Thursday, 15 May 2025

✅ज़ैनुल आबिदीन हसन सफ़रानी

भारत की महान हस्तियां
          आबिद हसन सफरानी
   ज़ैनुल आबिदीन हसन सफ़रानी 
जय हिंद के नाम से भारत सरकार डाक विभाग द्वारा 1947 में जारी डाक टिकट
       बोस के साथ सफरानी, जर्मनी
भारत की धरती पर मानवता और राष्ट्रप्रेम ने अनंत अंगड़ाइयां लीं। भारत के लाल परदेश में जा कर भी देश को नहीं भूले।
यह कहानी है ऐसे ही भारत के लाल की जिनका नाम है - आबिद हुसैन उपनाम सफरानी (सफरानी फारसी का शब्द है जो केसरिया रंग से बना है अर्थात भगवा रंग)
आजाद हिंद फौज में जय हिन्द का नारा देने वाले आबिद हसन राष्ट्र सेवा हेतु सदैव समर्पित रहे।
जर्मनी के बर्लिन में आबिद हसन के सुझाव पर आजाद हिंद फौज (INA) ने जय हिंद शब्द को सेना का नारा बनाया यह शब्द स्वयं आबिद हसन का लिखा हुआ है।
जय हिंद को नेताजी ने यह कहते हुए इस शब्द को स्वीकृति दी कि आज़ाद हिन्द फौज का इससे सुंदर नारा नहीं हो सकता।
आबिद हुसैन जीवन परिचय - 
मूल नाम - ज़ैनुल आबिदीन हसन
प्रचलित नाम - आबिद हसन
उपनाम - सफरानी
जन्म - 11 अप्रैल 1911
जन्मस्थान - हैदराबाद
मृत्यु - 9 अप्रैल 1984 
पिता - जाफ़र हसन (उस्मानिया विश्वविद्यालय में डीन)
माता - बेगम आमिर हसन (गांधीवादी और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका) 
हसन परिवार और गांधी - 
यह परिवार राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित था जो गांधी जी के निकटतम माने जाते थे। 
सहोदर - बदरुल हसन अखबार (यंग इंडिय पत्रिका के संपादक।

कार्य - 
1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 
2. भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) अधिकारी 
3. भारतीय राजनयिक। 
4. राष्ट्रवादी लेखक
5. भारतीय प्रशानिक सेवा अधिकारी, (विदेश सेवा)
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा - 
आबिद हसन सेंट जॉर्ज ग्रामर स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण कर निज़ाम कॉलेज हैदराबाद से उच्च अध्ययन हेतु प्रवेश लिया परन्तु महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर कॉलेज छोड़ कर 1931 में साबरमती आश्रम में रहने लगे।
जर्मनी यात्रा और नेताजी से भेंट
1935 में माँ की इच्छा अनुसार आबिद इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जर्मनी गए जहाँ उनकी मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। जर्मनी में नेताजी के विचारों से प्रभावित होकर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और नेताजी के निजी सचिव और दुभाषिया बन गए ।
भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) में योगदान - 
आबिद हसन नेताजी के साथ जर्मनी से जापान तक 90 दिनों की पनडुब्बी यात्रा में साथ रहे। जो उस समय की सबसे लंबी पनडुब्बी यात्रा थी। INA में, वे मेजर के पद तक पहुँचे और गांधी ब्रिगेड का नेतृत्व किया। 
जय हिंद नारे की रचना - 
INA में विभिन्न धर्मों के सैनिकों के लिए एक समान अभिवादन की आवश्यकता महसूस की गई। आबिद हसन ने पहले जय हिंदुस्तान का नारा प्रस्तावित किया जिसे बाद में संक्षिप्त कर जय हिंद कर दिया गया। यह नारा INA का ऑफिशियल अभिवादन बना और बाद में स्वतंत्र भारत में व्यापकता से अपनाया गया।
सफरानी उपनाम का चयन - 
धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बढ़ावा देने हेतु आबिद हसन ने त्याग और बलिदान के प्रतीक रंग सफरन (केसरिया, भगवा) का उपनाम सफरानी अपनाया।
स्वतंत्रता के बाद का जीवन - 
स्वतंत्रता के बाद, आबिद हसन ने भारतीय विदेश सेवा (IFS) में प्रवेश किया।
आबिद हुसैन ने
1. मिस्र
2. डेनमार्क
3. चीन
4. इराक
5. सीरिया
6. सेनेगल
7. स्विट्ज़रलैंड 
देशों में राजदूत के रूप में सेवा की। 1969 में सेवानिवृत्ति के बाद वे हैदराबाद के शैक पेट गांव में खेत में बस गए जहां सन 1984 में उनका निधन हो गया।
साहित्यिक योगदान - 
आबिद हसन एक बहुभाषी विद्वान थे जिन्हें दस भाषाओं की व्याकरण का ज्ञान था, एवं इन भाषाओं में लेखन कार्य भी किया।
01. उर्दू
02. हिंदी
03. अंग्रेज़ी
04. जर्मन
05. फ्रेंच
06. अरबी
07. फारसी
08. संस्कृत
09. तेलुगु
10. पंजाबी 
हुसैन ने रवींद्रनाथ टैगोर के जन गण मन का हिंदी - उर्दू अनुवाद शुभ सुख चैन के रूप में किया, जिसे आज़ाद हिंद सरकार का राष्ट्रगान बनाया गया।
जीवन घटनाक्रम - 
हैदराबाद (मुंबई प्रांत) में उपनिवेशवाद विरोधी परिवार में जन्मे आबिद हसन का लालन-पालन भारत में हुआ जो बाद में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हेतु जर्मनी चले गए। द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी में (छात्र जीवन) सुभाष चंद्र बोस से मिलकर इंडश लीजन संस्था में शामिल होने का फैसला किया। हसन बाद में बोस के निजी सचिव और दुभाषिया बने। आबिद हसन ने 1943 में दक्षिण पूर्व एशिया की यात्रा जर्मन यू-बोट यू-180 में बोस के सहयात्री रहे। आईएनए के सुधार और दक्षिण पूर्व एशियाई रंगमंच में इसके अभियानों के दौरान हसन आज़ाद हिंद फौज में मेजर बनाए गए । इसी दौरान उन्होंने सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक के रूप में अपने नाम में पवित्र हिंदू रंग भगवा के नाम पर सफ़रानी शब्द जोड़ा, और बन गए आबिद हसन सफ़रानी। सफ़रानी बहुत क्रियाशील एवं दूरगामी सोच के धनी थे।
युद्ध विराम और भारत वापसी के बाद सन 1946 में आईएनए के विरुद्ध सभी मुक़दमे खारिज किये गए तो आबिद हसन रिहा होकर समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए । विभाजन के बाद आबिद हसन ने हैदराबाद में बसने का फैसला किया और नव गठित भारतीय विदेश सेवा में IFS बने। सफ़रनी 1969 में सेवानिवृत्त होकर हैदराबाद के पास एक गांव में खेत में रहने लगे जहां सन 1984 में उनकी मृत्यु हो गई।
कृतज्ञ राष्ट्र ने उनके नाम से डाक टिकट जारी कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
पत्रिका the batter india में उनके बारे में विस्तृत लेख प्रकाशित किया गया।
शमशेर भालू खां 
जिगर चुरूवी 
9587243963

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