Friday, 31 January 2025

राजा राममोहन राय

राजा राममोहन राय को तत्कालीन सनातन समुदाय में फैली बुराइयों यथा सती प्रथा, जाति प्रथा, छुआछूत, अंधविश्वास और नशे का विरोधी कहा जाता है। उन्होंने बाल विवाह, बहुविवाह, महिलाओं की निरक्षरता और विधवाओं की निम्न स्थिति के विरुद्ध जन जागृति का कार्य किया। 

संक्षिप्त परिचय -
नाम - राममोहन राय 
उपनाम - 
1. राजा 
2.भारत में जनजागरण के अग्रदूत
जाति - बंगाली ब्राह्मण
जन्म - 22 मई 1772
जन्म स्थान - राधानगर, खानाकुल (बंगाल)
मृत्यु - 27 सितंबर 1833 (आयु 61 वर्ष) मृत्यु का स्थान - स्टेपलटन, ब्रिस्टल (इंग्लैंड)
पिता - रमाकांत राय
माता - तारिणी देवी
पत्नी - उमा देवी (मृत्यु - 1833)
संतान - दो पुत्र
1. राधा प्रसाद राय
2. रामप्रसाद राय

विदेश यात्राएं - 
1. इंग्लैंड
2. फ्रांस

जनजागरण हेतु संस्थाएं - 
1. ब्रह्म समाज 
2.आत्मीय सभा
3.प्रेसीडेंसी कॉलेज
4. रॉयल एशियाटिक सोसाइटी
कार्य - 
1.ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी - (1809 से 1814) कलकत्ता में
2.पत्रकार
3.समाज सुधारक 

पत्रकार एवं संपादक के रूप में राजा राम मोहन राय -
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन', 'संवाद कौमुदी', मिरात-उल-उरूस अखबार, (एकेश्वरवाद का उपहार) बंगदूत समाचार पत्रों का संपादन एवं प्रकाशन किया। बंगदूत अखबार में बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषाओ का प्रयोग एक साथ कर उसमें अनोखापन लाया गया। राजाराम मोहनराय ने पत्रकारिता को नई दिशा दी। पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्र एवं समाज की सेवा का मार्ग प्रशस्त किया।

राजाराम मोहनराय की निडरता - 
राजा राम मोहन राय के निडर व्यक्तित्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में ब्रिटिश जज द्वारा भारतीय नागरिक प्रतापनारायण दास को दी गई कोड़े लगाने की सजा से उनकी मृत्यु हो गई, जिसके विरुद्ध राय ने बर्बरता विषयक अंग्रेज जज के विरुद्ध लेख लिख कर नाराजगी का प्रस्फुटन किया।

समाज सुधारक - 
राजा राममोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राष्ट्र सेवा में लग गए।  उनकी लड़ाई अपने ही देश के नागरिकों में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों से रही। बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने पुरजोर विरोध किया। धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की। देवेंद्र नाथ टैगोर उनके सबसे प्रमुख अनुयायी थे। 
राममोहन राय को भारत में सामाजिक - धार्मिक सुधार आंदोलनों का संस्थापक कहा जाता है। उस समय की सब से भयावह कुप्रथा सती प्रथा थी जिसका समूल उन्मूलन किया। मोहनराय ने अंग्रेजी शिक्षा, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी और विज्ञान का भरपूर समर्थन किया।

संस्थाएं -
1.आत्मीय सभा एवं ब्राह्म समाज 
2.एशियाटिक सोसाइटी 
3. प्रेसीडेंसी कॉलेज 

आत्मीय सभा - 
रूढ़िवाद के विरुद्ध स्वतंत्र एवं सामूहिक सोच को बढ़ावा देने हेतु 1815 में राजा राममोहन राय ने कोलकाता में आत्मीय सभा की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य एकेश्वरवादी वेदांतवाद की स्थापना करना था। अनौपचारिक एवं अपंजीकृत सभा की साप्ताहिक बैठकें मानिकतला में स्थित राममोहन राय के बगीचे में आयोजित की जाती थीं जिसमें केवल मुट्ठी भर बंगाली बुद्धिजीवी ही इन बैठकों में भाग लेते थे जिनमें द्वारका नाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर, नन्द किशोर बोस, बृंदाबन मित्रा, संस्कृत विद्वान शिवप्रसाद मिश्र व हरिहरनंद तीर्थस्वामी प्रमुख थे। 1823 में यह संस्था बंद कर दी गई।

आत्मीय सभा एवं ब्राह्म समाज - 
बंगाल में विभिन्न वर्गों में बंटे समाज को एकजुट करने हेतु 1815 में राजा राममोहन राय ने आत्मीय सभा की स्थापना की जिसे 20 अगस्त 1828 बाद ब्राह्म समाज के नाम से जाना गया। ब्रह्मा समाज ने बंगाल में धार्मिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण हेतु स्थापित कार्य किया। राय के निधन के बाद द्वारकानाथ टैगोर एवं देवेंद्रनाथ टैगोर ने इसे आगे बढ़ाया। बाद में इस संस्था से केशव चंद्र सेन भी जुड़ गए। कुछ समय बाद आपसी मतभेद के कारण केशव चंद्र सेन ने 1866 भारत वर्षीय ब्रह्म समाज नाम से पृथक संस्था बनाई।
ब्रह्मा समाज के सिद्धान्त - 
1. ईश्वर एक है और वहीं समस्त संसार का निर्माणकर्ता एवं पालक है।
2. आत्मा अमर है।
3. मनुष्य को अहिंसा अपनानी चाहिए।
4. सभी मानव समान है।
ब्रह्मा समाज के उद्देश्य - 
1. ब्राह्मण धर्म में कुरूतियों को दूर करना।
2. बौद्धिक व तार्किक सिद्धांत अपनाना।
3. एकेश्वरवाद को बढ़ावा देना।
3.समाजिक कुरूतियों को समाप्त करना।
ब्रह्मा समाज के कार्य - 
1. उपनिषद और वेदों की महत्व को सबके सामने लाया गया।
2. समाज में व्याप्त सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह के विरोध में जोरदार संघर्ष।
3. किसानों, मजदूरों, श्रमिकों के हित में कार्य किया।
4. पाश्चत्य दर्शन के उत्तम तत्वों को अपनाने के प्रयास किए गए।
ब्रह्मा समाज की उपलब्धियां - 
1829 में विलियम बेंटिक ने कानून बनाकर सती प्रथा को अवैध घोषित किया।
समाज में जाति, धर्म इत्यादि पर आधारित भेदभाव में कमी आई।

एशियाटिक सोसायटी - 
सन 15 जनवरी 1784 में सर विलियम जॉन द्वारा पार्क स्ट्रीट फोर्ट विलियम,  कोलकाता में स्थापित इस संस्था को आगे बढ़ाने में राममोहन राय का पूर्ण सहयोग रहा। इस संस्था का भवन अब संग्रहालय के रूप में स्थापित है।
एशियाटिक सोसाइटी के उद्देश्य एवं कार्य -
इसका उद्देश्य प्राच्य-अध्ययन को बढ़ावा देना एवं प्राचीन इतिहास और संस्कृति के अध्ययन करना था। विलियम जोन्स ने 1789 में अभिज्ञान शाकुंतलम का अंग्रेजी में अनुवाद किया।
एशियाटिक सोसाइटी भवन

प्रेसीडेंसी कॉलेज भवन - 
प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय - 
राजा राममोहन राय द्वारा 20 जनवरी 1817 में हिंदू कॉलेज के नाम से स्थापित इस संस्थान का नाम 1855 में प्रेसीडेंसी कॉलेज कर दिया गया। बंगाल सरकार ने 7 July 2010 को इसे प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया। संस्था के सह संस्थापक डेविड हेयर, सर एडवर्ड हाइड ईस्ट, राजा राधाकांत देब
बैद्यनाथ मुखोपाध्याय, रानी रासमनि, रसमय दत्त थे। आज इसमें 2000 हजार से अधिक छात्र अध्ययनरत हैं।

राजा राममोहन राय ने एकेश्वर के सिद्धांत को अपनाने हुए आडंबर मुक्त भारत का सपना देखा। राय ने भारत में कुप्रथाओं का विरोध एवं अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने का समर्थन किया

शमशेर भालू खां
9587243963

स्त्रोत -
विभिन्न पत्रिकाएं एवं लेख
बाह्य समाज साहित्य
फोटो -
गूगल के साभार

No comments:

Post a Comment