विवादित स्थल का नजरी नक्शा 2.77 एकड़ (1.12 हेक्टेयर)
कार सेवक 6 दिसंबर 1992
22 जनवरी 2023 को गर्भगृह में स्थापित भगवान राम की मूर्ति
बाबरी मस्जिद एक कहानी
रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद
कुछ संकेतांक -
ASI- भारतीय सर्वेक्षण विभाग
विहिप - विश्व हिंदू परिषद
AIMPLB - ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
BMAC - बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी
BJP/ भाजपा - भारतीय जनता पार्टी
RSS - राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
BMAC - बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी
SC - सुप्रीम कोर्ट
HC - हाइ कोर्ट
CJI - मुख्य न्यायाधीश
Cong - कांग्रेस
अयोध्या एक परिचय -
शहर का नाम - अयोध्या, जिला मुख्यालय
उपनाम - अवध,साकेत
वर्णन - महाभारत,रामायण व बौद्ध ग्रंथ
स्थिति - फैजाबाद के निकट सरयू नदी के तट पर उत्तर प्रदेश राज्य में
विशेष - राजा दशरथ की राजधानी, श्री राम का जन्म स्थान
अन्य - अवध के नवाब वाजिद अली शाह के नाम से प्रसिद्ध।
अन्य - सात सनातन सप्त पूरियों में से एक
लखनऊ से दूरी 170 km
दिल्ली से दूरी 700 km
अयोध्या की अक्षांशीय स्थिति -
26°47′44″N 82°11′39″E/ 26.7956°N 82.1943°E निर्देशांक 26°47′44″N 82°11′39″E/ 26.7956°N 82.1943°E है।
इतिहास - 11वीं और 12वीं शताब्दी के दौरान कन्नौज राज्य अयोध्या के रूप में उभरा जिसे तब अवध कहा जाता था, यह क्षेत्र बाद में दिल्ली सल्तनत, जौनपुर राज्य और 16वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य में शामिल हो गया। अवध ने 18वीं शताब्दी की शुरुआत में कुछ हद तक स्वतंत्रता प्राप्त की, परन्तु 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया। 1856 में इसे अंग्रेजों ने अपने अधीन कर 1877 में आगरा प्रेसीडेंसी के साथ मिलाकर उत्तर-पश्चिमी प्रांत और बाद में आगरा और अवध को संयुक्त प्रांत बनाया।
अयोध्या विवाद -
अयोध्या में रामकोट पहाड़ी/राम का किला पर एक प्राचीन मुगलकालीन मस्जिद पर सनातन पक्ष द्वारा दावा किया गया कि यह राम जी के जन्म स्थान पर बनाई गई है। सन,1853 में अंग्रेज शासन काल में यह विवाद निर्मोही अखाड़े द्वारा खड़ा किया गया।
बाबरी मस्जिद मुग़ल सम्राट बाबर के आदेश पर सन 1527 (हिजरी सन 935, सितंबर 1527 से सितंबर 1529 ई.) में सेनापति मीर बाकी ने बनवाई और इसका नाम बाबरी मस्जिद रखा। संभल और पानीपत की मस्जिदों के साथ यह उन तीन मस्जिदों में से एक थी, जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें 16वीं शताब्दी में बाबर के आदेश पर बनाया गया था। सन 1939 से पहले इसे मस्जिद-ए-जन्मस्थान भी कहा जाता था। अयोध्या में राजनीतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, एवं धार्मिक विवाद के चलते कि मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनाई गई या नहीं की बहस को अयोध्या/रामजन्म भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद के नाम से जाना जाता है।
बाबरी मस्जिद की वास्तुशैली
यह मस्जिद भारतीय थी जो स्थानीय शैलियों विशेष रूप से जौनपुर स्थापत्य शैली से विकसित हुई एवं मौसम और परिस्थिकी से अनुकूलन हेतु मुगल - भारतीय शैली का सुन्दर मिश्रण थी। यह भीतर से पश्चिमी एशियन (हाइपोस्टाइल - यूनानी शब्द - भवन को स्तंभों के सहारे खड़ा किया जाना) में निर्मित थी।हाइपोस्टाइल शैली की सहायता से मेहराबों की ज़रूरत के बिना बड़े भवनों का निर्माण किया जाता है। पश्चिम एशिया और यूरोप में इस शैली में अनेक धर्मस्थल, महल व सार्वजनिक भवन बनाए जाते हैं। बाबरी मस्जिद मुगलों से पूर्व लोदी राजवंश में विकसित शैली में बनी हुई थी। क़िबला (इमाम के खड़े होने का स्थान) की दिवार के साथ तीन गुंबददार गलियारों के निकट ऊंचा प्रवेश द्वार बनाया गया। पिश्ताक (फ़ारसी शब्द का अर्थ है, भवन के अग्र भाग की ओर निकलने वाला द्वारा/औपचारिक प्रवेश द्वार/धनुषाकार द्वार के चारों ओर बना आयताकार फ़्रेम।) द्वार को सुलेख पट्टियों, चमकदार टाइलवर्क एवं डिज़ाइनों से सजाया जाता है। इस्लामी वास्तुकला में, पिश्ताक का अर्थ है एवान से जुड़ा होना। यह तीसरी शताब्दी में फ़ारस के पार्थियन काल के मेसोपोटामिया में शुरू हुई ईरानी शैली है।
विवादित स्थल की खुदाई -
कोर्ट के आदेश पर वर्ष 1970, 1992 और 2003 में ASI द्वारा विवादित स्थल के आसपास खुदाई की गई। वर्ष 2003 में मलबे के नीचे विशेष संचरना की खुदाई करने पर ASI की रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद के नीचे मंदिर जैसी संरचना होने के निश्चित संकेत हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार यहां उत्तर भारतीय मंदिर शैली से जुड़ी विशिष्टताओं के चिह्न प्राप्त हुए हैं।
विवादित स्थल पर पूर्व में मंदिर जैसी संरचना के चिह्न -
1. पत्थर और सजी हुई ईंटें।
2. एक दिव्य जोड़े की विकृत मूर्ति ।
3. नक्काशीदार वास्तुशिल्प जिनमें पत्ते के पैटर्न, आमलक, कपोतपाली।
4. अर्ध-गोलाकार तीर्थ स्तंभ के साथ चौखट।
5. काले शिस्ट स्तंभ का टूटा हुआ अष्टकोणीय शाफ्ट।
6. कमल की आकृति
7. प्रांजला वाला गोलाकार मंदिर ( उत्तर में वाटरशेड)
8. एक विशाल संरचना सहित 50 स्तंभ मिले हैं।
ASI की रिपोर्ट की आलोचना -
रिपोर्ट में कहा गया कि हर ओर पशु हड्डियों के साथ रक्त और चूना-गारा पड़ा हुआ था। यह मुस्लिम समुदाय की उपस्थिति के संकेत हैं, जिसे ASI ने अनदेखा किया। नींव में स्तंभों के आधार पर रिपोर्ट के बारे में दावा किया गया है कि ASI ने पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर स्पष्टतः धोखाधड़ी से रिपोर्ट तैयार की। क्योंकि वहां खुदाई के समय किसी प्रकार का कोई खंभा नहीं मिला। AIMPLB के अध्यक्ष सैयद रबे हसन नदवी के अनुसार ASI अंतरिम रिपोर्ट में विवादित स्थल पर किसी मंदिर के होने के सबूत देने में विफल रही और पूर्णतया संदिग्ध है। न्यायाधीश अग्रवाल के अनुसार कई स्वतंत्र इतिहासकारों द्वारा प्रस्तुत तथ्यों को जांचने पर विशेषज्ञता का अभाव पाया गया। अधिकाश विशेषज्ञ किसी एक पक्ष से जुड़े पाए गए। विवादित मस्जिद के नीचे ASI की अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर VHP और RSS मुस्लिम पक्ष पर उत्तर भारत की तीन मस्जिद संभल, पानीपत और अयोध्या सनातनियों को सौंपने का दबाव बनाने लगे।
ASI की रिपोर्ट के विपक्ष में तर्क -
बाबरी मस्जिद पर तीन गुंबद दो पास के छोटे व बीच का गुंबद बड़ा बना हुआ है। बाबरी मस्जिद तत्कालीन स्थापत्य की अदभुत एवं भव्य संरचना थी। वास्तुकला के आधार पर इस मस्जिद का निर्माण मुगल शैली के स्थान पर जहांपनाह की बेगमपुर की जुमे की मस्जिद से प्रभावित रहा। इसका एक कारण यह भी था कि राजमिस्त्री स्थानीय लोग ही थे और अधिकांश सनातनी थे जो परम्परागत संरचनात्मक और सजावटी परंपराओं का उपयोग किया करते थे। उनकी दस्तकारी की उत्कृष्टता उनके वानस्पतिक इमारती सजावट और उकेरी गई कमल आकृति में साफ दिखाई देती है। यह शैली, कमल के फूल और बेलबूटे फिरोजाबाद के फिरोज शाह मस्जिद (सन 1354 जो अब एक उजड़ी हुई स्थिति में है), किला कुहना मस्जिद (सन 1540), दीवारगौड़ शहर के दक्षिणी उपनगर की दरस बरी मस्जिद और शेरशाह सूरी द्वारा निर्मित जमाली - कमाली मस्जिद में भी मौजूद हैं। यह शैली मुगलों द्वारा अपनाई गयी भारत - इस्लामी शैली का उदाहरण है। ऊंची समानांतर मोटी दीवारों से बनी मस्जिद के सामने मीठे पानी के कुएं के साथ एक बड़ा-सा आंगन बना था। मस्जिद के ऊंचे गुंबदाकार प्रवेश द्वार पर फारसी भाषा के दो शिलालेख लगे हुए थे। इन शिलालेखों पर अंकित है कि सम्राट बाबर के आदेश पर मीर बाक़ी ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया। इसकी दीवारें आयताकार सफेद रेतीले पत्थरों से और गुंबद लाल पकी छोटी और पतली ईंटों से निर्मित थीं। गुंबद और दीवारों पर चुने से लिपाई की गई थी। छत को अधिक ऊंचाई देने के लिए मस्जिद के बीच का आंगन गोल खंभों से घिरा हुआ था। यह मस्जिद भारतीय - मुगल - तुगलक शैली में अन्य स्वदेशी शैलियों के मिश्रण से परिष्कृत हुई। मेहराबदार छत और गुम्बज जैसे इस्लामी वास्तुशिल्प में फूल पत्तियों को उकेरने के तत्वों के आवरण में वातानुकूलित प्रणाली। बाबरी मस्जिद छः बड़े जालीदार झरोखे से बनाई गई जिससे मस्जिद के अंदरूनी भाग को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखा जा सके एवं सूर्य प्रकाश सीधा सके।
लॉर्ड विलियम बैन्टिक (1828 -1833) के वास्तुकार ग्राहम पिकफोर्ड की पुस्तक हिस्टोरिक स्ट्रक्चर्स ऑफ़ अवध में लिखते हैं कि बाबरी मस्जिद के मेहराब से अत्यंत धीमी ध्वनि को 200 फीट दूर सुना जा सकता था। उन्होंने मस्जिद की ध्वनिकी तकनीक के संबंध में उल्लेख किया है कि "मंच से आवाज का फैलाव और प्रक्षेपण अत्यधिक उन्नत है, इस संरचना में ध्वनि का अद्वितीय फैलाव आगंतुक को चकित कर देता है।"
वास्तुकारों के अनुसार बाबरी मस्जिद की इस विशेषता हेतु मेहराब की दीवार में रिक्त स्थान के साथ साथ दीवारों में परस्पर काटते खाली स्थान और निर्माण में प्रयुक्त रेतीले पत्थर ध्वनि अनुनादक परिपथ (इको साउंड) के रूप में काम करते हैं जो श्रोता को दूर से साफ सुनने में सहायक रहते हैं। इस स्थल के विवादित होने के कारण भारत ने उच्च स्थापत्य की अद्भुत संरचना खो दी, जिस पर अधिकतम रिसर्च कर पुरातन स्थापत्य को समझा जा सकता था। धार्मिक उन्माद ने भारत के मध्यकालीन इतिहास की उन्नत प्रतिकृति को गंवा दिया जिस की भरपाई संभव नहीं।
विवादित स्थल और अन्य पंथावलंबियों के दावे -
विभिन्न पंथ के लोगों और संस्थाओं ने बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के संबंध में दावे प्रस्तुत कर उनकी धार्मिक भावनाओं से जुड़ा होना बताया। इस संबंध में जो दावे किए गए वो निम्नानुसार हैं -
जैन पक्ष - जैनियों के सामाजिक संगठन जैन समता वाहिनी के महासचिव सोहन लाल मेहता के दावे के अनुसार, उत्खनन के समय यहां मिली संरचना केवल छठी सदी के जैन मंदिर के ही अवशेष हो सकते हैं। उनका दावा है कि बाबरी मस्जिद - राम जन्मभूमि विवाद सुलझाने हेतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर ASI द्वारा की गई खुदाई से प्रमाणित होता है कि विवादित ध्वस्त ढांचा प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष पर बनाया गया था। मेहता 18वीं शताब्दी के जैन भिक्षुओं की रचानाओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि अयोध्या वह जगह हैं जहां पांच जैन तीर्थंकर ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ रहा करते थे। 1527 से पहले यह प्राचीन शहर जैन धर्म और बौद्ध धर्म के पांच बड़े केंद्रों में से एक रहा है।
मुस्लिम पक्ष - ऐसा कोई ऐतिहासिक अभिलेख प्रमाणित नहीं करता है कि 1527 में मीर बाकी ने किसी मंदिर का विध्वंस कर मस्जिद बनाई। सन 1949 से पूर्व की स्थिति की जांच के बहुत कम प्रयास किये गए। एक तरह से मस्जिद को मंदिर में बदलने हेतु मूर्तियों की स्थापना करना भू स्वामित्व अधिनियम का उल्लंघन था। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ASI की रिपोर्ट RSS, VHP और हिंदू मुन्नानी जैसे अतिवादी सनातन संगठनों द्वारा बाबरी मस्जिद स्थल पर किए गए दावे पर भरोसा कर तैयार की गई एक पक्षीय रिपोर्ट है जो राजनीति से प्रेरित है। ASI के अनुसार "हर स्थान पर पशुओ की हड्डियों के साथ - साथ रक्त और चूना - गारा पाया गया" को मुस्लिम पक्ष इस स्थल को मुस्लिम स्थल होने की दलील मानता है और बाबरी मस्जिद के नीचे किसी मंदिर की संभावना को खारिज करते हैं। ASI की रिपोर्ट में 'खंभों की नींव मंदिर शैली की बताई गई' का प्रतिकार कर कहा गया कि यह "साफ तौर पर धोखाधड़ी" है क्योंकि कोई खंभा मंदिर शैली में नहीं हो कर मुगल भारतीय शैलियों बने हैं। प्रत्येक स्तंभ की नींव के अस्तित्व पर पुरातत्वविदों द्वारा तर्क - वितर्क किया गया है।
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी - 5 फरवरी, 1986 को बाबरी मस्जिद का ताला खुलने के तुरंत बाद, पूर्व राजनयिक और जनता पार्टी के नेता सैयद शहाबुद्दीन के नेतृत्व में बाबरी मस्जिद आंदोलन समन्वय समिति का गठन किया गया। अगले साल मार्च में, एक व्यापक संगठन का गठन किया गया - बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (बीएमएसी) - जिसमें जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी और हैदराबाद के राजनेता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी सहित कई मुस्लिम नेता शामिल हुए। इस संबंध में कोर्ट में शायद जफरयाब जिलानी ने पैरवी की।
बौद्ध पक्ष - अयोध्या अवध, साकेत के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या कोसल राज्य की प्रारंभिक राजधानी थी जो बौद्ध काल में (6ठी - 5वीं शताब्दी ईपू) श्रावस्ती राज्य का मुख्य शहर बना। विद्वान सैद्धांतिक रूप से इस तथ्य से सहमत हैं कि अयोध्या साकेत शहर के समान है जहां महात्मा बुद्ध के कुछ समय तक निवास किया। बौद्ध केंद्र के रूप में इसके बाद के महत्व का अंदाजा 5वीं शताब्दी में चीनी बौद्ध भिक्षु फाहियान के इस कथन से लगाया जा सकता है कि वहां 100 मठ थे (संख्यात्मक के स्थान पर लगभग) वहां कई अन्य स्मारक भी थे, जिनमें एक स्तूप (मंदिर) भी शामिल है। माना जाता है कि इस स्तूप की स्थापना मौर्य सम्राट अशोक (तीसरी शताब्दी ईपू) द्वारा की गई। अयोध्या को बौद्ध धर्म से जोड़कर कई दावे किए गए हैं। अयोध्या को साकेत भी कहा जाता है, जिसका मतलब है 'स्वयं से आया' बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, भगवान बुद्ध ने अयोध्या में 16 साल तक तपस्या की। अयोध्या में बौद्ध धर्म से जुड़े कई स्तूप हैं। अयोध्या में भगवान बुद्ध की कई स्मृतियां हैं जैसे अंजनी वाटिका में भगवान बुद्ध ने अपने सूत्र सुनाए। बौद्ध धर्म की उपस्थिति के संकेत 1862 - 63 में ASI की पहली रिपोर्ट में भी मिलते हैं। अयोध्या में जन्म भूमि परिसर के निर्माण से पूर्व बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था। यहां मिले पुरावशेषों को बौद्धकालीन माना जाता है। अयोध्या स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद अभी सुलझा ही नहीं था कि अब बौद्ध समुदाय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दावा किया है कि विवादित क्षेत्र पहले बौद्ध धर्म स्थल था। समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार याचिका में दावा किया गया है कि जिस विवादित स्थल पर पर बाबरी मस्जिद थी वहां कभी बौद्ध धर्म से संबंधित एक ढांचा था। याचिकाकर्ता ने कहा है कि ASI ने विवादित स्थल पर अब तक जो खुदाई की है उसमें इसके सबूत मिलते हैं। अंतिम खुदाई इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश पर साल 2002 - 03 में की गई। इस याचिका को अयोध्या के विनीत कुमार मौर्य ने बौद्ध समाज की ओर से निवेदन किया है कि ASI की खुदाई में स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवारों और स्तंभों के बारे में जानकारी मिली है जो किसी बौद्ध विहार की विशेषताएं होती हैं। मौर्य ने दावा किया है कि इस स्थल पर सनातन समुदाय के किसी भी मंदिर या अन्य ढांचे के होने का कोई सबूत नहीं है। उन्होंने कोर्ट में अपील की है कि न्यायालय विवादित स्थल को श्रीवस्ती, कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर की ही तरह बौद्ध विहार घोषित करे। अतः यह विवादित स्थल बौद्ध स्तूप है जिसे बौद्ध धर्म को सौंपा जाना चाहिए।
ब्रिटिश पक्ष - 1526 में पानीपत में अफगान शासक इब्राहिम लोदी को हरा कर बाबर ने भारत पर शासन शुरू किया। बाबर तत्कालीन संयुक्त प्रांत के पूर्वी जिलों, मध्य दोआब और अवध पर कब्जा करते हुए वह आगरा की ओर बढ़ा। सन 1527 में बाबर मध्य भारत से कन्नौज की ओर बढ़कर अवध क्षेत्र के दक्षिणी भाग को जीतते हुए अयोध्या पहुंचा। इस विजय की खुशी में सितंबर 1527 में सेनापति मीर बाकी को वहां मस्जिद निर्माण का आदेश दिया। सन 1530 में बाबर की मृत्यु से एक वर्ष पूर्व नवंबर 1529 मस्जिद निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। इम्पीरियल गजट ऑफ इंडिया 1908 भाग XIX पृष्ठ 279-280
घटनाक्रम - सन 1853 में सब से पहले सनातन ओर मुस्लिम पक्ष के बीच अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय में सांप्रदायिक हिंसा हुई। इस हिंसा का एक ओर से नेतृत्व निर्मोही संप्रदाय द्वारा किया गया। निर्मोही अखाड़ा के नेताओं ने दावा किया कि बाबरी मस्जिद स्थल पर पहले सनातन मंदिर था जिसे तोड़ कर मस्जिद का निर्माण हुआ। सन 1855 तक यह हिंसा जारी रही। अवध नवाब वाजिद अली शाह ने एक स्थान पर (मस्जिद के पास ही सनातन निर्मोही अखाड़े को पूजा करने की अनुमति प्रदान कर दी। फैजाबाद जिला गजट 1905 के अनुसार इस समय सन 1855 से सनातन और मुस्लिम पक्ष यहां धार्मिक क्रियाकलाप करते रहे। सन 1857 के विद्रोह के बाद, बाबरी मस्जिद के सामने एक बाहरी दीवार चुनवा कर अखाड़े को उस क्षेत्र विशेष के अदंरुनी प्रांगण में जाने और सामने की वेदिका (चबूतरा) पर पूजा करने से रोक दिया गया। सन 1883 में इस चबूतरे पर मंदिर निर्माण के प्रयास किए गए जिसे फैजाबाद उपायुक्त ने रोक कर 19 जनवरी 1885 को इसे निषिद्ध क्षेत्र घोषित कर दिया। इस आदेश के विरुद्ध निर्मोही अखाड़े के महंत रघुवीर दास ने जिला उप-न्यायाधीश फैजाबाद की अदालत में याचिका दायर कर मांग की कि 17 फीट x 21 फीट माप के चबूतरे पर पंडित हरिकिशन को मंदिर निर्माण की अनुमति दी जाए। न्यायालय ने यह वाद अस्वीकार कर दिया। बाद में अखाड़े ने यह अपील फैजाबाद जिला न्यायाधीश कर्नल J.E.A.चमबिअर के समक्ष प्रस्तुत की। विवादित स्थल का निरीक्षण कर जिला न्यायालय ने भी 17 मार्च 1886 को अखाड़े की अपील को खारिज कर दिया। अखाड़े द्वारा 25 मई 1886 को अवध के न्यायिक आयुक्त W. यंग की अदालत में पुनः सुनवाई की अपील दायर की जिसे खारिज कर दिया गया। सन 1934 में फैजाबाद में पुनः सांप्रदायिक दंगे हुए और मस्जिद के चारों ओर की दीवार के साथ - साथ एक गुंबद क्षतिग्रस्त कर दिया गया जिसका पुनर्निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा करवाया गया। फैजाबाद प्रशासन ने बाबरी मस्जिद और गंज-ए-शहीदन कब्रिस्तान अवध से संबंधित भूमि को वक्फ क्र. 26 फैजाबाद के रूप में यूपी सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड के साथ 1936 के अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया। इस अवधि में मुस्लिम पक्ष ने 10 दिसंबर को मस्जिद में मूर्ति रखने के प्रयास का मुकदमा दायर करवाया। कुछ दिन बाद 23 दिसम्बर 1949 (22 की रात) रात्रि में वहां मूर्तियां स्थापित कर दी हैं। इस हेतु सुन्नी वक्फ बोर्ड निरीक्षक मोहम्मद इब्राहिम द्वारा वक्फ बोर्ड के सचिव को दो रिपोर्ट दी गईं।पहली रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम पक्ष को अन्य समुदाय के लोगों द्वारा मस्जिद में जाने से रोका जा रहा है। स्थानीय निवासियों के अनुसार संप्रदाय विशेष के लोगों से मस्जिद को खतरा है। मस्जिद में नमाज पढ़ कर लौटने वालों पर आस- पास के घरों के जूते और पत्थर फेंके जाते हैं। मुस्लिम पक्ष भयभीत है और इसी कारण एक शब्द भी नहीं कह पा रहा है। सनातन पक्ष के रघुदास के बाद लोहिया ने अयोध्या का दौरा कर भाषण दिया कि कब्र को नुकसान नहीं पहुंचाएं। बैरागियों ने घोषणा की कि मस्जिद स्थल रामजन्म भूमि है जो हमें सौंप दिया जाना चाहिए। "मैंने अयोध्या में एक रात बिताई और बैरागी जबरन मस्जिद पर कब्जा करने लगे। 22 दिसम्बर 1949 की आधी रात को जब पुलिस गार्ड सो रहे थे, तब राम और सीता की मूर्तियों को चुपचाप मस्जिद में ले जाया गया और वहां स्थापित कर दिया गया। अगली सुबह इसकी खबर कांस्टेबल माता प्रसाद द्वारा दी गयी और अयोध्या पुलिस थाने में रिपोस्ट दर्ज की गई। 23 दिसम्बर 1949 को अयोध्या पुलिस थाने में सब इंस्पेक्टर राम दुबे द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराते हुए कहा गया कि 50-60 व्यक्तियों ने मस्जिद परिसर गेट का ताला तोड़ कर और दीवार फांद कर बाबरी मस्जिद में प्रवेश कर मूर्तियां स्थापित कर दीं और आंतरिक दीवार पर गेरू से सीता-राम का चित्र बना दिया। लगभग 5 - 6 हजार लोगों की भीड़ आसपास इकट्ठी हुई तथा भजन गाते और धार्मिक नारे लगाते हुए मस्जिद में प्रवेश करने की कोशिश करने लगी, लेकिन रोक दिए गए। सुबह सनातन पक्ष की भारी भीड़ ने भगवानों पूजा हेतु मस्जिद में प्रवेश करने का प्रयास किया, जिसे रोका गया है। जिला मजिस्ट्रेट K.K. नायर ने दर्ज किया कि उक्त भीड़ जबरन प्रवेश करने की कोशिश करने हेतु पूरी तरह से दृढ़ संकल्पित थी। ताला तोड़ दिया गया और पुलिस वालों को धक्का देकर गिरा दिया गया। हम में से सब अधिकारियों और दूसरे लोगों ने किसी तरह भीड़ को पीछे की ओर खदेड़ा और गेट बंद किया। पुलिस और हथियारों की परवाह न करते हुए साधु एकदम से उन पर टूट पड़े और तब बहुत ही मुश्किल से हम लोगों ने किसी तरह से गेट को बंद किया। गेट सुरक्षित था और मजबूत ताले से बंद कर दिया गया। पुलिस जाप्ता बढ़ाया गया। समय (शाम 5:00 बजे)। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को निर्देश दिया कि वे यह देखें कि मूर्तियों को हटा लिया जाए। पंत के आदेश के तहत मुख्य सचिव भगवान सहाय और फैजाबाद के पुलिस महानिरीक्षक वी.एन. लाहिड़ी ने आयुक्त फैजाबाद के.के. नायर को मूर्तियां हटाने के निर्देश दिए। के.के. नायर ने जवाब में लिखा कि हमें डर है कि सनातन पक्ष जवाबी कार्रवाई कर देगा तो शांति व्यवस्था खराब हो जायेगी अतः हम आदेश की पालना करने में अक्षम हैं। इसके साथ ही मूर्तियां स्थापित करने वालों की आस्था का मान किया जाना चाहिए। सन 1949 के बाद यहां ताला लगा दिया गया और दोनों पक्षों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया। तब से सिर्फ अयोध्या में उपजा विवाद पूरे भारत में फैल गया। वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद का ताला खुलवाने हेतु आंदोलन प्रारंभ कर दिया। जिला अदालत के आदेश पर वर्ष 1986 में राजीव गांधी सरकार ने अयोध्या में राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद का ताला खोल दिया। इस से पहले सनातन पक्ष को वार्षिक पूजन कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति थी। इस आदेश के बाद सनातन पक्ष को मस्जिद में जाने की अनुमति मिल गई। अब मस्जिद एक मंदिर के रूप में स्थापित हो चुकी थी। अयोध्या के साथ ही पूरे भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। नवंबर 1989 में लोकसभा चुनाव से पहले विहिप को विवादित स्थल पर शिलान्यास (नींव स्थापना समारोह) करने की अनुमति दे दी गई। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रथ पर सवार होकर सोमनाथ से अयोध्या तक 10,000 किमी की यात्रा शुरू की। विनय कटियार और आडवाणी को बिहार की सीमा में प्रवेश करते ही तत्कालीन लालू प्रसाद यादव सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। यह भूमि मुस्लिम और सनातन पक्षों के मध्य विवाद मुख्य कारण रही। विहिप के आंदोलन ने गति पकड़ी जिसके कारण पूरे भारत में सन 1990 में दंगे हुए। 1989 में राजीव गांधी चुनाव हार गए। इसके बाद 1991 में पुनः चुनाव हुए और कांग्रेस की सरकार बनी। 1991 में राजीव गांधी की बम विस्फोट से मृत्यु हो चुकी थी। भारत के प्रधानमंत्री बने P.V. नरसिम्हा राव ने इस विवाद को सुलझाने हेतु कई बार सर्वदलिय बैठक बुलाई। इसके बाद सभी धर्म के नेताओं को बुला कर निपटारे के प्रयास किए। भाजपा राम मंदिर निर्माण हेतु विहिप के आंदोलन में शामिल हो गई। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में भाजपा सत्ता में आई। विश्व हिंदू परिषद ने 6 दिसंबर 1992 को कारसेवा द्वारा मंदिर निर्माण का कार्यक्रम रखा गया। केंद्र सरकार को राज्य सरकार ने शपथ पत्र के माध्यम से किसी भी स्थिति को संभाले में सक्षम होने का भरोसा दिलवाया। इस समय उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे कल्याण सिंह। केंद्र ने अर्द्ध सैनिक बल भेजा परंतु राज्य सरकार द्वारा उसे रोक लिया गया। विहिप, भाजपा, RSS, बजरंग दल, और हिंदू वाहिनी के कार्यकर्ता सीढ़ियां, रस्से, गेंतियाँ, हथौड़े और विध्वंश का सामान ले कर बड़े जुलूस के रूप में 06 दिसंबर 1992 को सुबह अयोध्या की सड़कों पर निकल पड़े। रैली के आयोजकों द्वारा मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचाने की सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत वचनबद्धता के बावजूद एक लाख पचास हजार के करीब लोगों की भीड़ ने बाबरी ढांचे को गिरा दिया। मुंबई और दिल्ली सहित कई प्रमुख भारतीय शहरों में इस कारण हुए दंगों में 2,000 से अधिक लोग मारे गये। मुस्लिम पक्ष का यहां आना - जाना कम हो गया और सनातन पक्ष का आना - जाना अधिक। राज्य सुरक्षा बल मूकदर्शक बने रहे और कार सेवक मस्जिद पर चढ़ गए। उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी, विनय कटियार सहित सभी नेता (अप्रत्यक्ष रूप से) भीड़ को प्रोत्साहित कर रहे थे, और मस्जिद को नष्ट करना प्रारंभ कर दिया, देखते ही देखते कुछ ही घंटों में मस्जिद का मलबा वहां से साफ कर दिया गया। पूरे घटनाक्रम को सुरक्षा बल जिन्हें मस्जिद की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था मूकदर्शक बन कर देख रहा था। IB के पूर्व संयुक्त निदेशक मलय कृष्ण धर ने 2005 की एक पुस्तक में दावा किया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की योजना 10 महीने पहले RSS, BJP और VHP के शीर्ष नेताओं द्वारा बनाई गई, इन लोगों ने इस मसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव द्वारा किए गए उपायों पर सवाल उठाया। धर ने दावा किया है कि उनकी एक महत्वपूर्ण बैठक की रिपोर्ट तैयार करने का प्रबंध करने का उन्हें निर्देश दिया गया था और उस बैठक ने "इस शक की गुंजाइश को परे कर दिया कि उन लोगों (RSS,BJP,VHP) ने आने वाले महीने में विशेष हमले की योजना बनाई और दिसंबर 1992 में अयोध्या में मौत के तांडव का निर्देशन किया। बैठक में मौजूद, RSS,BJP,VHP और बजरंग दल के नेता काम को योजनाबद्ध रूप से अंजाम देने की बात सर्वसम्मति से तैयार हो गए। उनका दावा है कि बैठक की टेप को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अपने बॉस के हवाले किया और बॉस ने वह टेप प्रधानमंत्री (नरसिम्हा राव) और गृह मंत्री (SB चव्हाण) को दिखा दिया। लेखक ने दावा किया है कि यहां एक मूक समझौता हुआ, जिसमें अयोध्या ने उन्हें राजनीतिक लाभ उठाने के लिए हिंदुत्व की लहर को शिखर पर पहुंचाने का अद्भुत अवसर प्रदान किया। नरसिम्हा राव ने राज्य की भाजपा सरकार को जिम्मेदार मानते हुए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। आगामी चुनाव में भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही। विहिप गांव - गांव गली - गली में ईंट पूजन करवाने लगी। अयोध्या में बहुत बड़ी जगह पर राम मंदिर हेतु पत्थर लाए जाने लगे। कई हजार मजदूर लग कर रात - दिन पत्थरों की गढ़ाई का काम कर रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अदालत का फैसला लिखा जा चुका है बस सुनाने की आवश्यकता है। 1992 में इसी कारण बड़े दंगे हुए जिसमें मुंबई बम हादसा बड़ा नुकसान था। दंगे चलते रहे BJP RSS, VHP,बजरंग दल और हिंदू वाहिनी अपने एजेंडे के अनुसार कार्य करते रहे। केंद्र और राज्यों में भाजपा मजबूत होती गई। वर्ष 2002 में गुजरात दंगे भारत के मस्तिष्क पर कलंक साबित हुए जिस से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकरी हुई। स्वतंत्र मीडिया के अनुसार यह दंगे सरकार द्वारा प्रायोजित थे जिसमें सरकारी मशीनरी भी सम्मिलित थी। दंगों की भयावहता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक सासंद को उनके घर में जला कर मार डाला गया। स्त्रियों के पेट चीर कर भ्रूण को सड़कों पर पटक - पटक कर मार डाला गया। सरे आम सड़क पर महिलाओं की इज्जत लूटी गई। तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। अमेरिका सहित कई देशों ने उनके वहां आने पर प्रतिबंध लगा दिया जो प्रधानमंत्री बनने के बाद उठाया गया। दो से अधिक दशक तक अदालती लड़ाई चलती रही। वर्ष 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संतुलित फैसले द्वारा विवादित भूमि तीन बराबर भागों में बांट दी। एक भाग सनातन पक्ष को, एक भाग मुस्लिम पक्ष को और एक भाग निर्मोही अखाड़े को दिया गया। उस फैसले के विरुद्ध सनातन और मुस्लिम दोनों पक्षों ने उच्च न्यायालय में अपील की। मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया और सन 2019 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के विशेषाधिकार (अनुच्छेद142) का उपयोग करते हुए विवादित भूमि सनातन पक्ष को सौंप दी। वर्ष 2019 के फैसले के अनुसार संपूर्ण विवादित भूमि सनातन पक्ष को और निकट के गांव में मुस्लिम पक्ष को दूसरी मस्जिद के निर्माण हेतु आवंटित कर दी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सन 2020 में राम मंदिर बनाने हेतु वहां खुदाई शुरू की गई।
विध्वंस के परिणाम - विध्वंस के बाद कारसेवकों की गिरफ़्तारी के विरोध में सतीश चंद्र पांडे नमक व्यक्ति ने 22 जनवरी 1993 को लखनऊ से दिल्ली जाने वाली इंडियन एयरलाइंस की फ़्लाइट 810 को हाईजैक करने का प्रयास किया। पांडे ने गिरफ़्तार लोगों की रिहाई और मस्जिद की जगह पर मंदिर के निर्माण की मांग की। पांडे ने अंततः आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें चार साल की जेल की सज़ा सुनाई गई।
सांप्रदायिक हिंसा - बाबरी मस्जिद के विध्वंस से देश भर में मुस्लिम आक्रोश भड़क उठा, जिससे कई महीनों तक अंतर-सांप्रदायिक दंगे भड़के , जिसमें सनातनियों और मुसलमानों ने एक-दूसरे पर हमला किया। घरों, दुकानों और धार्मिक स्थलों को जलाया और लूटा गया। कई BJP नेताओं को हिरासत में ले लिया गया, और VHP को सरकार ने कुछ समय के लिए प्रतिबंधित कर दिया। मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, कानपुर, दिल्ली, भोपाल सहित अन्य शहरों में दंगे फैल गए और 2000 से अधिक मौतें हुईं जिनमें अधिक मौत मुस्लिम समुदाय के लोगों की हुई।मुंबई दंगों में (दिसंबर 1992 से जनवरी 1993) लगभग 900 लोग मारे गए। 1993 के मुंबई बम विस्फोट भी इसी का कारक रहा। इंडियन मुजाहिदीन सहित जिहादी समूहों ने अपने आतंकवादी हमलों के लिए बाबरी मस्जिद के विध्वंस का हवाला दिया।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ -
पाकिस्तान - पाकिस्तान की सरकार ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस के विरोध में 7 दिसंबर को कार्यालय और स्कूल बंद कर दिए। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने औपचारिक शिकायत दर्ज करने के लिए भारतीय राजदूत को बुलाया और मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा के लिए भारत पर दबाव बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सम्मेलन के संगठन से अपील करने का वादा किया। पूरे देश में हड़तालें हुईं, जबकि मुस्लिम भीड़ ने एक दिन में आग और बुलडोजर के जरिए कई मंदिरों पर हमला किया और उन्हें नष्ट कर दिया, लाहौर में भारत की राष्ट्रीय एयरलाइन, एयर इंडिया के कार्यालय पर हमला हुआ। जवाबी हमलों में भारत और सनातन धर्म के विनाश का आह्वान करने वाली भीड़ की बयानबाजी हो रही थी। इस्लामाबाद में कायदे आजम यूनिवेसिटी के छात्रों ने प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव का पुतला जलाया। बाद के वर्षों में, भारत आने वाले हज़ारों पाकिस्तानी सनातनियों ने विध्वंस के बाद बढ़ते उत्पीड़न और भेदभाव का हवाला देते हुए लंबे वीज़ा और कुछ मामलों में भारत की नागरिकता की मांग की।
बांग्लादेश - विध्वंस के बाद, बांग्लादेश में मुस्लिम भीड़ ने मंदिरों , दुकानों और घरों पर हमला कर आग लगा दी। भारत - बांग्लादेश क्रिकेट मैच तब बाधित किया गया। भीड़ ने ढाका में बंग बंधु राष्ट्रीय स्टेडियम पर हमला करने की कोशिश की। एयर इंडिया के ढाका कार्यालय पर हमला कर जला दिया जिसमें कथित तौर पर 10 लोग मारे गए। कई मंदिर और घर नष्ट हो गए। हिंसा के बाद बांग्लादेशी सनातन समुदाय को 1993 से दुर्गा पूजा के उत्सव कम करने हेतु मजबूर होना पड़ा।
मध्य पूर्व - अबू धाबी शिखर बैठक में खाड़ी सहयोग परिषद ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की कड़ी निंदा की। इसने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें इस कृत्य को मुस्लिम पवित्र स्थानों के खिलाफ अपराध बताया गया। इसके सदस्य देशों में, सऊदी अरब ने इस कृत्य की कड़ी निंदा की। अबू धाबी से 250 किलोमीटर (160 मील) पूर्व में अल-ऐन में, गुस्साई भीड़ ने एक भारतीय स्कूल की लड़कियों की शाखा में आग लगा दी। इस हिंसा में शामिल लोगों को यूएई पुलिस ने गिरफ्तार किया और निर्वासित कर दिया। दुबई पुलिस बल के कमांडर-इन-चीफ धाही खल्फान तमीम ने देश में विदेशी नागरिकों द्वारा की गई हिंसा की निंदा की।
ईरान - ईरानके नेता अयातुल्ला अली खुमैनी ने विध्वंस की निंदा की और भारत से अपनी मुस्लिम आबादी की सुरक्षा के लिए और अधिक करने का आह्वान किया। हालांकि इसकी सरकार ने घटनाओं की निंदा की।
यूनाइटेड किंगडम - ब्रिटेन में भीड़ द्वारा कई मंदिरों पर हमला किया गया जिसके बदले में कार्रवाई होने का संदेह है। हमलों में पेट्रोल बम विस्फोट और आगजनी शामिल थी। मंदिरों और अन्य सांस्कृतिक इमारतों पर हमला किया गया। एक मंदिर आग से पूरी तरह नष्ट हो गया।
लिब्राहन आयोग - सन 1992 के बाबरी विध्वंश की कार्यवाही की जांच करने हेतु सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनमोहन सिंह लिब्रहान के नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया गया। सन 2009 तक कोई रिपोर्ट जारी नहीं की गई थी। विभिन्न सरकारों द्वारा 48 बार अतिरिक्त समय की मंजूरी पाने वाला, भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक काम करने वाला आयोग लिब्राहन आयोग है। इस घटना के l6 साल से भी अधिक समय के बाद 30 जून 2009 प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट नवंबर 2009 को मीडिया में लीक हो गई। इस रिपोर्ट ने 1992 की घटना के लिए भारत सरकार के उच्च पदस्थ अधिकारियों और सनातन चरमपंथियों को दोषी ठहराया। 6 दिसम्बर 1992 को कार सेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद विध्वंस के दिन जो कुछ भी हुआ था, लिब्रहान रिपोर्ट ने उन सभी का बारीकी से अध्ययन कर उल्लेख किया। रिपोर्ट के अनुसार, रविवार की सुबह लालकृष्ण आडवाणी और अन्य लोग विनय कटियार के घर पर मिले जहां से वे विवादित ढांचे की ओर चले। नेता लोग पूजा की वेदी पर पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक रूप से कार सेवा होनी थी, आडवाणी व जोशी ने 20 मिनट तक तैयारियों का जायजा लिया। इसके बाद दोनों नेता 200 मीटर दूर रामकथा कुंज के लिए रवाना हो गए। विवादित ढांचे के सामने की इमारत के पास एक मंच का निर्माण किया गया। दोपहर में, एक किशोर कार सेवक कूद कर गुंबद के ऊपर पहुंच गया और उसने बाहरी घेरे को तोड़ देने का संकेत दिया। रिपोर्ट कहती है कि इस समय आडवाणी, जोशी और विजय राजे सिंधिया ने या तो गंभीरता से या मीडिया का लाभ उठाने के लिए कार सेवकों से उतर आने का औपचारिक अनुरोध किया। परन्तु स्थल के अंदर नहीं जाने या ढांचे को न तोड़ने की कार सेवकों से कोई अपील नहीं की गई। नेताओं के ऐसे चुनिंदा कार्य विवादित ढांचे के विध्वंस को पूरा करने के उन सबके भीतर छिपे के इरादों का खुलासा करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार रामकथा कुंज में मौजूद के नेता सरलता से पहुंच कर विध्वंस को रोक सकते थे। 2009 के अंत में जारी रिपोर्ट के अनुसार सामने आया कि इस कार्यवाही में BJP, VHP,बजरंग दल, RSS और हिंदू वाहिनी के कई प्रमुख नेता दोषी थे। आयोग ने मस्जिद विध्वंस के लिए 68 लोगों को दोषी ठहराया जिनमें अधिकतर BJP नेता और कुछ अफसर हैं। इस रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को दोषी ठहराया गया। उत्तर प्रदेश सरकार पर अयोध्या में ऐसे नौकरशाहों और पुलिस कार्मिकों को तैनात करने का आरोप लगाया जो विध्वंस के समय मूक दर्शक बन कर खड़े रहें। आईपीएस अधिकारी अंजू गुप्ता अभियोजन गवाह के रूप में पेश की गईं। विध्वंस के दिन वे आडवाणी की सुरक्षा प्रभारी थीं और उन्होंने खुलासा किया कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने भड़ाकाऊ भाषण दिए। आयोग की रिपोर्ट और साक्ष्यों के बावजूद केंद्र सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। कोर्ट ने सरकार की ढुलमुल नीति और पैरवी के कारण सभी दोषियों को बरी कर दिया। 30 सितंबर 2020 को अदालत ने मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और कई अन्य सहित सभी 32 आरोपियों को अनिर्णायक सबूतों के आधार पर बरी कर दिया। विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव ने कहा, "विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था।"
लाल कृष्ण आडवाणी
विनय कटियार
मुरली मनोहर जोशी
कल्याण सिंह
विजया राजे सिंधिया
नरसिम्हा राव
शंकर राव चह्वाण
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय 2010 -अयोध्या विवाद पर बड़ा फैसला 30 सितंबर 2010 को आया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन जजों की पीठ ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि को मुस्लिमों, रामलला और निर्मोही अखाड़े के बीच यह भूमि तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 285 पन्नों के निर्णय में कई अहम टिप्पणियां हुए कहा कि यह जमीन एक ऐसा छोटा सा टुकड़ा है, जहां देवता भी पैर रखने से डरते हैं। यह टुकड़ा एक तरह से बारूदी सुरंग की तरह है, जिसे हमने साफ करने की कोशिश की है। जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एस.यू. खान और जस्टिस धर्मवीर शर्मा की पीठ ने आगे कहा, 'हमें ऐसा न करने की सलाह दी गई थी कि कहीं इस बारूद से आपके परखच्चे उड़ जाएं। मगर जीवन में जोखिम लेने पड़ते हैं। हम वह फैसला दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामें बैठा है। अदालत ने कहा कि विवादित स्थल पर सनातन ,मुस्लिम और निर्मोही अखाड़े का संयुक्त मालिकाना हक है। भूमि के नक्शे को अयोध्या के आयुक्त शिवशंकर लाल ने कोर्ट के आदेशानुसार तैयार किया। विवादित तीन गुंबद वाले ढांचे के केंद्रीय गुंबद के नीचे वाला स्थान रामलला को मिला जहां 1949 में की मूर्ति स्थापित की गई थी। निर्मोही अखाड़े को राम चबूतरा और सीता रसोई का भाग दिया गया। मुस्लिम पक्ष को नमाज पढ़ने हेतु एक भाग दिया गया। इस फैसले से तीनों पक्ष असंतुष्ट रहे और मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश -
सुप्रीम कोर्ट के पांच जज जिन्होंने अयोध्या विवाद पर निर्णय दिया।
09.11.2019 के SC निर्णय मुख्य बिंदु
सुप्रीम कोर्ट ने किसी साक्ष्य की वास्तविकता के स्थान पर मामला निपटाने हेतु आस्था के नाम पर नियम 142 के अंतर्गत निर्णय दिया।
2.77 एकड़ (1.12 हेक्टेयर)
भू भाग
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का 285 पृष्ठ का निर्णय
2019 का सुप्रीम कोर्ट का 1045 पृष्ठ का निर्णय
5 जजों द्वारा 40 दिन लागतार सुनवाई
सर्वोच्च न्यायालय में मामला -
सर्वोच्च न्यायालय ने 7 वर्ष बाद 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ गठित कर इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन शुरू की। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा कर 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित अर दिया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि 5 दिसंबर 2017 से इस मामले की अंतिम सुनवाई शुरू की जाएगी। 134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 (1.12 हेक्टेयर) एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बने और इसकी योजना तैयार की जाए। चीफ जस्टिस ने मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दिए जाने का फैसला सुनाया, जो कि विवादित जमीन की करीब दोगुना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्म स्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। 6 अगस्त से 16 अक्टूबर तक इस मामले पर 40 दिन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। संविधान पीठ द्वारा शनिवार को 45 मिनट तक पढ़े गए 1045 पन्नों के फैसले ने देश के इतिहास के सबसे अहम और सबसे पुराने विवाद का अंत कर दिया। चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसए बोबोडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस अब्दुल नजीर की पीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर को अहम स्थान पर ही बनाया जाए। रामलला विराजमान को दी गई विवादित जमीन का स्वामित्व केंद्र सरकार के पास रिसीवर के रूप में रहेगा।
9 नवंबर, 2019 को, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सभी फैसले निरस्त करते हुए कहा कि भूमि सरकार के कर रिकॉर्ड के अनुसार है। इसने हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए भूमि को एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया। इसने सरकार को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया।
फैसले के मुख्य बिंदु -
रामलला विराजमान/मंदिर -
9 नवंबर 2019 को निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच जज ने 05/0 मत से 1045 पृष्ठ का निर्णय दिया।
वाद का शीर्षक - M Siddiq (D) Thr Lrs v. Mahant Suresh Das & Ors
खंडपीठ -
1. रंजन गोगोई (CJI)
2. शरद अरविंद बोबडे
3. धनञ्जय यशवंत चंद्रचूड़,
4. अशोक भूषण
5. एस. अब्दुल नजीर
निर्णय का मत है- 5/5 सर्वसम्मति से निर्णय।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत निर्णय पारित किया जिसमें -
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय को आम जनता के लिए पूर्ण न्याय करने हेतु आदेश जारी करने का अधिकार है। इस अनुच्छेद के तहत, सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार मिलते हैं -
1. सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करके किसी भी मामले में ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या आदेश दे सकता है, जो उस मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए ज़रूरी हो।
2. सुप्रीम कोर्ट के जज अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर ऐसा कोई भी फ़ैसला दे सकते हैं, जो संविधान का उल्लंघन न करता हो।
3. सुप्रीम कोर्ट का आदेश तब तक प्रभावी रहता है, जब तक उस मामले में कोई अन्य कानून लागू नहीं किया जाता।
4. सुप्रीम कोर्ट किसी व्यक्ति की मौजूदगी और किसी दस्तावेज़ की जांच के लिए आदेश दे सकता है।
5. सुप्रीम कोर्ट अवमानना और सज़ा को सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कदम उठाने का निर्देश भी दे सकता है।
6. सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कई मामलों में किया गया है -
1. तलाक के मामलों में, सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत तलाक दे सकता है।
2. गैर-दलित बच्चों को सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण देने हेतु अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल किया गया।
न्यायालय में पढ़ा गया - 45 मिनिट
निर्णय -
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा- राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं। ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है, हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। विवादित 2.77 एकड़ जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। इसका स्वामित्व केंद्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगा। 3 महीने के भीतर ट्रस्ट का गठन कर मंदिर निर्माण की योजना बनाई जाए।
सुन्नी वक्फ बोर्ड
अदालत ने कहा- उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित जमीन पर अपना दावा साबित करने में विफल रहा। मस्जिद में इबादत में व्यवधान के बावजूद साक्ष्य यह बताते हैं कि प्रार्थना पूरी तरह से कभी बंद नहीं हुई। मुस्लिमों ने ऐसा कोई साक्ष्य पेश नहीं किया, जो यह दर्शाता हो कि वे 1857 से पहले मस्जिद पर पूरा अधिकार रखते थे।
बाबरी मस्जिद-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- "मीर बकी ने बाबरी मस्जिद बनवाई। धर्मशास्त्र में प्रवेश करना अदालत के लिए उचित नहीं होगा। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनाई गई थी। मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था।
बाबरी विध्वंस -
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एकदम स्पष्ट है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी गलती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था।
नई मस्जिद-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अदालत अगर उन मुस्लिमों के दावे को नजरंदाज कर देती है, जिन्हें मस्जिद के ढांचे से पृथक कर दिया गया तो न्याय की जीत नहीं होगी। इसे कानून के हिसाब से चलने के लिए प्रतिबद्ध धर्मनिरपेक्ष देश में लागू नहीं किया जा सकता। गलती को सुधारने के लिए केंद्र पवित्र अयोध्या की अहम जगह पर मस्जिद के निर्माण के लिए 5 एकड़ जमीन दे।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद बाबरी मस्जिद के लिए अयोध्या शहर से 26 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ ज़मीन आवंटित की गई, जहां मस्जिद का नक्शा स्थानीय प्राधिकरण से पास होना अभी बाक़ी है। मस्जिद के निर्माण का काम इसके बाद शुरू हो पाएगा।
धर्म और आस्था-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अदालत को धर्म और श्रद्धालुओं की आस्था को स्वीकार करना चाहिए। अदालत को संतुलन बनाए रखना चाहिए। हिंदू इस स्थान को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं। मुस्लिम भी विवादित जगह के बारे में यही कहते हैं। प्राचीन यात्रियों द्वारा लिखी किताबें और प्राचीन ग्रंथ दर्शाते हैं कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है। ऐतिहासिक उद्धहरणों से संकेत मिलते हैं कि हिंदुओं की आस्था में अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि रही है। ASI की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के नीचे जो ढांचा था, वह इस्लामिक ढांचा नहीं था। ढहाए गए ढांचे के नीचे एक मंदिर था, ASI इस तथ्य की पुष्टि कर चुका है। पुरातात्विक प्रमाणों को महज एक ओपिनियन करार दे देना ASI का अपमान होगा। यह सही है कि ASI यह तथ्य स्थापित नहीं कर पाया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई। न्यायालय ने कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से प्राप्त पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण एक "संरचना" पर किया गया था, जिसकी वास्तुकला स्पष्ट रूप से स्वदेशी और गैर-इस्लामी थी। मुस्लिम पक्षों द्वारा एएसआई के विभिन्न वैज्ञानिक दावों के संबंध में उठाई गई आपत्तियों पर, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, प्रतिवादी पक्ष इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष उठा सकते थे क्योंकि इसके लिए कानूनी उपचार उपलब्ध थे। भारत की सर्वोच्च अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से प्रस्तुत एएसआई रिपोर्ट एक "सामान्य राय" नहीं थी। किसी मौजूदा इमारत के नीचे किसी प्राचीन धार्मिक संरचना के खंडहर हमेशा यह संकेत नहीं देते कि इसे शत्रुतापूर्ण शक्तियों द्वारा ध्वस्त किया गया था।
अलीगढ़ के इतिहासकारों द्वारा लिखित और सबूत के रूप में प्रस्तुत की गई द हिस्टोरियंस रिपोर्ट टू द नेशन पर , अदालत ने टिप्पणी की: "अधिक से अधिक, इस रिपोर्ट को एक राय के रूप में लिया जा सकता है।
निर्णय के समर्थन में -
अदालत ने पाया कि चारों जन्मसाखियों (पहले सिख गुरु , गुरु नानक की जीवनी ) में स्पष्ट रूप से और विस्तार से बताया गया है कि गुरु नानक ने अयोध्या की तीर्थयात्रा की और 1510 - 11 ई. में राम मंदिर में प्रार्थना की। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि निहंग सिखों के एक समूह ने 1857 में मस्जिद में इबादत की थी।
न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत मुस्लिम पक्ष विवादित भूमि पर अपना विशेष अधिकार स्थापित करने में विफल रहे। न्यायालय ने कहा कि सनातन पक्षकारों ने यह साबित करने के लिए बेहतर सबूत पेश किए कि उन्होंने ने मस्जिद के अंदर लगातार पूजा की, और मानते थे कि यह भगवान राम का जन्मस्थान है। न्यायालय ने कहा कि 1856 - 57 में लगाई गई लोहे की रेलिंग मस्जिद के भीतरी प्रांगण को बाहरी प्रांगण से अलग करती थी, और बाहरी प्रांगण पर सनातनियों का विशेष अधिकार रहा। न्यायालय ने कहा कि इससे पहले भी सनातनियों की मस्जिद के भीतरी प्रांगण तक पहुंच थी।
निर्मोही अखाड़े के संबंध में -
न्यायालय ने फैसला सुनाया कि निर्मोही अखाड़े द्वारा दायर मुकदमे को बरकरार नहीं रखा जा सकता और उसके पास कोई शेबैत अधिकार नहीं है। हालांकि, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि निर्मोही अखाड़े को न्यासी बोर्ड में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।
शिया वक्फ बोर्ड के संबंध में -
न्यायालय ने बाबरी मस्जिद के स्वामित्व के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के खिलाफ शिया वक्फ बोर्ड द्वारा किए गए दावे को खारिज कर दिया।
सभी याचिकाओं का निस्तारण -
12 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की समीक्षा की मांग वाली सभी 18 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
निर्णय के संकेतक -
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की मौजूदगी इस स्थान की धार्मिक वास्तविकता के सबूत हैं। हालांकि, आस्था और विश्वास के आधार पर मालिकाना हक तय नहीं किया जा सकता है। यह केवल विवाद के निपटारे के संकेतक हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय -
एक जज की पुस्तक के हवाले से -
हम पाँच जजों ने अयोध्या का फ़ैसला दिया। रात में ताज होटल में पार्टी की। सबसे महँगी दारू पी। खर्चा मैंने उठाया। हाथ में हाथ डालकर श्रृंखला बनाई। फ़ोटो खिंचवाई। किताब में छाप दिया। रिटायरमेंट के बाद अशोक भूषण और मुझे इनाम मिल गया है। चंद्रचूड़ समेत बाक़ी क़तार में हैं। ईवीएम एवं अयोध्या मामले का जजमेंट होने के ठीक पहले एक गंभीर साजिश रची गई । चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया न्यायमूर्ति रंजन गोगोई जी के ऊपर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा जो कि उन्हीं की स्टॉफ़ महिला थी। जज साहब को ब्लैकमेल करके बीजेपी एवं आर एस एस ने दोनों फैसले अपने पक्ष में करवाया। फैसला पक्ष में आ जाने के बाद आरोपी एवं पीड़ित महिला दोनों निर्दोष साबित हो गए। और उसी महीने जज साहब राज्य सभा सदस्य नामित किए गए।
सुर्खियों में अयोध्या -
अक्टूबर 2023 में अयोध्या फिर सुर्खियों में रहा जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नए, भव्य राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी, 2024 को अभिषेक ( प्राण प्रतिष्ठा ) समारोह की अध्यक्षता की। उद्घाटन के लिए व्यापक व्यवस्था की गई थी, जिसमें हजारों आध्यात्मिक नेताओं, संतों और विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियां सम्मिलित हुई।
चार शंकराचार्य - द्वारका , गुजरात में हिंदू मठों के धार्मिक प्रमुख ; ज्योतिर्मठ, उत्तराखंड ; पुरी , ओडिशा ; और श्रृंगेरी, कर्नाटक - ने मंदिर निर्माण पूरा न होने पर प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करने पर चिंता व्यक्त की, शशिकांत दास और महंत नारायण गिरि जैसे अन्य धार्मिक नेताओं ने समारोह सौभाग्य की घटना बताया।
मुख्य मंदिर का कुल क्षेत्रफल 57,400 वर्ग फीट (5,330 वर्ग मीटर) होगा और इसमें तीन मंजिलें और 12 द्वार होंगे। नया मंदिर अयोध्या और उसके पड़ोसी शहरों में हज़ारों नौकरियाँ पैदा करेगा।
कोर्ट सामरी -
1. सन 1950 में, गोपाल सिंह विशारद ने विवादित स्थल पर पूजा (उपासना) करने पर रोक लगाने की मांग करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया। इसी तरह का एक मुकदमा शीघ्र ही दायर किया गया था, लेकिन बाद में अयोध्या के परमहंस दास ने वापस ले लिया।
2. सन 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल का संरक्षक होने का दावा करते हुए, इसका प्रभार सौंपने के निर्देश की मांग करते हुए एक तीसरा शीर्षक मुकदमा दायर किया।
3. उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने स्थल की घोषणा और कब्जे के लिए चौथा मुकदमा दायर किया।
5. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पीठ ने 2002 में मामले की सुनवाई शुरू की, जो 2010 में पूरी हुई।
6. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय के फैसले को स्थगित करने की याचिका खारिज करने के बाद राम लला की मूर्ति का स्थान राम लला विराजमान (स्थापित शिशु राम देवता) का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्ष को मिलेगा। निर्मोही अखाड़े को सीता रसोई और राम चबूतरा प्राप्त करना था, और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को बाकी जगह प्राप्त करनी थी। अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि यथास्थिति तीन महीने तक बनाए रखी जानी चाहिए।
7. तीनों पक्षों ने विवादित भूमि के विभाजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
8. सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2019 से 16 अक्टूबर 2019 तक मामले पर अंतिम सुनवाई की।
9. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर बनाने के लिए जमीन को एक ट्रस्ट (भारत सरकार द्वारा गठित) को सौंपने का आदेश दिया
10. कोर्ट ने सरकार को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को ध्वस्त बाबरी मस्जिद के बदले मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया।
11. 22 जनवरी 2023 को राम मंदिर का शिलान्यास किया गया।
कुछ सच्चाई जो जाननी आवश्यक है -
बीबीसी हिंदी ने 30 साल पहले की 6 दिसंबर 1992 की घटना का सिलसिलेवार घटनाक्रम बताया। देश के तीन वरिष्ठ पत्रकार 6 दिसंबर को अयोध्या में मौजूद थे और अपने-अपने संस्थान के लिए काम कर रिपोर्ट फ़ाइल कर रहे थे।
01-
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा समर्थित, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) अगले दिन अयोध्या में 480 साल पुरानी बाबरी मस्जिद को गिराने वाली है। उसके कार्यकर्ता कई दिनों से वहां विध्वंस का पूर्वाभ्यास कर रहे थे और मस्जिद ढहाने के लिए सभी तरह के सामान से लैस थे।
6 दिसंबर की सुबह, ठीक 10 बजे अयोध्या में संघ परिवार समर्थक कारसेवक बड़ी तादाद में इकठ्ठा होना शुरू हो गए। देश-विदेश के सैंकड़ो पत्रकारों ने भी बाबरी मस्जिद के सामने एक छत पर ख़ुद को तैनात कर लिया था। कारसेवक धीरे-धीरे मस्जिद के पास जमा होने लगे और सुरक्षा घेरे की कंटीली तारों की तरफ़ बढ़ने लगे। संघ परिवार के कुछ कार्यकर्ताओं ने उन्हें रोकने की कोशिश भी की, लेकिन कुछ ही मिनटों में वहां हंगामा हो गया। कारसेवक मस्जिद में घुसना शुरू हो गए। उन्हें अब मस्जिद की दीवारों पर चढ़ते हुए और गुंबदों पर बैठे देखा जा सकता था।
मैं उस समय, बीबीसी के तत्कालीन दक्षिण एशिया प्रमुख मार्क टुली के साथ था। 11 बजकर 20 मिनट पर जैसे ही बाबरी मस्जिद का एक गुंबद गिरा मार्क ने फ़ैज़ाबाद जाने का फ़ैसला किया ताकि वे बाबरी मस्जिद पर हमले की पहली ख़बर दे सकें। उस समय मोबाइल फ़ोन नहीं हुआ करते थे और लंदन में बीबीसी मुख्यालय से संपर्क का एकमात्र तरीका फ़ैज़ाबाद में सेंट्रल टेलीग्राफ़ ऑफ़िस (सीटीओ) था। मैं और मार्क दोपहर 12 बजे के क़रीब फ़ैज़ाबाद पहुंचे जहां मार्क ने अपनी पहली रिपोर्ट फ़ाइल की। दोपहर 1 बजे हम अयोध्या वापस आने लगे जहाँ मस्जिद का बड़ा हिस्सा गिराया जा चुका था। हमें शहर के बाहरी इलाके में भीड़ ने रोक लिया। हम फ़ैज़ाबाद वापस गए और पैरा मिलिट्री फ़ोर्स यानी आरएएफ़ और सीआरपीएफ़ के अयोध्या जाने का इंतज़ार करने लगे।
लेकिन उन्मादी भीड़ ने इन अर्ध सैनिक बलों को अयोध्या और फ़ैज़ाबाद के बीच एक रेलवे क्रॉसिंग पर रोक दिया। क्रासिंग बंद कर दी गई और रास्ते में जले हुए टायर डाल दिए गए। 6 दिसंबर 1992 से एक दिन पहले 5 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाक़ायदा घोषणा की थी कि 6 दिसंबर को सिर्फ़ प्रतिकात्मक कारसेवा होगी। ये निर्देश दिए गए कि समस्त कारसेवक, जो कि देश के विभिन्न कोनों से आए थे, वे सुबह-सुबह सरयू के तट से दो मुट्ठी बालू लेकर बाबरी मस्जिद (जिसे विवादित ढांचा कहते थे) के सामने बने एक सीमेंट के चबूतरे पर गिराएंगे और वहां पर जमा साधु-संत बसूलियों (एक तरह का धारदार हथौड़ा) से उस चबूतरे पर टुक-टुक कर कारसेवा करेंगे। लेकिन उस एलान के 24 घंटे के भीतर वहां जो हुआ, वो इसके बिल्कुल उल्टा था। वीएचपी के उस मीडिया सेंटर तक पहुँचने के लिए लगभग 12 - 13 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती थीं, इससे पहले कि मैं आख़िरी सीढ़ी पर अपने पैर रखता, मैंने अंदर से कुछ ऐसी बात सुनी जिसके बाद मैं जहां था वहीं रूक गया। उस फ़ोन से मेरे सामने जो बात कर रहा था, उसे मैंने ये कहते सुना "हां-हां 200 - 300 बसूलियां, गिटट्, बेलचा, तसला और मोटे वाले खूब लंबे रस्से कल सुबह तक यहां पहुंच जाने चाहिए।" ये सुन कर मेरा माथा ठनका. जैसे ही मैंने अंदर से आने वाली आवाज़ शांत होते सुनी, मैं दो-तीन सीढ़ी नीचे की तरफ़ उतरा ताक़ि अंदर वाले को कोई शक़ ना हो कि मैं उसकी बात सुन रहा था। वो जब नीचे उतरा तब मैं ऊपर चढ़ा, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे की शक्ल नहीं देखी। ऊपर जाकर मैंने पाया कि वहां कोई और नहीं है। उसके बाद मैंने उसी फ़ोन से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के दिल्ली ऑफ़िस को फ़ोन लगाया। मै उस समय इसी अंततराष्ट्रीय एजेंसी के लिए काम करता था। 6 दिसंबर को सुबह मुझे समझ में आया फ़ोन पर हुई उस बातचीत का मतलब का क्या था।
शरत प्रधान संवाददाता ,द राइटर्स।
02 -
हज़ारों की संख्या में कारसेवकों के समूह ने बाबरी मस्जिद की दीवारों पर गैती ( एक तरह का धारदार हथियार) से हमला बोल दिया। ज़मीन से ऊपर मस्जिद की दीवारें बहुत मोटी थीं, लगभग 2.5 फीट की।
दीवार को पतला करना शायद उनके प्लान का हिस्सा था। इस वजह से उन कारसेवकों ने मोटी दीवार में दोनों तरफ़ से झीरी काटना शुरू कर दिया। ऐसा लग रहा था कि सब अपने काम में प्रशिक्षित हैं।
झीरी काटने के बाद दीवार उस जगह से पतली हो गई. तभी उन्हीं में से कुछ लोग सभी दीवारों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चौड़े-चौड़े छेद करने में जुट गए. और जैसे ही छेद कटे, नीचे कुछ लोग रस्सा लेकर तैयार खड़े थे, उन्होंने रस्सा एक छेद से डाल कर दूसरे छेद से बाहर की ओर खींचा और मस्जिद का ढांचा नीचे की तरफ़ खींच दिया। बाबरी मस्जिद एक टीले जैसी ऊंची जगह पर बनी हुई थी। रस्सों के दोनों छोर नीचे लटका दिए गए थे जहां खड़े हज़ारों कारसेवकों को कहा गया कि वो उस रस्से को ज़ोर से खींचे। इस तरह पहला गुंबद गिरा। उसी तारीख़ को दूसरी और तीसरी गुंबद भी इसी तरह ध्वस्त कर दी गई। ये ऐसी घटना थी जिसका किसी को सपने में भी आभास नहीं हो सकता था। सबका मानना था कि मस्जिद पर ऊपर से वार होगा, लेकिन जिसने भी इसको गिराने का प्लान बनाया था, संभवत: उसे मालूम था कि ये काम किसी नई तकनीक से ही मुमकिन है। सीबीआई की जांच में मुझसे भी पूछताछ हुई और जब मैंने उन्हें VHP मीडिया सेंटर पर सुने वार्तालाप को विस्तार से बताया तब उन लोगों ने उस कॉल को ट्रेस कर लिया और फ़ोन पर बात करने वाले भी पकड़े गए। सीबीआई इसी के सहारे उस नतीजे तक पहुँची कि बाबरी मस्जिद को ढहाना एक सोची-समझी साज़िश थी और तमाम गवाहों के बीच में मैं बन गया था एक अहम गवाह। कल्याण सरकार ने एलान कर रखा था कि यूपी पुलिस ख़ुद गोली नहीं ही चलायेगी, केंद्रीय सुरक्षा बलों और सेना का भी इस्तेमाल नहीं करेगी. इससे कारसेवकों का मनोबल सातवें आसमान पर था। उनकी ज़ुबान पर नारा था "अभी नहीं तो कभी नहीं।" संघ परिवार के आह्वान पर अयोध्या पहुँचे दो लाख के क़रीब कारसेवक इस बात से उत्तेजित थे कि नेताओं ने एक दिन पहले केवल सरयू जल और बालू लाकर सांकेतिक कारसेवा का निर्णय क्यों किया।
तब अयोध्या की आबोहवा में कई तरह की ख़बरें तैर रही थीं। इससे पहले आसपास की कुछ मज़ारें तोड़ी जा चुकी थीं और अनिष्ट की आशंका से अनेक मुस्लिम परिवार सुरक्षा के लिए बाहर चले गए थे।
तनाव पूर्ण माहौल के बीच सवा 12 बजे से सॉंकेतिक कार सेवा का मूहुर्त था। अनुशासन क़ायम रखने के लिए सिर पर पीली पट्टी पहने स्वयंसेवकों की टोली हाथ में लाठी लेकर तैनात थी। क़रीब 11 बजे भाजपा के बड़े नेता कारसेवा स्थल पर आये तभी अचानक अफ़रा - तफ़री शुरू हो गई। सिर पर पीली पट्टी बांधे संघ स्वयंसेवकों ने लाठियों भांजीं।
रामदत्त त्रिपाठी,संवाददाता, बीबीसी।
03 -
अप्रैल 2014 में कोबरापोस्ट द्वारा किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में दावा किया गया था कि यह विध्वंस उन्मादी भीड़ का काम नहीं था, बल्कि इतनी गोपनीयता से की गई तोड़फोड़ की कार्रवाई थी कि किसी भी सरकारी एजेंसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। इसने आगे कहा कि तोड़फोड़ की योजना कई महीनों पहले वीएचपी और शिवसेना ने बनाई थी, लेकिन संयुक्त रूप से नहीं।
कोबरापोस्ट एक स्टिंग साइट
04- पुस्तक 6 दिसंबर 1992
नरसिम्हा राव द्वारा लिखित पुस्तक जिसके लिए उन्होंने ने आदेश दिया था कि यह पुस्तक उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित की जाए और तदनुसार यह पुस्तक अगस्त 2006 में प्रकाशित हुई। उनका दावा है कि पुस्तक “आत्म-धार्मिकता या औचित्य का अभ्यास” नहीं है, पुस्तक की सामग्री उनके द्वारा बाबरी मस्जिद के रूप में ज्ञात विवादास्पद संरचना को हटाने से रोकने में विफलता के लिए खुद को और उनकी सरकार को जिम्मेदारी से मुक्त करने के प्रयास का संकेत देती है। नरसिम्हा राव ने जून 1991 में पदभार संभाला और उस समय तक राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद मुद्दा पहले से ही गंभीर खतरे की स्थिति में था, इस मुद्दे को हल करने के लिए राज्य के हस्तक्षेप सहित हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। पुस्तक दो चौंकाने वाले प्रश्नों का उत्तर देने के बजाय स्पष्टीकरण देने का प्रयास करती है, अर्थात्, पूरे भारत से हजारों कारसेवकों के अयोध्या में एकत्र होने के मद्देनजर, जिनमें से कुछ नेपाल और दुनिया के अन्य देशों से भी थे, संघीय सरकार ने विवादास्पद ढांचे को संभावित क्षति से बचाने के लिए आवश्यक और पर्याप्त कदम क्यों नहीं उठाए। संविधान के अनुच्छेद 356 का प्रयोग करके कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त न करने का कारण क्या रहा।
पुस्तक पाठकों को यह समझाने का प्रयास करती है कि भारत सरकार के मुखिया के रूप में या उनकी सरकार की ओर से विवादास्पद ढांचे की रक्षा करने में कोई चूक नहीं हुई। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि "केंद्र सरकार की ओर से कोई चूक नहीं हुई और अगर राज्य सरकार ने कम से कम समय पर और सार्थक रूप से केंद्रीय बल का उपयोग किया होता, तो दिसंबर, 1992 को निश्चित रूप से बाबरी ढांचे को बचाया जा सकता था।"
तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की अक्सर स्थिति को ठीक से न संभाल पाने के लिए आलोचना की जाती रही है। राव ने अपनी पुस्तक अयोध्या 6 दिसंबर 1992 में लिखा है कि यह विध्वंस उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा किया गया "विश्वासघात" था। कल्याण सिंह ने सरकार और कोर्ट को आश्वासन दिया था कि मस्जिद की रक्षा की जाएगी।
PV नरसिम्हा राव तत्कालीन प्रधानमंत्री,
पुस्तक 06 दिसंबर 1992
अयोध्या विवाद और भाजपा -
पुराने विवाद को 1980 के दशक में, विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपनी राजनीतिक आवाज़ बनाकर, उस स्थान पर राम को समर्पित एक मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक जिला न्यायाधीश के फैसले से आंदोलन को बल मिला, जिन्होंने 1986 में फैसला सुनाया कि द्वार फिर से खोले जाएंगे और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दी जाएगी। इस फैसले का समर्थन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनेता राजीव गांधी ने किया , जो उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने शाह बानो विवाद पर खोए हिंदुओं का समर्थन हासिल करने की कोशिश की। कांग्रेस 1989 का आम चुनाव हार गई , और संसद में भाजपा की ताकत 2 सदस्यों से बढ़कर 88 हो गई।
सितंबर 1990 में, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक 10000 किलोमीटर की रथ यात्रा शुरू की। यह उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों से होते हुए अयोध्या तक जाने वाली एक राजनीतिक रैली थी। इस यात्रा का उद्देश्य प्रस्तावित मंदिर के लिए समर्थन जुटाना था और साथ ही मुस्लिम विरोधी भावनाओं को लामबंद करके हिंदू वोटों को एकजुट करना था। आडवाणी को अयोध्या पहुँचने से पहले ही बिहार सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। इसके बावजूद, संघ परिवार के समर्थकों का एक बड़ा समूह अयोध्या पहुँच गया और मस्जिद पर हमला करने का प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप अर्धसैनिक बलों के साथ एक भीषण लड़ाई हुई, जो कई दंगाइयों की मौत के साथ समाप्त हुई। भाजपा ने वीपी सिंह मंत्रालय से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे नए चुनाव कराने की आवश्यकता पड़ी। भाजपा ने केंद्रीय संसद में अपनी सीटों की संख्या में काफी वृद्धि की, साथ ही उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी बहुमत हासिल किया।
वर्तमान में -
12 दिसंबर 1924 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार संपूर्ण भारत में किसी भी धार्मिक स्थल की वर्ष 1947 से पूर्व की स्थिति लागू रहेगी 1991 प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर CJI की पीठ के आदेश अनुसार देश में कहीं भी मंदिरों - मस्जिदों के सर्वे कराने के आदेश हेतु निचली अदालतों के आदेश/सुनवाई पर को रोक लगा दी है।
प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चार सप्ताह बाद सुनवाई का समय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाल दी है। इस दौरान अब इस कानून को चुनौती देने के लिए कोई और याचिका दाखिल नहीं की जाएगी। कोर्ट के अनुसार जब तक सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई कर रहा है तब तक कोई अन्य अदालत अंतिम आदेश पारित नहीं कर सकती। साथ ही अब कोई भी निचली अदालत किसी प्रकार का आदेश नहीं दे सकेंगी। वे सर्वे को लेकर भी कोई आदेश नहीं देंगी। हाल ही में ज्ञान व्यापी मस्जिद, संभल मस्जिद और अजमेर दरगाह की खुदाई कर सर्वे के आदेश निचली अदालतों ने दिए थे।
P.V. नरसिम्हा राव सरकार द्वारा पारित अधिनियम प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट ,प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या पुरातात्विक स्थल या प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958) के तहत संरक्षित किसी भी धार्मिक संरचना पर लागू नहीं होगा। इस एक्ट की धारा 5 के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य में अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले से जुड़े किसी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर यह एक्ट लागू नहीं होगा।
सजा का प्रावधान - एक्ट की धारा 6 के अंतर्गत इसका उल्लंघन करने वाला 3 वर्ष कारावास और जुर्माने के लिए उत्तरदायी होगा।
अयोध्या वर्डिक्ट - सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अयोध्या वर्डिक्ट (सिद्दीक़ vs महंत सुरेश दास) में एक्ट को ले कर अपने विचार सामने रखे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था की यह एक्ट संविधान की धार्मिकता की मूल्यों को प्रकट करता है और प्रतिगमन (retrogession) को निषेध करता है। कोर्ट ने कहा प्रत्येक नागरिक के लिए सकारात्मक एक्ट हैं क्योंकि यह वो नियम हैं जो अनुच्छेद 51ए में उल्लिखित मौलिक कर्तव्यों को व्यवहार में लाते हैं। न तो 1991 के अधिनियम की वैधता और न ही इसकी समीक्षा राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के मालिकाना अधिकार के मामले की उच्चतम न्यायालय की पीठ द्वारा सुनवाई के समय सामने आई। अदालत ने इसे और अधिक संक्षिप्त रूप से रखा और जोर देकर कहा कि ऐतिहासिक गलतियों को लोगों द्वारा कानून को हाथ में लेकर ठीक नहीं किया जा सकता है।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट , 1991 की अधिनियमितता- इस अधिनियम की धारा 2,3 और 4 को चुनौती देने वाली याचिका सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है। याचिका में तर्क दिया गया है कि एक्ट में संदर्भित दिनांक (15.08.1947) के चयन का सनातन, सिख, जैन और बौद्ध धर्म पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सन 927 से 1947 तक मुसलमानों और अंग्रेजों ने भारत पर राज किया और मंदिरों को नष्ट किया। सन 1947 में इस तारीख को फ्रीज करके, यह इन समुदायों को अपने पूजा स्थलों को बहाल करने की अनुमति नहीं देता है। यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है जो समानता और अनुच्छेद 21, जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि यह अनुच्छेद 25,26 और 29 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
एक्ट का आशय -
यह कानून तब बनाया गया जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। इस आंदोलन का प्रभाव देश के अन्य मंदिरों और मस्जिदों पर पड़ रहा था। उस समय अयोध्या के अलावा भी कई विवाद सामने आने लगे। इन सभी मामलों पर विराम हेतु नरसिम्हा राव सरकार यह कानून ले कर आई। वर्ष 1991 से लागू प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल हो सकती है।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट धारा- 2
के अनुसार 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 3
इस धारा के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल के रूप में नहीं बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4(1)
एक्ट की धारा 4(1) के अनुसार 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही यथावत रखा जाएगा।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 4(2)
धारा- 4 (2) के अनुसार यह उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा- 5
में प्रावधान है कि यह एक्ट रामजन्म भूमि - बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।
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