Saturday, 4 January 2025

मोहमद अली जिन्ना

           मोहम्मद अली जिन्ना 

मोहम्मद अली जिन्ना 
जीवन परिचय एक कहानी
             मोहम्मद अली जिन्ना

मोहम्मद अली जिन्ना व्यक्तिगत परिचय
नाम - मोहम्मद भाई
(वर्ष 1894 में उन्होंने डीड पोल द्वारा नाम बदल कर उपनाम भाई हटा दिया। अब उनका नाम हुआ - मोहम्मद अली जिन्ना
जिन्ना परिवार का काठियावाड़ से मुस्लिम बहुल सिन्ध में बसने के बाद मुस्लिम नामकरण हुआ।

उपनाम - 
1. जिन्ना (पिता के नाम पर)
2. कायदे आजम पाकिस्तान (1947 से)

निवास - 
1. मूल - पंजाब के साहीवाल (राजपूत)
2. पनेली गांव काठियावाड़ (गुजरात) - पड़दादा विवाह के बाद यहां बस गए।
3. कराची (पिता व्यवसाय हेतु कराची बसे)
4. जिन्ना वकालत हेतु मुंबई रहने लगे
5. इसके बाद जिन्ना वकालत हेतु दिल्ली भी रहे।
6. वर्ष 1947 के विभाजन के पश्चात पाकिस्तान इस्लामाबाद चले गए। स्वयं का घर कराची में।
7. खुद के लंदन स्थित घर में लंबी अवधि तक रहे।

पिता का नाम - जिन्न भाई पूंजा (1857 - 1901)
माता का नाम - मीठी बाई
जन्म स्थान - कराची

जन्म - दिनांक 25 दिसंबर 1876
मृत्यु - 11 सितंबर 1948 (तपेदिक और निमोनिया के कारण), गवर्नर हाउस कराची
जाति - पूंजा (खोजा, ख्वाजा, कुलीन) कन्वर्टेड मुस्लिम
सहोदर - दो भाई छः बहन (जिन्ना सब से बड़े)

विवाह
01. वर्ष 1892 में 16 वर्ष की आयु में एमीबाई से जिनका देहांत कुछ सालों बाद हो गया।
02. वर्ष 1916 में रतनबाई (रूटी) पेटिट से जिन्ना को प्रेम, जो बॉम्बे का फूल नाम से प्रसिद्ध। रतनबाई के पिता सर दिनशॉ पेटिट (एक नामी व्यवसायी) ने विवाह से मना कर दिया, कारण था जिन्ना दूसरे धर्म से होने के साथ - साथ आयु में रतन बाई से दोगुने से बड़े थे। वर्ष 1917 में इस्लाम धर्म अपना कर वर्ष 1918 में रूटी ने बालिग हो कर जिन्ना से विवाह किया।
राजनीतिक कार्यो में अतिव्यस्तता के चलते उनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं रह सका। वैवाहिक जीवन बचाने हेतु जिन्ना ने यूरोप यात्रा की, लेकिन 1927 में पति - पत्नी अलग हो गए। 1929 में पत्नी की गम्भीर बीमारी के कारण मौत हो गई, जिसके बाद जिन्ना बेहद दुखी रहने लगे।
संतान - 1919 में बेटी दीना का जन्म हुआ जो वाडिया परिवार की बहु बनी।

भाषा - 
1. गुजराती - मातृ भाषा 
2. अंग्रेजी
3. उर्दू
4. सिंधी
5. कछ भाषा

गुरु
1. आगा खान (नानी के पारिवारिक गुरु)
2. गोपाल कृष्ण गोखले

व्यवसाय - पिता का व्यापारी (जिन्ना बाद में वकील बने)
जिन्ना ने शुरुआत में अंग्रेज व्यापारी मिस्टर ग्राहम (जिन्ना के पिता के पार्टनर) की शिपिंग और ट्रेडिंग कंपनी में कार्य किया। लिंकन इन में शामिल होने और कानून का अध्ययन करने हेतु नौकरी छोड़ दी। 1893 में बैरिस्टर की पढ़ाई हेतु लंदन चले गए।1896 में लगभग 19 वर्ष की आयु में सबसे कम उम्र के बैरिस्टर के रूप में लौटे। जिन्ना ने बैरिस्टर के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई।
लंदन में जिन्ना को राष्ट्रवादी राजनीति (स्वतंत्रता आंदोलन)के प्रति लगाव हुआ और गोपाल कृष्ण गोखले और दादाभाई नौरोजी के साथ इस संघर्ष में कूद पड़े।

पारिवारिक पृष्ठभूमि - जिन्ना के पड़दादा पूर्वज पंजाब के साहीवाल राजपूत थे। उन्होंने इस्माइली खोजों के यहां शादी की थी और काठियावाड़ आ कर बस गए। परिवार इस्माइली (शिया) आगा खान का शिष्य थे। परिवार शिया था परन्तु जिन्ना ने सुन्नी संप्रदाय अपनाया। माता की ओर से वंश में ईरानी जुड़ाव था।

व्यक्तित्व - शरीर से लंबे पतले जिन्ना कुछ अड़ियल थे। उनको अहंकारी राष्ट्रवादी के रूप में जाना जाता था। अहंकार के मामले में सर सैय्यद अहमद खान और जिन्ना के कोल्ड वार में सर सैय्यद ने ही समझौता किया, जिन्ना ने नहीं।
दुबले, घने काले बाल, व्यवस्थित मूंछ, गंभीर एवं आकर्षक आवाज, वेष भूषा कोट पेंट टाई, दिखने में आकर्षक जिन पर  एक ही नजर में सब के चहेते बन जाते। महिला और पुरुष उनकी प्रशंसा करते या ईर्ष्या करते। एक ब्रिटिश जनरल की पत्नी शिमला में वाइसरीगल डिनर में उनसे मिली और इंग्लैंड में अपनी मां को पत्र लिखा
"डिनर के बाद, मुझे मिस्टर जिन्ना से बात करनी थी। वे एक महान व्यक्तित्व हैं। वे बहुत ही सुंदर अंग्रेजी बोलते हैं। वे अपने तौर-तरीके और कपड़े अभिनेता डू मौरियर से और अपनी अंग्रेजी बर्क के भाषणों से सीखते हैं। यदि ऐसा रहा तो वे भविष्य के वायसराय हैं। मैं हमेशा से उनसे मिलना चाहतो थी जो अब मेरी इच्छा पूरी हुई।कवियित्री सरोजिनी नायडू उन पर मोहित थीं। नायडू ने उनके लिए कई कविताएँ लिखीं। आदत से सुस्त और विलासी, नकचढ़े, दबंग, अहंकारी, थोड़े हंसमुख, तर्क संगत, विवेकशील और शर्मीले।

धर्म
ननिहाल से ईरानी शिया (इस्माईली) मुस्लिम
पिता की ओर से पहले शिया फिर सुन्नी मुस्लिम।

शिक्षा - जिन्ना ने सिंध के मदरसातुल इस्लाम और गोकुलदास तेज प्राथमिक विद्यालय, बम्बई से प्राथमिक शिक्षा और कराची के क्रिश्चियन मिशनरी सोसाइटी हाई स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। बम्बई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया।
1893 में बैरिस्टर की पढ़ाई हेतु लंदन के लिंकन इन कॉलेज में दाखिला लिया।

जीवनशैली - 
जिन्ना को उनके विरोधियों सहित गांधी और नेहरू बड़े और प्रभावी वकील के रूप में मानते थे। वकील एवं निवेश के माध्यम से जिन्ना ने अच्छी संपत्ति बनाई। वर्ष 1930 से वकालत द्वारा 40,000 रुपये प्रति महीना कमाई की जो बड़ी रकम थी। जिन्ना का मुंबई के मालाबार हिल्स के साथ - साथ लंदन के हैम्पस्टेड और नई दिल्ली में 10 औरंगज़ेब रोड पर एडविन लुटियंस द्वारा डिज़ाइन किया गया घर था। लंदन के घर में एक अंग्रेज़ ड्राइवर, उनकी बेंटले कार चलाता था और एक अंग्रेज़ नौकर था। डीना के अनुसार उनके घर में एक भारतीय और एक आयरिश मूल के दो रसोइए थे। खाने में जिन्ना को करी - चावल अधिक प्रिय था। जिन्ना बिलियर्ड्स खेलना बहुत पसंद करते थे। जिन्ना की जीवनशैली उच्च वर्ग के अंग्रेज पेशेवर लोगों जैसी रही जिन्हें अपने रूप-रंग पर घमंड था। ऐसा प्रचलित कथन है कि जिन्ना अपनी टाई दो बार नहीं पहनते थे और उनके पास हाथ से सिलवाए गए लगभग 200 विलायती सूट थे। विलासिता के मामले में केवल प्रसिद्ध वकील मोतीलाल नेहरू ही उनकी बराबरी कर सकते थे। पैसा कहां और कितना खर्च करना है इसका पूरा ध्यान रखते थे, व्यर्थ पैसा खर्च नहीं करते। दीना अपने पिता के कुछ शब्द इस तरह दोहराती है "यदि मुसलमानों को दस रुपये मिलते तो वे एक सुंदर स्कार्फ़ खरीदते और बिरयानी खाते जबकि सनातनी वो पैसा बचाते।"
जीवन के अंतिम वर्षों में पाकिस्तान के कायदे-आज़म के रूप में जिन्ना ने मुस्लिम पोशाक, भाषण और सोच को अपनाया। जिन्ना के व्यवहार में इस्लामी धर्मशास्त्र के साथ-साथ एंग्लो-इंडियन समाजशास्त्र का मिश्रण, कंजूसी की हद तक मितव्ययिता, समय की पाबंदी, ईमानदार बेबाकी, सिफ़ारिश से परहेज था जो भारतीय परिवेश के लिए अजनबी था। इस व्यवहार को जिन्ना ने इस्लाम की समझ के साथ जोड़ने का प्रयास किया। 1947 में पाकिस्तान की संविधान सभा में पहले दो भाषण पश्चिमी उदार समाज के कुछ विचारों और मोहम्मद साहब के समय के अरब इतिहास को जोड़ कर बात रखने के प्रयास किए जो समावेशी समाज की स्थापना की ओर संकेत थे।

बिगड़ती तबियत और जिन्ना की वसीयत
साठ वर्ष के जिन्ना ने वर्ष 1939 में बहन फातिमा, अपने राजनीतिक सहयोगी लियाकत अली खान और अपने वकील को अपनी संपत्ति के संयुक्त निष्पादक और ट्रस्टी के रूप में नियुक्त कर अंतिम वसीयत बनाई। इस वसीयत में फातिमा मुख्य लाभार्थी थीं परन्तु बेटी दीना और अन्य भाई-बहनों को भी उनका हिस्सा दिया गया। वसीयत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याल का भी हिस्सा रखा गया। खराब स्वास्थ्य जिसमें 1938 से नसों के तनाव शिकायत रहने लगी। तब से वह नियमित रूप से बीमार रहने लगे। 1945 में लगभग छः माह अस्वस्थ रहे। जिन्ना ने लिखा "तनाव इतना अधिक है कि मैं इसे मुश्किल से सहन कर सकता हूँ।" डॉ. जय पटेल और डॉ. दिनशा मेहता ने उन्हें आराम करने की सलाह दी, पर पाकिस्तान निर्माण हेतु संघर्ष प्रारंभ हो चुका था और जिन्ना के पास समय कम होता जा रहा था।

     जिन्ना के पिता पूंजा भाई जिन्ना
          जिन्ना की माता मीठी बाई 
बहन फातिमा जिन्ना - (1893-1967)
फातिमा जिन्ना पेशे से दंत चिकित्सक थीं। जीवनीकार, राजनेता और पाकिस्तान की संस्थापक के रूप में पहचान बनाई। उन्होंने नागरिक अधिकारों की सुरक्षा हेतु संघर्ष किया। भारत में पाकिस्तान आंदोलन, महिला अधिकार आंदोलन की शुरुआत की। भाभी की मौत के बाद फातिमा ने भतीजी डीना का पालन पोषण किया। भाई जिन्ना की मृत्यु के बाद उन्होंने पाकिस्तानी राजनीति में  जिन्ना परिवार की भूमिका जारी रखी। फातिमा ने वर्ष 1965 में जनरल अयूब खान के विरुद्ध चुनाव लड़ कर सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया। फातिमा को पाकिस्तान की मां के रूप में जाना जाता है।
            बहन रतन बाई जिन्ना
            बहन एमलीबाई जिन्ना 
 जिन्ना बहन फातिमा, पुत्री डीना के साथ
          जिन्ना की बेटी डीना वाडिया 
डीना वाडिया (1919–2017)
डीना का जन्म मुहम्मद अली जिन्ना और रतनबाई जिन्ना (नी पेटिट) के घर 15 अगस्त 1919 की रात को लंदन में हुआ। मां के परिवार के पारसी , डीना ने पारसी नेविल वाडिया से विवाह करना चाहा, जिन्ना के मना करने पर डीना पिता से अलग हो गई। किताब "रोजेज इन दिसंबर" में एमसी छागला लिखते हैं कि जिन्ना ने डीना को पारसी नेविल से शादी करने से रोकने की कोशिश की। इस पर डीना पिता का घर त्याग कर अमेरिका के न्यूयार्क में रहने चली गई। बेटी से जिन्ना के निजी सम्बन्ध कायम रहे। डीना वाडिया अपने भारत में रह गई, जिन्ना पाकिस्तान चले गये।

जिन्ना का वंश वृक्ष - 

अंग्रेज शासन व्यवस्था से जिन्ना के अलगाव की झलक - 
1. एक बार बंबई में जब जिन्ना अदालत में एक मामले पर बहस कर रहे थे तब अंग्रेज जज (न्यायाधीश) ने उन्हें कई बार टोकते हुए कहा बकवास। जिन्ना ने तपाक से उत्तर दिया कि महाराज- सुबह से आपके मुंह से बकवास ही निकला है।
2. सर चार्ल्स ओलिवेंट (बंबई प्रांतीय सरकार के न्यायिक सदस्य) जिन्ना की वाक्पटुता से इतने प्रभावित हुए कि 1901 में 1,500 रुपये वेतन पर सरकारी नौकरी की पेशकश की। जिन्ना ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे जल्द ही एक दिन में इतनी रकम कमा लेंगे। कुछ ही समय बाद उन्होंने खुद को सही साबित किया।
3. वायसराय जनरल लॉर्ड मिंटो ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ व्यवहार का वर्णन ब्रिटिश संदर्भ में किया। जिन्ना ने इसका विरोध कठोर और क्रूर शब्दों में किया। मिंटो ने जिन्ना को फटकार लगाई तो जिन्ना ने जवाब दिया, "माई लार्ड, मुझे और भी सख्त भाषा का इस्तेमाल करने की इच्छा होगी। लेकिन मैं इस परिषद के संविधान से पूरी तरह वाकिफ हूं, और मैं एक पल के लिए भी इसका उल्लंघन नहीं करना चाहता। लेकिन मैं यह जरूर कहता हूं कि भारतीयों के साथ किया जाने वाला व्यवहार सबसे कठोर है और इस देश में यह भावना एकमत है।"

जिन्ना एक चतुर वकील - 
जिन्ना अक्सर अपने अंग्रेज लोगों से दुश्मनी मोल लेते रहते थे। पर वे इतने चतुर थे कि हमेशा सचेत और सीमा के भीतर रहते थे। जहाँ तक संभव था, आगे बढ़ते थे, लेकिन अपने विरोधियों को किसी भी मुद्दे पर घेरने का मौका नहीं देते। जिन्नाअंग्रेजी कानूनो का अंग्रेजों के विरुद्ध कुशलता से उपयोग करते थे। भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री एडविन मोंटेगू ने 1917 में उनके बारे में लिखा था कि जिन्ना बहुत चतुर व्यक्ति हैं। और यह निश्चित रूप से अपमानजनक है कि ऐसे व्यक्ति को अपने देश के मामलों को चलाने का कोई मौका नहीं मिला।

जिन्ना पृथकतावादी क्यों बने - 
वर्ष 1896 से 1913 तक जिन्ना कांग्रेस के सदस्य रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के समय जिन्ना जातिय और धार्मिक पूर्वाग्रह के निशाने पर रहे जिसका उन्हें गहरा आघात लगा। जिन्ना उस समय बॉम्बे में एकमात्र मुस्लिम बैरिस्टर थे। जिन्ना ने मुस्लिम से अलगाववाद की भावना के विरुद्ध आवाज उठाई। जिन्ना एक विशिष्ट भारतीय राष्ट्रवादी थे, जिनका लक्ष्य भारत से अंग्रेज राज समाप्त करना था। आंदोलन के समय जिन्ना ने दो रणनीतियों पर काम किया।
1. ब्रिटिश व्यवस्था के अंदर काम कर विदेशी शासन को समाप्त करना।
2. अंग्रेजों के विरुद्ध सनातनी, मुस्लिम, ईसाइ एवं पारसियों का संयुक्त मोर्चा बना कर धरातल से अंग्रेज राज को समाप्त करना।

जिन्ना की अंग्रेज सेवक मुस्लिम समुदाय से खिन्नता 
अंग्रेजों के प्रति जिन्ना का रवैया हमेशा कड़वा रहा। जिन्ना भारतीय सांस्कृति और सभ्यता पर गर्व करते थे। जिन्ना को तत्कालीन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) की सांस्कृतिक परंपरा से बेहद अलगाव रहा जो दिल्ली में स्थित शाही मुगल दरबार के इर्द-गिर्द घूमती थी और जो अंग्रेजों के कलकत्ता से दिल्ली आने के बाद सरलता से मुगलों से अंग्रेजों की ओर लपक गए। अतिशयोक्तिपूर्ण शिष्टाचार, अतिशयोक्ति, छल-कपट, लंबे और कम झुके हुए सिर, बार-बार माथे को छूने वाले सलाम जो शाही दरबार के प्रति दरबारियों के सम्मान को दर्शाते थे अब अंग्रेजों की ओर झुक गए। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में मुस्लिम पुनर्जागरण के पर्याय सर सैय्यद अहमद खान भी ऐसे परिवार से थे जो पहले मुगलों सेवक थे और सत्ता बदलते ही अपनी वफ़ादारी आसानी से अंग्रेजों को सौंप दी।

मुस्लिम पक्षधर जिन्ना 
जिन्ना बेबाकी से मुस्लिम समाज की आवाज यथा स्थान उठाते रहे जिस के कारण ब्रिटिश अधिकारी उन से नाराज रहते थे। कई बार उन्हें अपमानित भी होना पड़ा। वर्ष 1931 में भारत के वायसराय जनरल लॉर्ड विलिंगटन ने उनके साथ अभद्रता की। वर्ष 1943 में वायसराय जनरल लॉर्ड वेवेल भी मुसलमानों के लिए जिन्ना की स्पष्ट वकालत से असहज महसूस करते थे, भले ही वे जिन्ना के तर्कों की न्याय संगतता को स्वीकार करते थे।अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन जिन्ना के इस जिद्दी और अहंकारी स्वभाव से खिन्न रहते थे। जिन्ना मुस्लिम अधिकारों के लिए लड़ते रहे। वर्ष 1913 में विधान परिषद के माध्यम से मुस्लिम वक्फ विधेयक प्रस्तुत किया। मुस्लिम समाज को उनका पक्षधर  व्यक्ति दिखाई दिया। 1913 में मुस्लिम लीग में शामिल होते हुए उन्होंने कहा मुस्लिम अधिकारों के लिए मुस्लिम लीग संयुक्त भारत के जन्म के हेतु शक्तिशाली कारक के रूप में तेजी से बढ़ रही है जिस पर मुसलमानों के लिए अलगाव के आरोप लगाना दुखद है। 1915 में गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की मृत्यु पर शोक जताते हुए लिखा कि  कुछ सप्ताह बाद टाइम्स ऑफ इंडिया को लिखे पत्र में उन्होंने तर्क दिया कि कांग्रेस और लीग को भारत के भविष्य पर चर्चा करने के लिए मिलना चाहिए, तथा मुस्लिम नेताओं से अपील की कि वे अपने हिंदू 'मित्रों' के साथ तालमेल बनाए रखें।

जेल यात्रा - 
लंबे राजनैतिक कार्यकाल में कई मौकों पर जिन्ना को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने पर राजद्रोह के आरोप में जेल भेजने की धमकियां दी जाती रहीं।

सनातन-मुस्लिम एकता के राजदूत
1896 में इंग्लैंड से लौटते ही जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। 1906 में उन्होंने दादाभाई नौरोजी के सचिव के रूप में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया, जो उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। उनके संरक्षक और समर्थकों में से एक गोपाल कृष्ण गोखले (ब्राह्मण) ने जिन्ना को सनातन - मुस्लिम एकता का राजदूत कहा। वर्ष 1908 में सनातन राष्ट्रवादी बाल गंगाधर तिलक पर अंग्रेजों द्वारा राजद्रोह के आरोप में मुकदमा चलाए जाने पर गोखले की पैरवी जिन्ना ने की।

पद - 
25 जनवरी 1910 को जिन्ना दिल्ली विधान परिषद के साठ सदस्यों में बॉम्बे से मुस्लिम सदस्य के रूप में सम्मिलित हुए। 
भारतीय कांग्रेस के एक सक्रिय सदस्य रहे। जिन्ना 1906 में कलकत्ता में मुस्लिम लीग की स्थापना के सात साल बाद 1913 तक लोगों का इसमें शामिल होने का विरोध करते रहे। इसके बाद कई बार लीग के अध्यक्ष रहे। 1947 में नव निर्मित राष्ट्र पाकिस्तान के प्रथम वायसराय जनरल बने, कार्यकाल 15 अगस्त 1947 से 11 सितम्बर 1948 तक।

उपाधियां - 
जिन्ना ने अंग्रेज सरकार में वायसराय जनरल लार्ड रीडिंग द्वारा वर्ष 1925 में नाइटहुड (सर) की उपाधि दी जिसे वापस लौटा दिया। वर्ष 1942 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि देने की इच्छा जताई जिसे मना कर दिया गया। 1947 में विभाजन के बाद भारत में गांधीजी को राष्ट्रपिता और जिन्ना को पाकिस्तान में कायदे आजम और बाबा ए कौम की उपाधि दी गई।

मुस्लिम लीग में शामिल - 
जिन्ना 1913 में कांग्रेस छोड़ कर मुस्लिम लीग में शामिल हो गए। वे 1916 में लखनऊ मुस्लिम लीग अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए और आगे से मुस्लिम लीग का अर्थ मोहम्मद अली जिन्ना रह गया। कांग्रेस में गांधीजी को जो स्थान प्राप्त था वहीं स्थान जिन्ना को मुस्लिम लीग में मिला। जिन्ना लगातार 1920 से 1930 और फिर 1937 से 1947 (पाकिस्तान बनने तक) लीग के अध्यक्ष रहे। उसी वर्ष लखनऊ सम्मेलन में जिन्ना का राजनीतिक दर्शन सामने आया जब उन्होंने सुधारों की एक आम योजना पर सहमति बनाने के लिए कांग्रेस और लीग को एक मंच पर लाने में सहायता की। मुसलमानों को प्रांतीय परिषदों में 30 प्रतिशत प्रतिनिधित्व का वादा किया गया था। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ एक साझा मोर्चा बनाया गया। इसके परिणामस्वरूप दोनों दलों के बीच लखनऊ समझौता हुआ। असाधारण सत्र की अध्यक्षता करते हुए जिन्ना ने खुद को कट्टर कांग्रेसी के रूप में संबंधित किया। जिन्ना ने स्पष्ट किया कि सांप्रदायिकता से उन्हें नफरत है।
यह दो समुदायों के आपसी समन्वय का उच्चतम बिंदु था जहां कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सबसे करीबी संबंध रहे। वर्ष 1920 में गांधी के उदय और आंदोलन की अलग शैली जिसने आम जनता को आकर्षित किया से जिन्ना हाशिए पर चले गए। सांप्रदायिक हिंसा में वृद्धि ने जिन्ना को चिंतित किया। इधर गांधीजी का बढ़ता प्रभाव उधर ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति निरंतर विरोध ने जिन्ना को अप्रभावी बना दिया। उन्हें अधिकारियों का समर्थन नहीं दिलाया। वर्ष 1929 तक जिन्ना अनिश्चित राजनीतिक परिदृश्य को समझने के प्रयास कर रहे थे तब पत्नी रूटी की मृत्यु हो गई। दुःखी जिन्ना मायूस हो कर बेटी दीना और बहन फातिमा के साथ लंदन चले गए जहां पुनः वकालत शुरू की। अब भारतीय परिपेक्ष्य में जिन्ना का अस्तित्व समाप्ति की ओर रहा।

मुस्लिम लीग का पुर्नगठन और पृथक पाकिस्तान की मांग - 
उपरोक्तानुसार वर्ष 1930 की में लीग नेता लंदन में जिन्ना के हैम्पस्टेड स्थित घर आए और उनसे मुस्लिम लीग का नेतृत्व करने के लिए स्वदेश लौटने हेतु अनुरोध किया। कुछ समय बाद जिन्ना को मना लिया गया, अंततः 1935 में वो वापस भारत आ गए। इसी समय चुनावों की तैयारी चल रही थी जिसके लिए उन्हें बहुत कम समय मिला। वर्ष 1937 के चुनावों में लीग का खराब प्रदर्शन रहा, परन्तु जिन्ना हतोत्साहित होने के स्थान पर दुगुने जोश से काम पर लग गए। वर्ष 1937 में लखनऊ में मुस्लिम लीग का अधिवेशन रखा गया जो पाकिस्तान की स्थापना की ओर महत्वपूर्ण कदम था। अगले वर्षों के संघर्ष के कारण जिन्ना को पाकिस्तान का संस्थापक और उनकी बहन फातिमा को पाकिस्तान की संस्थापक मां के रूप में जाना जाता है।

 जिन्ना का राजनैतिक जीवन - 
उन्नीस साल की उम्र में वे वकील बने जिन्ना राजनीति में रुचि रखने लगे। दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता के संपर्क में आ कर छात्रों के साथ आजादी के आंदोलन का प्रचार करने। तब तक उन्होंने भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ संवैधानिक लड़ना शुरू किया।
ब्रिटेन प्रवास के अन्तिम दिनों में उनके पिता का व्यवसाय चौपट हो गया और जिन्ना पर परिवार संभालने का दबाव पड़ने लगा। वे बम्बई आ गये और बहुत कम समय में नामी वकील बन गये। उनकी योग्यता ने बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रभावित किया और उन्होंने 1905 में अपने खिलाफ लगे राजद्रोह के मामले की सुनवाई के लिए जिन्ना को ही अपना वकील बनाया। जिन्ना में कोर्ट में यह तर्क दिया कि अगर भारतीय स्वशासन और स्वतन्त्रता की माँग करते हैं तो यह राजद्रोह बिल्कुल नहीं है, इसके बावजूद तिलक को सश्रम कारावास की सजा हुई।
1896 में जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये। तब तक कांग्रेस भारतीय राजनीतिक का सबसे बड़ा संगठन बन चुका था। उस समय कांग्रेस गोखले और दादा भाई नौराजी के नेतृत्व में अंग्रेजों से देश में बेहतर शिक्षा, कानून, उद्योग, रोजगार आदि के बेहतर अवसर की माँग कर रही थी। जनवरी 1919 में जिन्ना साठ सदस्यीय इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य बने जिसे कोई संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। परिषद में यूरोपीय और ब्रिटिश सरकार के भक्त शामिल थे। जिन्ना ने बाल विवाह निरोधक कानून, मुस्लिम वक्फ को जायज बनाने और साण्डर्स समिति के गठन हेतु कानूनी लड़ाई लड़ी। जिन्ना के प्रयासों से देहरादून में भारतीय मिलिट्री अकादमी की स्थापना हुई। जिन्ना ने प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों के शामिल होने का समर्थन किया।
इधर भारत में कांग्रेस के रवैए के विरोध में मुस्लिम हित की वकालत हेतु मुस्लिम लीग की स्थापना कलकत्ता में 1906 में हुई। शुरु-शुरू में जिन्ना अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल होने से बचते रहे, लेकिन बाद में 1913 में जिन्ना मुस्लिम लीग में शामिल हो गये और 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1916 के लखनऊ में कांग्रेस और लीग के बीच समझौते के कर्ताधर्ता जिन्ना ही थे। गांधीजी के कांग्रेस में आगमन के साथ ही जिन्ना का कांग्रेस से मतभेद आरंभ हो गया। गान्धीजी ने राजनीति में अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा और सनातन मूल्यों को बढ़ावा दिया। गांधीजी के अनुसार, सत्य, अहिंसा और सविनय अवज्ञा से स्वतन्त्रता और स्वशासन पाया जा सकता है, जबकि जिन्ना का मत उनसे अलग था। जिन्ना का मानना था कि सिर्फ संवैधानिक संघर्ष से ही आजादी पाई जा सकती है। कांग्रेस के दूसरे नेताओं से अलग गांधी विदेशी कपड़े नहीं पहनते थे, अंग्रेजी की जगह ज्यादा से ज्यादा हिन्दी और सनातन चिन्तन का प्रयोग राजनीति में करते थे जिसके कारण उन्हें अपार लोकप्रियता मिली। गांधी खिलाफत आंदोलन के समर्थक थे जबकि जिन्ना प्रबल विरोधी। जिन्ना के अनुसार खिलाफत आंदोलन से धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा मिलेगा।
"गांधी के सिद्धांत हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन को बढ़ाएंगे कम नहीं करेंगे और इससे दोनों समुदायों के अन्दर भी जबर्दश्त विभाजन पैदा होग" के आधार पर जिन्ना ने 1920 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।उन्होंने यह भी कहा कि । मुस्लिम लीग का अध्यक्ष बनते ही जिन्ना ने कांग्रेस और ब्रिटिश समर्थकों के बीच विभाजन रेखा खींच दी थी। वर्ष 1923 में जिन्ना मुंबई से सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य चुने गये। एक कानून निर्माता के रूप में उन्होंने स्वराज पार्टी को मजबूती प्रदान की। 1925 में लॉर्ड रीडिग ने उन्हें नाइटहुड की उपाधि दी जिसे वापस लौटा दिया।
वर्ष 1927 में साइमन कमीशन के विरोध के समय उन्होंने संविधान के भावी स्वरूप पर सनातन और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की। लीग ने पृथक चुनाव क्षेत्र की माँग की, जबकि नेहरू रिपोर्ट में संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने की बात कही गई। बाद में दोनों में समझौता हो गया जिसके तहत नेहरू - जिन्ना के चौदह सूत्र के नाम से जाना जाता जिसे कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियों द्वारा बाद में खारिज कर दिया गया।
जिन्ना भारत में मुसलमानों के अधिकारों के प्रति चिंतित रहते। लन्दन में गोलमेज सम्मेलन के भंग होने पर दुखी थे। कुछ समय लन्दन में रुके और सर मोहम्मद इकबाल से जुड़कर विभिन्न मुद्दों पर काम करते रहे। 1935 में वे भारत लौटे और मुस्लिम लीग का पुनर्गठन किया।
बाद के दिनों में, जिन्ना ने बहन फातिमा जिन्ना के सहयोग से पृथक पाकिस्तान आंदोलन की राह पकड़ी।

मुस्लिम लीग
1929 में मुस्लिम लीग नेताओं - आगा खान, चौधरी रहमत अली और सर मोहम्मद इकबाल ने जिन्ना से कई बार आग्रह किया कि भारत लौट कर मुस्लिम लीग का प्रभार सँभालें। 1935 में जिन्ना भारत लौट आये और लीग का पुनर्गठन किया। उस दौरान लियाकत अली खान उनके दाहिने हाथ की तरह काम करते थे। 1937 में हुए सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के चुनाव में मुस्लिम लीग ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी और मुस्लिम क्षेत्रों की ज्यादातर सीटों पर कब्जा कर लिया। हालांकि इस चुनाव में मुस्लिम बहुल पंजाब, सिन्ध और पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। जिन्ना ने कांग्रेस को गठबन्धन के लिए आमन्त्रित किया। पहले तो दोनों ने फैसला किया कि वे अंग्रेजों से मिलकर मुकाबला करेंगे परन्तु जिन्ना की शर्त "कांग्रेस को मुसलमानों को पृथक निर्वाचन क्षेत्र दे कर मुस्लिम लीग को भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधि मानना होगा" को कांग्रेस ने रद्द कर दिया। कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं के हित में यह शर्त स्वीकार करना सही नहीं था। जिन्ना ने कई कांग्रेस नेताओं से बातचीत भी की और कांग्रेस ने लीग के कांग्रेस में विलय का प्रस्ताव प्रस्तुत किया परन्तु वार्ता रही। वर्ष 1930 में मुस्लिम लीग के एक भाषण में मोहम्मद इकबाल ने उत्तर पश्चिम भारतीय राज्य का प्रस्ताव दिया जिसे रहमत अली ने 1933 में पर्चे छापकर पृथक देश को पाकिस्तान नाम दिया। कांग्रेस के साथ वार्ता विफल होने के बाद जिन्ना मुसलमानों हेतु पृथक देश की हिमायत करने लगा।आगे चल कर 1916 के हिन्दू वाहिनी के प्रचार अनुसार सावरकर के शब्द गूंजने लगे कि सनातन और मुसलमान दो संस्कृति और दो राष्ट्र हैं। लीग ने भी इस ओर कदम बढ़ा दिया, जिसके साथ ही पृथक राष्ट्र पाकिस्तान की मांग जोर पकड़ने लगी। यही आधार जिन्ना के द्विराष्ट्र का सिद्धान्त बना।
जिन्ना ने इकबाल के साथ पत्राचार में माना  कि भारत में मुसलमानों के साथ अन्याय होगा और अन्त में गृह युद्ध फैल शुरू हो जायेगा। वर्ष 1940 के लाहौर अधिवेशन में लीग ने पृथक पाकिस्तान राष्ट्र की घोषणा कर दी जिसे कांग्रेस ने रद्द किया। मौलाना अब्बुल कलाम आजाद और जमाते-इस्लामी ने इस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की। 26 जुलाई 1943 को खाकसार उपद्रवियों के हमले में जिन्ना घायल हो गए। वर्ष 1941 में द डॉन समाचार पत्र की स्थापना कर जिन्ना अपने विचारों का प्रसारण करने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जिन्ना ने ब्रिटेन सरकार की सहायता की। वर्ष 1942 में गांधी जी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन के प्रबल विरोधी रहे। यूनियनिस्ट नेता सिकन्दर हयात खान की मृत्यु के बाद पंजाब में मुस्लिम लीग का वर्चस्व बढ़ता चला गया। 1944 में गांधीजी और जिन्ना के मध्य मुंबई में चौदह बार वार्ता हुई परन्तु समस्या का हल नहीं निकल पाया।

जिन्ना का अंतिम समय
जिन्ना 1930 से तपेदिक रोग से ग्रस्त हो गए जो बहन फातिमा सहित कुछ निकट के लोग ही जानते थे। 09 सितंबर 1948 से निमोनिया के कारण निजी चिकित्सक इलाहिबक्ष की सलाह पर 11 सितंबर 1948 को उचित इलाज हेतु जिन्ना विमान द्वारा कराची ले जाए गए। अस्पताल के रास्ते में एंबुलेंस खराब हो गई और एक घंटे बाद दूसरी एम्बुलेंस आई। रात 11 बजकर 20 मिनट पर गवर्नर हाउस में जिन्ना ने अंतिम सांस ली। जिन्ना के अंतिम संस्कार (मदफन) पर शिया-सुन्नी विवाद हो गई। फ़ातिमा जिन्ना के निर्देशानुसार उनके घर पर शिया रीति के अंतिम संस्कार कार्य किए जाने के बाद पाकिस्तान सरकार द्वारा सुन्नी रीति से अंतिम संस्कार (नमाज़-ए-जनाज़ा), कराची में किया गया  जहां अब मज़ार-ए-क़ायद है।

विशेष - 
कोलकाता, बंगाल में जिन्ना की बहन फातिमा और बहनोई R अहमद द्वारा स्थापित, डॉक्टर R. अहमद दंत चिकित्सा कॉलेज एवं अस्पताल भारत के सर्वोत्तम  मेडिकल कॉलेज में से एक है। डॉ अहमद को "फ़ादर ऑफ माडर्न डेण्टेस्टरी" कहा जाता है।

            मजार ए कायद कराची
मोहम्मद अली जिन्ना और फातिमा जिन्ना का शांति स्थल कराची पाकिस्तान

स्त्रोत - 
विभिन्न पत्रिकाएं, संपादकीय
वोलपर्ट 1984: 33
एफ. जिन्ना 1987: 61
एफ. जिन्ना 1987: vii
एफ. जिन्ना 1987: 50
द मर्चेंट 1990
बोलिथो 1954: 62
बोलिथो 1954: 21-2
मोहम्मद अली जिन्ना - हिंदू-मुस्लिम एकता के राजदूत', जे. अहमद 1966
रज़ा 1982: 34
वोलपर्ट 1984: 40
वोलपर्ट 1984: 138
हसन इस्फहानी को लिखा खत, 9 अक्टूबर 1945
12 अप्रैल 1939 को हसन इस्फहानी को लिखे जिन्ना के पत्र।- इस्फहानी संग्रह

शमशेर भालू खां 
जिगर चुरूवी 
9587243963

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