृत्यु 1624 में हुई और इनके मूल गांव सरहिंद में ही इनकी दरगाह है जिसे रौज़ा शरीफ कहा जाता है।

चिश्तिया सिलसिला - 
संस्थापक - अबू इशाक शमी
स्थापना - लगभग  930 ईस्वी
प्रकार - सूफी संप्रदाय
मुख्यालय - हेरात, अफ़गानिस्तान
चिश्ती सिलसिला, इस्लाम धर्म की सूफ़ीवादी विचारधारा है। इसकी शुरुआत अफ़ग़ानिस्तान के चिश्त शहर में हुई थी यह सिलसिला, प्रेम, सहिष्णुता, और खुलेपन पर ज़ोर देता है। भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी।
चिश्तिया वाक्य - 
खुद के अलावा किसी से मदद, दान या उपकार मत मांगो। राजाओं के दरबार में कभी मत जाओ, लेकिन अगर कोई जरूरतमंद, गरीब, विधवा और अनाथ तुम्हारे दरवाजे पर आए तो उन्हें आशीर्वाद देने और उनकी मदद करने से कभी इनकार मत करो।
- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 
कुछ शर्तें पूरी होने पर समा जायज़ है। गायक वयस्क होना चाहिए, न कि बच्चा या महिला। श्रोता को केवल अल्लाह की याद में सब कुछ सुनना चाहिए। जो शब्द गाए जाते हैं, वे अश्लीलता और अश्लीलता से मुक्त होने चाहिए और उन्हें अमान्य नहीं किया जाना चाहिए। सभा में संगीत वाद्ययंत्र मौजूद नहीं होने चाहिए। अगर ये सभी शर्तें पूरी होती हैं, तो समा जायज़ है।
- निजामुद्दीन औलिया 
किसी ने मशाइख के सुल्तान से शिकायत की कि कुछ दरवेश एक सभा में नाच रहे थे, जहाँ संगीत वाद्ययंत्र थे। उन्होंने कहा, उन्होंने अच्छा नहीं किया क्योंकि जो कुछ भी नाजायज़ है, उसे माफ नहीं किया जा सकता।
-  सियार अल-अवलिया

चिश्ती सिलसिले की खास बातें - 
चिश्ती सिलसिला, ईश्वर के साथ एकात्मकता (वहदत अल-वुजुद) के सिद्धांत पर ज़ोर देता है. 
चिश्ती सिलसिले के सदस्य शांतिप्रिय होते हैं। चिश्ती सिलसिला, मुस्लिम दायित्वों का पालन करने पर ज़ोर देता है।
चिश्ती सिलसिला, धर्मनिरपेक्ष राज्य के साथ संबंधों से दूरी बनाए रखने पर ज़ोर देता है। चिश्ती सिलसिला, ईश्वर के नाम को ज़ोर से बोलकर और मौन रहकर जिक्र जाहिर जिक्र काफी जपने पर ज़ोर देता है। चिश्ती शेखों ने सांसारिक शक्ति से दूरी बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया है। [ 4 ] एक शासक संरक्षक या शिष्य हो सकता है, लेकिन उसे हमेशा एक अन्य भक्त के रूप में ही माना जाना चाहिए। एक चिश्ती शिक्षक को दरबार में उपस्थित नहीं होना चाहिए या राज्य के मामलों में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे सांसारिक मामलों से आत्मा भ्रष्ट हो जाएगी।

चिश्तीया सिलसिले का (जीक्र) ईश्वर को याद करने के नियम - 
1. जिक्र ए जाली - 
निर्धारित समय पर निर्धारित आसन पर बैठकर अल्लाह के नामों का उच्च स्वर में उच्चारण करना ( धिक्र-ए-जाली )
अल्लाह के नामों को चुपचाप पढ़ना ( धिक्र-ए-ख़फ़ी )
2.  पास-ए-अनफास - 
सांस को नियंत्रित करना
3. मुरा-काबा - 
4. ईश्वर के ध्यान में लीन होना 
5. चिल्ला - 
प्रार्थना और चिंतन के लिए एकांत कोने या कोठरी में चालीस दिन या उससे अधिक समय तक आध्यात्मिक कारावास।
चिश्ती सिलसिले के संत 
1.ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
2.ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी
3.फ़रीदउद्दीन गंज-ए-शकर
4.निज़ामुद्दीन औलिया
5.नसीरुद्दीन चराग
6.शेख सलीम चिश्ती
7. हमीदुद्दीन नागौरी 

भारत में चिश्तिया सिलसिला - 
एक शेअर - 
इरादे रोज बनते है और  बिगड़ जाते हैं 
अजमेर वही आते है जिनको ख्वाजा बुलाते है।
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, चिश्ती संप्रदाय के संस्थापक थे। वे मूल रूप से मध्य एशिया के रहने वाले थे. उन्होंने 12वीं शताब्दी में भारत में चिश्ती संप्रदाय की स्थापना की। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने 12 वीं शताब्दी के मध्य में अजमेर राजस्थान भारत में चिश्ती आदेश की शुरुआत की। वह चिश्ती आदेश के संस्थापक अबू इशाक शमी के आठवें उत्तराधिकारी थे।
जन्म - 1141 ईस्वी (536 हिजरी)
जन्म स्थान - सिलिस्तान प्रांत, ईरान (फारस)
परिवार -  सैय्यद (मुहम्मद साहब के वंशज)
उपनाम - 
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़
हिंदल वली
शांत स्थान (मकबरा - अजमेर, राजस्थान।
शिष्यों - 
कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी
बाबा फ़रीद
निज़ामुद्दीन औलिया

कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी - 
नाम - कुतब उल अक्ताब हजरत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद बख्तियार अल्हुस्सैनी क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी चिश्ती 
जन्म - 1173
जन्म स्थान - ओश, दक्षिणी किर्गिज, किर्गिस्तान
मृत्यु - 1235 (14 रबी अल-अव्वल)
शांत स्थान - दिल्ली
मकबरा - महरौली, दिल्ली
गुरु - ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती
बख्तियार काकी ने दिल्ली में चिश्तिया सिलसिले की स्थापना की।

फ़रीदउद्दीन (बाबा फरीद) - 
एक शेअर 
गुलाम फरीदा दिल उत्थे देईए 
जिथे अगला कदर वी जाने।

नाम - फरीदुद्दीन गंज शक्कर
अन्य नाम - 
1. बाबा फरीद
2. गुलाम फरीद
जन्म - 1173
जन्म स्थान - कोठेवाली, मुल्तान पंजाब
मृत्यु - 1266 (5 मोहर्रम)
मृत्यु का स्थान - पाकपट्टन, पंजाब, पाकिस्तान।
शिष्य - 
हजरत अलाउद्दीन 
अली आहमद साबिर कलियरी
वंश -  काबुल के बादशाह फर्रुखशाह 
ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के मुल्तान आगमन पर उनसे संपर्क हुआ। वहीं चिश्ती सिलसिले में बेअत (दीक्षा) ली। गुरु के साथ ही मुल्तान से देहली पहुँचे। 20 साल की आयु में दिल्ली से हांसी (हिसार) पहुंचे। शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की मृत्यु के उपरांत उनके खलीफा बने। हाँसी से खोतवाल, दीपालपुर, अजोधन (पाक पटन) में निवास करने लगे व अंत तक यहीं रहे। पाक पट्टन एवं नागपुर की पहाड़ी में गिरड में उर्स (मेला) लगता है। फरीद ने योगियों के साथ रहकर स्थानीय भाषा सीखी।  वास्तव में बाबा फरीद के आध्यात्मिक एवं नैतिक प्रभाव के कारण उनके समकालीनों को इस्लाम के समझाने में बड़ी सुविधा हुई।  भारत के पंजाब प्रांत में स्थित फरीदकोट शहर का नाम बाबा फरीद पर ही रखा गया था। उनके वंशजों में से एक प्रसिद्ध सूफी विद्वान मुहिबउल्लाह इलाहाबादी हुए हैं।

निज़ामुद्दीन औलिया
नाम - निज़ामुद्दीन औलिया
पिता - अहमद बदायूनी 
जन्म - 1236 ईस्वी
जन्म स्थान - बदायुं, उत्तर प्रदेश
मृत्यु - 3 अप्रैल, 1325
मृत्यु स्थान - दिल्ली
उपाधि -
1. महबुब-ए-इलाही
2. सुल्तान-उल-मसहायक
3. दस्तगीर-ए-दोजहां
4. जग उजियारे
5. कुतुब-ए-देहली
गुरु - फरीद्दुद्दीन गंजशकर (बाबा फरीद)
शिष्य -
1. शेख नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी
2. अमीर खुसरो
नस्ब (वंशावली) - (नाम से पहले हजरत सैयदना)
1. अब्राहिम (नबी)
2.  मुहम्मद साहब
3. अली इब्न अबी तालिब
4. इमाम हुसैन इब्न अली
5. इमाम अली इब्न हुसैन जैनुल आबेदीन
6. इमाम मोहम्म्द अल-बाक़र
7. इमाम ज़ाफ़र अल-सादिक़
8. इमाम मूसा अल-काज़िम
9. इमाम अली मूसा रज़ा
10. इमाम मोहम्म्द अल-तक़ी
11. इमाम अली अल-नक़ी
12. जाफ़र बुख़ारी
13. अली असगर बुख़ारी
14. अब्दुल्लाह बुख़ारी
15. अहमद बुख़ारी
16. अली बुख़ारी
17. हुसैन बुख़ारी
18. अब्दुल्लाह बुख़ारी
19. अली (दानियाल)
20. अहमद बदायूंनी
21. शाह ख़्वजा निज़ामुद्दीन औलिया
अन्य शिष्य - 
1. ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसुदराज़ मुहम्मद अल-हुसैनी
2. अलाउल हक पांडवी 
3. नूर कुतुब आलम, पांडुआ पश्चिम बंगाल
4. अशरफ जहांगीर सेमनानी, किछौचा, उत्तर प्रदेश
5. हुसाम अद-दीन मानिकपुरी (प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश) 
6. फकरुद्दीन फकर देहलवी, महरौली, दिल्ली
7. शाह नियाज़ अहमद बरेलवी, बरेली उत्तर प्रदेश
8. शफ़रुद्दीन अली अहमद और 
9. फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, चिराग दिल्ली नई दिल्ली
10. ज़ैनुद्दीन शिराज़ी, बुरहानपुर, मध्य प्रदेश
11. मुहिउद्दीन यूसुफ याह्या मदनी चिश्ती, मदीना
12. कलीमुल्लाह देहलवी चिश्ती, दिल्ली 14. निज़ामुद्दीन औरंगाबादी
15. निज़ामुद्दीन हुसैन
16. मिर्ज़ा आग़ा मोहम्मद
17. मुहम्मद सुलेमान तौन्सवी, पाकिस्तान
18.  मोहम्मद मीरा हुसैनी
19. हेसामुद्दीन मानकपुरी, 
20. मियां शाह मोहम्मद शाह, होशियारपुर पंजाब, 
21. मियां अली मोहम्मद खान, पाकपट्टन, पाकिस्तान
22. ख्वाजा नोमान नैय्यर कुलाचवी (खलीफा ए मजाज़) कुलाची, पाकिस्तान
23. खलीफा उमर तारिन चिश्ती-निजामी 24. इश्क नूरी, कलंदराबाद, पाकिस्तान
निजामुद्दीन औलिया के शिष्यों के सिलसिले - 
1. नसीरिया (नसीरुद्दीन चिराग देहलवी)
2. हुसैनिया (कमालुद्दीन हुसैनी गेसुदराज़ बंदनवाज़
3. फाखरी (फख्र उद दीन फख्र ए जहां देहलवी)
4. नियाजिया (नियाज़ अहमद बरेलवी)
5. सिराजिया (सिराजुद्दीन अकी सिराज)
6. अशरफी (अशरफ जहांगीर सेमनानी)
7. फरीदी (फरीदुद्दीन तवेलाबक्श)
8. इश्क नूरी (ख्वाजा खालिद महमूद चिश्ती साहब ने लाहौर, पाकिस्तान)
9. लुत्फिया (लुत्फुल्लाह शाह दनकौरी)

हज़रत निजामुद्दी का जीवन - 
सन् 1239 में निज़ामुद्दीन 20 वर्ष की आयु में अजोधर (पाक पट्टन, पाकिस्तान) में सूफी संत फरीद्दुद्दीन गंज शक्कर के शिष्य बने और हर वर्ष रमज़ान के महीने में बाबा फरीद के साथ अजोधान में समय बिताने आते रहे। इनके अजोधान के तीसरे दौरे में बाबा फरीद ने उत्तराधिकारी नियुक्त किया। वहाँ से वापसी के साथ ही उन्हें बाबा फरीद के देहान्त की खबर मिली। निज़ामुद्दीन दिल्ली के पास ग़यासपुर में बसने से पहले दिल्ली के कई इलाकों में रहे। गयासपुर में उन्होंने खानगाह बनाई जहाँ लोगों को निःशुल्क भोजन,पानी एवं आवास उपलब्ध करवाते रहे।
हज़रत निजामुद्दीन के नाम से दिल्ली में रेल्वे स्टेशन है।
नसीरुद्दीन चराग देहलवी  
नाम - नसीरुद्दीन
उपनाम - चिराग़ देहलवी
पिता - सैयद महमूद याह्या अलहस्नी (पश्मीना के व्यापारी)
दादा - सय्यद याह्या अब्दुल लतीफ अलहस्सनी, खुरासन, ईरान से लाहौर से अयोध्या आए।
जन्म - 1274
जन्म स्थान - अयोध्या, भारत (चालीस वर्ष की आयु में अयोध्या छोड़ दिल्ली आ बसे)
मृत्यु - 1356 (17 रमजान 757 हिजरी)
दरगाह - ग्रेटर कैलाश के निकट, दिल्ली, भारत
बड़ी बुआ/बड़ी बीबी की दरगाह (नासीरुद्दीन महमूद चिराग़ देहलवी की बड़ी बहन) की दरगाह - अयोध्या भारत
प्रारंभिक शिक्षा - 
1. मौलाना अब्दुल करीम शेरवानी
2. मौलाना इफ्तिखारुद्दीन गिलानी
गुरु - निज़ामुद्दीन औलिया
शिष्य - ख्वाजा कमालुद्दीन अल्लामा चिश्ती, बंदा नवाज़ गेसू दराज़
विशेष - खानजादा (जादौन/यदुवंशी) एवं कायमखानी (चौहान) राजपूत इन्हीं के काल में मुस्लिम हुए।
व्यक्तिगत परिचय - 
अयोध्या से दिल्ली आने के बाद मंगोलों के हमले दिल्ली पर लगातार होने के कारण फिरोज शाह तुगलक के साथ दौलताबाद चले आए। निजामुद्दीन। औलिया की तरह वो शमा में रुचि नहीं रखते थे।

6.शेख सलीम चिश्ती
शेख सलीम चिश्ती अपने समय का महान सूफी हुए हैं। अकबर के जब कोई संतान नहीं हुई तो वह उनसे दुआ लेने हेतु पहुंचा। दुआ के बाद हुए पुत्र का नाम इन्हीं के नाम से सलीम (शेखू) रखा गया। सलीम चिश्ती के तीन पुत्र एक पुत्री हुई। जहाँगीरनामा के अनुसार जहांगीर ने पालक मां (सलीम चिश्ती की बेटी के बेटे कुतुबुद्दीन खान कोका को बंगाल का राज्यपाल बनाया। सलीम चिश्ती के बड़े बेटे सद्दुद्दीन खान को अकबर ने अमीनाबाद, तलेबाबाद और चंद्रप्रताप के गाजीपुर जिले में तीन जागीरें  दीं। अब यह परिवार बांग्लादेश में रहता है जहां पर राजनैतिक रूप से सक्रिय है। दूसरे बेटे, शेख इब्राहिम खान (किश्वर खान) के वंशज भारत के शेखूपुर, बदायूं में रहते हैं। अकबर ने सलीम चिश्ती की दरगाह 1571 में फतेहपुर सीकरी में बनवाई।

हमीदुद्दीन नागौरी - 
नाम - हमीदुद्दीन नागौरी 
जन्म - 1192 ईस्वी 
जन्म स्थान - दिल्ली
मृत्यु - 1274 ईस्वी 
दरगाह - सुआल, नागौर, राजस्थान
गुरु - ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
हमीदुद्दीन नागौरी किसान के रूप में जीवन यापन करते थे। उन्होंने स्थानीय भाषा सीखी एवं स्थानीय वेष - भूषा धारण की। उनकी दरगाह के क्षेत्र में मांस एवं मांस से बनी कोई खाद्य सामग्री लाना वर्जित था। सन् 1300 में मोहम्मद बिन तुगलक ने इनकी दरगाह का मजार बनवाया। आजकल अधिकांश भूमि पर अतिक्रमण और कब्जा हो चुका है। दरगाह में प्रस्तावित जमात खाना भी अधूरा है।
सूफी शायरी - 
खीर पकाई जतन से चरखा दिया जला
आया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजा
ला पानी पिला।
सजन सकारे जायेंगे और नैन पड़ेंगे रोए 
बंधना एसी रैन को के भोर कदे ना होय।

कागा सब तन खाइयो मोरा चुन - चुन खाइयों मांस
दो नैनन मत खाइयों जा में पिया मिलन की आस।

सोनो ल्यावण पीव गया मोरा सूना कर्ग्या देश
सोनो मिल्यो ना पीव जी मोरा चांदी होग्या केश।
अंत में एक शेअर - 
मेरा मजहब ये दो हथेलियाँ बताती हैं,
जुड़े तो पूजा खुले तो दुआ कहलाती हैं।

शमशेर भालू खां 
9587243963

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