POK की कहानी -
अशोक कुमार पाण्डेय की पुस्तक कश्मीरनामा के कुछ अंश, प्रकाशक राजपाल एंड संस
पाक अधिकृत कश्मीर (POK) कैसे बना -
15 अगस्त 1947 के दिन भारत स्वतंत्र हुआ परंतु कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। लार्ड माउण्टबेटन महाराजा हरि सिंह के पास किसी एक देश में मिलने का प्रस्ताव ले कर गए परन्तु पेटदर्द के बहाने हरि सिंह जी माउंटबेटन से नहीं मिले। महाराजा चाहते थे स्वतंत्र राष्ट्र जिस का नाम #डोगरिस्तान रखा गया। भारत में विलय के समर्थक शेख अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया गया।
जवाहरलाल नेहरू लगातार आगाह रहे थे कि पाकिस्तान से हमला हो सकता है इस हेतु नेहरू जी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को कई चिट्ठियाँ भी लिखी, यह पत्र व्यवहार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं था, वहाँ हरि सिंह की सेना थी, पटेल पूरे प्रयास कर रहे थे पर बात नहीं बन रही थी, पटेल कर भी क्या कर लेते? महाराजा राज के नशे में मस्त थे। जम्मू - कश्मीर में संघ की इकाई महाराजा के साथ थी। जम्मू में हुए दंगों में चार लाख मुसलमान या तो मार दिए गए या भगा दिए गए ताकि जम्मू में उनका बहुमत समाप्त हो जाए, कश्मीर घाटी उस समय तक शांत रही।
महाराजा दोनों देशों से स्टैंड स्टिल समझौता करना चाहते थे, पाकिस्तान ने यह समझौता कर लिया, परन्तु भारत की नीति ऐसा कोई समझौता करने की नहीं थी। पाकिस्तान सोच रहा था, आज नहीं तो कल सेब तो उनकी ही झोली में गिरना है।
पाकिस्तान ने वहां आम जन के लिए सामग्री सप्लाई पर ब्लॉकेड (अवरोध) लगा दिया, कश्मीर में ज़रूरी सामान की कमी पड़ने लगी और फिर क़बायलियों की आड़ में उसने आक्रमण कर दिया। जब क़बायली बारामूला पहुँच गए और महाराजा के सैनिक कमज़ोर पड़ने लगे तब उसने भारत से सहायता मांगी। भारत सरकार ने सहायता करने हेतु सहमति दे दी परन्तु विलय की शर्तों पर।
26 अक्टूबर को महाराजा ने भारत के विदेश सचिव/प्रतिनिधि के रूप में मेनन ने विलय संधि पत्र सहित भेंट की। महाराजा ने इस विलय पत्र हस्ताक्षर कर दिए। 27 अक्टूबर को डकोटा से भारतीय सेना पहुँची तो विद्युत तंत्र पाकिस्तानियों द्वारा बाधित कर दिया गया। शेख और उनके लोग टॉर्च की रोशनी में सेना को उतार रहे थे।
महाराजा माल-मत्ता समेट के जम्मू भाग आए।
अगले दो महीने तक लड़ाई चलती रही। शेख ने आम कश्मीरियों (सभी धर्म, जाती एवं लिंग) को मिलाकर जनता की सेना बनाई। जनता शहर के अंदर क़बायलियों (कबाइलियों के भेष में पाकिस्तानी सेना) से लड़ रही थी और भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना से। इस संबंध में मक़बूल शेरवानी की कहानी दिलचस्प है, समय मिले तो पढ़ें।
महात्मा गांधी ने बयान जारी किया कि अगर शेख अब्दुल्ला सभी साथियों सहित पाकिस्तान से लड़ते हुए शहीद भी हो गए तो मैं एक बूँद आँसू नहीं बहाऊँगा।
याद रखिए यह वो समय था जब हमारे सैनिक बर्फ़ और पहाड़ पर लड़ने हेतु प्रशिक्षित नहीं थे, फिर भी लड़े और जम के लड़े। कारगिल व कश्मीर घाटी सहित जम्मू के पुंछ का बड़ा हिस्सा पाक सेना से खाली करवाया गया।
अब हाड़ कंपा देने वाला दिसम्बर आ गया। सेना के पास सर्दी से बचाव के साधन नहीं थे। पाकिस्तानी सेना ऊंचाई पर मोर्चे पर थी। अब लड़ाई मुश्किल हो गई। पटेल एक पत्र में लिखते हैं कि - अब युद्ध ओर खींच पाना संभव नहीं। लंबा चला तो अपने बहुत लोग मरेंगे और खज़ाना खाली हो जाएगा।
दिसम्बर में विवशता पूर्वक यह समझौता करना पड़ा। कश्मीर घाटी, जम्मू, पुंछ हमारे पास और मुजफ्फराबाद सहित कुछ क्षेत्र उधर चल गया। यही लाइन ऑफ सीज़फायर बनी।
ऊपर का हिस्सा गिलगिट-बालटिस्तान पर पाकिस्तान ने कब्जा किया, जहां काम करने वाली सेना गिलगिट स्काउट के इन चार्ज मेजर ब्राउन थे। मेजर ब्राऊन वेतन तो महाराजा से लेते पर काम अंग्रेज़ों के लिए कर रहे थे।
15 अगस्त 1947 को आज़ादी के दिन मेजर ब्राउन ने पाकिस्तान के एक तहसीलदार के माध्यम से यह क्षेत्र उसे सौंप दिया जिसके लिए स्थानीय क़बीले भी उनके साथ थे। इसका एक कारण यह भी था कि अंग्रेज़ रूस से लगने वाला इलाक़ा भारत को नहीं देना चाहते थे। ब्राऊन के साथी ब्रिगेडियर घँसारा सिंह ने इसका विरोध किया तो उनको गिरफ़्तार कर लिया गया, जिन्हें बाद में भारत सरकार ने छुड़वाया। पाकिस्तान ने इस के एवज में मेजर ब्राउन को #निशान_ए_पाकिस्तान का सम्मान दिया।
नीचे तस्वीर में पंडित नेहरू शेख अब्दुल्ला द्वारा बनाई गई #शांति_सेना की महिला टुकड़ी से मिल रहे हैं।
साक्ष्य - कश्मीरनामा
शमशेर भालू खां
जिगर चुरूवी
9587243963
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