Thursday, 5 June 2025

✅बकरी

बकरी इतिहास एवं उपयोगिता - 
बकरी से संबंधित लोकोक्तियां एवं मुहावरे - 
1.बकरी - कमजोर दिल वाला या डरपोक
2. बुजदिल - (बकरी का एक नाम बुज है) कमजोर दिल वाला, डरपोक
3. मिमियाना - (बकरी की बोली) याचना करना
4. बलि का बकरा - किसी को नजायज फंसाना।
5. बकरे की बोली बोलना - उल्टी करना, कै करना।
6. बकरी पकड़ना - किसी को परेशान करना।
7. बकरा बनाना - मूर्ख बनाना, मजाक करना
8. बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी - कब तक बचेगा, आखिरकार पकड़ा जाना है।
 9. बकरी के मुंह में तुम्बा नहीं सुहाता - अपात्र को मिला धन और मान संभलता नहीं, वो उसका गलत प्रयोग करता है।

बकरी से संबंधित शब्द - 
बकरवाल - बकरी पालक जाति
रेवड़ - बकरियों का झुंड
कोथली - बकरी के बच्चों को दूध पीने से रोकने हेतु उसके थनों पर बांधा जाने वाला थैला।
गुर्जर - बकरी पालक जाति
मेमना - बकरी का बच्चा
बकरी को चलता - फिरता फ्रीज, रनिंग डेयरी एवं चलता - फिरता एटीएम भी कहा जाता है।

बकरी के नाम - 
बकरा - नर
बकरी - मादा
टाट - बकरी
घोन - बूढ़ी बकरी
अज - बकरा
बुज - बकरी
अमर बकरा - वो बकरा जिसका वध नहीं किया जाता है और प्रजनन हेतु काम में लिया जाता है।

बकरी का परिचय - 
बकरी पालन का इतिहास हज़ारों साल पुराना है। बकरी पालन की शुरुआत ईरान और तुर्की में हुई। पुरातात्विक साक्ष्य से यह पुष्टि होती है कि ज़ाग्रोस पर्वतमाला के जंगली बेज़ार आइबेक्स ही संभवतः आज की घरेलू बकरियों के मूल पूर्वज हैं।बकरियां पालतू बनाए जाने वाले भेड़ और कुत्ते के बाद तीसरा जानवर थीं। बकरियों के जंगली मूल से बहुत आगे निकलने में हज़ारों वर्ष लगे। विश्व में बकरियाँ पालतू व जंगली रूप में पाई जाती हैं। इनकी विश्व में लगभग 300 एवं भारत में 20 ज्ञात प्रजातियां हैं। यह हरिण परिवार की निकट सदस्य है। घरेलू बकरी पालतू (मवेशी) को दूध मांस, खाल व ऊन हेतु पाला जाता है। इसके अतिरिक्त इससे खाद एवं हड्डी भी प्राप्त होता है। पालतू बकरियाँ दक्षिण - पश्चिम एशिया व पूर्वी यूरोप की जंगली बकरी की वंशज है। संकरण से प्रजनन द्वारा बकरियों को स्थान और उपयोगनुसार कई नस्लों में बदल दिया। एक अनुमान के अनुसार विश्व में लगभग 95 करोड़ (भेड़ से कम) बकरियां हैं। बुद्धि में बकरी कुत्ते के समान ही है। वर्ष 2019 में हुई राष्ट्रीय पशुधन गणना के अनुसार भारत में बकरियों की संख्या लगभग 15 करोड़ (14.88 लाख) है। बकरी फार्म कल्चर के कारण इतने वध के बाद भी उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। बकरी की प्रत्येक मान्यता प्राप्त नस्ल की विशिष्ट वजन सीमा होती है। बोअर जैसी बड़ी नस्लों के बकरियों का वजन 140 किलो से लेकर छोटी बकरी का वजन 20 किलो तक होता है। आकार में अफ़्रीकी पिग्मी (बकरी की सब से पुरानी पालतू नस्ल) जैसी लघु नस्लें हैं (41 से 58 सेमी) ऊंचाई वाली होती हैं।

बकरी का वैज्ञानिक वर्गीकरण - 
बकरी द्विगुण जीव है जिसमें 60 गुणसूत्र होते हैं। बकरी का जीन SLC11A1 उसके गुणसूत्र संख्या 2 पर स्थित होता है।
जगत - जंतु
संघ - रज्जुकी (Chordata)
वर्ग - स्तनधारी (Mammalia)
गण - द्विखुरीय (Artiodactyla)
कुल - बोविडी (Bovidae)
उपकुल - काप्रीनी (Caprinae)
वंश - Capra
जाति - C. aegagrus
उपजाति - C. a. hircus

बकरी की विशेषताएं - 
बकरियां स्वाभाव से फुर्तीली, जिज्ञासु एवं डरपोक होती हैं। यह तेज ढालदार स्थानों पर चढ़ने और संतुलन बनाने में सक्षम होती हैं। बकरी जुगाली करने वाला पेड़ पर चढ़ने की क्षमता वाला एक मात्र जीव है। बकरी बिना सुरक्षित घेरे के भागने की प्रवृति रखती हैं। इस संबंध में अबुल कलाम आजाद का लेख अबु खां की बकरी दिलचस्प है। यह समूह में रहना पसंद करती हैं पर चरने हेतु भेड़ों के विपरीत मैदान में अलग - अलग फैल कर चरती हैं। बकरी की एक नस्ल पॉलीसेरेट है जिसके आठ सींग होते हैं। एक आनुवंशिक गुण वाली दो बकरियों के प्रजनन से संतानों में नर की संख्या अधिक पैदा होती है। बकरी विपरीत परिस्थितियों में वनस्पतियों व झाड़ियों की पत्तियां या सुखी घास खाकर भी जीवित रह सकती है। भेड़, गाय, ऊंट की तरह बकरियाँ जुगाली करने वाली होती हैं। उनका पेट चार-कक्षीय होता है जिसमें रुमेन, रेटिकुलम, ओमेसम और एबोमासम शामिल होते हैं। अन्य स्तनपायी जुगाली करने वालों की तरह, वे समान पंजों वाले अनगुलेट होते हैं।

बकरी पालन - 
वर्तमान में व्यवसायीकरण (औद्योगिक स्तर पर) के माध्यम से बकरी पालन हो रहा है। बकरी पलकों को प्रशिक्षण के द्वारा उत्तम किस्म की बकरी पालने हेतु उत्साहित किया जाता है। भूमिहीन मजदूर और छोटे एवं सिमांत किसान बकरी पालन से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 

बकरी का मांस - 
बकरी के मांस को भेड़ के मांस के साथ मटन कहा जाता है। त्योहारों एवं अन्य अवसरों पर बकरी की बलि दी जाती है। यह सम्पूर्ण संसार में खाया जाने वाला सर्वाधिक खाद्य है। स्थान विशेष पर इसे पकाने या कच्चा खाने की अलग - अलग विधियां हैं। इसमें प्रोटीन, वसा, फाइबर, लवण एवं अन्य आवश्यक तत्व पाए जाते हैं।
 
बकरी का दूध - 
बकरी के दूध में प्रति 100 ग्राम 68 कैलोरी, वसा 4.1 ग्राम, कोलेस्टेरॉल 11 मिलीग्राम, सोडियम 50 मिलीग्राम, पोटैशियम 204 मिलीग्राम, कार्बोहायड्रेट 4.5 ग्राम, ग्लूकोज (शुगर) 4.5 ग्राम, प्रोटीन 3.6 ग्राम, विटामिन सी 1.3 मिलीग्राम, कैल्सियम 134 मिलीग्राम, 
आयरन 0.1 mg विटामिन डी 51 IU
विटामिन बी (6) 0 मिलीग्राम, विटामिन बी(12) 0.1 µg, मैग्नेशियम 14 मिलीग्राम व आहारीय रेशा 0.0 मिलीग्राम होता है। बकरी के दूध में एक अलग सी ख़ुशबू आती है। डेंगू रोग होने पर प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं, बकरी का दूध प्लेटलेट्स बढ़ाने में सहायक हैं। बीमार व्यक्ति एवं नवजात बच्चे को बकरी का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है।नियमित रूप से बकरी के दूध का सेवन करने से बालों का झड़ना कम हो जाता है।
बकरी का दूध स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। बकरी के दूध से शरीर व जोड़ों में सूजन कम हो जाती है। जोड़ों के दर्द, खून की कमी को पूरा करने एवं मानसिक स्वास्थ्य में बढ़ोतरी हेतु यह फायदेमंद है। 
बकरियों के दूध से पनीर व दही बनाया जाता है।

बकरी की चमड़ी - 
पुराने समय में बकरी की खाल का उपयोग पानी और शराब रखने के पात्र के रूप में किया जाता था जिसे मस्क कहते थे। इसका उपयोग चर्मपत्र बनाने हेतु भी किया जाता है। बकरी की चमड़ी से जूते, कोट, जैकेट, ढोल, तंतु, कालीन एवं सजवानी सामान बनाए जाते हैं। वर्तमान में रेग्जीन या चमड़े जैसे अन्य सस्ते कृत्रिम विकल्प के कारण खाल कम काम में ली जाती है।

बकरियां में प्रजनन - 
बकरियां दो साल में तीन बार ब्याती हैं और एक बार में लगभग दो बच्चे देती हैं, कभी - कभी दो से अधिक भी। प्रजनन हेतु उत्तम किस्म के बकरों को अमर छोड़ा जाता है।

भारत में बकरियों की नस्लें - 
बकरियों की कई नस्लें हैं. भारत में करीब 20 नस्ल की बकरियां पाई जाती हैं।
बकरी पालक नस्ल सुधार हेतु आईवीएफ़ तकनीक का उपयोग करते हैं। नवीन तकनीक के लगातार उपयोग के कारण पुरानी नस्लें 1500 ई. के बाद विलुप्त हो चुकी हैं।

च्यांगरा (चम्बा) नस्ल - 
च्यांगरा बकरी हिमालय ऊंचे इलाकों में पाई जाने वाली पहाड़ी नस्ल है जो विश्व की सबसे महंगी और उच्च गुणवत्ता वाली कश्मीरी ऊन पश्मीना पैदा करती है। च्यांगरा बकरी को यह नाम ट्रांस हिमालयी क्षेत्र च्यांग (चंबा घाटी) में मूल निवास के कारण इसे यह नाम दिया गया है।
च्यांगरा बकरी भारत, नेपाल, पाकिस्तान और चीन के हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में 9000 फीट या इससे अधिक ऊंचाई पर विकसित हुई। इस नस्ल को पुराने समय में उच्च घराने पालते थे। इन बकरियों की नेपाल के धार्मिक त्यौहार दशैन में बलि दी जाती है।
पश्मीना ऊन बकरी को हिमालय की ठंड से बचाता है। च्यांगरा बकरी के अंदरूनी (बाहरी बाल मोटे होते हैं) बालों से निकला यह ऊन महंगा, मुलायम, भारहीन एवं उत्तम प्राकृतिक गर्म फाइबर है जिसे डायमंड फाइबर के नाम से जाना जाता है। चंबा बकरी के बालों के 16.5 माइक्रोन से कम मोटाई वाले आंतरिक परत के रेशों का उपयोग पश्मीना के रूप में किया जाता है। जितनी अधिक ऊंचाई उतनी बेहतर ऊन। एक बकरी से 100 ग्राम या इससे कम ऊन प्राप्त होती है।
गद्दी नस्ल - 
गद्दी नस्ल के बकरे-बकरी कांगड़ा, चंबा, शिमला और कुल्लू, जम्मू में पाई जाती है जिसका दूसरा नाम वाइट हिमालयन भी है। 19वीं पशु जनगणना के अनुसार इनकी संख्या 3.60 लाख थी। इस नस्ल के नर का औसत वजन 28 किलो व मादा का 23 किलो तक होता है। सफेद रंग की इस बकरी के शरीर पर भूरे और काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। इनके सर पर बड़े ऊंचे सींग, कान 12 सेमी तक लंबे नीचे की ओर गिरे हुए एवं शरीर का अधिकांश भाग लम्बे बालों से ढका होता है। पशु पालक कभी - कभी इनसे बोझा ढोने का काम भी लेते हैं।

कश्मीरी बकरी नस्ल - 
दूर से देखने पर यह सींग वाली भेड़ जैसी दिखाई देती है। पश्मीना के बाद यह उत्तम किस्म की कश्मीरी (महीन, मुलायम, कोमल एवं भारहीन) ऊन देती है। इसके बालों की दो परत होती हैं। ऊपरी परत को गार्ड हेयर कहते हैं। संकरण द्वारा इसकी उत्तम नस्ल ऑस्ट्रेलियाई कश्मीरी बकरी के रूप में प्राप्त हुई है। चीन में कश्मीरी बकरी के समान नस्ल पायगोरा, निगोरा और अंगोरा हैं।

जमुनापरी - 
अधिक मांस देने वाली यह बकरी उत्तर प्रदेश के इटावा क्षेत्र (यमुना व चंबल घाटी के बीच) में उत्पन्न हुई। वर्ष 1953 में इस नस्ल को इंडोनेशिया की स्थानीय नस्ल से क्रॉसब्रीडिंग करवा कर नई नस्ल विकसित की। बड़े आकार की इन बकरियों से अधिक मांस मिलता है। इनका माथा उठा व चौड़ा, कान लम्बे लटके एवं चौड़े, मुंह लम्बा, नाक रोमन तथा सींग छोटे एवं चपटे होते हैं। इनके शरीर पर बालों का रंग एक जैसा नहीं होता है (प्रायः सफेद जिस पर भूरे, काले या तांबा रंग के धब्बे हो सकते हैं)। इनकी टांगें लम्बी तथा पिछली टांगों पर लम्बे बाल होते हैं और यही इस नस्ल की विशेषता है। इस नस्ल के नर का भार 90 किलो तक होता है। इस नस्ल की बकरियां 250 दिन के दुग्ध काल में 360 से 544 लीटर दूध देती है। इनके दूध में वसा औसतन 3.5 - 5.0 होती है।
पश्मीना - 
चांगथांगी एवं चम्बा नस्ल के मेल से बनी यह बकरी विशेष रूप से ऊन के लिए पाली जाती है। पश्मीना ऊन चांगथांगी एवं चम्बा नस्ल से मिलती है। इसी सम्मिश्रण से पश्मीना ऊन बकरी का पालन होता हैं। यह ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ने में माहिर होती हैं।
बरबरी बकरी - 
बरबरी या बारी भारत और पाकिस्तान के मैदानी क्षेत्र में पाई जाने वाली छोटी घरेलू बकरी है। इसे साई बारी, थोरी बारी, तितरी बारी, वादी बारी के नाम से भी जाना जाता है। औसत वजन नर 38 मादा 23 किलो, औसत ऊंचाई नर 71 मादा 56 सेंटी होती है। यह छोटी बकरी है। इसके छोटे सर पर छोटे ऊपर उठे कान और छोटे तीखे सींग होते हैं।
बीटल (लाहौरी) बकरी -
बीटल बकरी भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र की नस्ल है जिसका उपयोग दूध और मांस उत्पादन हेतु किया जाता है। यह जमनापारी एवं मालाबारी बकरी के समान है। इसके कान चपटे, लंबे, मुड़े एवं लटके हुए होते हैं। बीटल से अन्य नस्लों की क्रॉस ब्रीडिंग करवा कर नस्ल सुधार कार्यक्रम चलाए जाते हैं। बकरी फार्म हेतु यह उत्तम नस्ल है।
टोगनबर्ग - 
टोगेनबर्गर या टोगेनबर्ग डेयरी हेतु उपयुक्त स्विस नस्ल की बकरी है। इसका नाम सेंट गैलन के कैंटन के टोगेनबर्ग क्षेत्र से लिया गया है, जहाँ इसकी उत्पत्ति मानी जाती है।
इसकी अन्य नस्ल ज़ीगे, शेव्रे डु एवं कैपरा डेल हैं। औसत वज़न नर 75 किलो, मादा 55 किलो होता है। इसकी औसत ऊंचाई नर 85 सेमी, मादा 75 सेमी होती है। नर के सींग ऊपर की ओर निकल कर गर्दन की ओर झुके होते हैं। मादा सींग रहित होती है। यह नस्ल विश्व के 50 से अधिक देशों में पाई जाती है।
सिरोही बकरी - 
सिरोही नस्ल के बारे में - 
नाक तोता, मुंह पर मोरिया।
लंबे कान चाल छमक छमक।।
सिरोही घरेलू बकरी की एक भारतीय नस्ल है । इसका नाम इसके मूल क्षेत्र, राजस्थान के सिरोही जिले के नाम पर रखा गया है। डेयरी/बकरी फार्म हेतु उपयुक्त यह दोहरे उद्देश्य (अधिक मांस एवं दूध) वाली नस्ल है। यह राजस्थान की शुष्क उष्णकटिबंधीय जलवायु में अनुकूलित है।
ब्लैक बंगाल - 
ब्लैक बंगाल बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में पाई जाती है। इन बकरियो का रंग काला, भूरा, सफेद व स्लेटी होता है। यह आकार में छोटी, सींग पैर छोटे होते हैं। औसत वज़न नर 30 किलो मादा 25 किलो की होती है। यह कम देती है। यह कम चारा खाती है। इसका मांस और त्वचा उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं।
ओस्मानाबादी बकरी - 
यह बकरी कम (आधा से एक लीटर) दूध देती है। यह काले, भूरे, सफेद या स्लेटी रंग की होती है। नर का औसत वज़न 32 किलो मादा का वजन 25 होता है। यह मांस हेतु पाली जाती है। इनका आकार बड़ा व कान मझले के होते हैं। इस नस्ल के नर के सींग होते है। इसका औसत वजन नर 34 किलो मादा 32 किलो होती है।
चांगथांगी बकरी - 
इस नस्ल के बकरे-बकरी लेह, कारगिल, लद्दाख और लाहुल-स्पीती घाटियों में पाले जाते हैं। इसका नामकरण लद्दाख के चांगथांग क्षेत्र के नाम पर हुआ है। इनका औसत वजन लगभग 20 किलो होता है। गद्दी नस्ल की तरह से इनका रंग भी सफेद ही होता है जिसमें काले या भूरे रंग के धब्बे होते हैं। इस नस्ल के सींग ऊपर की ओर उठे हुए और घुमावदार होते हैं।
तोतापरी (तोतापुरी) बकरी - 
तोतापुरी बकरी मुख्य रूप से राजस्थान में पाई जाने वाली नस्ल है। यह नस्ल दूध और मांस हेतु उपयुक्त हैं। तोतापरी बकरियां बेहद जिज्ञासु और बुद्धिमान होती हैं। यह हर प्रकार के स्थलीय स्थानों पर जीवित रह सकती हैं। यह पहाड़ों व छोटे पेड़ों पर चढ़ने में सक्षम हैं। यह नस्ल बकरी फार्म हेतु लोकप्रिय है जो व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपयुक्त है। तोतापुरी बकरियां आकार में मध्यम से बड़ी होती हैं।

बकरियों में रोग एवं निदान - 
भेड़ एवं बकरियों में लगभग रोग एवं उनके निदान समान ही हैं।

बकरियों में छद्म गर्भावस्था रोग - 
बकरियों में छद्म गर्भावस्था रोग को हाइड्रोमेट्रा या स्यूडोप्रेग्नेंसी भी कहा जाता है। इसमें गर्भाशय में तरल पदार्थ जमा हो जाता है. यह स्थिति नर बकरियों के संपर्क में आने या उसके बिना भी हो सकती है। यह रोग पालतू/ डेयरी बकरियों में अधिक होता है। यह रोग बकरी की उम्र, एस्ट्रस के प्रकार, शारीरिक स्थिति, और पिछले प्रसव से जुड़ा है। निदान के अभाव में बकरियां बांझ हो सकती हैं। इस रोग के मुख्य लक्षण हैं, गर्भाशय में तरल पदार्थ का जमा होना जिससे प्रोजेस्टेरोन की उच्च सांद्रता के कारण गर्भाशय और स्तन बढ़ जाते हैं। इसके इलाज हेतु प्रोस्टाग्लैंडीन एफ़ 2 अल्फ़ा या ऑक्सीटोसिन की खुराक दी जाती है।

अर्थव्यवस्था में बकरी का योगदान - 
भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। भारत में बकरी की 20 नस्लें उपलब्ध है। विगत 2-3 दशकों में ऊंची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासशील देशों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृध्दि, इनके सामाजिक और आर्थिक महत्व का दर्शाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिध्द भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विगत 2-3 दशकों में ऊंची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासशील देशों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृध्दि, इनके सामाजिक और आर्थिक महत्व का दर्शाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिध्द हो रहे हैं-
बकरी का विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अपने को ढालने की क्षमता रखना। इसी गुण के कारण बकरियां देश के विभिन्न भौगोलिक भू-भागों में पाई जाती हैं।
बकरी की अनेक नस्लों का एक से अधिक बच्चे की क्षमता रखना।
बकरी की व्याने के उपरांत अन्य पशु प्रजातियों की तुलना में पुन: जनन के लिए जल्दी तैयार हो जाना।
बकरी मांस का उपयोग किया जाना।

शमशेर भालू खां 
9587243963

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